कुछ मधुर यादें.....जीवन काल की --मनसा-मोहनी
जीवन एक रहस्य है...
जीवन एक रहस्य है, और अध्यात्म जीवन तो और भी अपने अंदर गूढ़ रहस्य छूपाये रहता है। बात 1976 25 फरवरी की है। उस दिन हमारा और मोहनी का मिलन हुआ था। एक दूसरे को देखा था। तब किसी पता था जीवन का सफर इस तरह सुखद और रमणीय होगा। जीवन में कष्ट बाधाएँ तो आती है। ये जीवन के उतार चढ़ाव का एक सौंदर्य है। इस सब से तो ही ज्ञात होता है की हम चल रह है। जीवन उतंग उंचाई पर जा रहा है। जब आज इस प्रवचन माला
‘खोने को कुछ नहीं, आपके सिर के सिवाय-(Nothing to Lose but Your Head)
अध्याय -12
दिनांक-25 फरवरी 1976 अपराह्न, चुआंग त्ज़ु ऑडिटोरियम में’
का हिंदी अनुवाद टाईप कर रहा था तो वहीं पुराने दिन याद आ गये1 की उधार इसी तारीख को हम दोनों मिले थे। और उधर ओशो ये प्रवचन दे रहे थे। जीवन के सफर के लिए मनुष्य को भी एक रेल की पटरियों की तरह से ही होना चाहिए। इस सब से जीवन सरल और सहज चल सकता है। हम सोचते है की हमारे ही विचार की हमारी सह-धर्मिय हमारे जीवन के लिए सही होगी, नहीं दो कलाकार, दो डाक्टर, एक ही विचार भाव के हो तो जीवन लंबा नहीं चल सकता। दोनों में विविधता चाहिए। ये हमने देखा। क्योंकि जब हम और मोहनी मिले थे तो किसी पता था जीवन इतना सुंदर होगा। न हमारे विचार सोच एक जैसी थी। परंतु एक दूसरे के प्रति सत्य थे।
उर्जा ने सही काम तो तब किया जब 1990 में ओशो हमारे जीवन में आये उस के बाद तो जीवन ने गति ही बदल ली मानो जहाज को रन-वा मिल गया अब उसे किसी पटरियों की जरूरत नहीं है। पूरा उतंग आकाश हमारा है। सच हमने अपने आप को प्रकृति के हाथों छोटा परंतु हम कहां एक दूसरे को चून सकते थे। लेकिन दूर कोई बैठा देख रहा था। या यूं कह लो प्रकृति आप की जरूरत को जानती है और आपको सही मार्ग बतलाती है। परंतु हम अपने मन की अगर करते है तो आगे जाकर भटक जाते है।
जोगी तूं क्यों आया मेरे द्वार
तेरी आंखों में नहीं दिखता सपनों का अब वो संसार।
जोगी तूं क्या आया मेरे द्वार......
मनसा मोहनी दसघरा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें