‘ज्योतिष
: अद्वैत का
विज्ञान’ :
(प्रश्नोतर
चर्चा) बुडलैंड
बम्बई,
दिनांक 9
जूलाई 1971
प्रश्न–
मैं
भगवान श्री के
चरणों में
निवेदन
करूंगा कि हम
एक नये विषय
पर आप से
मार्गदर्शन
चाहते हैं और
वह विषय है ज्योतिष।
यह अछूता विषय
है और भगवान
श्री के
श्रीमुख से इस
पर कभी चर्चा
नहीं हुई है।
मैं भगवान
श्री के चरणों
में पुन:
निवेदन करता
हूं कि आज आप
ज्योतिष के संबंध
में हमें कुछ
कहें।
ज्योतिष
शायद सबसे
पुराना विषय
है और एक अर्थ
में सबसे
ज्यादा
तिरस्कृत
विषय भी है।
सबसे पुराना
इसलिए कि
मनुष्य जाति
के इतिहास की
जितनी खोजबीन
हो सकी उसमें
ऐसा कोई भी
समय नहीं था
जब ज्योतिष
मौजूद न रहा
हो। जीसस से
पच्चीस हजार
वर्ष पूर्व
सुमेर में मिले
हुए हड्डी के
अवशेषों पर
ज्योतिष के
चिन्ह अंकित
है। पश्चिम
में,
पुरानी से
पुरानी जो
खोजबीन हुई है,
वह जीसस से
पच्चीस हजार
वर्ष पूर्व इन
हड्डियों की
है। जिन पर
ज्योतिष के
चिह्न और
चंद्र की
यात्रा के
चिह्न अंकित
हैं। लेकिन
भारत में तो
बात और भी
पुरानी है।
ऋग्वेद
में
पच्चान्नबे
हजार वर्ष
पूर्व ग्रह—नक्षत्रों
की जैसी
स्थिति थी
उसका उल्लेख
है। इसी आधार
पर लोकमान्य
तिलक ने यह तय
किया था कि
ज्योतिष
नब्बे हजार
वर्ष से
ज्यादा
पुराने तो निश्चित
ही होने चाहिए।
क्योंकि वेद
में यदि
पच्चान्नबे
हजार वर्ष पहले
जैसे
नक्षत्रों की
स्थिति थी, उसका
उल्लेख है, तो वह
उल्लेख इतना
पुराना तो
होगा ही।
क्योंकि उस
समय जो स्थिति
थी नक्षत्रों
की उसे बाद
में जानने का
कोई भी उपाय
नहीं था। अब
जरूर हमारे
पास ऐसे वैज्ञानिक
साधन उपलब्ध
हो सके हैं कि
हम जान सकें
अतीत में कि
नक्षत्रों की
स्थिति कब
कैसी रही होगी।
ज्योतिष
की सर्वाधिक
गहरी
मान्यताएं
भारत में पैदा
हुईं। सच तो
यह है कि
ज्योतिष के
कारण ही गणित
का जन्म हुआ।
ज्योतिष की
गणना के लिए
ही सबसे पहले
गणित का जन्म
हुआ। और
इसीलिए
अंकगणित के जो
अंक है वे
भारतीय हैं, सारी
दुनिया की
भाषाओं में।
एक से लेकर नौ
तक जो गणना के
अंक हैं, वे
समस्त भाषाओं
में जगत की, भारतीय है।
और सारी दुनिया
में नौ डिजिट
या नौ अंक
स्वीकृत हो गए
हैं। वे नौ
अंक भारत में
पैदा हुए और
धीरे— धीरे
सारे जगत में
फैल गए।
जिसे
आप अंग्रेजी
में नाइन कहते
हैं वह संस्कृत
के नौ का ही
रूपांतरण है।
जिसे आप एट
कहते है, वह
संस्कृत के
अष्ट का ही
रूपान्तरण है।
एक से लेकर नौ
तक जगत की
समस्त सभ्य
भाषाओं में
गणित के नौ
अंकों का जो
प्रचलन है वह
भारतीय ज्योतिष
के प्रभाव में
ही हुआ है।
भारत
से ज्योतिष की
पहली किरणें
सुमेर की सभ्यता
में पहुंचीं।
सुमेरवासियो
ने सबसे पहले, ईसा
से छह हजार
वर्ष पूर्व पश्चिम
के जगत के लिए
ज्योतिष का
द्वार खोला।
सुमेरवासियो
ने सबसे पहले
नक्षत्रों के वैज्ञानिक
अध्ययन की
आधार शिलाएं
रखीं।
उन्होंने बड़े
ऊंचे, सात
सौ फीट ऊंचे
मीनार बनाए और
उन मीनारों पर
सुमेर के
पुरोहित
चौबीस घण्टे
आकाश का अध्ययन
करते थे।
दो
कारणों से— एक
तो सुमेर के
तत्वविदों को
इस गहरे सूत्र
का पता चल गया
था कि मनुष्य
के जगत में जो
भी घटित होता
है,
उस घटना का
प्रारंभिक
स्रोत
नक्षत्रों से
किसी न किसी
भांति
सम्बन्धित है।
जीसस
से छह हजार
वर्ष पहले
सुमेर में यह
धारणा थी कि
पृथ्वी पर जो
भी बीमारी
पैदा होती है, जो
भी महामारी
पैदा होती है
वह सब
नक्षत्रों से
सम्बन्धित है।
अब तो इसके
लिए
वैज्ञानिक
आधार भी मिल
गए है। और जो
लोग आज के
विज्ञान को समझते
हैं वे कहते
हैं कि
सुमेरवासियों
ने मनुष्य
जाति का असली
इतिहास
प्रारंभ किया।
इतिहासज्ञ
कहते हैं कि
सब तरह का
इतिहास सुमेर
से शुरू होता
है।
उन्नीस
सौ बीस में
चीजेवस्की
नाम के एक
रूसी वैज्ञानिक
ने इस बात की
गहरी खोजबीन
शुरू की और
पाया कि सूरज
पर हर ग्यारह
वर्षों में
पीरियोडिकली
बहुत बड़ा
विस्फोट होता
है। सूर्य पर
हर ग्यारह
वर्ष में
आणविक
विस्फोट होता
है। और
चीजेवस्की ने
यह पाया कि जब
भी सूरज पर
ग्यारह
वर्षों में
आणविक
विस्फोट होता
है तभी पृथ्वी
पर युद्ध और
क्रांतियों
के सूत्रपात
होते हैं। और
उसके अनुसार
विगत सात सौ
वर्षों के
लम्बे इतिहास
में सूर्य पर
जब भी कभी ऐसी
घटना घटी है, तभी
पृथ्वी पर
दुर्घटनाएं
घटी हैं।
चीजेवस्की
ने इसका ऐसा
वैज्ञानिक
विश्लेषण किया
था कि स्टैलिन
ने उसे उन्नीस
सौ बीस में उठाकर
जेल मैं डाल
दिया था।
स्टैलिन के
मरने के बाद
ही चीजेवस्की
छूट सका।
क्योंकि
स्टैलिन के
लिए तो अजीब
बात हो गयी!
मार्क्स का और
कम्युनिस्टों
का खयाल है कि
पृथ्वी पर जो
क्रांतियां
होती हैं उनका
मूल कारण
मनुष्य—मनुष्य
के बीच आर्थिक
वैभिन्य है।
और चीजेवस्की
कहता हैं कि
क्रांतियों
का कारण सूरज
पर हुए
विस्फोट हैं।
अब
सूरज पर हुए
विस्फोट और
मनुष्य के
जीवन की गरीबी
और अमीरी का
क्या संबंध? अगर
चीजेवस्की
ठीक कहता है
तो मार्क्स की
सारी की सारी
व्याख्या
मिट्टी में
चली जाती है।
तब
क्रांतियों
का कारण
वगीर्य नहीं
रह जाता, तब
क्रांतियों
का कारण
ज्योतिषीय हो
जाता है।
चीजेवस्की को
गलत तो सिद्ध
नहीं किया जा
सका क्योंकि
सात सौ साल की
जो गणना उसने
दी थी इतनी
वैज्ञानिक थी
और सूरज में
हुए
विस्फोटों के
साथ इतना गहरा
संबंध उसने
पृथ्वी पर
घटने वाली
घटनाओं का
स्थापित किया
था कि उसे गलत
सिद्ध करना तो
कठिन था।
लेकिन उसे
साइबेरिया
में डाल देना
आसान था।
स्टैलिन
के मर जाने के
बाद ही
चीजेवस्की को
खूश्चेव
साइबेरिया से
मुक्त कर पाया।
इस आदमी के
जीवन के कीमती
पचास साल
साइबेरिया
में नष्ट हुए।
छूटने के बाद
भी वह चार—छह
महीने से
ज्यादा जीवित
नहीं रह सका।
लेकिन छह
महीने में भी
वह अपनी
स्थापना के लिए
और नये प्रमाण
इकट्ठे कर गया।
पृथ्वी पर
जितनी
महामारियां
फैलती हैं, उन
सबका संबंध भी
वह सूरज से
जोड़ गया है।
सूरज, जैसा
हम साधारणत:
सोचते हैं ऐसा
कोई निष्कि्रय
अग्नि का गोला
नहीं है, वरन
अत्यन्त
सक्रिय और
जीवन्त अग्नि—संगठन
है। और
प्रतिपल सूरज
की तरंगों में
रूपांतरण
होते रहते हैं।
और सूरज की
तरंगों का जरा—सा
रूपांतरण भी
पृथ्वी के
प्राणों को
कंपित करता है।
इस पृथ्वी पर
कुछ भी ऐसा
घटित नहीं
होता जो सूरज
पर घटित हुए
बिना घटित हो
जाता हो।
जब
सूर्य का
ग्रहण होता है
तो पक्षी
जंगलों में
गीत गाना
चौबीस घण्टे
पहले से ही
बन्द कर देते
हैं। पूरे
ग्रहण के समय
तो सारी
पृथ्वी मौन हो
जाती है, पक्षी
गीत गाना बन्द
कर देते हैं
और सारे जंगलों
के जानवर
भयभीत हो जाते
हैं, किसी
बड़ी आशंका से
पीड़ित हो जाते
हैं।
बन्दर
वृक्षों को
छोड्कर नीचे आ
जाते हैं। वे
भीड़ लगाकर
किसी सुरक्षा
का उपाय करने
लगते है। और
एक आश्रर्य कि
बन्दर जो निंरत्तर
बातचीत और शोर—गुल
में लगे रहते
हैं,
सूर्य ग्रहण
के वक्त इतने
मौन हो जाते
हैं जितने कि
साधु और
संन्यासी भी
ध्यान में
नहीं होते
हैं! चीजेवस्की
ने ये सारी की
सारी बातें
स्थापित की
हैं।
सुमेर
में सबसे पहले
यह खयाल पैदा
हुआ था। फिर
उसके बाद
पैरासेल्सस
नाम के स्विस
चिकित्सक ने
इसकी
पुर्नस्थापना
की। उसने एक
बहुत अनूठी
मान्यता
स्थापित की, और
वह मान्यता आज
नहीं तो कल
समस्त
चिकित्सा विज्ञान
को बदलनेवाली
सिद्ध होगी।
अब तक उस
मान्यता पर
बहुत जोर नहीं
दिया जा सका
क्योंकि
ज्योतिष
तिरस्कृत
विषय है—सर्वाधिक
पुराना, लेकिन
सर्वाधिक
तिरस्कृत, यद्यपि
सर्वाधिक
मान्य भी।
अभी
फ्रांस में
पिछले वर्ष
गणना की गई तो
सैंतालिस
प्रतिशत लोग
ज्योतिष में
विश्वास करते हैं
कि वह विज्ञान
है—फ्रांस
में! अमरीका
में पांच हजार
बड़े ज्योतिषी
दिन रात काम
में लगे रहते
हैं। और उनके
पास इतने गाहक
हैं कि वे
पूरा काम भी निपटा
नहीं पाते हैं।
करोड़ों डालर
अमरीका प्रति
वर्ष
ज्योतिषियों
को चुकाता है।
अन्दाज है कि
सारी पृथ्वी
पर कोई
अठहत्तर प्रतिशत
लोग ज्योतिष
में विश्वास
करते हैं।
लेकिन वे
अठहत्तर प्रतिशत
लोग सामान्य
हैं।
वैज्ञानिक, विचारक,
शुइद्धवादी
ज्योतिष की
बात सुनकर ही
चौक जाते हैं।
सी.
जी. जुग ने कहा
है कि तीन सौ
वर्षों से
विश्वविद्यालयों
के द्वार
ज्योतिष के
लिए बन्द हैं, यद्यपि
आनेवाले तीस
वर्षों में
ज्योतिष इन बन्द
दरवाजों को तोड़कर
विश्वविद्यालयों
में पुन:
प्रवेश पाकर
रहेगा।
प्रवेश पाकर
रहेगा इसलिए
कि ज्योतिष के
संबंध में जो—जो
दावे किए गए
थे उनको अब तक
सिद्ध करने का
उपाय नहीं था,
लेकिन अब
उनको सिद्ध
करने का उपाय
है।
पैरासेल्सस
ने एक मान्यता
को गति दी और
वह मान्यता यह
थी कि आदमी
तभी बीमार
होता है जब
उसके और उसके
जन्म के साथ
जुड़े हुए
नक्षत्रों के
बीच का
तारतम्य: टूट
जाता है। इसे
थोड़ा समझ लेना
जरूरी है।
उससे बहुत
पहले
पाइथागोरस ने
यूनान में, कोई
ईसा से छह सौ
वर्ष पूर्व, आज से कोई
पच्चीस सौ
वर्ष पूर्व, ईसा से छह सौ
वर्ष पूर्व
पाइथागोरस ने
प्लेनेटरी
हार्मनी, ग्रहों
के बीच एक
संगीत का
संबंध है—इसके
संबंध में एक
बहुत बड़े
दर्शन को जन्म
दिया था।
छै
और पाइथागोरस
ने जब यह बात
कही थी तब वह
भारत और इजिप्त
इन दो मुल्कों
की यात्रा
करके वापस
लौटा था। और
पाइथागोरस जब
भारत आया तब
भारत बुद्ध और
महावीर के
विचारों से
तीव्रता से
आप्लावित था।
पाइथागोरस ने
भारत से वापस
लौटकर जो
बातें कही हैं
उसमें उसने
महावीर और
विषेशकर
जैनों के संबंध
में बहुत सी
बातें
महत्त्वपूर्ण
कहीं है। उसने
जैनों को
जैनोसोफिस्ट
कहकर पुकारा
है। सोफिस्ट
का मतलब होता
है दार्शनिक
और जैनों का
मतलब तो जैन!
तो जैन
दार्शनिक को
पाइथागोरस ने
जैनोसोफिस्ट
कहा है। वे नग्न
रहते हैं, यह
बात भी उसने
की है।
पाइथागोरस
मानता था कि
प्रत्येक
नक्षत्र या प्रत्येक
ग्रह या
उपग्रह जब
यात्रा करता
है अंतरिक्ष
में,
तो उसकी
यात्रा के
कारण एक विशेष
ध्वनि पैदा होती
है। प्रत्येक
नक्षत्र की
गति एक विशेष
ध्वनि पैदा
करती है। और
प्रत्येक
नक्षत्र की
अपनी
व्यक्तिगत
निजी ध्वनि है।
और इन सारे
नक्षत्रों की
ध्वनियों का
एक ताल—मेल है,
जिसे वह
विश्व की
संगीतबद्धता,
हार्मनी
कहता था।’
जब
कोई मनुष्य
जन्म लेता है
तब उस जन्म के
क्षण में इन
नक्षत्रों के
बीच जो संगीत
की व्यवस्था
होती है वह उस
मनुष्य के
प्राथमिक, सरलतम,
संवेदनशील
चित्त पर
अंकित हो जाती
है। वही उसे
जीवनभर
स्वस्थ और
अस्वस्थ करती
है। जब भी वह
अपनी उस मौलिक
जन्म के साथ
पायी गई, संगीत
व्यवस्था के
साथ ताल—मेल
बना लेता है
तो स्वस्थ हो
जाता है। और
जब उसका ताल—मेल
उस मूल संगीत
से छूट जाता
है तो वह
अस्वस्थ हो
जाता है।
पैरासेत्सस
ने इस संबंध
में बड़ा
महत्त्वपूर्ण
काम किया है
कि वह किसी
मरीज को दवा
नहीं देता था
जब तक उसकी
जन्मकुष्डली
न देख ले और
बड़ी हैरानी की
बात है कि
पैरासेल्सस
ने जन्मकुष्डलियां
देखकर ऐसे
मरीजों को ठीक
किया जिनको कि
अन्य
चिकित्सक
कठिनाई में पड़
गए थे और ठीक
नहीं कर पाते
थे। उसका कहना
था,
जब तक मैं
यह न जान लूं
कि यह व्यक्ति
किन नक्षत्रों
की स्थिति में
पैदा हुआ है
तब तक इसके
अंतर्संगीत
के सूत्र को
भी पकड़ना
सम्भव नहीं है।
और जब तक मैं
यह न जान लूं
कि इसके
अंतर्संगीत की
व्यवस्था
क्या है तो
इसे कैसे हम
स्वस्थ करें।
क्योंकि
स्वास्थ्य का
क्या अर्थ है,
इसे थोड़ा
समझ लें!
अगर
साधारणत: हम
चिकित्सक से
पूछे कि
स्वास्थ्य का
क्या अर्थ है
तो वह इतना ही
कहेगा कि बीमारी
का न होना। पर
उसकी परिभाषा
निगेटिव है, नकारात्मक
है और यह दुखद
बात है कि
स्वास्थ्य की
परिभाषा हमें
बीमारी से
करनी पड़े; स्वास्थ्य
तो पाजिटिव
चीज है, विधायक
अवस्था है।
बीमारी
निगेटिव है, नकारात्मक
है।
स्वास्थ्य तो
स्वभाव है, बीमारी तो
आक्रमण है।
तो
स्वास्थ्य की
परिभाषा हमें
बीमारी से करनी
पड़े,
यह बात अजीब
है। घर मैं
रहनेवाले की
परिभाषा
मेहमान से
करनी पड़े, यह
बात अजीब है।
स्वास्थ्य तो
हमारे साथ है,
बीमारी कभी
होती है।
स्वास्थ्य तो
हम लेकर पैदा
होते हैं, बीमारी
उस पर आती है।
पर हम
स्वास्थ्य की
परिभाषा अगर
चिकित्सकों
से पूछें तो
वे यही कह
पाते हैं कि
बीमारी नहीं
है तो
स्वास्थ्य है।
पैरासेल्सस
कहता था, यह
व्याख्या गलत
है।
स्वास्थ्य की
पाजिटिव
डेफिनेशन, विधायक
परिभाषा होनी
चाहिए। पर उस
पाजिटिव
डेफिनेशन को,
उस विधायक
व्याख्या को
कहां से पकड़ेगे?
तब
पैरासेल्सस
कहता था, जब तक
हम तुम्हारे
अन्तर्निहित
संगीत को न जान
लें—क्योंकि
वही तुम्हारा
स्वास्थ्य है,
तब तक हम
ज्यादा से
ज्यादा
तुम्हारी
बीमारियों से
तुम्हारा
छुटकारा करवा
सकते हैं।
लेकिन हम एक
बीमारी से
तुम्हें
व्यासे और तुम
दूसरी बीमारी
को तत्काल पकड़
लोगे।
क्योंकि
तुम्हारे
भीतरी संगीत
के संबंध में कुछ
भी नहीं किया
जा सका। असली
बात तो वही थी
कि तुम्हारा
भीतरी संगीत स्थापित
हो जाए।
इस
संबंध में, पैरासेस्सस
को हुए तो कोई
पांच सौ'वर्ष
होते हैं, उसकी
बात भी खो गयी
थी। लेकिन अब
पिछले बीस
वर्षों में, उन्नीस सौ
पचास के बाद दुनिया
में ज्योतिष
का अब
पुनअर्ग़वर्भाव
हुआ है। और
आपको जानकर
हैरानी होगी
कि कुछ नए
विज्ञान पैदा
हुए हैं, जिनके
संबंध में
आपसे कह दूं
तो फिर पुराने
विज्ञान को
समझना आसान हो
जाएगा।
उन्नीस
सौ पचास में
एक नई साइंस
का जन्म हुआ।
उस साइंस का
नाम है
कास्मिक
केमिस्ट्री, ब्रह्म—रसायन।
उसको जन्म
देनेवाला
आदमी है, जियारजी
जिआरडी। यह
आदमी इस सदी
के कीमती से
कीमती, थोड़े
से आदमियों
में एक है। इस
आदमी ने
वैज्ञानिक
आधारों पर
प्रयोगशालाओं
में अनन्त
प्रयोगों को
करके, यह
सिद्ध किया है
कि जगत, पूरा
जगत एक
आर्गनिक
यूनिटी है।
पूरा
जगत एक शरीर
है। और अगर
मेरी उंगली
बीमार पड़ जाती
है तो मेरा पूरा
शरीर
प्रभावित
होता है। शरीर
का अर्थ होता
है कि टुकड़े
अलग—अलग नहीं
हैं,
संयुक्त
हैं, जीवन्त
रूप से इकट्ठे
हैं। अगर मेरी
आंख में तकलीफ
होती है तो
मेरे पैर का
अंगूठा भी उसे
अनुभव करता है।
और अगर, मेरे
पैर को चोट
लगती है तो
मेरे हृदय को
भी खबर मिलती
है। और अगर
मेरा
मस्तिष्क
रुग्ण हो जाता
है तो मेरा
शरीर पूरा का
पूरा बेचैन हो
जाएगा। और अगर
मेरा पूरा
शरीर नष्ट कर
दिया जाए तो
मेरे
मस्तिष्क को
खड़े होने के
लिए जगह मिलनी
मुश्किल हो
जाएगी। मेरा
शरीर एक
आर्गनिक यूनिटी
है—एक एकता है
जीवन्त।
उसमें कोई भी
एक चीज को छुओ
तो सब तरंगित
होता है, सब
प्रभावित हो
जाता है।
कास्मिक
केमिस्ट्री
कहती है कि
पूरा ब्रह्माण्ड
एक शरीर है।
उसमें कोई भी
चीज अलग—अलग
नहीं हैं, सब
संयुक्त है।
इसलिए कोई
तारा कितनी ही
दूर क्यों न
हो, वह भी
जब बदलता है
तो हमारे हृदय
की गति को बदल जाता
है। और सूरज
चाहे कितने ही
फासले पर
क्यों न हो, जब वह
ज्यादा
उत्तप्त होता
है तब हमारे
खून की धाराएं
बदल जाती है—
हर ग्यारह
वर्षों में!
पिछली
बार जब सूरज
पर बहुत
ज्यादा
गतिविधि चल
रही थी और अग्नि
के विस्फोट चल
रहे थे तो एक
जापानी
चिकित्सक तोमातो
बहुत हैरान
हुआ। वह
चिकित्सक
स्त्रियों के
खून पर निरंत्तर
काम कर रहा था
बीस वर्षों से।
स्त्रियों के
खून की एक
विशेषता है जो
पुरुषों के
खून की नहीं
है। उनके
मासिक धर्म के
समय उनका खून
पतला हो जाता
है और पुरुष
का खून पूरे
समय एक—सा
रहता है।
स्त्रियों का
खून मासिक
धर्म के समय
पतला हो जाता
है,
या गर्भ जब
उनके पेट में
होता है तब
उनका खून पतला
हो जाता है। पुरुष
और सी के खून
में यह एक जुनियादी
फर्क तोमातो
अनुभव कर रहा
था।
लेकिन
जब सूरज पर
बहुत जोर से
तूफान चल रहे
थे आणविक
शक्तियों के—जो
कि हर ग्यारह
वर्ष में चलते
हैं,
तब वह चकित
हुआ कि
पुरुषों का
खून भी पतला
हो जाता है।
जब सूरज पर
आणविक तूफान
चलता है तब
पुरुष का खून
भी पतला हो
जाता है। यह
बड़ी नयी घटना
थी, यह
इसके पहले कभी
रिकार्ड नहीं
की गयी थी कि
पुरुष के खून
पर सूरज पर
चलनेवाले
तूफान का कोई
प्रभाव पड़ेगा।
और अगर खून पर
प्रभाव पड
सकता है तो
फिर किसी भी
चीज पर प्रभाव
पड़ सकता है।
एक
दूसरा अमरीकन
विचारक है
फ्रेंक
ब्राउन। वह
अन्तरिक्ष
यात्रियों के
लिए सुविधाएं
जुटाने का काम
करता रहा है।
उसकी आधी
जिन्दगी
अन्तरिक्ष
में जो मनुष्य
यात्रा करने
जाएंगे उनको
तकलीफ न हो
इसके लिए काम
करने की रही
है। सबसे बडी
विचारणीय बात
यही थी कि
पृथ्वी को छोड़ते
ही अन्तरिक्ष
में न मालूम
कितने प्रभाव होंगे!
न मालूम कितनी
धाराएं होंगी, रेडिएशन
की किरणों की—वह
आदमी पर क्या
प्रभाव
करेंगी?
लेकिन
दो हजार साल
से ऐसा समझा
जाता रहा है
अरस्तु के
बाद,
पश्चिम
में, कि
अन्तरिक्ष
शून्य है, वहां
कुछ है ही
नहीं। दो सौ
मील के बाद
पृथ्वी पर
हवाएं समाप्त
हो जाती हैं, और फिर
अन्तरिक्ष
शून्य है।
लेकिन
अन्तरिक्ष
यात्रियों की
खोज ने सिद्ध
किया कि वह
बात' गलत
है।
अन्तरिक्ष
शून्य नहीं है,
बहुत भरा
हुआ है। और न
तो शून्य है, न मृत है—बहुत
जीवन्त है। सच
तो यह है कि
पृथ्वी की दो
सौ मील की
हवाओं की पर्तें
सारे
प्रभावों को
हम तक आने से
रोकती हैं।
अन्तरिक्ष
में तो अदभुत
प्रवाहों की
धाराएं बहती
रहती हैं—उनको
आदमी सह
पायेगा या
नहीं!
आप
यह जानकर
हैरान होंगे
और हंसेंगे भी
कि आदमी को
भेजने के पहले
ब्राउन ने आलू
भेजे अन्तरिक्ष
में। क्योंकि
ब्राउन का
कहना है कि
आलू और आदमी
में बहुत
भीतरी फर्क
नहीं। अगर आलू
सड़ जायेगा तो
आदमी नहीं बच
सकेगा और अगर
आलू बच सकता
है तो ही आदमी
बच सकेगा। आलू
बहुत मजबूत
प्राणी है। और
आदमी तो बहुत
संवेदनशील है।
अगर आलू भी
नहीं बच सकता
अन्तरिक्ष
में और सड़ जायेगा
तो आदमी के
बचने का कोई
उपाय नहीं।
अगर आलू लौट
आता है जीवंत, मरता
नहीं है और
उसे जमीन में
बोने पर अंकुर
निकल आता है
तो फिर आदमी
को भेजा जा
सकता है। तब
भी डर है कि
आदमी सह
पायेगा या
नहीं।
इससे
एक और हैरानी
की बात ब्राउन
ने सिद्ध की कि
आलू जमीन के
भीतर पड़ा हुआ, या
कोई भी बीज
जमीन के भीतर
पड़ा हुआ बढ़ता
है... सूरज के ही
संबंध में!
सूरज ही उसे
जगाता, उठाता
है। उसके
अंकुर को पुकारता
और ऊपर उठाता
है।
ब्राउन
एक दूसरे शाख
का भी अन्वेषक
है। उस
शास्त्र को
अभी ठीक—ठीक
नाम भी मिलना शुरू
नहीं हुआ है।
लेकिन अभी उसे
कहते हैं—प्लेनेटरी
हेरिडिटी, उपग्रही
वंशानुक्रम।
अंग्रेजी में
शब्द है, होरोस्कोप।
वह यूनानी
होरोस्कोपस
का रूप है।
होरोस्कोपस, यूनानी शब्द
का अर्थ होता
है, 'मैं
देखता हूं
जन्मते हुए मह
को।’
असल
में जब एक
बच्चा पैदा
होता है तब
उसी समय पृथ्वी
के चारों ओर, क्षितिज
पर अनेक
नक्षत्र जन्म
लेते हैं, उठते
हैं। जैसे
सूरज उगता है
सुबह...। जैसे
सूरज उगता है
सुबह और सांझ
डूबता है, ऐसे
ही चौबीस
घण्टे
अन्तरिक्ष
में नक्षत्र उगते
हैं और डूबते
हैं।
जब
एक बच्चा पैदा
हो रहा है..
समझें, सुबह
छह बजे बच्चा
पैदा हो रहा
है, वही
वक्त सूरज भी
पैदा हो रहा
है। उसी वक्त
और कुछ
नक्षत्र पैदा
हो रहे हैं।
कुछ नक्षत्र
डूब रहे हैं।
कुछ नक्षत्र
ऊपर हैं, कुछ
नक्षत्र उतार
पर चले गए, कुछ
नक्षत्र चढ़ाव
पर हैं।
यह
बच्चा जब पैदा
हो रहा है तब
अन्तरिक्ष की—अन्तरिक्ष
में
नक्षत्रों की
एक स्थिति है।
अब तक ऐसा
समझा जाता था
और अभी भी
अधिक लोग, जो
बहुत गहराई से
परिचित नहीं
हैं वे ऐसा ही
सोचते हैं कि
चांद—तारों से
आदमी के जन्म
का क्या लेना
देना! चांद—तारे
कहीं भी हों, इससे एक
गांव में
बच्चा पैदा हो
रहा है, इससे
क्या फर्क
पडेगा!
फिर
वे यह भी कहते
हैं कि एक ही
बच्चा पैदा
नहीं होता, एक
तिथि में, एक
नक्षत्र की
स्थिति में
लाखों बच्चे
पैदा होते हैं।
उनमें से एक
प्रेसिडेंट
बन जाता है
किसी मुल्क का,
बाकी तो
नहीं बन पाते।
एक उनमें से
सौ वर्ष का
होकर मरता है,
दूसरा दो
दिन का ही मर
जाता है। एक
उसमें से बहुत
बुद्धिमान
होता है और एक
निर्बुद्धि
ही रह जाता है।
तो
साधारणत:
देखने पर पता
चलता है कि इन ग्रह—नक्षत्रों
की स्थिति का किसी
के बच्चे के
पैदा होने से, होरोस्कोप
से क्या संबंध
हो सकता है? यह तर्क
सीधा और साफ
मालूम होता
है! फिर चांद—तारे
एक बच्चे के
जन्म की
चिन्ता तो
नहीं करते? और फिर एक
बच्चा ही पैदा
नहीं होता, एक स्थिति
में लाखों
बच्चे पैदा
होते हैं, पर
लाखों बच्चे
एक से नहीं
होते, इन
तर्कों से ऐसा
लगने लगा..! तीन
सौ वर्षों से
यह तर्क दिये
जा रहे हैं कि
कोई संबंध
नक्षत्रों से
व्यक्ति के
जन्म का नहीं
है।
लेकिन
ब्राउन, पिकाडी
और इन सारे
लोगों की, तोमातो..
इन सबकी खोज
का एक अदभुत
परिणाम हुआ है
और वह यह कि ये
वैज्ञानिक
कहते हैं कि
अभी हम यह तो
नहीं कह सकते
कि व्यक्तिगत
रूप से कोई
बच्चा
प्रभावित
होता होगा, लेकिन अब हम
यह पके रूप से
कह सकते हैं
कि जीवन प्रभावित
होता है। एक
बात, व्यक्तिगत
रूप से बच्चा
प्रभावित
होगा, हम
अभी नहीं कह
सकते हैं, लेकिन
जीवन निश्चित
रूप से
प्रभावित
होता है। और
अगर जीवन
प्रभावित
होता है तो
हमारी खोज जैसे—जैसे
सूक्ष्म होगी
वैसे—वैसे हम
पाएंगे कि
व्यक्ति भी
प्रभावित
होता है।
इससे
एक बात और
खयाल में ले
लेनी जरूरी है—जैसा
सोचा जाता रहा
है,
वह तथ्य
नहीं है। ऐसा
सोचा जाता रहा
है कि ज्योतिष
विकसित विज्ञान
नहीं है।
प्रारंभ उसका
हुआ फिर वह
विकसित नहीं
हो सका। लेकिन
मेरे देखे
स्थिति उलटी
है, ज्योतिष
किसी सभ्यता
के द्वारा
बहुत बड़ा विकसित
विज्ञान है
लेकिन फिर वह
सभ्यता खो गयी
और हमारे हाथ
में ज्योतिष
के अधूरे
सूत्र रह गए।
ज्योतिष
कोई नया
विज्ञान नहीं
है जिसे
विकसित होना
है,
बल्कि कोई
विज्ञान है जो
पूरी तरह
विकसित हुआ था
और फिर जिस
सभ्यता ने उसे
विकसित किया
वह खो गयी। और
सभ्यताएं रोज
आती हैं और खो
जाती है। फिर
उनके द्वारा
विकसित चीजें
भी अपने मौलिक
आधार खो देती
हैं, सूत्र
भूल जाते हैं,
उनकी
आधारशिलाए खो
जाती हैं।
विज्ञान, आज
इसे स्वीकार
करने के निकट
पहुंच रहा है
कि जीवन
प्रभावित
होता है। और
एक छोटे बच्चे
के जन्म के
समय उसके
चित्त की
स्थिति ठीक
वैसी ही होती
है जैसे बहुत
सेंसिटिव
फोटो—प्लेट की।
इस पर दो—तीन
बातें और खयाल
में ले लें, ताकि समझ
में आ सके कि
जीवन
प्रभावित
होता है। और
अगर जीवन
प्रभावित
होता है, तो
ही ज्योतिष की
कोई संभावना
निर्मित होती
है, अन्यथा
निर्मित नहीं
होती।
जुड़वा
बच्चों को
समझने की थोड़ी
कोशिश करें।
दो तरह के
जुड़वा बच्चे
होते हैं। एक
तो जुड़वा
बच्चे होते
हैं जो एक ही
अण्डे से पैदा
होते हैं। और
दूसरे जुड़वा
बच्चे होते
हैं जो होते
तो जुड़वा हैं
लेकिन दो
अण्डों से
पैदा होते है।
मां के पेट
में दो अच्छे
होते हैं, दो
बच्चे पैदा
होते हैं। कभी—कभी
एक अण्डे
होता है और एक
अण्डे के
भीतर दो बच्चे
होते है। एक अण्डे
से जो दो
बच्चे पैदा
होते है वे
बड़े
महत्वपूर्ण
हैं। क्योंकि
उनके जन्म का
क्षण बिलकुल
एक होता है।
दो अस्त्रों
से जो बच्चे
पैदा होते हैं
उन्हें जुड़वा
हम कहते जरूर
है लेकिन उनके
जन्म का क्षण
एक नहीं होता है।
और
एक बात समझ
लें कि जन्म
दोहरी बात है।
जन्म का पहला
अर्थ तो है
गर्भधारण।
ठीक जन्म तो
उसी दिन होता
है जिस दिन
मां के पेट
में गर्भ
आरोपित होता
है—ठीक जन्म!
जिसको आप जन्म
कहते है वह
नम्बर दो का
जन्म है—जब
बच्चा मां के
पेट से बाहर
आता है। अगर
हमें ज्योतिष
की पूरी
खोजबीन करनी
हों—जैसा कि
हिन्दुओं ने
की थी, अकेले
हिन्दुओं ने
की थी और उसके
बड़े उपयोग किए
थे—तो असली
सवाल यह नहीं
है कि बच्चा
कब पैदा होता
है, असली
सवाल यह है कि
बच्चा कब गर्भ
में प्रारम्भ
करता है अपनी
यात्रा—गर्भ
कब निर्मित
होता? है!
क्योंकि ठीक
जन्म वही है।
इसलिए
हिन्दुओं ने
तो यह भी तय
किया था कि
ठीक जिस भांति
के बच्चे को
जन्म देना हो
उस भांति के ग्रह—नक्षत्र
में यदि
सम्भोग किया
जाए और गर्भ
धारण हो जाए
तो उस तरह का
बच्चा पैदा
होगा। अब
इसमें मैं
थोड़ा पीछे
आपको कुछ
कहूंगा क्योंकि
इस संबंध में
भी काफी काम
इधर हुआ है और
बहुत—सी बातें
साफ हुई हैं।
साधारणत: हम
सोचते है कि
जब एक बच्चा
सुबह छह बजे
पैदा होता है
तो छह बजे पैदा
होता है, इसलिए
छह बजे प्रभात
में जो
नक्षत्रों की
स्थिति होती
है उससे
प्रभावित
होता है।
लेकिन
ज्योतिष को जो
गहरे से जानते
हैं वे कहते
हैं कि वह छह
बजे पैदा होने
की वजह से पह—नक्षत्र
उस पर प्रभाव
डालते हैं—ऐसा
नहीं! वह जिस
तरह के
प्रभावों के
बीच पैदा होना
चाहता है उस
घड़ी और
नक्षत्र को ही
अपने जन्म के
लिए चुनता है।
यह बिलकुल
भिन्न बात है।
बच्चा जब पैदा
हो रहा है, ज्योतिष
की गहन खोज
करनेवाले लोग
कहेंगे कि तब
वह अपने पह—नक्षत्र
चुनता है कि
कब उसे पैदा
होना है। और
गहरे जाएंगे
तो वह अपना
गर्भाधारण भी
चुनता है।
प्रत्येक
आत्मा अपना
गर्भाधारण
चुनती है कि कब
उसे गर्भ
स्वीकार करना
है,
किस क्षण
में। क्षण
छोटी घटना
नहीं है। क्षण
का अर्थ है कि
पूरा विश्व उस
क्षण में कैसा
है। और उस
क्षण में पूरा
विश्व किस तरह
की सम्भावनाओं
के द्वार
खोलता है। जब
एक अच्छे में
दो बच्चे एक
साथ गर्भ धारण
कर लेते हैं
तो उनके
गर्भाधारण का
क्षण एक ही
होता है और
उनके जन्म का
क्षण भी एक
होता है।
अब
यह बहुत मजे
की बात है कि
एक ही अच्छे
से पैदा हुए
दो बच्चों का
जीवन इतना एक
जैसा होता है...
इतना एक जैसा
होता है कि यह
कहना मुश्किल
है कि जन्म का
क्षण प्रभाव
नहीं डालता।
एक अच्छे से
पैदा हुए दो
बच्चों का आई.
क्यू, उनका बुद्धि—माप
करीब—करीब
बराबर होता है।
और जो थोड़ा—सा
भेद दिखता है,
वे जो जानते
हैं, वे
कहते हैं वह
हमारी
मेजरमेन्ट की
गलती के कारण
है। अभी तक हम
ठीक मापदष्ठ
विकसित नहीं
कर पाए हैं
जिनसे हम बुद्धि
का अंक नाप
सकें। थोड़ा सा
जो भेद कभी
पडता है वह
हमारे तराजू
की भूल—चूक है।
अगर
एक अण्डे से
पैदा हुए दो
बच्चों को
बिलकुल अलग—अलग
पाला जाए तो
भी उनके
बुद्धि—अंक
में कोई
फर्कनहीं
पड़ता— एक को
हिन्दुस्तान
में पाला जाए
और एक को चीन में
पाला जाए और
कभी एक दूसरे
को पता भी न
चलने दिया
जाए! ऐसी कुछ
घटनाएं घटी
हैं जब दोनों
बच्चे अलग—अलग
पले,
बडे हुए, लेकिन उनके
बुद्धि—अंक
में कोई फर्क
नहीं पड़ा।
बड़ी
हैरानी की बात
है,
बुद्धि—अंक
तो ऐसी चीज है
कि जन्म की
पोटेशियलिटी
से जुड़ी है।
लेकिन वह जो
चीन में जुड़वा
बच्चा है एक
ही अच्छे का, जब उसको
जुकाम होगा, तब जो भारत
में बच्चा है
उसको भी जुकाम
होगा। आमतौर
से एक अच्छे
से पैदा हुए
बच्चे एक ही
साल में मरते
हैं। ज्यादा
से ज्यादा
उनकी मृत्यु
में फर्क तीन
महीने का होता
है और कम से कम
तीन दिन का पर
वर्ष वही होता
है। अब तक ऐसा
नहीं हो सका
है कि एक ही
अंडे से पैदा हुए
दो बच्चों की
मृत्यु के बीच
वर्ष का फर्क पड़ा
हो। तीन महीने
से ज्यादा का
फर्क नहीं
पड़ता है। अगर
एक बच्चा मर
गया है तो हम
मान सकते हैं
कि तीन दिन के
बाद या तीन
महीने के बीच
दूसरा बच्चा
भी मर जाएगा।
इनके
रुझान, इनके
ढंग, इनके
भाव समानांतर
होते हैं। और
करीब—करीब ऐसा
मालूम पड़ता है
कि ये दोनों
एक ही ढंग से
जीते हैं। एक
दूसरे की कापी
की भांति होते
हैं। इनका
इतना एक जैसा
होना और बहुत—सी
बातों से
सिद्ध होता है।
हम
सबकी चमडिया
अलग—अलग हैं, इण्डीवीजुअल
हैं। अगर मेरा
हाथ टूट जाए
और मेरी चमड़ी
बदलनी पड़े तो
आपकी चमड़ी
मेरे हाथ के
काम नहीं आएगी।
मेरे ही शरीर
की चमड़ी
उखाड़कर लगानी
पडेगी। इस
पूरी जमीन पर
कोई आदमी नहीं
खोजा जा सकता,
जिसकी चमड़ी
मेरे काम आ
जाए। क्या बात
है? शरीर
शासी से पूछें
कि क्या दोनों
की चमडी की बनावट
में कोई भेद
है? चमड़ी
के रसायन में
कोई भेद है? चमड़ी में जो
तत्व निर्मित
करते हैं चमड़ी
को, उसमें
कोई भेद है—तो
कोई भेद नहीं
है!
चमड़ी
में जो तत्व
निर्मित करते
हैं चमड़ी को, उसमें
कोई भेद है तो
कोई भेद नहीं है!
मेरी चमड़ी और
दूसरे आदमी की
चमडी को अगर
हम रख दें एक
वैज्ञानिक को
जांच करने के
लिए तो वह यह न
बता पाएगा कि
ये दो आदमियों
की चमडिया हैं।
चमडियों में
कोई भेद नहीं
है, लेकिन
फिर भी हैरानी
की बात है कि
मेरी चमड़ी पर
दूसरे की चमड़ी
नहीं बिठायी
जा सकती। मेरा
शरीर उसे
इनकार कर देगा।
वैज्ञानिक
जिसे नहीं
पहचान पाते कि
कोई भेद है, लेकिन मेरा
शरीर पहचानता
है। मेरा शरीर
इनकार कर देता
है कि इसे
स्वीकार नहीं
करेंगे।
हां, एक
ही अच्छे से
पैदा हुए दो
बच्चों की
चमड़ी ट्रांसप्लांट
हो सकती है सिर्फ।
एक दूसरे की
चमड़ी को एक
दूसरे पर
बिठाया जा सकता
है, शरीर
इनकार नहीं
करेगा। क्या
कारण होगा? क्या वजह
होगी? अगर
हम कहें, एक
ही मां—बाप के
बेटे हैं तो
दो भाई भी एक
ही मां—बाप के
हैं, उनकी
चमड़ी नहीं
बदली जा सकती।
सिवाय इसके कि
ये दोनों बेटे
एक क्षण में निर्मित
हुए है और कोई
इनमें समानता
नहीं है।
क्योंकि
उसी मां और
उसी बाप से
पैदा हुए
दूसरे भाई भी
हैं,
उन पर चमड़ी
काम नहीं करती
है। उनकी चमड़ी
एक दूसरे पर
नहीं बदली जा
सकती। सिर्फ
इनका बर्थ
मूमेंट... बाकी
तो सब एक है—वही
मां बाप हैं—सिर्फ
एक बात बड़ी
भिन्न है और
वह है इनके
जन्म का क्षण!
क्या जन्म का
क्षण इतना
महत्वपूर्ण
रूप से
प्रभावित
करता है? — कि उम्र भी
दोनों की करीब—करीब,
बुद्धि—माप
करीब—करीब...
दोनों की
चमडियों का
ढंग एक—सा, दोनों
के शरीर के
व्यवहार करने
की बात एक—सी, दोनों बीमार
पड़ते हैं तो
एक—सी
बीमारियों से,
दोनों
स्वस्थ होते
हैं तो एक—सी
दवाओं से—क्या
जन्म का क्षण
इतना प्रभावी
हो सकता है? ज्योतिष
कहता रहा है, इससे भी
ज्यादा
प्रभावी है, जन्म का
क्षण।
लेकिन
आज तक ज्योतिष
के लिए
वैज्ञानिक
सहमति नहीं थी, पर
अब सहमति बढ़ती
जाती है। इस
सहमति में कई
नये प्रयोग सहयोगी
बने हैं। एक
तो, जैसे
ही हमने
आर्टीफीशियल
सेटेलाइट, हमने
कृत्रिम
उपग्रह
अन्तरिक्ष
में छोड़े वैसे
ही हमें पता
चला कि सारे
जगत से सारे
ग्रह—नक्षत्रों
से, सारे
ताराओं से निरंत्तर
अनंत प्रकार
की किरणों का
जाल प्रवाहित होता
है जो पृथ्वी
पर टकराता है।
और पृथ्वी पर
कोई भी ऐसी
चीज नहीं है
जो उससे
अप्रभावित
छूट जाए।
हम
जानते है कि
चांद से
समुद्र
प्रभावित
होता है, लेकिन
हमें खयाल
नहीं है कि
समुद्र में
पानी और नमक
का जो अनुपात
है वही आदमी
के शरीर में
पानी और नमक
का अनुपात है—द
सेम
प्रपोर्शन।
और आदमी के
शरीर में पैंसठ
प्रतिशत पानी
है और नमक और
पानी का वही
अनुपात है जो
अरब की खाड़ी
में है। अगर
समुद्र का
पानी
प्रभावित
होता है चांद
से तो आदमी के
शरीर के भीतर
का पानी क्यों
प्रभावित
नहीं होगा!
अभी इस संबंध
में जो खोजबीन
हुई है उसमें
दो तीन तथ्य
खयाल में ले
लेने जैसे हैं,
वह यह कि
पूर्णिमा के
निकट आते—आते
सारी दुनिया
में पागलपन की
संख्या बढ़ती है।
अमावस के दिन दुनियां
में सबसे कम
लोगे पागल
होते हैं, पूर्णिमा
के दिन सर्वाधिक।
चांद के बढ़ने
के साथ अनुपात
पागलों का
बढ़ना शुरू
होता है।
पूर्णिमा के
दिन
पागलखानों
में सर्वाधिक
लोग प्रवेश
करते हैं और
अमावस के दिन
पागलखानों से सर्वाधिक
लोग बाहर आते
है। अब तो
इसके
स्टेटिक्स
उपलब्ध हैं।
अंग्रेजी
में शब्द है, लुनाटिक—लुनाटिक
का मतलब होता
है, चांदमारा।
कार.. .हिन्दी
में भी पागल
के लिए
चांदमारा शब्द
है। बहुत
पुराना शब्द
है और लुनाटिक
भी कोई तीन
हजार साल
पुराना शब्द
है। कोई तीन
हजार साल पहले
भी आदमियों को
खयाल था कि
चांद पागल के
साथ कुछ न कुछ
करता है, लेकिन
अगर पागल के
साथ करता है
तो गैर—पागल
के साथ नहीं
करता होगा? आखिर
मस्तिष्क की
बनावट, आदमी
के शरीर के
भीतर की
संरचना तो एक
जैसी है। हां,
यह हो सकता
है कि पागल पर
थोड़ा ज्यादा
करता होगा, गैर—पागल पर
थोड़ा कम कर
सकता होगा।
यह
मात्रा का भेद
होगा। लेकिन
ऐसा नहीं हो
सकता कि गैर—पागल
पर बिलकुल
नहीं करता
होगा। अगर ऐसा
होगा तब तो
कोई पागल कभी
पागल न हों, क्योंकि
फिर सब गैर—पागल
ही पागल होते।
पहले तो काम
गैर—पागल पर
ही करना पड़ता
होगा चांद को।
प्रोफेसर
ब्राउन ने एक
अध्ययन किया
है। वह खुद
ज्योतिष में
विश्वासी
आदमी नहीं थे।
अविश्वासी थे
और अपने पिछले
लेखों में
उन्होंने
बहुत मजाक
उड़ायी थी
ज्योतिष की।
लेकिन पीछे
उन्होंने
खोजबीन के लिए
सिर्फ एक? काम
शुरू किया।
मिलिट्री के
बड़े—बड़े जनरल्स
की उन्होंने
जन्म कुण्डलियां
इकट्ठी कीं—
डाक्टर्स की,
अलग—अलग
प्रोफेशंस की,
व्यवसायों
की—बडी
मुश्किल में
पड गए इकट्ठी
करके।
क्योंकि पाया
कि प्रत्येक
प्रोफेशन के
आदमी एक विशेष
मह में पैदा
होते हैं। एक
विशेष
नक्षत्र—स्थिति
में पैदा होते
हैं।
जैसे
जितने भी बड़े
प्रसिद्ध जनरल्स
हैं,
मिलिट्री
के सेनापति
हैं, योद्धा
हैं—उनके जीवन
में मंगल का
भारी प्रभाव
है। वही
प्रभाव
प्रोफेसर्स
की जिन्दगी
में बिलकुल
नहीं है।
ब्राउन ने जो
अध्ययन किया,
कोई पचास
हजार व्यक्तियों
का—जो भी
सेनापति हैं
उनके जीवन में
मंगल का प्रभाव
भारी है।
आमतौर से जब
वे पैदा होते
हैं तब मंगल
जन्म ले रहा
होता है। उनके
जन्म की घडी
मंगल के जन्म
की घड़ी होती
है।
ठीक
उससे विपरीत
जितने
पैसीफिस्ट
हैं दुनिया
में,
जितने
शान्तिवादी
हैं, वह
कभी मंगल के
जन्म के साथ
पैदा नहीं
होते। एकाध
मामले में यह
संयोग हो सकता
है, लेकिन
लाखों मामले
में संयोग
नहीं हो सकता।
गणितज्ञ एक
खास नक्षत्र
में पैदा होते
हैं, कवि
उस नक्षत्र
में कभी पैदा
नहीं होते। यह
कभी एकाध के
मामले में
संयोग हो सकता
है, लेकिन
बड़े पैमाने पर
संयोग नहीं हो
सकता।
असल
में कवि के
ढंग और
गणितज्ञ के
ढंग में इतना
भेद है कि
उनके जन्म के
क्षण में भेद
होना ही चाहिए।
ब्राउन ने कोई
दस अलग—अलग
व्यवसाय के
लोगों का, जिनके
बीच तीव्र
फासले हैं, जैसे कवि
हैं और
गणितज्ञ है या
युद्धखोर
सेनापति हैं
और एक
शान्तिवादी
बर्ट्रेंड
रसल है, एक
आदमी जो कहता
है, विश्व
में शान्ति
होना चाहिए और
एक आदमी नीत्से
जैसा, जो
कहता है जिस
दिन युद्ध न
होंगे उस दिन दुनिया
में कोई अर्थ
न रह जाएगा।
इनके
बीच बौद्धिक
विवाद ही है
सिर्फ या
नक्षत्रों का
भी विवाद है? इनके
बीच केवल
बौद्धिक
फासले हैं या
इनकी जन्म की
घड़ी भी हाथ
बंटाती है।
जितना अध्ययन
बढ़ता जाता है
उतना ही पता
चलता है कि
प्रत्येक
आदमी जन्म के
साथ विशेष
क्षमताओं की
सूचना देता है।
ज्योतिष के
साधारण
जानकार कहते
हैं कि वह इसलिए
ऐसा करता है
क्योंकि वह
विशेष
नक्षत्रों की
व्यवस्था में
पैदा हुआ।
मैं
आपसे कहना
चाहता हूं कि
विशेष
नक्षत्रों की
व्यवस्था में
पैदा होने को
उसने चुना। वह
जैसा होना चाह
सकता था, जो
उसके होने की आंतरिक
संभावना थी, जो उसके
पिछले जन्मों
का पूरा का
पूरा रूप था जो
उसकी संयोजित
अर्जित चेतना
थी वह इस
नक्षत्र में
ही पैदा होगी।
हर
बच्चा, हर
आनेवाला नया
जीवन इनसिस्ट
करता है, जोर
देता है अपनी
घड़ी के लिए—
अपनी घड़ी में
ही पैदा होना
चाहता है, अपनी
घड़ी में
गर्भाधान
लेना चाहता है—दोनों
अन्योन्याश्रित
हैं, इण्टर
डिपेंडेंट
हैं।
मैंने
आपसे कहा, जैसे
समुद्र का
पानी
प्रभावित
होता है, सारा
जीवन पानी से
निर्मित है।
पानी के बिना
कोई जीवन की
संभावना नहीं
है। इसलिए
यूनान में
पुराने
दार्शनिक
कहते थे, पानी
से ही जीवन
जन्मा है या
पानी ही जीवन
है। या पुराने
भारतीय या
चीनी और दूसरे
दुनिया की
मैथोलाजीस भी
कहती हैं—आज
विकास को माननेवाले
वैज्ञानिक भी
कहते हैं कि
जीवन का जन्म
पानी से है।
शायद
पहला जीवन काई, वह
जो पानी पर जम
जाती है—वही
जीवन का पहला
रूप है, फिर
आदमी तक विकास।
जो लोग पानी
के ऊपर गहन
शोध करते हैं,
वे कहते हैं
पानी सर्वाधिक
रहस्यमय तत्व
है। जगत से, अन्तरिक्ष
से तारों का
जो भी प्रभाव
आदमी तक
पहुंचता है
उसमें मीडियम,
माध्यम
पानी है। आदमी
के शरीर के जल
को ही
प्रभावित
करके कोई भी
रेडिएशन, कोई
भी विकीर्णन
मनुष्य में
प्रवेश करता
है। जल पर
बहुत काम हो
रहा है और जल
के बहुत से
मिस्टीरियस, रहस्यमय गुण
खयाल में आ
रहे हैं।
सर्वाधिक
रहस्यमय गुण
तो जल का जो
खयाल में अभी
दस वर्षों में
वैज्ञानिकों
को आया है वह
यह है कि सर्वाधिक
संवेदनशीलता
जल के पास है—सबसे
ज्यादा
सेंसिटिव। और
हमारे जीवन
में चारों ओर
से जो भी
प्रभाव गतिमान
होते हैं वह
जल को ही
कम्पित करके
गति करते हैं।
हमारा जल ही
सबसे पहले
प्रभावित
होता है। और
एक बार हमारा
जल प्रभावित
हुआ तो फिर
हमारा
प्रभावित
होने से बचना
बहुत कठिन हो
जाएगा। मां के
पेट में बच्चा
जब तैरता है
तब भी आप जानकर
हैरान होंगे
कि वहू ठीक
ऐसे ही तैरता
है जैसे सागर
के जल में। और
मां के पेट
में भी जिस जल
में बच्चा तैरता
है उसमें भी
नमक का वही
अनुपात होता
है जो सागर के
जल में है। और
मां के शरीर
से जो—जो
प्रभाव बच्चे
तक पहुंचते
हैं उनमें कोई
सीधा संबंध
नहीं होता।
यह
जानकर आप
हैरान होंगे
कि मां और
उसके पेट में
बननेवाले
गर्भ का कोई
सीधा संबंध
नहीं होता, दोनों
के बीच में जल
और मां से जो
भी प्रभाव
पहुंचते हैं
बच्चे तक वह
जल के माध्यम
से ही पहुंचते
हैं। सीधा कोई
संबंध नहीं है।
फिर जीवनभर.
भी हमारे शरीर
में जल का वही
काम है जो
सागर में काम
है।
सागर
की बहुत—सी
मछलियों का
अध्ययन किया
गया है। ऐसी
मछलियां है, जो
जब सागर का
पूर उतार पर
होता है, जब
सागर उतरता है,
तभी सागर के
तट पर आकर
अण्डे रख जाती
है। सागर उतर
रहा है वापस।
मछलियां रेत
में आएंगी, सागर की
लहरों पर सवार
होकर, अण्डे
देंगी, सागर
की लहरों पर
वापस लौट
जाएंगी।
पंद्रह दिन
में फिर सागर
की लहरें फिर
उस जगह आएंगी
तब तक अण्डे
फूटकर उनके
चूजे बाहर आ
गए होंगे।
आनेवाली
लहरें वापस उन
चूजों को सागर
में ले जाएंगी।
जिन
वैज्ञानिकों
ने इन मछलियों
का अध्ययन किया
है वे बड़े
हैरान हुए हैं।
क्योंकि
मछलियां सदा
ही उस समय
अच्छे देने आती
हैं जब सागर
का तूफान
उतरता होता है।
अगर वह चढ़ते
तूफान में अण्डे
दे दें तो अण्डे
तो तूफान में
बह जाएंगे। वह
अण्डे तभी
देती है जब
तूफान उतरता
होता है, एक—एक.
कदम सागर की
लहरें पीछे
हटती जाती हैं।
वह जहां अण्डे
देती है वहां
लहरें दुबारा
नहीं आती फिर,
नहीं तो
लहरें अण्डे
बहा ले जाएंगी।
वैज्ञानिक
बहुत परेशान
रहे हैं कि इन
मछलियों को
कैसे पता चलता
है कि सागर अब
उतरेगा। सागर
के उतरने की
घड़ी आ गयी।
क्योंकि जरा—सी
भी भूल—चूक
समय की और अण्डे
तो सब बह
जाएंगे! और
उन्होंने भूल—चूक
कभी नहीं की
लाखों साल में, नहीं
तो वे खत्म हो
गयी होतीं।
उन्होंने कभी
भूल की ही
नहीं। पर इन
मछलियों के
पास क्या उपाय
है जिनसे ये
जान पाती है? इनके पास
कौन—सी
इन्द्रिय है
जो इनको बताती
है कि अब सागर
उतरेगा? लाखों
मछलियां एक
क्षण में
किनारे पर
इकट्ठी हो
जाएंगी। इनके
पास जरूर कोई
संकेत—लिपि, इनके पास
कोई सूचना का
यंत्र होना ही
चाहिए।
करोड़ों
मछलियां दूर—दूर
हजारों मील
सागर तल पर
इकट्ठे होकर
अण्डे रख
जाएंगी एक खास
घड़ी में।
जो
अध्ययन करते
है,
वे कहते हैं
कि चांद के
अतिरिक्त और
कोई उपाय नहीं
है। चांद से
ही इनको
संवेदनाएं
मिलती हैं। इन
मछलियों को उन
संवेदनाओं से
पता चलता है कि
कब उतार पर, कब चढ़ाव पर..।
चांद से रे
उन्हें धक्के
मिलते हैं
उन्हीं धक्कों
के अतिरिक्त
और कोई रास्ता
नहीं है कि उनको
पता चल जाए।
यह भी हो सकता
है... कुछ का
खयाल था कि
सागर की लहरों
से कुछ पता
चलता होगा।
तो
वैज्ञानिकों
ने इन मछलियों
को ऐसी जगह
रखा जहां सागर
की लहर ही
नहीं है। झील
पर रखा, अंधेरे
कमरों पर पानी
में रखा।
लेकिन बड़ी
हैरानी की बात
है। जब चांद
ठीक घड़ी पर
आया... अंधेरे
में बन्द हैं
मछलियां, उनको
चांद का कोई
पता नहीं, आकाश
का कोई पता
नहीं, पर
जब चांद ठीक
जगह पर आया, तब समुद्र
की मछलियां
जाकर तट पर अण्डे
देने लगीं—तब
उन मछलियों ने
पानी में ही अण्डे
दे दिए। उनका
पानी में ही अण्डे
छोड़ देना.
क्योंकि कोई
तट नहीं, कोई
किनारा नहीं—तब
तो लहरों का
कोई सवाल न
रहा! अगर कोई
कहता हो कि
दूसरी
मछलियों को
देखकर यह दौड़
पैदा हो जाती
होगी, तो
वह भी सवाल न
रहा। अकेली
मछलियों को रखकर
भी देखा। ठीक
जब करोड़ों
मछलियां सागर
के तट पर
आएंगी.. इनके
दिमाग को सब
तरह से गड़बड़
करने की कोशिश
की—चौबीस
घण्टे
अन्धेरे में
रखा ताकि
उन्हें पता न
चले कि कब
सुबह होती है,
कब रात होती
है—चौबीस
घण्टे उजाले
में भी रखकर
देखा, ताकि
उनको पता ही न
चले कि कब रात
होती है—झूठे
चांद की रोशनी
पैदा करके
देखी कि रोज
रोशनी को कम
करते जाओ, बढ़ाते
जाओ, लेकिन
मछलियों को
धोखा नहीं
दिया जा सका।
ठीक चांद जब
अपनी जगह पर
आया तब
मछलियों ने अण्डे
दे दिए। जहां
भी थीं, वहीं
उन्होंने
अण्डे दे दिए।
हजारों—लाखों
पक्षी हर साल
यात्रा करते
हैं,
लाखों—हजारों
मील की।
सर्दियां
आनेवाली हैं,
बर्फ पड़ेगी
तो बर्फ के
इलाके से
पक्षी उड़ना शुरू
हो जाएंगे।
हजारों मील
दूर किसी जगह
वे पड़ाव
डालेंगे।
वहां तक
पहुंचने में
भी उन्हें दो
महीने लगेंगे,
महीना भर
लगेगा। अभी
बर्फ गिरनी
शुरू नहीं हुई,
महीनेभर
बाद गिरेगी।
ये पक्षी कैसे
हिसाब लगाते
हैं कि महीने भर
बाद बर्फ
गिरेगी, क्योंकि
अभी हमारी
मौसम को बताने
वाली जो
वेधशालाएं
हैं वे भी पकी
खबर नहीं दे पाती
है,।
मैंने
तो सुना है कि
कुछ मौसम की
खबर देनेवाले
लोग पहले
ज्योतिषियों
से पूछ जाते
हैं सड्कों पर
बैठे हुए कि
आज क्या खयाल
है—पानी
गिरेगा कि
नहीं?
आदमी
ने अभी जो—जो
व्यवस्था की
है वह बचकानी
मालूम पड़ती है।
यह पक्षी स्व—डेढ़
महीने, दो
महीने पहले
पता करते हैं
कि अब बर्फ कब
गिरेगी? और
हजारों
प्रयोग करके
देख लिया गया
है कि जिस दिन
पक्षी उड़ते
हैं, हर
पक्षी की जाति
का निश्चित
दिन है। हर
वर्ष बदल जाता
है वह निश्चित
दिन क्योंकि
बर्फ का कोई
ठिकाना नहीं।
लेकिन हर
पक्षी का तय
है कि वह बर्फ
गिरने के एक
महीने पहले
उड़ेगा तो हर
वर्ष वह एक
महीने पहले
उड़ता है। बर्फ
दस दिन बाद
गिरे तो वह दस
दिन बाद उड़ता
है। बर्फ दस
दिन पहले गिरे
तो वह दस दिन
पहले उड़ता है।
यह बर्फ के
गिरने का कुछ निश्चित
तो नहीं है, यह पक्षी
कैसे उड़ जाते
हैं महीने भर
पहले पता लगाकर!
जापान
में एक चिड़िया
होती है जो
भूकम्प आने के
चौबीस घण्टे
पहले गांव
खाली कर देती
है। साधारण
गांव की
चिड़िया है। हर
गांव में बहुत
होती हैं।
भूकम्प आने के
चौबीस घण्टे
पहले चिड़िया
गांव खाली कर
देगी। अभी भी
वैज्ञानिक दो
घण्टे के पहले
भूकम्प का पता
नहीं लगा पाते।
और दो घण्टे
पहले भी
अनसटेंन्टी
होती है, पका
नहीं होता है।
सिर्फ
प्रोबेबिलिटी
होती है, सम्भावना
होती है कि
भूकम्प हो
सकता है।
लेकिन चौबीस
घण्टे पहले
जापान में तो
भूकम्प का
फौरन पता चल
जाता है। जिस
गांव से
चिड़िया उड़
जाती है उस
गांव के लोग समझ
जाते है, भाग
जाओ—चौबीस
घण्टे का वक्त
है। वह चिड़िया
हट गई, गांव
में दिखाई
नहीं पड़ती। इस
चिड़िया को
कैसे पता चलता
होगा?
वैज्ञानिक
अभी दस वर्षों
में एक नयी
बात कह रहे
हैं और वह यह
कि प्रत्येक
प्राणी के पास
कोई ऐसी अन्तर—इन्द्रिय
है जो जागतिक
प्रभावों को
अनुभव करती है।
शायद मनुष्य
के पास भी है
लेकिन मनुष्य
ने अपनी
बुद्धिमानी
में उसे खो
दिया है।
मनुष्य अकेला
ऐसा प्राणी है
जगत में जिसके
पास बहुत—सी
चीजें हैं जो
उसने
बुद्धिमानी
में खो दी हैं
और बहुत—सी
चीजें जो उसके
पास नहीं थीं
उसने
बुद्धिमानी
में उसको पैदा
करके खतरा मोल
लिया है। जो
है उसे खो
दिया है, जो
नहीं है उसे
बना लिया है।
लेकिन
छोटे—से—छोटे
प्राणियों के
पास भी कुछ
संवेदना के
अन्तर—स्रोत
हैं। और अब
इसके लिए
वैज्ञानिक
आधार मिलने
शुरू हो गए
हैं कि अन्तर—स्रोत
हैं। ये अन्तर—स्रोत
इस बात की खबर
लाते हैं कि
इस पृथ्वी पर जो
जीवन है वह
आइसोलेटेड, पृथक
नहीं है। यह
सारे
ब्रह्माण्ड
से संयुक्त है।
और कहीं भी
कुछ घटना घटती
है तो उसके
परिणाम यहां
होने शुरू हो
जाते हैं।
जैसा
मैं आपसे कह
रहा था
पैरासेल्सस
के संबंध में।
आधुनिक
चिकित्सक भी
इस नतीजे पर
पहुंच रहे हैं
कि जब भी
सूर्य पर अनेक
बार धब्बे
प्रकट होते
है... ऐसे भी
सूर्य पर कुछ
धब्बे हैं, डाट्स,
स्पाट्स
होते हैं—कभी
वे बढ़ जाते
हैं, कभी
वे कम हो जाते
हैं। जब सूर्य
पर स्पाट्स बढ़
जाते हैं तो
जमीन पर बीमारियां
बढ़ जाती है।
और जब सूर्य
पर काले धब्बे
कम ये जाते
हैं तो जमीन
पर बीमारियां
कम हो जाती
हैं। और जमीन
से हम
बीमारियां
कभी न मिटा
सकेंगे, जब
तक सूर्य के
स्पाट्स कायम
हैं।
हर
ग्यारह वर्ष
में सूरज पर
भारी उयात
होता है, बड़े
विस्फोट होते
हैं। और जब
ग्यारह वर्ष
में सूरज पर
विस्फोट होते हैं
और उत्पात
होते है तो
पृथ्वी पर
युद्ध और उत्पात
होते हैं।
पृथ्वी पर
युद्धों का जो
क्रम है वह हर
दस वर्ष का है।
महामारियों
का जो क्रम है
वह दस और ग्यारह
वर्ष के बीच
का हैं।
क्रान्तियों
का जो क्रम है
वह दस और
ग्यारह वर्ष
के बीच का है।
एक
बार खयाल में
आना शुरू हो
जाए कि हम अलग
और पृथक नहीं
हैं,
संयुक्त
हैं, आर्गेनिक
हैं तो फिर
ज्योतिष को
समझाना आसान हो
जाएगा। इसलिए
मैं ये सारी
बातें आपसे कह
रहा हूं।
कुछ
आदमी को ऐसा
खयाल पैदा हो
गया था— अब भी
है कि ज्योतिष
एक
सुपरस्टीशन, एक
अन्धविश्वास
है। बहुत दूर
तक यह बात सच
भी मालूम पड़ती
है। असल में
वही चीज
अन्धविश्वास
मालूम पड़ने
लगती है जिसके
पीछे हम वैज्ञानिक
कारण बताने
में असमर्थ हो
जाएं। वैसे
ज्योतिष बहुत
वैज्ञानिक है
और विज्ञान का
अर्थ ही होता
है कि कॉज और
एफेक्ट के बीच,
कार्य और
कारण के बीच
संबंध की
तलाश!
ज्योतिष
कहता यही है
कि इस जगत में
जो भी घटित होता
है उसके कारण
हैं। हमें शात
न हो,
यह हो सकता
है। ज्योतिष
यह कहता है कि
भविष्य जो भी
होगा वह अतीत
से विच्छिन्न
नहीं हो सकता,
उससे जुड़ा
हुआ होगा। आप
कल जो भी
होंगे वह आज
का ही जोड़
होगा। आज तक
आप जो हैं वह
बीते हुए कल
का जोड़
ज्योतिष
बहुत वैज्ञानिक
चिन्तन है। वह
यह कहता है कि
भविष्य अतीत
से ही निकलेगा।
आपका आज कल से
निकला है, आपका
आनेवाला कल आज
से निकलेगा।
और ज्योतिष यह
भी कहता है कि
जो कल
होनेवाला है
वह किसी
सूक्ष्म
अर्थों में आज
भी मौजूद होना
चाहिए।
अब
इसे थोड़ा
समझें।
अब्राहम
लिंकन ने मरने
के तीन दिन
पहले एक सपना
देखा। जिसमें
उसने देखा कि
उसकी हत्या कर
दी गयी है और
ह्वाइट हाउस
के एक खास
कमरे में उसकी
लाश पड़ी हुई
है। उसने नंबर
भी कमरे का
देखा। उसकी
नींद खुल गई।
वह हंसा, उसने
अपनी पली को
कहा कि मैंने
एक सपना देखा
है कि मेरी
हत्या कर दी
गयी है..... फलां—फलां
नंबर! उसी
मकान में तो
वह सोया हुआ
है ह्वाइट
हाउस के। इस
मकान के फलां
नंबर के कमरे
में मेरी लाश
पड़ी है। मेरे
सिरहाने तू
खड़ी हुई है और
आस—पास फलां—फलां
लोग खड़े हुए
हैं। हंसी हुई,
बात हुई—लिंकन
सो गया, पली
सो गयी! तीन
दिन बाद लिंकन
की हत्या हुई
और उसी नंबर
के कमरे में
और उसी जगह
उसकी लाश तीन दिन
के बाद पड़ी थी
और उसी क्रम
में आदमी खड़े
थे।
अगर
तीन दिन बाद
जो होनेवाला
है वह किसी
अर्थों में आज
ही न हो गया हो
तो उसका सपना
कैसे निर्मित
हो सकता है? उसकी
सपने में झलक
भी कैसे मिल
सकती है! सपने
में झलक तो
उसी बात की
मिल सकती है
जो किसी अर्थ
में अभी भी
कहीं मौजूद
हो। तो हम
उसकी एक ग्लिम्प्स,
खिड़की खोले
और हमें
दिखायी पड़ जाए
लेकिन खिड़की
के बाहर मौजूद
हो! लेकिन
कहीं मौजूद हो।
ज्योतिष का
मानना है कि
भविष्य हमारा
अज्ञान है
इसलिए भविष्य
है। अगर हमें
ज्ञान हो तो
भविष्य जैसी
कोई घटना नहीं
है। वह अभी भी
कहीं मौजूद
महावीर
के जीवन में
एक घटना का
उल्लेख है, जिस
पर एक बहुत
बडा विवाद चला।
और महावीर के
सामने ही
महावीर के
अनुयायियों का
एक वर्ग टूट
गया। और पांच
सौ महावीर के
मुनियों ने
अलग पंथ का निर्माण
कर लिया उसी
बात से।
महावीर कहते
थे, जो हो
रहा है वह एक
अर्थ में हो
ही गया। अगर
आप चल पड़े तो
एक अर्थ में
पहुंच ही गए।
अगर आप बूढे
हो रहे हैं तो
एक अर्थ में
बूढ़े हो ही गए!
महावीर
कहते थे, जो हो
रहा है, जो
क्रियमाण है—वह
हो ही गया।
महावीर का एक
शिष्य वर्षा—काल
में महावीर से
दूर था, बीमार
था। उसने अपने
एक शिष्य को
कहा कि मेरे
लिए चटाई बिछा
दो। उसने चटाई
बिछानी शुरू
की। मुड़ी हुई,
गोल लपटी
हुई चटाई को
उसने थोडा—सा
खोला, तब
महावीर के उस
शिष्य को खयाल
आया कि ठहरो, महावीर कहते
हैं—जो हो रहा
है, वह हो
ही गया! तू आधे
में रुक जा!
चटाई खुल तो
रही है, लेकिन
खुल नहीं गयी—रुक
जा!
उसे
अचानक खयाल
हुआ कि यह तो
महावीर बडी
गलत बात कहते
हैं। चटाई आधी
खुली है, लेकिन
खुल कहां गई!
उसने चटाई
वहीं रोक दी।
वह लौटकर
वर्षा—काल के
बाद महावीर के
पास आया और
उसने कहा कि आप
गलत कहते हैं
कि जो हो रहा
है, वह हो
ही गया!
क्योंकि चटाई
अभी भी आधी
खुली रखी है—खुल
रही' थी, लेकिन खुल
नहीं गई! तो
मैं आपकी बात
गलत सिद्ध करने
आया हूं।
महावीर ने
उससे जो कहा, वह नहीं समझ
पाया होगा, वह बहुत बाल बुद्धि
का रहा होगा, अन्यथा ऐसी
बात लेकर नहीं
आता।
महावीर
ने कहा, तूने
रोका—रोक ही
रहा था.. और रुक
ही गया! वह जो
चटाई तू रोका—रोक
रहा था... रुक
गया! तूने
सिर्फ चटाई
रुकते देखी, एक और
क्रिया भी साथ
चल रही थी, वह
हो गयी! और फिर
कब तक तेरी
चटाई रुकी
रहेगी? खुलनी
शुरू हो गयी
है—खुल ही
जाएगी. तू
लौटकर जा! वह
जब लौटकर गया
तो देखा, एक
आदमी खोलकर उस
पर लेटा हुआ
है। विश्राम
कर रहा था। इस
आदमी ने सब
गड़बड़ कर दिया।
पूरा
सिद्धांत ही
खराब कर दिया।
महावीर
जब यह कहते थे
कि जो हो रहा
है वह हो ही गया
तो वह यह कहते
थे,
जो हो रहा
है वह तो
वर्तमान है, जो हो ही गया
वह भविष्य है।
कली खिल रही
है—खिल ही गई—खिल
ही जाएगी.. वह
फूल तो भविष्य
में बनेगी!
अभी तो खिल ही
रही है, अभी
तो कली ही है—लेकिन
जब खिल ही रही
है तो खिल
जाएगी। उसका
खिल जाना भी
कहीं घटित हो
गया।
अब
इसे हम जरा और
तरह से देखें, थोड़ा
कठिन पड़ेगा।
हम
सदा अतीत से
देखते हैं।
कली खिल रही
है। हमारा जो
चिन्तन है, आमतौर
से वह पास्ट
ओरिएंटेड है,
वह अतीत से
बंधा है। कहते
हैं, कली
खिल रही है, फूल की तरफ
जा रही है, कली
फूल बनेगी...
लेकिन इससे
उल्टा भी हो
सकता है! यह
ऐसा है जैसे
मैं आपको पीछे
से धक्का दे
रहा हूं आपको
आगे सरका रहा
हूं। ऐसा भी
हो सकता है, कोई आपको
आगे से खींच
रहा है—गति
दोनों तरह हो
सकती है। मैं
आपको पीछे से
धक्का दे रहा
हूं और आप आगे
जा रहे है।
ज्योतिष
का मानना है
कि यह अधूरी
दृष्टि है कि
अतीत धक्का दे
रहा है और
भविष्य हो रहा
है। पूरी
दृष्टि यह है
कि अतीत धक्का
दे रहा है और भविष्य
खींच रहा है।
कली फूल बन
रही है, इतना
ही नहीं है—फूल
कली को फूल
बनने के लिए
पुकार भी रहा है!
खींच भी रहा
है! अतीत पीछे
है, भविष्य
आगे है। अभी
वर्तमान के
क्षण में एक
कली है। पूरा
अतीत धक्का दे
रहा है कि खुल
जाओ। पूरा
भविष्य
आह्वान दे रहा
है, खुल
जाओ! अतीत और
भविष्य दोनों
के दबाव में
कली फूल बनेगी।
अगर
कोई भविष्य न
हो तो अतीत
अकेला फूल न
बना पाएगा।
क्योंकि
भविष्य में
अवकाश चाहिए
फूल बनने के लिए।
भविष्य में
जगह चाहिए, स्पेस
चाहिए।
भविष्य स्थान
दे तो ही कली
फूल बन पाएगी।
अगर कोई
भविष्य न हो
तो अतीत कितना
ही सिर मारे, कितना ही
धकाये—मैं
आपको पीछे से
कितना ही
धक्का दूं
लेकिन सामने
एक दीवार हो
तो मैं आपको
आगे न हटा
पाऊंगा, आगे
जगह चाहिए।
मैं धक्का दूं
और आगे की जगह
आपको स्वीकार
कर ले, आमंत्रण
दे दे कि आ जाओ,
अतिथि बना
ले, तो ही
मेरा धक्का
सार्थक हो पाए।
मेरे धक्के के
लिए भविष्य
में जगह चाहिए।
अतीत काम करता
है, भविष्य
जगह देता है।
ज्योतिष
की दृष्टि यह है
कि अतीत पर
खड़ी हुई
दृष्टि अधूरी
है,
आधी—वैज्ञानिक
है! भविष्य
पूरे वक्त
पुकार रहा है,
पूरे वक्त
खींच रहा है।
हमें पता नहीं,
हमें दिखाई
नहीं पड़ता। यह
हमारी आंख की
कमजोरी है, यह हमारी
दृष्टि की
कमजोरी है। हम
दूर नहीं देख
पाते। हमें कल
कुछ भी दिखाई
नहीं पड़ता।
कृष्णमूर्ति
की जन्म कुण्डली
देखें कभी तो
हैरान होंगे।
अगर ऐनी
बीसेन्ट और
लीड बीटर ने
फिक्र की होती
और
कृष्णमूर्ति
की जन्म कुण्डली
देख ली होती
तो भूलकर भी
कृष्णमूर्ति
के साथ मेहनत
नहीं करनी
चाहिए थी।
क्योंकि
जन्म कुण्डली
में साफ है
बात कि
कृष्णमृर्ति
जिस संगठन से
सम्बन्धित
होंगे, उस
संगठन को नष्ट
करनेवाले
होंगे—जिस
संस्था से
सम्बन्धित
होंगे, उस
संस्था को
विसर्जित
करवा देंगे—जिस
संगठन के
सदस्य बनेंगे,
वह संगठन मर
जाएगा।
लेकिन
ऐनी बीसेन्ट
भी मानने को
तैयार नहीं होती।
कोई सोच भी
नहीं सकता था, लेकिन
हुआ यही।
थियोसाफी ने
उन्हें खड़ा
करने की कोशिश
की थी।
थियोसाफी को
उनकी वजह से
इतना धक्का
लगा कि वह सदा
के लिए मर गया
आन्दोलन। फिर
ऐनी बीसेन्ट
ने 'स्टार
ऑफ द ईस्ट' नाम
से बड़ी संस्था
खड़ी की। फिर
एक दिन
कृष्णमूर्ति
उस संस्था को
विसर्जित
करके अलग हो
गए। ऐनी
बीसेन्ट ने
पूरा जीवन उस
संस्था को खड़ा
करने में
समर्पित किया
और नष्ट किया
अपने को।
लेकिन उसमें
कृष्णमूर्ति
का भी कुछ
बहुत हाथ नहीं
है। वह जिन
नक्षत्रों की
छाया में पैदा
हुए हैं उन
नक्षत्रों की
सीधी सूचना है।
वह किसी
संस्था में भी
डिस्ट्रक्टिव
सिद्ध होंगे।
किसी भी संस्था
के भीतर वह
विघटनकारी
सिद्ध होंगे।
भविष्य
एकदम अनिश्चित
नहीं है।
हमारा ज्ञान अनिश्चित
है। हमारा अज्ञान
भारी है।
भविष्य में
हमें कुछ
दिखाई नहीं
पड़ता। हम
अन्धे है।
भविष्य का
हमें कुछ भी
दिखायी नहीं
पड़ता। नहीं
दिखायी पड़ता
है इसलिए हम
कहते हैं कि
निशित नहीं है, लेकिन
भविष्य में
दिखायी पड़ने
लगे... और ज्योतिष
भविष्य में
देखने की
प्रक्रिया
तो
ज्योतिष
सिर्फ इतनी ही
बात नहीं है
कि ग्रह—नक्षत्र
क्या कहते हैं, उनकी
गणना क्या
कहती है? यह
तो सिर्फ
ज्योतिष का एक
डायमेंशन है,
एक आयाम है।
फिर भविष्य को
जानने के और
आयाम भी हैं।
मनुष्य
के हाथ पर
खिंची हुई
रेखाएं हैं, मनुष्य
के माथे पर
खिंची हुई
रेखाएं हैं, मनुष्य के
पैर पर खिंची
हुई रेखाएं
हैं। पर ये भी
बहुत ऊपरी हैं।
मनुष्य के
शरीर में छिपे
हुए चक्र हैं।
उन सब चक्रों
का अलग—अलग
संवेदन है। उन
सब चक्रों की
प्रतिपल अलग—अलग
गति है, फ्रीकेंसी
है। उनकी जांच
है। मनुष्य के
पास छिपा हुआ,
अतीत का
पूरा संस्कार
बीज है।
रान
हुब्बार्ड ने
एक नया शब्द, एक
नयी खोज पश्चिम
में शुरू की
है—पूरब के
लिए तो बहुत
पुरानी है! वह
खोज है—टाइम
ट्रेक।
हुब्बार्ड का
खयाल है कि
प्रत्येक
व्यक्ति जहां
भी जिया है इस
पृथ्वी पर या
कहीं और किसी
ग्रह पर—आदमी
की तरह या
जानवर की तरह
या पौधे की
तरह या पत्थर
की तरह— आदमी
जहां भी जिया
है अनंत
यात्रा में—उस......
पूरा का पूरा
टाइम ट्रेक, समय की पूरी
की पूरी धारा
उसके भीतर अभी
भी संरक्षित
है। वह धारा
खोली जा सकती
है। और उस
धारा में आदमी
को पुन:
प्रवाहित
किया जा सकता
है।
हुब्बार्ड
की खोजों में
यह खोज बड़ी
कीमत की है।
इस टाइम ट्रेक
पर हुब्बार्ड
ने कहा है कि
आदमी के भीतर
इनप्रेन्स है।
एक तो हमारे
पास स्मृति है
जिसमें हम याद
रखते हैं कि
कल क्या हुआ, परसों
क्या हुआ। यह
स्मृति काम—चलाऊ
है, यह
रोजमर्रा की
है। जैसे हर
आदमी दुकान पर
या आफिस में
रोजमर्रा की
बही रखता है।
वह काम—चलाऊ
होती है। वह
रोज बेकार हो
जाती है। वह
असली नहीं है।
वह स्थायी भी
नहीं है। यह
हमारी काम—चलाऊ
स्मृति है
जिसमें हम रोज
काम करते हैं,
इसे रोज
फेंक देते हैं।
और इससे गहरी
एक स्मृति है
जो काम—चलाऊ
नहीं है, जो
हमारे जीवन के
समस्त
अनुभवों का
सार है, अनंत—अनंत
जीवन पथों पर
लिए गए
अनुभवों का
सार इकट्ठा है।
उसे
हुब्बार्ड ने
इनग्रेन कहा
है। वह हमारे
भीतर इनग्रेड
हो गयी है। वह
भीतर गहरे में
दबी हुई पड़ी
है पूरी की
पूरी। जैसे कि
एक टेप बन्द
आपके खीसे में
पड़ा हो। उसे
खोला जा सकता
है। और जब उसे
खोला जाता है
तो महावीर
उसको कहते थे
जाति—स्मरण, हुब्बार्ड
कहता है, टाइम
ट्रेक—पीछे
लौटना समय में।
जब उसे खोला
जाता है तो
ऐसा नहीं होता
कि आपको अनुभव
हो कि आप
रिमेम्बर कर
रहे हैं। ऐसा
नहीं होता है
कि आप याद कर
रहे हैं— 'यू
री—लिव'! जब
वह खुलती है, जब टाइम
ट्रेक खुलता
है तो आपको
ऐसा अनुभव नहीं
होता है कि
मुझे याद आ
रहा है! न, आप
पुन: जीते हैं।
समझ
लें,
अगर टाइम
ट्रेक आपका
खोला जाए, जो
कि खोलना बहुत
कठिन नहीं है
और ज्योतिष
उसके बिना
अधूरा है।
ज्योतिष की
बहुत गहनतम जो
पकड़ है वह तो
आपके अतीत के
खोलने की है
क्योंकि आपका
अतीत का अगर
पूरा पता चल
जाए तो आपका
पूरा भविष्य
पता चलता है।
क्योंकि आपका
भविष्य आपके
अतीत से
जन्मेगा।
आपके भविष्य
को आपके अतीत
को जाने बिना
नहीं जाना जा
सकता है।
क्योंकि आपका
अतीत आपके
भविष्य का
बेटा होनेवाला
है, उसी से
पैदा होगा। तो
पहले तो आपके
अतीत की पूरी
स्मृति—रेखा
को खोलना पड़े..
अगर आपकी
स्मृति—रेखा
को खोल दिया
जाए.. जिस की
प्रक्रियाएं
है और विधियां
हैं!
आप
अगर समझ लें
कि आपको याद आ
रहा है कि आप
छह वर्ष के
बच्चे हैं और
आपके पिता ने
चांटा मारा है
तो आपको ऐसा
याद नहीं आएगा
कि आपको याद आ
रहा है कि आप
छह वर्ष के
बच्चे हैं और
पिता चांटा
मार रहे हैं।’यू
विल री—लिव इट '। आप इसको
पुन: जिएंगे
और जब आप इसको
जी रहे होंगे,
अगर उस वक्त
मैं आप से
पूछूं कि
तुम्हारा नाम?
तो आप
कहेंगे, बबलू
आप नहीं
कहेंगे
पुरुषोत्तमदास।
छह वर्ष का
बच्चा उत्तर
देगा। आप री—लिव
कर रहे हैं उस
वक्त, आप
स्मरण नहीं कर
रहे हैं, पुरुषोत्तमदास
स्मरण नहीं कर
रहे हैं कि जब
मैं छह वर्ष
का था.. न, पुरुषोत्तमदास
छह वर्ष के हो
गए! वह कहेंगे,
बबलू! उस
वक्त वह जो—जो
जवाब देंगे वह
छह वर्ष का
बच्चा बोलेगा।
अगर
आपको पिछले
जन्म में ले
जाया गया है
और आप याद कर
रहे हैं कि आप
एक सिंह हैं
तो अगर उस वक्त
आपको के दिया
जाए तो आप
बिलकुल
गर्जना कर पड़ेंगे।
आप आदमी की
तरह नहीं
बोलेंगे। हो
सकता है आप
नाखून पंजों
से हमला बोल
दें। अगर आप
याद कर रहे
हैं कि आप एक
पत्थर हैं और
आपसे कुछ पूछा
जाए तो आप
बिलकुल मौन रह
जाएंगे, आप
बोल नहीं सकते।
आप पत्थर की
तरह ही रह
जाएंगे।
हुब्बार्ड
ने हजारों
लोगों की
सहायता की है।
जैसे एक आदमी
है जो ठीक से
नहीं बोल पाता, हुब्बार्ड
का कहना है कि
वह बचपन की
किसी स्मृति
पर अटक गया है।
उसके आगे नहीं
बढ़ पाया है।
तो वह उसके
टाइम ट्रेक पर
उसको वापस ले
जाएगा। उसके
इनग्रेन को
तोड़ेगा और जब
छह वर्ष का हो
जाएगा—जहां
रुक गयी थी, जहां से वह
आगे नहीं बढ़ा,
फिर जहां वह
वापस पहुंच
जाएगा... टूट
जाएगी धारा!
वह आदमी वापस
लौट आएगा। तब
वह तीस साल का
हो जाएगा। वह
जो बीच में
फासला था
चौबीस साल का
वह उसको पार
कर देगा और
हैरानी की बात
है कि हजारों
दवाइयां उस
आदमी को बोलने
में समर्थ
नहीं बना पाई
थीं लेकिन यह
टाइम ट्रेक पर
लौटकर जाना और
पुन: वापस लौट
आना... वह आदमी
बोलने में
समर्थ हो जाएगा!
आप को बहुत
दफे जो
बीमारियां
आती हैं वह केवल
टाइम ट्रेक की
वजह से आती
हैं। बहुत सी
बीमारियां
हैं, जैसे
दमा। दमा के
मरीज की तारीख
भी तय रहती है।
हर साल ठीक
वक्त पर ठीक
तारीख पर उसका
दमा लौट आता
है और इसलिए
दमा के लिए
कोई चिकित्सा
नहीं हो पाती।
क्योंकि दमा
असल में शरीर
की बीमारी
नहीं है, टाइम
ट्रेक की
बीमारी है, कही स्रक हो
गयी, कहीं
मेमोरी अटक
गयी है और जब
फिर वही आदमी
उस समय को
स्मरण कर लेता
है—बारह तारीख,
बरसा का
दिन... उसको बारह
तारीख आयी, बरसा का दिन
आया—वह तैयारी
कर रहा है, वह
घबरा रहा है
कि अब
होनेवाला है।
आप
हैरान होंगे
कि इस बार
उसको जो दमा
होगा, 'ही इज री—लिविग'
—वह दमा
नहीं है। वह
सिर्फ पिछले
साल की बारह
तारीख को री—लिव
कर रहा है।
मगर अब उसका
आप इलाज
करेंगे, आप
उसको झंझट में
डाल रहे हैं।
उसका इलाज
करने से कोई
मतलब नहीं है।
क्योंकि वह एक
साल पहलेवाला
आदमी अब है ही
नहीं जिसका
इलाज किया जा
सके। आप दवाएं
बेकार खा रहे
हैं क्योंकि
दवाएं उस आदमी
में जा रही
हैं जो अभी है
और बीमार वह
आदमी है जो एक
साल पहले था।
इन
दोनों के बीच
कोई तारतम्य
नहीं है, कोई
संबंध नहीं है।
आपकी हर दंवा
की असफलता, उसके दमा को
मजबूत कर
जाएगी और कह
जाएगी कि कुछ
नहीं
होनेवाला है।
वह अगले साल
की तैयारी फिर
कर रहा है। सौ
में से सत्तर
बीमारियां
टाइम ट्रैक पर
घटित हो गयी, पक्क गयी, जकड़ गयी
बातें हैं जो
हम लौट—लौटकर
जी लेते हैं।
ज्योतिष
सिर्फ
नक्षत्रों का
अध्ययन नहीं
है—वह तो है ही!
वह तो हम बात
करेंगे—साथ ही
ज्योतिष और
अलग—अलग
आयामों से
मनुष्य के
भविष्य को
टटोलने की चेष्टा
है कि वह
भविष्य कैसे
पकड़ा जा सके।
उसे पकड़ने के
लिए अतीत को
पकड़ना जरूरी
है। उसे पकड़ने
के लिए अतीत
के जो चिह्न
आपके शरीर पर
और आप के मन पर
छूट गए हैं
उन्हें
पहचानना
जरूरी है।
आपके शरीर पर
भी चिह्न हैं, आपके
मन पर भी
चिह्न हैं। और
जब से
ज्योतिषी
शरीर के
चिह्नों पर
बहुत अटक गए
हैं तब से
ज्योतिष की
गहराई खो गयी,
क्योंकि
शरीर के चिह्न
बहुत ऊपरी हैं।
आपके
हाथ की रेखा
तो आपके मन के
बदलने से इसी
वक्त भी बदल
सकती है। आपके
आयु की जो
रेखा है, अगर
आपको भरोसा
दिलवा दिया
जाए
हिप्रोटाइज करके
कि आप पन्द्रह
दिन बाद मर
जाएंगे और
आपको रोज
बेहोश करके
पन्द्रह दिन
तक यह भरोसा
पका बिठा दिया
जाए कि आप
पन्द्रह दिन बाद
मर जाओगे, आप
चाहे मरो या न
मरो, आपके
उम्र की रेखा
पन्द्रह दिन
के समय पहुंचकर
टूट जाएगी।
आपकी उम्र की
रेखा में गैप
आ जाएगा। शरीर
स्वीकार कर
लेता है कि
ठीक है, मौत
आती है।
शरीर
पर जो रेखाएं
हैं वह तो
बहुत ऊपरी
घटनाएं हैं।
भीतर गहरे में
मन है और जिस
मन को आप
जानते हैं वही
गहरे में नहीं
है। वह तो
बहुत ऊपर है, बहुत
गहरे में तो
वह मन है
जिसका आपको
पता नहीं है।
इस शरीर में
भी गहरे में
जो चक्र हैं, जिनको योग
चक्र कहता है,
वह चक्र
आपकी जन्मों—जन्मों
की संपदा का
संग्रहीत रूप
है। आपके चक्र
पर हाथ रखकर
जो जानता है वह
जान सकता है
कि कितनी गति
है उस चक्र की।
आपके सातों
चक्रों को
छूकर जाना जा
सकता है कि
आपने कुछ
अनुभव किए हैं
कभी या नहीं।
मैं
सैकड़ों
लोगों के
चक्रों पर
प्रयोग किया
हूं। तो मैं
हैरान हुआ कि
एकाध या
ज्यादा से
ज्यादा दो
चक्रों के
सिवाय, आमतौर
से तीसरा चक्र
शुरू ही नहीं
होता, उसने
गति ही नहीं
की है कभी, वह
बन्द ही पड़ा
है। उसका कभी
आपने उपयोग ही
नहीं किया। तो
वह आपका अतीत
है। उसे जानकर
अगर एक आदमी
मेरे पास
आए
और मैं देखूं
कि उसके सातों
चक्र चल रहे
हैं तो उससे
कहा जा सकता
है कि यह
तुम्हारा
अंतिम जीवन है, अगला
जीवन नहीं
होगा।
क्योंकि सात
चक्र चल गए
हों तो अगले
जीवन का अब
कोई उपाय नहीं
है। इस जीवन
में निर्वाण
हो जाएगा, मुक्ति
हो जाएगी।
महावीर
के पास कोई
आता तो वे
फिक्र करते इस
बात की कि उस
आदमी के कितने
चक्र चल रहे
हैं। उसके साथ
कितनी मेहनत
करनी उचित है, क्या
हो सकेगा उसके
साथ? मेहनत
करने का कोई
परिणाम होगा
या नहीं होगा?
या कब हो
पाएगा? या
कितने जन्म
लगेंगे? भविष्य
को टटोलने की
चेष्टा है
ज्योतिष— अनेक—अनेक
मार्गों से।
उनमें एक
मार्ग, जो
सर्वाधिक
प्रचलित हुआ,
वह मह
नक्षत्रों का
प्रभाव
मनुष्य के ऊपर—उसके
लिए वैज्ञानिक
आधार रोज—रोज
मिलते चले
जाते हैं।
इतना तय हो
गया है कि
जीवन
प्रभावित है।
और जीवन
अप्रभावित
नहीं हो सकता
है।
दूसरी
बात ही कठिनाई
की रह गयी—क्या
व्यक्तिगत
रूप से? —क्या
एक—एक व्यक्ति
भी प्रभावित
है? यह जरा
चित्ता
वैज्ञानिकों
को लगती है कि
एक—एक व्यक्ति—तीन
अरब, साढ़े
तीन अरब, चार
अरब आदमी हैं
जमीन पर—क्या
एक—एक आदमी
अलग—अलग ढंग
से..? लेकिन
उनको कहना
चाहिए, यह
इतनी परेशानी
की बात क्या
है!
अगर
प्रकृति एक—एक
आदमी को अलग—अलग
ढंग का अंगूठा
दे सकती है, इंडीवीजुअल
और पुनरुक्त
नहीं करती है—इतनी
बारीकी से
हिसाब रख सकती
है प्रकृति कि
एक—एक आदमी को
जो अंगूठा
देती है, वह
इंडीवीजुअल, उसकी छाप
किसी दूसरे
आदमी की छाप
फिर कभी नहीं
होती। अभी ही
नहीं, कभी
नहीं होती!
जमीन पर अरबों
आदमी रहे हैं
और अरबों आदमी
रहेंगे लेकिन
मेरे अंगूठे
की जो छाप है वह
दोबारा फिर
नहीं होगी।
आप
हैरान होंगे
मैंने एक अंडे
के दो जुड़वा
बच्चों की बात
कही। उनके भी
अंगूठे एक
जैसे नहीं
होते। उनके भी
दोनों अंगूठों
की छाप अलग
होती है। अगर
प्रकृति एक—एक
आदमी को इतना
व्यक्तित्व
दे पाती है, अंगूठे
जैसी बेकार
चीज को हम
सबको, जो
बेकार ही है, कुछ खास
प्रयोजन का
नहीं मालूम
पड़ता, उसको
इतनी
विशिष्टता दे
पाती है तो एक—एक
व्यक्ति को
आत्मा और जीवन
विशिष्ट न दे
पाए, कोई
कारण नहीं
मालूम होता।
पर विज्ञान
बहुत धीमी गति
से चलता है और
ठीक है, वैज्ञानिक
होने के लिए
उतनी धीमी गति
ठीक है। जब तक
तथ्य पूरी तरह
सिद्ध न हो
जाएं तब तक
इंच भी आगे
सरकना उचित
नहीं है।
प्रोफेट्स, पैगंबर
तोर छलांगें
भर लेते हैं।
वह हजारों, लाखों साल
बाद जो तय
होगी उसकी कह
देते हैं।
विज्ञान तो एक—एक
इंच सरकता है।
अब प्राइमरी
स्कूल के
बच्चे के
दिमाग में जो बात
आ सके—वही बात!
वह बात नहीं
जो कि
प्रोफेट्स और
विज़नरीज़—सपने
देखनेवाले
लोग जो दूर—दूर
की चीजें देख
लेते हैं उनकी
समझ में आ सकें—उतनी
बात! नहीं, उससे
विज्ञान का
उतना प्रयोजन
नहीं है। तथ्य—प्रयोगित
तथ्य पर ही
उसकी दृष्टि
है। सपने
देखने की उसे
सुविधा नहीं
है। पर
पैगम्बर तो
सपनों में भी
सत्य को खोल
लेते हैं।
उनके लिए तो
भविष्य भी
वर्तमान का ही
फैलाव है।
ज्योतिष
मूलतः चूंकि
भविष्य की
तलाश है, और
विज्ञान
चूंकि मूलतः
अतीत की तलाश
है—विज्ञान
इसी बात की
खोज है कि काज
क्या है, कारण
क्या है, और
ज्योतिष इसी
बात की खोज है
कि इफैक्ट
क्या होगा,
परिणाम क्या
होगा? इन
दोनों के बीच
बडा भेद है।
लेकिन फिर भी विज्ञान
को रोज—रोज
अनुभव होता
है! कुछ बातें
जो अनहोनी
लगती थीं, लगती
थीं—कभी सही
नहीं हो सकतीं,
वह सही होती
हुई मालूम
पड़ती हैं।
जैसा मैंने
पीछे आपको कहा,
अब
वैज्ञानिक इसको
स्वीकार कर
लिए हैं कि
प्रत्येक
व्यक्ति अपने
जन्म के साथ
बिल्ट—इन, अपना
व्यक्तित्व
लेकर पैदा
होता है, इसको
पहले वह मानने
को राजी नहीं
थे। ज्योतिष
इसे सदा से
कहता रहा है।
जैसे समझें एक
बीज है—आम का
बीज, आम के
बीज के भीतर
किसी—न—किसी
रूप में जब हम
आम के बीज को
बो देंगे तो
जो वृक्ष पैदा
होता है उसकी बिल्ट—इन
प्रोग्रेम
होना चाहिए।
उसका बू
प्रिंट होना
चाहिए—नहीं, तो यह आम का
बीज बेचारा.. न
कोई विशेषतों
की सलाह लेता
है, न किसी
यूनिवर्सिटी
में शिक्षा
पाता है!
यह
आम के वृक्ष
को कैसे पैदा
कर लेता है!
फिर इसमें वैसे
ही पत्ते लग
जाते हैं, फिर
इसमें वैसे ही
आम लग जाते
हैं। इस बीज, गुठली के भीतर
छिपा हुआ कोई
पूरा—का—पूरा
प्रोग्रेम
चाहिए, नहीं
तो बिना
प्रोग्रेम के
यह बीज क्या
कर पायेगा।
इसके भीतर सब
मौजूद चाहिए।
जो भी वृक्ष
में होगा वह
कहीं—न—कहीं
छिपा ही होना
चाहिए। हमें
दिखाई नहीं
पड़ता, काट
पीटकर हम देख
लेते हैं—कहीं
दिखाई नहीं
पड़ता, लेकिन
होना तो चाहिए।
अन्यथा आम के
बीज से फिर
नीम निकल सकती
है। भूल—चूक
हो सकती है।
लेकिन कभी भूल—चूक
होती दिखाई
नहीं पड़ती। आम
ही निकल आता
है, सब
रिपीट हो जाता
है, फिर
वही पुनरुक्त
कर जाता है।
इस
छोटे से बीज
में अगर सारी
की सारी
सूचनाएं छिपी
हुई नहीं हैं
कि इस बीज को
क्या करना है, कैसे
अंकुरित होना
है, कैसे
पत्ते, कैसी
शाखाएं कितना
बड़ा वृक्ष, कितनी उम्र
का वृक्ष, कितना
ऊंचा उठेगा—यह
सब इसमें छिपा
होना चाहिए।
कितने फल
लगेंगे, कितने
मीठे होंगे, पकेंगे कि
नहीं पकेंगे,
यह सब इसके
भीतर छिपा
होना चाहिए।
अगर आम के बीज
के भीतर यह सब
छिपा है तो आप
जब मां के पेट
में आते हैं
तो आपके बीज
में सब छिपा नहीं
होगा?
अब
वैज्ञानिक
स्वीकार करते
हैं कि आंख का
रंग छिपा होगा, बाल
का रंग छिपा
होगा। शरीर की
ऊंचाई छिपी
होगी, स्वास्थ्य—अस्वास्थ्य
की
सम्भावनाएं
छिपी होंगी।
बुद्धि का अंक
छिपा होगा, क्योंकि
इसके सिवाय
कोई उपाय नहीं
है कि आप विकसित
कैसे होंगे? आपके पास अग्रिम
प्रोग्रेम
चाहिए—कोई
हड्डी कैसे
हाथ बन जायेगी,
कोई हड्डी
कैसे पैर बन
जायेगी! चमड़ी
का एक हिस्सा आंख
बन जायेगा, एक कान बन
जायेगा। एक
हड्डी सुनने
लगेगी, एक
हड्डी देखने
लगेगी—यह सब
कैसे होगा?
वैज्ञानिक
पहले कहते थे, सब
संयोग है, लेकिन
संयोग शब्द
बहुत
अवैज्ञानिक
मालूम पड़ता है।
संयोग का मतलब
है, चांस।
तो फिर कभी
पैर देखने लगे
और कभी हाथ
सुनने लगे—और
इतना संयोग
नहीं मालूम पड़ता!
इतना
व्यवस्थित
मालूम पड़ता
है... ज्योतिष
ज्यादा वैज्ञानिक
बात कहता है।
ज्योतिष कहता
है, सब बीज
को उपलब्ध है।
हम अगर बीज को
पढ़ पाएं अगर
हम डी—कोड कर
पाएं अगर हम
बीज से पूछ
सकें कि तेरे
इरादे क्या है—तो
हम आदमी के
बाबत भी पूर्व
घोषणाएं कर सकते
हैं!
वृक्षों
के बाबत तो
वैज्ञानिक
घोषणा करने लगे।
बीस साल में
आदमी के बाबत
बहुत सी
घोषणाएं वे करने
लगेंगे। और अब
तक हम सब
समझते रहे कि
सुपरस्टीटस
है ज्योतिष, एक
विश्वास
मात्र है।
लेकिन यदि घोषणाएं
विज्ञान
करेगा तो वह ज्योतिष
भी हो जायेगा।
और विज्ञान
घोषणा करने लगेगा।
बहुत पुराने
ज्योतिषी, ज्योतिष
का पुराने से
पुराना
इजिप्तियन एक
ग्रंथ है
जिसको
पाइथागोरस ने
पढ़कर और यूनान
में ज्योतिष
को पहुंचाया।
वह
ग्रंथ कहता है—काश, हम
सब जान सकें, तो भविष्य
बिलकुल नहीं
है। चूंइक हम
सब नहीं जानते,
कुछ ही
जानते हैं—इसलिए
जो हम नहीं
जानते, वह
भविष्य बन
जाता है। हमें
कहना पड़ता है,
शायद ऐसा
हो! क्योंकि
बहुत कुछ है
जो अनजान है।
अगर सब जाना
हुआ हो तो हम
कह सकते हैं
कि ऐसा ही होगा।
फिर इसमें
रत्तीभर फर्क
नहीं होगा.
आदमी के बीज
में भी अगर सब
छिपा है!
आज
जो मैं बोल
रहा हूं किसी
न किसी रूप
में मेरे बीज
में यह
सम्भावना
होनी चाहिए थी, अन्यथा
मैं यह कैसे
बोलता। अगर
किसी दिन यह
सम्भावना हो
सकी और हम
आदमी के बीज
को देख सकें
तो मेरे बीज
को देखकर मैं
क्या बोल
सकूंगा जीवन
में, उसकी
घोषणा की जा
सकती है। क्या
हो सकूंगा, क्या नहीं
हो सकूंगा, क्या बनूंगा,
क्या नहीं
बनूंगा, क्या
घटित होगा, उस सबकी
सूचना हो सकती
है और कोई
आश्रर्य नहीं
है कि हम आज
नहीं कल आदमी
के बीज में
झांकने में
समर्थ हो जाएं।
जन्म
कुंडली या
होरोस्कोप
उसका ही
टटोलना है।
हजारों वर्ष
से हमारी कोशिश
यही है कि जो
बच्चा पैदा हो
रहा है वह
क्या हो सकेगा? हमें
कुछ तो अन्दाज
मिल जाए तो
शायद हम उसे
सुविधा दे
पाएं। शायद हम
उससे आशाएं
बांध पाएं। जो
होने वाला है,
उसके साथ हम
राजी हो जाएं।
मुल्ला
नसरुद्दीन ने
अपने जीवन के
अन्त में कहा
है कि मैं सदा
दुखी था। फिर
एक दिन मैं
अचानक सुखी हो
गया। गांवभर
के लोग चकित
हो गए कि जो
आदमी सदा दुखी
था और जो आदमी
हर चीज का
अंधेरा देखता
था वह अचानक प्रसन्न
कैसे हो गया—जो
हमेशा
पेसिमिस्ट था, जो
हमेशा देखता
था कि कांटे
कहां—कहां ??!
एक
बार
नसरुद्दीन के
बगीचे में
बहुत अच्छी फसल
आ गई। सेव
बहुत लगे—ऐसे
कि वृक्ष लद
गए! पड़ोस में
एक आदमी ने
पूछा, सोचा
उसने कि अब तो
नसरुद्दीन
कोई शिकायत न
कर सकेगा —कहा
कि इस बार तो
फसल ऐसी है कि
सोना बरस
जायेगा, क्या
खयाल है, नसरुद्दीन!
नसरुद्दीन ने
बड़ी उदासी से
कहा, और सब
तो ठीक है
लेकिन
जानवरों को खिलाने
के लिए सड़े
सेव कहां से
लाओगे? उदास
बैठा है वह।
जानवरों को
खिलाने के लिए
सडे सेव कहां
से लाओगे, सब
सेव अच्छे हैं,
कोई सड़ा हुआ
ही नहीं! एक
मुसीबत है।
वह
आदमी एक दिन
अचानक
प्रसन्न हो
गया तो गांव के
लोगों को
हैरानी हुई तो
गांव के लोगे
ने पूछा कि
तुम और प्रसन्न—नसरुद्दीन!
क्या राज है
इसका? नसरुद्दीन
ने कहा, आई
हेव लर्न्ट टु
कोआपरेट विद
दि इनइवीटेबल।
वह जो
अनिवार्य है
मैं उसके साथ
सहयोग करना सीख
गया हूं। बहुत
दिन लड़कर देख
लिया। अब
मैंने यह तय
कर लिया है कि
जो होना है, होना है! अब
मैं सहयोग
करता हूं
इनइवीटेबल के
साथ— जो
अनिवार्य है
उसके साथ मैं
सहयोग करता
हूं। अब दुख
का कोई कारण न
रहा। अब मैं
सुखी हूं।
ज्योतिष
बहुत बातों की
खोज थी। उसमें
जो अनिवार्य
है,
उसके साथ
सहयोग—वह जो
होने ही वाला
है, उसके
साथ व्यर्थ का
संघर्ष नहीं,
जो नहीं
होनेवाला है,
उसकी
व्यर्थ की मांग
नहीं, उसकी
आकांक्षा
नहीं! ज्योतिष
मनुष्य को
धार्मिक
बनाने के लिए,
तथाता में
ले जाने के
लिए, परम
स्वीकार में
ले जाने के
लिए उपाय था।
उसके बहु आयाम
है।
हम
धीरे— धीरे एक—एक
आयाम पर बात
करेंगे। आज तो
इतनी बात, कि
जगत एक जीवंत
शरीर है, आर्गनिक
यूनिटी है।
उसमें कुछ भी
अलग—अलग नहीं
है—सब संयुक्त
है। दूर से
दूर जो है वह
भी निकट से
निकट जुडा है—अजुडा
कुछ भी नहीं
है। इसलिए कोई
इस भांति में
न रहे कि वह
आइसोलेटेड
आइलैंड है।
कोई इस भांति
में न रहे कि
कोई एक द्वीप
है छोटा—सा—
अलग— थलग।
नहीं, कोई
अलग— थलग नहीं
है, सब
संयुक्त है और
हम पूरे समय
एक दूसरे को
प्रभावित कर
रहे हैं और एक
दूसरे से
प्रभावित हो रहे
हैं। सड़क पर
पड़ा हुआ पत्थर
भी, जब आप
उसके पास से
गुजरते हैं तो
आपकी तरफ अपनी
किरणें फेंक
रहा है। फूल
भी फेंक रहा
है। और आप भी
ऐसे नहीं गुजर
रहे हैं, आप
भी अपनी
किरणें फेंक
रहे हैं।
मैने
कहा कि ?चांद—तारों
से हम
प्रभावित
होते हैं।
ज्योतिष का और
दूसरा खयाल है
कि चांद—तारे
भी हमसे
प्रभावित
होते हैं, क्योंकि
प्रभाव कभी भी
एकतरफा नहीं
होता। जब कभी
बुद्ध जैसा
आदमी जमीन पर
पैदा होता है तो
चांद यह न
सोचे कि चांद
पर उनकी वजह
से कोई तूफान
नहीं उठते।
बुद्ध की वजह
से कोई तूफान
चांद पर शांत
नहीं होते!
अगर सूरज पर
धब्बे आते हैं
और तूफान उठते
हैं तो जमीन
पर बीमारियां
फैल जाती है।
तो जमीन पर जब
बुद्ध जैसे
व्यक्ति पैदा
होते हैं और
शान्ति की
धारा बहती है
और ध्यान का
गहन रूप
पृथ्वी पर
पैदा होता है
तो सूरज पर भी
तूफान फैलने
में कठिनाई
होती है—सब
संयुक्त है!
एक
छोटा—सा घास
का तिनका भी
सूरज को
प्रभावित
करता है। और
सूरज भी घास
के तिनके को
प्रभावित
करता है। न तो
घास का तिनका
इतना छोटा है
कि सूरज कहे
कि तेरी हम फिक्र
नहीं करते और
न सूरज इतना
बड़ा है कि यह
कह सके कि घास
का तिनका मेरे
लिए क्या कर
सकता है—जीवन
संयुक्त है!
यहां
छोटा—बड़ा कोई
भी नहीं है, एक
आर्गनिक यूनिटी
है—एकात्म है।
इस एकात्म का
बोध अगर खयाल
में आए तो ही
ज्योतिष समझ
में आ सकता है,
अन्यथा
ज्योतिष समझ
में नहीं आ
सकता है।
इस
पर मैंने यह
आज बात कही, कल
और आयामों पर
हम धीरे— धीरे
बातें करेंगे।
'ज्योतिष : अद्वैत
का विज्ञान' :
(प्रश्रोत्तर
चर्चा)
बुडलैण्ड
बम्बई दिनांक 9
जुलाई 1971
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