(शास्त्र, धर्म और मंदिर-सातवां प्रवचन)
किसी ने पूछा है कि मैं कहता हूंः शास्त्र-ग्रंथ और धर्म-मंदिर व्यर्थ हैं। यह कैसे? शास्त्र-ग्रंथों से तो तत्व का ज्ञान मिलता है और मंदिर की भगवान की मूर्ति देख कर सम्यक दर्शन की प्राप्ति होती है।संभवतः मैंने जो इतनी बातें कहीं, जिन्होंने भी पूछा है उन्हें सुनाई नहीं पड़ी होंगी।
मैंने यह कहा कि पदार्थ का ज्ञान बाहर से मिल सकता है, क्योंकि पदार्थ बाहर है। जो बाहर है उसका ज्ञान बाहर से मिल सकता है। कोई आत्म-ज्ञान से गणित और इंजीनियरिंग और केमिस्ट्री और फिजिक्स का ज्ञान नहीं हो जाएगा और न ही भूगोल के रहस्यों का पता चल जाएगा। जो बाहर है उसे बाहर खोजना होगा।
विज्ञान उस काम को करता है, इसलिए विज्ञान के शास्त्र होते हैं। विज्ञान एक शास्त्र है। विज्ञान के शास्त्र होते हैं, बिना शास्त्रों के विज्ञान का कोई ज्ञान नहीं हो सकता। केमिस्ट्री सीखनी हो, फिजिक्स या गणित सीखना हो, तो शास्त्र से सीखना पड़ेगा। क्योंकि विज्ञान के विषय भी बाहर हैं और उसका ज्ञान भी बाहर है।