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रविवार, 26 मई 2024

ओशो उपनिषद-(The Osho Upnishad) का हिंदी अनुवाद

 ओशो उपनिषद-(The Osho Upnishad) का हिंदी अनुवाद

(वार्ता 16/08/86 अपराह्न से 02/10/86 अपराह्न तक दी गई)

अंग्रेजी प्रवचन श्रृंखला: 44-अध्याय

प्रकाशन वर्ष: 1986

"द ओशो उपनिषद" का नाम बदला जाएगा।

ओशो उपनिषद

यह पुस्तक इस प्रश्न के साथ शुरू होती है: क्या आप कृपया एक रहस्य विद्यालय के कार्य के बारे में बता सकते हैं? और ओशो उत्तर देते हैं: `मेरे प्रियजनों...' और दुनिया भर में कालातीत रहस्य विद्यालयों की कार्यप्रणाली और उनके द्वारा सत्य के खोजियों को दिए जाने वाले समर्थन का वर्णन करते हैं। रहस्यवाद क्या है? डर क्या है? आज़ादी क्या है?

यह पुस्तक ओशो की सभी पुस्तकों में से बहुत अनमोल है। क्योंकि जैसा इसका नाम है ठीक इसके अंदर शिष्य और गुरु के आदान-प्रदान है जो इस धरा पर अगर कुछ भी अभुतपूर्व हो सकता है। उपनिषाद का अर्थ है शिष्य का गुरु के पास बैठना। ठीक इसी तरह से और के जीवन में जो भी ओशो की धारा में उनके साथ बहे उस सब के ह्रदय का उदगार आप इस पुस्तक में पाओगें।  'उपनिषद' का अर्थ है गुरु के चरणों में बैठना। यह इससे अधिक कुछ नहीं कहता है: केवल गुरु की उपस्थिति में रहना, केवल उसे आपको अपने प्रकाश में, अपनी आनंदमयता में, अपनी दुनिया में ले जाने की अनुमति देना।

इस पुस्तक में शिष्यों की वो जिज्ञासा हे, जो उनके अंतिम छोर पर महसूस हो रही है। दुनिया भर के शिष्यों के ध्यान अनुभव जो प्रश्नों के रूप में उनके ह्रदय में उठ रह थे उसे ओशो रूपी सागर में समाहित कर लिया।

बात शायद 1997 अप्रैल माह की थी, पुना में उन दिनों ओशो जी की संध्या सत्संग में इसी ओशो उपनिषाद प्रवचन माला चल रही थी। प्रश्न आया जीवन मेरी का जो न्युजीलेंड की रहने वाली थी। 21 मार्च को जब ओशो को जबलपुर में ब्रह्म ज्ञान हुआ तो ठीक उसी समय उसका घर अचानक एक दूधिया प्रकाश से भर गया। वह नहीं जानती थी इस सब का रहस्य.....परंतु बाद में ओशो से जुड़ने के बाद उसने ये सब जाना और ओशो के सामने अपनी जिज्ञासा को रखा। उन दिनों ओशो का पूरा विडियों जो की विडियों कैसट पर रिकार्ड था दिखाया जाता था। मैंने अगले दिन ही बुक शाप पर जाकर उस प्रवचन माला की सभी कैसेट का खरीदने का मन बनाया। जो आज भी एक धरोहर की तरह से ओशोबा हाऊस में सुरक्षित है। सच आज उन सब का हिंदी अनुवाद करने साहास जुटा रहा हूं....

(मनसा-मोहनी दसघरा )

पुस्तक के कुछ अंश.....

जीवन मेरी.........अचानक एक सफेद, झिलमिलाती रोशनी का सामना करने का आपका पहला अनुभव, और बत्तीस साल बाद आपको पता चला कि यही वह दिन था जब मैं प्रबुद्ध हो गया था... आप ऐसा अनुभव करने वाले अकेले नहीं हैं; संभवतः दस और व्यक्तियों ने मुझे यही अनुभव सुनाया होगा। और स्वाभाविक रूप से वे आश्चर्यचकित थे, और उनके पास कोई सुराग उपलब्ध नहीं था। बाद में, वर्षों बाद, उन्हें यह स्पष्ट हो गया कि मेरी प्रबुद्धता और उनके अनुभव के बीच कुछ पत्राचार प्रतीत होता है।

‘’जीवन मेरी-- तुम सौभाग्यशाली हो कि मुझसे बहुत दूर, तुमने मेरे ज्ञानोदय का अनुभव किया और तुमने मेरे ज्ञानोदय के पार जाने का भी अनुभव किया। तुम पूरी तरह परिपक्व हो, परिपक्व हो, परे, अज्ञात, परमानंद अस्तित्व में विस्फोट करने के लिए।

आप बूढ़े तो हो गए हैं, लेकिन सिर्फ शरीर से। आपका दिल तथाकथित युवा पीढ़ी से ज़्यादा जवान है। आप सिर्फ बूढ़े ही नहीं हुए हैं, आप बड़े हो गए हैं, आप परिपक्व हो गए हैं।

और मैं बिना किसी हिचकिचाहट के कह सकता हूँ: यह तुम्हारा आखिरी जीवन होगा। तुम अपनी अमरता, अपनी अनंतता का अनुभव किए बिना नहीं मरोगे।

ऐसी किसी भी बात की भविष्यवाणी करना बहुत मुश्किल है, क्योंकि इसमें बहुत सारे खतरे हैं। कोई व्यक्ति आखिरी कदम से ही भटक सकता है - बस एक कदम और वह घर पहुंच जाता, लेकिन कोई व्यक्ति भटक सकता है।‘’

ओशो उपनिषाद प्रवचन-41

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