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बुधवार, 29 अगस्त 2018

धर्म साधना के सूत्र-(प्रवचन-05)

पांचवा-प्रवचन-(मनुष्य के अज्ञान का आधार)

आश्चर्य की बात है कि मनुष्य अपने अनुभव से कुछ भी नहीं सीखता है। और जो आश्चर्य की बात है वही मनुष्य के अज्ञान का भी आधार है। मनुष्य अनुभव से कुछ भी नहीं सीखता है।
एक छोटी सी कहानी से मैं अपनी बात समझाना चाहूं।
मैंने सुना है, एक आदमी के घर में एक अंधेरी रात एक चोर घुस गया। उसकी पत्नी की नींद खुली और उसने अपने पति को कहा, मालूम होता है घर में कोई चोर घुस गया है। उस पति ने अपने बिस्तर पर से ही पड़े-पड़े पूछा, कौन है? उस चोर ने कहा, कोई भी नहीं। वह पति वापस सो गया। रात चोरी हो गई। सुबह उसकी पत्नी ने कहा कि चोरी हो गई और मैंने आपको कहा था! तो पति ने कहा, मैंने पूछा था, अपने ही कानों से सुना कि कोई भी नहीं है, इसलिए मैं वापस सो गया।

ऐसे घर में चोरी दुबारा होगी। स्वाभाविक है। जिस घर में चोर की कही गई बात..कि कोई भी नहीं है..मान ली गई हो, उस घर में चोरी दुबारा हो, यह बिल्कुल ही अनिवार्य है। पंद्रह-बीस दिन बाद चोर वापस घुसा। पत्नी ने कहा, अब पूछने की जरूरत नहीं है, सीधा चोर को पकड़ ही लें।

उस आदमी ने उठ कर चोर को पकड़ लिया और उसे पुलिस थाने की तरफ ले चला। आधे रास्ते पर उस चोर ने कहा, माफ करिए, लेकिन मैं अपने जूते आपके घर भूल आया हूं। तो उस आदमी ने कहा कि बड़े नासमझ हो! अब मैं वापस इतनी दूर लौट कर नहीं जाऊंगा। तो मैं यहीं रुकता हूं, तुम वापस चले जाओ और अपने जूते ले आओ। वह आदमी वहीं रुक गया, चोर वापस गया, लौटने का तो कोई सवाल नहीं था, वह लौटा नहीं।
महीने भर बाद फिर वह चोर उस आदमी के घर में घुसा। अब की बार उस आदमी ने उसे फिर पकड़ लिया और कहा कि मैं थाने ले चलता हूं, अब अपनी कोई चीज यहां भूल मत जाना, अपने साथ ले लो, पिछली बार तुम धोखा देकर भाग गए थे। उस आदमी ने कहा कि नहीं, मैं कुछ भी नहीं भूल रहा हूं।
आधे रास्ते पर जाकर उसने कहा कि लेकिन माफ करिए, मेरे समझने में गलती हो गई, मैं अपना कंबल आपके घर ही छोड़ आया हूं। उस आदमी ने कहा, तुम बड़े नासमझ मालूम पड़ते हो! अब मैं पुरानी भूल नहीं कर सकता। अब तुम यहां रुको और मैं तुम्हारा कंबल लेने घर जाता हूं।
इस आदमी पर हमें हंसी आती है, लेकिन सारे आदमी इसी भांति के आदमी हैं। ...

(कुछ लोग प्रवचन में विघ्न डालने के इरादे से पास में ही लाउडस्पीकर लगा कर खूब जोर-जोर से कीर्तन करने के बहाने शोरगुल मचाने लगते हैं। अंततः प्रवचन बीच में ही रोक देना पड़ता है। ओशो को सुनने आए लोगों के सामने प्रबंधक कमेटी के एक सदस्य अपना अफसोस इन शब्दों में व्यक्त करते हैं: सानूं बड़ी खुशी है कि आचार्य जी ऐथे तशरीफ लाए हन और अपने विचार आपदे सामने प्रकट कर रहे हन। इसदे नाल ही सानूं इस गल दा वी अफसोस है कि साडे ओ गवांढी, जो सदा ही साडे नाल गवांढ दे तौर ते रहे हन और साडे नाल प्रेम वी करदे रहे हन, उन्हांने इतनी संगत दा कोई ख्याल नहीं कीता। और ओ चाहुंदे हन कि जो विचार हन, ओ न सुनाए जा सकन। सानूं एओ ही विनंती करनी चाहुंदे हां कि अगर किसी सज्जन नूं कोई एतराज हौवे, आचार्य जी दे विचारां दे मुतल्लक, तां ओ अपना एक वखरा स्टेज लाके वी कर सकदे हन। ए इक नवीं भाजी जेड़ी पाई जा रही है, ए किसी तरह भी सुशोभित नहीं, शोभनीय नहीं। मैं उन्हां मंदिर दे मानयोग पुजारी सज्जना और प्रबंधका दी सेवा वीच बड़ी अधीनगी सहित विनंती करांगा कि कल स्वामी जी ने जो सेवा दे मुतल्लक उथे लेक्चर कीता सी, उन्हानूं वी बड़े प्रेम नाल श्रवण कीता सी। और उसतों अलावा कल रात नूं जो प्रभु-भक्ति दे मुतल्लक आपदे सामने कितना विदुरता भरया विचार ऐथे प्रकट कीता है। असी ए नहीं चाहुंदे कि ऐथे किसी किस्म दी खलबली पवे। और न असी ए चाहुंदे हां कि ऐथे किसी किस्म दे मजाक दा मजबून बनिए। इस वास्ते जे साडे पराह ए नहीं मुनासिब समझ दे, तां असी इस जो सभा है एनूं समापित कर दवांगे; ते कल तों गुरुद्वारा मंजरी साहिब असी दीवान लाऊंन दी इजाजत दे दवांगे।
तो मेरा कहन दा मकसद ए है कि अगर ओ धर्म दे खिलाफ, देश दे खिलाफ कोई गल करन, तां मेरा ख्याल है कि सब तो पहलां ऐथे भाटिया साहिब बैठे हन, सरदार करतार सिंह जी एम एल ए बैठे हन और बड़े प्रतिष्ठित सज्जन बैठे हन, असी खुद एतराज कर सकदे हां। जद ओ प्रभु-भक्ति दे मुतल्लक, देश-भक्ति दे मुतल्लक अपने विचार दस रहे हन, तां साडा ए फर्ज बणदा है कि असी बड़े प्रेम नाल सुनिए। एस लई मैं अपने मानयोग उन्हां पुजारी सज्जना नूं और प्रबंधका नूं सेवा विच विनंती करांगा, नम्रता सहित। ते ओ कृपा करके साडी विनंती स्वीकार करन। जे ना करनगे, होंदा हे जलसा तां जरूर करनगे ही, जिस तरह होएगा और बाकी जे ना होया ते फिर कल मंजरी साहिब या असी होर कोई योग्य जगह जेहड़ी है लब के दस दवांगे। )

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