समकक्षता का निर्णय—एक खतरनाक मूल्यांकन—(अध्याय—पांच)
1983 में, अमरीकी
सरकार द्वारा
भगवान श्री
रजनीश के धार्मिक
नेता न होने
का निर्णय
लिये जाने से
सारी दुनियां के
धार्मिक तथा
अन्य
पेशेवरों की
ओर से विरोध का
एक तूफान उठ
खड़ा हुआ।
प्रत्येक
ईसाई अवधारणा
(केथॅलिक, बेपिटस्ट,
चर्च ऑफ
इंग्लैण्ड, प्रेस्बिटेरियन,
केकर
लूथरन और
ऑर्थाडॉक्स)
के विद्वानों,यहूदी
रबाइयों, झेन
मंदिर के
क्रियों, बौद्ध
विद्वानों, और सारी दुनियां
से धर्म के
प्राध्यापकों
ने इनके पक्ष
में लिखा। ऐसा
ही विज्ञान, औषधि, मनोविज्ञान,
समाज—विज्ञान,
व्यापार
एवं कला—लोक
की प्रमुख
हस्तियों ने
भी किया।
उनके
संदेश का सार
संभवत:
सुप्रसिद्ध
अमरीकी कवि, लेखक एवं
फिल्म
निर्माता
जेम्स ब्रॉटन
के इन शब्दों
में
सवोंत्तमरूपेण
प्रगट हुआ है।
उन्होंने
लिखा: '' भगवान
श्री रजनीश इस
सदी के इन
अंतिम दशकों
के सर्वाधिक
असाधारण
व्यक्ति है।
इतिहास एवं
धार्मिक समझ
में एक उर्वर
नव अंतर्दृष्टि
व प्रकाश
लानेवाले वे
असामान्य योग्यताशील
शिक्षक एवं
लेखक है।
मुझे
यकीन है कि
आध्यात्मिक
परम्परा में
यहां एक
मस्तिष्क है
जिसमें
बौद्धिक चमक
है और एक लेखक
की राजी कर
लेनेवाली
योग्यता है।
ईसाई, बौद्ध,
ताओ, सूफी
और हिंदू
शिक्षाओं, अय
विधियों एवं
उन सबके महत्व
का एक नया बोध
उनसे मुझे
मिला है। यह
भगवान की
विशेष
प्रतिभा है कि
वे सभी प्रकार
के अनुभवों की
गहन समझ में
जाने में
लोगों की
सहायता इस ढंग
से करते है जो
आज के समाज के
लिए आवश्यक
एवं उपयुक्त,
दोनों है।
मैं उन्हें
अपने इस काल—खण्ड
की धार्मिक
चेतना के लिए
प्रमुख बल
मानता हूं।’’
एक
रोचक तथ्य जो
इन पत्रों से
प्रगट होता है
वह यह कि उनके
लेखक, विविध
क्षेत्रों के
पेशेवर, प्रत्येक
भगवान को उनके
अपने क्षेत्र
का विशेषज्ञ
मानता है।
मनोवैज्ञानिकों
के उनके बारे
में कहा, '' आज
विश्व में
मनोविज्ञान
में सबसे
निराले शिक्षक
''—डा.रुडॉल्फ
वामसर, प्रोफेसर,
मैक्स
प्लैंक इन्हीप्यूट
फॉर
साइकोपैथालॉजी
एण्ड
साइकोथेरेपी,
जर्मनी, चेयरमैन,
सेवनटीन्थ
कांग्रेस ऑफ
एक्सपेरीमेन्टल
साइकॉलॉजी; और— ‘‘एक
असाधारणरूपेण
प्रतिभाशाली
मनोवैज्ञानिक’‘
—डा. जेम्स
एस. गोर्डन, क्लिनिकल
एसोसिएट
प्रोफेसर, डिपार्टमेण्ट
ऑफ
साइकियाट्री
एण्ड
कम्प्रइनटी एण्ड
फेमिली
मेडिसिन, जार्जटाउन
यूनिवर्सिटी
मेडिकल स्कूल,
वाशिंग्टन
डीसी., यू.एस.ए.।
सामान्यत
: सकीर्णमना
धर्म—जगत से
भी अपनी ऊंची
प्रशंसाओं
द्वारा भगवान को
स्वीकृति
देने में
धार्मिक लोग
एकमत थे। इस
विरल उदारता
के पीछे एक
कारण यह हो
सकता है कि
भगवान कभी
किसी एक अकेले
धर्म को
अपनाते नहीं
देखे गये। पॉल
एफनिटर, प्रोफेसर ऑफ
थियालॉजी, झेवियर
युइनवर्सिटी,
सिनसिनाटी,
यू.एस.ए. ने
लिखा, ''भगवान
श्री रजनीश। हिंदूइिज्म,
बुद्धइज्य,
ताओइज्य, जुडाइज्य और
ईसाइयत सहित
अनेकों
धार्मिक
दृष्टिकोणों
के विद्वान
हैं।
उन्होंने न
केवल विश्व के
धर्मों का
अध्ययन किया
है बल्कि उन
सब की आत्मा
एवं आंतरिक
सत्य को अनुभव
करने एवं
सम्प्रेषित
करने में सफल
हुए है।
यद्यपि उनकी
जड़ें पूरब मै
बनी रहती है, वे किसी एक
धर्म की दूसरे
धर्मों पर
प्रभुता की
तलाश में नहीं
है।’’ जो भी
हो, 'भगवान
ने समस्त
व्यवस्थित
धर्मों पर
जोरशोर से और
अनम्य ढंग से
हमले किए हैं।
यह तथ्य इन
अग्रलिखित
प्रमाणपत्रों
को, जो
प्राय : सब के
सब व्यवस्थित
धर्मों के
प्रतिनिधियों
के हैं, और
भी
चौकानेवाला
बना देता है।
तुरिन
के
आर्चिमेण्ड्राइट, ग्रेगोरिओ
ने उनके बारे
में कहा, ‘‘एक
सद्गुरु जो
स्वर्ण—युग का
प्रारंभ कर
रहा है।’’‘' वे
हमारे युग के
महान धार्मिक
सद्गुरु हैं,
''वेनरेबल पर्मानिण्ट
कौंसिल ऑफ दि
आर्थोडॉक्स
चर्च, इटली
के राष्ट्रीय
अध्यक्ष ने
कहा। औरों ने
उनके वर्णन इस
प्रकार किये: ‘‘इस शताब्दी
में प्रगट हुए
सर्वाधिक
विरल व अत्यंत
प्रतिभाशाली
धर्मवेत्ता ''
—होसेन
गाकेन कालेज,
टोकियो के प्रोफेसर
काजूयोशी
किनो, विगत
तीस वर्षों से
एक बौद्ध
विद्वान; '' सभी
कालों के सर्वाधिक
विशिष्ट
धार्मिक
व्यक्तियों
में एक '' —जेम्स
आर. ऐजी, दस
वर्षों से
लूथरन
पुरोहित—वर्ग
के सदख; '' विश्व
के महान जीवित
शि क्षको में
एक '' —डेनियल
मट, पीएच
.डी., प्रोफेसर
ऑफ स्पाइक
स्टडीज, पेजुएट
थियॉलाजिकल
यूइनयन, केलिफोर्निया;
'' एक
असामान्य
योग्यताशील
धार्मिक
शिक्षक एवं
आध्यात्मिक
नेता '' —डा.
हेन्स—जुगेंन
पेशॅट, प्रोफेसर,
हिस्ट्री
ऑफ रिलीजन्स,
यूनिवर्सिटी
ऑफ मारबर्ग, जर्मनी; '' एक
अद्वितीयरूपेण
प्रतिभाशाली
आध्यात्मिक
शिक्षक '' —मारिस
आरस्टीन, पीएच
.डी., प्रोफेसर
ऑफ सोशलॉजी, ब्रैडाइस
यूनिवर्सिटी,
मसाचुसेट्स
(यू.एस.ए.);'‘‘' इस
शताब्दी के
महान प्रकाश ''
—रबाई जोसेफ
एच गेल्बरमॅन,
दि ट्री ऑफ
लाइफ सिनागॉग,
न्यूयार्क;
'' इस काल के
एक अतिशय
विशिष्ट एवम्
संबुद्ध
धार्मिक नेता ''
—रेवरेड
फ्रैंक
स्ट्रिब्रिग,
धर्मपुरोहित,
सैन्क्र्चुअरी
ऑफ लाइट चर्च,
टेक्साज़, (यू एस.ए.); '' विश्व—
धर्मों के शिक्षक
— दल में एक
विरल बढ़ोतरी ''
—डगलस वी.
स्टीअर्स, टी.
विस्टार
ब्राउन, प्रोफेसर
इमेरिटॅस (
अवकाशप्राप्त)
ऑफ फिलासॅफी,
हेवरफोर्ड
कालेज, पेनसिलवानिया,
(यू एस .ए.), दर्शनशास्त्र
व धर्म पर एक
दर्जन
पुस्तकों के
लेखक, और
भूतपूर्व
अध्यक्ष, अमेरिकन
थिऑलाजिकल
सोसायटी, तथा
अध्यक्ष, फ्रेण्डस
वर्ल्ड कमिटी—जोकि
केकर्स की
अंतर्राष्ट्रीय
संस्था है।
कला—जगत
से भगवान के
लिए इस प्रकार
प्रशंसाएं
आयीं: '' असामान्य
दूरदर्शिता
के कलाकार’‘ —बूनो
डेमाटिओ, जर्मन
कलाकार एवम् 'द साफ्टवेअर
कल्वर इज
कमिंग' तथा
'जेन्सीट्स
डेर बुस्ते' के लेखक; ‘‘एक
निपुण कलाकार ''
—पेरिन्धेरी
भास्करन
उन्नी, जर्मनी,
फिल्मकार
एवम् अभिनेता;
‘‘शब्दों के
असामान्य
कलाकार '' —सेमुअल
स्क्पीरो, फिल्मकार,
केन्स
फिल्म
महोत्सव में
बांज लॉयन
पुरस्कार के
विजेता।
स्कूल
ऑफ
इण्टरनेशनल
पालिटिक्स, एकॉनामिक्स
एण्ड बिजनेस,
अयामा
गाकिन
युनिवर्सिटी,
टोकियो में
इण्टरनेशनल
बिजनेस के एक
प्रोफेसर ने
भगवान का
वर्णन मात्र
यूं किया— ‘‘सचमुच
एक सार्वभौम
प्रतिभा''।
विज्ञान—जगत
से, डा.एम.
डब्ल्यू.
रान्सबर्ग, प्रोफेसर ऑफ
जनरल मेडिसिन एण्ड
सोसॅलाजी इन
मेडिसिन, फ्राइए
युइनवर्सिटी,
बर्लिन ने
भगवान का
वर्णन इस
प्रकार किया— ‘‘निसंदेह रूप
से एक
दार्शनिक
एवम्
वैज्ञानिक।’’
यूनिवर्सिटी
ऑफ ओक्लहॉमा,
यू.एस.ए. में
मेकेनिकल
इंजीनियरिग
के एक
प्रोफेसर तो भगवान
का वर्णन करने
में इतनी दूर
तक चले गये कि
इनके बारे में
उन्होंने कहा, असंदिग्ध
रूप से आज के
अग्रणी जीवित
जनरल
सिस्टम्स
इंजीनियर (महा—व्यवस्था
अभियंत्री)।’’
उन
प्रोफेसर, डारेल
हाडेंन, पीएचडी.
ने
सिस्टम्प्र
(व्यवस्था) —सिद्धांत
को ऊर्जा
घटनाओं की
संबद्धिता
बताया— ‘‘यहां
दागा गया एक
गोला सारी दुनियां
में सुनायी
देता है।’’ उन्होंने
यह स्वीकार
किया कि मेरे
अभियांत्रिकी
क्रिया—कलापों
में एक भारतीय
रहस्यदर्शी
एवं धार्मिक
नेता के
लेखनों का उपयोग
अजीब लग सकता
है, किंतु
उन्होंने कहा,
‘‘इतिहास
साक्ष्य है कि
समस्त अच्छी
अभियांत्रिकी
का जन्म उन
लोगों से हुआ
जिनके पास
प्रकृति और
भौतिक जगत की
सम्बद्धिता
की अंतर्दृष्टि
थी। भगवान
श्री रजनीश का
अंतर—संबद्धिता
का ज्ञान
विचारों का एक
उर्वर क्षेत्र
है।’’
जैसा
कि टेड एलशे, प्रोफेसर,
पोलिटिकल
साइंस, विलमेटे
यूनिवर्सिटी,
ओरेगॅन ने
निष्कर्ष
निकाला— '' भगवान
श्री रजनीश
स्पष्टत:
विश्व के सर्वाधिक
असाधारण
लोगों में एक
हैं।’’
ऐसे
लोग जो अपनी
आलोचनात्मक
मनःशक्तियों
का उपयोग करने
के लिए
प्रशिक्षित
किये गये हैं, उनके द्वारा
ऐसी
प्रशस्तियों
का आधार क्या
था? पत्रों
से ही विविध
उत्तर
प्राप्त होते
हैं।
प्रोफैसर
ओ.ए.बुशनेल, पीएचडी., इमेरिटॅस
(सेवामुक्त)
प्रोफेसर, मेडिकल
माइक्रोबॉयलॉजी
एउ ट्रापिकल
मेडिसिन एण्ड
हिस्ट्री ऑफ
मेडिसिन, हवाई
यूनिवर्सिटी
ने व्याख्या
की कि उन्होंने
क्यों भगवान
को '' आज के
जीवित
सर्वश्रेष्ठ
दार्शनिक एवं
आध्यात्मिक
नेता '' कहा।
उन्होंने
लिखा: '' उनके
प्रवचन
ईसाइयत, बुद्धिज्म,
जुडाज्मि, इस्लाम और
झेन के पहलुओं
पर व्याख्या
करते और
उन्हें
पुनरुज्जीवित
करते है। उनकी
पुस्तकें
समकालीनों के
लिए अस्तित्व
का अर्थ
समझाती हैं।
उनके प्रवचन
एवं विश्लेषण
सुकरात, पाइथागोरस
जैसे ग्रीक
दार्शनिकों, आइन्टीन
जैसे पाश्चात्य
वैज्ञानिकों
और पूरब कन्फ्यूशियस,
लाओत्सू
एवं गौतम
बुद्ध की जैसी
महान
दार्शनिक
परंपराओं को
नया प्रकाश
देते हैं।
''आधुनिक
काल में, विशेषत:
पाश्चात्य
समाजों में, भौतिकवाद, जीवन की तेज
रफ़तार, संबंधों
के
अस्थायित्व
और व्यापक
मुकदमेबाजी
दैनिक जीवन के
हिस्से बन गये
है।
पारमाण्विक
ऊर्जा एवं
बायोमेडिसिन
जैसे क्षेत्रों
में औद्योगिक
विकास ने
हमारे जीवन को
सुखमय बनाया
है, परंतु
उन्होंने
अप्रत्याशित
समस्याएं भी निर्मित
की हैं, जैसे,
पारमाण्विक
महाविनाश का
भय, लोगों
को मशीनों के
सहारे जिलाए रखे
जाना, आदि,
और इस
प्रकार
चिंताओं को
जन्म देकर
हमारे रोजमर्रा
जीवन को दुखमय
भी बनाया है।
ऐसे दुर्धर्ष
समय में, भगवान
श्री रजनीश की
पुस्तकें
जीवन में अर्थ
और वर्तमान
मनुष्य की दशा
में एक
तरोताजा
परिप्रेक्ष्य
लाती है। वे
अध्यात्म जगत
के यथार्थों
के प्रति
सजगता देते
हैं, और
व्यक्ति के मन
को तुष्टि एवं
शांति लाते हैं।’’
बुशनेल
ने आगे कहा, '' भगवान
श्री रजनीश ने
साहित्य एवं विज्ञान
को महत्वपूर्ण
योगदान किया
है और हम
आनंदित हैं कि
हमें उनका पता
चला।
उन्होंने
हमारे जीवन और
हमारे
कृत्यों को गहनरूप
से समृद्ध
किया है, ठीक
जैसे कि हमारे
अन्य समकालीन
लोगों के जीवन
को भी।’’ मनोवैज्ञानिकों
ने अपने जगत
में भगवान के
अद्वितीय
योगदान का
श्रेय उनके ‘‘बुद्धों का
मनोविज्ञान’‘
अथवा ‘‘तीसरा
मनोविज्ञान’‘
को दिया है।
नाइजेल डीडब्ल्यू.
आर्मिस्टीड, पीएचडी., 'रिकन्सक्टिंग
सोशल
साइकियाट्री'
(सामाजिक
मनोचिकित्सा
का
पुनर्निमाण)
पुस्तक के
लेखक और
भूतपूर्व
व्याख्याता, सामाजिक
मनोचिकित्सा,
यूनिवर्सिटी
ऑफ शेफील्ड, यूके. ने
लिखा: '' अपने
धार्मिक
प्रवचनों में,
जो सब के सब
पुस्तक रूप
में छपे हैं, उन्होंने
मानव—मन की
क्रियाओं के
बारे में अति
गहनतर अंतर्दृष्टि
का परिचय दिया
है बजाय किसी
भी पेशेवर के
जिन्हें अपने
कार्यकाल में
मैं अब तक
जानता हूं।
उन्हें पाश्चात्य
मनोविज्ञान
का अंतरंग
ज्ञान है, चाहे
वह
मनोविश्लेषक
धारा का हो, आचरणात्मक
का, अथवा
मानवीयात्मक
का, और
उन्होंने
स्वयं अपनी
धारा— 'बुद्धों
का
मनोविज्ञान' —प्रस्तुत की
है, जो
उपरोक्त सभी
धाराओं का
अतिक्रमण कर
जाती है
(देखें, विशेषत:
— 'दि
डिसिप्लिन ऑफ
ट्रांसेडेन्स'
चार भागों
में, 'दि
बुक ऑफ दि
बुक्स' छ:
भागों में, और 'फिलासाफिया
पेरेन्निस' दो भागों
में)। उनके
सामने अपनी
समस्याएं
लानेवाले
आगंतुकों एवं
शिष्यों के
साथ अपने
व्यवहार में
उन्होंने
कार्यरत
मनोवैज्ञानिक
के रूप में
असामान्य
योग्यता का
परिचय दिया है।
ऐसे
साक्षात्कारों
के अंकन भी
पुस्तक—रूप
में प्रकाशित
हैं, और वे
इनकी
मनोवैज्ञानिक
अंतदृष्टि
एवं चिकित्सा—निपुणता
की गवाही देते
हैं। इस
क्षेत्र में
इनकी योग्यता
किसी भी ऐसे
व्यक्तिं से
अतिशय बढ़कर है
जिनके
सम्पर्क में
मैं अपने बीस—वर्षीय
मनोवैज्ञानिक—जगत
से संबंध के
दौरान आया हूं।’’
डॉ
रुडोल्फ
वार्मसर, प्रोफेसर, मैक्स
प्लैंक
इंस्टीच्यूट
फॉर
साइकोपैथालॉजी
एण्ड
साइकोथेरॉपी
ने मनोविज्ञान
को भगवान की
देन की समता
भौतिकी में आइन्स्टीन
की देन से की
है: ‘‘मनोविज्ञान
के क्षेत्र
में भगवान
श्री रजनीश की
शिक्षाएं न
केवल आधुनिक
वैज्ञानिक मनोविज्ञान
के स्तर पर है,
वरन् वे
उससे भी आगे
जाती है और
विश्व में इस
क्षेत्र मैं
उपलब्ध किसी
भी अन्य वस्तु
को बहुत पीछे छोड़
देती है। न
केवल वे
वर्तमान
वैज्ञानिक
मनोविज्ञान
की सारी
धाराओं की
पारंगत समझ
रखते हैं—उदाहरणार्थ,
व्यवहारवाद,
मनोविश्लेषण,
गेस्टाल्ट
मनोविज्ञान, जिन सबको वे
एक व्यापक
दृष्टि में ग्रहण
करते चलते हैं,
बल्कि
उन्होंने एक
नये ढंग के
मनोविज्ञान
की स्थापना की
है, जिसे 'तीसरा
मनोविज्ञान
(दि थर्ड
साइकोलॉजी) ' कहा जाता है।
भगवान श्री
रजनीश की
शिक्षाओं से
वैज्ञानिक मनोविज्ञान
जिस प्रगति
एवं परिवर्तन
से गुजरा है
उसे समझने के
लिए उसकी तुलना
केवल भौतिकी
की उस प्रगति
एवं परिवर्तन
से की जा सकती
है जिसमें से
वह आइन्स्टीन
के कार्यों से
गुजरी, अथवा
'वैज्ञानिक
मापन' के
सिद्धान्त
में जो बदलाहट
वेर्नर
हीज़नबर्ग के 'अनियतत्ववाद
के नियम' के
आविष्कार
द्वारा हुई।
दूसरी ओर, फ्राइए
युनिवर्सिटी,
बर्लिन के
डा. रोन्सबर्ग
ने भगवान और
उनके कार्य की
तुलना
मानवविद्या—सिद्धात
के संस्थापक
रुडोल्फ
स्टीनर से की।
गॉय एल.
क्लैक्टन, एमए. (कैम्ब्रिज),
डी.फिल (
ऑक्सन), व्याख्याता,
शिक्षा—मनोविज्ञान,
यूनिवर्सिटी
ऑफ लंडन ने
भगवान को ‘‘मनोविज्ञान,
मनस्विकित्सा,
दर्शनशास्त्र
और धर्म के
चौराहे पर
उपस्थित अनुभव
और वाद—विवाद
के क्षेत्र
में सर्वाधिक
महत्वपूर्ण
और सफल शिक्षक
'' माना। 'दॅ लिटिल एड.
बुक', 'कॅग्रिटिव
साइकालॉजी:
न्यू
डाइरेक्सन्स',
'होल्ली
हूयूमनः
वेस्टर्न एण्ड
ईस्टर्न
विजन्स ऑफ दि
सेल्फ एण्ड
इट्स
पफेंक्सन्स',
और 'लिव
एण्ड लर्न:
गोथ एण्ड
चेन्ज इन
एवरीडे लाइफ '
पुस्तकों
के लेखक मि.
फ्लैक्सन ने
समझाया: '' अपने
ध्वनिमुद्रित
प्रवचनों, अपनी
पुस्तकों और सर्वाधिक
महत्वपूर्णरूपेण
अपनी
प्रायोगिक
प्रणालियों
द्वारा—जो
इन्होंने
प्राचीन
ध्यान—विधियों
एवं आधुनिक
मनस्विकित्सा
विधियों का
संयोग करके
तैयार की हैं
और जो इनके
मार्गदर्शन
में संचालित
की जाती हैं—
अपने पास
एकत्र हुए
लोगों के भीतर
प्रतिभा, करुणा,
स्पष्टता
एवं शक्ति के
संवर्द्धन
में इन्हें
सफलता मिली है,
बहुधा
विस्मयजनक
सीमा तक। इनका
आकर्षण, इनकी
अखण्डता और आधुनिक
मनुष्य के
मनोविज्ञान
की इनकी पकड़—सैद्धान्तिक
एवं
प्रायोगिक, दोनों—इन्हें
' आध्यात्मिक
' शिक्षकों
के बीच बेजोड़
बना देते हैं।’’
बहुत
से
मनोवैज्ञानिकों
ने
असम्बद्धता
की आधुनिक
समस्या पर
भगवान के
कारगर होने के
उद्धरण दिये
हैं; जे.
आर. न्यूब्रो,
पीएचडी., प्रोफेसर, मनोविज्ञान
एवं
शिक्षाशास्त्र,
वैडरबिल्ट
यूनिवर्सिटी,
यू.एस.ए. ने
ध्यान दिलाया
कि '' भगवान
श्री रजनीश का
काम अमरीका के
पुनरुज्जीवन
के लिए
विचारों एवं
प्रेरणा का
महत्वपूर्ण
स्रोत है।
समाज के तल पर,
हम समाज के
भाव को बहुत
कुछ खो चुके
है। यथेष्ट
कलह है, जिसका
कोई कारगर हल
नहीं हो सका
है, परिणामत:
बिखरे समूह
हैं जो एकसाथ
निपुणता से कुछ
भी करने में
असमर्थ है।
उच्च नैतिक
मूल्यों का
महत्व नष्ट हो
चुका है। मुझे
रजनीश का काम
इन सभी
मुद्दों पर
योगदान करता
दिखता
परामर्शक
फ्राइडमॅन
हवोर्का, आस्ट्रेलियन
युवा—कार्यकर्ता
एवं भूतपूर्व
बेप्टिस्ट
पुरोहित ने
लिखा: ''भगवान
श्री रजनीश की
शिक्षाओं की
आत्यंतिक
अद्वितीयता
उस तथ्य तथा ढंग
में है जिसमें
कि वे पाश्चात्य
दैनंदिन जीवन
में कालांतर
से खो गये
ध्यान के आयाम
व अध्यात्मिकता
को वापस लाते
है, वे पाश्चात्य
वैज्ञानिक
बुद्धि को
लेते हैं और
उसे अध्यात्म
के प्रति खोलने
में सफलता
प्राप्त करते
हैं। भगवान
श्री रजनीश
जवाब है आधुनिक
तनावजन्य
पागलपन के, जिसके बारे
में विक्टर ई.
फ्रेन्क्रेल
ने कहा था— 'निष्प्राण
वैज्ञानिक
भौतिकवादी
जगत मै निराशोन्मत्तता
पूर्वक और
व्यर्थ रूप से
मानवता का अर्थ
खोजता आदमी'।’’
जॉन एच.
कुक, पीएचडी.,
रीडर, मनोविज्ञान,
यूनिवर्सिटी
ऑफ ब्रिस्टॅल,
यू.के. ने यह
देखते हुए कि
भगवान ने ‘‘विशिष्ट
एवं मौलिक
गुणों वाली’‘ अनेकानेक
धार्मिक
पुस्तकें
लिखी है, कहा:
‘‘वर्तमान
समय में बहुत
से व्यक्ति जो
असंबद्धता
महसूस करते है
उसका कारगर
उपचार प्रदान
करने हेतु वे (
भगवान) अनेक
भारतीय
परम्पराओं से
सामग्री लेते
है।’’
एक
आस्ट्रेलियन
मनोचिकित्सक
डा.जॉन डब्लू
हेरिसन, 'दि
साइकालाजिकल
बेसिस ऑफ
फिजिकल डिसीज'
के लेखक ने
लिखा कि रजनीश
की पुस्तकों
को उन्होंने ‘‘शरीर और मन
के बीच
संबंधों—जो इस
काम में नींव
का पत्थर है—की
समझ में
सर्वाग्रणी
पाया है।’’ उन्होंने
आगे लिखा कि
वे ‘‘मानवी
संबंधों और
व्यक्तिगत
तोष के
क्षेत्र—दो
क्षेत्र जो कि
आगामी दशक में
शारीरिक बीमारी
के कारण के
रूप में सर्वाधिक
खोजे जाएंगे—में
भगवान श्री
रजनीश को एक
महान विद्वान
मानते है।’’
प्रो.
रॉबर्ट मिशेल
मार्च ने इस
प्रकार कहा, ''( भगवान
ने)
अंतर्सांस्कृतिक—सम्पेषण
एवम् मानवीय
उत्थान की
विशिष्ट समस्याओं
पर नया प्रकाश
डाला है।’’ केरोलिन
क्रेन, दिवंगत
एरिक बर्न की
सहयोगी और डा.
रिकादों ज़ेरबत्तो,
प्रोफेसर, एडोलसेंट
सॉइकियॉट्री
(किशोर—मनस्विकित्सा),
सियना
युनिवर्सिटी,
उपाध्यक्ष,
इटालियन
एसोसिएशन फॉर
हूयूमनिस्टिक
साइकालॉजी, और इटालियन
स्वास्थ्य
मंत्रालय में
ड्रग—एब्यूज
पर परामर्शक,
जैसे
मनोवैज्ञानिकों
ने इस
मूल्यांकन से
सहमति व्यक्त
की।
डालार्स.ए.
हेनरिक्सेन, प्रोफेसर,
मनोविज्ञान
एवं
सम्प्रेषण, ऑलबोर्ग
यूनिवर्सिटी,
डेनमार्क
ने सारे
मनोवैज्ञानिकों
के लिए यह निष्कर्ष
निकाला: ‘‘दर्शनशास्त्र,
मनोविज्ञान
और धर्म के
समस्त
समकालीन
शिक्षकों की
तुलना में
भगवान श्री
रजनीश मानव—जीवन
पर सर्वाधिक
सम्र्पर्ण, सर्वाधिक
महत्वपूर्ण
और सर्वाधिक
संतोषजनक
परिप्रेक्ष्य
प्रस्तुत
करते हैं।
मानवी—समझ और
मानवी विकास
के लिए उनका
योगदान ठीक वही
है जिसकी आज दुनियां
को सख्त जरूरत
है।’’ कला—
क्षेत्र से
पत्र—लेखकों
ने उनके
क्षेत्र में
भगवान के
योगदान के
बारे में ऐसा
ही महसूस किया।
दो डिमाटिओ ने
लिखा: ‘‘मैं
उनको केवल एक
आध्यात्मिक
शिक्षक की
भांति ही नहीं
देखता वरन् एक
असामान्य
दूरदर्शिता
के कलाकार के
रूप में भी... और
हमारे जीवनों
में उस कुछ और
विराट, कुछ
और सौंदर्यमय
की दृष्टि—अस्तित्व
का यह ऐसा
स्वाद जिसे
प्रत्येक महान
कलाकार
अभिव्यक्त
करने का
प्रयास करता
है, और
जिसे मानवता
को प्रत्येक
के लिए जरूरत
है—से विहीन
कला अपने—आप
में क्या होगी।’’
केन
अदम्स, सीनियर लेक्चर
इन स्कॅल्पचर,
सेंट
मार्टिन्स
कालेज ऑफ आर्ट,
लंदन—स्व
सुप्रसिद्ध
मूर्तिकार
जिनकी
कृतियां रॉयल
अकादमी में
प्रदर्शित
हुईं और यूके.,
यू.एस.ए., कनाडा
और हालैण्ड के
संग्रहालयों
में है—ने
व्याख्या की
कि क्यों
उन्होंने
भगवान को ‘‘हम
सब शेष लोगों
के लिए एक देन’‘
बताया।
उन्होंने कहा,
‘‘रजनीश ने
तैयार किया है
बहुत सारे
लोगों को उनकी
वास्तविक
मानवीयता का
स्मरण वापस
लाने का उपहार,
जो उनकी
सृजनात्मकता
का स्रोत है, फिर भले ही
वह अलग—अलग
व्यवस्थाओं
में कितने ही
अलग—अलग
प्रकार से
अभिव्यक्ति
क्यों न पाती
हो। 'मौलिकता
मूल पर लौटना
है। ' यही
कारण है कि
इतने सारे
सृजनात्मक
लोग इनके पास
पहुंच गये हैं,
विज्ञान और
कला, दोनों
के। रजनीश, '' उन्होंने लिखा,
‘‘विज्ञान
और कला के
विभाजन का
सुंदर ढंग से
अतिक्रमण कर
जाते हैं। वे
एक कठोरता
पूर्वक सतर्क
मनोवैज्ञानिक
हैं, जिसके
पास हृदय कवि
का है। मनस्चिकित्सा
विधियों का
उनका शान
विश्वकोश—सदृश
है, और
उसका उपयोग
अधिक कर्मठ, उद्यमशील
जीवन के जन्म—हित
किया जाता है।’’
जापानी
आर्ट्स
कमेडेशन
एसोसिएशन के
अकीको हायूगा
ने, जो 'प्रिमिटिव
माइड, ‘‘पॉप
कल्युरालॉजी',
और 'नेचुरल
रेवॅकान ऑफ
सेक्स' सहित
11 पुस्तकों के
लेखक हैं, एक
सच्चे झेन कवि
की गढ़
संक्षिप्तता
में लिखा: '' भगवान
श्री रजनीश का
अस्तित्व एक
महान अर्थ रखता
है। कला के
लिए उनका
संदेश है कि
कला और धर्म
एक हैं। हमें
इस आधार पर
वापस लौटना
होगा।’’
पत्रों
ने विभिन्न
कलाओं पर
भगवान के
प्रभाव को
प्रगट किया।
उदाहरणार्थ : ‘‘समकालीन
संगीत—चिंतन
में संगीत के
प्रति भगवान
के विचार गहनतम
एवं सर्वाधिक
प्रेरणादायी
है। उन
विचारों ने
सारी दुनियां
में सैकड़ो
संगीतज्ञों
को प्रभावित
किया है।’’ —लिखा
प्रोफेसर एच.सी.
जोशिम—एर्न्स
बेरेड ने, जो
21 पुस्तकों के
जर्मन लेखक
हैं, और टी.वी.एवम्
फिल्म
निर्माता हैं।
इन्होंने आगे
कहा, ''अपने
निजी लेखन
द्वारा मैंने
बारम्बार
भगवान के उस
अधिकार का
अनुभव किया है
जो वे दर्शन
एवं धर्म से
लेकर कला एवं
संगीत तथा आधुनिक
जीवन—शैली तक
दर्जनों
क्षेत्रों
में रखते है।
इनमें से
अधिकांश
विषयों पर
भगवान श्री
रजनीश को
उद्धृत किये
बिना शायद ही
अब कुछ लिखा
जाना संभव रह
गया है।’’
रंगमंच
क्षेत्र से, रेनर
आटेंकेल्स, वियना के
सुप्रसिद्ध
अभिनेता एवं
निर्देशक, मैक्स
राइनहार्ड के 'थियेटर इन
डेर
जोसेफ्स्टाट्र'
के सदस्य, ने लिखा, ‘‘मैंने
भारत में
उन्हें
रंगमंच के
विषय में बोलते
सुना। यह उस
विषय पर सर्वाधिक
गहन एवं
अंतर्दृष्टिपूर्ण
था, जैसा
मैने पहले कभी
न सुना था, जैसे
नये आयाम खुल
रहे थे, और
गौर करने के
लिए नये कोण।’’
वारेन
राबर्ट्सन, निर्देशक, वारेन
राबर्ट्सन
थियेटर
वर्कशाप, न्यूयार्क,
संस्थापक
एवं कलात्मक
निर्देशक, एक्टर्स
रिपर्टरी थियेटर,
न्यूयार्क,
तथा 'फ्री
टू एक्ट' के
लेखक, ने
लिखा कि जब
ब्रिटिश
अभिनेता
टेरेन्स स्टेम्प
द्वारा भगवान
की पुस्तकें
मेरे ध्यान
में लायी गयीं,
तो ‘‘मेरे
लिए भगवान के
ज्ञान की
गहराई तथा
काव्यात्मक
अंतर्दृष्टि
का प्रभाव
विचलित कर
देनेवाला था।
वे वास्तविक
विरल एवं
असामान्य
व्यक्ति हैं।
कलाओं और
विज्ञानों
में उनकी
अंतर्दृष्टिया
इतनी तरोताजा,
मौलिक एवं
मूल्यवान हैं।’’
हालीवुड
के फिल्मी
सितारे जेम्स
कोबर्न ने लिखा
: ‘‘एक
अभिनेता के
रूप में और एक
व्यक्ति कै
रूप में, मैं
अपने समय की
महान
प्रतिभाओं से
प्रेरणा खोजता
रहता हूं। 10
वर्ष पहले जब
मैं 'भारत
में भ्रमण कर
रहा था, उस
समय मैं भगवान
श्री रजनीश की
शिक्षाओं के सम्पर्क
में आया।
मैंने तुरंत
समझ लिया था
कि वे एक
विश्व—शिक्षक
थे। उनके
अविश्वसनीय
ध्वनिमुद्रित
प्रवचनों ने
मुझे (तथा
लाखों—लाखों
औरों को) आत्म—विकास
के मार्ग पर
प्रेरित किया
है। आज दिन तक
उनके शब्द और
उनका कार्य
मेरे भीतर बसे
हुए हैं। उनकी
यहां
उपस्थिति ऐसे
है जैसे एक
विशाल घंटा बज
रहा हो.. .जागो, जागो, जागो!
''
अमरीकी
पुरस्कार—विजेता
जेफ गोरमैन ने
लिखा कि मेरे
लिए '' ( भगवान
के) सार्वभौम
सत्य और बुद्धिमत्ता
के वचनों की
और जिस
काव्यात्मक
ढंग से वे स्वयं
को अभिव्यक्त
करते हैं, उसकी,
तालियां
बजाकर
प्रशंसा करने
के सिवा अन्य
कोई चारा नहीं।’’
उन्होंने
आगे कहा कि
उनकी राय में,
भगवान की ‘‘योग्यताएं
एक धर्मज्ञ
एवं कलाकार के
रूप में असाधारण
है।’’ दूसरे
लेखकों:
डेनमार्क के
पुरस्कार
विजयी लेखक
पेटे फिस, जापान
से मसानोरी ओए
तथा मोतोहिको
खुमा, फ्रेन्व—इतालवी
उपन्यासकार
जीन जोसीपोवीसी,
ब्राजील की
लेखिका रोज
मेरी मुरासे,
और सातवें
दशक की
संस्कृति में
झेन को लोकप्रिय
बनानेवाले
अमरीकी लेखक
पॉल रेप्स ने
अपनी—अपनी
प्रशस्तिया
जोड़ी।
कलाकार
जैक डब्ल्यू.
बर्ह्नम ने
उनके काम पर
भगवान के ‘‘रचनात्मक
प्रभाव’‘ का
उल्लेख किया।
वे स्वयं
नार्थवेस्टर्न
यूनिवर्सिटी,
यू.एस.ए. में
कला के
प्रोफेसर है
और उन्होंने
पाया कि भगवान
‘‘एक महान
एवं
बहुफलदायक
शिक्षक हैं, ऐसे जिनका
कला पर प्रभाव
आगामी दशकों
मैं धीरे—
धीरे महसूस
किया जाएगा।’’
दूसरे
पत्र—लेखकों
ने कहा कि वे
भगवान को
महत्वपूर्ण
उनके उस ढंग
के लिए मानते
हैं जिसके
द्वारा
उन्होंने
पूवीर्य एवम् पाश्चात्य
दर्शनों एवं
संस्कृतियों
को जोड दिया
है। ब्राजील
की सर्वाधिक
बिकनेवाली
लेखिका रोज़
मेरी मुरासे
ने महसूस किया
कि ‘‘पाश्चात्य
एवं पूर्वीय
संस्कृतियों
का एकीकरण
एकमात्र
जरूरी घटक है
मनुष्य जाति
को और बडी
महाविपत्तियो
द्वारा स्वयं
को विनष्ट
करने से बचाने
को। रजनीश’‘, उन्होंने
कहा, ‘‘ऐसे
एकीकरण के लिए
अनिवार्य हैं।’’
फेलीसीतस
डी. गुडमॅन, पीएचडी., डाइरेक्टर,
कुयामुंक
इन्द्वीप्यूट,
यू.एस.ए., एश्रोपोलॉजी
न्व
लिंग्विस्टिक्स
(मानव—विज्ञान
और भाषा—विज्ञान)
में लेखक तथा
भूतपूर्व
युइनवर्सिटी
प्रोफेसर ने
भी भगवान
द्वारा ‘‘पूर्वीय
ध्यानमय ढंग
और पाश्चात्य
मनोवैज्ञानिक
विधियों के
सफल संश्लेषण’‘
के सृजन की
प्रशंसा की।
इतालवी
लेखक, क्लाडियो
लेम्पेरेली, ने समझाया
कि ‘‘रजनीश
जानते है कि आधुनिक
विश्व में
किसी प्रकार
के विभाजन और
सीमाएं आगे और
अधिक नहीं चल
सकते, और
कि भविष्य
केवल एक सरीखी
संस्कृति
स्थापित कर
देगा। इसलिए
वे सारे
मार्गों पर
प्रत्येक में
उसी एक
सार्वभौम का
अन्वेषण करते
हुए चलते है:
चाहे वह
सूफीवाद हो, वेदांत, योग,
झेन, तंत्र,
बौद्धधर्म,
हसीदधर्म हो,
ताओवाद हो,
अप्रामाणिक
ग्रंथ हों, गुर्जिएफ, पीक
दार्शनिक, पाश्चात्य
रहस्यदर्शी
हों अथवा आधुनिक
मनस्विकित्सक
हों।’’ उन्होंने
आगे कहा, ‘‘सत्य
प्रत्येक
द्वारा खोजे
जाने को
उपलब्ध है, किंतु आज
कौन उपनिषदों
अथवा बौद्ध
सूत्रों को
पढ़ेगा, और
हजारों
आबन्धों और चित्तविक्षेपों
के बीच कौन
उसके लिए समय
निकाल सकेगा?
रजनीश '', उन्होंने
कहा, '' आज के
दैनंदिन जीवन
से उदाहरण
देते हुए और
स्पष्ट एवं
सरल धारणाओं
का उपयोग करते
हुए, इन
प्राचीन
सत्यों को आधुनिक
भाषा में
समझाने में
समर्थ है।
उनके
वक्तृत्व की
स्पष्टता, उनके
चुटकुलों, मजाक
और कहानियों
का शइक्रया है
कि उन्होंने इन
सारे मार्गों
के पारम्परिक
रूप से रूखे
एवं वायवी
ग्रंथों को
सबके लिए
सरलता से
बोधगम्य बना
दिया है। इस
प्रकार, '' उन्होंने
अंत में कहा, ‘‘रजनीश का
कार्य मूलभूत
महत्व का है।’’
फ्रांसीसी
फिल्म
निर्देशक, अभिनेता
एवंम् लेखक, अलेक्लेंड्रो
जोडोरावस्की
सहमत थे: '' भगवान
श्री रजनीश एक
व्यापक
संस्कृति के
व्यक्ति है, '' उन्होंने
कहा, ‘‘दर्शन
एवम् पूर्वीय
धर्मों—जैसे
जापान, चीन,
भारत तथा
मध्य—पूर्व के—में
उनके स्पष्ट
विचार विशेषत:
पाश्चात्य
जिज्ञासुओं
के लिए अमूल्य
है जिनकी ऐसे
स्रोतों में
सरलता से
पहुंच नहीं है।’’
इसी
मिज़ाज में
अन्य लेखकों
ने भगवान की
सर्व—आच्छादी
जीवनदृष्टि
का जिक्र
किया: ‘‘इसके
पहले कभी मै
ऐसे किसी
व्यक्ति के
संपर्क में
नहीं आया था
जिसके पास कला,
विज्ञान, मानवीय
मनोविज्ञान
और धार्मिकता
को एक में समेटती
हुई सुसंगत
एवम् विशाल
सृजनात्मक
दृष्टि हो’‘ —स्विस भौतिक—वैज्ञानिक
एवम् लेखक डॉ
एर्नाल्ड
श्लेगर, पीएचडी.
ने लिखा। एक
दूसरे
वैज्ञानिक, उग्वस्टिन
तुइझलिन, बेलोरसियन
एकाडमी ऑफ
साइंसेज़, मिञ्ज,
यू.एस.एस.आर.
से भौतिकी एवं
गणित में
पीएचडी., सम्प्रति
प्रोफेसर ऑफ
कम्प्यूटर
साइंस, दि
सिटी
यूनिवर्सिटी
ऑफ न्यूयार्क,
इस बात से
सहमत थे।
समाज—वैज्ञानिकों
ने अपने
क्षेत्र
व्यवहार—विज्ञान
में भगवान के
योगदान की
चर्चा की: '' भगवान
श्री रजनीश
दर्शन एवम्
धर्म के
अध्ययन व
व्याख्या में,
और
व्यक्तिगत
सामंजस्य, सृजनात्मकता,
और सामाजिक
संगठन की
समस्याओं पर
व्यवहार—विज्ञान
के
सिद्धांतों
के प्रयोग में
वास्तविक
असामान्य
योग्यता के
व्यक्ति हैं।
भगवान के
कार्य का एक
महत्वपूर्ण
अंश आत्मज्ञान,
उसकी
उपलब्धि, और
दूसरों पर
उसके असर से
संबंध रखता है।
मैं उन्हें इस
क्षेत्र में
एक
महत्वपूर्ण
आवाज मानता
हूं वे वास्तव
में अपने
कार्य के लिए
अंतर्राष्ट्रीय
रूप से
विख्यात है’‘ —लिखा रूफस
पी. ब्राउनिंग,
पीएचडी., प्रोफेसर, राजनीतिशास्त्र,
सनफ्रान्सिस्को
स्टेट यूनिवर्सिटी
ने।
मारिस
आर. स्टीन, पीएचडी.,
प्रोफेसर, सोसलॉजी, ब्राडाइस यूनिवर्सिटी, मौसाचुसेट्स
(यू.एस.ए) ने
लिखा : भगवान
ने धर्मों की
सामाजिकी, सामाजिक
मनचिकित्सा और
समुदाय—सामाजिकी
के क्षेत्रों
में
प्रतिभाशाली
एवं मौलिक साज—सामान
प्रस्तुत किया
है। विश्व के
धर्मों के
चिरसम्मत
ग्रंथों पर
उनकी व्याख्याएं
अपने— आप में
एक विशिष्टता
है, जहां
तक इन प्राचीन
कृतियों की
समसामयिक
प्रासंगिकता
दिखाने की बात
है। उनका अपने
शिष्यों पर
कार्य जैसा कि
दर्शन डायरीज
में अंकित है,
वह इस
मात्रा में
मनोवैज्ञानिक
अंतर्दृष्टि
का परिचय देता
है जिस पर कोई
भी पाश्चात्य
मनोवैज्ञानिक
गर्व अनुभव
करेगा। ध्यान—विधियां
जो उन्होंने
आविष्कृत तो
है उनमें रेचन
और ध्यान का
ऐसा संयोजन है
जो हृदय और
बुद्धि दोनों
को खोलता है।’’
डा.
मूली ब्रेक्स, पीएचडी.,
समाज—विज्ञान,
दर्शनशास्त्र
एवम् शिक्षाशास्त्र
के
व्याख्याता, जोहन
वोल्फगंग
गेटे
यूनइवर्सिटी
ऑफ फ्रैकफुर्ट
ने इसे (?दूसरे
ढंग से कहा।’’मुझे पका है,
'' उन्होंन
लिखा, ''कि
इस धार्मिक
सद्गुरु की
शिक्षाएं और
प्रायोगिक
मार्गदर्शन
जो वे अपने शिष्यों
और जो कोई भी आज
उसके लिए
तैयार हो को
देते हैं, वह
हमारे युग के
एक व्यक्ति का
सर्वाधिक
गहरा योगदान
है इस प्रश्न
के लिए कि हम
कैसे शांति और
स्वतंत्रता
में अपने जीवन
को उत्कृष्ट
बना सकते हैं।’’
हरमन
वोह्ल, पोलिस
कमिश्रर, हेम्बर्ग
(प.जर्मनी) ने
पाया कि भगवान
की शिक्षाओं
का '' मेरे
जीवन और
व्यवसाय पर
जबरदस्त प्रभाव
पड़ा है, जो
कि, ''उन्होंने
कहा, ''अब
मनुष्य के पति
एक विधायक
दृष्टि से
बहुत ज्यादा
जोर से
प्रभावित है।’’
उन्होंने
आगे कहा कि ‘‘एक दार्शनिक
और मनोवैज्ञानिक
के रूप में
भगवान की
असामान्य
योग्यताएं
मानवीय
व्यवहार से संबंधित
अनेक
क्षेत्रों
में
अर्थपूर्ण मान्यताएं
उपलब्ध
करेंगी।’’
डेविड
के.ह्वीटन, पीएचडी.,
प्रोफेसर
ऑफ क्रिमिनल
जस्टिस, टेन्नीज
स्टेट यूनिवर्सिटी
( यू.एस.ए.) ने भी
यह निष्कर्ष
निकालते हुए
सामाजिक व्यावहारिक
विज्ञानों
में भगवान के योगदान
को स्वीकार
किया कि ‘‘उनकी
जानकारियों
के विस्तार को
मैं
प्रतिभावान
स्तर की पाता हूं।
धार्मिक
पेशेवरों
द्वारा उनके
द्वारा की गयी
भगवान की
प्रशंसा के
लिए दिये गए
कारण उतने ही।
विविध थे
जितने कि उनके
लेखकों के
धर्म। कुछ लोग
उनकी जीसस पर
दी गयी
शिक्षाओं से आकर्षित
थे: ‘‘जीसस
की शिक्षाओं
की उनकी पकड़
और बोध असाधारण
है और पाश्चात्य
भौतिकतावादी
ईसाइयत के
पुरोहितों और
जनसामान्य, दोनों को ही
उसकी तेज
जरूरत है,'' —लिखा
रेवरेंड
फ्रैंक
स्ट्रिल्लिंग
ने। बीस
वर्षों से
एंग्लिकन
पुरोहित
(प्रीस्ट) रेवरेड
फ्रेड्ररिक पार्टिंग्टन
ने लिखा: '' भगवान
की
अंतर्दृष्टि
एवं समझ के
फैलाव से मैं
गहराई से
प्रभावित हूं।
आधुनिक समाज
के
मनोवैज्ञानिक
दबावों का
उनका विश्लेषण
खबर करता है
गहन
मनोविज्ञान और
वर्तमान
अस्तित्ववादी
विचारधारा पर
उनकी पकड़ की।
फिर भी इन अति
दुरूह विषयों
पर
उनकी
शिक्षा बहुत
सरलता और
संवेदनशीलता
से संयुक्त है।
इस सूत्र के
सहारे आगे
बढ़ने पर, उनकी
मौलिकता
खासकर इस बात
में प्रगट है
कि वे अपने
समुदाय में आत्म—जागरण
और ध्यान की
पूर्वीय
विधियों के
साथ—साथ पाश्चात्य
मनस्विकित्सा
के
सर्वश्रेष्ठ
ढंगों का उपयोग
करते हैं।
इसका परिणाम
है, मेरी
समझ से, व्यक्ति
की हमारी समझ
में एक महान
समृद्धि, और
व्यक्ति के
घावों का भर
उठना। धर्म—वैज्ञानिक
तल पर मैं
उन्हें उतना
ही रोमांचक पाता
हूं। वे हमें
यहां पश्चिम
में पूर्वीय
आध्यात्मिक
खजाने प्रदान
करते हैं, और
साथ ही जीसस के
वचनों पर उनकी
कृतियां उनकी
सम्पूर्णतम
एवम् सर्वाधिक
उत्कृष्ट
रचनाएं हैं।
पर उनसे एक
सहक्रिया भी
संचालित हो
रही है। वे
अपने मनोवैज्ञानिक,
दार्शनिक
एवम्
आध्यात्मिक
भागों के जोड़
मात्र से कुछ
अधिक हैं।
उनसे प्रेम और
सृजन की एक
ऊर्जा
प्रवाहित होती
है जो बहुत से
लोगों को जीवन
का, कर्म
का और पूजा का
नया अर्थ खोज
लेने की सामर्थ्य
दे रही है।’’
दूसरे
उनकी बौद्ध
धर्म पर
शिक्षाओं से
आकर्षित थे।
जापान के सर्वाधिक
जाने—माने
बौद्ध
विद्वान, प्रोफेसर
काजूयोशी
कीनो ने लिखा: ‘‘यह सद्गुरु
इस शताब्दी
में प्रगट
होनेवाला विरलतम
व सर्वाधिक
प्रतिभाशाली
धर्मज्ञ है।
बौद्ध धर्म पर
उनकी कृतियां
प्रेरणाओं और
मौलिक
विचारों से
ओतप्रोत हैं।
बौद्धवाद के
विशेषज्ञ के
रूप में, बहुत
बार मैं उनकी
मौलिक एवं
सृजनात्मक
व्याख्याओं
से और उनकी
अद्वितीय
धार्मिकता से
चकित हुआ हूं।
उनकी व्याख्याएं
बौद्धवाद के
सत्यों से
आकण्ड आपूरित
हैं। जापान
में मौजूद
विशिष्ट
मठवासी साधु भी
व्याख्या के
इस तल तक नहीं
पहुंच सकते।’’
आर.सी.
गोडोंन—मेकुचान, पीएचडी.,
व्याख्याता,
अमेरिकन
रिलीजियस
हिस्ट्री, यूनिवर्सिटी
ऑफ
केलिफोर्निया
ने तंत्र—योग
पर भगवान की
शिक्षाओं का
संदर्भ दिया: ‘‘किसी भी मानदण्ड
से भगवान श्री
रजनीश आज
अमरीका में सर्वाधिक
महत्वपूर्ण
आध्यात्मिक
शिक्षक हैं।
उन्होंने
आत्म—रूपांतरण
के उपाय तैयार
किये हैं जो
उतने ही उत्तम
हैं जितने
विविध। उनकी
2० ऐसी
पुस्तकें
प्रकाशित हैं
जो तंत्र—योग
के प्राचीन
विवेक को
उभारती और
व्याख्यायित
करती हैं।’’
जापानी
जेन संतों ने
अपने दर्शन की
ही सरलता में
लिखा: ‘‘मैं
भगवान श्री
रजनीश का
धन्यवाद करता
हूं जिन्होंने
मेरे लिए यह
संभव बनाया कि
मैं पारम्पंरिक
जेन जीवन को
समग्ररूपेण
स्वीकार कर
सकूं '' —सिकोजेजी
जेन टेम्पल, कम्योका के
अधिपति
शिंकाई टनाका
ने कहा।’’ भगवान
श्री रजनीश
रूपी आश्रर्य
से मैं गहनरूपेण
हिल गया हूं ' —काउ
सुगावारा, मुख्य
पुरोहित, गोसीजी
टेम्पल, मियागी।
रेवरेड रेउहो
यमादा, मुख्य
पुरोहित, चोशीजी
(जेन) टेम्पल, बेपु ने
लिखा: '' आध्यात्मिक
शिक्षक के रूप
में रजनीश
बहुत से लोगों
को मूल्यवान
योगदान करते
रहे हैं।
विशेषत:
महत्वपूर्ण
रहा है बहुत
से युवा लोगों
को ध्यान की
आत्मा से
परिचित कराने
का विलक्षण
कार्य जो वे
अब तक कर चुके
हैं। मिस्टर
रजनीश की
अनेकानेक
विलक्षण
उपलब्धियों
में से एक है
पारम्पंरिक
अनुभव और जान
के विस्तृत
फैलाव का
सफलतापूर्व संश्लेषण
करने की उनकी
क्षमता।’’
विश्वविद्यालयों
के धर्मवैज्ञानिक
भगवान की
शिक्षाओं की
विविधता की प्रशंसा
करने में लगे।
दखे। रोनाल्ड
ओ क्लार्क, प्रोफेसर,
रिलीजियस
स्टडीज, ओरेगॅन
स्टेट युनिवर्सिटी
ने लिखा: ‘‘रजनीश
प्रतिभाशाली
बुद्धि एवम्
असाधारण विद्वता
के व्यक्ति है।
वे दोनों, पूर्वीय
एवम् पाश्चात्य
यौद्धिक, सामाजिक,
और
सांस्कृतिक
इतिहास में
विस्मयकारी
अधिकार का
प्रदर्शन
करते हैं। ' हस्यदर्शी
विचारकों और
परम्पराओं पर
भाष्यों की एक
प्रभावशाली
संख्या
उन्होंने
निर्मित की है,
शे पूरब में
योग, वेदांत,
तंत्रवाद, बौद्धवाद, ताओवाद, और
जेन से लेकर पश्चिम
में पीक, ईसाई,
यहूदी और
इस्लामी
रहस्पदर्शिता
तक फैली है।
उनके
प्रकाशित
प्रवचन ज्ञान,
अंतर्दृष्टि
और काव्याअंक
सौदर्य के
स्रोत हैं। और
मैं मानता हूं
कि उनकी
शिक्षाएं
आध्यात्मिक
समझ,उत्थान
'गैर
सिद्धि के लिए
मानवता की चिर
तलाश को एक महत्वपूर्ण
योगदान हैं।’’
केलिफोर्निया
से रबाई मिशेल
ज़ीगलर ने
लिखा: ‘‘पूर्वीय
धार्मिक
परम्पराओं व
दर्शनशास्त्रों
के एक
सुस्पष्ट
प्रवक्ता के
रूप में रजनीश
मेरे सहकर्मियों
के बीच
सुसम्मानित
है। धार्मिक
दार्शनिक के
रूप में भगवान
श्री रजनीश
अपने बहुतेरे
एशियाई
समकालीनों से
बहुत ऊंचे हैं।
इस व्यक्ति की
ही बौद्धिक
उपलब्धियों
के सम्मान में,
ग्रेजुएट
थिआलाजिकल
यूनियन, बर्कले
जैसी
प्रतिष्ठित
शिक्षण—संस्थाएं
उनके विचारों
पर कक्षाएं
चला रही हैं।
इस युग में
रजनीश एक
स्वतंत्र—विचारणा
वाले धार्मिक
दार्शनिक हैं,
जिन्होंने
अपने
दृष्टिकोणों
पर पर्याप्त वाद—विवाद
भडकाया है।
पिछली पीढ़ी
में महात्मा
गांधी की
भांति, रजनीश
ने सार्थक
बौद्धिक एवं
धार्मिक वाद—विवाद
के लिए प्रेरक
शक्ति उपलब्ध
करायी है।’’
उन
सहकर्मियों
में से एक, डाइने
मिस्ज़, एम.ए.
(रबाइनिक
लिट्रेचर) ने
लिखा: ‘‘रजनीशके
कार्य पर एक
परम्परा की
छाप नहीं है, बल्कि
बौद्धिक भेदन
और
अंतर्दृष्टि
वाले एक व्यक्ति
की छाप है, जिसका
प्रत्यक्ष
ज्ञान मानवी
द्विविधा के
सस्ते हल अथवा
गुह्य उत्तर
नहीं सुझाता,
बल्कि इसके
बजाय जो
संवेदनशील
पाठक को स्वयं
पर लौटा देता
है, उस
सार्वभौम
मानवी
आवश्यकता की
समझ पर लौटा देता
है जिसे संतुष्ट
करने का हम
सतत प्रयास कर
रहे हैं।
धार्मिक विषय—वस्तु
और आकार की
अपनी उदार
पहुंच में, वे उन्हें
जो उनके संदेश
को सुन सकते
हैं सभी मानवी
अनुभवों के और
सभी धार्मिक
जिज्ञासाओं
के अंतर्बंध
पर पहुंचा
देते हैं।
रजनीश की
विद्वता
विचलित कर
देनेवाली है
वे एक सरीखे
ज्ञान और
सुबोधगम्यता
से यहूदी
रहस्यदर्शी
शिक्षकों पर,
जापानी
धार्मिक
परम्पराओं पर,
महान चीनी
रहस्पदर्शियों
पर, और
अपनी जन्मभूमि
भारत के
कहावती
आध्यात्मिक
सद्गुरुओं पर
लिखते हैं। और
वे स्पिनोज़ा
और नीत्शे से
उतने ही
परिचित हैं, जितने
ईसामसीह और
बुद्ध से।
उनके विचारों
पर इनके
अधिकार की
अपेक्षा अधिक
महत्वपूर्ण
है वह नव—दृष्टि
जिसमें ये
हमारे
दर्शनों के इन
जनकों को
देखते हैं।’’
युनिवर्सिटी
ऑफ मॉरबर्ग, पछिम
जर्मनी से
प्रायोगिक
धर्म—विज्ञान
के प्रोफेसर,
गेर्हार्ड
मार्सेल
मार्टिन
ने लिखा कि
उन्हानें ''भगवान के
तात्कालिक
प्रभाव, शिक्षाओं
और पुस्तकों
को अतिशय
प्रेरक’‘ पाया
है, '' धार्मिक
परम्पराओं को
जीवित बनाए
रखने के लिए
और उन्हें
जीवन—आधार
बनाने हेतु
वर्तमान मिथक
का रूप देने
के लिए बहुत
सारे धक्के
देते हुए’‘ —उन्होनई
कहा। ट्री ऑफ
लाइफ सिनागॉग,
न्यूयार्क
से रबाई जोसफ
एच. गेल्वरमन
ने केवल इतना
ही कहा: ‘‘मैंने
उनकी सारी
पुस्तकें पढ़ी
है और उनके
जीवनदर्शन
उनकी महान समझ
और सब धर्मों के
प्रति
सहिष्णुता से
जबरदस्त रूप
से समृद्ध
अनुभव किया है।’’
गेब्रियल
लूजर, टी.एच.डी.
ने, जो
रोमन केथॅलिक
धर्मवैज्ञानिक
हैं और
हास्पिटल
मिनिस्ट्री, बर्न, स्विट्जरलैष्ठ
में काम करते
हैं, भगवान
की ध्यान—विधियों
की प्रशंसा की।
भगवान को ‘‘एक
बुद्धिमान
व्यक्ति, और
एक
प्रतिष्ठित
मनोवैज्ञानिक’‘
बताते हुए
उन्होने लिखा,
'' अपनी
ध्यान
पद्धतियों द्वारा,
जिन्हें
आशिक रूप से
उन्होंने
स्वयं
आविष्कृत
किया है, वे
समझते हैं कि
हम पाश्चात्य
लोगों को पाश्चात्य
सांस्कृतिक
उन्नतियों और
सभ्यता के
लाभों को छोड़े
बगैर कैसे
पूर्वीय
जुइद्धमत्ता
का कुछ
पहुंचाया जाए।’’
बेल्जियम
में बीस वर्षों
से तेमन
केथोलिसिज्य
की शिक्षक
क्रिस्टीन वान
डॅर स्पीरन ने
उनकी
पुस्तकें
पसंद कीं क्योंकि
वे ‘‘प्रस्तुत
करती हैं एक
सच्चा विकल्प
एक नये आनंदित
विश्व और नयी
मनुष्यजाति
के सृजन का।’’
वेनरेबल
पर्मानिंट
कॉउन्सेल ऑफ
दॅ आथोंडाक्स
चर्च ऑल इटली
के शष्ट्रीय
अध्यक्ष ने
स्मरण किया
भगवान के ‘‘विशाल
योगदान का—मनुष्य
की समझ और
चैतन्य के
उत्थान की
दिशा में।’’ भगवान श्री
रजनीश ‘‘जग्तप्रसिद्ध
है, धर्म, व्यवसाय, जाति, पंथ,
देश, संस्कृति,
उम्र, शिक्षा
और पृष्ठभूमि
की सारी
सीमाएं पार कर’‘
—लिखा
रेवरेड जिल गेर्हार्ड
ने, जो
चर्च ऑफ
रिलीजियस
साइन्स, सनफ्रांसिस्को
में विगत दस
वर्षों से
पुरोहित है।
वे
सनफ्रासिस्को
में ग्रेडियो
और टीवी.
वार्ता—प्रसारण
की एक
सत्कारिणी भी
हैं और
उन्होंने आगे
कहा, ‘‘मैं
बहुत से
आध्यात्यिक
भीमकायों की
उपस्थिति में
रही हूं मैंने
उनकी कृतियां
और धर्मग्रंथ
पढ़े हैं, किन्तु
मैं ऐसे किसी
अन्य अब जीवित
को नहीं जानती
जो इतना महान
धार्मिक
शिक्षक अथवा
आध्यात्मिक
नेता हो जैसे
भगवान श्री
रजनीश।’’
कुछ
विद्यनों ने
भगवान के एंतिहासिक
संघात की
विवेचना की: ''आत्मज्ञानोपलब्ध
सद्गुरुओं और
उनके धर्मों की
घटना पर बहुत
वर्षों के
व्यावसायिक
अध्ययन के बाद,
मै स्वयं को
यह कहने योग्य
मानता हूं कि
भगवान श्री
रजनीश की
उपस्थिति उस
सब का जीवंत
मूर्त रूप है
जो अन्यथा एक
शैक्षिक
अटकलबाजी, धार्मिक
सिद्धांत, अथवा
सवोंपरिरूपेण
मिथक और
किंवदंतियों
की सामग्री बन
गया है। जीसस
को केवल बारह
लोगों ने जाना,
संभवत: कुछ
हजार लोगों ने
बुद्ध को
पहचाना, आज
अब, भगवान
श्री रजनीश के
मौन को लाखों—लाखों
लोग सुनते हैं।’’
—डाँ एग्रेट्
कूटर, पी.एच.डी.,
व्याख्याता,
फ्राइए युनिवर्सिटी,
बर्लिन।
एल्फ्रेड
ब्लूम, प्रोफेसर ऑफ
रिलीजन, युनिवर्सिटी
ऑफ हवाई ने
लिखा: ‘‘उनके
विचार
समकालीन
अर्थ एवम्
वैधता रखते
हैं। आधुनिक
मन की उनकी
समझ और उसके
प्रति उनकी
पहुंच का ढंग
महान
अंतर्दृष्टि
का प्रदर्शन
करते हैं जो
भारतीय
पारम्पंरिक
विचारधारा, बौद्धवाद
एवम् आधुनिक
मनोविज्ञान
से मेल खाती
है। आध्यात्मिक
अनुभव एवम्
मनोविज्ञान
का उनका
संयोजन असामान्य
एवम् रोचक है।
अन्य धार्मिक
नेताओं की
भांति ही
जिन्हें पहले
अत्याचार और
बहिष्करण का
सामना करना
पड़ा, यह
कहना बहुत
कठिन है कि
इनकी
शिक्षाएं
भविष्य में
क्या प्रभाव
रखेंगी, ठीक
वैसे ही जैसे
पहली शताब्दी
में दो हजार
वर्ष बाद जीसस
के प्रभाव का
कोई नहीं
अनुमान लगा
सकता था। फिर
भी, उनके
अधिकांश
शिष्यों की
शिक्षा के
स्तर एवम्
पेशों को
देखते हुए हम
अपेक्षा कर
सकते है कि
इनकी
अंतर्दृ।ष्टयां
समूचे समाज
में प्रवाहित
होंगी।’’
ग्रेगोरिओ, दॅ
आर्चिमेन्हाइट
ऑफ तूप्रइन
(आर्थाडॉक्स
केथॅलिक चर्च
ऑफ इटली—मास्को
पैट्रियाचेंट)
ने भी भविष्य
की ओर देखा—’‘ भगवान श्री
रजनीश के
विचारों एवम्
कृत्यों से
मेव आमना—सामना
एक वास्तविक वज्रपात
था, '' उन्होंने
लिखा। ' दो दुनियांओं
के बीच, पूर्वीय
एवम् पाश्चात्य,
जिन्हें वे
सम्पूर्णत:
जानते है, यह
सद्गुरु एक
नयी दुनिया, एक बेहतर दुनिया
के जन्म के
लिए काम कर
सकता है।’’
निष्कर्ष
में, ब्रांडाइस
युविर्सिटी
के प्रोफेसर
मारिस
आरस्टीन ने
अमरीका सरकार
से ये अभिवचन
कहे: '' भगवान
श्री रजनीश एक
अद्वितीयरूपेण
प्रतिभाशाली
आध्यात्यिक
शिक्षक हैं।
यह खेदजनक है
कि वे विवादास्पद
बन गये है।
किंतु’‘, उन्होने
लिखा, ‘‘इस
देश को
विवादों को
पचाने से नहीं
हिचकना चाहिए—विशेषत:
किसी ऐसे के
संबंध में
जिसकी
बौद्धिक एवम्
आध्यात्यिक
देनें इतनी
विशाल हों।’’
अमरीकी
सरकार के
कानों पर जूं
न रेंगी। उसने
भगवान श्री
रजनीश को देश
छोड़ देने का
आदेश दे दिया।
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