ईसामसीह के
पश्चात
सर्वाधिक
विद्रोही व्यक्ति—ओशो
सू एपलटन
(अध्याय--एक)
‘’भगवान श्री
रजनीश ईसा
मसीह के बाद
सर्वाधिक
खतरनाक व्यक्ति
है।‘’ ये
भविष्यसूचक
शब्द इस वर्ष
के प्रारंभ
में कहे थे
टॉम राबिन्स ने
जो अमरीका के
सर्वश्रेष्ठ
जीवित साहित्यिक
लेखकों में से
एक ‘’गिने जाते
है। उस
समय
उन्हें इस
बात का पता
नहीं था लेकिन
भविष्य में
कुछ ऐसी
घटनाएं घटने वाली थीं
कि विश्व का
हर प्रमुख
शासक भगवान
श्री रजनीश से
भयभीत था।
क्या?
भगवान
श्री रजनीश
कौन है?
और वे
इतने असामान्य
रूप से
अंतर्राष्ट्रीय
विवादास्पद
व्यक्ति
किस तरह बन गए?
वस्तुत: उन्हें
खतरनाक कहने
वाले टॉम
राबिन्स पहले
व्यक्ति
नहीं है। यह
ख्याति उन्हें
बहुत पहले छठे
दशक में
भारतीय
पत्रकारों द्वारा
प्राप्त हुई
थी। जब वे विश्वविद्यालय
में दर्शन के
एक प्राध्यापक
थे और सेक्स, धर्म
और राजनीति
संबंधी अपने
क्रांतिकारी
और स्पष्टवादी
विचारों से
अतिशय
रूढ़िवादी
भारतीय जनता
को क्रुद्ध कर
चुके थे।
सातवें
दशक के
उत्तरार्ध
में पाश्चात्य
पत्रकार उनकी
और आकृष्ट
हुए और उन्होंने
भी अपने
विशेषण जोड़
दिये। लेकिन लगभग
निरपवाद रूप
से, उनमें से
जो भी पूना के उनके
आश्रम में गए
और उन्हें
सुना, वे लोग
भारतीय
समकक्षों से
कही अधिक विवेकपूर्ण
थे। जब वे पश्चिम
वापिस लौटे तो
‘’असाधारण’’ ‘’विलक्षण’’ ‘’गहन रूप से
प्रभावित
करने वाले।‘’ ‘’अत्यंत
विचलित करने
वाले’’ और अत्यंत चित्ताकर्षक’’ जैसे
विशेषण अपने
साथ ले गए।
पाश्चात्य प्रसार-माध्यम
के सारे रूप
यहां आए,
और
समीक्षाएं
की। 1977 में ‘’वोग’’
पत्रिका
की जीन लिएल
ने उनके लिए
कहा, ‘’वे एक
सौम्य,करूण मय और
समूचे
अखण्डित
व्यक्ति.....अत्यंत
अनुप्राणित, अत्यंत
सुशिक्षित...ओर
विशद व
गहन
जानकारी रखने
वाला ऐसा व्यक्ति....पहले
कभी और कहीं
नहीं सुना। जर्मन ‘’कॉस्मॉपालिटन’’ मैगजीन
की फल्रेन्स
गाल ने उनका
वर्णन ‘’करिश्मा पूर्ण’’ कहकर
किया, ऐसे जैसे
एतिता पेरॅन,मार्टिन
लूथर किंग, जॉन
एफ. केनेडी और
पोप
जॉन-तेईसवें। 1979 में
दूरदर्शन के
निष्ठुर
आलोचक अलन
विकर
ने
अपने
कार्यक्रम ‘’ विकर्स
वलर्ड’’
में
कहा: ‘’वे बहुत
सुंदर
है....बोलते वक्त
वे बहुत ही
प्रभावशाली
लगते है।‘’ डच
पैनौरमा’’
मैगजीन
के मासेंल मियेर, जो 1978
में पूना आए
थे। की दृष्टि
में वे
मनोविज्ञान
के आचार्य ओर परम
बुद्धिमान’’ थे।
उन्होंने
कहा ऐसा व्यक्ति
मैंने सिर्फ
किताबों में ही देखा
था। वास्तविक
जीवन में तो
देखने की मैं
कल्पना ही
नहीं कर सकता। वे पृथ्वी
के जीवित चमत्कार
है।‘’अरगेंटिनिशेस
टेगब्लाट’’ की
मेरीलुइज एलेमन
ने 1980 में लिखा। ‘’पूरब
तर देशों के
लोगों के मन
में ‘’भारत’’
अथवा ‘’गुरू’’ शब्द
सुनते ही
बेखटके जो छवि
उभरती है, स्पष्टत:
उस सौम्य पवित्र
व्यक्ति
नामक लहर पर
सवार होना उन्होंने
स्वीकार
नहीं किया है, और
न ही सर्वज्ञ, करूणा
मय सद्गुरू
वाली छवि की
नकाब उन्होंने
ओढ़नी चाही है।‘’
रोनाल्ड
कॉनवे,जो कि ऑस्टेलिया
में प्राध्यापक, लेखक, केथॅलिक
तथा वहां के
एक अस्पताल
में वरिष्ठ
परामर्शक
मनोवैज्ञानिक
है, 1980 में पूना
के आश्रम में
आए थे। वे
अपनी रिपोर्ट
में कहते है। ‘’उनके
आस पास कुछ
मीटर की दूरी
पर होना मात्र
कुछ विलक्षण
परिणाम लाता
है। उसका स्त्रोत
कुछ भी हो, लेकिन
रजनीश में कोई
विलक्षण शक्ति
और चुम्बकत्व है। जो
इतनी स्पर्श
गोचर है कि
महसूस की जा
सके......उनको
देखकर मुझे
लगा कि शायद
ईसा मसीह इसी
तरह के रहे
होंगे।
और ‘’लंदन
टाइम्स’’
के बना्रर्ड
लेविन जिन्हें
रूढ़िवादी
सामाजिक
समीक्षकों
में तीखे वाग
बाणों
का
प्रयोग करने
वाले वरिष्ठ
सदस्य कहा
जाता है। जब 1980
में रजनीश
आश्रम
देखने
आए तो उनके
उद्गार इस
प्रकार थे: ‘’उस
व्यक्ति से
मैं एकदम सम्मोहित
हो गया.....ओर
उनके आसपास
रहनेवाले
लोगों से भी।
रजनीश एक
अनूठे
शिक्षक
है। और एक
असाधारण
चुंबक।‘’
जिन
लोगों के बहुत
संदेह वादी होने की
अपेक्षा थी, उनके
ये उद्गार देख
कर लगता है कि
उन तुलनात्मक
रूप से
प्रारंभिक
दिनों में भी
भगवान मात्र
एक अन्य
मशहूर किये
गये पूर्वीय गुरु नहीं
थे। जैसा की ‘’एडीलेड
(ऑस्टेलिया)
सैटरडे
रिव्यू में
एलन अटकिन्सन
ने 1अगस्त, 1981
के अंक में
लिखा, ‘’यह बात साफ
है कि रजनीश
कोई साधारण
आदमी नहीं है।
उनका वर्णन इन
शब्दों में
किया जाता है:
एक महान आधुनिक
आध्यात्मिक
ऋषि; जीसस और
बुद्ध की
परंपरा के; बुद्धत्व
को उपल्बध
सद्गुरू;
पूना
के झक्की संत; वर्तमान
समय के प्रसन्नचित
जॉन द
बैपटिस्ट—और
उनके
विरोधियों के
अनुसार वे
क्राइस्ट-विरोधी, पागल, संसार
के सबसे
खतरनाक आदमी।
विगत दो
वर्षों से पश्चिम
के
मनोवैज्ञानिकों, मानसचिकित्सकों, चर्च
से संबंधित
लोगों,
पत्रकारों
तथा व्यावसायिक
संदेह
वादियों
के मन में
उनकी उपस्थिति
और उनके
प्रभाव के
कारण कुतूहल
पैदा हो गया
है।‘’
साढ़े
चार साल बाद, सन्
1986 तक,
वही
कुतूहल जगाने
वाली
उपस्थिति
और प्रभाव
दुनिया के
लगभग हर देश
के लिए अपने-अपने
कम्प्यूटरों में भगवान
श्री रजनीश के
नाम के आगे
लाल सावधान
चिन्ह अंकित
कर लेने का कारण
बन गया है—‘’राष्ट्रीय
सुरक्षा के
लिए खतरनाक’’….. सार्वजनिक
कल्याण की
दृष्टि से
अहित कारक
उपस्थिति’’......राज्य
के हितों के
लिए बाधा’’…….प्रवेश
कदापि न दें।‘’
क्यों?
उनके
साथ जुड़ा ‘’खतरनाक’’ विशेषण
केवल उनके
विचारों के
कारण उन्हें
दिया गया है। आतंकवादी
अथवा किसी
संघातक गिरोह
के नेता के
अर्थों में
उनके खतरनाक
होने
का तो
कोई कभी सवाल
ही नहीं था।
समस्त ज्ञात
वृतान्त के
अनुसार वे एक
ऐसे व्यक्ति
थे जो कभी
अपने घर से
बाहर नहीं गए, बल्कि
प्रवचन देने
के अलावा जो
वास्तव में
अपने कमरे तक
से बाहर नही
गए। और जिन्होंने
बोलने के अलावा
और कुछ भी
नहीं किया हे।
जिन दो देशों
में वे रहे—भारत
और अमेरिका—उनमें
गहरी छानबीन
करने के
बावजूद भी जिस
व्यक्ति के
ऊपर कोई भी जुर्म
कायम नहीं
किया जा सका, सिवाय
इसके कि उन्होंने
आप्रवास
अधिकारियों को झूठे
वक्तव्य दिए
है।*
फिर
जर्मन,
स्विस, ऑस्टेलियन
तथा डच
सरकारों
को1986 में
आपातकालीन
आदेश क्यों
पास करने पड़े
कि यह व्यक्ति उनके देश
की जमीन पर
पाँव तक नहीं
रख सकता?
इटली
ओर स्वीडन ने
उन्हें
पर्यटक-वीसा
देने से इन्कार
कर दिया?
जब हिथ्रो
हवाईअड्डे पर
उनका जेट आठ
घंटे के लिए उतरा
तब इंग्लैंड ने
उनको
ट्रांजिट
लाउंज में रात
भी रूकने की
इजाजत क्यों
नहीं दी?
ग्रीस
में जब
उन्हें
चार हफ्ते
रूकने की
अनुमति थी तब
उन्हें दो
हफ्तों के बाद
वहां से अचानक
निकाल बाहर क्यों
कर दिया गया—जबकि
इन दो हफ्तों
में उन्होंने अपने घर के
बाहर कदम भी
नहीं रखा।
जिस जेट
प्लेन में वे
यात्रा कर रहे
थे, उसे कनाडा
ने ईंधन लेने
हेतु
पैंतालीस
मिनटों के लिए
भी क्यों नहीं
उतरने दिया—ऐसा
लिखित गांरटी
के बावजूद भी
कि वे प्लेन
के बाहर कदम भी नहीं
रखेंगे?
सामान्यत:
सीधे-सादे
करीबियन
द्वीप-समूहों
ने अखबारों
द्वारा
प्रसारित मान्
एक अफवाह की
हल्की सी भनक
पर की वे वहीं
जा रहे है, अपने
हवाई अड्डों
को सतर्क क्यों
कर दिया कि
उनका हवाई
जहाज वहां उतरने
ने दें?
जमाइका
ने उन्हें दस
दिन का वीसा
देने के बाद, उनके
वहां पहुंचने
पर उन्हें
चौबीस घंटे के
भीतर देश
छोड़ने का
आदेश क्यों
दे दिया?
क्रिश्चियन डेमोक्रैटों
के एक गुट ने
यूरोप की संसद
के सामने यह
प्रस्ताव क्यों
रखा कि सदस्य-देश
ऐसे उपास करें
जिससे वे (
भगवान श्री
रजनीश) कभी भी
उन देशों की
सीमा में रह न
सकें?
वेटिकन
ने अपने
नियंत्रण के
अंतर्गत आनेवाले
सभी इतालवी
समाचार
पत्रों से यह
निवेदन क्यों
किया कि वे
उनके नाम तक
का उल्लेख न
करें?
अमरीका
अटर्नी जनरल
एड मीज़ ने
ऐसा क्यों कहा कि वे
चाहते है कि ‘’वे(
भगवान श्री)
भारत वापिस हो
और फिर कभी देखने-सुनने
में न आएं’’ और
वे पश्चिम
जगत में न
रहें इसके लिए
अमरीकी सरकार
को ब्लैक मेल
पर क्यों
उतरना पड़ा?
ऐसी क्या
बात थी जिससे
कि विश्व की
सर्वाधिक
ताकतवर
सरकारें एक
अकेले आदमी से
इतनी भय-भीत
हो गई।
जिसके
पास किसी भी
तरह का
राजनैतिक पद
नहीं था। जो
स्वयं के
सिवाय किसी ओर का
प्रतिनिधित्व
नहीं करता था, और
जो बोलने के
अतिरिक्त और
कोई कृत्य नहीं करता?
यह कौन
आदमी था जिसने
अपने खिलाफ
कम्युनिस्ट, पूंजीवादी, केथॅलिक, फासिस्टों
को एक
अश्रुतपूर्व
पवित्र
गठबंधन में जोड़
दिया?
--सू एपलटन
*पीत
पत्रकारिता
द्वारा उत्कंठा
पूर्वक
प्रसारित की
गयी अफ़वाहों
के ठीक
विपरीत, भगवान
श्री रजनीश
भारत में कभी किसी
प्रकार के
आरोप के जुर्म
में नहीं थे।
अमरीका में, चार
वर्ष तक
प्रात: प्रत्येक
सरकारी
ऐजेंसी
द्वारा चलाई
गयी
जांच-पड़तालों
के बाद,
केवल
क्षुद्र आरोप
जो उन पर
लगाये जा सके थे कि
अमरीका-आगमन
पर उन्होंने
झूठा वक्तव्य
दिया कि उनका
उस देश में स्थायी
आवास का इरादा
नहीं था जबकि
वास्तव में
उनका वैसा
इरादा था। और
कि उन्होंने
कूद लोगों को
ऐसे विवाहों
के आधार पर स्थायी
आवास के लिए
आवेदन
करने
की प्रेरणा दी
जिनके बारे
में उन्हें
पता था कि वे
विवाह सही
नहीं
थे। (और
ये सब उस समय
जब वे
सर्वविदित वे
सर्वमान्य रूप
से मौन में थे........अध्यान
चार देखें)
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