आंखों देखी सांच-(भूमिका)
‘कानों सुनी सो झूठ सब, आंखों देखी सांच।दरिया देखे जानिये, यह कंचन यह कांच।’
ओशो ने अपने आध्यात्मिक अभियान के शुरुआती दौर में घूम-घूम कर अपने क्रांतिकारी वचनों से, अपनी आंतरिकता में अपने-आप को पाने की प्यास लिए, लोगों को खोज-खोज कर पुकार। वास्तविक जीवन की खोज को सही दिशा में ले जाने के लिए उस दौर में (10, 11) अप्रैल, (10, 11, 12) जून और (19) सितम्बर माह, सन् 1966 में ओशो द्वारा दिये गये सात अमृत प्रवचनों को आंखों देखी सांच नामक शीर्षक से प्रकाशित पुस्तक में संकलित किया गया था।
वैसे तो जैसे समुद्र के पानी को जहां से भी चखो उसका स्वाद एक सा ही होता है-वैसे ही ओशो के किसी वचन, किसी प्रवचन को, किसी पुस्तक को कहीं से भी पढ़ लो सुन लो वह ओशो के मूल गीत के उनवान की ओर ले ही जाता है। यह सात महत्व पूर्ण प्रवचन जैसे उस दौर में जीवन की खोज में लगे लोगों के लिए एक सहज प्रेरणा रहे हैं, वैसे ही सदैव की तरह आज भी अपनी जीवन यात्रा को सही दिशा देने में लगे लोगों के लिए यह लाईट हाउस, अंधेरे में प्रकाश स्तंभ का कार्य करते हैं।
जीवन की खोज में, स्वयं की खोज में भीतर के छाया जगत में अपने अहंकार को न पहचान पाना, इसके समाधान में ही व्यक्ति खर्च हो जाता है। इसके लिए ओशो कहते हैं कि समाधान को खोजना जीवन की बुनियादी भूलों में एक है जो मन को द्वंद्व में डाल देती है- समस्या को खोजें, समाधान को नहीं। समस्या ही महत्वपूर्ण है, समाधान महत्वपूर्ण नहीं है। और समस्या क्या है अपने धर्म की खोज में, अपने अंतरतम्, अपनी आत्मा की खोज में? मन भ्रमित है एक छाया के जगत में, मन परतंत्र है दूसरों से मिले विचारों से सिद्धांतो से, मन लिप्त है अपने ही दमन में। आच्छादित कर लिया है चित्त को विचारों और अविराम शब्दों के जाल से। ओशो कहते हैं- शब्द से मुक्त हो जाएं और दमन से रिक्त हो जाएं तो आपके चित्त की भूमि से पत्थर अलग हो जाएंगे। पत्थर हट जाएंगे। बस ये दो तरह के पत्थर हैं- सिद्धांत और दमन। ये मन को घेरे हुए हैं। वह खाली कर लें, भूमि निर्मल हो जाएगी। भूमि उपजाऊ हो जाएगी। पत्थर हट जाएंगे। तब इसमें अंकुरित होते हैैं सत्य के बीज। पहले चित्त की भूमि को तैयार करें, मुक्त करें शब्द से, रिक्त करें दमन से और पा लें अपने प्रश्न-शून्य चित्त को। चित्त की स्वतंत्रता, सरलता और शून्यता में दिखाई पड़ता है अपने होने का सत्य। होते ही सत्य का बोध, होता है जीवन निष्णात। खुलते हैं सब भेद, सब ताले, क्या है जीवन और धर्म।
ओशो के प्यारे प्यारे जीवन तारक वचनों वाले ये प्रवचन पुस्तक रूप में तो साधकों, पाठको को उपलब्ध रहे हैं परन्तु इन प्रवचनों से अब तक इंटरनेट आदी पर ओशो प्रेमी महरूम रहे हैं।
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