एक विश्वव्यापी खतरा—(प्रवचन—छ:)
हिमालय में
बसने के ख्याल
से भगवान ने
मध्य—नवम्बर
में अमरीका
छोड़ा। लेकिन
लगा कि। भारत
सरकार के
इरादे कुछ और
ही थे। तीन ही
दिनों में, भगवान के
साथ—साथ आए और
आठ से पंद्रह
वर्षों तक से
उनकी देखभाल
करते आ रहे
उनके पश्चात्य
शिष्यों को—उनका
डाक्टर, परिचारिका
और कुछ
गृहकार्य
करनेवाले—तीन
सप्ताह के लिए
प्राप्त उनके
वीसाओं की अवधि
बढ़ाने से
इनकार कर दिया
गया और उन्हें
देश छोड़ देने
के आदेश दे
दिये गये। ठीक
उसी समय, एक
इटालियन टी.वी
दल को भी वीसा
देने से मना
कर दिया गया, जो भारत आकर
भगवान का
इंटरब्यू
लेना चाहता था।
भारत
सरकार ने
शीघ्र और
प्रभावशाली
रूप से इन्हें
अलग— थलग कर
दिया था। ऐसा
लगा कि अमरीकी
अटर्नी—जनरल
एड मीज की
इच्छा (उनका
यह कथन
प्रकाशित हुआ
था: कि ‘‘मैं
उस व्यक्ति को
सीधे भारत
वापिस देखना
चाहता हूं
ताकि वह फिर
कभी दुबारा
सुनने या
देखने में न
आए’‘), भारत
का आदेश थी।
क्रिसमस के एक
दिन पहले
भगवान की निजी—सचिव
का तीन महीने
का वीसा
अलंघनीय रूप
से रद्द करके
उन्हें
संध्या से
पहले—पहले देश
छोड़ देने के
आदेश दिये गये।
इसके कुछ ही
दिनों के भीतर
भगवान उत्तर
की ओर उड़े
जहां वे
काठमांडू
(नेपाल) में इन
निष्काषित
लोगों के साथ
रह सकें।
वहां
उन्होंने
प्रवचन देना
पुन: शुरू कर
दिया, और
सैकड़ों
भारतीय और पश्चात्य
पर्यटक
उन्हें सुनने
के निमित्त आ
पहुंचे। जो भी
हो, शीघ्र
ही अत्याचार
के चिह्न पुन:
प्रगट हो गये—देखभाल
करने वालों
में से एक को
वीसा की अवधि बढ़ाने
से इनकार कर
दिया गया और
अचानक पुलिस
ज्यादा ही
देखने में आने
लगी। एक ऐसे
देश के लिए जो
पर्यटन पर
भारी रूप से
निर्भर है, असामान्य
कृत्य। साथ ही
जो सरकारी
मंत्रीगण एवं
अधिकारी भगवान
को सुनने आया
करते थे, उन्होंने
आना बंद कर
दिया।
स्पष्टत: इस
छोटे—से
पर्वतीय
राज्य पर दबाव
पड़ना शुरू हो
गया था, पर
कहां से?
भगवान
ने एक विश्व—
भ्रमण का
प्रारंभ करते
हुए मध्य—फरवरी
में नेपाल छोड़
दिया—एक विश्व—
भ्रमण जो उसी
दबाव को घुटने
टेकनेवाले
अनेकानेक
तथाकथित 'स्वतंत्र'
देशों का
पर्दाफाश
करने वाला था।
सर्वप्रथम
वे ग्रीस के
क्रेटे द्वीप
गये, जहां
उन्हें तीस
दिनों का
पर्यटक—वीसा
मिला। प्रेस
की जानकारी
में आए बिना
वे एक निजी
हवाई—पट्टी पर
उतरे थे। तो
भी, रहस्यमय
ढंग से, अगली
ही सुबह
एथेन्स के
समाचारपत्र 'सेक्स गुरु'
पर
सनसनीखेज
कहानियों से
भरे थे। काम—रंगरलियों
की पुरानी
अफवाहों को
सजाने—संवारने
के लिए सात
सालों पहले
पूना में लिए
गये कुछ
अर्द्धनग्र
लोगों के
चित्र
प्रकाशित
किये गये। आने
वाले दिनों
में भी ये
कहानियां
जारी रहीं—स्पष्टतः
ये एक
सुनियोजित
आन्दोलन का
अंग थीं।
साथ—साथ
यह सारी
सामग्री, अनाम
व्यक्तियों
द्वारा, क्रेटे
के
ऑर्थोडॉक्स
चर्च के
बिशपों को भेजी
गयी। भगवान के
आगमन के पांच
दिनों के भीतर
ही, ग्रीक
ऑथोंडॉक्स
चर्च ने उनकी
उपस्थिति पर विचार
करने के लिए 'हाई होली
सिनॅड' (उच्च
पवित्र
धर्मसभा) की
बैठक आयोजित
की। भगवान को ‘‘जन—सुरक्षा
के लिए गंभीर
खतरा’‘ बताते
हुए उन्होंने
एक घोषणा—पत्र
जारी किया, जिसे प्रेस
ने छापा।
स्थानीय बिशप,
मेट्रॉपालिटन
ऑफ पेत्रा ने
सेक्स गुरु
द्वारा अपने
नवयुवकों के
इर्दगिर्द एक ‘‘जाला बुने
जाने’‘ के
खतरे का
नागरिकों को
आगाह करते हुए
एक पेष्फलेट
वितरित किया।
पेष्फलेट ने
भगवान पर अपने
शिष्यों में
मानसिक—
ध्वस्तताएं
उअन्न करने, '' अकल्पनीय
व्यभिचारोत्सव’‘
संचालित
करने, खतरों,
लुटेरेपन, स्मगलिंग, मादक दवाओं,
क्र—अपवंचन
और सामान्य
अनैतिक
व्यवहार के
आरोप लगाए। एक
प्रेस
काकेन्स में
बिशप ने
उद्घोष किया— ‘‘यह व्यक्ति
खतरनाक है. जन—सुरक्षा
के लिए संकट..
एक धूर्त जो
लोगों के अंतःकरण
खरीदता और
उन्हें
पथभ्रष्ट
करता है।’’
अगले
ही दिन भगवान
ने ग्रीकों पर
यह कहते हुए प्रहार
किया कि यदि
वे सुकरात की
मानकर चले होते
तो आज समाज के
सिरताज होते, लेकिन
उसके बजाय वे
कट्टरतावादी
मूर्खों की मानकर
चले और आज तक
भी उन्हीं
मूर्खों के
पीछे लगे चले
जा रहे हैं।
ग्रीक समाचार
पत्रों ने, इसका संदर्भ
से अलग हवाला
देते हुए, सनसनी
उअन्न कर दी। 'होली सिनॅड'
की आनन—फानन
पुन: बैठक हुई,
पार्लियामेण्ट
में सवाल खड़े
किये गये, और
एक याचिका फिर
से वितरित की
गयी। एपीके
एथेन्स
ब्यूरो के
पेट्रिक किन
से टेलीफोन पर
वार्तालाप के
दौरान
स्थानीय बिशप
ने कहा, ‘‘हमारे
पास उनसे
छुटकारा पाने
की इच्छा और
शक्ति,दोनों
हैं। या तो वे
बोलना बंद
करते हैं (
भगवान ने अपने
निजी बगीचे
में प्रवचन
देना प्रारंभ
कर दिया था), अथवा हम
हिंसा का
उपयोग करेंगे।
यह एक ऐसे
बिंदु तक लाया
जाएगा कि खून
बहेगा।’’ किन
ने कहा कि
बिशप एक
धार्मिक
क्रोधोन्माद
में थे और
स्वयं जाकर
भगवान के मकान
पर पत्थर
फेंकने तथा
उसमें आग लगा
देने की बात
कर रहे थे।
मार्च 5
को, भगवान
के तीस दिवसीय
आवास में से
सत्रह दिन शेष
रहते, सशस्त्र
पुलिस उनके घर
में घुस आई
जबकि वे सो
रहे थे, उन्हें
बिना कोई कारण
बताए अथवा
चेतावनी दिये
गिरफ्तार किया,
और वहां से
3० किलोमीटर
दूर
हेराक्लिअन
बंदरगाह पर ले
गयी। उन्हें
यह भी नहीं
बताया गया कि
वे कहां जा
रहे थे और
उन्हें अपनी
दवाएं तक साथ
लेने नहीं
दिया गया।
बंदरगाह पर
उन्हें सूचित
किया गया कि
सरकार द्वारा
उनका वीसा
रद्द कर दिया
गया था और कि
वे तुरंत यहां
से निष्काषित
किये एवं पानी
के जहाज
द्वारा भारत
वापस भेजे जा
रहे थे।
शिष्यगण पुलिस
को 25, ०००
डालर का घूंस
देकर ही फुसला
सके कि वे भगवान
को अपने निजी
चार्टर्ड
जेटप्लेन
द्वारा देश
छोडने दें।
सरकारी
अधिकारियों
ने प्रेस को
वक्तव्य दिया
कि उन्हें ‘‘राष्ट्रीय
हितों के लिए’‘
देश से
निष्काषित
किया जा रहा
था। इस प्रकार
सुकरात, प्लेटो,
अरस्तू
तथा
डिमक्रिसी की
जन्मभूमि
ग्रीस ने एक
व्यक्ति को
उसके विचारों
के कारण देश
से निकाल बाहर
किया।’’केवल
अपने विचारों
के कारण, '' पीक
फिल्म
निर्देशक
निकोस कौण्डॉरस
ने कहा, ‘‘उससे
अधिक कुछ नहीं।
यदि अभी भी
पीस में विचार
का नृशंस दमन
किया जाता है,
तो कल वे
मेरे पीछे पडे
होंगे, और
अगले कल, आपके
पीछे। और हम
वापस वहीं खड़े
होंगे जहां से
हम चले थे।’’ कौण्डारस
ने, जिन्होंने
पहले भगवान की
आलोचना की थी
अखबारों में,
उनकी
गिरफ्तारी के
खिलाफ बहुत
जोरदार आवाज उठाई।
उन्होंने कहा
कि चर्च ने ‘‘देश की सारी
घंटियां’‘ बजा
दी हैं भगवान
की गिरफ्तारी
की विजय का
उत्सव मनाने
में।’’कैसी
विजय?'', उन्होंने
पूछा।’’कुछ
पुलिस की
गाड़ियों ने उस
भवन को घेर
लिया जिसमें
वह भारतीय
ठहरा हुआ था, द्वार तोड़
दिया गया— और
खिड़कियां।
जिस कमरे में
वह सो रहा था
उसके दरवाजे
हिला दिये गये
और करीब—करीब
बिस्तर में
उसे गिस्फतार
किया गया। जब
कठोर अमरीका
ने इस भारतीय
सद्गुरु को
देश से
निष्काषित
करने का तय
किया तो उसने
कोई इमीग्रेशन
( आप्रवास)
संबंधी नियम
भंग किये जाने
का सहारा लिया।
यहां तो कोई
जरा—सा भी
औचित्य नहीं
है। एक और
मात्र एक जवाब,
उसके विचार।
यह व्यक्ति
जिसे चर्च ने 'एंटी—क्राइस्ट'
कहा, अपने
साथ कुछ भी न
लाया था केवल
कुछ विचारों को
छोड्कर। कोई
ड्रग (मादक—द्रव्य)
नहीं, कोई
अस्र—शस्त्र
नहीं, कोई
प्रक्षेपास्त्र
नहीं। कुछ भी
नहीं, केवल
विचार.. वह
भारतीय हमसे
चाहता क्या था?
उसके पास एक
दृष्टिकोण था,
और उसे
फैलाने का उसे
हर अधिकार था
भले ही वह दृष्टिकोण
हमें नाराज
करता हो।
उन्होंने कहा
कि उसने
सत्ताधीशों
का अपमान किया।
पर सत्ताधीश
एक—दूसरे का
अपमान सुबह से
रात तक साल के
तीन सौ पैंसठ
दिन करते हैं।
यहां अपमानों
के बिना कुछ
ठीक से चलता
ही नहीं। यह
ग्रीक रिवाज
है। किंतु
अचानक भारतीय
ने हमें
व्याकुल कर
दिया जब उसने
साहसपूर्वक
कहा कि हमने
सुकरात को जहर
दिया था—एक
सच्चा
ऐतिहासिक
तथ्य, यदि
मुझे ठीक याद
है।’’ कौडॉरस
ने अंत में
कहा, ‘‘उनका
निष्काषन
शर्म की बात
है... .मै
शर्मिंदा हूं।
सारे
विश्व के
प्रेस के
सामने, जो भगवान के
निर्गमन को
अंकित करने
इकट्ठा हो गया
था, भगवान
ने सुरक्षा
घेरे के रूप
में साथ लगे
बीस शस्रधारी पुलिसवालों
की ओर इशारा
किया और कहा, ‘‘तुम अभी भी
उतने ही बर्बर
एवं असभ्य हो
जितने तुम तब
थे जब तुमने
सुकरात को जहर
दिया था।’’ विदा
होते भगवान ने
कहा: ‘‘नैतिकता
जो दो हजार
वर्षों से
सिखायी और अमल
में लायी जा
रही है और
मेरे द्वारा
सिर्फ कुछ
दिनों में
नष्ट होने लगी,
वह कुछ बहुत
मूल्यवान
नहीं है।’’ भगवान
का अगला पड़ाव
था जिनेवा, स्विट्जरलैण्ड,
जहां
पहुंचने पर
उन्हें और
उनके साथियों
को सात दिन का
वीसा दिया गया।
पांच मिनट बाद,
इसके पहले
कि भगवान जेट
से बाहर
निकलते, बंदूकधारी
पुलिस ने उसे
घेर लिया, सबको
विमान में ही
बने रहने का
आदेश दिया, और सबके पासपोर्ट
वापस मांगे।
उन्होंने
सबके वीसाओं
पर '' अनॅल्ड’‘
(रद्द) की
मुहर लगायी और
जेट को तुरंत
उड़ा ले जाने
का आदेश दिया।
पीछे, न्याय
विभाग की
प्रमुख
एलिजाबेथ कपि
ने कारण बताया
कि भगवान के
आगमन के कुछ
ही पहले एक
न्यायिक—आज्ञप्ति
जारी की गयी
है, जिसमें
उन्हें '' अस्वीकार्य
व्यक्ति’‘ घोषित
किया गया है, ‘‘क्योंकि
संयुक्त
राज्य अमरीका
में वे इमीग्रेशन
(आप्रवास) —
नियमोल्लंघन
के दोषी थे।’’ वे आप्रवास—नियमोल्लंघन
ऐसे कृत्य थे
जो आमतौर से
सारी दुनिया
में सैकंडो
लोगों द्वारा
रोज किये जा
रहे हैं—नियमोल्लंघन
जिनकी अधिकांश
सरकारें
(अमरीका सहित)
बमुश्किल
चिंता लेती हैं,
दोष ठहराने
की प्रक्रिया
से गुजरने की
तो बात ही छोड़
दो; नियमोल्लंघन
जो
निश्रितरूपेण
कभी जेल की सजा
नहीं लाते ऐसे
व्यक्ति पर
जिसने कोई और
अपराध न किये
हों। तब यह
व्यंग्यात्मक
ही था कि
स्विट्जरलैष्ठ—जो
जाने, अनजाने,
शुइलस को
अपेक्षित उन
असंख्य लोगों
और भूतपूर्व
अपराधियों की
मेजबान बनती
है जब वे अपने
स्विस बैंक
एकाउंट्स
देखने आते हैं,
और जिसने
चार्ली
चेपलिन को घर
बसाने दिया जब
वे अमरीका से
वहां की सरकार
द्वारा
निकाले गये—
भगवान को वापस
करे, संगीन
की नोक पर, इतने
लचर कारणों पर।
तथापि, उसने ऐसा
किया।
स्विट्जरलैण्ड
से भगवान
राजनैतिक
शरणार्थियों
और मानवीय
अधिकारों के
उस आश्रय—स्थल
स्वीडन गये, जहां
पहुंचते ही
उनके दल को
आप्रवास—अधिकारी
ने आश्वासन
दिया कि वे
लोग दो सप्ताह
वहां ठहर
सकेंगे।
बहरहाल, दस
मिनट बाद उस
वी. आइपी
लाउंज पर, जहां
वे शहर ले
जाने वाले
यातायात की
प्रतीक्षा कर
रहे थे, पुलिस
द्वारा बाहर
से ताला बंद
कर दिया गया, और वे
दरवाजों के
बाहर ही अपनी
बंदूकों को
झुलाते खड़े
रहे। एक अशुभ
सूचन। पुलिस
के प्रधान
उपस्थित हुए
और उन्होंने
कहा कि इस दल
को तुरंत
लौटना पड़ेगा।
कारण जो दिया
गया वह था कि
साथ में जो दो
भारतीय है, उनके पास
वीसा नहीं है।
स्विट्जरलैण्ड
की भांति ही, दरवाजे की
तालाबंदी, सशस्त्र
पुलिस, पुलिस
के प्रधान की
उपस्थिति कुछ
और ही गंभीर
बात का इशारा
दे रहे थे।
अब तक
में, शस्त्रों
से सघनरूपेण
लैस पुलिस—जो
भगवान का नाम
कम्प्यूटर
में डाले जाते
ही वहां अनिवार्यरूपेण
प्रगट हो गयी
थी—के '' आपातकालीन’‘
बेचैन
व्यवहार से
साफ होता जा
रहा था कि
भगवान का
कम्प्यूटर—वर्गीकरण
काफी गर्म
होगा। यह
उन्हें (
भगवान को) बाद
में पता चलना
था कि देशों
ने, प्राय:
निरपवादरूप
से, उन्हें
‘‘राष्ट्रीय
सुरक्षा के
लिए खतरा’‘ वर्गीकृत
किया था। जो
उन्हें उसी
वर्ग में रखता
है जिसमें
आतंकवादी।
स्वीडन
से उड़कर भगवान
का हवाईजहाज इंग्लैंड
आया। अब तक
शाम के आठ बज
चुके थे और
विमानचालकों
को विमान
उड़ाते 12 घंटों
से अधिक हो
चुका था।
कानून के
मुताबिक अब
उन्हें कम—से—कम
आठ घंटे
विश्राम करना
ही चाहिए, इसके
पहले कि वे
उड़ान जारी
रखें। विमान
का स्वागत कुछ
अधिकारियों
द्वारा हुआ जिन्होंने
पूरे दल को
इमीग्रेशन
कांउटर पर जाने
के आदेश दिये।
भगवान ने इन
अधिकारियों
को बताया कि
वे देश में
प्रवेश करना
नहीं चाहते।
वे केवल ट्रांजिट
में रात भर
रहना चाहते थे
और अगली सुबह
अपने जेट से
चले जाना
चाहते थे।
उन्हें कहा
गया कि उनके
लिए यह संभव
नहीं था कि
रात भर
ट्रांजिट में
रुक सकें। (वे
क्या सोचते थे
कि भगवान वहां
क्या कर देनेवाले
थे)?
उनको
और उनके दल को
चार घंटे की
जांच—पड़ताल से
गुजारा गया, और फिर
अर्धरात्रि
में बताया गया
कि प्रवेश की
अनुमति नहीं
दी जा सकती।
यह बाद में
पता चला था कि
उनके प्रवेश—निषेध
का आदेश उनके
आगमन के घंटों
पूर्व तैयार
किया जा चुका
था। आदेश में
कहा गया था कि
उनका
इंग्लैंड
द्वारा
बहिष्कार '' अमरीका में
उन्हें
आप्रवास—नियमोल्लंघन
का दोषी पाये
जाने को देखते
हुए सार्वजनिक
हित को
बढ़ानेवाला’‘ था। महान
मसाला! एक ऐसे
देश से जो सिख
आतंकवादियों
को भारत को
वापस लौटाना
नहीं चाहता, और जिसने, केवल चंद
दिनों बाद ही,
अपने ‘‘सार्वजनिक
हितैषी’‘ तटों
से अमरीकी
युद्धयानों
को उड़ानें
भरने की
अनुमति दी
ताकि वे
लीबिया में
रास्तों के किनारे
खड़े निर्दोष
लोगों की
हत्या कर सकें।
उनके
दल के अन्य
सदस्यों को
कोई कारण नहीं
बताए गये कि
वे क्यों रोके
गये थे—निश्रित
ही उनमें से
किसी का भी
किसी अपराध में
दोषी होने का
कोई इतिहास न
था। तथापि सब
के सब एक छोटी, अंधेरी, गंदी कोठरी
में, जो
अफ्रीकी और
एशियाई
शरणार्थियों
से भरी हुई थी,
रात भर रोक
कर रखे गये।
अन्य अवसरों
की तरह ही
सशस्त्र पुलिस
द्वारा अगली
सुबह भगवान
अपने विमान पर
चढ़ा दिये गये।
इस
मामले की
समीक्षा करते
हुए 'लेंकेस्टर
इवनिंग
टेलीग्राफ' में जॉन क्लार्क
ने लिखा: '' 54
वर्षीय
भारतीय, भगवान
श्री रजनीश, विश्व की
अधिकांश
सरकारों
द्वारा '' अस्वीकार्य
व्यक्ति’‘ करार
दे दिये गये
लगते हैं।
बेबी डॉक
डुवेलियर और
भूतपूर्व
राष्ट्रपति मार्कोस
अपने रहने के
लिए देश खोज
लेने में अधिक
सफलता—प्राप्त
दिखते हैं।
लेकिन भगवान,
जिसका मतलब
होता है
सौभाग्यशाली,
न तो कोई
पदच्युत
तानाशाह हैं,
न ही किसी
गंभीर जुर्म
के दोषी। वे
सारी दुनियां
में फैले 3,5०,००० शिष्यों,
जिन्हें
संन्यासी कहा
जाता है, के
आध्यात्मिक
गुरु हैं, और
इनकी
शिक्षाओं का
अध्ययन
लेंकेस्टर
विश्वविद्यालय
में किया जाता
है जिसके पास
सारे यूरोप
में सबसे बड़ा
धर्म—विभाग है।’’
उन्होंने
आगे कहा, ‘‘लेंकेस्टर
विश्वविद्यालय
के
व्याख्याता पाल
हीलाज़, जो
नव— धर्मों के
विशेषज्ञ हैं,
का अन्य
बहुतों के
जैसे ही यह
अभिमत है कि
ब्रिटेन
द्वारा गुरु
के बहिष्कार
के लिए कोई
औचित्यपूर्ण कारण
नहीं है।
मिस्टर हीलाज़,
जो भगवान को
अपने एक शैक्षणिक
पाठ्यक्रम
में सम्मिलित
किए हुए हैं, कहते हैं '' भगवान अपने
आलोचकों
द्वारा अत्यधिक
अराजकतावादी
एवं संगठित
संस्थानों के
लिए एक खतरे
के रूप में
देखे जाते हैं।
वे सामाजिक
धारणाओं के
बाड़े के बाहर
पड़े हुए माने
जाते हैं और
उसी प्रकार का
विरोध उनके प्रति
दिखाया जाता
है जैसा छठे
दशक में
हिप्पीज़ के
प्रति था।’’ अंत में
क्लार्क ने
कहा, ‘‘क्या
वह प्रतिरोध
और आप्रवास—नियमोल्लंघन
ब्रिटेन तथा
कई अन्य देशों
द्वारा भगवान
के बहिष्कार
को 'गेचित्य
प्रदान करते
हैं, यह
बात अभी भी
उत्तरित होने
को बाकी है।’’
लेंकेस्टर
विश्वविद्यालय
के रिलीजियस
स्टडीज़
डिपार्टमेंट
की ही जूडिथ
थाम्पसन ने
समझाया, '‘‘भगवान हर उस
व्यक्ति पर
आक्रमण करते
है जो किसी
प्रकार का
स्थान रखता है,
चाहे वह
शासन में हो
अथवा चर्च में।
भगवान
विश्वासों पर
आक्रमण करने
में लगे हैं, अथवा कम से
कम उन्हें उभारकर
सतह पर लाने
में, और यह
बात स्वत:
विवाद उत्पन्न
करती है।
क्रेटे में
उन्होंने इन
पर पत्थर
मारने की धमकी
दी, ' धार्मिक'
लोगों ने
इनके
अनुयायियों
पर पत्थर
फेंकने की
धमकी दी यह भय
है। वे एक
शक्तिशाली
एवं खतरनाक
व्यक्ति के
रूप में देखे
जाते हैं, और
कोई भी उस
तथ्य का आमना—सामना
करने को तैयार
नहीं है। ये
ज्यादा पसंद
करेंगे कि वे
देश—निकाले में
हो और ये उनका
स्थान भर लें।
मैं समझती हूं
कि ये लोग
उनको एक
उदाहरण भी बना
रहे है।' —यदि
तुम ऐसा करोगे,
यदि तुम
आदेश का पालन
नहीं करोगे, तो हम पका
करेंगे कि
तुम्हें वीसा
न मिलें, अपने
काम के साथ और
आगे बढ़ने के
मौके न मिलें।’’
'वे'
1986 की वसंत
ऋतु में
निश्रित ही
अपनी
सामर्थ्य भर
सब कुछ कर रहे
थे इस का पका करने
हेतु।
ब्रिटेन
से उड़कर भगवान
आयरलैण्ड आए, जहां, आइरिशों
के भोलेपन से,
शन्नन के
आरामपसंद
अधिकारियों
द्वारा पूरे
दल को तीन
महीने का
सामान्य
पर्यटक—वीसा
दिया गया। वे एक
हटिल गये, गत
48 घंटों में
उनका प्रथम
सभ्य विश्राम।
अगली सुबह
पहली बात हुई
कि पुलिस आई, हमारे
पासपोर्ट
मांगे और
वीसाज़ पर ‘‘केन्सेल्ड’‘
(रद्द) की
मुहर लगा दी
गयी। जो भी हो,
एक समस्या
थी। विमान
अपने गंतव्य
(उस समय
एंटीगुआ) के
लिए उड़ नहीं
सकता था, क्योंकि
गैंडेर पर
ईंधन लेने
हेतु उतरने के
लिए कनाडा ने
अपनी अनुमति
देनी नामंजूर
कर दी थी—जो कि
एक अनिवार्य
स्टाप था, क्योंकि
भगवान के
विमान में
होते हुए वह
यू.एस.ए. में
नहीं उतर सकता
था और वह
दुनिया में और
कहीं तो उतर
ही नहीं सकता
था—ऐसा लगता
था। कोई उपाय
न देख, आइरिश
अधिकारियों
ने भगवान को
वहां बने रहने
दिया जबकि
कनाडा के साथ समझौते
की बातचीत
जारी रही, बशर्ते
कि वे कोई
उपद्रव न खड़ा
करें। कठिन!....
भगवान, जैसाकि
सामान्य है, हाटेल से
बाहर न गये, और न कोई
मिलने वालों
से मिले।
किन्तु उससे
कुछ मदद
न मिली। कुछ
ही दिन बीते
थे कि प्रेस
ने उनका पता
लगा ही लिया—वे
उनको
करीबियन्स में
ढूंढते रहे थे,
उन
शांतिपूर्ण, धूप में
शराबोर द्वीप—समूहों
को उन्मत्त
प्रेस—वक्तव्यों
के झोंकों
द्वारा भावोत्तेजित
करते रहे थे
कि भगवान कभी
उनके तटों पर
न उतर सकें।
अंततः प्रेस
ने उन्हें
निराले आइरिश
नगर लिमरिक
में खोज
निकाला, और
रातों रात ‘‘सेक्स गुरु’‘
शीर्षक
स्थानीय शांत
समाचारपत्रों
में प्रगट हो
गया। शीघ्र ही
विरोधी दलों
के राजनैतिक
प्रेस—काकेन्सें
बुलाने की
छीनाझपटी में
पड़ चुके थे
ताकि वे सरकार
से जवाब—तलब
कर सकें कि इस
खतरनाक
व्यक्ति को
देश में कैसे
आने दिया गया,
और स्थानीय
धर्म—शिक्षक
अपना—अपना
बपतिस्मा छोड़
भागे अपने—अपने
झुंडों को
सरसरी तौर पर
पुनराश्वस्त
करने कि ‘‘इस
नगर के अच्छे,
मर्यादित
ईसाइयों पर’‘ कोई आपत्ति
नहीं आएगी।
इस बीच, भगवान के
लिए देश कम
होते जा रहे
थे। कनाडा ने
अब तक टस से मस
न की थी। लंदन
के लॉयड्स
द्वारा इस
बांड के
बावजूद कि भगवान
उनके हवाई
अड्डे की
तारकोल पट्टी
पर पांव न
रखेंगे, उनका
हवाई जहाज
वहां उतर न
सकता था। इस
देर—दार के
कारण भगवान का
एंटीगुआ
गंतव्य हाथ से
निकल गया। जब
उनकी उड़ाने
यूरोप के
चक्कर लगा रही
थीं उसी बीच
मार्च 6 को, इस
करीबियन
द्वीप के साथ
एक सौदा
चुपचाप पका हो
गया था उनके
वहां जाने का।
उस रात हीथ्रो
पर पूछताछ के
दौरान
ब्रिटिश
इमीग्रेशन
अधिकारियों
को इसका पता
चल गया। अगली
सुबह ब्रिटिश
सरकार ने
एंटीगुआ सहित
कॉमनवेल्थ के
सभी करीबियन
देशों को
राजनैतिक
टेलेक्स यह
सलाह देते हुए
भेजे कि वे
भगवान को वहां
प्रवेश न करने
दें। एंटीगुआ
ने सौदा रद्द
कर दिया, और
मार्च 15 तथा 16 को
एपी. तथा यूपी.
आई. की
अंतर्राष्ट्रीय
तार सेवाओं से
एंटीगुआ के
विदेश—मंत्री
एवं
इमीग्रेशन (
आप्रवास) —मुख्याधिकारी
के प्रेस
वक्तव्य
गुजरे कि भगवान
को वहां उतरने
न दिया जाएगा,
और कि वे
वहां उतर
सकेंगे ऐसा
अतीत में कभी
कोई सवाल ही न
था।
मजे की
बात है कि, इसके कुछ
ही पहले मार्च
13 को बरमूदा
में अमरीकी
वाणिज्य दूतावास
के एक
प्रवक्ता ने (
अमरीकी
दूतावास ने क्यों?
बरमूदा के
अपने
प्रवक्ता ने
क्यों नहीं?) विश्व—प्रेस
को एक वक्तव्य
जारी किया कि
प्रेस की इन
खबरों से कि ‘‘सेक्स गुरु’‘
वहां आ सकते
है, बरमूदा
में हंगामा मच
गया है, और
कि यदि वे
वहां आए तो
सरकार उन्हें
उतरने न देगी।
भगवान के
बरमूदा जाने
का कभी सवाल न
खड़ा हुआ था, अत: प्रश्र
यह उठता है कि
बरमूदा के
प्रेस को ‘‘सेक्स
गुरु’‘ —कहानियां
किसने दीं, और क्यों? और ऐसा
क्यों था कि दुनियां
के इतने सारे
नानाविध देश—यूरोपियन
कम्प्रइनटी
के देश, कॉमनवेल्थ
के देश, काले
देश, गोरे
देश, प्रथम
दुनियां के
देश, तीसरी
दुनियां के
देश—देश जो इस
सदा झगडती दुनियां
में कदाचित
कभी किसी बात
पर सहमत होते
है, वे सब
के सब अचानक
एकमत थे इस
व्यक्ति
भगवान श्री
रजनीश के
खिलाफ? इस
स्थिति से
किसी प्रकार
के
अंतर्राष्ट्रीय
षड्यंत्र की
बू आनी शुरू
हो रही थी, विश्वमंच
के पर्दे के
पीछे किसी ऐसे
अदृश्य हाथ के
होने की जो
धागे खींच रहा
था। क्या इस
साम्राज्यशाही—विगत
मुक्त एवं
स्वतंत्र
देशों के युग
में ऐसी कोई
बात संभव थी?
करीबियन्स
पर ताले पड़
जाने से, भगवान के
मित्रों की
नजर हालैंड पर
गयी। आखिरकार,
खुले—विचार
वाला और
सहिष्णु होने
के लिए उसकी
ख्याति है। एक
प्रभावशाली
डच बैंकर
मित्र ने
मार्च के शुरू
में न्याय—मंत्रालय
में भगवान के
वीसा के संबंध
में जानकारी
की थी। मार्च 14 को, सेक्रेटरी
ऑफ स्टेट फॉर
जस्टिस ने
मिनिस्ट्री
की ओर से यह
कहते हुए एक
प्रेस—वक्तव्य
जारी किया कि
भगवान हालैंड
में
संक्षिप्त
यात्रा के लिए
भी आने नहीं
दिये जाएंगे।
कारण
यह दिया गया
था कि
सार्वजनिक
व्यवस्था को
खतरा हो सकता
है क्योंकि डच
टीवी. पर ‘‘खास
व्यक्तियों, समूहों और
संस्थाओं’‘ के संबंध
में भगवान के
पिछले
वक्तव्यों ने
कुछ लोगों को
अपमानित किया
है, और
भगवान आए तो ‘‘नकारात्मक
प्रतिक्रिया ''
पैदा हो
सकती है। इसके
तुरंत बाद के
ही एक प्रेस—इंटरब्यू
में, कुछ
ही सप्ताहों
पहले पोप के
हालैंड आगमन
की योजना के
खिलाफ डच जनता
द्वारा एक
विशाल प्रदर्शन
के बारे में
प्रश्र किये
जाने पर, मंत्रालय
के प्रवक्ता ने
जल्दी से
इंटरव्यू
समाप्त कर
दिया। पूर्व
में उन्होंने
कहा था कि
सरकार का
निर्णय
अमरीका में
हुए एक टीवी.
इंटरव्यू पर
आधारित था
जिसमें, उन्होंने
कहा, भगवान
ने
केथोलिसिज्य,
पोप, मदर
टेरेसा और
होमोसेक्यूअत्स
(समलैंगिकों) को
आघात
पहुंचाया था।
(हालैंड कब से
होमोसेक्यूअत्स
से जुड़ गया?) उस
ख्यातिनामा
डच सहिष्णुता
एवम् बोलने की
स्वतंत्रता
का क्या हुआ?
मानवीय
अधिकारों की
डच जूरिस्ट
कमेटी ने उस
पर आश्चर्य
किया। मार्च 17
को उसने प्रेस
को बताया कि
सरकार का निर्णय
कानूनी रूप से
सही नहीं था, और कि
भगवान का
बहिष्कार
हालैंड से तभी
किया जा सकता
है जब वे
वास्तव में
यहां कानून
भंग करें।
कमेटी ने कहा,
यह निर्णय ‘‘मानवीय
अधिकारों के
खिलाफ था, बोलने
की
स्वतंत्रता
के खिलाफ था, और धर्म की
स्वतंत्रता
के खिलाफ था।’’
और लोग
भी चिंतित थे।
डच राष्ट्रीय
दैनिक 'ट्राड' में
मिशेल स्कमिट्र
ने सवाल उठाया,
‘‘सार्वजनिक
व्यवस्था
खतरे में पड़
सकती है के आधार
पर डच सरकार
द्वारा भगवान
श्री रजनीश को
वीसा दिये
जाने की
अस्वीकृति का
बोलने की स्वतंत्रता
से क्या संबंध
बनता है? '' उन्होंने
ग्रीस और
इंग्लैंड
द्वारा भगवान
के बहिष्कार
का हवाला दिया,
और कहा, ‘‘ऐसा
लगता है कि एक
अति
विवादास्पद
किंतु जगत—प्रसिद्ध
दार्शनिक के
मूलभूत
मानवीय अधिकारों
का हनन हुआ है।’’
स्कमिट्र ने
जिज्ञासा की
कि क्या
यूरोपियन
सरकारों के कृत्य
भगवान के
विवादास्पद
वक्तव्यों से
अधिक बेतुके
एवं खतरनाक
नहीं हैं, और
—सुकरात के
मामले का
हवाला दिया
जिसको, उन्होंने
कहा, व्यवस्था
ने जहर दे
दिया था यह
मान कर कि वह ‘‘एथेन्स के
युवकों को
भ्रष्ट कर रहा
था। यह बहुत
संभव है, '' स्कमिट्र
ने लिखा, ‘‘कि
2,००० वर्ष
पुरानी
सुकरात
दुखान्तिकी
का अप्रत्यक्ष
पुनराभिनय 1986
की इस वसंत
ऋतु में हो
रहा हो।’’
एक और डच
राष्ट्रीय
दैनिक, 'दे
वोक्सक्रांत'
ने मार्च 18
के अपने
संपादकीय में
सरकार के निर्णय
को ‘‘संदेहमय
बचकानापन’‘ कहा। इसने
व्याख्या की : ‘‘न्याय—मंत्रालय
गुरु भगवान
श्री रजनीश को
वीसा देने से
इनकार कर रहा
है। आधिकारिक
कारण यह है कि
विवादास्पद
संत का आगमन नीदरलैण्डस
की शांति एवं
व्यवस्था
खतरे में डाल
देगा। क्या
हेग के सरकारी
कार्यालय
भगवान के
समर्थकों और
तमाम अन्य दल
के लोगों, जो
रोष में थे
क्योंकि
भगवान के कुछ
वक्तव्यों से
उन्हें गहरी
चोट पहुंची थी,
के बीच एक
बड़ी लड़ाई के
डरावने
काल्पनिक
दृश्यों से
संत्रसित हो
गये थे? क्या
हम मान लें कि
इतनी बेलगाम
कल्पना वहां थी?
यह सच है कि
कुछ लोगों—जिनके
पास बेतुके की
समझ कम है —को
हिटलर व
होमोसेक्यूअल्स
के प्रति
भगवान के
वक्तव्यों से
थोड़ी मिचलाहट
हुई होगी।
औरों ने मजाक
कर रहे गुरु
के ईसाइयत, पोप और मदर
टेरेसा पर कहे
गये सख्त
शब्दों से
गहरी चोट
महसूस की होगी।
जो भी हो, उनको
वीसा न देकर, हम भगवान पर
प्रश्र—चिह्न
नहीं लगा रहे
हैं, ऐसा
हम डच
सहिष्णुता
एवं
सत्कारशीलता
पर और—किसी की
रायें कितनी
ही बेतुकी
क्यों न हों—बोलने
की
स्वतंत्रता
पर कर रहे हैं।
उसके अलावा, डच समर्थकों
का एक दल उनके
आगमन की बड़ी
लालसा से
प्रतीक्षा कर रहा
है। और जब
औरों के हितों
के सत्वरूप पर
आंच न आ रही हो,
तो
अल्पसंख्यकों
की तीव्र
अभिलाषाओं का
ख्याल रखना ही
होगा। भगवान
को वीसा न
दिये जाने के
पक्ष में सबसे
तर्कसंगत बात
इस भय का होना
है कि वे 'युद्ध—पीडितों'
के लिए
अनावश्यक
पीड़ा का कारण
बन सकते हैं।
पर पर्यटक—वीसा
देने से केवल
इसलिए इनकार
करना कि कोई
हिटलर के बारे
में कुछ कह
सकता है, बहुत
दूर तक चले
जाना है। वीसा
न देकर, सरकार
अत्यधिक
संकीर्ण—बुद्धि
बन रही है।’
’‘दे
वोक्सक्रांत'
नें
सम्पादकीय का
समापन यह
पूछते हुए
किया: ‘‘क्या
यह संभव नहीं
है कि और
सहिष्णु हुआ
जाए, विशेषत
एक
अल्पसंख्यक
दल के प्रति
जो आवेगपूर्ण
भले हो किंतु
निश्रित ही
दंगेबाज नहीं
है। सवोंपरि
रूप से, बोलने
की हमारी
अमूल्य
स्वतंत्रता
के प्रति आदर
की कमी चिंता
का बहुत कारण
उपस्थित करती
है।’’
डच सरकार
न हिली।
जर्मन
सरकार भी उतनी
ही अविनीत थी।
उसने एक
आपातकालीन
अध्यादेश
जारी किया कि
भगवान को
जर्मनी में न
आने दिया जाए
क्योंकि उनकी
वहां
उपस्थिति ‘‘राज्य के
हितों के
खिलाफ जाएगी।’’
सरकारी
प्रवक्ता ने
अध्यादेश को ‘‘एहतियाती
कदम’‘ बताया।
महान! भगवान
अपनी पुस्तकों
के माध्यम से
जर्मनी में
सुप्रसिद्ध थे,
क्योंकि
उनकी कोई 5० से
अधिक
पुस्तकें
फिशर, गोल्डमन,
हियने और
ड्राएमरनार
जैसे ख्यातिनाम
प्रकाशकों
द्वारा अनुदित
एवं प्रकाशित
की जा चुकी
थीं। सितम्बर
में
फ्रॅकफुर्ट
अपना
अंतर्राष्ट्रीय
पुस्तक—मेला
आयोजित कर
चुका था, जो
विश्व का सबसे
बड़ा पुस्तक—मेला
है। 1986 के लिए
विषय था 'भारत',
और उसके
अंतर्गत
प्रदर्शित
पुस्तकों में
एक थी भगवान
की अर्द्ध—आत्मकथा
का गोल्डमन
द्वारा नया
अनुवाद, 'गोल्देने
आगेन्बिक—पोर्त्रात
ईनर जुगेन्द
इन इंदियेन' (ग्लिम्पसेजू
ऑफ ए गोल्डेन
चाइल्डहुड)।
विदेश—मंत्री, गेन्शर, ने मेले का
उद्घाटन—भाषण
देते हुए ‘‘विस्तृतमना
बने रहने की
आवश्यकता पर
जोर दिया ताकि
साहित्य में
विविधा कायम
रखी जा सके।’’ इस बात को
देखते हुए कि
मेला '' अबाधित
सांस्कृतिक
सम्वाद’‘ का
एक सुंदर
नमूना था, उन्होंने
कहा ‘‘हम
(जर्मन सरकार)
सारी सीमाओं
के ऊपर उठकर
सारी दुनियां
में
सांस्कृतिक
एवं
वैज्ञानिक
सूचनाओं का एक
स्वतंत्र—बहाव
निर्मित करना
चाहते हैं.. .हम
जर्मन अपने अतीत
के अनुभव से
इस बात को
जानते द्र कि
इसका क्या
मतलब होता है
जब पुस्तकें
जलायी जाती हैं
और लेखकों पर
नृशंस
अत्याचार किये
जाते हैं, और
हम अथक श्रम
करते रहेंगे
अपनी बाहरी और
भीतरी, दोनों,
स्वतंत्रता
बनाए रखने के
लिए, ठीक
वैसे ही जैसे
हम दूसरों की
स्वतंत्रता
का जोरदार
पक्ष लेने से
कभी छूत न
होंगे, स्वतंत्रता
जो उन्हें मना
है और जो दमित
है।’’
प्रशंसनीय
शब्द।
दुर्भाग्य से
सरकार उनका
पालन करने में
असमर्थ थी।
सत्ताईस
भारतीय (लेखक
मेले में आने
के लिए
आमंत्रित
किये गये थे, जो सभी
अपेक्षाकृत
रूप से जर्मनी
में अज्ञात थे।
भगवान का आना
मना था। यह
व्यंग्य
पुस्तक—व्यवसाय
से न छिपा रहा।
पुस्तक
प्रकाशकों ही
पत्रिका 'बोर्सेन्ल्बाट्ट्'
के पुस्तक—मेला
अंक में
सुप्रसिद्ध
पत्रकार
रूडोल्फ बकिन
ने लिखा, ‘‘उद्घाटन—भाषण
में सुंदर
आदर्शों की
घोषणा—क्या वे
सचमुच मान्य
है? यदि
वैसा है, '' उन्होंने
पूछा ‘‘तो
जर्मन सरकार
ने भगवान का
आगमन रोकने
हेतु पूवोंपाय
क्यों किये? '' बकिन ने इस मनाही
को ‘‘सारे
परिपक
नागरिकों तथा
पी.ई.एन वी.एस, बॉर्सन्वेरीन,
आदि उन
संस्थाओं, जो
विचारों की
स्वतंत्रता, विचारों के
अंतर्राष्ट्रीय
विनिमय, और
विविधता में
विश्वास रखते
हैं, के
लिए एक चुनौती
बताया। भगवान
की पुस्तकों
की उनमें
निहित ‘‘बौद्धिक
चमक, मनोवैज्ञानिक
गहराई, 'गैर
काव्य—सौंदर्य’‘
के लिए
प्रशंसा करते
हुए उन्होंने
पुरानी कहावत
याद की— ''अच्छा
लेखक वह है जो
धारा के
विपरीत तैरता
है।’’ उसके
अनुसार, उन्होंने
कहा, ''भगवान
श्री रजनीश को
एक बहुत अच्छा
लेखक होना ही
चाहिए।
अमरीका में
उन्हें
जंजीरें
पहनायी गयीं
और देश से बाहर
निकाला गया, रूस में वे
सी. आईए. के
एजेण्ट माने
जाते हैं और उनके
पाठकों के पास
के.जी.बी.
पहुंचती है, क्रेटे में
ईसाई बिशप ने
उन्हें
पत्थरों से मारे
जाने की धमकी
दी, और
यथार्थत:
(निया की सारी
सरकारों ने, जिनमें
हमारा सावधान
जर्मनी भी
शामिल है, उन्हें
अपने—अपने देश
में प्रवेश
करने से
वर्जित कर
दिया है।’’
इटली, जो अपने
आप को सारी दुनियां
में सर्वाधिक
प्रजातांत्रिक
मानता है (यह
कुछ उन सारी सरकारों
में ही गड़बड़
है?), एक
दूसरा
राष्ट्र था जो
इस विश्व—
भ्रमण के
मामले में एक
शर्मनाक भाभा
में सामने आया।
जनवरी में विलियम
राइक
बायोएनजटिक
इंस्टीप्यूट
ऑफ रोम, मिलॅन।
डू तूरिन ने
सम्मेलनों की
एक शृंखला के
लिए भगवान को
इटली आने का
आमंत्रण दिया।
यह भ्रमंत्रण
वीसा—आवेदन के
साथ इटालियन
दूतावास, काठमांडू—जहां
भगवान उन
दिनों रह रहे
थे—को भेजा
गया। दूतावास,
चिर—समादृत
युक्ति ‘‘कागजात
रोम भेजे जा
रहे हैं’‘ का
सहारा लेकर, झट
विनम्रतापूर्वक
दृश्य से बाहर
गे गया। रोम
ने भी, राइक
इंस्टीप्यूट
द्वारा और बाद
में इटालियन
पत्रकारों
एवम् टीवी.
द्वारा दबाव
डाले जाने पर,
वैसी ही चिर—प्रतिष्ठित
टेक ‘‘मामले
की छानबीन हो
रही है’‘ का
सहारा लिया।
मार्च
में 'राइ'
और 'कनाले
5 ' इटालियन
टी.वी.
स्टेशनों ने
(वे ही
जिन्हें
भगवान का साक्षात्कार
लेने आने के
लिए भारत
सरकार ने वीसा
देने से इनकार
कर दिया था)
भगवान को इटली
आने के लिए
संक्षिप्त—वीसा
दिये जाने का
निवेदन किया
ताकि उनका साक्षात्कार
लिया जा सके।
इटली सरकार ने
इनकार कर दिया।
समय—समय पर
अफवाहें थीं
कि इस सब के
पीछे वेटिकन के
लंबे हाथ लगे
हुए थे।
निश्रित ही
वेटिकन के पास
कारण थे कि वह
भगवान को अपने
घर की अंगनाई
में ही न
पहुंच जाने देना
चाहे। फरवरी
के अंत में
अंतर्राष्ट्रीय
प्रेस भगवान
द्वारा पीस
में पोप को
एंटी—क्राइस्ट
(ईसा—विरोधी)
कहे जाने का
व्यापक
प्रचार कर रहा
था, और यह
कह रहा था कि
पोप और ईसाइयत
एड्स की बीमारी
के लिए
जिम्मेदार
हैं क्योंकि
उन्होंने घोषणा
की है कि ‘‘समलैंगिकता
(होमोसेक्यूअलिटी)
का जन्म
मानेस्ट्रीज में
हुआ था।’’
इस
अफवाह की कि
वेटिकन ने
भगवान पर कोई
भी समाचार, सकारात्मक
अथवा
नकारात्मक, दिये जाने
पर पाबंदी लगा
दी है और भी पुष्टि
तब हुई जब
मार्च में दो
प्रमुख
समाचार
पत्रों 'रिपप्लिका
' और 'कूरियारे
देल्ला सेरा'
ने अचानक
भगवान के
विश्व—भ्रमण
का वृत्तान्त
देना बंद कर
दिया, जो
कि उस समय प्रमुख
समाचार बना
हुआ था। बाद
में उन
समाचारपत्रों
ने वह
दत्तशुल्क—विज्ञापन
भी छापने से
इनकार कर दिया
जिसमें इटली
के बुद्धिजीवियों
द्वारा भगवान
के लिए एक
याचिका थी। उस
याचिका का
जन्म अगस्त
में हुआ, जब
यह पता चला कि
भगवान का वीसा—आवेदन
अभी भी ‘‘विचाराधीन’‘
ही था।
सैकडों ने इस
पर हस्ताक्षर
किये, जिनमें
फिल्मकार
फेलीनी और
बटोंलूसी, लेखक,
गायक, कलाकार,
संगीतज्ञ, शिक्षाविद,
वैज्ञानिक,
मनस्विकित्सक
यहां तक कि
राजनयिक भी थे।
जैसा कि
प्रतिष्ठित
मैगजीन ‘‘ल'
इल्लूस्ट्रेजाने
इतालियाना’‘ ने सितम्बर 1986
में छापा, ‘‘यह
एक बड़ा
वास्तविक और
बहुत गर्म
विषय बन गया
है। ( भगवान
श्री रजनीश)
को, और
केवल उन्हीं
को, हमारे
देश ने वीसा
देने से इनकार
किया है, जो
कि हम बहुत
भलीभांति
जानते है कि
सब प्रकार के
आतंकवादियों
को दिया गया
है। विदेश
मंत्रालय कोई
कारण नहीं
बताता, सिर्फ
यह कहकर कि मामला
विचाराधीन है।
यह बहिष्कार
क्यों? ''पूछा
पत्रिका ने. यह जोड़ते
हुए, ‘‘यह सच
है कि रजनीश
सभी
राजनीतिकों
एवं धर्मों की
सार्वजनिक
रूप से आलोचना,
जो 'पोलिश
एंटी—पोप करोल
वाज्टिला' के
रोमन केथॅलिक
चर्च से शुरू
होती है, के
कारण एक असुखद
व्यक्ति हैं।
पर क्या उन
विचारों को
बोलना
पर्याप्त
कारण है हमारे
देश में आने
के उनके
अधिकार से
उनको अभिवचित
करने का, जो
कि सहिष्णुता
पर आधारित
सभ्य कानून का
अपमान है? राजनयिकों,
कलाकारों
एवं
पत्रकारों का
एक समूह ऐसा
नहीं सोचता, और उन्होंने
एक विरोध—पत्र
पर हस्ताक्षर
किये है जिसमें
यह पत्रिका भी
सम्मिलित
होती है।’’
याचिका
में कहा गया
था कि
हस्ताक्षरकर्ताओं
को ‘‘तर्कसंगत
संदेह है कि
रजनीश को वीसा
न दिये जाने के
लिए गहन दबाव
डाले गये हैं।’’
आगे कहा गया
था, ‘‘हम एक
ऐसे देश में
रहते है जहां
बोलने की
स्वतंत्रता
एक भारी
संघर्ष की कीमत
चुका कर
प्राप्त की
गयी है, और
हमारी। मन्यता
है कि यह
स्वतंत्रता
पवित्र एवं
अनुल्लंघनीय
है। हमारी मांग
है कि यह
स्वतंत्रता
रजनीश को भी
उसी प्रकार
मिलनी चाहिए
जैसे
प्रत्येक अन्य
व्यक्ति को..
हम आश्वस्त
हैं कि
इटालियन संस्कृति,
धर्मनिरपेक्ष
एवं केथॅलिक,
दोनों, को
दुनियां में
किसी भी
व्यक्ति से
विचारों का
मुकाबला करने
से भयभीत होने
की जरूरत नहीं
है चाहे वह कोई
श्रद्धाहीन
उत्तेजनाकार
हो अथवा एक
महान आध्यात्मिक
प्रवर्तक—
अथवा दोनों।’’
इटालियन
पत्रिका 'एपोका' ने भी अपने 18
जुलाई के अंक
में यह पूछते
हुए मसले को
उठाया कि
क्यों
इटालियन
अधिकारी अभी
तक भगवान को
वीसा देना
नामंजूर कर
रहे थे ‘‘जबकि
हम सभी जानते
है कि
बन्दूकों, बमों
और घृणा से
लैस विभिन्न
देशों के
आतंकवादी
हमारी सीमाओं
के भीतर आए
हैं। किंतु वे
नहीं, ''पत्रिका
ने जारी रखा, 'वे हमारी
सीमा पार नहीं
कर सकते—क्योंकि।
भगवान श्री
रजनीश है, 54
वर्षीय, सारी
दुनियां में
फैले 5००,०००
संन्यासियों
के प्रमुख। वे
पांच महीने
पूर्व, डब्ल्यू
राइक इनस्टीटूप्यूट
के अध्यक्ष, गीदो
तासीनारी
द्वारा
सम्मेलनों की
एक श्रंखला
में आने के
लिए आमंत्रित
किये गये थे, किंतु अब तक
उन्हें वीसा
देने से
इन्कार किया गया
है। सरकारी
सत्ताधीश इस
मामले पर
अव्याख्य रूप
से मौन साधे
हुए हैं। 'एपोका'
विदेश मंत्री
से जवाब
प्राप्त करने
की कोशिश कर
चुकी है, किंतु
निरर्थक। 'समस्या
हमारे
निरीक्षणाधीन
है, 'एक
अधिकारी ने
हमें बताया, 'किन्तु यह
आवेदनकर्ता
के व्यक्तित्व
के कारण
ज्यादा समय लेगी।
और चूंकि
आवेदन
निरीक्षणाधीन
है, हम
इससे ज्यादा
कोई जानकारी
आपको नहीं दे सकते।
' हमें
संदेह है, '‘‘थोक,
' ने कहा, ‘‘कि
प्रत्येक
भारतीय
नागरिक को जो
इटली आना चाहता
हो छ: महीने
इंतजार करना
पड़ेगा। जैसा
भी हो, हम
अब एक
आधिकारिक
प्रश्र विदेशमंत्री
गिलिओ
अन्द्रेओती को
संबोधित करते
है: भगवान एक
बुद्धिमान
व्यक्ति हों,
अथवा। एक
उत्तेजनाकार,
किंतु वह
बिना सेना के
और बिना घृणा
के आ रहे है।
वे ऐसी बातें
कह सकते है जो
अच्छी न लगें,
किंतु हम
अपना बेहतर
परिचय दे रहे
होंगे उन्हें
इटली आने देने
में। और नींद
नहीं, तो
क्यों नहीं?''
अन्द्रेओती
ने उत्तर नहीं
दिया। लगता था
इटालियन
सरकार ने उस
पूज्य
परम्परा के
पीछे शरण ले
ली थी कि 'जांच' को
तब तक लंबाते
जाओ जब तक कि
मामले में
किसी का कोई
भी रस बाकी हो,
और तब उसे
चुपचाप ( और
आशापूर्वक)
विलीन हो जाने
दो।
दुनियां
के सारे
प्रजातंत्रों
के मक्सियों
की तरह (एक के
बाद एक) गिरते
जाने से, भगवान के लिए
समय चुकता जा
रहा था, जो
कि अभी भी
आयरलैण्ड में
एक छिद्र में
बंद हो गये थे।
आइरिश सरकार
बेचैन हो रही
थी—पुलिस
भगवान के हाटिल
पर नित्य आने
लगी, इस
सख्त चेतिावनी
सहित कि आई.
आर.ए. से बम की
धमकी है, और
कि भगवान कब
जा रहे थे। उस
कहावती
ऐन मौके पर एक
नायक पैदा हो गया।
उरुग्वे, जो अभी
हाल ही उन
दक्षिण
अमरीकी
तानाशाहियों में
से एक से छूटा
था, दुनियां
के सामने अपनी
नवीन
स्वतंत्रता
एवम अनुभवहीन
जनतंत्र का
प्रदर्शन
करने के लिए
बेकरार था।
भगवान ( और
उनके साथ जो
करोड़ों डालर
जुड़े होते हैं)
का स्वागत
होगा : ‘‘हमारा
देश किसी के
प्रति भेदभाव
नहीं करता—हमारे
यहां माफिया
डाकू, नाजी
शरणार्थी और
दक्षिण
अमेरिका की
तकरीबन हर
तख्ता पलट गयी
सरकार के
प्रमुख हैं।
और निशित ही
बोलने और धर्म
की सम्पूर्ण
स्वतंत्रता।’’
जय—जयकार!
तीन
माह के वीसा
और भरजेब
वायदों के साथ
भगवान उरुग्वे
के लिए रवाना
हुए। उनके
विमान—चालकों
ने, जो
उनके साथ गत 1०
दिनों से
आयरलैण्ड में
असहाय छोड़
दिये गये थे, सामान्य
विमान—चालन—सीमा
से अधिक उड़ने
की विशेष
अनुमति
प्राप्त कर ली
थी (कनाडा अभी
भी अपनी जमीन
पर उनके उतरने
से भयभीत था), और दक्षिण
अमरीका के लिए
विमान का
मार्ग बदल लिया—डक्कार,
सेनेगल
होकर।
भगवान 19
मार्च को
उरुग्वे
पहुंचे। ठीक
उसी रात
अमरीकी
राजदूत
उरुग्वे के
विदेश—मंत्री
से मिलने
माटवीडियो
में उनके घर
गया। संयोग? (यह मुलाकात
पूर्वानियोजित
न थी)। मंत्री,
इंग्लाइसिस,
के बारे में
कहा जाता था
कि उन की नजर
यूनाइटेड
नेशन्स के
सेक्रेटरी—जनरल
पद पर है, और
उसे जीतने के
लिए उन्हें
अमरीकी मदद की
जरूरत थी।
आश्रर्य! —एक
आकस्मिक रंग—बदलाहट
में, इंग्लाइसिस
ने, जिन्होंने
भगवान का
पर्यटक—वीसा
मंजूर किया था,
इसके बाद की
सरकारी
बैठकों में
भगवान की उरु—खे
में उपस्थिति
का कड़ा विरोध
किया, केवल
आखिर में पीछे
हटने लगे जब
उन्हें दिखा कि
वे स्व—अकेले
के अल्पमत में
हैं।
उसी
बीच भगवान के
मित्रगण
नवोदित
जनतंत्र के वायदों
का वापस स्मरण
दिलाना
प्रारंभ कर
दिये। भगवान
को एक वर्ष का
अस्थायी आवास—पत्र
दिया गया, इस बीच
उपयोग के लिए
जब तक कि उनका
स्थायी—आवास
का आवेदन—पत्र
अनिर्णीत था।
सभी राजनैतिक
पार्टियों के
नेताओं से
भेंट की गयी
और सबने भगवान
के आवेदन—पत्र
को समर्थन
दिया।
(लड़खड़ाती अर्थ—व्यवस्था
और विदेशी—मुद्रा
की सामान्य
दक्षिण
अमरीकी
आवश्यकता के
रहते उन
हजारों
पर्यटकों का
आकर्षण, जो
उरु—खे में
भगवान से
मिलने आएंगे,
भारी था)।
तथापि, शीघ्र ही
भगवान के
मित्रों ने एक
अनोखा ढांचा उभरते
देखा। अपना
समर्थन प्रगट
करने के एक
सप्ताह के
भीतर ही
अधिकांश
राजनैतिक
व्यग्र हुए और
आशंकाएं
पालने लगे उन 'सूचनाओं' का हवाला
देते हुए जो
उन्हें मिली
थीं। और अचानक
अंततः वहां, उरुग्वे में,
भगवान के
विरुद्ध
समूचे
अंतर्राष्ट्रीय
षड्यंत्र का
पर्दाफाश हुआ।
यह एक सच्चा
मैक्यावेलियन
षड्यंत्र था,
सीधा एवं
साफ, और
विध्वंसक रूप
से कारगर। विध्वंसक,
क्योंकि
राजनयिक रपट
के छद्यवेष
में व्यंग्य
और आयोजित झूठ
का उपयोग करते
हुए—स्व व्यूह—रचना
जो कि राजनयिक
असूचनाओं का
प्रसारण नाम से
जानी जाती है—इसकी
रचना गुप्त
रूप से काम
करने के लिए
की गयी थी, जहां
चुनौती की कोई
संभावना नहीं।
भगवान
के मित्रगण दूसरे
देशों में
सरकारी
अधिकारियों
द्वारा उन काले
एवं दुष्ट
तथ्यों का
इशारा पा चुके
थे, जो
भगवान को
अस्वीकृत
करने के कारण
के रूप में
उभारे गये थे।
इंटरपोल
(इंटरनेशनल
पोलिस) की
फुसफुसाहटें
और अफवाहें—चोरी—छिपे
बंदूकें
आयातित करने
के आरोप, ड्रग—व्यापार
एवं वेश्यावृत्ति—वे
बातें जो कोई
भी सरकार एक
संभाव्य
आवासी के
संबंध में
सुनना चाहेगी।
किंतु वे कभी
भी इस योग्य
नहीं हुए कि
किसी खास आरोप
पर मेख बांध
सकें ताकि
उसका खण्डन
किया जा सके।
ये सब केवल
सरकारों से—सरकारों
के—बीच 'परम
गोपनीय' सूचनाएं
थीं। बहरहाल,
उरुग्वे में
भगवान के
मित्रों के
पास शीर्षस्थ
सहायक थे। और
वहां
उन्होंने उस
सारी कार्य—प्रणाली
का चिट्ठा खोल
लिया जो कारण
थीं भगवान के
बहिष्कार का,
और जो एक—से—दूसरे
देश में उनका
पीछा करती रही
थीं। यह सीधा—साफ
था। राजनयिक
सूचनाओं के
टेलेक्स कई
देशों से आते (सभी,
संयोगवश, नाटो के
सदस्य) जिनमें
वीभत्स विवरण
होते अपराधों
और अन्य
कापुरुष
कृत्यों के जो
तथाकथित रूप
से भगवान और
उनके
अनुयायियों
द्वारा किये
गये, और
साथ में सख्त
चेतावनी होती
उन घोर आपदाओं
के प्रति जो
उस देश को घेर
लेंगी जिसने
भगवान को अपने
यहां प्रवेश
दिया। इनमें
से कुछ
टेलेक्सों की
प्रतियां, जो
सरकारी
निर्णयों के
लिए आधार बनती
थीं, भगवान
के मित्रगणों
को दी गयीं।
वे हक्का—बक्का
रह गये—विवरणों
में कुछ नहीं
था सिवाय
निकृष्टतम पीत—पत्रकारिता
द्वारा
वर्षों—वर्षों
के दौरान गढ़ी
गयी अतिशय
निर्लज्जरूपेण
निन्दाअक
कल्पनाओं की
पुनरावृत्ति।
और टेलेक्सों
के साथ—साथ
पहुंचती थीं
अन्य
बुराइयों की
गोपनीय राजदूतीय
कनफुसकिया
(कनफुसकी, ताजुब
नहीं, क्योंकि
सूचना इतनी
पेटेन्ट रूप
से गढ़ी गयी होती
थी कि उसे
कागज पर नहीं
आबद्ध किया जा
सकता था, 'परम
गोपनीय' कागज
पर भी नहीं)।
कोई भी
सूचनाएं सच न
थीं। पर उनमें
छिपा
कपटपूर्ण
मनोविज्ञान
अपना काम करता
था। कोई भी
सत्तासीन
राजनेता जो
अंतिम बात
चाहेगा वह है:
संभाव्य
बदनामी।
भगवान के
आवेदन
हाथोंहाथ
अस्वीकृत कर
दिये जाते थे, बिना
किसी खंडन का
मौका दिये।
उरुग्वे
आने तक। वहां
समय और सरकार
पहली बार उनके
साथ लगते थे।
अथक परिश्रम
करके, भगवान
के मित्रों ने
(उन्हें और
कहीं जाने को तो
था नहीं)
भगवान के
खिलाफ लगाये
गये समस्त आरोपों
को एक जगह
एकत्र किया, और फिर एक—एक
करके उनकी
असत्यता
स्थापित की।
सारहीन
अफवाहों को
कठोर ठोस
तथ्यों का
सामना करना
पड़ा, कहानियां—किस्से
अपने संदर्भ
में रख दिये
गये, और एक
समूचा नया
परिप्रेक्ष्य
सामने आया। इन
खबरों का कि
इंटरपोल
(इंटरनेशनल
पोलिस) के पास
कुछ प्रमाण थे,
पीछा किया
गया। जब
उरुग्वे
सरकार ने जांच
की, तो यह
स्वीकार किया
गया कि असलियत
में इंटरपोल
के पास भगवान
अथवा उनके
साथियों के
विरुद्ध कुछ
भी न था।
'तथ्यगत'
राजनयिक
सूचना
विवरणों के
अप्रतिष्ठित
हो जाने से, भगवान के
खिलाफ व्यूह—रचना
बदल दी गयी।
अमरीकी
राजदूत ने
उरुग्वे
सरकार को कहा,
'' भगवान एक
अतिशय
बुद्धिमान
व्यक्ति हैं।
वे एक खतरनाक
व्यक्ति भी
हैं क्योंकि
वे दूसरे लोगों
के विचार बदल
सकते है। वे
एक
अराजकतावादी
हैं, और
देश का सारा
सामाजिक
ढांचा विनष्ट
कर देंगे।’’
उरुग्वे
सरकार के
विचार विपरीत
थे। सारी
स्थिति को
समझते हुए, अब वे
राजी थे कि
कोई कारण न था
कि भगवान को
उनके देश में
स्थायी आवास
क्यों न दिया
जाए। इस आशय
का स्वीकारात्मक
निर्णय मई 14. 1986
के अपराहून
में किया गया.
और अगले दिन
दुनिया को
समाचार से
अवगत कराने के
लिए एक सरकारी
प्रेस—वक्तव्य
तैयार किया
गया। किसी ने
(इंग्लाइसिस?)
अमरीकियों
को बता दिया।
उस रात
उरुग्वे के
राष्ट्रपति, सेंगुनेट्टि,
को
वाशिंग्टन.
डीसी. से एक
टेलीफोन आया
यह कहते हुए
कि यदि भगवान
उरुग्वे में
रहे, तो छ:
अरब डालर का
अमरीकी ऋण
वापस कर लिया
जाएगा, और
भविष्य में
कोई ऋण न दिये
जाएंगे।
अंततः
षड्यंत्र के
पीछे लगी
शक्ति को
अलमारी से
बाहर निकलने
को मजबूर कर
दिया गया था—
अमरीका। इसकी
राजनयिक
असूचना योजना
का असाफल्य और
अब वह वयस्क
बड़े भाई के
निपट दबंगपने
पर उतर आया था, ठीक वैसे
ही जैसा उसने
अपनी
गैरकानूनी
कॉन्ट्रा
गतिविधियों
के लिए कई
मध्य अमरीकी
सरकारों से
समर्थन
प्राप्त करने
हेतु किया था।
उरुग्वे
असहाय था।
परेशान, मात
खाया हुआ, और
बुरी तरह
शर्मिन्दा—अपनी
स्वतंत्रता
के खोखलेपन को
उजागर पाकर।
तथापि
उरुग्वे के
पास कोई चारा
न था सिवाय घुटने
टेक देनेके।
अमरीका
ने पेंच पूरी
तरह कसा। उसने
जितनी जल्दी
हो सके भगवान
को उरुग्वे
से बाहर चाहा।
उनके मूल तीन
महीने के वीसा
में अभी भी
कुछ सप्ताह
शेष थे पूरे
होने को, लेकिन एक
वर्ष का
अस्थायी
अनुमतिपत्र
तब तक वैध था जब
तक उनके
स्थायी—आवास
के आवेदन पर
उन्हें कोई
लिखित निर्णय
न दिया जाता।
उरुग्वे
सरकार एक
भद्दी स्थिति
में थी। आवेदन
पर हां कहने
(के नतीजों) को
वह वहन न कर सकती
थी ( अक्षरश:) और
वह न भी नहीं
कह सकती थी—
अस्वीकृति के
लिए कोई
वैधानिक भूमि
न थी, वैसा
करना देश के
मानवीय
अधिकारों के
सिद्धान्त और
उसके जनतंत्र
के अड़े के
प्रतिकूल
जाता था। इस
सबके बजाय
उसने दक्षिण
अमरीकी
तानाशाहियों
के अननुकरणीय
लहजे में, जो
उनकी ही
खासियत है, बिलकुल
स्पष्ट कर
दिया कि भगवान
को वीसा अवधि के
समाप्त होते
ही अपने आवेदन
पर किसी
निर्णय की प्रतीक्षा
किये बिना चले
जाना चाहिए।
भगवान के घर
के चारों ओर
चौबीसों घंटे
पुलिस की
निगरानी लगा
दी गयी, और
एक गढ़ पत्र ने
उनको शुइलस
कमिश्रर से एक
ऐसी तिथि पर 'मिलने' को
आमंत्रित
किया जो उनका
वीसा समाप्त
होने के अगले
दिन पड़ती थी।
सेंगुनेट्टि
लापता हुए—वाशिंग्टन
को, रीगन
से मिलने को।
जिस दिन तीन
महीने पूरे
हुए, वाशिंग्टन
से गृह—मंत्रालय
को हर घंटे पर
टेलीफोन आता
रहा, यह
पूछते हुए कि
क्या भगवान जा
चुके। वे उस
शाम निकले, पुलिस कारों
के रक्ष—दल
के बीच। एक विस्फोटक
ज्वलन शील पदार्थ
और चिगारी वातावरण
में, और पुलिस
के धेरे में, उनका एक वर्षीय
आवास पत्र अवैधानिक
रूप से जब्त कर
लिया गया और वे
अपने प्रतीक्षारत
जेट की ओर झुंडिया
लिये गये।
उरुग्वे के
मित्रों ने, जो अंतिम
क्षण तक अपने
देश के न्याय
और
निष्पक्षता
पर उत्कट
विश्वास रखे
हुए थे, आंखों
में आंसू और
हृदयों में
मोह—भंग के
साथ विदा के
लिए होथ हिलाए।
उनके चेहरों
के भौचक्के
अविश्वास ने
सब कुछ कह दिया।
19 जून को, भगवान
के निकलने के
एक दिन बाद, सेंगुनेट्टि
और रीगन ने
उरुग्वे को
दिये गये डेढ़
अरब डालर के
नये ऋण की
घोषणा
वाशिंग्टन से
की।
उरुग्वे
के न्याय—विभाग
के आप्रवास—अधिकारी, जो भगवान
के आवेदन पर
काम कर रहे थे,
अपनी सरकार
के इस
गैरकानूनी
कृत्यों से
चौक उठे थे।
उन्होंने
उनकी ( भगवान
की) फाइल में,रिकार्ड के
लिए, एक
लिखित
टिप्पणी जोडी,
‘‘कि उच्च
आदेश कि भगवान
देश छोड्कर
चले जाएं जबानी
था, उसके
पालन के लिए
बिना कोई कारण
दिये; कि
क्योंकि
भगवान का
आवेदन अभी भी प्रक्रिया
में है, यह
आदेश कहनी
कार्य—विधि के
अनुकूल नहीं
है, और
मनमाना है, असाधारण
त्वरित, भेदभाव—पूर्ण
एवं बगैर कारण
बताया हुआ है;
और कि यह
आदेश 'स्थायी—आवास
के लिए आवेदन
किये हुए एक
विदेशी के लिए
स्थापित
संवैधानिक
अधिकारों के विपरीत
जाता है।’’ किसी
भविष्य की
जांच—पड़ताल
में यह
दस्तावेज
इसके लेखकों
की खाल बचा
सकता है। यह
भगवान के काम
नहीं आया।
उरुग्वे
से उड़कर भगवान
जमाइका आए, जहां
उन्हें दस दिन
का वीसा मिला।
उनके उतरने के
कुछ ही मिनटों
बाद, अमरीकी
एअर फोर्स का
एक जेट आया और
उसमें से दो
असैनिक (
सिविलियन)
बाहर आए, जिनमें
से एक के पास
कागजात की एक
मिसिल थी। यह 19
जून। 986 का
अपराहन था। 2०
जून की सुबह
पहली बात, सशस्त्र
पुलिस (हां, फिर से) उनके
घर ' आ
पहुंची, भगवान
और उनके दल के
पासपोर्ट
मांगे. उनके
वीसाओं पर ‘‘केन्सेल्ड’‘
(रद्द) गि
मुहर लगायी, और पूरे दल
को ठीक उसी
दिन देश छोड़
देने का आदेश
दे दिया। केवल
कारण जो बताया
गया वह था, ‘‘राष्ट्रीय
सुरक्षा के
लिए।’’ भगवान
के मेजबान ने,
जो
प्रधानमंत्री
और राष्ट्रीय
सुरक्षामंत्री,
दोनों के
व्यक्तिगत
मित्र थे, सारा
दिन उनसे
संपर्क करने
की कोशिश में बिताया।
व्यर्थ। उस
दिन संपूर्ण
सरकार '' अनुपलब्ध’‘हो गयी थी।
अगले
दिन स्तंभकार
मोरिस
कार्गहिल ने
मामले का अर्थ
( अथवा अनर्थ)
पक्कने की कोशिश
करते हुए
किंग्सटन के
समाचार पत्र
में लिखा. ‘‘ऐसा आभास
होता है कि
गुरु विशेष जिन्हें
जमाइका से
निकल जाने को
कहा गया, वे
इस आधार पर
अवांछित थे कि
वे 'फ्री
सेक्स' ( मुक्त—यौन) का
अनुमोदन करते
है। मैंने
सोचा होता कि
फ्री सेक्स की
वकालत करने
किसी। व्यक्ति
के जमाइका आने
का मतलब होता
कि वह न्यू केशत्स
को कोयले भेज
रहा था। सो
नया क्या है?
मैं बहुत
सारी
पत्रिकाओं के
पिछले अंकों
के जरीए इस
गुरु के
क्रिया—कलापों
पर ध्यान दे रहा
था और मैं कोई
भी विश्वासोत्पादक
खास कारण नहीं
पाता कि क्यों
इतने सारे देश
उनके खिलाफ
इतनी आक्रामक
आपत्ति करें,
सिवाय इसके
कि शायद आयकर—अपवंचन
कारण हो.. असली
कारण, मुझे
लगता है, उन्हें
निकाल भगाने
का यह है कि वे
लोग जो ऐसे कम्यूनों
की स्थापना
करते हैं
जिनके
सामाजिक नियम
उस देश के नियमों
से बहुत हट कर
होते है
जिसमें कि कम्यून
स्थित है, वास्तव
में चुनौती बन
जाते हैं, और
संभवत: दुर्बल
बना रहे होते
हैं, देश
के सामाजिक
सामंजस्य को।
यही कारण है
कि 'जेहोवा'ज विटनेसेज'
और कभी—कभी 'फ्रीमेसंस'
को बहुत से
देशों में
इतनी
अस्वीकृति (और
कभी—कभी नृशंस
अत्याचारों)
का सामना करना
पड़ा है। उन पर
संदेह किया
जाता है कि वे
उन चीजों तक
पहुंच रहे हैं
जिनको बाकी के
हम सब जानते
भी नहीं।
किन्तु
जमाइका में 'फ्रीमेसन्स'
का बड़ा
सम्मान है, वैसा ही 'जेहोवा'ज विटनेसेज'
का है, यद्यपि
मुझे स्थूल कर
लेना चाहिए कि
इनमें से द्वितीय
के
अनुयायियों
की मेरे हाथ
में उनकी
अभागी छोटी पुस्तिकाएं
पक्का देने के
लिए
अनुपयुक्त
समयों पर मेरे
पास आ धमकने
की आदत से
मेरे
निकृष्टतम
रूप प्रगट
होते है। यह
जमाइका की
शानदार
सहिष्णुता के
बारे में बहुत
कुछ कहता है।’’
अथवा संभवत:
उस दबाव के
बारे में जो
इस नन्हे से
द्वीप पर डाला
गया।
कार्गहिल को
अमरीकी
एअरफोर्स के
जेट के आगमन का
कुछ पता नहीं
था। भगवान के
मित्रों को था,
और उनको
अनुमान भी था
कि यह मात्र
एक संयोग से ज्यादा
कुछ था।
जमाइका
से भगवान
पुर्तगाल के लिए
उड़े। यह एक
अप्रत्याशित
कदम था—उस देश
से पहले से
कोई वार्ता
नहीं की गयी
थी। और एक
सौभाग्यपूर्ण
संयोग से उनका
विमान पहले
मेड्रिड उतरा, जो कि उडान—योजना
में भूल से
विमान के
अंतिम गंतव्य
के रूप में
दर्ज हुआ था।
मेड्रिड में
भूल जल्द ही
सुधार ली गयी,
और विमान
लिस्वॅन के
लिए ऊ चला, किंतु
कोई भगवान का
पता लगाने की
कोशिश कर रहा
होता तो
अस्थायी रूप
से चक्कर में
पड़ जाता। एक
और
सौभाग्यपूर्ण
संयोग से
लिस्वॅन में
भगवान के नाम
के विरुद्ध
कोई
कम्प्यूटर
वर्गीकरण
नहीं था, और
वे चुपचाप देश
में बाहर निकल
आए एक सामान्य
पर्यटक—वीसा
पर, और ऐसा
लगा कि बिना
पहचाने गये।
तथापि, कुछ
हफ़ों के भीतर पुलिस
आ धमकी उस
मकान पर जहां
वे ठहरे हुए
थे—एक मकान
जिसमें से, संयोगवश, वे कभी बाहर
न गये थे।
जल्दी ही पुलिस
ने चौबीसों
घंटे की
निगरानी जारी
कर दी, और
मकान मालिक और
मकान की
देखरेख करने वालों
को अच्छी तरह
डरा देने में
सफलता प्राप्त
की।
अवश्यंभावी
से बचने के
लिए, भगवान
ने चले जाने
का निर्णय
लिया। शेष
सारी दुनियां
उनके लिए बंद
हो जाने के
कारण, उनके
पास कहीं जाने
को था नहीं
सिवाय भारत
वापस लौट आने
के—और उनको
अकेले जाना था।
पश्चात्य
मित्र जो
पिछले लगातार
आठ से पंद्रह
वर्षों तक से
उनकी देखभाल
करते आ रहे थे,
उन्हें
इनके साथ आने
के लिए भारत
सरकार ने वीसा
देने से
अस्वीकार कर
दिया था।
यह
लिखे जाने के
समय भगवान
बम्बई में
बैठे हैं, सारी दुनियां
से अपने
शिष्यों के
पत्र पढ़ते हुए,
इन वर्णनों
के साथ कि
उन्हें भगवान
से मिलने आने
के लिए वीसा देना
नामंजूर कर
दिया गया है।
कुछ
जिन्होंने
वीसा प्राप्त
कर लिये थे, बम्बई हवाई
अड्डे पर से
वापस लौटा
दिये गये। एक मशहूर
जर्मन डाक्टर
बम्बई
पहुंचने पर
घंटों पूछताछ
में रखे गये, अगले अन्य 24 घंटे एक वायुरहित
कोठरी में
बिना अन्न—जल
के और बिना
अपने दूतावास
को फोन कर
सकने का मौका दिये
रखे गये, और
फिर वापस
जर्मनी के लिए
एक विमान पर
चढ़ा दिये गये।’’तुम भगवान
श्री रजनीश के
शिष्य हो, '' उन्हें
सूचित किया
गया. '' और
हम तुम्हें इस
देश में नहीं
चाहते।’’ कनाडा
के एक शरीर—चिकित्सक
ने. जो
हवाई अड्डे से
वापस लौटा
दिये गये, अपना
नाम आप्रवास—कम्प्यूटर
टर्मिनल में
देखा जिसके
साथ के शब्द
थे— '' आचार्य
रजनीश का एक शिष्य
होने की सूचना,
प्रवेश की
अनुमति मत दें।’’
आगे
क्या होता है
देखने को बाकी
है। किंतु यह
निश्रित ही
व्यंग्यपूर्ण
है कि एक दुनियां
में जहां क्रूर
अत्याचारी, आतंकवादी,
तानाशाह, जासूस, हत्यारे,
डाकू, युद्ध—
अपराधी, अंतर्राष्ट्रीय
जालसाज, दिवालिए
बैंकर और हर
किस्म के
पथभ्रष्ट लोग
कहीं—न—कहीं
शरण—स्थल पाने
में सफल हो
जाते हैं, जहां
वे अपना जीवन
फिर से शुरू
कर सकें, अथवा
पुराने मार्ग
पर चलते रहें,
ऐसी दुनिया
में भगवान
श्री रजनीश को
यह अधिकार भी
नहीं कि वे
अपने शिष्यों
को शिक्षा दे
सकें।
उतनी
ही
व्यंग्यपूर्ण, और दुष्ट,
है अमरीका
की भूइमका जो
उसने इस पूरे
मामले में
निभायी। वह
देश जो कि
मार्कोस, ‘‘बेबी
डॉक '' डुवलियर,
जनरल थिऊ, सेमोसा, लॉन
नॉल, बतिस्ता,
रट्रॉस्सनेर
और पिनोट जैसे
कुख्यात
खलनायकों को
नैतिक सहयोग
प्रदान करता
है, और कुछ
मामलों में तो
घर भी. वह इतनी
शक्ति खर्च
करे, और
इतने सारे
देशों को
चालबाजी से
प्रभावित करने
में सफल हो
सके, यह
पका करने हेतु
कि भगवान ‘‘फिर
कभी दिखायी या
सुनायी न पड़े ''सचमुच
भयप्रद है। यह
उलझन में
डालनेवाला भी
है।
भगवान
क्योंकि
बोलने के
सिवाय कुछ
नहीं करते, इस उलझन
का उत्तर, और
इस पुस्तक के
प्रारंभ में
पूछे गये
प्रश्र का
उत्तर, स्पष्टत:
उनके कथनों
में ही होना
चाहिए। और उस
उत्तर को खोज
लेना बहुत
कठिन भी नहीं
है। भगवान ने
वर्तमान
मनुष्यजाति
और विश्व को
घेरे
समस्याओं के
कुछ समर्थ हल
निरंतर एवं
जोर—जोर से
सुझाए हैं। वे
हल निहित
स्वार्थों के
लिए बहुत
सुस्वादु नहीं
हैं—वास्तव
में वे आमना—सामना
करा देते है, अहिंसात्मक
तरीकों से, समस्त
वर्तमान
शक्ति— आधारों—संगठित
धर्मों
राजनैतिक
प्रणालियों, सरकारों, यहां तक कि
राष्ट्रों—के
सम्पूर्ण अंत
का, और एक
पूर्णतया
अभिनव
व्यवस्था के
सृजन का।
पूना, भारत में
ये विचार
विश्व—स्तर पर
सीमित
श्रोताओं के
समक्ष कहे जा
रहे थे, और
भगवान के
अमरीका— आवास
के शुरू के
चार वर्षों
में—जब कि वे
मौन में थे—कहे
न गये थे।
लेकिन जुलाई 1985
में, उनकी
गिरफ़ातारी और
देश—निष्काषन
(एक और संयोग?) के कुछ ही
महीने पूर्व, भगवान ने
पुन:
सार्वजनिक
रूप से बोलना
शुरू कर दिया
था।
प्रमुखकालीन
अमरीकी टीवी.
पर उन्होंने
अमरीकी सरकार
को फटकारे
लगायीं, विशिष्ट
दृढ़प्रतिज्ञ
शब्दों में
उसके झूठे
प्रजातंत्र
की, संविधान
के साथ
वेश्यागीरी
की, और
उसकी पाखण्डी
ईसाइयत की
भर्त्सनाएं
करते हुए।
उनके खरे
वक्तव्यों की
खबर समाचार—माध्यमों
द्वारा
उत्कंठापूर्वक
सारे अमरीका
भर में, और
स्विट्जरलैष्ठ,
जर्मनी, हालैण्ड,
इटली, इंग्लैण्ड
और आस्ट्रेलिया
में की गयी।
उनका लक्ष्य
अमरीका सरकार
तक ही सीमित
नहीं था। वे दुनियां
की हर संगठित
संस्था पर
निठुर रूप से
टूट पड़े थे—चाहे
वह पूंजीवादी
हो, साम्यवादी
हो, केथॅलिक
हो, समाजवादी
हो, फासिस्ट
हो.... और सारे के
सारे। और
उन्होंने
क्रांतिकारी
एवम्
आत्यंतिक विकल्प
प्रस्तावित
किये। जैसाकि
टॉम राबिन्स
ने बाद में
कहा, ‘‘एक
व्यक्ति
जिसके पास वे
सब किस्म के
विचार है, जो
न केवल
उत्तेजक है, जिनमें सत्य
की अनुगूंज है
जो नियंत्रण
की सनकवालों
को इतना भयभीत
करती है कि
उनके नाड़े खुल
जाते है।’’
संभवत:
फिर यह उतना
आश्रर्यजनक
नहीं था कि ये
वे ही
संस्थाएं थीं, जो सारे
भेद—भाव
भुलाकर भगवान
के खिलाफ
एकजुट हो गयी
थीं, जिनकी
उन्होंने
भर्त्सनाएं
की थीं—अमरीकी
सरकार, के.जी.बी.,
वेटिकन, और
सारी दुनिया
की विभिन्न
राजनैतिक
धारणाओं की
सरकारें। यदि
उनके विचार
हास्यास्पद
थे, तो सब
ने क्यों नहीं
उनकी सिर्फ
उपेक्षा कर दी?
यदि वे बस
गलत थे, तो
आसान होता कि
उनका खण्डन
किया जाता।
किंतु उनके
विचारों के
प्रति किसी
चुनौती का आत्यंतिक
अभाव, और
उन्हें दुनिया
से अलग— थलग कर
देने और उस
प्रकार
उन्हें चुप कर
देने के
विश्वव्यापी
षड्यंत्र की
बहुत ठोस
उपस्थिति, उस
अति साफ
प्रश्र को
उकसाती है:
क्यों
यह व्यक्ति
इतना खतरनाक
माना जाता है? क्या
संभवत: इसलिए
कि ये जो कह
रहे है वह
शायद सही है?
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