कुल पेज दृश्य

शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

नये मनुष्य का धर्म-(प्रवचन-02)

दूसरा-प्रवचन-(ओशो)

युवा शक्ति का संगठन

मेरे प्रिय आत्मन्!
दो ही दृष्टियों से तुम्हे यहां बुलाया है, एक तो श्री नरेंद्र ध्यान के ऊपर शोध करते हैं, रिसर्च करते हैं। मैं ध्यान के जो प्रयोग सारे देश में करवा रहा हूं, वे उस पर मनोविज्ञान की दृष्टि से, पीएचड़ी. की...बनाते हैं। वे एम. ए. हैं मनोविज्ञान में, मनोविज्ञान के शिक्षक हैं और चाहते हैं कि ध्यान के ऊपर वैज्ञानिक रूप से खोज की जा सके। उनकी खोज के लिए कुछ मित्रों को निरंतर अपने मन का निरीक्षण करके अपने मन की स्थिति से और ध्यान के द्वारा उनके मन में क्या परिवर्तन हो रहे हैं, उस सबकी सूचना उन्हें देनी जरूरी है। तभी वे उस रिसर्च को पूरा कर सकेंगे। तो तुम्हें एक तो इस कारण से बुलाया है क्योंकि वे पिछले दो वर्षों से अनेक लोगों से प्रार्थना करते हैं। हमारे मुल्क में पहले तो कोई किसी तरह की प्रश्नावली को भरने को राजी नहीं होता, क्योंकि वह सोचता है न मालूम...और अगर भरने को भी राजी होता है तो उसे सत्य-सत्य नहीं भरता।
अगर उसमें लिखा हुआ है कि आपको क्रोध कितनी बार आता है दिन में? तो वह यह भरने को राजी नहीं होगा कि दस बार मुझे क्रोध आता है। वह कहेगा, आता ही नहीं।

तो फिर शोधकार्य बहुत मुश्किल हो जाता है। ध्यान से क्या फर्क हुए हैं, वह भी सच्चाई से कोई नहीं लिखता। ध्यान से क्या फर्क हो रहे हैं या नहीं हो रहे हैं वह भी कोई नहीं लिखता। तो वे कठिनाई में पड़ गए हैं। तो इसलिए मैंने चाहा कि पच्चीस वर्ष से कम लोगों को बुलाओ उनसे सत्य की ज्यादा आशा है। उसके बाद असत्य की संभावना बढ़ती चली जाती है।
उनकी जो प्रश्नावली है वे तुम्हें देंगे। उसे बहुत ईमानदारी से, क्योंकि वह एक वैज्ञानिक शोध है। उसका परिणाम विश्व व्यापी हो सकता है। क्योंकि अब तक ध्यान पर कोई वैज्ञानिक शोध नहीं हुई है। ध्यान के द्वारा मनुष्य के व्यक्तित्व में क्या फर्क हो सकते हैं, उसके मन में कितने फर्क हो सकते हैं? उसकी स्मृति बढ़ सकती है, उसका ज्ञान बढ़ सकता है, उसकी चेतना जाग सकती है। वह ज्यादा शांत हो सकता है, ज्यादा आनंदपूर्ण हो सकता है। उसके व्यक्तित्व में ज्यादा इंटीग्रेशन पैदा हो सकता है। पागल होने की संभावना उसकी कितनी कम हो जाती है जितना वह शांत होता है।
यह सारी बातों का, सारे जगत पर व्यापक परिणाम हो सकता है। लेकिन हमारे मुल्क में ध्यान तो हजारों वर्षों से चलता है लेकिन वैज्ञानिक शोध उस पर कुछ भी नहीं हो सकी। तो वे एक महत्वपूर्ण काम करते हैं। उसमें उनका साथ देना चाहिए। वे आपको प्रश्नावली दे देंगे उसे ईमानदारी से भरें और फिर वर्ष में वे दो-चार दस दफा आपको प्रश्नावली भेजते रहेंगे तो उसको ईमानदारी से भरते रहें कि आप में क्या फर्क हो रहा है। इसके दोहरे परिणाम होंगे। उनको तो रिसर्च में फायदा होगा और आपको भी वर्ष दो वर्ष के बीच अपना निरीक्षण करने का मौका मिलेगा बार-बार कि मुझमें क्या फर्क पड़ रहा है, पड़ रहा है या नहीं पड़ रहा है! तो वे दो वर्ष की प्रश्नावली के उत्तर आपके लिए भी दो वर्ष का अपना अध्ययन बन जाएंगे। दो वर्ष के पीछे आप भी देख सकेंगे कि मुझमें कुछ फर्क पड़ा है या नहीं पड़ा है। मेरे व्यक्तित्व में कोई क्रांति आई कि नहीं आई । मैं पहले से ज्यादा शांत हूं, ज्यादा आनंदित हूं, ज्यादा प्रेमपूर्ण हूं, ज्यादा करुणा से भर गया हूं या नहीं भर गया हूं। मेरी कठोरता और मेरी हिंसा कितनी दूर हुई है। तो वह आपके लिए भी उपयोगी होगा। तो उनके साथ स्थायी संबंध बना लें। जो लोग भी फार्म लेते हैं, वे अपना पता उन्हें दे दें ताकि वे निरंतर आपसे पत्र-व्यवहार कर सकें और आपकी सारी जानकारी ले सकें। वे कम से कम पचास मित्रों पर दो वर्ष तक निरंतर अध्ययन करना चाहेंगे। और इस अध्ययन से वह जो पीएच डी की थीसिस विश्वविद्यालय में पेश करने को हैं वह उपयोगी होगी बहुत। वह सारी दुनिया के काम पड़ेगी। वह जलदी ही उनकी थीसिस बन जाएगी तो वह प्रकाशित भी हो सकेगी और सबको मिल सकेगी। आपके नामों का उसमें कोई उल्लेख नहीं होगा इसलिए उसमें कोई चिंता करने की बात नहीं है कि हम अपनी कोई कमजोरी कैसे लिखें। उस थीसिस में आपके नाम का कोई उल्लेख नहीं होगा। न ही आपके नामों के संबंध में कहीं वे कोई बात करेंगे। वह तो आपने जो सूचना उन्हें दी है बिलकुल गुप्त होगी। लेकिन वह उनकी थीसिस के लिए आधार बन सकेगी तो एक तो यह उनकी तरफ से मैं कहता हूं कि उनके लिए थोड़ी सहायता पहुंचाएं।
दूसरी बात, इधर सारे देश में मैं घूमता हूं तो मुझे ऐसा लगता है कि युवकों की स्थिति एक वैक्यूम की स्थिति हो गई है, एक शून्य की स्थिति हो गई है। न उनके पास कोई लक्ष्य है जीवन का, न उनके पास जीवन को निर्मित करने की कला और कल्पना है न ही समाज कैसा हो उसके भविष्य की कोई दृष्टि है। वे बिलकुल अंधेरे में और अधर में लटके रहते हैं। उनके पास कोई जीवन की योजना नहीं है। और अगर युवकों के पास जीवन की कोई योजना न हो तो सारे देश का, सारे जगत का भविष्य अंधकारपूर्ण हो सकता है। क्योंकि कल तुम्हारे हाथ में सारी शक्तियां आ जाएंगी। कल तुम देश को बनाओगे, मिटाओगे। कल तुम्हारे हाथ में होगा कि तुम क्या करना चाहते हो। तो इसके पहले कि युवकों के हाथ में शक्ति आ जाए, युवकों के पास जीवन को, समाज को बदलने और बनाने की स्पष्ट धारणा...होनी जरूरी है कि कल जब उनके हाथ में ताकत आएगी तो वे जिंदगी को नये ढंग से ढाल सकेंगे। और हमारी जिंदगी सारी की सारी गलत हो गई है। हमारे जीवन का कोई अंग स्वस्थ नहीं है। सारे अंगों को बदल डालना है। जीवन की सारी व्यवस्था को नया रूप दे देना है। तो यह कौन करेगा? यह युवकों के अतिरिक्त युवतियों के अतिरिक्त और तो कोई नहीं कर सकता है। और उनके पास कोई दृष्टि नहीं, कोई जीवन नहीं है। तो इधर मेरे मन में एक कल्पना रोज रोज तीव्र होती गई है कि सारे मुल्क में युवक और युवतियों के अलग संगठन यूथ फोर्स की तरह खड़े किए जाएं। वहां हम विचार करने को मिलेंगे, चर्चा करेंगे, अध्ययन करेंगे, सोचेंगे और जो बात हमें ठीक लगती है उसे हम दूर-दूर तक फैलाने की कोशिश करेंगे। फिर युवकों के मैं अलग ही शिविर लेना चाहता हूं। सिर्फ युवकों के लिए शिविर लेना चाहता हूं ताकि युवकों की जिंदगी के जो मसले हैं उन पर मैं स्पष्ट चर्चा कर सकूं। उनके सामने क्या सवाल है?
निश्चित ही वृद्ध लोगों के सामने सवाल दूसरे तरह के होते हैं, युवकों के सामने सवाल दूसरे तरह के होते हैं, बच्चों के सामने सवाल तीसरे तरह के होते हैं। जो वृद्ध के लिए समस्या है वह युवक के लिए समस्या नहीं है। और जो युवक की समस्या है उसको वृद्ध पार कर चुका है, वह उसके लिए समस्या नहीं रह गई है। इसलिए यह मुझे बहुत प्रीतिकर नहीं लगता कि एक ही शिविर सब लोगों के लिए हो। वह ठीक नहीं है। जैसे वृद्धों के लिए सबसे बड़ी समस्या मृत्यु है, उनके सामने जो सबसे बड़ी समस्या है वह यह है कि मृत्यु क्या है? और मृत्यु के बाद क्या होगा? जीवन बचेगा कि नहीं बचेगा? भीतर कोई आत्मा है या नहीं है? कोई स्वर्ग है? मोक्ष है या नहीं? हमारे किए हुए कर्मों का कोई फल बचेगा कि नहीं बचेगा? हम बचेंगे या नहीं बचेंगे? वृद्ध जैसे ही कोई व्यक्ति होता है, तुम भी जब कल वृद्ध हो जाओगे तो मृत्यु ही सबसे बड़ी समस्या हो जाएगी, क्योंकि वही दिखाई पड़ेगी सामने।
लेकिन युवक के लिए मृत्यु समस्या नहीं है, उसके लिए मृत्यु अभी दिखाई भी नहीं पड़ती। उसके लिए समस्याएं दूसरी हैं। उसके लिए समस्या प्रेम की हो सकती है कि प्रेम क्या है? और जीवन को मैं कैसे प्रेमपूर्ण बनाऊं? उसके लिए समस्या विवाह की हो सकती है। उसके लिए समस्या हो सकती है कि जिंदगी को मैं कैसे बसाऊं? तो युवकों के मैं अलग ही शिविर लेना चाहता हूं ताकि उनके जीवन को छूने वाली बातों पर सीधी और साफ चर्चा हो सके। वे अपने प्रश्न पूछ सकें और उत्तर ले सकें। पर वह तभी हो सकेगा जब गांव-गांव में युवकों के संगठन हों। और मैं इतने छोटे शिविर युवकों के नहीं लेना चाहता। युवकों के शिविर हों तो दस हजार युवक हों, युवतियां हों, तो उनके शिविर का कोई अर्थ होगा। ताकि वे फैल जाएं फिर पूरे मुल्क में उस खबर को लेकर और गांव-गांव तक पहुंचा दें।
तो तुमसे मैं यह चाहूंगा कि जहां से भी तुम हो जिस गांव से भी वहां मित्रों को, युवकों का, युवतियों का एक मंडल खड़ा करो। जीवन-जागृति-केंद्र का एक युवक संस्थान खड़ा करो। वहां अध्ययन भी करो, साहित्य पर विचार भी करो, चर्चाएं भी रखो। टेप उपलब्ध हैं; सारे मुल्क में जो मैं बोलता हूं उनको वहां सुनाने की व्यवस्था करो। और जो उसमें बहुत उत्सुक हो जाएं वे और घरों में भी जाकर सुनाएं। हर कालेज और स्कूल में भी खबर पहुंचाओ और फिर जहां भी तुम्हे लगे कि युवकों की एक हवा पैदा हो गई तो मैं वहां आने को हमेशा तैयार हूं। वृद्धों के पचास कार्यक्रम छोड़ कर मैं तुम्हारे कार्यक्रम में आने के लिए तैयार रहूंगा। जहां भी तुम हवा पैदा कर लो--युनिवर्सिटी में, कालेज में, स्कूल में मैं वहां आने को हमेशा तैयार हूं। ताकि फिर मैं वहां पूरी हवा का उपयोग कर सकूं, पूरी बात कर सकूं। और युवकों से मैं अब सीधी बात करना चाहता हूं। क्योंकि कल सारी शक्ति उनके हाथ में आ जाएगी। और अगर मुल्क को बचाना है और ढंग पर ले जाना है और जिंदगी को बदलना है तो तुम्हे उसकी तैयारी करनी है।
तो इसलिए मैंने अलग से तुम्हें यहां बुलाया कि इस संबंध में तुम्हारे मन में खयाल आ जाए कि मेरी शक्तियों का अधिकतम उपयोग तुम्हें करना है। मेरे विचार का अधिकतम उपयोग तुम्हें करना है। और मेरी जो भी आशा है वह तुम पर बंधी हुई है और किसी पर नहीं।
जहां भी तुम लौट कर जाओगे इस शिविर की खबर ले जाओ, हवा ले जाओ, साहित्य ले जाओ, टेप पहुंचाओ, वहां लोगों को सुनाओ, बातचीत खड़ी करो और वहां केंद्र बनाने की फिकर बनाओ। और जैसे ही तुम वहां थोड़ा वातावरण बना लेते हो, मैं वहां हमेशा आने को तैयार हूं। और वहां से मैं युवकों से सीधी बात कर सकूं, सीधा डायलाॅग हो सके उनसे मेरा, उसकी मैं फिकर में हूं।
अभी तुम पीछे पड़ जाते हो। अभी यहां तुमको इकट्ठे बुलाया तो मुझे पता चला कि इतने युवक और युवतियां यहां आए हुए हैं। वह तो वहां तुम्हें पता भी नहीं चलता न भीड़ में तुम सब खो जाते हो, वहां कुछ दिखाई नहीं पड़ता कि कौन कौन है, कौन कहां है। यह तो अभी तुम आए तो मुझे लगा, यह खयाल नहीं था नहीं तो माइक का इंतजाम करते, कहीं ज्यादा बड़ी जगह में बैठते। यह सोचा था कि इधर काम चल जाएगा थोड़े से लोग होंगे। तो वहां तुम पीछे पड़ जाते हो और जो अधिक उम्र के लोग हैं उनके सवाल उनकी समस्याएं प्रमुख हो जाती हैं। तुम्हारी समस्याओं को मैं छू भी नहीं पाता। उन पर विचार भी नहीं हो सकता है।
इसलिए जल्दी ही अलग अलग केंद्र खड़े करो और जल्दी ही युवकों के संगठन बनाओ और उन संगठनों के द्वारा हम अलग शिविर लेने की फिकर शुरू करेंगे। कि अलग शिविर तुम्हारा हो। वहां दस हजार युवक और युवतियां इकट्ठे हों चार या पांच दिन या सात दिन रहें। वहां कुछ बातें सोचें, समझें, प्रयोग करें और फिर फैल जाएं पूरे मुल्क में और वह खबर सारे देश में पहुंचा दें। अगर युवकों के मन में कोई बात पैदा हो जाए तो हम दस वर्ष के भीतर सारे मुल्क की हवा बदल सकते हैं, सारी निराशा तोड़ सकते हैं, सारा दुख तोड़ सकते हैं। और जो मुल्क आज बिलकुल डगमगा गया है। और गलत लोगों के हाथ में पड़ गई है पूरे मुल्क की शक्ति। एकदम गलत लोगों के हाथ में मुल्क की ताकत पहुंच गई है। जो मुल्क को नष्ट किए दे रहे हैं। दस वर्षों के भीतर यह ताकत ठीक लोगों के हाथ में पहुंचाई जा सकती है। और दस वर्ष के भीतर हम मुल्क को एक ठीक रास्ते पर गतिमान कर सकते हैं।
और हम तो बहुत अभागे देश के लोग हैं। हमारा देश कोई पांच हजार साल से बहुत पीड़ित और परेशान है। तुम्हें दिखाई भी पड़ता होगा पांच हजार वर्ष में भी हम अपने मुल्क की गरीबी नहीं मिटा पाए। अमरीका ने तीन सौ वर्षों में इतनी संपत्ति पैदा कर ली। केवल तीन सौ वर्ष का इतिहास जिनका है, वहां दुनिया के सबसे संपत्तिशाली लोग हो गए। और हमारा इतिहास दस हजार साल पुराना है, और हम आज भी भीख मांग रहे हैं। तो दस हजार साल के इतिहास पर यह कलंक का टीका है कि दस हजार साल तक लोगों ने क्या किया कि अब तक लोगों को रोटी भी नहीं जुटा पाए, कपड़े भी नहीं जुटा पाए? एक हजार साल तक हम गुलाम रहे। दुनिया के इतिहास में कोई कौम इतने लंबे वक्त गुलाम नहीं रही। एक हजार साल तक गुलाम रहने का मतलब यह है कि हमारे भीतर स्वतंत्रता की कोई आकांक्षा नहीं, कोई प्यास नहीं। और आज भी हम भीख मांग रहे हैं। आज भी हिंदुस्तान में जितना रुपया चल रहा है उसमें दो रुपया अमरीका के हैं तीन रुपये में। तीन रुपये हैं अगर हमारे मुल्क में तो दो रुपये अमरीका के ऋण के हैं और एक रुपया हमारा है। पांच साल के भीतर वह एक रुपया भी अमरीका के ऋण का हो जाएगा। हम बिलकुल ऋणी हो जाएंगे पांच साल के भीतर। सारा मुल्क दीवालिया हो गया है, बैंककरप्ट हो गया है और लड़के कुछ भी नहीं सोचेंगे तो फिर यह कैसे, क्या होगा।
उन्नीस सौ अठहत्तर तक हिंदुस्तान में इतना बड़ा अकाल पड़ने की संभावना है जिसमें बीस करोड़ लोगों को मरना पड़ेगा। यह संभावना साधारण संभावना नहीं है, यह करीब-करीब सुनिश्चित है। उन्नीस सौ पचहत्तर और उन्नीस सौ अठहत्तर के बीच तीन साल में हिंदुस्तान को बीस करोड़ की आबादी को मरना पड़ेगा, इतना बड़ा अकाल पड़ेगा। इसका कोई रास्ता नहीं दिखाई पड़ता। नेता इसकी बात नहीं करते क्योंकि नेता इसकी बात करेंगे तो उनकी सारी नेतागिरी चली जाएगी। इसलिए वे चुपचाप हैं, वे फिजूल के कामों में लगे हुए हैं। कोई बेवकूफ कहता है, गो-हत्या नहीं होनी चाहिए। इधर पूरा मुल्क मर जाएगा पंद्रह साल के भीतर, उनको गो-हत्या होनी चाहिए कि नहीं होनी चाहिए इस बात में लगे हुए हैं। कोई कहता है कि पंजाबी सूबा अलग होना चाहिए, कोई कहता है कि एक जिला बंबई में न होकर...कोई कहता है कि गुजरात में होना चाहिए। इस बेवकूफी में मुल्क के सारे नेता लगे हुए हैं। और वे टुच्ची बातों में मुल्क के दिमाग को उलझाए हुए हैं ताकि असली सवाल दिखाई न पड़ें। क्योंकि असली सवाल दिखाई पड़ा तो हम उनको नीचे उतार कर फेंक देंगे, क्योंकि वे हमारी जान ले रहे हैं। और पंद्रह साल, दस साल के भीतर जब मुल्क में बीस करोड़ लोग मरेंगे तो क्या हालत हो जाएगी इसकी कल्पना करनी मुश्किल है। साठ करोड़ लोगों में से बीस करोड़ लोग मर जाएंगे तो जो जिंदा रह जाएंगे उनकी जिंदगी मरने से बदतर हो जाएगी। लेकिन वह आ रही है घटना क्योंकि संख्या हमारी बढ़ती जा रही है और हमारी दौलत कम होती जा रही है, हमारी पैदावार कम होती जा रही है और संख्या बढ़ती चली जा रही है। पंद्रह साल के भीतर हम उस हालत में पहुंच जाएंगे कि हमें मरना पड़े। कौन बचाएगा इससे? नेता नहीं बचा सकते हैं, नेता पूरे बेईमान हैं, क्योंकि वे सारी चेष्ठा इसमें है कि वे अपनी नेतागिरी जितने दिनों तक चल सके चला लें। उसके बाद जो होगा होगा, उनको कुछ समझ नहीं पड़ता कि हम क्या करें इसलिए अभीकुछ बात भी उठानी ठीक नहीं है उसकी। तो जिंदगी का एक-एक मसला हमारा दुर्भाग्य से भरा हुआ है।
एक रूसी विचारक हिंदुस्तान से वापस लौटा तो उसने अपनी डायरी में एक बात लिखी, मैं उसकी डायरी पढ़ रहा था तो मुझे ऐसा लगा कि कोई छापेखाने की भूल हो गई। उसने लिखा कि हिंदुस्तान एक धनी देश है जिसमें गरीब लोग रहते हैं। इंडिया रिच कंट्री वेयर पुअर पीपुल लिव। तो मैं समझा कि कुछ गड़बड़ हो गई बात। लेकिन आगे पढ़ा तो समझ में आया कि उसने मजाक किया है। उसने मजाक यह कहा है कि देश तो बहुत धनी है, लेकिन लोग बेवकूफ हैं, इसलिए गरीब हैं। नहीं तो देश तो इतना धनी है कि कितना धन पैदा कर लेता, जिसका कोई हिसाब नहीं था। देश बहुत धनी है। देश की नदियां धनी हैं, जमीन धनी है, देश का आकाश धनी है, देश के पास विस्तीर्ण संपदा है छिपी हुई। लेकिन आदमी नासमझ है। और उनकी फिलासफी गलत है। अब तक हमें यही सिखाया गया है आज तक हजारों साल में कि जितनी चादर हो उससे कम पैर सिकोड़ना। जो मुल्क इस तरह की बातें करेगा वह गरीब हो जाएगा। पैर हमेशा चादर के बाहर फैलाओ ताकि चादर को बड़ा करने का विचार पैदा हो। पैर बाहर फैलाओ चादर के ताकि पैरों में ठंड लगे और तुम्हें खयाल आए कि चादर बड़ी करनी है। अगर तुम पैर सिकोड़ते गए तो तुम भीतर सिकुड़ते चले जाओगे। और चादर रोज छोटी होती चली जाएगी, क्योंकि तुम रोज भीतर बड़े हो रहे हो।
तो मुल्क बड़ा होता जा रहा है चादर छोटी की छोटी है। और मुल्क की दृष्टि यह है कि अपने पैर और अंदर कर लो, और अंदर कर लो। अगर पांच रोटी खाने से नहीं चलता तो चार ही रोटी खा लो, तीन ही रोटी खा लो, दो ही रोटी खा लो। सोमवार को उपवास कर लो। ऐसी बेवकूफी की बातें! नहीं, इससे नहीं होगा।
अगर मुल्क को समृद्धिशाली बनाना है और एक समृद्धशाली देश खड़ा करना है तो हमें पूरी हमारी गरीबी की जो चिंतना है जो फिलासफी आॅफ पार्वटी है, उसको बिलकुल आग लगा देनी पड़ेगी। उसको बिलकुल आग लगा देनी पड़ेगी। उससे काम नहीं चलेगा। जो मुल्क गरीबी की भाषा में सोचता है वह गरीब हो जाता है। समृद्धि की भाषा में सोचेगा तो समृद्ध हो सकता है। तो ये सारे मसलों पर मैं तुमसे बात करना चाहता हूं। तुम्हारे लिए सवाल मैं आज आत्मा का न इतना बड़ा है न परमात्मा का न इतना बड़ा है। तुम्हारे लिए सवाल आज जिंदगी कैसे सुंदर और सुखद बन सके। इस पृथ्वी को हम कैसे स्वर्ग बना सकें वह सवाल है। लेकिन उसकी बात तो तभी हो सकेगी जब तुम्हारे और मेरे बीच एक संबंध बन सके। एक निकटता बन सके तो उसके लिए मैंने बुलाया है। तुम ये ध्यान रखो कि मैं तुम्हारे लिए हूं। और जिस दिन तुम्हें जरूरत पड़े उस दिन मैं तुम्हारे सारे मसलों पर उत्सुक हूं कि तुमसे बात करूं, तुम्हें तुम्हारे मन में खयाल पैदा करूं और एक क्रांति की आग तुम्हारे भीतर जले तो हम पंद्रह-बीस वर्षों में इतना कर सकते हैं जिसका कोई हिसाब नहीं।
किसी भी मुल्क की जिंदगी बीस वर्षों में बदली जा सकती है क्योंकि बीस वर्षों में पुरानी पीढ़ी चली जाती है और नई पीढ़ी आ जाती है। एक पीढ़ी की उम्र बीस वर्ष होती है, इससे ज्यादा नहीं होती। तो अगर हम नये बच्चों को कोई खयाल सिखा सकें तो बीस वर्ष के भीतर वे बच्चे ताकत में आ जाएंगे और वे बच्चे कुछ कर सकेंगे।
इस समय को खो नहीं देना है। इसलिए तुम अपने गांव में जाओ तो वहां फिकर करो और हमेशा यह ध्यान रखो कि मेरी सारी शक्तियां तुम्हारे लिए हैं। मुझे न आत्मा में उतनी उत्सुकता है, न परमात्मा में उतनी उत्सुकता है। जितनी उत्सुकता मुझे युवकों में है और देश के भविष्य में है।
तो यह तुम्हारे खयाल में आ जाए और तुम्हें लगे कि तुम मुझसे निकटता बना सको, इसलिए थोड़ी देर के लिए यहां बुला लिया। अब तो चलना पड़ेगा वहां।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें