(एक परिक्रमा)
The Diamond Sutra-(वज्रच्छेदिका प्रज्ञापारमिता) सूत्र का हिंदी अनुवाद
21/12/77 प्रातः से 31/12/77 प्रातः तक दिए गए भाषण
अंग्रेजी प्रवचन श्रृंखला, 11 अध्याय
प्रकाशन वर्ष: 1979
’वज्रच्छेदिका प्रज्ञापारमिता’’ सूत्र जिस पर ओशो जी ने अंग्रेजी प्रवचन माला-डायमंड सूत्र (The Diamond Sutra) में कहे गये है। ये पुस्तक अपने में एक अनमोल है। इसके साथ-साथ अभूतपूर्व भी। क्योंकि इस पुस्तक माला में भगवान बुद्ध करीब-करीब हर पृष्ठ पर बोलते है कि अगर इस पुस्तक का कोई एक पृष्ठ भी पढ़ ले तो ज्ञान को उपलब्ध हो जाये। ये पुस्तक सच डायमंड ही है। ओशो के अनमोल खजाने में एक चमकता हीरा। इस पुस्तक को जब मैं सुनता या पढ़ता तो लगता की इस का अनुवाद हिंदी में होना चाहिए।
इस के लिए मैंने करीब पाँच साल पहले कोशिश की, परंतु उन दिनों मोहनी बीमार हो गई और ये काम अधूरा रह गया। अब मोहनी की ठीक होने के बाद मैंने उस अधूरे काम को जब पढ़ा तो लगा की ये काम तो चमत्कार तरीके से पूरा हुआ रखा है। मुझे नहीं लगता की इस का अनुवाद मैंने किया है। गजब अब जब इसके एक-एक शब्द को पढ़ता हूं तो दिल गद्द-गद्द हो उठता है। इस लिए इस आप सब को जरूर पढ़ना चाहिए।
ये वचन है भगवान बुद्ध के आज से 2500 साल पहले जो उन्होंने सुभूति को कहे थे। ‘’वज्रच्छेदिका प्रज्ञापारमिता’’ में कहे थे। जिस पर ओशो जी ने अंग्रेजी प्रवचन माला-डायमंड सूत्र( The Diamond Sutra) में कहे गये है। पुस्तक में सुभूति प्रश्न पूछता है, और भगवान उत्तर देते है। ये पुस्तक के मात्र ग्यारह प्रवचन है। छ: में सूत्र और पाँच में प्रश्न उत्तर। ........ मा
डायमंड का अनुवाद करते सच ही मैं किसी और लोक में रहता था। न वहां मन काम करता था और बुद्धि तो सवाल ही नहीं उठता। सच में डायमंड सुत्र अनकहे से लगते है शब्द कुछ और भाव कुछ और बहार से उनका कोई अर्थ नहीं सूझता। और सच ही दस बार पढ़ने पर भी वह समझ के बाहर है इस लिए मेरा अपना सुझाव है जैसे मैंने केवल अपने आप को छोड़ दिया....बहने के लिए...आप भी इन्हें बुद्धी-व मन से कभी ने सुलझाये....केवल इनमें डूबे नहाये और हो सका तो इन्हें पीये जरूर....कितनी जल्दी खत्म हो गई ये पूस्तक....मन बस देखता सा रह गया....उसकी समझ में आने से पहले ही सब गुजर गया....और मैं आवाक सा खड़ा हंसता रहा उस की लाचारी पर......
मन के बारे में सोचो
सितारों के रूप में, दृष्टि का दोष, दीपक के रूप में,
एक नकली शो, ओस की बूंदें, या एक बुलबुला,
एक सपना, एक बिजली की चमक, या एक बादल,
तो क्या किसी को यह देखना चाहिए कि वातानुकूलित क्या है।
और तुम्हारे अस्तित्व में बहुत-सी जंजीरें हैं, हजारों धागे एक-दूसरे में गुंथ गए हैं। तुम एक गड़बड़ हो गए हो। आपको धीरे-धीरे, धीरे-धीरे, प्रत्येक धागे का अनुसरण करना होगा, और आपको प्रत्येक धागे के अंत तक आना होगा। एक बार जब अंत आ जाता है, तो वह श्रृंखला आपके अस्तित्व से गायब हो जाती है। आप पर बोझ कम है।
ध्यान देने का यह बौद्ध ध्यान - इसे आज़माएं, इसके साथ खेलें। मैं यह नहीं कह सकता कि इसका अभ्यास करो, मैं केवल यह कह सकता हूँ कि इसके साथ खेलो। बैठते, चलते, कभी-कभी इसे याद करो--बस इसके साथ खेलो। और आपको आश्चर्य होगा कि बुद्ध ने दुनिया को आपके अंतरतम में प्रवेश करने की सबसे महान तकनीकों में से एक दी है।
मनोविश्लेषण उतनी गहराई तक नहीं जाता। यह भी कुछ इस तरह पर निर्भर करता है - विचारों का मुक्त सहयोग - लेकिन यह सतही रहता है, क्योंकि दूसरे की उपस्थिति एक बाधा है। मनोविश्लेषक वहां बैठा है; भले ही वह पर्दे के पीछे बैठा हो, लेकिन आप जानते हैं कि वह वहां है। वह ज्ञान ही बाधा डालता है कि वहां कोई है। आप वास्तविक दर्पण नहीं हो सकते, क्योंकि दूसरे की उपस्थिति आपको पूरी तरह से खुलने की अनुमति नहीं दे सकती। आप केवल अपने प्रति ही पूरी तरह से खुल सकते हैं।
कि तथागत जाते हैं या आते हैं....
निश्चित रूप से वह जाते है और आते है - यह डायमंड सूत्र उसी के साथ शुरू हुआ। इसकी सुंदरता देखें: डायमंड सूत्र की शुरुआत इसके साथ हुई - कि बुद्ध भीख मांगने जाते हैं, फिर वह वापस आते हैं, अपना कटोरा रखते हैं, अपने पैर साफ करते हैं, बैठते हैं, उनके सामने देखते हैं, और सुभूति पूछते हैं।
सूत्र की शुरुआत आकार से हुई और सूत्र का अंत निराकार पर हो रहा है।
समाप्त
ओशो
डायमड़ सूत्र प्रवचन-11'जो भी कहे
(मनसा-मोहनी दसघरा)
माँ मोहिनी का अस्वस्थ होना और आपका काम स्थगित कर देना और बाद में यह काम कुछ ओर ही ऊंचाई को छूता हैं तो सर्जक को ही नहीं अपितु भावकों,रसिकों,प्रेमिओ,साधकों........... को भी आपके साथ कोई ओर ही लोक मे पहुंचा देता हैं | हिन्दी में यह अनोखी श्रेणी को छूने के लिए,स्पर्शानुभूत करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया 🙏🙏🙏ओं प्यारे ओशो !आप को शत कोटि-कोटि प्रणाम 🙏🌹🙏
जवाब देंहटाएंआपने सही कहां....ये तीन साल मुझे बहुत गहरे अतल....में ले गये.....वहां पर केवल दर्द..अकेलापन, निराशा ओर हताषा थी....परंतु ध्यान की गहराई ने वहां पर मुझे थिर कर दिया.....सच वो अलमोल क्षण थे....उस पीड़ा के बाद ही आनंद का पता चलात है...ओशो प्रेम
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