(पोनी—कुत्ते की आत्म कथा)
(मनसा-माहनी दसघरा)
इस कथा को लिखने के लिए अगर मुझे
किसी ने प्रेरित किया तो वह था पोनी। जब वह अंतिम बिदाई ले रहा था, अपनी मृत्यु के कुछ ही मिनट पहले। तब उसने मेरे हाथ में अपना सर रख कर
किसी अंजान सी ध्वनि में मुझसे कुछ कहने की कोशिश की। शब्दो से कही ज्यादा भावों को ध्वनि बहन कर लेती
है। शब्द उसके आगे तो कैसे मृत से हो जाते है। मुझे पता था उसके चला चली का समय
है। इस लिए दुकान पर जाने से पहले मैं हमेशा उससे मिल कर आता था। कुत्ते की मौत
जैसे विकृत शब्द जिस मनुष्य ने इरजाद किये है वह अति संवेदनहिन होना चाहिए। आज
मैं देखता हूं वहीं मनुष्य जो अपनी मृत्यु पर गर्व करता था। ओर कुत्ते की मौत
एक लांछन लगात है। आज शायद वही सबसे हीन मृतयु को छू गया है। अस्पतालो में महीनो
सालो लटका है ......मशिनों के सहारे.....कुत्ते की मौत गाली कयों बनी....मेरे
देखे अगर एक कुत्ता सडक पर मर जाता है तो उसे कोई उठता नहीं। उसकी मिट्टी खराब हो
जाती है। उसे ठीक से मिट्टी में मिलना भी नशीब नहीं होता।
लेकिन अब समय बदल रहा
है...उसकाप्रेम उसकी संवेदना मनुष्य के ह्रदयकी गहराई में चली गई है। खेर का
अंतिम समय अच्छ ही नहीं बहुत अच्छा बीता.... उसने अपने अंतिम दिन छत के उस
खुबसूरत प्रागांण में गुजारे....परंतु यह उसकी मजबूरी थी क्यों कि उसकी आंखें
इतनी कमजोर हो गई थी की वह दूर का देख नहीं पाती थी। शरीर इतना जरजर चार कदम भी नहीं
चल पाता था। क्या यहीप्रकृति की पूर्णता नहीं है। जो हमे विकास दे जाती है। जिसे
हम एक संदर नाम देते है तपस्या। इस लिए हमने उसका बिसतरा छत वाले उस कम लगा दिया
उसके लिए कूलर था और पास ही एक टेपरिकार्ड......आदि उसके पास था। क्योंकि उसे ओशो
के प्रवचन बहुत प्रिय थे। इस एकांत में वह अपने को अकेला महसूस नहीं करे। फिर ऐसा
केवल मन को बेहलाने या एकांत के क्षणों को कम करना ही मात्र नहीं था। उसके जीवन की
वह वहनता थी। जो उसके जीवन के अतल तलो को खोल रही थी। इतने लम्बे समय वह अकेला
कभी नहीं रहा। परंतु मनुष्य क्या पशु पक्षियों को जाना तो अकेले ही है।
सुबह जब
अंतिम दिन मैं और मेरी बेटी बोधिउनमनी और बेटा प्रमोद मेरे साथ थे। उसने कम से कम
20 मिनट तक मुझसे कुछ कहने की कोशिश की। ऊ....ऊ...ओ....ओ....ओर मैं उसके सर पर हाथ
फेरता रहा। तब वह थक कर लेट गया और मैंने ओशो का प्रवचन लगा दिया। बस मैं दूकान तक
ही पहुंचा था कि खबर आई की पोनी तो चला गया....शायद उसे पता चल रहा था की वह जा
रहा है। कितनी सजजता से उसने मृत्यु को अंगीकार किया। कोई विरोध नहीं। एक सहज
सरल.....जो मृत्यु हमारे चेहरे पर लिख जाती है। आप मृत्यु के बाद मनुष्य पर
लिखे उसके शब्द पढ़ सकते है। एक कुत्ता होकर भी उसने जैसे जीवन जिया....जिस तरह
से वह प्रेम और उन्माद से भर कर जिया। ये बहुत गर्व की बात है। मैं सोचता हूं
किसी—किसी को मनुष्य शरीर नहीं मिलता तो भी वह कितना भाग्य शाली होता है। जैसे
रमण महार्षी की गाय...या महर बाबा का किकर का वृक्ष... साईं बाबा का कूत्ता... पोनी
भी बहुत भाग्य शाली था। उसने अपने जीवन को पशु के पार की उन उच्चाईयों को छूआ
है। अपनी चेतना के तल को पशु से उन उत्तंग उंच्चाईयों तक ले कर गया है। जो उसे
मनुष्य की चेतना के अति नजदिक ले गयी था। अंतिम समय पर तो वह जब ध्यान के कमरे
में होता तो कुत्तो भोंकते या घर की घंटी या और कोई शोर होता तो वह भौंकता नहीं
था। और कुत्ते के स्वभाव के पार की बात है। जैसे एक स्त्री के जीवन में अगर उत्प्पती
की वासना निकल जाये.... या पुरूष के मन से अहं निकल जाये तो वह प्रकृति के पार
खड़ा हो जाता है। यहीं बात थी जो उसे अपनी चेतना के तल की बात हमें दर्षा रही थी।
एक
अंदरूणी खुशी मैं महसूस कर रहा है....मैंने पोनी की चेतना को पल—पल विकास करते
देखा। ये मेरा ध्यान भी था। और मेरी संवेदना को भी इसने विकसित किया। मैं पोनी के
जीवन को इतने नजदीक से देख पाया। असल में ये एक अति सत्य घटना ही नहीं एक सत्य
जीवन है। घटना तो हमारे जीवन को खोल होती है....जो उपर से पहन लेते है। और जीवन तो
हमारी श्वास...हमारी मास मज्जा.....हमारे भाव-हमरी चेतना के तल पर अति गहरे होता
है।
अगर मेरी लिखी इस आत्म कथा को पढ़ कर जरा भी
कुत्तो के प्रति थोड़ी भी संवेदना जग जाये। आप उसके जीवन के रहस्य को देख पाये तो
मेरा लिखना सफल होगा। सच कुत्ता पूरी पृथ्वी पर एक मात्र ऐसा प्राणी है। जो
मनुष्य की परछाई बन गया है। ये कोई अचानक नहीं घट गया है, उसकी करोड़ों साल की महन और लगत ओर निष्ठा ने मनुष्य को मजबुर कर दिया
है। आपने आत्मसात रहने को। यहीं उसकी चेतना के तल को विकास क्रम का फल है। मनुष्य
जिस तरह से अपनी चेतना के तल विकसित कर रह है...ठीक इसी तरह कुत्ता मनुष्य के
कंधे से कंधा मिला कर प्रयास रत है।
हमारे
धर्म ग्रंथ---जो आज एक ताज्य से हो गये है....जिनमें कुरूतिया ही कुरूतिया नजर
आती है। उनमें हीरे जवाहरात भी है। पृथ्वी पर पाँच भौतिक तत्व जो अपनी पूर्णता
के साथ है वह मनुष्य है, या गाय। मनुष्य में सजग है ओर
गाय में सिक्रिय। परंतु जिन प्राणियों को हम पूजते है या जो हमारे धार्मिक....देवि
देवताओ के साथ जूडे है... चूहां...पृथ्वी
तत्व, कौवा—वायु तत्व....., चींटी....अग्नि तत्व...... कुत्ता
.....जल तत्व में अतिरेक होते है। इसी लिए हमे इन्हें भोजन या सम्मान देते चले
आ रहे है। इनमें कुत्ते का मन जल तत्व का होने के कारणअति संवेदनशील होता है।
अगर कुत्ते को कोई पागल आदती पाले तो वह पागल जैसा हो जायेगा। वह पादर्शी है।
मेरा नमन
है उस पोनी को नहीं उसकी हजारों करोड़ो पिढ़ीयों को जो न जाने कितने पोनी रोज पैदा
कर रही है।
स्वामी आनंद
प्रसाद ‘मनसा ’
जब
तुम एक कुत्ते से बात करते हो, खेलते हो, तो समाज ने जो अहंकार तुम्हें दिया है वह विदा हो जाता है। क्योंकि
कुत्ते के साथ अहंकार का प्रश्न ही नहीं उठता।
ओशो
(विज्ञान भैरव तंत्र, भाग—5)
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