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रविवार, 16 दिसंबर 2018

कार्यकर्ताओं से चर्चा-ओशो

कार्यकर्ताओं से चर्चा-3

वर्कर्स कैंप, लोनावला

मेरी आवाज़ अकेली नहीं है

देश को, समाज को, मनुष्य को- जैसा वह आज है- उसे देखकर जिस आदमी के हृदय में आंसू न भर जाते हों, वह आदमी या तो मर चुका है या मरने के करीब है। जो आदमी अभी जीवित है वह आज के देश की, आज के समाज की, आज के मनुष्य की दशा को देखकर रोता होगा; उसकी हंसी झूठी होगी; उसकी रातें उसके तकियों को उसकी आंखों के आंसुओं से गीला कर देती होंगी।

मुझे पता नहीं आपका, लेकिन मैं अंधकार में अक्सर रो लेता हूं। आदमी जैसा है उसे देखकर सिवाय रोने के और कुछ ख्याल भी नहीं आता। लेकिन रोने से और कुछ भी नहीं हो सकता, कुछ करना जरूरी है। और अगर हम कुछ नहीं कर सके गिरते हुए चरित्र में, खोती हुई आत्मा के लिए...। पूरे देश की प्रतिभा नष्ट होती हो, पूरे प्राण बिखरते जाते हों, आदमी रोज नीचे से नीचे उतरता जाता हो, और अगर हम कुछ न कर सके तो आने वाले भविष्य की अदालत में हम अगर अपराधी ठहराए जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। हम अपराधी हैं।


हम आने वाले जीवन के लिए क्या छोड़ जाते हैं? हम आने वाले बच्चों और पीढ़ियों के लिए क्या निर्मित कर रहे हैं? हम उन्हें कौन सा जीवन दे रहे हैं? हम उन्हें कौन सा मार्ग दे रहे हैं? हम उन्हें कौन सा संकल्प दे रहे हैं? हम उन्हें कौनसी आशा दे रहे हैं? कौनसा भविष्य दे रहे हैं? कौनसी डेटिनी दे रहे हैं? - हम कुछ भी नहीं दे रहे हैं। हम कुछ बीमारियां दे रहे हैं, कुछ रुग्णताएं दे रहे हैं, कुछ पागलपन दे रहे हैं। हम बच्चों को विक्षिप्त बनाने की दिशा में अग्रसर कर रहे हैं।
इधर जितना ही यह सब मैं देखने लगा और देश के कोने-कोने में गया, और लाखों लोगों की आंखों में झांका तो एक भी आंख में मुझे आनंद की कोई झलक न मिली; और एक भी प्राण में मुझे कोई संगीत गूंजता हुआ सुनाई न पड़ा। और एक भी व्यक्ति मुझे ऐसा न मिला जिसे हम कह सकें कि जीवन को पाकर वह धन्य हो गया है। तो मेरी रातें बहुत दुख और अंधेरे और आंसुओं से भर गईं।
और इधर मुझे लगने लगा कि कुछ किया जाना जरूरी है। चुपचाप राह के किनारे खड़े होकर देखना खतरनाक है। और जो आदमी चुपचाप राह के किनारे खड़े होकर देख रहा है वह भी भागीदार है, वह भी हिसेदार है। अगर गलत हो रहा है तो जिम्मेदारी उसकी भी होगी। गए वे दिन जब संन्यासी दूर खड़े हो जाते थे और कहते थे कि जीवन से हमें क्या लेना-देना है। जीवन को नहीं बदला जा सका अगर तो उन्हीं संन्यासियों पर उसकी जिम्मेदारी चली जाएगी। वे बदल सकते थे जिंदगी को अगर वे कहते कि हमें जिंदगी से बहुत कुछ लेना-देना है, हम जिंदगी को गलत देखने को राजी नहीं हैं, हम जिएंगे तो जिंदगी को ठीक बनाने के प्रयास में जिएंगे।
इधर कोई संकल्प, कोई परमात्मा की आवाज जोर से मेरे मन में कहने लगी कि मुझसे जो बन सके थोड़ा-बहुत वह करना चाहिए। हो सकता है एक भी आदमी बदल सके तो बहुत बड़ी बात हो जाएगी। अंधेरे घर में एक भी दीया जल जाए तो बहुत बड़ी बात हो जाती है।
तो इस दिशा में थोड़ा सा सोचा कि कोई एक केंद्र हो और वहां मनुष्य के जीवन के परिवर्तन की कला, आर्ट अॅाफ लिविंग पर, जीवन को बदलने के विज्ञान पर, जीवन को बदलने की दिशा में कुछ किया जा सके। बहुत कुछ किया जा सकता है। आदमी बिल्कुल नया किया जा सकता है आदमी के भीतर बिल्कुल नई चेतना को जन्म दिया जा सकता है क्योंकि मेरा ख्याल यह है कि जब गलत हो सकता है आदमी तो ठीक भी हो सकता है। क्योंकि अगर वह ठीक न हो सकता हो तो फिर गलत भी नहीं हो सकता। जो आदमी बीमार हो सकता है वह स्वस्थ भी हो सकता है। अगर स्वस्थ न हो सकता हो तो फिर बीमारी की भी कोई संभावना नहीं हो सकती।
आदमी गलत है, सब भांति गलत है। वह ठीक भी हो सकता है। इस दिशा में मैं क्या कर सकता हूं? मेरी आवाज अकेली है लेकिन फिर बहुत मित्रों को पास पाकर मुझे ऐसा ख्याल हुआ कि आवाज अकेली नहीं है, बहुत हृदयों की धड़कन उसके साथ हो सकती हैं। बहुत से लोग उसमें सहयोगी और साझीदार हो सकते हैं। और जीवन-क्रांति का एक पूरा आंदोलन, जीवन-क्रांति का एक पूरा विश्वविद्यालय और मुल्क के कोने-कोने तक आदमी को बदलने के लिए चुनौती और प्रेरणा देने वाली कोई हवा बहाई जा सकती है।
और उस हवा को बहाने में आपका भी साथ मिले उसके लिए मैं निवेदन और प्रार्थना करता हूं। वह साथ आपके पैसे का उतना नहीं है, पैसे का कोई भी बड़ा मूल्य नहीं है। वह आपके प्रेम का साथ है। अगर आप हृदय से साथ हैं तो पैसा उसके लिए बहुत इकट्ठा हो जाएगा- वह कभी सवाल ही नहीं है। और अगर आप हृदय से साथ नहीं है तो कितना ही पैसा इकट्ठा हो जाए उसका दो कौड़ी का कोई मूल्य नहीं है।
तो मैं आपके प्रेम के लिए, आपके साथ और शुभकामना के लिए प्रार्थना करता हूं। उस शुभकामना के पीछे और सब अपने आप चला आता है। अगर आपको लगता है, अगर आपके प्राणों में ऐसा प्रतीत होता है, कहीं हृदय में ऐसी आवाज उठती है कि देश के लिए, समाज के लिए, मनुष्य के लिए, कुछ किया जाना जरूरी है; कोई संकल्प पैदा होना जरूरी है, कोई आंदोलन, कोई हवा, मनुष्य की आत्मा को जगाने के लिए कोई तीव्र विचार देश के कोने-कोने तक गूंज जाना जरूरी है- ऐसा प्रतीत होता है- तो ऐसा प्रतीत होने के बाद आप अगर दूर खड़े रहते हैं तो मनुष्य के उन हत्यारों में आपकी भी गिनती होगी जो मुल्क की हत्या किए जा रहे हैं। उसमें राजनीतिज्ञ सम्मिलित हैं, धर्मगुरु सम्मिलित हैं, और न मालूम किस-किस तरह के लोग सम्मिलित हैं। सब तरह के लोग सम्मिलित हैं मुल्क की हत्या करने में। उस मुल्क की बड़ी हत्या से बचाने के लिए आपका साथ, आपकी मैत्री, आपके प्रेम की मैं मांग करता हूं।
और यह मांग भीख नहीं है। यह मांग मैं अपना अधिकार मान लेता हूं। जिन्हें मैं प्रेम करता हूं उनसे मैं अधिकारपूर्वक मांग सकता हूं। और जो मैं मांगूंगा उसके लिए आप देंगे तो मैं आपको धन्यवाद भी देने वाला नहीं हूं, धन्यवाद आपको ही मुझे देना पड़ेगा कि मैं उसे लेने को राजी हो गया हूं।
पैसे का हिसाब-किताब तो दुर्लभजी भाई रखेंगे लेकिन मैं आपका हिसाब-किताब रखना चाहूंगा। तो अगर इस संकल्प में, इस महा संकल्प में, इस शुभ संकल्प में आपके मन की धड़कन साथ है तो मैं चाहूंगा कि आप अपने दोनों हाथ उठाकर मुझे बल दे दें कि आप मेरे साथ हैं। जो भी साथ हों वे अपने दोनों हाथ ऊपर उठा लें। वह उनके प्रेम का साथ है- न उनके पैसे का, न उनकी किसी और शक्ति का; उनके हृदय का और उनकी आत्मा का।
मैं आपको धन्यवाद देता हूं और प्रार्थना करता हूं कि आपने जो संकल्प जाहिर किया है वह संकल्प मेरा या आपका नहीं परमात्मा का होगा।
ओशो  

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