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शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

नये मनुष्य का धर्म-(प्रवचन-03)

तीसरा-प्रवचन-(ओशो)

दमन नहीं, समझ पैदा करें

मेरे प्रिय आत्मन्!
मनुष्य के मन का एक अदभुत नियम है। उस नियम को न समझने के कारण मनुष्यता आज तक अत्यंत परेशानी में रही। वह नियम यह है कि मन को जिस ओर जाने से रोकें, मन उसी ओर जाना शुरू हो जाता है। मन को जिस बात का निषेध करें, मन उसी बात में आकर्षित हो जाता है। मन से जिस बात के लिए लड़ें, मन उसी बात से हारने के लिए मजबूर हो जाता है। लाॅ आॅफ रिवर्स इफेक्ट। मन के जगत में उलटे परिणामों का नाम है। इस नियम को बहुत समझना जरूरी है।
फ्रायड अपनी पत्नी के साथ एक दिन बगीचे में घूमने गया था। छोटा बेटा उसके साथ था। वे दोनों बगीचे में बैठ कर, घूम कर बातचीत करते रहे। और जब बगीचा बंद होने का समय आ गया, तो दोनों दरवाजे पर आए, तब उन्हें
खयाल आया कि उनका बेटा बहुत देर से उनके साथ नहीं है। फ्रायड की पत्नी तो घबड़ा गई। द्वार बंद हो रहा था, माली दरवाजे बंद कर रहे थे। बड़ा बगीचा था। बेटा कहां गया? वह घबड़ा कर कहने लगी, मैं कहां खोजंू?


फ्रायड ने कहाः पहले मैं तुझसे एक बात पूछूं? तूने अपनेे बेटे को कहीं जाने से मना तो नहीं किया? अगर मना किया गया, और तेेरे बेटे में थोड़ी भी बुद्धि हो तो सौ में निन्यानबे मौके पर वह वहीं होना चाहिए जहां मना किया था।
तो उसकी पत्नी ने कहाः हां, मैंने कहा था, फव्वारे के पास मत जाना।
फ्रायड ने कहाः चलो, अगर बेटा तेरा बुद्धिहीन है, तो और कहीं भी हो सकता है; अगर थोड़ी बुद्धि है, तो फव्वारे पर मिलेगा। वे दोनों गए। और बेटा फव्वारे पर पैर लटका कर पानी से खिलवाड़ कर रहा है।
तो उसकी पत्नी ने कहाः बहुत हैरान हो गई। उसने कहाः तुमने कैसे जान लिया कि बेटा फव्वारे पर है?
फ्रायड ने कहाः यह मन का सीधा सा नियम हैः जहां जाने को मना करो, मन वहीं चला जाता है। और तेरा बेटा ही वहीं नहीं चला गया, सारी मनुष्यता ही वहां चली गई है जहां मनुष्य को जाने से रोक दिया गया था।
लेकिन इस छोटे से सूत्र को अब तक नहीं समझा जा सका है। और वे ही सारे लोग जिन्हें हम भला आदमी कहते हैं, सज्जन कहते हैं, साधु-संत कहते हैं, वे ही लोग मनुष्य को बुराई में ढकलने का कारण बने हैं, यह भी नहीं समझा जा सका है। जिनको हमने महात्मा कहा है वे ही मनुष्य की ठीक आत्मा के ऊपर लदे हुए बैठे हैं, इस बात को नहीं समझा जा सका है। इस बात को समझना अत्यंत उपादेय है।
अगर आपके इस पैसेज के बाहर एक तख्ती लगा दी जाए, जिस पर लिखा हो कि भीतर झांकना मना है, तो आप समझते हैं कि अहमदाबाद में ऐसे शरीफ आदमी मिल जाएंगे जो बिना झांके निकल जाएं। हां, कुछ मिल सकते हैं। कुछ शरीफ आदमी मिल सकते हैं जो दूसरी तरफ आंख करके निकल जाएं। लेकिन आंख दूसरी तरफ होगी, मन तख्ती की तरफ ही होगा।
सीधी आंखों से ही चीजें देखी नहीं जाती हैं, तिरछी आंखों से भी चीजें देखी जाती हैं। और सीधी आंखों से देखे जाने पर कुछ चीजों से मुक्ति हो जाती है। तिरछी आंखों से देखे जाने पर चीजें बहुत पीछा करती हैं, उनसे मुक्त होना असंभव हो जाता है।
कुछ लोग हो सकता है भय के कारण भी न देखे तख्ती की ओर, क्योंकि हमारा जीवन और सज्जनता दूसरों के भय पर ही खड़ी है, रिस्पेक्टिबिलिटी के कारण नहीं। दूसरे लोग यह देख रहे हैं कि सज्जन आदमी तख्ती के पीछे झांक रहा है, जहां लिखा है कि झांकना मना है, तो उस भय से कुछ लोग बिना झांके निकल जाएंगे। लेकिन वे बड़ी मुश्किल में पड़ जाएंगे। दुकान पर पहंुच जाएंगे, मंदिर में पहुुंच जाएंगे, दफ्तर में पहंुच जाएंगे, लेकिन मन तो उनका तख्ती के आस-पास ही चक्कर काटता रहेगा। दिन मुश्किल हो जाएगा, जीना मुश्किल हो जाएगा, वह तख्ती बार-बार बुलाने लगेगी कि आओ और झांको। सांझ होते-होते, अंधेरा घिरते-घिरते अधिक से अधिक आदमी किसी न किसी बहाने से इस रास्ते से निकलेंगे। बहाना कोई भी हो सकता है, रास्ता यही होगा। लेकिन यह भी हो सकता है कि कुछ और भी लोग...तो एक बात निश्चित है कि आप सपने में अपनी पत्नी के पास जरूर आएंगे। आना ही पड़ेगा, मन के कुछ शाश्वत नियम हैं। मनुष्य को जिन बातों से रोका गया है मनुष्य उन्हीं बातों में गिर गया है। और जो सबसे बड़ा दुर्भाग्य मनुष्य-जाति का हुआ है, वह है, सेक्स के संबंध में। सेक्स के संबंध में मनुष्य के मन में इतनी लिपापोती की गई है। उस तख्ती पर इतने जोर से लिखा गया है कि न झांकना, कि सारी मनुष्यता उसी तख्ती में झांकती है और नष्ट हो जाती है।
सेक्स के ऊपर इतने टैबू, इतने रोक, सेक्स के संबंध में इतनी अनर्गल, सेक्स के संबंध में इतना गलत प्रचार किया है कि मनुष्य के मन में सेक्स के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं बचा है।
मनुष्य को सेक्सुअल बनाने के मनुष्य को कामुक बनाने मेें साधुओं-संतों का हाथ है, और जिस दिन मनुष्य-जाति समझेगी, साधु-संतों की लंबी कतार इतनी बड़ी अपराधी सिद्ध होने वाली है जिसका कोई हिसाब नहीं। ये खतरनाक लोग मनुष्य को सेक्सुअल बनाने का...सेक्स तो स्वाभाविक चीज है।
सेक्सुअलिटी मनुष्य की इनबार्न है। काम तो स्वाभाविक है। सारे तत्वों में काम है, लेकिन कामुकता सिर्फ मनुष्य में है। यह मनुष्य में कैसे कामुकता पैदा होे गई? यह कामुकता पैदा की गई है। यह कामुकता मनुष्य के अचेतन में पैदा की गई है। मनुष्य को रोका गया है, वर्जित किया गया है, इनकार किया गया है। जिस चीज को हम वर्जित करते हैं, बुरा कहते हैं, विरोध करते हैं, नंगा करते हैं, उन्हें पता नहीं वह उसमें रस पैदा करते हैं। रस पैदा करने की तरकीब यही है।
एक फिल्म को अगर लिख दोः सिर्फ व्यस्कों के लिए; सिर्फ उनके लिए जिनकी उम्र अट्ठारह वर्ष से ऊपर हैं। और अट्ठारह वर्ष से छोटे बच्चे दा.ढ़ी-मूंछ लगा कर फिल्म में आएंगे।
एक पत्रिका छपती हैः सिर्फ पुरुषों के लिए, उस पत्रिका को सिवाय स्त्रियों के और कोई नहीं पढ़ती। एक पत्रिका छपती हैः सिर्फ स्त्रियों के लिए; जिस पत्रिका पर लिखा हैः सिर्फ स्त्रियों के लिए, उसे सिर्फ पुरुष पढ़ेंगे। क्यों? सिर्फ हमेशा आमंत्रण देता है। सेक्स के संबंध में मनुष्य का चित्त बिलकुल परभौतिक विकृत हो गया है। और विकृत हो जाने के कारण क्या हैं? कारण है सेक्स के संबंध में उठाई गई दीवाल। सेक्स के संबंध में आदमी को अज्ञान में रखने की चेष्टा, सेक्स के संबंध में प्रथम दिन से ही भयभीत करने की कोशिश।
न कोई बाप अपने बेटे को सेक्स के संबंध में बेटे को कुछ कहता है, न कोई मां अपनी बेटी को सेक्स के संबंध में कुछ कहती है, न गुरु अपने शिष्य को सेक्स के संदर्भ में कुछ कहता है। और अगर बच्चे पूछे तो सब तरफ डंडा उठ जाता है; चुप रहो, ये बातें तुम्हारे पूछने की नहीं हैं।
बच्चों की जिज्ञासा को विकृत क्यों करते हो? फिर बच्चे पूछते हैं, खोज-बीन करते हैं, गलत रास्ते पर खोज-बीन करते हैं, गलत जानकारी एकत्र करते हैं, और उसी गलत जानकारी के संग वे जिंदगी भर जीते हैं।
लेकिन सत्य के संबंध में सब तरफ आंख बंद हैं।
एक बहुत बड़ा विचारक और लेखक अनातोले काट मरण-शय्या पर पड़ा हुआ था। एक मित्र उससे मिलने गया था। अनातोले से पूछने लगा, उसने पूछा, अनातोले तुम्हारे जीवन की अंतिम घड़ी निकट है, मैं तुमसे पूछता हूं कि जिंदगी में सबसे महत्वपूर्ण तुमने क्या पाया? अनातोले ने कहाः सबसे ज्यादा महत्पूर्ण? थोड़ा पास आ जाओ, कान में ही कह सकता हंू। वह आदमी साफ चला जा रहा है बिना कुछ बताए। मित्र अनातोले के पास कान ले गया, अनातोले बोला कुछ भी नहीं, अनातोले ने कहा, तुम समझ गए, बोलने की कुछ जरूरत नहीं है।
अनातोले बिना बोले कुछ कह दिया, बिना बोले उसने वही कह दिया जिसके संबंध में हमारी दुनिया मानती थी, चुप हो गया। लेकिन चुप होने में कोई तथ्य बदल नहीं जाते। और तथ्य को समझ गए तो बोलने की जरूरत नहीं है। तथ्य होने चाहिए प्रकाशित, तथ्य होने चाहिए ज्ञानेय।
मनुष्य को कामुक बनाने की जो रामबाण औषधि है वह यह है कि काम को सेक्स को मनुष्य के ज्ञान में मत आने दो, उसे जानने मत दो, आदमी नहीं जान पाता क्योंकि अंधेरे में काम उसके प्राणों को घेरता है। और दूसरी तरकीब यह है कि काम प्राणों को घेरे तो उसको दबाओ, उसका दमन करो, सप्रेस करो। सारी दुनिया में सप्रेशन बढ़ रही है। क्योंकि काम से मुक्त नहीं हो पाया।
पश्चिम में एक संस्कृति का जन्म हुआ, एंद्रिक संस्कृति। पश्चिम में दो संस्कृतियों के केंद्र में एक संस्कृति है, भोग संस्कृति है। हमारे गुरु बड़े खुश होंगे यह बात जान कर कि कामदेव पश्चिम की संस्कृति को अंगीकृत करता है कि सब हमारी संस्कृति इंद्रियोें के ऊपर है। हमारी संस्कृति भी इंद्रियों के ऊपर नहीं हैं। फर्क थोड़ा सा है। कामदेव को शायद पता नहीं होगा, वह पश्चिम की संस्कृति को पता है। पश्चिम की संस्कृति है ऐंद्रिक, पूरब की संस्कृति है पाखंडी। भीतर से ऐंद्रियता है और ऊपर से साधुता है। ऐंद्रियता का उलटा। अंदर पाखंड है, भीतर चोर है, भीतर सेक्स है, ऊपर ब्रह्मचर्य की बात हो रही है। संयमी जीवन इस तरह की किताबें, भीतर वही है जो पश्चिम में। ऊपर से एक धोखा। और मेरा मानना है, ऐंद्रिक व्यक्ति तो किसी दिन इंद्रियों से मुक्त हो भी सकता है, क्योंकि इंद्रियों से परिचित होने के बाद इंद्रियों के भीतर रह जाने का कोई भी कारण नहीं रह जाता। लेकिन पाखंडी आदमी कभी इंद्रियों से मुक्त नहीं हो पाता। क्योंकि पाखंडी आदमी ऐसे घोर चक्र में पड़ जाता है कि सबको धोखा देकर खुद को धोखा देेेने के बाद...दूसरा अगर आपको धोखा दे रहा है। अब थोड़े बहुत दिन...धोखे को पहचान जाएंगे। क्योंकि दूसरा धोखा दे रहा है। लेकिन आपको धोखा दे तो इस जगत में दूसरे को पहचानना बहुत मुश्किल, आप खुद ही धोखा दे रहे हैं, दूसरा वहां कोई है नहीं।
पाखंडी आदमी मनुष्य-जाति का सबसे विकृत रूप है। लेकिन दमन करने वाली नीति पाखंडी आदमी को सबसे ज्यादा सम्मान देती है। पाखंडी आदमी का मतलब हैः भीतर से कुछ और है। लेकिन भीतर उसे दबाया गया है, सप्रेस किया गया है। बाहर से वह कुछ और है। वह डरा हुआ आदमी, इसके जिंदगी के दिखाने के रास्ते और, जीने के रास्ते कुछ और, वह चलता और रास्तों पर है बताता और रास्तों पर है। उसके मकान के सामने के दरवाजे दूसरी तरफ मकान में पीछे के भी दरवाजे हैं।
मैंने सुना है, मंदिर में शेक्सपीयर का नाटक है। उस नाटक को लाखों लोग देख रहे थे। सारे गांव में उसी नाटक की चर्चा थी। उस गांव के लोग उस गांव का जो पादरी, विशप, आर्चविशप था, उसके पास भी जाकर कहते थे, अहा, इतना सुंदर नाटक कभी देखा नहीं। लार टपक जाती थी पादरी की। पादरी भी आखिर आदमी है। लेकिन लार दिखा नहीं सकता। पादरी की नाटक देखने के लिए टपकती है। क्योंकि पादरी तो समझा कर कहता नाटक नरक जाने का रास्ता है। तो पादरी चिल्ला कर कहता, नरक में सड़ोगे, क्या रखा है इस नाटक में, पूरी जिंदगी एक नाटक है, कोई और नाटक देखो। लेकिन लोग कहते, आप ठीक कहते हैं। लेकिन नाटक इतना बढ़िया है कि नरक जाएं तो जाएं, नाटक देखेंगे। पादरी के मन में और लालसा पैदा होती कि हद्द हो गई, नाटक में जरूर कोई खूबियां होगीं जो लोग नरक जाने को तैयार हैं। लेकिन नाटक देखना नहीं छोड़ना चाहते, कितने दिन पादरी ने समझाया नाटक मत देखो, मगर देखते हैं। लेकिन नरक जाने को फिर भी तैयार हैं। नाटक छोड़ने को तैयार नहीं। नाटक में कुछ मामला ज्यादा है पुरोहित से। उससे ज्यादा ताकतवर है। नरक के भय से ज्यादा। और पीछे लिखा लाल स्याही से एक बात आपको सूचित कर दें, दरवाजा तो है पीछे का, आप खुशी से आइए।
आखरी दिन आ गया और सारा लंदन नाटक की तरफ उमड़ने लगा, तब पुरोहित को भी अपने को सम्हालना मुश्किल हो गया। उसने एक चिठ्ठी लिखी नाटक के मैनेजर को। मैं एक छोटी सी प्रार्थना करना चाहता हंू, मैं भी देखना चाहता हंूू नाटक। क्या आप के थियेटर में पीछे का कोई दरवाजा नहीं है? जब अंधेरा होगा मैं पीछे के दरवाजे से आ जाऊंगा, मैं नाटक देख सकंू लेकिन लोग मुझे न देख सकें।
उस थिएटर के मैनेजर ने जो पत्र लिखा वह अदभुत था। उसने लिखा कि महामहीम, पुज्यवर, पीछे दरवाजा है। हर नगर में जहां हम थिएटर ले जाते हैं वहां पीछे भी दरवाजा रखना ही पड़ता है। क्योंकि सज्जन कभी सामने के दरवाजे से नहीं आते। और सज्जनों के लिए विशेष सुविधा जुटाना हमारा कर्तव्य है। दरवाजा है। आपका स्वागत है, आप आइए, कोई आपको नहीं देख सकेगा। पर भगवान देख सकेगा, यह हम नहीं जानते। और यह भी हो सकता है भगवान न हो। और जहां तक पुरोहितों का संबंध है पुरोहित भलीभांति जानते हैं भगवान नहीं है। पुरोहित और दुनिया में कोई भी जानता हो कि भगवान नहीं है। और कोई भी जान सकता है भगवान है। पुरोहित नहीं जान सकता। क्योंकि जो आदमी भगवान के नाम का धंधा करता है वह आदमी भगवान के सत्य की तरफ कभी उन्मुख नहीं होगा, उसे धंधे से प्रयोजन है, भगवान से कोई भी प्रयोजन नहीं। तो उसने लिखा हो सकता है, आप जानते हैं कि भगवान नहीं है। तो भी एक बात है, और कोई तो नहीं जान सकेगा लेकिन आप तो जानते ही रहेंगे कि पीछे के दरवाजे से आए थे।
पता नहीं वह पुरोहित देखने आया की नहीं? वह जरूर आया होगा। यह पीछे का दरवाजा सोचता है यह आदमी पाखंडी है, वह आदमी हिपोक्रेट है। आदमी का सामान्य स्वस्थ होना ठीक है, क्योंकि सामान्य व्यक्तित्व से कभी हम ऊपर उठ सकते हैं।...
लेकिन आदमी का पाखंडी हो जाना वह बहुत विकृत चक्कर है। फिर उससे ऊपर हम कभी नहीं उठ सकते। अब यह हमारा देश है, इस देश में हम कितनी बातें करते हैं ब्रह्मचर्य की, लेकिन एक आदमी की खोपड़ी खोदी जाए तो सेक्स के सिवाय वहां कुछ भी नहीं मिलेगा। सत्तर साल, अस्सी साल के बूढ़े आदमी को भी सेक्स से मुक्ति नहीं होती। अस्सी साल का बूढ़ा आदमी अगर स्त्री को देेखे तो उसकी आंखें उसके वस्त्रों के भीतर प्रवेश करती हैं।
यह क्या स्थिति है? साधु-संन्यासियों की किताबें पढ़िए, उनके प्रवचन सुनिए, स्त्री को नरक का द्वार बताने के बहाने स्त्री के अंग-अंग की जैसी नग्न चर्चा की जाती है फिल्म अभिनेता भी नहीं कर सकते।
स्त्री का हिसाब साधु-संन्यासी रखते हैं। यह रस अदभुत है। यह रस इसलिए है कि स्त्री को नरक बताने का कारण कहीं यह तो नहीं है कि भीतर स्त्री पर बड़ा क्रोध है। और भीतर स्त्री से बड़ी लड़ाई चल रही है। और भीतर स्त्री पीछा कर रही है। सच बात यह है, जो आदमी भी जीवन के किन्हीं तथ्यों से भागेगा वह तथ्य उसका पीछा करेगा। अगर कोई स्त्री पुरुष से भागेगी तो जीवन भर पुरुष उसका पीछा करेगा। अगर कोई पुरुष स्त्री से भागेगा तो जीवन भर स्त्री उसका पीछा करेगी।
मैंने सुना है, कोरिया में एक नदी के पास एक संध्या दो भिक्षु यात्रा कर रहे थे। एक बूढ़ा भिक्षु उसके पीछे उसका एक जवान साथी। तो जैसे ही नदी के किनारे पहंुचे, पहाड़ी नदी है, तेज धार है, एक युवा लड़की किनारे खड़ी है, शायद उसे भी नदी पार करनी हो, लेकिन अनजान डगर है, घबड़ा रही है। सांझ ढलने को है, सूरज उतरने को है, बूढ़ा भिक्षु आगे है, एक क्षण उसके मन में खयाल आया कि लड़की को हाथ का सहारा देकर नदी पार करा दे। जैसे उसके मन में विस्फोट हो गया, जैसे उसके भीतर तीस साल से दबी हुई सारी वासना रंगीन चित्रों में उसके सारे चित्त पर फैल गई, जैसे सारा चित्त एक रंगमंच हो गया हो, उस पर एक आंधी चलने लगी। घबड़ा गया, यह क्या हुआ, यह क्या हो गया, यह मैंने सोचा ही क्यों कि उसका हाथ अपने हाथ में लंू? मैंने यह पाप की बात सोची ही क्यों? आंख बंद करके नदी पार करने लगा। आंख तो बंद थी, लेकिन आपको पता होगा कि कई मौके पर आपने भी आंख बंद की होगी। खुली आंख से स्त्री इतनी सुंदर कभी नहीं होती बंद आंख में जितनी सुंदर हो जाती है। क्योंकि खुली आंख से स्त्री आकृत शरीर है। सिर्फ आकृत शरीर है। खुली आंख से स्त्री चलती हड्डी-मांस-मज्जा है, लेकिन बंद आंख से काया सोने की हो जाती है, स्वप्न की हो जाती है। झिलमिल शुरू हो जाती है। स्वप्न में जो दिखाई पड़ता है वैसा संुंदर व्यक्ति कहीं नहीं है। स्वप्न में न तो काया ढलती, न वह गलती, न बीमार पड़ती।
जिस स्त्री को पुरुष प्रेम करने लगता है या कोई स्त्री किसी पुरुष को प्रेम करने लगती है, तब असली पुरुष और असली स्त्री दिखाई नहीं पड़ते, उनके भीतर जो स्वप्न निर्मित हो गया है। दुनिया की समझ में नहीं आता कि यह जवान लड़की के पीछे पागल क्यों हो गया है? लड़की बिलकुल साधारण है। तुम्हारे लिए साधारण होगी। उसका स्वप्न लड़की पर सवार हो गया है। उसे अपना सपना दिखाई दे रहा है। लड़की दिखाई नहीं दे रही है।
वह बूढ़ा भिक्षु जैसे ही आंख बंद किया मुश्किल में पड़ गया। आंख खुली थी तब तक भी एक साहस था, जरूरत पड़ी तो आंख बंद कर लेेंगे, अब आंख बंद करने के बाद तो कोई उपाय नहीं बचता कि अब क्या करे। तेजी से चल रहा है। घबड़ा गया है। श्वास तेज चल रही है। स्त्री पीछा कर रही है, वह स्त्री पीछा कर रही है।
उस स्त्री को पता भी नहीं होगा कि यह बूढ़ा उसकी वजह से परेशान हो रहा है। लेकिन एक भीतर स्त्री जग गई है। वह दबाई हुई स्त्री है। जो दबाई है, दबा रखी है तीस सालों से, वह जग गई है उस लड़की का बहाना लेकर।
पुरुष के चित्त में भीतर स्त्री है, स्त्री के चित्त में भीतर पुरुष है। पुरुष का चेतन मन पुरुष का है, अचेतन मन में स्त्री छिपी है। स्त्री का चेतन मन स्त्री का है, अचेतन, अनकांशसनेस में पुरुष छिपा है। बाहर के पुरुष को देख कर स्त्री आकर्षित होती है, क्योंकि उसके भीतर का पुरुष जग जाता है, वही पुरुष उसे बाहर दिखाई पड़ने लगता है। और स्त्री अगर ज्यादा दिन पुरुष के साथ रहती है तो उसे फर्क दिखाई पड़ने लगता है। और स्त्री अगर ज्यादा दिन पुरुष के साथ रहती है तो उसे फर्क दिखाई पड़ने लगता है। तब तकलीफ शुरू हो जाती है। इसलिए जब तक प्रेम चलता है, तब तक ठीक है, विवाह हुआ और तकलीफ शुरू हो गई। क्योंकि वह जो भीतर का पुरुष था उससे...शुरू हो गया, तालमेल टूटने लगा। तब उसे पता चलता है यह आदमी मेरी आकांक्षा का आदमी नहीं था, यह स्त्री मेरी आकांक्षा की स्त्री नहीं थी। तब एक इमेज है भीतर जिसकी तलाश चल रही। और अगर उस इमेज को किसी ने जोर से दबा लिया तो वह इमेज, वह प्रतीक नष्ट नहीं होती दबाने से और बढ़ जाती है। इतना जोर पकड़ लेती है, जिस दिन वह फूटती है, सारे चित्त में विस्फोट हो जाता।
बुढ़ा बहुत घबड़ा गया। किसी तरह नदी पार की। निकल कर भागा। लेकिन जितनी जोर से भाग रहा है उतना ही दबाव बढ़ता; क्योंकि भाग रहा है दबाव के कारण। जोर से भाग रहा है, रुकता तक नहीं। लेकिन इससे क्या लाभ कि मेेरे पीछे जवान साथी भी आ रहा है, कहीं उसके दिमाग में भी यही गलत सवाल न आ जाए। लड़की का हाथ पकड़ ले कहीं। बूढ़े को हमेशा खयाल आता है जवानों का, कहीं उससे भी वही गलती न हो जाए जो मुझसे हुई। जवान भी गलती करने के हकदार हैं और आप गलती कर चुके हैं। कृपा करें, ेउनको भी करने दें। आप भी बिना गलती किए नहीं रहे। आपके बाप ने भी चाहा था गलती न हो, उनके बाप ने भी चाहा था गलती न हो, लेकिन गलती होती रही। पीछे लौट-लौट कर देखा गलती तो चुकी है। वह जवान लड़की को कंधे पर बिठाए ला रहा था। यह तो हद्द हो गई। हाथ से छूने के खयाल से मुसीबत हो गई, तो कंधे पर बिठाने से क्या बिगड़ गया होगा। बूढ़ा तो पागल हो गया। यह क्या हो रहा है?
नदी के इस पार भिक्षु ने लड़की को कंधे से उतार दिया, फिर अपने रास्ते पर चल पड़ा। दो मील पार वे आश्रम के द्वार पर पहंुचे, लेकिन बूढ़ा बोला नहीं। भारी क्रोध है, और क्रोध के कारण शायद ईष्र्या भी है। ईष्र्या भी है जरूर, नहीं तो क्रोध का जन्म नहीं हो सकता, यह ध्यान रखना आप। ईष्र्या भी है। उस लड़के ने उस युवती को कंधे पर बिठाया। असंभव है उस बूढ़े को खयाल न आया हो? मैं भी कंधे पर बिठा सकता था। लेकिन चूक हो गई। फिर क्रोध भी है कि मैं जिस भूल से बचा उसने वह भूल कर दी। फिर यह भी एक खयाल है गलत हुआ। जाकर सीढ़ी पर ख.ड़े होकर उसने युवा भिक्षु से कहा, सुनो, मैं गुरु से जाकर बिना कहे नहीं रह सकता, तुमने लड़की को कंधे पर क्यों बिठाया?
उस युवक ने कहाः कंधे पर उठाया लड़की बहुत देर की बात हो गई। उतार आया उस लड़की को नदी के किनारे, बात खत्म हो गई, आप अभी भी ढो रहे हैं क्या? आपने तो कंधे पर बिठाया भी नहीं। कंधे पर बिना लिए भी ढोना हो सकता है, कंधे पर लेकर भी ढोना हो सकता है। और मानना है, जो कंधे पर लेता वह किसी दिन मुक्त भी हो सकता है। और जो कंधे पर लेने से रुक जाए वह कभी भी मुक्त नहीं होता। जीवन के नियम ऐसे नहीं हैं।
सेक्स हर आदमी के कंधे पर चढ़ गया है। और आदमी के प्राणों पर छा गया है। और बच्चे बच्चे को हम सेक्स सिखा रहे हैं, सेक्सुअलिटी सिखा रहे हैं--मौन रह कर, इनकार करके, हम बच्चे को मुक्त होना नहीं सिखा रहे। जितना ब्रह्मचर्य का पाठ सिखाएंगे बच्चे उतना...
आज हिंदुस्तान में स्त्री का सड़क से निकलना मुश्किल है। आज लड़की का कालेज में पढ़ने जाना मुश्किल है। कहीं...तो कहीं धक्के लगेंगे, कहीं पत्थर लग जाएंगे। और वह किसी से कह भी नहीं सकती। क्योंकि स्वीकृति हो गया है ऐसा होता है। यह ऐसा होने का कारण है दमन। यह होने का कारण है सेक्स के संबंध में अज्ञान, यह सब होने का कारण है मनुष्य के मन को गलत ढंग से दबाने की चेष्टा की जा रही है। मनुष्य के मन को मुक्त होना नहीं सिखा रहे हैं।
जाने लें जिस बात को आप भीतर दबा लेंगे, वह कोशिश करेगी। मैं दबा लंूगा, आप दबा लेंगेे, या कोई भी भीतर दबा ले, वह दबी हुई बात चैबीस घंटे भीतर से बाहर निकलने की कोशिश करती है। वह चैबीस घंटे कोशिश करती है, हर रूप में कोशिश करती है। कविता लिखोगे, और वह जो दबाया है वह निकल आएगा। सौ में से एक सौ एक कविताएं सेक्स से संबंधित होती हैं। सौ किताबें पढ़िए, सौ उपन्यास एक सौ एक सेक्स से संबंधित होते हैं। फिल्म बनेगी तो सेक्स होगा। टुथपेस्ट भी बेचना हो, साबुन भी बेचना हो, तो सेक्स का उपयोग करना पड़ेगा। साबुन बेचने हो तो भी, टूथपेस्ट बेचना हो तो भी, साड़ी बेचनी हो तो भी नंगी औरत खड़ी करनी पड़ेगी, उसके बिना कुछ नहीं होगा। इसका मतलब क्या है? इसका मतलब यह है भीतर जो दबाया हुआ है, हर दुकानदार उस दबाए हुए को उभार कर अपनी चीज बेचने की कोशिश करता है। मैं जानता हंू, साड़ी-वाड़ी कोई नहीं खरीदता, आदमी औरत खरीदने जाता है।
साड़ी ही खरीद लंू। साड़ियां पीछे से बेचो, औरत आगे से बेचो।
सपनों को कोई सपना कहता है? सपने सपने हैं। लेकिन जब आप कहते हैं, संसार माया है, तब समझ लेना, भीतर यह माया खींच रही है। वह प्राणों को जकड़ रही है। आदमी उसी को इंकार करता है जिसको वह भीतर से आकांक्षा दिलाती है। कहा कि तकलीफ क्या है। मन से निकल गई जबान से गई। लेकिन पता होना चाहिए जबान कभी गलती नहीं करती। जबान कैसे गलती कर सकती है? भीतर जो छिपा होता है कभी-कभी जबान से निकल जाता है। और जब भी जबान से कुछ गलती से निकल गया, जरा खयाल करना, वह भीतर छिपा होता है। वह अनकांशस माइंड का हिस्सा होता है। तब जबान से निकलेगा,...नहीं निकल जाएगा, लेकिन...
दूसरे घर में गया, घर की महिला बाहर आई, सुंदर महिला ठगी रह गई एकदम उस आदमी पर जिसने कपड़े पहने थे। आग लग गई उसके दिल में आदमी की पुरुष की आंख हो तो बरदाश्त भी हो जाए, स्त्री की आंख को बरदाश्त करना मुश्किल हो गया, आगे बढ़ा लेकिन उसको किसी देखा नहीं, उस स्त्री ने पूछा कौन है यह, कहां से आप, कौन है यह? उसकी आंखों में...नसरुद्दीन ने कहा, मेेरे मित्र हैं, दूर से आए हैं। और रह गए कपड़े तो कपड़े हैं मेरे...नसरुद्दीन की छाती पर बड़ी चोट लगी होगी, कहा, मैं किस मंुह से तुमसे क्षमा मांगंू?...कहा, गलती हो गई, अब कभी भी बात नहीं करूंगा।...कपड़े की बात नहीं करनी, कपड़े की बात नहीं करनी, वह सोचता चला जा रहा है। कपड़े की बात नहीं करनी अपने मन में सोच रहा है।...
उसे कुछ भी सुनाई नहीं पड़ रहा है, उसे लग रहा है, लोग पूछ रहे हैं, कपड़े किसके हैं। वह अपने मन में कह रहा है बात ही करनी...कपड़े किसी के हैं। कपड़े से कोई मतलब नहीं, क्या हो गया इस बेचारे को? सारी मनुष्यता को क्या हो गया, सेक्स की बात ही नहीं करनी, सेक्स की बात नहीं करनी, और सेक्स ही सेक्स हेा गया है।
क्या कहना चाहता हंू, चर्चा से इस चर्चा से यह कहना चाहता हंू कि इस देश में आने वाले मनुष्य को स्वस्थ, शांत, शक्तिशाली, समझदार बनना है, तो अब तक हमने जो सेक्स का जो दमन किया है, निंदा की है, गाली दी है...उसकी जगह लाओ सेक्स की समझ,...उसके प्रति लाओ सेक्स के प्रति बुद्धिमत्ता, ज्ञान, एक-एक बच्चे को समझ दो, एक-एक बच्चे को समझपूर्वक जीन की कला दो, ताकि वह बच्चा अपने भीतर की वृत्तियों को पूरी तरह जान सके। उन वृत्तियों को पहचान सके, उन वृत्तियों से भयभीत न हो जाए, उन वृत्तियों से भागने न लगे, उन वृत्तियों से लड़ने न लगे, उन वृत्तियों को जाने। क्यों जानने पर जोर दे रहा हंू, क्योंकि मेरा खुद का अनुभव है, हम जिस वृत्ति को ठीक से जान लेते हैं वही वृत्ति शांत हो जाती है। अगर कोई व्यक्ति अपने आप को ठीक से जान ले तो क्राध शांत हो जाता है। फिर वह कितनी कोशिश करे ले क्रोध क्रोध कर ले क्रोध आएगा ही नहीं। क्योंकि यह जो आ रहा है क्रोध से और उसका क्रोध विलीन हो जाएगा। काम, सेक्स को समझने, पहचान ले वह जीवन का एक सामान्य हिस्सा रह जाएगा। विकृत हिस्सा वही और जितना ज्यादा सामान्य हो जाएगा। उतनी समझ बढ़ेगी फिर व्यक्ति उससे ऊपर उठना शुरू हो जाएगा।
और जिस व्यक्ति के भीतर सेक्स की ऊर्जा ऊपर ऊठनी शुरू हो जाती है उस व्यक्ति के जीवन में परमात्मा का द्वार खुल जाता है। क्योंकि मनुष्य के पास शक्ति सेक्स के सिवाय दूसरी नहीं है। सिवाय मनुष्य के पास दूसरी शक्ति नहीं। वही शक्ति जब समझपूर्वक ऊपर ऊठनी शुरू होती है तो परमात्मा के द्वार खोल देती है, जीवन के रहस्य से ज्ञात हो जाती है। लेकिन गलत दिशा ने गलत सभ्यता ने मनुष्य की शक्ति के द्वार बंद कर दिए। और सब कुछ ऐसे बंद कर दिया है।...एक-एक आदमी के भीतर सेक्स की ऊर्जा का...हो रहा है।...विस्फोट हो रहा है। आदमी पागलखाने के अंदर पागल पागलखाने के बाहर पागल। दोनों तरह पागल है। बाहर वाले पागल और भीतर वाले पागल में बुनियदी फर्क वही है।...हम थोड़े कम पागल, वे थोड़े ज्यादा पागल। हम इतने पागल है कि काम चला लेेते हैं। पागल रहते हुए भी वे इतने पागल है कि काम चलना मुश्किल हो गया है। वे नब्बे डिग्री के पार निकल गए, हम नब्बे डिग्री के इस तरफ रह गए। अगर आप एक कमरे में दस मिनट तक कागज पर वह लिख दे जो आपके मन में चलता है। तो आप...घबड़ा जाएगा, दिमाग खराब हो गया है।...भीतर जो चल रहा है उसका खयाल करो तो पता चल जाएगा कि भीतर...थोड़ा सा धक्का लग जाएगा। पूरी सभ्यता पागलपन में गई क्यों, सेक्स की जो ऊर्जा थी विकृत हो गई। अगर मनुष्य को शांत बनाना है तो सेक्स के प्रति दुर्भाव क्यों हो। सेक्स की समझ छोटे से छोटे बच्चे को मिलनी चाहिए। सेक्स के संबंध में होना चाहिए कि गंदी बात है।...उसे पता चलना चाहिए।...वह सेक्स सेेक्स की पुकार है। अगर पता चले तो मार डालो...।
पता है, पूरे जीवन का सारा सृजन सेक्स से हो रहा है, सारे जीवन की गति उससे है। सेक्स का परमात्मा ने सृजन में...सारे जीवन के विकास पर उसको गाली देते हैं। उसे समझो, उसे पहचानो, उसे जानो, उसकी शक्ति को जानने-पहचानने के लिए ज्ञानपूर्वक विश्वास करो, जीवन में ब्रह्मचर्य सफल होगा। ब्रह्मचर्य सेक्स की समझ से पूर्ण होगा।
सोचो, अगर मेरी बातें ठीक लगे, मान लो। मेरी बातें गलत हो सकती हैं। हो सकता है उनमें कोई न कोई सत्य दिखाई पड़ जाए, सत्य दिखाई पड़ जाए, तो वह तुम्हारा सत्य है। अपना सत्य मनुष्य को मुक्त करता है, अपना सत्य मनुष्य को जीवन देता है। अगर समझ गए, जीवन की गरिमा, जीवन का गौरव मिल जाता है। परमात्मा है तुम्हारे भीतर छिपी हुई ऊर्जा।

मेरी बातों को इतने प्रेम और शांति से सुना, उससे बहुत अनुगृहीत हूं। अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हंू। मेरे प्रणाम स्वीकार करें।

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