छठवां प्रवचन --(मन के पार)
न सुख है, न इतना दुख है और जितना है वह बहुत ध्यान देने योग्य नहीं है। लेकिन हम उसे बहुत बड़ा करके देखते हैं। दोनों को जाग कर देखिए तो दोनों खत्म हो जाते हैं।प्रश्नः जागना ही सबसे बड़ी चीज है।
हूं।
प्रश्नः पहला ही आपका प्रवचन मैंने सुना, वह राजकुमार वाली बात थी, तलवार से, लकड़ी की तलवार से। बहुत बढ़िया इंट्रेस है। वह पहला प्रवचन। गुरु से किसी भी वक्त मार पड़ सकती है। हर वक्त चैतन्य रूप है, हर वक्त चेतन है। आज भी यही बात का और सिलसिला था, लेकिन यही बात थी।
लाओत्सु एक जंगल में एक पहाड़ी के पास रहता था। धूल में बैठा हुआ है। कनफ्यूशियस मिलने आया। तो कनफ्यूशियस से उसने यह भी नहीं कहा कि बैठ जा, लाओत्सु ने। तो कनफ्यूशियस ने कहाः कम से कम इतना शिष्टाचार तो रखिए, कि मुझसे कहिए कि मैं बैठ जाऊं। उसने कहा कि मैं सोचता था कि तू बूढ़ा हो गया तुझे अक्ल आ गई होगी। तू अभी ये रंग-बिरंगे कपड़े पहन कर और नवाब बना हुआ है, लाओत्सु ने उससे कहा। मैं सोचता था तू बूढ़ा हो गया तुझे कुछ अक्ल आ गई होगी। लाओत्सु ने कहाः तू ये अभी तक मंत्री-वंत्री के कपड़े पहन कर अभी तक बच्चा बना हुआ है। इसलिए फिर मैंने कहा, क्या कहना इससे बैठना।
फिर वह कनफ्यूशियस कहने लगा कि आपका क्या खयाल है? क्या नियम होने चाहिए?
तो उसने कहा कि जब तक नियम होंगे तब आदमी झूठा होगा। हम तो उस आदमी को चाहते हैं जिसका कोई नियम नहीं, जो स्वभाव है।
प्रश्नः वह नियम क्या है?
वह वैसा ही है जैसा है। उसके रिफरेंसेस फिर बहुत हैं। चारों तरफ से उसका शिष्य उसमें बहुत रिफरेंस हैं। और फिर तो पूरे चीन में फैले हुए हैं। और सच बात यह है कि इन सबके साबित होने का कोई मतलब नहीं है इन सारी बातों का। लेकिन वह ऐसा फिगर है लाओत्सु। फिर उसके बाबत कथाएं जोड़ी जाती रहीं, जोड़ी जाती रहीं। और वह फिर एक, जिसको कहें मिथ बन गया। और उसके यहां कोई यह सवाल नहीं है। यह कोई सवाल नहीं है।
प्रश्नः कितने साल पहले हुए?
लाओत्सु हुआ कोई, वह उसी वक्त जब बुद्ध और महावीर थे। वह उस वक्त दुनिया में, सारी दुनिया में कुछ बड़े अदभुत लोग हुए, एक ही साथ। और मेरा ऐसा खयाल है कि यह भी जैसी कि समुद्र में लहरें उठती हैं न; तो कुछ छोटी लहरें, कोई एक बड़ी लहर उठती इस कोने से उस कोने तक, ऐसी ह्यूमन कांशसनेस में कभी लहरें उठती हैं। तो एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक, सब जगह पीक छू लेती है। तो वहां सुकरात हुआ, प्लेटो, अरस्तू, उसी वक्त। उधर महावीर, बुद्ध। और महावीर, बुद्ध के वक्त छह और अदभुत लोग थे हिंदुस्तान में, जो इसी कीमत के लोग थे। लेकिन वे इतने अदभुत थे, उन्होंने कोई संप्रदाय नहीं बनाए, इसलिए खो गए। इसी कीमत के। बल्कि कई मामलों में इनसे भी अदभुत रहे होंगे। कुबुद कात्यायनी एक व्यक्ति था, अजित केशकंबली एक व्यक्ति था, मक्खली गोशाल। गोशालक का तो बहुत उल्लेख महावीर के उसमें आता है। ये आठ लोग थे एक साथ, बिहार में ही थे और आठों के आठों। और उधर चीन में लाओत्सु, कनफ्यूशियस, च्वांगत्सु, वे सारे लोग थे। और यह सारी दुनिया में बेल्ट की तरह एक लहर उठी। और उस पीक पर जो उन्होंने छुआ है, उनका फिर मुकाबला नहीं हुआ पीछे। बहुत लोग हुए।
तो ह्यूमन कांशसनेस में कभी लहरें आती हैं। हमको ऐसा लगता न ऊपर से देखने में कि मैं अलग, आप अलग, हम अलग, मगर हमारी कांशसनेस इतनी इकट्ठी है कि जब लहर आती है, मुझे जब लहर आएगी, तो मेरे साथ बहुत से लोगों को छू लेगी, जिनका हमें पता भी नहीं चलेगा।
प्रश्नः अगर यह ऐसा होता है कि पूर्णता पाने से लोग--जैसा आपने बताया मक्खली गोशाल ने कुछ नहीं बताया, ऐसा कोई ने बताया भी न हो, ऐसा भी होता है, उसका बताने का मन भी नहीं होता।
अनेक लोग। अनेक लोग। अनेक लोग। असल में बताना एक बात है और जानना बिलकुल दूसरी बात है।
बुद्ध से किसी ने पूछा, बुद्ध के साथ दस हजार भिक्षु चलते थे। किसी ने बुद्ध से पूछा कि आप इतने दिन से सिखा रहे हैं तीस वर्षों से, ये दस हजार भिक्षु सुनते हैं, इनमें से कुछ आप जैसे हुए कि नहीं?
बुद्ध ने कहाः बहुत।
तो उसने कहाः लेकिन उनका अभी पता नहीं चल रहा।
तो बुद्ध ने कहाः वे चुप हैं, मैं बोलता हूं।
और यही फर्क जैनों में तीर्थंकर और केवली का फर्क है। केवली तीर्थंकर की केवली है, लेकिन तीर्थंकर टीचर भी है साथ में। और केवली सिर्फ केवली है, वह कुछ बोलता नहीं, वह टीचर नहीं है। बस इतना ही फर्क है। महावीर जैसे बहुत लोग हुए हैं, लेकिन महावीर तीर्थंकर हैं।
प्रश्नः अभी भी भारत में ऐसे लोग बहुत होंगे।
हमेशा हैं। लेकिन होता क्या है न, कि अब जैसे कि एक--अब वह मीरा जैसी किसी मैया को ज्ञान मिल जाए, तो वह गाएगी, नाचेगी और प्रकट करेगी, क्योंकि वह जो ट्रैनिंग है उसके माइंड की वह नाचने-गाने की है, वह ज्ञान उसका नाच-गाने से ही निकलेगा पीछे।
अगर कोई आदमी टीचर है, और माइंड उसका टीचर का है, और अगर वह ज्ञान को उपलब्ध हो जाए, तो वह ज्ञान टीचिंग्स से बहेगा। लेकिन एक आदमी टीचर नहीं है, एक आदमी नाचने वाला नहीं है, एक आदमी कवि नहीं है और वह ज्ञान को उपलब्ध हो जाए, तो उसका ज्ञान रुका रह जाए, उसके बहने का कोई निकास नहीं है। तो अनेक लोग चुप रह जाते हैं।
प्रश्नः व्यक्त करने का मन नहीं है उनका?
नहीं-नहीं, मन का सवाल नहीं है, व्यक्त करने का माध्यम नहीं होता।
प्रश्नः शक्ति आ जाती है इसका माने यह है कि जो कल्पना के जो-जो बुद्ध हैं वे भगवान हुए।
भगवान का कुछ लेना-देना नहीं है उसका। जो उस समय पैदा होगा, यह बिलकुल होगी है। और उसी से ऐसा लगने लगेगा कि भगवान से शक्ति मिल रही है। वह तुम्हारी अपनी शक्ति है। तुम्हारा अपना विल-फोर्स।
प्रश्नः अच्छा यह चारित्र्य के बारे में इसका कुछ कहा जाता है, उसके बारे में आपका, उसका डेफिनिशन क्या है? कैरेक्टर स्टीक। संयम करना, शायद उसका नाम चारित्र्य है। किसी औरत के सामने नहीं देखना उसका नाम चारित्र्य है। कोई अलग-अलग लोग अलग-अलग बात करते हैं चारित्र्य के बारे में। इसके बारे में आपका क्या निर्णय है?
मेरी बात समझ लीजिए।...को चारित्र्य थोड़े ही कहता हूं। और जो स्त्री के सामने देखने से डरता है वह चरित्रहीन है।
प्रश्नः रामकृष्ण जी स्त्री को देखने में न करते हैं।
चरित्रहीनता है, चरित्रहीनता है। इतना भय किससे? इतना भय किस बात से?
प्रश्नः और आजकल अभी ऐसा ही किया जाता है न, कि अभी ये लड़के-लड़कियां साथ में घूमती हैं, तो बोले कि भई, आपने कल उसकी बात बोली कि हमारा समाज रोज नीचे चला जा रहा है।
कोई नीचे नहीं जा रहा है। जागरूक आदमी जिस तरह से जीता है वह चरित्र है और सोया हुआ आदमी जिस तरह से जीता है वह चरित्रहीनता है। जागरूक आदमी जो भी करेगा वह चरित्र है। इसलिए असली सवाल भीतर जागे हुए होने का है। तो जागा हुआ आदमी न किसी से डरता है, न भागता है, न स्त्री का पीछा करता है। ये सोए हुए आदमी के दोनों लक्षण हैं। सोया हुआ आदमी या तो स्त्री का पीछा करेगा और या स्त्री से भागेगा। वह दोनों हालत में स्त्री को मानता है।
प्रश्नः अगर यहां हम ध्यान करते हैं, तो कभी-कभी प्रकाश के बिंदु ऐसे यूं चले आते दिखते हैं।
हां, बिंदु आते हुए मालूम पड़ेंगे।
प्रश्नः वह कल्पना है कि वह क्या है प्रकाश के बिंदु?
नहीं, वह कल्पना भी नहीं है। वह कल्पना भी नहीं है। वह असल में हमारी जो इंद्रियां हैं उनके बहुत सूक्ष्म अनुभव संगृहीत होते हैं। जैसे आंख के स्नायुओं में प्रकाश के सूक्ष्म अनुभव संगृहीत हो जाते हैं। तो जैसे पीछे के स्नायु रिलैक्स होंगे, वे सूक्ष्म बिंदु प्रकाश के वहां से रिलीज होंगे। कान के अनुभव, कान के, अब उसमें, एक तो कान यहां ऊपर दिखाई पड़ रहा है, यह असली कान नहीं है। असली कान तो भीतर का यंत्र है जो सूक्ष्म...है। वहां ध्वनि के बहुत से अनुभव संगृहीत हैं, सूक्ष्मतम तरंगें संगृहीत हो गई हैं। तो जब वे रिलैक्स होंगी तो बहुत ध्वनियां बजेंगी भीतर। जिसको कि साधु-संन्यासी समझते हैं कि अनहदनाद हो रहा है। कुछ नहीं हो रहा है। तो जो वे कान के संगृहीत अनुभव हैं वे संगृहीत अनुभव रिलीज हो रहे हैं।
प्रश्नः मैं आपसे यही बात करता हूं, मैं जब ध्यान करता हूं तो पीछे एक जैसे कि कोई मशीन चल रही, वैसी एक आवाज चलती रहती है। कभी-कभी डिस्टघबग होती है।
हूं-हूं, बस उसको सबको देखना है। प्रकाश के बिंदु हों, ध्वनियां हों, सुगंध आ सकती है।
प्रश्नः सुगंध आ सकती है?
वह तो नाक का अनुभव है सूक्ष्म। बहुत अदभुत सुगंध आ सकती है।
(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)
हां, वे तो जब जैसे इंद्रियां भीतर से रिलैक्स होना शुरू होती हैं तो...अनुभव रिलीज होते हैं। जिनका आपको पता भी नहीं कि ये अनुभव भी हमारे पास हैं। तो उन सबको देखना है, उसमें कुछ मूल्यवान नहीं है मामला। वह तो जैसा नहीं है कि बहुत ऊंचा। लेकिन एक बात तय है कि वह ध्यान गहरा जाता तभी यह सब होना शुरू होता है।
प्रश्नः बिंदु मैं देखता हूं...
हां, उनको बढ़ा कर देखें, शांति से देखते रहें। वे धीरे-धीरे, धीरे-धीरे विलीन हो जाएंगे।
प्रश्नः मैं तो यह ध्वनि से इतना घबड़ा गया हूं कि वह आती रहती है।
तो जब वह आए तो उसके प्रति जागरूक हों, उससे बहुत फायदा होगा। उससे बहुत फायदा होगा।
प्रश्नः जैसे हम कुकर रखते हैं, तो उसके ऊपर से सींऽऽ...
मैं समझ गया, सन्नाटे की आवाज आ रही है।
प्रश्नः सिद्धियां होती हैं
सब हो सकते हैं। सब मानसिकता हैं।
प्रश्नः कोई अंदर की...
बहुत अंदर की बात नहीं है। बहुत अंदर की बात तो नहीं, लेकिन ऊपर की बात भी नहीं, बीच की बातें हैं। शरीर से आत्मा तक जाने का जो मार्ग है, वहां बीच में मन की बड़ी सूक्ष्म शक्तियां हैं, जिनका हमें पता नहीं। जैसे मन शांत होता है वे शक्तियां जगती हैं। अपने आप भी जग सकती हैं कभी। साधारणतया अपने आप नहीं जगतीं। फ्रेंकली चेष्टा करें तो जग सकती हैं।
जैसे कि शरीर है हमारा, हमें याद नहीं। राममूर्ति हैं, तो उसने शरीर की कुछ शक्तियां जगा लीं जो हमारे शरीर में भी हैं। राममूर्ति के पास कोई विशेष शरीर नहीं है, शरीर तो यही है, स्ट्रक्चर यही है, सब मामला यही है। ये ही फेफड़े हैं, यही हार्ट है, ये ही हाथ हैं, ये ही पैर हैं। लेकिन निरंतर चेष्टा करके इन सबकी शक्तियां सूक्ष्मतम बढ़ा लीं। तो वह कार के नीचे लेट जाता, छाती पर से कार निकल जाती। और वह हाथी को छाती पर खड़ा कर सकता है। और ट्रेन के इंजन को भी पीछे पकड़ ले तो आगे बढ़ना मुश्किल है। यह शरीर की सूक्ष्मतम शक्तियों का विकास है।
प्रश्नः तो वह तो कसरत से किया होगा।
हां, तो इसी तरह माइंड की सूक्ष्म शक्तियों की कसरतें हैं, और उनसे सिद्धियां हो जाती हैं। माइंड की सूक्ष्म शक्तियों की कसरतें हैं।
प्रश्नः यहां तक कि वह शरीर से बाहर निकल कर दूसरे शरीर में जाता है, ये सब बातें।
हां-हां, ये बिलकुल, इसमें जरा भी कठिनाई नहीं है। जरा भी कठिनाई नहीं है। बल्कि शरीर को राममूर्ति जैसा बनाना थोड़ा कठिन मामला है। क्योंकि शरीर बहुत स्थूल माध्यम है। उसके साथ ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। माइंड बहुत सूक्ष्म माध्यम है। उसके साथ कम मेहनत करनी पड़ती है।
प्रश्नः माइंड चंचल बहुत है।
चंचल उसका शक्ति है। चंचल होना उसकी शक्ति है। चंचल न हो तो तुम बुद्धू हो गए।
प्रश्नः मैं तो मानता हूं कि मन आरक्षण छोड़ता है, मन का तो यह शांत होना स्वभाव है शायद, ऐसा लगता है।
बिलकुल स्वभाव है।
प्रश्नः क्योंकि आरक्षण छोड़ देता है।
और चंचलता उसकी शक्ति है। अगर वह चंचल न रहे तो तुम डेड हो गए। ईडियट का चंचल नहीं रहता, पता है? जितना बुद्धिमान आदमी उतना चंचल मन होता है। वह चंचलता तो उसकी गति है, डाइनामिज्म है उसके भीतर।
प्रश्नः तो ये शक्तियां जब चंचलता रुकती है तब आ जाती होगी।
हां, चंचलता को रोक कर या चंचलता को एक ही बिंदु पर लगा कर केंद्रित करते हैं। वह चंचलता ही है। वह उसमें चंचलता में फर्क नहीं पड़ता। फर्क इतना ही पड़ता है कि जैसे कि एक आदमी इधर से कूद कर उधर गया, उधर से कूद कर इधर गया, एक आदमी कूदता फिर रहा है एक स्थान से दूसरे स्थान पर, और एक आदमी एक ही स्थान पर कूद रहा है। कूदना दोनों का जारी है। लेकिन एक आदमी एक ही स्थान पर कूद रहा है, कूदना जारी है, स्थान नहीं बदल रहा है, कूद रहा है, एक ही जगह खड़े होकर कूद रहा है। जिसको तुम एकाग्रता कहते हो वह एकाग्रता नहीं है, वह चंचलता एक ही बिंदु पर है, माइंड एक ही जगह कूद रहा है। जैसे कह रहा कि राम, राम, राम, राम, माइंड का कूदना जारी है। अगर राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर ऐसा कहे तो उनको लगेगा कि बदल रहा है। वह कहता, राम, राम, राम, तो हमको लग रहा बदल नहीं रहा, लेकिन बदल रहा है पूरे वक्त। एक राम से दूसरे राम पर जाने में उतनी ही छलांग है जितनी राम से बुद्ध पर जाने में। जो जंप है वह उतना ही है। जो गैप जो है वह उतना ही है। लेकिन वह एक ही शब्द की वजह से एक ही जगह कूद रहा है, जगह नहीं बदल रहा है, कुलान जारी है। तो माइंड तो पूरे वक्त ही कूदता है। जब तक है तब तक कूदता ही है। तो अगर उसको एक जगह कुदाया जाए, तो उस जगह की शक्तियां जगनी शुरू हो जाती हैं जिस जगह पर है। उसके सेंटर से सब, सारी शक्तियों के।
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