(अध्याय—चार)
(1981—1985)
ऐसा लगा कि
अमरीकनों ने
तो नहीं चाहा।
1981 में
चिकित्सा के
लिए उन्हें
अपने देश में
प्रवेश देने
के बाद (जिस
अधिकारी ने
इनको पर्यटक-वीसा
प्रदान किया
था, पीछे
पता चला कि
उसका तबादला
कहीं और कर
दिया गया)
उन्होंने
अपनी शक्ति भर
सब कुछ कर
डाला इनसे
छुटकारा
पाने के लिए।
स्थायी-आवास
के लिए इनका
आवेदन
नामंजूर कर दिया
गया- अमरीकी
सरकार ने यह
मान्यता देने
से इन्कार कर
दिया था कि ये
धार्मिक
शिक्षक थे, जो बात
आवास प्राप्त
करने के लिए
इन्हें योग्यता
प्रदान करती
थी। सारी दुनिया
से धार्मिकों
तथा अन्य तमाम
व्यवसायों के
प्रतिष्ठित
लोगों ने जब
विरोध का एक
मोर्चा खड़ा कर
दिया ( अध्याय
पांच देखें) तो
सरकार को अपना
वह फैसला
बदलना पड़ा, किंतु तब
उसने इनके
आवास-आवेदन पर
फैसला देना स्थगित
कर दिया। उसके
बजाय इनके
खिलाफ गहनतम
खोजबीन का एक
ऐसा अभियान
प्रारंभ किया
जैसा किसी एक
व्यक्ति के
खिलाफ पहले
कभी नहीं किया
गया था।
अब
पीछे मुड़कर
देखने पर लगता
है कि प्राय:
प्रत्येक
सरकारी विभाग
इसमें
सम्मिलित था- 'इंटर्नल
रेव्यू
सर्विस', 'इमीग्रेशन',
'क्रिमिनल
इन्वेस्टीगेशन'
( अटॅर्नी
जनरल स्वयं), 'कस्टम्स
एब्द एक्साइज'
और 'हेल्थ,
एजूकेशन
तथा वेलफेयर'
विभाग।
जैसा कि 1986 में
एक
प्रेस-काक्रेंस
में संयुक्त राज्य
अमरीका के
ओरेगॅन स्थित
अटॅर्नी जनरल ने
कहा कि, ‘‘हमारी
पहली प्राथमिकता
भगवान से
छुटकारा पाने
और कमुयून को
नष्ट करने की
थी।’’
प्रेस
की नजरों से
यह सब बचा न
रहा। ओरेगॅन
की एक पत्रकार
डेल मर्फी ने
अपनी पुस्तक 'दि रजनीश
स्टोरी' में
लिखा: '' अटॅर्नी
जनरल, गवर्नर,
इमीग्रेशन
सर्विस को
रोकने का कोई
उपाय न था’‘....’‘इन सब को कम्युन
को नष्ट किए
बिना कुछ भी
रोक नहीं सकता
था। सर्वोपरि
रूप से, वे
भगवान को नष्ट
करना चाहते
थे-यह भगवान
जो कि गैर-ईसाई
था, गैर-यहूदी
था, कोई
पशु-फार्म
वाला (रैचर) न
था और जो रॉल्स-रॉयस
गाड़ियों में
चलता था तथा
अजीब से कपड़े
पहनता था।
उन्होंने इसे
मृत देखना
पसंद किया
होता। और वे
इसमें सफल भी
हो गये होते
यदि समय रहते
उनके शिष्यों
ने उन्हें छड़ा
लाने के लिए
कदम न उठा
लिया होता।’’ जर्मनी के
एक प्रमुख
राष्ट्रीय
दैनिक 'सद्यूत्शे
ज़ाइतुंग' ने
नवम्बर 1985 में
लिखा, ''अमरीकी
अधिकारियों
का लक्ष्य कम्यून
को कुचल देने
का लगता है,कीमत चाहे
कोई भी चुकानी
पड़े।''
उसी
महीने सरकार
को इसमें
सफलता मिल गयी, जब
इमीग्रेशन
(आप्रवास)
-नियमोल्लंघन के
दो आरोपों पर
मुकदमा न लड़ने
की स्वीकृति
लेने के बाद
भगवान को देश
से निष्कासित
कर। दिया गया।
( अध्याय एक
में
पाद-टिप्पणी
देखें)। 'इमीग्रेशन-नियमोल्लंघन'
: यह सरकार
की मय हत
महंगी और चार
साल लम्बी खोजबीन
का कुल योग था।
प्रेस की
निगाहों में
आने से यह बात
भी रह न सकी कि ''
अमरीका में
रह रहे
हजारों-हजारों
लोग ठीक इन्हीं
नियमोल्लंघनों
के ' दोषी' थे’‘ - 'ला
दोमेनिका देल
कूरियरे', इटली।’’यदि अमरीकी
सरकार देश के
उन सारे।
नागों को
इकट्ठा करे
जिनकी
शादियां झूठी
थीं’‘, 'मिलवॉकी
जरनल' में
जोएल
मैक्वेली ने।
लखा, ‘‘तो
उसे
स्टेडियमों
को जेल बनाना
पड़ेगा जैसा कि
वहां दक्षिण
अमरीका में
किया जाता
भगवान
को उत्तर
केरोलाइना
में बंदूक की
नोक पर (ठीक से कहें
तो बारह भरी
हुई बंदूकें) गिरफ़्तार
किया गया।
उन्हें जमानत
पर छोड़ने से
पहले बारह
दिनों तक जेल
में रखा गया।
उन दिनों लिये
गए उनके
चित्रों में
उनके हाथों पर
हथकड़ियां और
कमर तथा पैरों
में बेड़ियां दिखाई
देती हैं।
उनकी नग्न
तलाशी ली गयी, लंबा रोब
जो वे हमेशा
पहनते हैं
जप्त कर लिया गया
और जेलखाने के
शर्ट और पैन्ट
उन्हें दिये
गए। ओरेगॅन की
पत्रकार डेल
मर्फी ने
भगवान के उस दृश्य
का वर्णन
किया: '' अभी
भी बेड़ियों
में, उन्नत
और सगर्व चलते
हुए वे
कष्टपूर्वक-यह
कष्टकर रही ही
होगा-उस विमान
की ऊंची चढ़ाई
पर अपना
रास्ता तय कर
रहे थे जो
उन्हें उत्तर
केरोलाइना से
बाहर ले गया।
(सहायतार्थ
लगे) हत्थों
का वे उपयोग
नहीं कर सकते
थे क्योंकि
उनकी कलाइयां
हथकड़ी में थीं।
और एक भी
व्यक्ति ने
उनका हाथ
थामने की अथवा
सहारा देने की
चेष्टा न की।
आखिरकार, यह
नाजुक
व्यक्ति’‘, उन्होंने
लिखा, ‘‘समाज
के लिए खतरा
था न!'' जो
उनके विरोध
में थे उन तक
को बड़ा धक्का
लगा। 'सद्युत्से
ज़ाइतुंग' ने
पूछा, '' आप्रवास-सेवा
संन्यासियों
को अत्यंत
खतरनाक
अपराधी मानती
लगती है। इस
बात का
स्पष्टीकरण
और किस तरह
किया जाए कि क्यों
यात्रियों के
इस छोटे-से दल
को उत्तर केरोलाइना
में गिरफ़ार कर
जानवरों की
तरह एक-दूसरे
के साथ
जंजीरों में
जक्कूकर
शॉर्लट में
मेजिस्ट्रेट
के सामने
प्रस्तुत
किया गया? ''
'अल्वनी
डेमोक्रेट-हेराल्ड'
ने (अल्वनी
ओरेगॅन के उन
शहरों में से
था जिन्होंने
भगवान और उनके
संन्यासियों
के खिलाफ निगरानी-समिति
बनायी थी)
अपने
संपादकीय में
लिखा: ‘‘यहां
किसी के पास
भगवान श्री
रजनीश के
प्रति अफसोस
करने के लिए
कोई खास कारण
नहीं है।
लेकिन इस आदमी
की गिरफ़ारी के
और उसके बाद
की तकलीफों के
समाचार
पत्रों में आ
रहे प्रतीयमानत:
उल्लसित
विवरणों से
कुछ अबू तक
अनपूछे सवाल उठते
हैं। उनके
अनगिनत
आलोचक-जो कि
इस बात से
प्रसन्न हैं
कि कैसे इस
आत्म-घोषित
महत्वपूर्ण
व्यक्ति को
छोटी-सी कोठरी
में औरों के
साथ रहने के
दयनीयकर
अनुभव द्वारा
नीचा दिखाया
गया-उनकी ये
शिकायतें सुनकर
हंसे होंगे कि
उन्हें एक
स्टील की बेंच
पर बिना किसी
तकियों और
कम्बलों के
सोना पड़ रहा है,
और अनवरत
धूम्रपान करनेवाले
कोठरी के
सहभागीदारो
के सिगरेटों
के धुएं में
उन्हें सांस
लेनी पड़ रही
है। जाहिर है
कि
आवासी-विदेशी
का कानूनी
दर्जा पाने के
लिए किसी से
विवाह करना
संघीय अपराध
है। गुरु पर
अपने शिष्यों
के बीच इसी
बात का बढ़ावा
देने का
दोषारोपण
किया गया है, हालांकि वे
इसका इन्कार
करते हैं। जो
कुछ भी हो ऐसा
नहीं है कि
सुविधा के लिए
की गयी ऐसी
शादियां कभी
देखने-सुनने
में न आयी हों।
अब इस मुकदमे
पर ओरेगॅन तथा
उत्तर
केरोलाइना की
अदालतें अनेक
अभियोगारोपक
एजेन्सियों और
वकीलों की
पलटनों सहित,
इस पात्र
द्वारा सहे
जाने के लिए फेडरल
(संघीय) सरकार
की सारी महिमा
का बोझ लिए
हुए गड़गड़ाहट
के साथ चल पड़ी
हैं। यदि वे
सावधान नहीं
हैं, और
स्वयं को और
स्वयं के
निर्दय
तौर-तरीकों को
संयत नहीं
करते हैं, तो
वे इस आदमी को
शहीद बना
देंगे।''
'दि
वेंकूवर
कोलंबियन' में
लिखते हुए
रेवरंड फारले
मेक्सवेल ने
इस गिस्कारी
को ''भय, संदेह
और
पूर्वाग्रह
की एक और विजय’‘ कहा।
उन्होंने
सवाल किया, ‘‘इस अनुभव से
ईसाई क्या सीख
सकते हैं? लगभग
2, ००० साल
तक प्रेम, श्रद्धा
और उदारता का
उपदेश सिखाते
रहने के बाद
हम आज भी कुछ
उन्हीं आदिम
शक्तियों को
देख सकते हैं
जिन्होंने ईसा
को सूली पर
चढ़ा दिया था।
लोगों को धमकी
लगी।
उन्होंने भय,
संदेह और
पूर्वाग्रह
के भावावेगों
से जवाब दिया।
इस
अनिमंत्रित, अवांछनीय
उपस्थिति से
देश को
छुटकारा
दिलाने के लिए
स्थापित
नेतृत्व ने
सभी वर्तमान
कानूनों और
व्यवस्थाओं
का उपयोग किया।
गॉस्पल्स के
उपदेशों ने
हमें कम
कार्यकुशल
बनाया या अधिक
सहिष्णु
बनाया? ईसा
को पकड़ने में
रोमन-यहूदी
नेतृत्व को
तीन साल लगे, और आधुनिक
ओरेगॅनवासियो
को रजनीश को
पक्कने में
चार साल लगे।
शायद यह 2, ०००
साल की प्रेम,
श्रद्धा और
उदारता की
शिक्षा का
मापनीय परिणाम
है-कानून और
व्यवस्था की
कार्यकुशलता
में 25
प्रतिशत हास
अथवा
सहिष्णुता
में 25
प्रतिशत
वृद्धि।’’
शासन
के इस व्यवहार
से भौचक और
भगवान के
स्वास्थ्य को
लेकर चिंतित
(उन्हें
डाइबिटीज, एलर्जिक
अस्थमा और
चिरकालिक पीठ
के दर्द की शिकायत
रहती थी)
भगवान के
अनुयायियों
और मित्रों ने
उनसे अनुरोध
किया कि वे
अमरीकी शासन
द्वारा किए गए
उस प्रस्ताव
को स्वीकार कर
लें जिसके
अंतर्गत यदि
वे तुरंत देश
छोड्कर चले
जाने का वायदा
करें तो दो
आरोपों पर वे
निवेदन कर
सकते हैं और
लंबे समय तक
खिंचने वाले
मुकदमे से बच
सकते है। शासन
को मुकदमे के
समय और खर्च
से बचाने के
लिए यह अजीब
किस्म का
अनुनय-समझौता
अमरीका में
अक्सर किया
जाता है।
भगवान ने जो 'एक्से प्ली'
दाखिल की, उसमें
उन्होंने यह
स्वीकार किया
कि शासन के पास
सुबूत थे
जिनके द्वारा
वह जूरी को
विश्वास दिला
सकता था कि वे
स्थायी रूप से
निवास करने के
उद्देश्य से
अमरीका आए थे,
और कि
उन्होंने
झूठे विवाह
करवाए थे, लेकिन
उसके साथ ही
साथ उनकी निदोषिता
बनी रही।
उन्हें
जुर्माना
किया गया और
पांच साल तक
अमरीका में
लौटने से
निषेध किया
गया।
क्यों? किस बात
ने एक व्यक्ति
के खिलाफ इतने
विशाल शासकीय
अभियान को
जन्म दिया था?
अमरीका
में उन साढ़े
चार सालों में
उन्होंने ऐसा
क्या किया था?
शुरुआत
के लिए, पहले चार
साल वे
सार्वजनिक
रूप से मौन और
एकांत में थे।
उन्होंने कोई
प्रवचन दिए ही
नहीं। उस
दौरान वे मध्य
ओरेगॅन के एक
विशाल रैंच पर
( 126 वर्गमील)
रहते थे, जिसे
उनके कुछ
अनुयायियों
ने खरीदा था।
वह रैच बिलकुल
एकाकी
था-निकटतम शहर
2० मील की दूरी
पर!, था।
बहरहाल, जैसे
ही उनकी
मौजूदगी का
समाचार फैला,
यद्यपि वे 'विश्राम' और मौन में
थे, सारी दुनिया
से उनके
हजारों
अनुयायी वहां
आने शुरू हो गये।
उन
सबको वहां
समायोजित
करने के लिए
रैच पर एक छोटे-से
शहर का
निर्माण किया
गया, और
चार साल के
भीतर वहां 6, ००० लोग
रहने लगे थे।
उनके शिष्यों
ने न -कुछ से उस
शहर का
निर्माण किया
था, और वह
सभी आगंतुकों
के लिए विस्मय
का स्रोत था: '' धूलि-
धूसरित
पहाड़ियों से
घिरे प्रदेश
के गहन में, जो जॉन
वियने की
काउबॉय फिल्म 'रूस्टर कॉगबर्न'
के कारण
प्रसिद्ध हो
चुका था, वे
लोग इस तरह
श्रम करते हैं
जिस पर हममें
से बहुत कम
लोगों को
विश्वास होगा
और उससे भी कम
लोग उसे झेल
पाएंगे। दिन
के बारह घंटे,
सप्ताह के
सात दिन, वे
लगे रहते हैं
लगभग-मरुस्थल
भूइम को
मरूद्यान बना
देने में, जो
कि मानवीय प्रयास
के लिए गौरव
की बात है’‘ -जुलाई
1985 में 'वेस्ट
ऑस्ट्रेलियन
सण्डे टाइम्स'
में हॉवर्ड
सैटलर ने लिखा।
उन्होंने आगे
लिखा, ‘‘चार
वर्षों में, 31० वर्ग
किलोमीटर के
अपने रैंचो
रजनीश' की
घाटियों को
उन्होंने मृत
भूरे से
लहलहाते हरे
में बदल दिया
है। उनके पास
उस इलाके की
दूध देनेवाली
गायों का
स्वस्थतम
झुंड है, वे
एक साथ 15, ०००
लोगों के लिए
पर्याप्त
तरह-तरह की
सब्जियां
पैदा करते हैं,
और अपने नये
मह के बाग से
वे घर में बनी
अपनी सर्वप्रथम
शराब की बोतल
निकालने के
समीप हैं।
भगवान के
लोगों की अपनी
ट्रेवेल
एजेंसी है, ओरेगॅन
प्रदेश में
चौथी सबसे बड़ी
बस-सेवा है, और चार
वायुयानों से
सज्जित
वायु-सेवा भी
है। उनका एक
साप्ताहिक
समाचार-पत्र
प्रकाशित होता
है और
नागरिकों की
सुरक्षा के
लिए एक सशस्त्र
'शांति
सेना' है।’’
जॉन
फ्राय ने, जो 1983 के
पूर्वार्द्ध
में रैंच पर
आए थे, जब
अभी रैंच को
खरीदे हुए दो
साल भी नहीं
हुए थे, निर्माण-गतिविधियों
तथा उसमें
निहित आर्थिक
लागत का वर्णन
किया: ‘‘हमने
जहां भी देखा
वहीं नई
इमारतें खड़ी
हो रही थीं, विशालकाय
डी-9 कैट
ट्रैक्टर
सड्कों को
चौड़ा कर रहे
थे, ट्रक, क्रेन, पत्थर
तोड्ने वाली
मशीनें, कांक्रीट
का मिश्रण
करने वाली
मशीनें, नई
जीपें, महान
तीस-फीटवाले
दुहरे चल-मकान
(ट्रेलर), दर्जनों
छोटे-छोटे
निपुण ए-फ्रेम,
और तंबुओं
के एक शहर की
शुरूआतें-जो
ब्रुकलिन के
आधे आकार का
दिख रहा था, जहां इस
जुलाई में 15,००० लोगों
को ठहराया जा
सकेगा, जब
यहां द्वितीय
वार्षिक
विश्व
महोत्सव के
लिए दुनिया भर
से रजनीशी
इकट्ठे होंगे।
इसके उपरान्त
हमने दूसरा
बांध देखा, फिर डेरी, निर्माणाधीन
मेथेन उत्पादक
यंत्र, भक्षक
जानवर-निवारक
कुशल उपायों
से सज्जित चूजा-पालन
प्रांगण, पानी
से गरम होने
वाले विशाल
सौर फलकों, और भरपूर
वेग से चलने
वाली बेकरी से
संयुक्त
केफेटेरिया, ट्रॅक
उद्यान, जिसने
पिछले वर्ष 8०,०००
डालर कीमत की
सब्जियां
पैदा कीं और
जो संभवत: इस
वर्ष उस आंकडे
को दुगुना कर
देगा, पौधों
की नर्सरी, और इस जैसे
अन्य बहुत कुछ।
और ये अचंभे
हमने उतने ही
अचंभे के भाव
में देखे।
मात्र निश्चल
खड़े रहकर और
चारों ओर न
देखते हुए भी
यह साफ था कि
ये लोग इस जगह
पर अब तक 2०-3० मिलियन
डालर लगा चुके
हैं और यह
सिर्फ शुरूआत
थी। अगर हमने
चारों ओर नजर
डालकर उनके
कम्प्यूटर देखे
होते, और
कि उनके
ड्राइंग-बोर्ड्स
( आरेख-पट्टों)
पर क्या था, तो यह आक्का
दुगुना हो
जाता।’’ अंत
में उन्होंने
कहा: ‘‘रजनीशियों
के सामुदायिक
प्रयासों में
न केवल ढेर
सारी शुद्ध
प्रतिभाशाली
प्रवीणता का पूरे
समय उपयोग
किया जा रहा
है, बल्कि
बहुत सारा धन
भी वहां है।’’
रैच पर
पर्यावरण-संरक्षण
के लिए अपनायी
गयी नीतियों
से संवाददाता
विशेषरूपेण
समोहित होते
थे: '' भूमि
का सवोंत्तम
उपयोग कैसे हो,
इस के लिए
संन्यासी सब
कुछ करते हैं,
और उनके
आलोचक भी इसे
प्रशंसा के
साथ स्वीकार करते
हैं।
उन्होंने ऐसी
सिंचाई-व्यवस्थाएं
बनायी हैं जिसमें
एकबार उपयोग
किये जा चुके
पानी का ही अधिकतम
सिंचाई के लिए
उपयोग हो। वे
मल-व्यवस्था
की अभिक्रिया
के लिए
प्राकृत्तिक
संयंत्र का
प्रयोग करते
हैं और 7०
प्रतिशत
उत्सर्ग-द्रव्य
की 'रिसाइकलिंग'
(पुनरावर्तन)
करते हैं।
पर्यावरणवादियों
के लिए
उन्होंने एक
स्वर्ग
निर्मित कर
लिया है, '' मेरियेन
हूयूवेगॅन ने
जर्मन
राष्ट्रीय
दैनिक 'सद्युलो
जाइतुंग' में
नवंबर 1985 में
लिखा था।
ओरेगॅन
के एक
स्तंभ-लेखक, किर्क
बॉन, ने
भविष्योक्ति
की थी: ‘‘यह
संभव है कि
किसी दिन
पर्यावरणवादी
पर्यावरण के
साथ तालमेल
में जीने के
लिए रजनीशपुरम
को एक आदर्श
की भांति
देखेंगे।’’
ऑस्ट्रेलिया
की 'पीओएल'
पत्रिका ने
योजना के पीछे
छिपे दर्शन की
चर्चा की।
रैंच के एक
संस्थापक का
उद्धरण देते
हुए उसकी
शुरूआत हुई: ‘‘हमारी
तमन्ना यह है
कि भगवान जबकि
सशरीर हमारे
बीच हैं तभी
उनके योग्य एक
तीर्थ बनाया
जाए। काम जो
हम यहां कर
रहे है वह एक
संयुक्त
प्रयास है एक
सुंदर
मरूद्यान
निर्मित करने
का- भौतिक और
आध्यात्मिक।’’‘पीओएल' ने
अपनी रिपोर्ट
में कहा: ‘‘दो
वर्षों के
भीतर भगवान के
शिष्यों ने
रैंच को सड़कें
बनाते हुए, बने-बनाए
ढांचों से
मकान बनाते
हुए, गोदाम,
बिजली और जल
की व्यवस्था,
एक डेरी
केंद्र बनाते
हुए और नवीनतम
कृषि संयन्त्रों
का उपयोग करते
हुए एक
बहु-आयामी
कृषक समुदाय
बना दिया है।
होलस्टीन
नस्ल की गौवें
समुदाय को दूध,
मक्खन, चीज़
तथा दही
प्रदान करती
हैं।
समुदाय
का छ: एक्क का
मुर्गियों का
फार्म उसे
अण्डे प्रदान
करता है और
भोजनालय से
निकले
उच्छिष्ट
भोजन को 'रिसाइकल' करके
मुर्गियों का
भरण होता है।
रैंच की
अधिकांश
पर्वतीय जमीन
भेड़ों और
गाय-बैलों के
लिए उपयोगी थी,
लेकिन विगत 5० वर्षों
में बृहत
पैमाने पर
अति-चराई के
कारण जमीन, घास, जल-स्रोत
और वन्य-जीवन
विनष्ट हो
चुके हैं।
‘‘प्रथम
परियोजनाओं
में से एक.
भू-सुधार-कार्यक्रम
था, जिसका
ध्येय था भू-
क्षरण को रोकना,
बरसाती
पानी के बहाव
के वेग को
धीमा करना और
बंजर
पहाड़ियों पर
घास को वापस
प्रोत्साहित
करना। कम्यून
ने शीघ्रता से
5० एकड़
जमीन पर एक 'ट्रक फार्म'
विकसित
किया जो -अब
उनकी जरूरत की
लगभग सभी सब्जियां
उगाता है, और
रैच के टीलों
पर
सूखी-भूमि-कार्यक्रम
शुरू किया जो गेहूं
जौ, ओट, राइ
और फलियां
लाता है। शहद
के लिए उन्होंने
मधुमक्सियां
पाल रखी हैं
और यहां तक कि
मह के एक
बगीचे का भी
गर्व से बखान
करते हैं।’’
'पीओएल'
ने शहर के
महापौर को यह
कहते हुए
उद्धृत किया है:
‘‘शहर का
विकास
प्रकृति के
साथ तालमेल
रखते हुए ही
होगा, जो
इस बात का
दिग्दर्शक
होगा कि लोगों
के लिए जीव-पर्यावरण-संबंध-विज्ञान,
जिस पर हम
सब अपने
कल्याण के लिए
निर्भर हैं, के साथ एक
हितकारी
तालमेल में
जीना संभव है।
पत्रिका
ने आगे लिखा: ‘‘जैसा कि
भगवान ने एक
बार कहा था, 'जीव-पर्यावरण-संबंध-विज्ञान
(इकॉलॉजी) का
अर्थ है
संपूर्ण का
ख्याल रखना, अस्तित्व
में वस्तुओं
के
परस्पर-निर्भरता
के वर्तुल का।
हर वस्तु हर
अन्य वस्तु पर
निर्भर है. न
यहां कुछ परम
स्वतंत्र है,
न हो सकता
है। हम अंश
हैं, बहुत
छोटे अंश, एक
चक्र के दांते।
किसी को समूचे
चक्र के संबंध
में जानना ही
था। ' लेकिन
इकॉलॉजी की यह
अंतर्दृष्टि
आधुनिक
टेक्रॉलॉजी
का अवमूल्यन
नहीं करती- 'प्रकृति का
संतुलन वापिस
लौटाने का तरीका
यह नहीं है कि
हम
टेक्रॉलॉजी
का त्याग कर
दें, ' उन्होंने
कहा। 'हिप्पी
हो जाने में
भी नहीं
है-नहीं, जरा
भी नहीं।
प्रकृति का
संतुलन वापिस
लौटाने का
तरीका है श्रेष्ठतर
टेक्रॉलॉजी
द्वारा, उच्चतर
टेक्रॉलॉजी
द्वारा। मैं
पूरी तरह
विज्ञान के
पक्ष में हूं।
बाहूय जगत को
समग्रत:
रूपांतरित
किया जा सकता
है। हम स्वयं
प्रकृति से भी
अधिक बेहतर
इकॉलाजिकल
संतुलन ला
सकते हैं।
मनुष्य
प्रकृति का
सर्वोच्च
शिखर है, यह
मनुष्य ही है
जिसके माध्यम
से प्रकृति
अपनी
समस्याएं पुन:
सुलझा सकती है।’’पीओएल' ने
इस बात का भी
जिक्र किया कि
'' भगवान अपने
शिष्यों
द्वारा
अपनायी गयी
कम्यूनल
(सामुदायिक)
जीवन-शैली में
और कार्ल
मार्क्स के कम्यूनिज्य
में सुस्पष्ट
फर्क करते हैं।
भगवान की
दृष्टि
भारतीय
साधु-संतों की
परम्परावादी
धार्मिक
शिक्षाओं से
मेल नहीं खाती।
वे त्याग, ब्रह्मचर्य,
अनुशासन या
तप की शिक्षा
नहीं देते।
उनका संदेश है
कि ध्यानी को
अनासक्त होकर
जीने की कला
सीखकर संसार
और उसकी पूरी
भौतिकता के
बीच जीना आना
ही चाहिए। 'बीच बाजार
में ध्यान' कहकर उनके
शिष्य ध्यान
के प्रति उनके
दृष्टिकोण का
वर्णन करते
हैं।
’’इस
दृष्टि के
प्रयोग के लिए
यह नया शहर
रजनीशपुरम एक
आदर्श जगह है।
निवासियों
तथा आगंतुकों
के लिए वहां
कई खाने-पीने
के कद्रदान
शाकाहारी
रेस्तरां हैं,
जिनमें
पूर्वीय और
मेक्सिकन
भोजन और
इटालियन पिज़ा
भी सम्मिलित
हैं; इसके
अलावा है बुटिक,
किताबों की
दुकान, डाकघर,
सिटी हाल, अग्निशामक
केन्द्र, शांति
सेना और हाल
ही में तैयार
हुआ एक खरीदारी
केन्द्र जो
प्रस्तुत
करता है जौहरी
की दुकान, सौदर्य
कक्ष, डेली,
सिनेमा, दवाइयों
की दुकान तथा
शराब की दुकान।
‘‘यहीं
पर रजनीश
अंतर्राष्ट्रीय
ध्यान विश्वविद्यालय
भी है जहां
ध्यान, आध्यात्मिक
चिकित्सा और आंतरिक
विकास में
संक्षिप्त
तथा लम्बे
पाठ्यक्रम
उपलब्ध हैं।
जकूज़ी से
सज्जित एक
स्वास्थ्य
केन्द्र, जिसमें
सोना बॉथ और
व्यायाम-शाला
शीघ्र ही खुलने
को निर्धाारत
हैं, जबकि
मनोरंजन-सुविधाओं
में हाइकिंग,
कनूइंग, रेफ्टिंग,
तैराकी, नौका-चालन
और
विड-सर्फिंग
उपलब्ध हैं।’’
नवंबर 1984
में, 'दि
यूइजन
रजिस्टर-गार्ड'
ने रैंच के
संबंध में कुछ
आंकड़ों का
प्रमाण तैयार
किया, यह
दर्शाते हुए
कि ''... (रैंच)
11० मिलियन
डालर लागत का
द्योतक है। इस
शहर की सरंचना
के मूलभूत
हिस्से हैं:
एक नब्बे फीट
ऊंचा मिट्टी
का बांध और
पैंतीस एकड़ का
जलाशय, एक
बिजली का
सब-स्टेशन और
भूमिगत सुविधाएं
मल-प्रणाल और
जल-व्यवस्था,
एक ठोस
रद्दी को
पुनरावर्तित
(रिसाइकल)
करने की
सुपरिष्कृत
व्यवस्था, एक
हवाई अड्डा, पैंतीस मील
सड़कें, प्रमदवन,
और
नग्रस्रान के
लिए सुरक्षित
एक झील, कई
गृह-समूह और
सौ बसों की एक
यातायात-व्यवस्था
जो ओरेगॅन की
चौथी सबसे बड़ी
कही जाती है।’’
1985 तक
इसमें जुड़
चुके थे ‘‘एक
सैंतालिस
कमरों वाला
प्रथम श्रेणी
का हटिल, एक
चिकित्सा
उपचार-केन्द्र,
एक
विद्यालय, एक
अखबार और
चालीस
व्यवसाय।
संन्यासियों
द्वारा शहर
में चारों ओर
दस लाख से भी
अधिक पौधे
लगाए जा चुके
थे।’’ - 'दि
एटलांटिक
मंथली' ने
खबर दी।
'दि
यूजिन
रजिस्टर-गार्ड'
ने उन
संन्यासियों
के संबंध में
भी कुछ अंतर्दृष्टि
प्रस्तुत की
जो वहां रहते
थे। उसने लिखा
कि ये : ‘‘पाये
जाते हैं- 'गतवर्ष
ओरेगॅन
विश्वविद्यालय
के प्रोफेसरों
द्वारा किये
गये
जनसांख्यिक
अध्ययनों के अनुसार-युवा
( 34 वर्ष), विवाहित
( 74 प्रतिशत),
निःसंतान ( 75 प्रतिशत), श्वेतवर्णीय
( 91 प्रतिशत),
और उच्च
शिक्षा पाये
हुए ( 64
प्रतिशत
विश्वविद्यालय
के स्नातक थे,
36 प्रतिशत लोगों
के पास
स्रातकोत्तर
उपाधियां थीं)।
उनमें से
अधिकांश लोग
संन्यास लेने
से पूर्व सामान्यतया
' धार्मिक'
थे। लगभग 85 प्रतिशत
लोगों का क़ोई
न कोई
पूर्ववर्ती
धार्मिक
संबंधन था ( 3० प्रतिशत
प्रोटेस्टेंट,
27 प्रतिशत
रोमन केथॅलिक
और 2०
प्रतिशत
यहूदी)।’’ पत्र
ने आगे कहा: ‘‘उनसे पुराने
विश्वासों को
छोड़ने के लिए
नहीं कहा
जाता।
भगवान को केवल
ईसा और बुद्ध
जैसे पुराने
धार्मिक
सद्गुरुओं की
शिक्षाओं के
पार ले जानेवाले
के रूप में
देखा जाता है।
उन
पूर्ववर्ती
सद्गुरुओं ने, आवश्यकतावश,
अपने संदेश
को उस समय की
जरूरत के अनुसार
ढाला था।’’
जैसा
कि जॉन फ्रॉय
ने कहा: ‘‘ये संन्यासी
परम धीर, आश्वस्त,
तनावरहित
और आनंदित लोग
हैं। इससे भी
बढ़कर, जहां
तक मैं जानता
है वे तेज व
सक्षम हैं।
इनमें से एक
भी वे नीरस और
पराजित, व्यसनाधीन,
आलसी, भगोड़े,
बेमेल, सूनी
आंखों वाले
विक्षुब्ध
लोग नहीं
हैं-जो कि, हां,
अक्सर कम्यूनों
में पाए जाते
हैं। नहीं, हर्गिज नहीं।
यह तो समूचा
नवनीत है, बिना
किसी तलछट के।
और इस पूरे
समूह में
हिप्पी तो
खोजे से नहीं
मिलता।
ओरेगॅन
के विलमेटे
विश्वविद्यालय
में राजनीति-विज्ञान
के
प्राध्यापक, टेड शे ने
1983 में यह
निष्कर्ष निकाला
था: ''भगवान
ने अपनी
शिक्षाओं के
प्रति पश्रिम
यूरोप तथा
अमरीका के कुछ
सर्वश्रेष्ठ
शिक्षित मस्तिष्कों
को आकर्षित
किया है।’’
जो भी
हो, अमरीकी
सरकार
प्रभावित
नहीं हुई।
उसने अदालत
में शहर की
वैधता को
चुनौती दी, यह तर्क दे
कर कि यह धर्म
और राज्य
(चर्च एण्ड
स्टेट) की
पृथकता के
नियमों के
उल्लंघन में है।
जबकि यह
मुकदमा
विचाराधीन था,
जो कि बरसों
तक चलनेवाली
प्रक्रिया थी,
नगर निगम को
दी जानेवाली
सरकारी
सेवाएं रोक दी
गयीं।
कुछ
स्थानीय
रैंचर, अधिकांशत:
कट्टर ईसाई, भी 'विदेशी
और उसके
विचित्र धर्म'
से परेशान
थे जो उनके
क्षेत्र में आ
गया था।
उन्होंने कुछ
निगरानी जैसी
समितियां
बनायी थीं और
आसपास कारों
में बैठकर
बंदूकें और
तख्तियां लिए
घूमते, जिन
पर लिखा होता. 'बेटर डेड
दैन रेड' -लाल
होने से मर
जाना बेहतर।
(संन्यासी
अपने कपड़ों के
रंग के कारण
रईइड' कहे
जाने लगे थे)।
उन्होंने
टी-शर्ट्स और
बेसबॉल खेल
में पहनी जानेवाली
टोपियां
वितरित कीं, जिन पर
भगवान के
चेहरे पर तनी
हुई बंदूकें
बनी थीं।
उन्होंने
सभाएं आयोजित
कीं जिनमें
बाइबिल की
दुहाई
पीटनेवाले
धर्मोपदेशक
चिल्ला-चिल्लाकर
रैंच पर
रहनेवाले
शैतान-समर्थकों
और दैत्य-पूजकों
के बारे में
भीषण
चेतावनियां
देते। और
उन्होंने
याचिकाएं
वितरित कीं, जिनमें
सरकार से मांग
की गयी थी कि
भगवान और 'उनके
विदेशी पंथ' के
अनुयायियों
को वापस उनके
अपने देश भेज
दिया जाए (इस
तथ्य की पूरी
उपेक्षा करते
हुए कि आधे से
काफी अधिक
रैंच-निवासी
अमरीकी
नागरिक
ओरेगॅन
स्टेट
यूइनवर्सिटी
में बीस सालों
से भी अधिक से
धार्मिक
अध्ययन के
प्रोफेसर, रोनॉल्ड
क्लार्क ने
ओरेगॅन
मानवीयता
समिति द्वारा
मंजूर किये
गये एक अनुदान
के अंतर्गत 1983
का
ग्रीष्मकाल
स्थिति का
अध्ययन करने
में बिताया।
समिति को
प्रस्तुत की
गयी अपनी 31
पृष्ठों की
रिपोर्ट में
उन्होंने
लिखा: '' भगवान
श्री रजनीश के
अनुयायी अपने
ओरेगॅन आगमन
के समय से एक
पंथ-विरोधी
हिस्टीरिया
के शिकार हुए
हैं, अधिकांशत:
जिसके कारण
रूढ़िवादी
ईसाई हैं, जिन्होंने
अपने बीच एक
अन्य धर्म की
उपस्थिति का
क्ला विरोध
किया है।’’ उन्होंने
आगे कहा कि
रजनीशिज्य से
कहीं ज्यादा
गंभीर खतरा इस
हिस्टीरिया
की तरफ से है।
रजनीशिज्य को
उन्होंने एक 'उदित हो रहे
धर्म' की
संज्ञा दी और
कहा कि ‘‘पूर्वीय
धार्मिक
परंपराओं से
परिचित कोई भी
व्यक्ति
पहचान लेगा कि
रजनीशिज्य एक
धर्म है।’’
क्लार्क
ने कहा कि ‘‘गलत
प्रतिनिधित्व
और साहचर्य से
पैदा हुए अपराध-भाव’‘
के कारण जो
लोग इस पंथ को
बदनाम करने का
प्रयास कर रहे
हैं, वे
अमरीका के
परंपरागत
धार्मिक
स्वतंत्रता के
आश्वासनों को
गंभीर नुकसान
पहुंचा रहे है।
उन्होंने कहा,
‘‘मैंने
रजनीशपुरम के
संबंध में कुछ
अविश्वसनीय अफवाहें
सुनी है’‘, और
बताया कि नये
धर्मों के
संबंध में इस
तरह की
अफवाहें
फैलाने की
परंपरा
प्राचीन है।
उन्होंने इस
बात पर भी
ध्यान दिया कि
'पंथ' एक
सुनिश्रित
पारिभाषिक
शब्द है, जिसका
प्रयोग
तुलनात्मक
रूप से नये, छोटे आंदोलनों
का वर्णन करने
के लिए किया
जाता है जो
धार्मिक
मान्यताओं की
मूलधारा से
काफी हटकर
होते है।’’इस
परिभाषा के
अनुसार रोमन
समाज में
प्रारंभिक
ईसाइयत एक पंथ
थी, ''उन्होंने
कहा।
क्लार्क, एक
भूतपूर्व
अभिषिक्त
ईसाई
धर्मोपदेशक, ने कहा कि
प्रारंभिक
ईसाइयों को
रोमन लोग नास्तिक
मानते थे, क्योंकि
वे रोमन
सम्राटों के
आगे अगरबत्ती
नहीं जलाते थे।
उनके संबंध
में यह भी
अफवाह थी कि
वे सामूहिक काम-रंगरलियां
मनाते हैं (एक
अफवाह जो
भगवान के
शिष्यों के
साथ अक्सर
जोड़ी जाती है)
और नरभक्षी
हैं क्योंकि 'प्रेम भोजों'
में जाते थे
और ऐसे
उत्सवों में
सम्मिलित होते
थे जिसमें वे 'किसी के
शरीर को खाते
और खून को
पीते थे'।
क्लार्क ने
निष्कर्ष में
कहा, ‘‘इस
इतिहास को
हमें थोड़ा तो
रोकना चाहिए...
.हम एक नित
छोटे होते जा
रहे ग्रह पर
जी रहे हैं और
अब हमें
धार्मिक
अनेकता से हाथ
मिलाना ही
होगा। बहुत-सी
धार्मिक
परंपराओं में
बहुमूल्य
बातें है।
भगवान एक
रहस्पदर्शी
है, और वे
आध्यात्मिक
मसलों पर उस
तरह काम कर
रहे है जिस
तरह पूरब में
समझा जाता है।
मैं आशा
करूंगा कि
अतीत के
रक्तरंजित
धर्म-युद्ध अब
समाप्त हो गये
हैं।’’
दुर्भाग्य
से उनकी ओर
बहुत कम ध्यान
दिया गया।
अमरीका सरकार
ने, जिसके
अधिपति कट्टर
ईसाई रोनाल्ड
रेगन थे, और
अटर्नी जनरल
के कार्यालय
ने, जिसके
अधिपति उससे
भी अधिक
धर्मांध ईसाई
एडवर्ड मीज थे,
अपना
अत्याचार
जारी रखा, जिसकी
पराकाष्ठा ' आप्रवास-अपराधों'
के नाम पर 1985
में भगवान की
नाटकीय
गिरफ़ारी और देश-निष्कासन
में हुई।
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