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रविवार, 26 अगस्त 2018

घाट भुलाना बाट बिनु-(प्रवचन-06)

छठवां-प्रवचन-(जीवन..एक स्वप्न)

कबीर एक दिन कह रहे हैं: आकाश में बादल घिरे हैं। उनका घनघोर नाद सुनाई पड़ रहा है।
साधुओं ने आकाश की तरफ देखा। वहां न कोई बादल है, न घनघोर नाद है। उन्होंने बहुत हैरान होकर कबीर की ओर देखा। लेकिन, कबीर की आंखें बंद है, और वे किसी भीतरी आकाश की और किन्हीं उन बादलों की बात कर रहे हैं, जो मनुष्य की अंतरात्मा में घिरते और बरसते हैं। फिर कबीर ने कहाः साधुओ, अमृत की वर्षा हो रही है। फिर उन सारे घिरे लोगों ने बाहर की तरफ देखा। उसी आकाश की तरफ जिससे हम परिचित हैं। लेकिन, वहां कोई वर्षा नहीं हो रही है। अमृत तो दूर, पानी की बूंद भी नहीं पड़ रही है। उन्होंने चैंक कर फिर कबीर की तरफ देखा। लेकिन उनकी आंखें बंद हैं और वही कहे जा रहे हैं कि सुने नहीं, पीओ, अमृत बरस रहा है, खाली मत रह जाओ और वे सब पूछते हैं कबीर से, कहां बरस रहा है? कहां है बादल? कहां है आकाश? कहां है अमृत?

सोए हुए आदमी सिर्फ बाहर की दुनिया से परिचित होते हैं। जागे हुए आदमी एक और नई दुनिया को जान पाते हैं जो भीतर की दुनिया है। जो आदमी सोया हुआ है वह आदमी भीतर कभी प्रवेश नहीं कर पाता है। सोए हुए आदमी की पहली पहचान है, उसकी भीतरी दुनिया-जैसी कोई दुनिया नहीं होती, उसका सब बाहर होता है।

उसका धन बाहर होता है, उसके मित्र बाहर होते हैं, उसका यश बाहर होता है, यहां तक कि उसका परमात्मा भी बाहर होता है, उसका सब बाहर होता है। उसके भीतर कुछ होता ही नहीं। वह भीतर खाली और रिक्त अंधकार से भरा होता है। जो आदमी सोया है, उसकी जिंदगी एक सपने से ज्यादा नहीं हो सकती। जिंदगी सत्य बनती है जागने से।
मीरा नाच रही है एक गांव की सड़कों पर। गांव के लोग कह रहे हैं पागल है, क्योंकि उनकी समझ में नहीं आता, किसकी मांग पर नाच रही है! मीरा जिसके सामने नाच रही है, वह उसके भीतर है। वह उन्हें दिखाई नहीं पड़ता है। जिन्हें भीतर दिखाई नहीं पड़ता, उन्हें दूसरे के भीतर का तो दिखाई पड़ ही नहीं सकता। गांव के लोग पूछते हैं..पागल हो गई हो? बावरी हो गई हो? मीरा कहती है..तुम भी नाचो। पग में घुंघरू बांधो और नाचो, बड़ा आनंद है। गांव के लोग कहते हैं..पागल हो गई हो? जीवन में सुख ही नहीं मिल रहा है, दुख ही दुख है, आनंद का क्या अर्थ? यह शब्द हम सुनते हैं, पर इसका हमें पता नहीं है। सोए हुए आदमी का दूसरा लक्षण है, वह सुख जानता है, दुःख जानता है, आनंद नहीं जानता है। शायद हम सोचते हैं कि दुख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सुख भी एक तनाव है, दुख भी एक तनाव है। इसलिए सुख से भी मन थक जाता है और ऊब जाता है। दुख से तो ऊबता ही है, सुख से भी ऊब जाता है। सुख भी एक उत्तेजना है और दुख भी एक उत्तेजना है, इसलिए दुःख की उत्तेजना में भी मृत्यु हो सकती है, सुख की उत्तेजना में भी मृत्यु हो सकती है। दोनों ही उत्तेजित अवस्थाएं हैं।
और जहां उत्तेजना है; वहां आनंद कहां है? आनंद तो वहां है, जहां कोई उत्तेजना नहीं है, जहां कोई तनाव नहीं है, जहां कोई अशांति नहीं है। सोया हुआ आदमी आनंद से अपरिचित होता है और जो आनंद से अपरिचित है, उसकी जिंदगी एक सपना है। जैसे कोई एक सिनेमा-गृह में बैठा हो, वहां पर्दे पर बहुत तरह की तस्वीरें आती हैं, दुख के क्षण आते हैं, दुखद घटनाएं आती हैं सुख के क्षण आते हैं, सुखद घटनाएं आती हैं, पर्दे पर सब आता है। वह जो देखनेवाला बैठा है, उसको छोड़ कर पर्दे पर सब आता है। वह पर्दे के बाहर रह जाता है। सपने की जिंदगी का अर्थ है कि हम जीवन को एक पर्दे की तरह ले रहे हैं और उस पर्दे पर घटनाएं हैं, सुख की भी हैं, दुःख की भी हैं, बीमारी है, स्वास्थ्य है, यश है, अपयश है, सिर्फ एक आदमी छूट जाता है ‘मैं’। उस पर्दे पर मैं कभी नहीं आता। इसलिए सोए हुई आदमी का तीसरा लक्षण है, वह स्वयं से अपरिचित होता है। स्वप्न में कोई स्वयं से परिचित हो भी नहीं सकता है। दूसरा लक्षण मैंने कहाः आनंद को उसे कोई पता नहीं होता।
मीरा कहती है, आनंद में नाच रही हूं। गांव के लोग पूछते हैं, आनंद क्या है? हम भी पूछेंगे आनंद क्या है? जानते हुए सुख को हम कहेंगे बहुत घना सुख, बहुत बहुत प्रगाढ़, तीव्र। सुख का ही नाम आनंद है या बहुत लंबे सुख का, अनंत सुख का, शाश्वत सुख का जो कभी खत्म न हो, क्योंकि ऐसी कोई उत्तेजना नहीं हो सकती जो शाश्वत रह सके। दुःख भी खत्म हो जाते हैं, सुख भी खत्म हो जाते हैं। लेकिन जिस दिन कोई व्यक्ति ऐसी स्थिति को अनुभव कर लेता है जहां न सुख है, न दुख है, वहां आनंद की यात्रा शुरू होती है। यह जानकर आपको हैरानी होगी, आनंद का उलटा कोई शब्द हमारे पास नहीं है। सुख के विपरीत दुख है, अशांति के विपरीत शांति है। अंधेरे के विपरीत प्रकाश है। जीवन के विपरीत मृत्यु है, लेकिन आनंद के विपरीत हमारे पास कोई शब्द नहीं है। आनंद अकेला शब्द है, जो एक है, जिसका उलटा शब्द हमारे पास नहीं है। उससे उलटी स्थिति होती ही नहीं है। सुख और दुख जहां दोनों ने रह जाएं वहीं आनंद है, लेकिन हम इन दो में ही खोजते रहते हैं घड़ी के पेंडुलम की भांति, सुख से दुख में, दुख से सुख में। सुख की तरफ जो आदमी जा रहा है, वह दुख की तैयारी कर रहा है, यह दिखाई नहीं पड़ता। थोड़ी ही देर में सुख दुःख की तरफ आना शुरू हो जाएगा। हमारा मन सुख और दुख के बीच पेंडुलम की तरह डोलता रहता है। कभी बंद घड़ी देखी है? पेंडुलम कभी बीच में ठहर जाता है, न बाईं तरफ जाता है, न दाईं तरह।
अगर किसी दिन हमारा मन भी ऐसा ठहर जाए घड़ी के बंद पेंडुलम की तरह तो जीवन में पहली बार आनंद का बोध शुरू होता है। लेकिन मन चंचल है। वह बायां जागेगा या दायां, वह ठहरेगा नहीं। इसलिए जो मन में जीता है, वह नींद में ही जीएगा, वह कभी जाग नहीं सकता। मन की जिंदगी का नाम है सपना। हम सपने में ही जीते हैं। हम सभी सपने में ही जीते हैं, इसलिए कभी पता नहीं चलता। क्योंकि हम सभी एक से सोए हुए लोग हैं इसलिए कठिनाई नहीं होती है। कठिनाई तो तक कभी होती है, जब कोई एक आदमी सपने से बाहर निकल जाता है। कभी कोई एक जीसस बाहर निकल जाए तो हम सूली पर लटका देते हैं। कभी कोई एक जीसस बाहर निकल जाए तो हम पत्थरों की वर्षा करते हैं। कभी कोई एक सुकरात जाग जाए तो हम जहर पिलाकर मार डालते हैं। सोए हुए लोगों की भीड़ बड़ी नाराज हो जाती है उस आदमी से, जो जाग गया है क्यों? क्योंकि जागा हुआ आदमी हमारी नींद की खबर देने लगता है। जागा हुआ आदमी हमारे लिए तीर की तरह चुभने लगता है कि हम सोए हुए हैं। या तो हम जागें या इसे मिटा दें। खुद जागना कठिन मालूम पड़ता है इसलिए हम उसे ही मिटा डालते हैं।
जीसस को जिस रात सूली लगी, सांझ की खबर मिल गई कि आज रात दुश्मन पकड़ लेंगे। जीसस के मित्रों ने कहा कि भाग क्यों न जाएं, दुश्मन पकड़ने आ रहा है। जीसस ने कहा कि जिसे हम भगा कर बचाएंगे, उसे कितने दिन तक बचाएंगे? वह बच नहीं सकता। उन मित्रों ने कहा कि भगा कर तुम बचाओगे मेरे शरीर को, उसे कितने दिन तक बचा सकोगे? सपने कितनी देर तक खींचे जा सकते हैं? टूट ही जाएंगे। लेकिन वे सोए हुए मित्र न समझे। जीसस ने कहा कि जिसे वे सोच रहे हैं, मार डालेंगे वे भूल मग हैं, उसे वे मार न पाएंगे क्योंकि सत्य की कोई हत्या नहीं हो सकती। सिर्फ सपने ही तोड़े जा सकते हैं, सत्य को तोड़ना असंभव है।
इसलिए उन्हें आने दो, जो मारनेवाला है वह मर जाएगा और जो नहीं मरनेवाला है, वह नहीं मरेगा। लेकिन वे मित्र नहीं समझे। सोए हुए आदमी, जागे हुए आदमी की भाषा नहीं समझ पाते हैं। इस मनुष्य-जाति के इतिहास में सबसे बड़ा दुर्भाग्य यही है कि सोए हुए आदमी की भाषा को जागे हुए आदमी तक पहुंचाना मुश्किल, जागे हुए आदमी की बात को सोए हुए आदमी तक पहुंचाना मुश्किल, वे दो दुनिया में रहने लगते हैं। जीसस को भागते न देखकर कुछ मित्र तो भाग गए अपनी जान बचाने को। लेकिन एक साथी ने कहा कि मैं कभी साथ न छोड़ंगा। जीसस हंसने लगे और उन्होंने कहा कि सुबह होने के पहले, मुर्गा बांग दे इनके पहले तू तीन दफे मुझे छोड़ चुका होगा। उसने कहा, मैं कसम खोता हूं, मैं जिंदगी भर न छोड़ंगा। जीसस हंसने लगे। उन्होंने कहा कि सोए हुए आदमी के वचन का कोई भरोसा नहीं। फिर दुश्मन आ गए और उनको पकड़कर ले जाने लगे।
वह साथी भी छिपे-छिपे साथ होने लगा। डरने तो लगा, क्योंकि मौत करीब थी और कहीं फंस न जाए। लेकिन फिर भी उसने सोचा कि अभी मैंने वादा किया है कि मैं छोड़ंगा कभी नहीं। वह साथ चलने लगा। दुश्मन ने देखा कि कोई एक अपरिचित आदमी है हमारे बीच में, तो उन्होंने उसे पकड़ लिया और पूछा कि तुम कौन हो? उसने कहा कि मैं एक अजनबी हूं, मैं दूसरे गांव से आ रहा हूं। उन्होंने पूछा कि तुम जीसस को पहचानते हो? उसने कहा नहीं, बिल्कुल नहीं। कौन जीसस? जीसस सामने ही बंधे हुए थे, घसीटे जा रहे थे। उन्होंने कहाः मित्र अभी सुबह भी नहीं हुई, अभी मुर्गे ने बांग नहीं दी और तू एक बार मुझे छोड़ चुका। असल में सोए हुए आदमी के पास कोई संकल्प नहीं है, काई आत्मा नहीं है। सोए हुए आदमी के पास सपनों का डावांडोल दृश्यपथ, सोए हुए आदमी के पास आकांक्षाओं का एक जाल, वासनाओं का एक फैलाव है। सोए हुए आदमी के पास बदलते हुए सपने हैं लेकिन, कोई स्थिर सत्य नहीं है और हम सब ऐसे ही सोए हुए लोग हैं जन्म से लेकर मृत्यु तक।
लेकिन हमें बड़ी भूल होती है। हम रोज सुबह उठ आते हैं तो हम समझते हैं कि हम जाग गए। हम दो तरह के सपने देखते हैं। एक जो आंख बंद करने पर होता है और एक जो आंख खुले होने पर होता है। एक सपना जो हम रात को देखते हैं और एक सपना जो हम दिन में देखते हैं। इस दिन के सपने को हम जागरण कहते हैं, वह बड़ी भूल है। क्यों? इसे क्यों सपना न कहें, इसे क्यों सत्य कहें?
एक राजा का लड़का मर रहा है। मरण-शय्या पर पड़ा है। चिकित्सकों ने कहा कि वे बचेगा नहीं। सम्राट तीन रातों से जाग रहा है, आज चैथी रात है। लड़का बेहोश है, करीब-करीब मरने को पड़ा हुआ है। सम्राट थक गया है तीन दिन से, कोई चार बजे रात उसकी नींद लग गई है। वहीं कुर्सी पर बैठे-बैठे वह सो गया है। नींद लगी और उसे एक सपना आया। उस सपने में उसने देखा कि वह सारी पृथ्वी का सम्राट हो गया है। उसके पास स्वर्ण-महल है और उसके बाहर पुत्र हैं, ऐसे सुंदर, जिनकी कल्पना न की जा सके। ऐसे स्वस्थ, ऐसे बुद्धिमान, ऐसे शक्तिशाली, जिनके सिर्फ सपने ही देखे जो सकते हैं। अब सम्राट बहुत आनंद में है।
सब कुछ है उसके पास और तभी अचानक वह बाहर जो बेटा है उसका, दूसरे सपने का, आंख खुली सपने का, वह मर जाता है। पत्नी छाती पीट कर रोती है। सम्राट की आंखें खुल जाती हैं, सपना टूट जाता है, बारह लड़के जो अभी थे, विलीन हो जाते हैं, महल स्वर्ण के खो जाते हैं। पृथ्वी का राज्य हवा हो जाता है। लेकिन वह सम्राट बड़ी मुश्किल में पड़ गया। सामने लड़का मरा हुआ पड़ा है। एक ही लड़का था, लेकिन उसकी आंखें में आंसू नहीं आ रहे हैं। उसकी पत्नी उसे हिलाती है और कहती है कि आप समझे नहीं शायद! बेटा जा चुका है। सम्राट ने कहाः मैं समझ गया। लेकिन मैं बड़ी मुश्किल में पड़ गया हूं। मैं यह सोच रहा हूं कि अभी मेरे बारह बेटे थे, उनके लिए रोऊं या इस एक बेटे के लिए रोऊं? उसकी पत्नी ने पूछाः कैसे बारह बेटे? उसने कहा कि उनका तुझे पता नहीं क्योंकि, और रानियां थीं, जिनसे वह पैदा हुए थे। उस रानी ने पूछा..कौन-सी रानियां! उस सम्राट ने कहा..तू घबड़ा मत, आंख बंद करके जो दुनिया होती है, उसमें देखे गए बेटे थे। लेकिन मैं बड़ी मुश्किल में पड़ गया हूं कि सच कौन है! क्योंकि जब मेरी आंख बंद हो गई थी, तो इस बेटे को मैं भूल गया था और तू भी मुझे भूल गई थी और यह महल भी मैं भूल गया था। इनकी मुझे कोई याद न रही थी। मैं एक दूसरी दुनिया में खो गया था। और अब जब वह दुनिया टूट गई है तो वे सब बेटे खो गए, वे महल, वे रानियां खो गई। अब तू है, और यह बेटा।
सच कौन है? उस रानी ने कहा आप कैसी बातें कर रहे हैं! वह राजा कहने लगा..मैं किसके लिए रोऊं? उस राजा ने चीन में हुए एक बहुत अदभुत फकीर च्वांग्त्से की एक छोटी-सी कहानी अपनी पत्नी से कही। उसने कहा कि मैं कभी नहीं समझ पाया था इस कहानी को, आज समझा हूं। च्वांग्त्से ने कहा है कि मैं एक रात सोया और मैंने सपना देखा कि मैं तितली हो गया हूं, हवाएं हैं, खुला आकाश है, मुक्त तितली उड़ रही है। सुबह च्वांग्त्से उठा और रोने लगा। उसके मित्रों ने पूछा कि क्या हो गया? तो उसने कहा मैं बड़ी मुश्किल में पड़ गया हूं। रात मैंने एक सपना देखा कि मैं तितली हो गया हूं, और फूल-फूल डोल रहा हूं। तो मित्रों ने कहा सपने हम सभी देखते हैं, इसमें परेशानी की क्या बात है? च्वांग्त्से ने कहा कि नहीं, मैं परेशान इसलिए हो गया हूं कि अगर च्वांग्त्से नाम का आदमी रात सपने में तितली हो सकता है तो यह भी हो सकता है, तितली अब सपना देख रही हो कि वह च्वांग्त्से नाम का आदमी हो गई है। जब आदमी तितली बन सकता है सपने में तो कोई तितली सपने में आदमी नहीं बन सकती? च्वांग्त्से फिर कहने लगा; मैं इस मुश्किल में पड़ गया हूं कि मैं च्वांग्त्से हूं, जिसने सपने में तितली का सपना देखा है या मैं हकीकत में एक तितली हूं, जो अब च्वांग्त्से का सपना देख रही है!
सम्राट ने कहा कि मैं इस कहानी को कभी नहीं समझ सका था। आज यह पहली दफे मेरे ख्याल में आई है कि जो सपना अभी मैंने आंखें बंद करके देखा था, क्या वह सच था? अगर वह सच था तो फिर यह जो सामने दिखाई पड़ रहा है, कह क्या है? और अगर जो सामने दिखाई पड़ रहा है, वह सच है तो अभी जो आंख बंद करके देखा था वह क्या था? असल में हम दो तरह के सपने देखते हैं। वह सम्राट मुझे मिल जाता तो उससे मैं कहता, कि हम दो तरह के सपने देखते हैं। न तो च्वांग्त्से सपने में तितली बनता है और न तितली च्वांग्त्से बनती है। एक अनजान शक्ति दो तरह के सपने देखती है। वह रात में तितली बन जाती है, दिन में च्वांग्त्से बन जाती है। वह सम्राट रात में देखता है बारह बेटों का सपना, दिन मग देखता है एक बेटे का सपना, लेकिन सब सपने टूट जाते हैं। असल में जो टूट जाता है, उसकी का नाम सपना है। जिसे हम जिंदगी कहते हैं, वह जिंदगी है या एक स्वप्न! अगर वह जिंदगी है तो फिर स्वप्न और जिंदगी में कोई फर्क नहीं है। और अगर वह स्वप्न है तो फिर जिंदगी की तलाश हमें करनी होगी कि फिर जिंदगी कहां है! और इस डर से कि कहीं हमें जिंदगी खोजने का रम न उठाना पड़े, हम सपने को ही जिंदगी मान कर चुपचाप जी लेते हैं और मर जाते हैं।
हम असुविधापूर्ण सवाल नहीं उठाना चाहते जो हमारी जिंदगी को मुश्किल में डालें। इसलिए बड़े मजे की बात है, कोई आदमी कभी नहीं पूछता कि मैं कौन हूं क्योंकि यह बहुत ही कठिन सवाल है और जिंदगी को मुश्किल में डाल देने वाला है। और जो जिंदगी हमने सपने के ईंटों से बना ली है उसके गिर जाने का डर है। इसलिए हम ऐसे बुनियादी सवाल नहीं उठते। जिसे हम जिंदगी कहते हैं क्या वह जिंदगी है? वह हमें जिंदगी मालूम पड़ती है क्योंकि हम सब उसको देखते हैं। वह असल में हम सबका सामूहिक सपना है, इसलिए सच्चा मालूम पड़ता है। लेकिन सामूहिक हो जाने से भी कोई सपना सत्य नहीं हो जाता है।
फिल्म के पर्दे पर जा आप देखते हैं, उसमें सच कुछ भी नहीं होता है, सिर्फ प्रकाश की किरणों का जाल होता है। लेकिन वह प्रकाश की किरणों का जाल घड़ी दो घड़ी को भुला देता है कि जो हम देख रहे हैं वह कोरा पर्दा है और उस पर सिवा चित्रों के और कुछ भी नहीं है। हॉल में अगर पांच-छह हजार आदमी बैठे हैं या हजार आदमी बैठे हैं तो उनके लिए एक समान सपना शुरू हो जाता है। क्या जिंदगी पर भी हम इस तरह का सपना नहीं देखते हैं जो सामान्य है, जिसमें हम सब देखनेवाले एक साथ सम्मिलित है? रात में जो सपना हम देखते हैं, वे प्राइवेट है, वह निजी है, उसमें हम दूसरे आदमी को भागीदार नहीं बना सकते हैं। बस इतना ही फर्क है। रात में जो देखते हैं, वह मैं अकेला देखता हूं इसलिए मैं सुबह आपसे नहीं कह सकता कि जो मैंने देखा वह सच है। क्योंकि मैं आपके लिए गवाही कहां से लाऊं! मैं उसमें अकेला ही मौजूद होता हूं। दिन में जो हम देखते हैं, उसमें हम सब सम्मिलित हैं, सहयोगी हैं।
इसलिए गवाही मिल जाएगी। लेकिन गवाही मिलने से क्या झूठ सच हो जाता है? गवाही मिलने से क्या चित्र सत्य बन जाते हैं? सत्य वह है जो सदा एक जैसा है। सत्य वह है जो अपरिचित है। सत्य वह है जो बदलता नहीं है। सत्य वह है जो कभी मरता नहीं है। सत्य वह है जो जैसा था, वैसा ही है, वैसा ही होगा। सत्य का मतलब ही यह है कि जो शाश्वत है, जिसमें कोई रूपांतरण नहीं होता। सत्य का मतलब ही यह है कि जो शाश्वत है, जिसमें कोई रूपांतरण नहीं होता। सपने का मतलब है, जो प्रतिपल बदल रहा है। हक्र्युलिस यूनान में हुआ। उसने कहा है कि आप एक ही नदी में दुबारा नहीं उतर सकते हैं। मुश्किल है एक नदी में दुबारा उतरना। असल में एक बार ही उतरना बहुत मुश्किल है। जब आप नदी में पैर डालते हैं तो जैसे ही पैर आपका पानी को छूता है, वह पानी गया। जब आपका पैर जरा और नीचे गया तब तक दूसरा पानी आ गया है। जरा नीचे गया वह पानी भी गया। एक ही नदी में एक ही बार उतरना मुश्किल है, दुबारा तो उतरना बिल्कुल असंभव है, क्योंकि पानी भागा जा रहा है। लेकिन हमने नाम रख लिया है नदी। कहते हैं गंगा, तो हम सोचते हैं, वही गंगा है जहां कल हम आए थे।
गंगा प्रतिपल बहती जा रही है। गंगा एक बहाव है। हम सब भी बहाव हैं। अगर कभी आप कल्पना करे कि आप अपनी मां के पेट में एक छोटे-से अणु थे तो आप विश्वास भी न कर सकेंगे कि आप और एक छोटे से अणु जो नंगी आंखों से देखा भी न जा सकता, जिसके लिए देखने को बड़े यंत्र चाहिए, वह छोटा-सा अणु अगर आपके सामने रख दिया जाए तो आप मानने को राजी न होंगे कि यह मैं हूं। लेकिन आप एक दिन वही थे। फिर एक छोटा-सा बच्चा बने। फिर आप जवान हो गए। फिर आप बूढ़े हो जाएंगे। अगर एक आदमी की जिंदगी भर की तस्वीरें रखी जाएं तो पता चलेगा कि आदमी भी एक बहाव है, जैसे गंगा का बहाव है। अगर हम एक आदमी के दस हजार चित्र खींच सकें, जन्म से लेकर मरने तक, तो हमें कहना पड़ेगा आदमी भी एक नदी है। इसमें कौन-सा चित्र सच्चा है? इसमें कौन-सा चित्र आदमी का अपना है?
जापान में हकीर एक सवाल पूछते हैं कि आपका असली चेहरा कौन सा है? बड़ी मुश्किल है उनका जवाब देना। क्योंकि जब तक आप अपने चेहरे को आईने में बताएं, वह बदल चका है, वह जा चुका है। नदी ही केवल नदी नहीं है, आदमी भी एक नदी है। सुबह आप कुछ होते हैं, सांझ कुछ हो जाते हैं। एक आदमी बुद्ध के पास आया और उनके मुंह पर थूक गया। वह बहुत नाराज था। बुद्ध ने चादर से थूक पोंछ लिया और उस आदमी से कहा..और कुछ कहना है? वह आदमी हतप्रभ हो गया। क्योंकि उसने नहीं सोचा था कि थूके जाने पर बुद्ध पूछेगा कि और कुछ कहना है। बुद्ध ने कहा..घबराओ मत, मेरे ऊपर पाप मत लगाओ कि मैंने तुम्हें घबड़ा दिया। और कुछ कहना है तो कह दो। क्योंकि मैं समझता हूं कि तुम्हें कुछ कहना था, जो तुम शब्दों में न कह सके और तुमने थूक कर कहा है। अब तुम्हें कुछ और कहना हो तो कह दो। बुद्ध का एक भिक्षु पास ही था, वह नाराज हो गया। उसने बुद्ध से कहा, यह बेहद हो गई। वह आदमी थूक रहा है और आप यह क्या कह रहे हैं? हम क्रोध से भर गए हैं। बुद्ध ने कहाः वह आदमी कुछ कह न सको। इसलिए थूक सका। अब तुम भी थूकने की तैयार कर रहे
उस आदमी ने जो किया वही तुम भी करोगे तो फिर तुम और उस आदमी में फर्क क्या है? वह आदमी चला गया। जब वह घर आया तो रात भर सो न सका। दूसरे दिन आकर पैर पर सिर रख दिया और रोने लगा। उसके आंसू बुद्ध के पैरों पर गिर। बुद्ध ने फिर पूछा..और कुछ कहना है? क्योंकि आंसू गिराकर तुमने कुछ तो कह दिया जो तुम कह न सकोगे। अब और कुछ कहना है? उस आदमी ने कहा कि आप भी कैसे आदमी हैं! मैं कल की माफी मांगने आया हूं। बुद्ध ने कहा..पागल! जिसके ऊपर तुम कल थूक गए थे, वह थूक कब का बह गया और जो थूक गया था वह भी अब कहां है? और थूक कहां है? दोनों ही नहीं हैं। सपने के लिए क्यों परेशान हो रहे हो?
सपने का अर्थ है जो प्रतिपल बदलता जा रहा है, जिसे हम क्षण भर ठहरा नहीं सकते। अगर आपका मन सुख में हो तो क्या आप क्षण भर को उस सुख को ठहरा सकते हैं? नहीं ठहरा सकते हैं। जब आप ठहराने की कोशिश कर रहे हैं, तभी बात बदल गई, नदी बह गई है। जब आप किसी के प्रेम में भरे हैं तो क्या आप उस प्रेम को ठहरा सकते हैं? जब आप प्रेम को ठहराने लगे तब जानना कि वह जा चुका है क्योंकि जब वह जा चुका होता है, तभी ठहराने का ख्याल आता है। नहीं, इस जिंदगी में न हमारे मन के भीतर, न हमारे मन के बाहर, कुछ भी ठहराव है।
एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक हुआ है एडीसन। उसने अपने एक संस्मरण में लिखा है कि मैंने मनुष्यों की सारी भाषाएं देखें और एक शब्द मुझे झूठ लगता है जो सभी भाषाओं में है। वह बिल्कुल झूठ है। वह शब्द है ठहराव। उसने लिखा है कि ठहरी हुई कोई चीज नहीं है। सब चीजें हो रही हैं। इसलिए बुद्ध कहते थे कि किसी आदमी को यह मत कहना कि वह जवान है, कहना कि वह जवान हो रहा है। किसी आदमी को मत कहना कि वह आदमी बूढ़ा है, कहना कि बूढ़ा हो रहा है। किसी आदमी को मत कहना कि वह क्रोध से भर है, इतना ही कहना कि क्रोध से भर रहा है या खाली हो रहा है। कोई चीज ‘है’ कि स्थिति में नहीं है। कोई चीज ठहरी हुई नहीं है। सब चीजें भागी जा रही हैं और सब चीजें बदलती जा रही हैं, लेकिन सपने में दिखाई नहीं पड़ता। आपने सपने में ख्याल किया होगा कि आप एक घोड़े को देख रहे हैं। वह एक पल में आदमी हो गया। लेकिन सपने में शक भी नहीं आता।
यह घोड़ा एकदम से आदमी कैसे हो गया! हां, सुबह जाग कर शक हो सकता है। लेकिन रात सोने में शक नहीं होता कि अभी जिसको हम घोड़ा देख रहे थे वह अचानक आदमी कैसे हो गया! वृक्ष था, वह बोलने लगा, कोई शक नहीं होता। घोड़ा है, आकाश में उड़ने लगा, कोई संदेह पैदा नहीं होता। सपने में सब तरह की बदलाहट स्वीकृत कर ली जाती है। जो जवान था, वह बूढ़ा हो गया, फिर भी हम कहते हैं यह वही हैं। जो बच्चा था वह जवान हो गया है, फिर भी हम कहते हैं, यह वही है। जो प्रेमी था वह पति हो गया है और हम कहते हैं, अब भी यह वही है। सब बदल गया है। जिंदगी एक क्षण को वही नहीं है, जो थी। सब भाग रहा है। शायद हमारी देखने की क्षमता बहुत कम है, इसलिए बदलाहट दिखाई नहीं पड़ती है। या हम एक ही चीज को देखने के इस भांति आदमी हो जाते हैं और बदलाहट इतने आहिस्ता हो रही है कि हमें ख्याल नहीं आता कि बदलाहट हो गई है।
जब मैं कहता हूं कि जिंदगी एक सपना है तो मेरा मतलब है, जिंदगी में कुछ भी ठहरा हुआ नहीं है। जिंदगी एक नदी की तरह बदल रही है, और जहां बदलाहट हो वहां मकान मत बनाना। नदी पर जो मकान बनाएगा वह पागल है। नदी तो बहेगी ही, मकान भी बह जाएगा। लेकिन इस जिंदगी में हम मकान बनाते हैं। मजबूत पत्थरों को बनाते हैं। लेकिन, हमें पता नहीं है कि मजबूत पत्थर भी बहती हुई नदियां हैं। जरा धीरे बह रही हैं। पानी जरा तेजी से बह रहा है। आज तो मजबूत पत्थर है कल वह रेत होगा। आज जो मजबूत पत्थर है, कल वह रेता था। आज जिसकी शिला बहुत मजबूती से आपने रखी है, कल वह राख हो जाएगी। सब चीजें बह रही हैं।
बहती हुई इस जिंदगी को घर मत बनाना। धर्म का एक ही सूत्र है और धर्म का एक ही राज है और धर्म की गहरी से गहरी जो खोज है वह यह है कि बहाव पर घर मत बनाना। क्योंकि बहाव के साथ घर भी बह जाएगा और हाथ में कुछ भी नहीं बचेगा। घर वहां बनाना जहां कुछ ठहरा हुआ हो। घर वहां बनाना जहां कोई चीज है, हो रही है वहां घर मत बनाना। अधार्मिक व्यक्ति वे है जो नदियों पर घर बनाते हैं। धार्मिक व्यक्ति अस्तित्व पर, सत्य पर, घर बनाता है। धार्मिक आदमी बुद्धिमान आदमी है। अधार्मिक आदमी बुद्धिहीन आदमी है। पापी नहीं कह रहा हूं। वह विवेकहीन, सोया हुआ, सपनों में सूबा हुआ जी रहा है। हम जो अपने चारों तरफ देखते हैं, वह बह रहा है, सपने का एक लक्षण है। दूसरा लक्षण कि जो हम देखते हैं, वह वही नहीं है, जो है, हम वही देख लेते हैं, जो हम सपना देखना चाहते हैं।
मजनू को उसके गांव के राजा ने पकड़वा लिया था। गांव भर में चर्चा थी कि वह पागल हो गया है लैला के लिए। उसने बार-बार लैला को देखने की कोशिश की। बड़ी मुश्किल में पड़ा। लैला बहुत साधारण लड़की थी फिर भी मजनू पागल क्यों हो गया। राजा ने मजनू को बुलाया और कहा, तू पागल तो नहीं है! लैला बड़ी साधारण लड़की है। मैंने बहुत सुंदर लड़कियां तेरे लिए बुला कर रखी हैं, उनको देख और जो तुझे पसंद हो उसके साथ तेरा विवाह कर दें लेकिन लैला को भूल जा। लैला बड़ी साधारण लड़की है। मजनू हंसने लगा। उसने राजा से कहा कि शायद आपको पता नहीं, लैला को देखने के लिए मजनू की आंख चाहिए। मेरी आंख है आपके पास? राजा ने कहा..तेरी आंख मेरे पास कैसे हो सकती है! तो उसने कहाः फिर छोड़िए ख्याल, आप लैला को न देख पाएंगे।
लैला को मजनू देख सकता है। मजनू की आंख ही लैला को देख सकती है। मुझे तमाम लैला दिखाई पड़ेगी। और मजनू ठीक कह रहा है। वह एक बड़े सत्य की और इंगित कर रहा है, शायद उसे पता नहीं ऐसे सत्य का। हम वही देख लेते हैं, जो हम देखना चाहते हैं। यहां जो बाहर है या भीतर, वह हम नहीं देखते हैं। जो हम देखना चाहते हैं उसे हम आरोपित कर लेते हैं। सपने का मतलब है एक आरोपण, इंपोजीशन। किसी को आप मित्र आरोपित कर रहे हैं। बड़ा आश्चर्य! जो कल तक मित्र था, वह आज शत्रु हो गया है। जो शत्रु था, वह आज मित्र हो गया है। शायद जो था वह आप देख नहीं पाए थे। आपने कुछ मान रखा था। हम सब मानकर जी रहे हैं। सुनी है मैंने एक कहानी। रामदास हजारों-हजारों साल बाद राम की कथा लिखते थे। राम की कथा लिख रहे हैं हजारों साल बाद। यह खबर हनुमान पर पहुंच गई है। और यह खबर ऐसी पहुंची है कि लोगों ने कहा कि, रामदास जैसी राम की कथा लिख रहे हैं, ऐसी कभी नहीं लिखी गई है। और रोज लिखते हैं और सुना देते हैं। हजारों लोग इकट्ठे होते हैं। तो हनुमान भी छिपकर वहां जाने लगे। एक दिन गए तो उन्हें बहुत रस मिला। सच में ही अदभुत ढंग से वे कहानी कह रहे थे। हनुमान को भी रस मिला, जो कहानी का एक साक्षी था। फिर वह घटना आती है कहानी में, जबकि हनुमान सीता को खोजते हुए अशोक वाटिका में गए। तो रामदास ने कहा कि जब हनुमान अशोक वाटिका में गए तो वहां सफेद फूल चांदनी रात में पूरे बगीचे में ढके हुए थे। पूरा बगीचा ढका हुआ था। हनुमान के बरदाश्त के बाहर हो गया। उन्होंने खड़े होकर कहा कि माफ कीजिए शायद आपसे कुछ भूल हो गई, फूल लाल रंग के थे, बदलाहट कर लें। लेकिन रामदास ने कह, नासमझ चुपचाप बैठ, फूल सफेद थे।
हनुमान तो छिपे हुए वेश में थे, बड़ी मुश्किल हो गई, लेकिन क्रोध भी चढ़ गया। उन्होंने अपना असली रूप प्रकट कर कहा कि शायद आपको पता न हो, मैं खुद हनुमान हूं, मैं खुद गया था। अब आप देख लें मुझे और सुधार कर लें। रामदास ने कहा, होगे तुम हनुमान लेकिन सुधार नहीं होगा। फूल सफेद ही थे। झगड़ा बहुत उपद्रव का हो गया। हजारों साल बाद जो आदमी कहानी लिखता है, वह यह कह रहा है उस आदमी से जो गया था। तो कथा है कि हनुमान उन्हें पकड़ कर राम के पास ले गए कि इसके सिवा कोई निपटारा नहीं है। हनुमान ने राम से कहा कि देखते हो इस आदमी की हठ! यह आदमी कहता है कि फूल सफेद थे और मैं गया था अशोक वाटिका में। राम ने कहा, कुछ मत कहो हनुमान, फूल सफेद ही थे लेकिन तुम क्रोध से भरे थे, आंखें खून से भरी थीं इसलिए लाल दिखाई पड़े होंगे। सफेद फूल भी लाल दिखाई पड़ सकते हैं। असल में जो हमें दिखाई पड़ता है, वह वही नहीं होता है जो है। वह होता है जो हमारी आंखें प्रोजेक्ट करती हैं, जो हमारी आंखें इंपोज करती हैं, जो हमारी आंखें प्रोजेक्ट करती हैं, जो हमारी आंखें इंपोज करती हैं, जो हमारी आंखें आरोपित करती हैं। एक जर्मन कवि हुआ है हीर। जंगल में भटक गया था, भूल गया रास्ता। बहुत कविताएं लिखी हैं।
उसने चांद में प्रेयसी को अनेक बार देखा है। पूर्णिमा की रात आ गई थी। तीन दिन से भटक रहा है। पूर्णिमा की रात है, सुनसान जंगल है। लेकिन उस चांद में उसे प्रेयसी की तस्वीर नहीं दिखाई पड़ती। बल्कि एक डबल रोटी तैरती हुई दिखाई पड़ती है। तीन दिन से भूखा है। भूखे आदमी को चांद में कहीं प्रेयसी दिखाई पड़ेगी? बिल्कुल नहीं दिखाई पड़ेगी। चांद में स्त्री दिखाई पड़ने के लिए पेट भरा होना पहली शर्त है। बल्कि थोड़ा ज्यादा पेट भरा होना जरूरी है। भूखे आदमी को रोटी दिखाई पड़ती है, आकाश में तैरती हुई। हीर ने लिखा है ‘मैं बड़ा हैरान हुआ। अब तक किसी कवि को यह क्यों नहीं सूझा कि चांद नहीं है आकाश में, एक सफेद रोटी तैर रही है। यह भूखे आदमी का इंपोजीशन है, आरोपण है। असल में चांद हमने देखा नहीं, किसी ने भी नहीं देखा।
हम सब को जो देखना है, वह देख लेते हैं। किसी की प्रेयसी खो गई है, किसी की पत्नी खो गई है, किसी का बेटा मर गया है। जब वह चांद की तरफ देखता है तो बड़ा उदास मालूम पड़ता है। उसी रात, गांव में, उसी के मकान के दूसरी तरफ कोई अपने प्रेमी के पास बैठा है, किसी का खजाना उसे मिल गया है। उसे चांद बहुत आनंदित और हंसता हुआ मालूम पड़ता है। चांद एक है। चांद से तो कोई पूछने नहीं जाता कि तुम उदास हो कि प्रसन्न हो। अपनी प्रसन्नता और अपनी उदासी हम उस पर आरोपित कर देते हैं। हम चैबीस घंटे अपने चारों और प्रोजेक्शन कर रहे हैं। प्रोजेक्शन मशीन होती है सिनेमा के पीछे, जिससे पर्दे पर चित्र फेंके जाते हैं। हर आदमी एक-एक प्रोजेक्टर है; जो जिंदगी भर चारों तरफ से चित्र फेंक रहा है और अपना-अपना चित्र देख रहा है।
मेरे एक प्रोफेसर थे। उनसे मैंने यह बात कही एक दिन। मैंने उनसे कहा कि हम वही देख लेते हैं, बल्कि वही हो जाता है जो हमारी कामना प्रोजेक्ट करती है, जो हमारी कामना प्रक्षेप करती है। उन्होंने कहा कि नहीं ऐसा नहीं है। ऐसा कैसे हो सकता है? पंद्रह दिन बाद मैं उनके घर गया और मैंने सुबह ही जाकर उनकी पत्नी से पूछा कि आपके श्रीमान की तबीयत तो ठीक है न? उन्होंने कहा तबीयत बिल्कुल ठीक है। कोई गड़बड़ नहीं। आप कैसे पूछने आए? मैंने कहा कि मैं कुछ प्रयोग कर रहा हूं। कृपा करके मेरी तरफ से सुबह जब वे उठे तो इतना कह दीजिएगा उनसे कि क्या बात है आपकी तबीयत कुछ खराब मालूम होती है? आंखें लाल हैं! शरीर कुछ कुम्हलाया मालूम पड़ता है। उनकी पत्नी ने कहाः लेकिन उनकी तबीयत बिल्कुल ठीक है।
मैंने कहाः यह सवाल नहीं है, आप उतना मेरी तरफ से दोहरा देंगी, मैं कुछ प्रयोग कर रहा हूं। यह कागज दे जा रहा हूं। वे जो कहें, ठीक वे ही शब्द इस कागज पर लिख दीजिएगा। पड़ोस में एक पोस्ट मास्टर रहते थे, उनसे मैंने कहा कि सुबह आप भी जब वे सज्जन निकलें तो उनसे नमस्कार करके यही पूछ लेना कि क्या बात है, तबीयत कुछ खराब है आपकी? चेहरा पीला-पीला मालूम पड़ता है और वे जो भी कहें लिख लेंगे। नंबर तीन पर एक और प्रोफेसर रहते थे, उनके घर भी मैं कह आया, नंबर चर पर भी कह आया। नंबर पांच वाले आदमी को मैंने कहा कि जब वे यहां से निकलें तो आप उनसे यह पूछ लेना कि आपके हाथ पैर डगमगाते..से मालूम पड़ते हैं, क्या बात है? मैं कोई बीस लोगों को कागज दे आया। पत्नी ने उनसे सुबह उठते ही पूछा कि क्या बात है, आंखें लाल मालूम होती हैं, चेहरा उदास मालूम होता है, तबीयत तो ठीक है न? उन्होंने कहाः तबीयत बिल्कुल ठीक है, कोई गड़बड़ी नहीं है। पड़ोस के पोस्ट मास्टर ने जब उनसे पूछा कि आपकी तबीयत खराब मालूम होती है, तो उन्होंने कहा, नहीं नहीं, तबीयत को खराब नहीं, जरा रात नींद ठीक नहीं हुई। जब तीसरे आदमी ने उनसे पूछा कि क्या बात है आपका स्वास्थ्य कुछ! ...वह इतना ही कह पाया था कि उन्होंने कहाः रात से ही कुछ हरारत सी मालूम पड़ती है। आठवें आदमी ने उनसे पूछा ही नहीं कि आपकी तबीयत कैसी है।
उन्होंने खुद ही कहा कि आज युनिवर्सिटी जाने की हिम्मत नहीं है। बुखार है रात से। यदि आप जा रहे हों तो मैं आपकी कार में चलूं, क्योंकि आज मैं पैदल न जा सकूंगा। वे कार में ही बैठ गए। दरवाजे पर जो डिपार्टमेंट का चपरासी था, उसने उनको सम्हाला। वे बराबर कंपती हुई हालत में थे। और जब अंदर डिपार्टमेंट से मैंने उनसे कहा कि क्या हो गया आपको, तबीयत बहुत खराब है? तो एक दम बैठकर आंखें उन्होंने बंद कर लीं, जवाब ही नहीं दिया। थोड़ी देर बाद बोले कि तबीयत मेरी बहुत खराब है, घर पर खबर कर दो, कोई आ जाए और मुझे ले जाए। शाम को जब मैं उनके घर गया तो थर्मामीटर लेकर गया था। उनको एक सौ डिग्री बुखार था। उन बीस पुर्जों को भी साथ ले गया था। थर्मामीटर लगा कर बुखार नापकर मैंने बीसों पुर्जें उनके हाथ में दे दिए और कहाः कृपा कर पहले पुर्जें से बीस पर पढ़ जाएं। यह सुबह के आपके दिए हुए जवाब हैं। यह बुखार आपका सपना है कि सच है? यह बुखार प्रोजेक्शन हो गया। यह बुखार उन्होंने अपने पर आरोपित कर लिया। हम अपने पर भी आरोपित करते हैं। ‘जो हैं’ वह हमें दिखाई नहीं पड़ रहा है, न भीतर है, न बाहर। जो नहीं है, उसे हम थोप रहे हैं और देख रहे हैं। सम्राट एक तरह के सपने देखता है, भिखारी दूसरे तरह के देखता है। जीता हुआ एक तरह का देखता है, हारा हुआ दूसरी तरह का देखता है, लेकिन हम सब सपने ही देखते हैं। सपने के बाहर तो वही आदमी हो सकता है, जो अपनी तरफ से सत्य के ऊपर, यथार्थ के ऊपर, कुछ भी थोपने से इंकार कर दे, जो कहे कि मैं अपनी आंख से तो कोई भी चित्र फेंकूंगा। जो अपनी आंख शून्य कर ले, खाली कर ले, जो निपट खाली हो जाए और जिसका प्रोजेक्टर भीतर से बंद हो जाए और जो कहे कि मैं कोई विचार के माध्यम से जगत को न देखूंगा, न निर्विचार के माध्यम से देखूंगा, तो सत्य को पा सकता है। और जिस दिन सत्य दिखाई पड़ता है उस दिन पता चलता है कि हम कैसे सपने में जी रहे थे। असल में जब तक सपने न टूटें तब तक पता ही नहीं चलता कि हम सपने में थे। कभी आपको नींद में पता चला है कि आप नींद में हैं? यह सुबह में आपको पता चलता है, जब नींद टूट जाती है। जब तक आप जानते मैं तब तक आपको पता रहता है कि मैं जगा हूं, आपको कभी पता नहीं चलता है कि कब आप सो गए। आपको रात भर पता नहीं चलता कि मैं सोया था। नींद टूटे तभी पता चलता है। हम सब सपने में हैं, वह हमें तभी पता चल सकता है, जब सपना टूटता है। लेकिन अगर कोई भी हमसे कहे कि हम सब सोए हुए लोग हैं तो चित्त नाराज होता है, क्रोध आता है।
भीखण नामक एक फकीर एक गांव में रुके हैं। सारा गांव उनको सुनने आया है। गांव को जो धनपति है, वह सामने ही बैठा है। भीखण ने बोलना शुरू किया है। जैसा कि धार्मिक सभाओं में होता है, अधिक लोग सो जाते है। वह सामने बैठा हुआ धनपति भी सो गया है। और भी बहुत लोग सो गए होंगे। असल में कुछ डाक्टर तो यह कहते हैं कि जिनको नींद न आती हो, उनको धार्मिक सभा में चला जाना चाहिए। वहां नींद आ ही जाती है। दिन भर के थके-मांदे लोग, जिन बातों में उनकी कोई रुचि नहीं, जब उनको जानी चाहिए। पहले ऊब पैदा हो जानी चाहिए तो नींद आ जाती है। इसलिए छोटे बच्चे को सुलाने की मां जो तरकीब लाती हैं, वह बड़ी खतरनाक है। वह उससे कहती है, राजा बेटा सो जा, सो जा, मुन्ना बेटा सो जा, दोहराती ही चली जाती है। ऐसे ही बकवास दोहराती है तो राजा बेटा भाग भी नहीं सकता और सिर पकने लगता है चित्त ऊब जाता है। इसको सुनने की अब तबीयत नहीं होती कि अब यह और बकवास सुनी जाए तो राजा बेटा को सोना पड़ता है।
राजा बेटा के बाप के साथ भी यह प्रयोग किया जाए, वे भी सो जाएंगे। इसलिए जो लोग बैठ कर राम नाम का जाप जपते रहते हैं, वे झपकी लेते हैं। एक ही शब्द को कोई दोहराएगा तो ऊब पैदा होती है, ऊब से नींद आ जाती है। सामने बैठा हुआ धनपति भी सो गया है। भीखण के रहने और संन्यासी भी उस गांव में आए थे, तब भी वह धनपति सोता था। लेकिन, वह दूसरे संन्यासी धनपति से कहते थे कि आप बड़े तल्लीन होकर, ध्यानमग्न होकर सुनते हैं। और वह धनपति भी मानता था और शान से कहता था कि मैं ध्यानमग्न होकर सुनता हूं। लेकिन वह भीखण अजीब आदमी हैं। इन्होंने उसको रोका और कहा कि सो रहे हो क्या? उसने जल्दी से आंख खोली। उसने कहा कि नहीं, सो नहीं रहा हूं, मैं तो ध्यानमग्न होकर सुन रहा हूं। भीखण ने फिर बोला शुरू कर दिया। उस आदमी को फिर नींद लग गई। भीखण ने फिर रोका और कहा, सो रहे हो क्या? उस आदमी ने कहा, नहीं, आप भी कैसे आदमी हैं? मैं सोता नहीं, यह मेरी आदत है, ध्यानमग्न होकर मैं सुनता हूं। भीखण ने फिर बोलना शुरू कर दिया, वह आदमी फिर सो गया, लेकिन थोड़ी देर बाद भीखण ने फिर जोर से कहाः जीते हो क्या? उस आदमी ने कहाः नहीं, नहीं, कौन कहता है? मैं तो बराबर सुन रहा हूं। आप कैसे आदमी हैं कि बार-बार वही बात दोहराते हैं। भीखण ने कहाः इस बार तो तुम फंस गए हो क्योंकि, इस बार मैंने नहीं कहा कि सोते हो क्या, मैंने पूछा हैः जीते हो क्या? और अगर ध्यानमग्न होकर सुन रहे होते तो तुमने जरूर सुन लिया होता।
नहीं, सुन नहीं रहे हो। लेकिन तुम्हारा उत्तर ठीक है। जो सो रहा है, वह जी भी नहीं रहा है। जो सो रहा है, वह एक अर्थ में मरा ही हुआ है। हम एक अर्थ में मुर्दा हैं, बहुत गहरे अर्थ में। क्योंकि हम जीवन को तो जान ही नहीं पाए। जीवन को नहीं जान पाए इसलिए तो हम पूछते हैं, परमात्मा कहां है? अगर हम जीवन को जान लेते तो हम यह कभी न पूछते कि परमात्मा कहां है क्योंकि, परमात्मा जीवन का दूसरा नाम है, इसलिए तो हम पूछते हैं, मोक्ष कहां है? अगर हम जीवन को जान लेते तो कभी न पूछते मोक्ष कहां है क्योंकि जीवन परम मुक्ति है। जीवन को नहीं जान पाए इसलिए तो हम मौत से डरते हैं और घबराते हैं और पूछते हैं कि मर तो न जाएंगे? आत्मा अमर है न? अगर हम जीवन को जान लेते तो हम पाते कि कुछ मरता नहीं है। जो है, वह सदा है। मृत्यु एक असत्य हो जाता है। लेकिन जीवन का हमें कोई पता नहीं है, इसलिए परमात्मा का कोई पता नहीं। मुक्ति का कोई पता नहीं, इसलिए मृत्यु असत्य है, इसका कोई पता नहीं। मुक्ति का कोई पता नहीं, इसलिए मृत्यु असत्य है, इसका कोई पता नहीं है। अगर हम जीवन को जान लेते तो हम कभी नहीं पूछते कि आनंद कहां है? क्योंकि जहां जीवन है, वहां आनंद है। लेकिन उसका हमें कोई पता नहीं है और पता होगा भी नहीं क्योंकि जीवन जागने से दिखाई पड़ता है, सोने से नहीं दिखाई पड़ता। सोए-सोए कैसे पता चल सकता है कि जीवन क्या है?
लेकिन हमने एक तरकीब ईजाद की है, इसलिए इस नींद को मिटाना मुश्किल हो रहा है। और वह यह है कि हम इसको नींद कहते ही नहीं, हम इसको जागना कहते है। सुबह जब हम आंख खोल लेते हैं तो वह जो आदमी हमारे भीतर भर सोया रहा था, हम सोचते हैं, जाग गया। जागता नहीं, सिर्फ रात में शरीर थक गया था और आंख बंद हो गई थी। भीतर का आदमी वही है, जो रात सोया था। उसमें कोई फर्क नहीं पड़ता है। सुबह जब आंख खुलती है तो सिर्फ शरीर ताजा हो गया, लेकिन भीतर का आदमी वही है जो रात में सोया था। आप सोए हुए ही होते हैं, पर जागे हुए समझते हैं। आपके भीतर, आपकी चेतना में, नींद में और जागने में कोई भी फर्क नहीं है। आप तो सोए ही रहते हैं। लेकिन आंख के खुली और बंद होने से, शरीर के थक पर गिर जाने से, वह भ्रांति पैदा होती है कि रात में हम सोए थे और दिन में हम जाग गए हैं। हम चैबीस घंटे सोए हुए हैं।
बुद्ध को जब ज्ञान हुआ तो किसी ने उनको पूछा कि आपको मिला क्या है? तो उन्होंने कहाः जागना मिला है। और उनसे पूछा कि आपने खोया क्या है? उन्होंने कहाः सोना खोया है। कृष्ण ने तो गीता में कहा है कि जब सब सोते हैं, तब भी वह जो योगी है, जागता है। लेकिन उलटा, जो योगी नहीं है, जब हम समझते हैं कि वह जाग रहा है, तभी सोता है। जो योगी है, वह जब हम सोचते हैं सो रहा है, तब भी जागता है। बुद्ध के पास आनंद कोई चालीस साल तक रहा। आनंद बुद्ध का बड़ा चचेरा भाई था। लेकिन दीक्षा लेने के बाद तो बड़ा भाई नहीं रह जाएगा। जब तक दीक्षा नहीं ली थी तब तक वह बुद्ध का बड़ा भाई था। उसने बुद्ध से कहा कि मैं दीक्षा लेने आया हूं। दीक्षा लेने के पहले तुम मेरे छोटे भाई हो, बड़े भाई की हैसियत से मैं कुछ वचन तुम से ले लेना चाहता हूं।
क्योंकि दीक्षा ले लेने के बाद तो फिर मैं तुमसे कुछ नहीं ले सकूंगा, फिर तो तुम्हारे आदेश मुझे मालूम पड़ेंगे। लेकिन अभी मैं तुम्हें दो-तीन आदेश देता हूं। पहला आदेश यह है कि मैं सदा तुम्हारे साथ रहूंगा। दीक्षा के बाद तुम मुझे कहीं और न भेज सकोगे। मैं तुम्हारे साथ-साथ ही सोऊंगा। चालीस साल तक वह बुद्ध के साथ ही सोता था। उसे यह देख कर बड़ी हैरानी हुई कि बुद्ध सुबह उसी करवट उठते हैं, जिस करवट रात में सोते हैं। उसने कुछ दिनों तक देखने के बाद बुद्ध से कहा कि क्या सोने में भी आप हिसाब रखते हैं? हाथ नहीं हिलते, करवट नहीं बदलते। सोते हैं कि लेटे रहते हैं? बुद्ध ने कहाः सोता तो हूं लेकिन, शरीर ही सोता है। अब मेरे सोने का कोई उपाय नहीं। अब मैं जाग गया हूं। भीतर मैं जागा ही रहता हूं। भीतर तो सोने का अब कोई उपाय नहीं रहा। हम बाहर के जागने और सोने को ही सब समझ रहे हैं, भीतर का सोना और जागना हमारे ख्याल में नहीं है। भीतर हम सोए ही हुए हैं। आनंद ने कहाः मैं कुछ समझा नहीं, यह भीतर का सोना क्या बात है? दूसरे दिन सुबह बुद्ध को सुनने जब सारे लोग बैठे हैं, एक आदमी सामने ही बैठा है, वह अपने पैर के अंगूठे को हिला रहा है। बुद्ध ने अपना वचन बंद करके कहा कि मित्र, यह तुम क्या कर रहे हो, पैर का अंगूठा क्यों हिला रहे हो? उस आदमी ने जैसे ही सुना, पैर का अंगूठा बंद कर उसने कहाः मुझे पता नहीं था। तो बुद्ध ने कहाः तुम्हारा अंगूठा और तुम्हें पता न हो, जागे हुए हो या सोए हुए हो।
आनंद से कहाः देखो यह आदमी जगा हुआ मालूम पड़ रहा है लेकिन सोया हुआ है, यह कहता है, मेरा अंगूठा हिल रहा था और मुझे पता नहीं क्यों हिल रहा था। जब आपने क्रोध किया है, तब क्या आप जागे हुए होते हैं? अगर जागे हुए होते तो आप क्रोध करते? लेकिन क्रोध के बाद हम खुद ही कहते हैं कि पता नहीं कैसे हो गया! क्रोध के बाद हम कहते हैं, मेरे बावजूद हो गया है। मैं तो करना ही नहीं चाहता था। हजारों हत्यारों ने अदालतों में यह गवाही दी है कि हम हत्या नहीं करना चाहते थे। जब क्रोध में ही आप नहीं रह जाते तो हत्या करने में आप कहां रह जाएंगे? नींद में हत्याएं हो रही हैं। नींद में क्रोध हो रहा है, नींद में प्रेम हो रहा है। और अगर हम बहुत बारीकी से देखें तो नींद में हम रास्तों पर चल रहे हैं, दूकानों पर काम कर रहे हैं, दफ्तरों में बैठे हुए हैं। कुछ लोग होते हैं जो रात सपने में उठकर कुछ काम करते हैं। यह एक बीमारी है।
न्यूयार्क में एक आदमी था। वह अपनी छत पर से नींद में कूद जाता था। फासला लंबा था, कोई नौ फुट का था। जागने पर वह आदमी छह फीट भी नहीं कूद सकता था। और चालीस मंजिल ऊंचे मकान पर से तो कूद ही नहीं सकता, दूसरे के मकान पर, बीच में खड्डा था इतना बड़ा। यह खबर गांव में फैल गई। तो रात वहां कुछ लोग देखने को इकट्ठे हो गए। कोई एक बजे रात वह आदमी नींद में अपनी छत पर पहुंच गया और उसने छलांग लगाई। पहले दिन तो लोग देखकर दंग रह गए। वह छलांग लगाकर उस तरफ चला गया। वह वापिस छलांग लगाकर जब आ रहा था, तब लोगों ने आवाज कर दी, तब उसकी नींद टूट गई। आंख खुल गई, उसने देखा मैं यह क्या कर रहा हूं। वह वहीं गिर पड़ा और समाप्त हो गया। सैकड़ों लोग ऐसे हैं, आपके गांव में भी दो-चार लोग मिल सकते हैं, जो रात सोते में कुछ काम करते हैं। मेडम क्यूरी ने जो अविष्कार किया वह नींद में किया। रात सोते में उठकर कागज पर उत्तर लिखा, जिसको वह जागते में कई बार कर चुकी थी और उत्तर नहीं आया था।
सुबह वह हैरान हो गई। जिसको उससे नोबल प्राइज मिली, वह उसको नहीं मिलनी चाहिए, नींद को मिलनी चाहिए। सुबह उठकर उसको खुद ही भरोसा न होता था कि यह किसने लिखा, लेकिन हस्ताक्षर उसी के थे और रात उसके कमरे में कोई नहीं था। नींद में, रात में लोग उठकर कुछ करते हैं और दिन में तो हम सारे लोग उठकर कर रहे हैं। सुबह उठते हैं और वह नींद जिसको हमने रात में नींद समझी थी, टूट जाती है। वह नींद, जो धर्म की दृष्टि से नींद है, जारी रहती है। दो तलों पर हमारी नींद है। एक शरीर के तल पर और एक भीतरी आध्यात्मिक तल पर। वहां अध्यात्म के तल पर तो मूच्र्छा जारी रहती है, शरीर के तल पर नींद टूट जाती है। इसलिए तो इस दुनिया में इतने झगड़े हैं। ये सोए हुए आदमियों के झगड़े हैं। इतने युद्ध हैं, ये सोए हुए आदमियों के युद्ध हैं। इतना वैमनस्य है, इतनी ईष्र्या है, इतनी हिंसा है, ये सोए हुए आदमी के हैं। अगर आदमी भीतर से नहीं जगाया जा सकता तो बहुत खतरा है। क्योंकि सोए हुए आदमी ने नींद में एटम बम तक ईजाद कर लिया है। अब कोई एक सोया हुआ आदमी सारे सोए हुए आदमियों को समाप्त कर सकता है। अब खतरा बहुत है।
पृथ्वी पर पहले तो एक दो आदमी भी जागते रहे तो चला। अब तो पूरी मनुष्यता का बहुत बड़ा हिस्सा जागेगा तो मनुष्यता बच सकती है अन्यथा नहीं बच सकती। इसलिए धर्म जितना आज जरूरी है, इतना जरूरी कभी भी नहीं था। सारी मनुष्यता समाप्त हो सकती है। कोई भी न बचे, ऐसा हो सकता है। आईन्स्टीन से मरने के पहले कोई पूछ रहा था कि तीसरे महायुद्ध में क्या होगा? तो आईन्स्टीन ने कहाः तीसरे के बाबत कुछ भी कहना असंभव है। लेकिन, अगर चैथे के संबंध में कुछ जानना चाहो तो मैं कह सकता हूं। उस आदमी ने कहा कि जब तीसरे के बाबत भी आप नहीं बता सकते तो चैथे के बाबत क्या बताएंगे? आईन्स्टीन ने कहाः एक बात पक्की कह सकता हूं कि चैथा महायुद्ध कभी नहीं होगा। क्योंकि आदमी चाहिए युद्ध के लिए? चैथे के लिए कोई बचनेवाला नहीं है। इतना विराट निद्रित आदमी ने इंतजाम कर रखा है! कोई पचास हजार अणु बम सारी पृथ्वी पर इकट्ठे कर रखे हैं। यह इस पृथ्वी को मिटाने के लिए जरूरत से सात गुने ज्यादा हैं। जितने आदमी हैं, इनको हमें अगर एक-एक को सात-सात बार मारना हो तो हम मार सकते हैं। हालांकि एक ही दफे में आदमी मर जाता है, लेकिन इंतजाम पक्का किया है कि कोई बच जाए तो दुबारा मारें, तिबारा मारें, सात-सात बार एक-एक आदमी को हम मार सकते हैं। यह पृथ्वी बहुत छोटी है। इस तरह की सात पृथ्वी हों तो सबको हम भस्मीभूत कर सकते हैं।
सोए हुए आदमी ने नींद में भी बहुत कुछ उपद्रव खड़े कर लिए हैं। सोया हुआ आदमी कुछ भी कर सकता है क्योंकि वह उत्तरदायी नहीं है। जब वह कर चुकेगा, वह कहेगा कि मुझे क्या पता यह क्या हुआ! हिटलर से आप पूछ सकते हैं कि तुमने यह क्या किया? पांच करोड़ आदमी हिटलर की वजह से मरे। लेकिन हिटलर को आखिरी वक्त तक यह ख्याल नहीं था कि वह जिम्मेदार है। और जब बर्लिन पर बंब गिरने लगे और हिटलर अपने छिपने के स्थान में था, तब भी वह रेडिओ पर भाषण देता रहा कि हिटलर पागल था। पागल कहना ठीक नहीं है। मैं इतना ही कहता हूं कि वह गहरी नींद में सोया हुआ आदमी था। और हम भी गहरी नींद में उसी तरह के सोए हुए आदमी हैं। हम सब कम-ज्यादा मात्रा में सोए हुए लोग हैं। नहीं तो हिटलर इतने लोगों को इतने बड़े उपद्रव में संलग्न न कर पाता। एक पागल आदमी एक बुद्धिमान से बुद्धिमान मुल्क को इस तरह पागल कर सकता है तो इसका मतलब क्या होता है? हिटलर अगर अकेला पागल है तो पूरे जर्मनी का क्या मामला है?
पूरा जर्मनी भी पागल है। और अगर पूरा जर्मनी पागल है तो सारी दुनिया में कोई जर्मनी से बेहतर लोग नहीं है। माओ चीन को पागल कर सकता है, कोई दूसरा हिंदुस्तान को पागल कर सकता है, कोई स्टेलिन रूस को पागल कर सकता है, कोई निक्सन अमेरिका को पागल कर सकता है। तो बाकी सारी भीड़ भी सोए हुए लोगों की भीड़ है और सोए हुए नेता हैं। सोई हुई भीड़ है। सोए हुए आदमियों के हाथ में बड़ी ताकतें हैं और वे जिम्मेवार नहीं हैं। मैं आपसे कहना चाहूंगा, उनकी जिम्मेवारी दो तरह से कम हैं। वे दूसरे के प्रति जिम्मेवारी नहीं है। यह तो खतरनाक है ही, वह अपने प्रति भी जिम्मेवार नहीं है जो ज्यादा खतरनाक है। एक जिंदगी हमें मिलती है, उसे हम ऐसे गंवा देते हैं कि उसका हम कभी उपभोग नहीं करते जैसे एक बीज मिल जाए हमें और हम जिंदगी भर रखें, उसे सड़ा दे तो हमें सभी पागल कहेंगे। इस बीज से बहुत बड़ा वृक्ष पैदा होता, बहुत फूल पैदा होते, बहुत सुगंध पैदा होती, बहुत छाया बनती। तुम इस बीज को रखे क्या रहे? हम भी अपनी जिंदगी के बीज को रखे-रखे मर जाते हैं। उस बीज से बहुत कुछ संभव है। उस बीज से एक कृष्ण पैदा हो सकता है। जो बीज आपके पास है, उससे एक राम पैदा हो सकता है।
वह जो बीज मेरे पास है, उससे एक महावीर, एक बुद्ध पैदा हो सकते हैं, एक मोहम्मद, एक क्राइस्ट पैदा हो सकता है। हम सबके पास वह बीज है, जिसमें अनंत फूल लग सकते हैं सौंदर्य के, सत्य के, आनंद के। कबीर ने ठेका नहीं लिया था कि उनको आकाश में बादल घिरे हुए दिखाई पड़े। हमारे भीतर भी आकाश में बादल घिर सकते हैं, जिनसे अमृत की वर्षा हो। मीरा ने कोई ठेका नहीं लिया था कि प्रभु के पास घुंघरू बांध कर वही नाचे, हम भी नाच सकते हैं। जीसस का अकेले का ठेका नहीं है कि वे ही जान पाए कि जो भीतर है, वह नहीं मरता है। हम भी जान सकते हैं। लेकिन, हम सोए हुए कैसे जानेंगे? जानने के लिए जागना पहली शर्त है। और जागने के लिए यह जानना पहले जरूरी है कि क्या हम सोए हुए हैं और सपने देख रहे हैं? क्या हम सपने की स्थिति में जी रहे हैं? हमें ख्याल ठीक से गहरे बैठ जाना चाहिए कि हमारी सारी की सारी अब तक की जिंदगी एक सपने की जिंदगी है, जिसमें कल मौत आएगी और सब सपने ताश के पत्तों की तरह गिर जाएंगे, पानी के बुलबुले की तरह फूट जाएंगे, रेत के बनाए हुए मकानों की तरह ढह जाएंगे और मौत सब उजाड़कर एकदम अचानक हमें किसी और दुनिया में प्रवेश करा देगी। हमसे पहले कितने बिदा हो गए इस जमीन से!
जहां आप बैठे हैं, उस जगह पर न मालूम कितने लोगों की कब्र बन चुकी होगी! ऐसी कोई जमीन का एक इंच भी टुकड़ा नहीं है, जहां कब्र बन चुकी होगी! ऐसी कोई जमीन का एक इंच भी टुकड़ा नहीं है, जहां कब्र न बन गई हो। जमीन पर मिट्टी का एक कण नहीं है, जो किसी आदमी के शरीर का हिस्सा न रहा हो। इस पृथ्वी पर कितने लोग जिए और मरे, उनके सपने सब कहां है? उनका यश कहां है? उनकी महत्वाकांक्षाएं कहां हैं? उनके बनाए हुए महल कहां हैं? उनके अहंकार के बनाए हुए बड़े-बड़े विस्तार के पर्वत कहां है? कहां है वे सब! उनकी सारी कथा खो गई। लेकिन हम उस पर आंख उठाकर न देखेंगे, क्योंकि उससे हमें भी खतरा है। अगर हमें यह दिखाई पड़ जाए कि जहां हम खड़े हैं, वहां कब्र है तो हमें बहुत देर न लगेगी, अपनी कब्र भी हमें दिखाई पड़ जाएगी। अगर हमें यह दिखाई पड़ जाए कि पहले के बनाए हुए महल सब कागज के सिद्ध हुए तो हम जिस महल को बना रहे हैं, उस महल को हम पत्थर का मान सकेंगे। अगर हमें पता चल जाए कि सारी महत्वाकांक्षाएं सपने की भांति खो गई, न महत्वाकांक्षी हैं, न महत्वाकांक्षाएं हैं, न उनके बनाए हुए साम्राज्य हैं, वे सब खो गए, जैसे सपने खो जाते हैं, तो हमारे अपने राज्यों का क्या होगा? हमारे अहंकार, हमारी महत्वाकांक्षा का क्या होगा? बीज मिटता है, ऐसे ही नष्ट हो जाता है। नहीं टूट पाता, नहीं वृक्ष बन पाता है। वीणा मिल जाती है लेकिन उसके तारों पर हम कभी अपनी अंगुलियां नहीं बजा पाते। उससे कभी संगीत पैदा नहीं हो पाता है।
वीणा को ढोते-ढोते मर जाते हैं। और ध्यान रहे, जो कंधे पर वीणा को लेता है और बजाता नहीं, उसकी वीणा सिर्फ सूली सिद्ध होगी, क्रास सिद्ध होगी और कुछ नहीं होगी!

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