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बुधवार, 5 सितंबर 2018

प्रेम नदी के तीरा-(प्रवचन-07)

प्रेम नदी के तीरा-(अंतरंग-वार्ताएं)-ओशो 

सातवां-प्रवचन

ध्यानी को अभिनेता होना पड़ता है

दो बातें समझनी चाहिए। एक तो किसी चीज में विकास होता है। विकास में कंटीन्यूटी होती है, सातत्य होता है। लेकिन विकास में नई चीज कभी पैदा नहीं होती है। पुराना ही मौजूद रहता है। थोड़ा बहुत फर्क होता हैै, लेकिन पुराना ही मौजूद होता है। तो जिस-जिस चीज में विकास होता है, उसमें पुराना समाप्त नहीं होता। सिर्फ पुराना नये ढंग, नये रूप, नई आकृतियों में फिर मौजूद रहता है। जैसे बच्चा जवान होता है, यह विकास है। जंप नहीं है, छलांग नहीं है, इसलिए आपको कभी पता नहीं लगता है कि कब बच्चा जवान हो गया। वह धीरे-धीरे होता है। जवानी आ जाती है, लेकिन बच्चा समाप्त नहीं हो जाता। बच्चा ही जवान हो गया होता है। इसलिए मौके-बेमौके जवान फिर बच्चे के जैसा व्यवहार कर सकता है।
उसमें कोई कठिनाई नहीं है। हम भी बहुत बार वापस लौट के काम करने लगते हैं और बच्चों जैसा व्यवहार कर सकते हैं। बूढ़ा भी बच्चों जैसा व्यवहार कर सकता है। अब जवान धीरे-धीरे धीरे-धीरे बूढ़ा हुआ जाता है। लेकिन यह इतने-इतने धीरे होता है कि जवान कभी नहीं मिट पाता। जवान मौजूद रहता है, उसके ऊपर ही बुढ़ापा भी जुड़ जाता है।


तो जिंदगी में साधारणतः तो विकास होता है। और इसलिए बच्चा जो था, वही जब बूढ़ा होता है तो सब मौजूद रहता है जो बच्चे में था, वह कहीं गया नहीं हुआ था। हां, जिंदगी के अनुभव और इन सबकी चोट में फर्क हो गए होते हैं। लेकिन बच्चे को पहचाना जा सकता है कि यह वही बच्चा है जो अब बूढ़ा हो गया है। कहीं बीच में डिस्कंटीन्यूटी नहीं हुई। कहीं गैप नहीं आया। कहीं ऐसा नहीं हुआ कि पुरानी धारा टूट गई और नई धारा शुरू हुई। पुरानी धारा ही बहती रही।
एक नदी जा रही है सागर की तरफ। यह वही नदी है जो मूल स्रोत से निकली थी। पानी ज्यादा हो गया है, वर्षा के नाले मिल गए हैं। पाट बड़ा हो गया है, चैड़ा हो गया है। पहचानना मुश्किल पड़ेगा कि यह मूल, आॅरिजन पर जहां देखा था तो जरा सी पतली धारा थी। यहां समुद्र की तरह बड़ी हो गई है आकर। पहचानना मुश्किल हो गया है कि यह वही नदी है। उसको कोई फर्क नहीं पड़ गया है।
और अगर कोई फर्क पड़ा है तो क्वांटिटी का है, क्वालिटी का नहीं है। मात्रा बढ़ गई है, पानी थोड़ा था पानी बहुत हो गया है। लेकिन वही है नदी। कहीं नदी ने जंप नहीं लिया; कहीं नदी ऐसे नहीं हुआ कि पुरानी नदी जस्ट सी.िज.ज टू बी और नई नदी शुरू हो गई; ऐसा गैप नहीं बढ़ा कि पुरानी नदी खत्म हो गई और नई नदी शुरू हो गई।
लेकिन ध्यान जो है वह विकास नहीं है। वह छलांग है। छलांग का मैं फर्क समझाने के लिए कह रहा हूं कि ध्यान जो है वह छलांग है। ऐसा नहीं है कि ध्यान करने के बाद, ध्यान हो जाने के बाद आप वही आदमी रहेंगे जो ध्यान करने के पहले थे। नहीं, वह आदमी तो जा ही चुका होगा। यानी यह बचपन और जवानी जैसा नहीं होगा फर्क। ऐसा नहीं होगा कि वही आदमी जो कल ध्यान नहीं करता था, अब ध्यान करने लगा है। नहीं, ऐसा नहीं होगा। क्योंकि ध्यान जिसको हो गया है यह बिलकुल ही दूसरा आदमी है। यह वही आदमी नहीं है। हालांकि शक्ल वही होगी, शरीर वही होगा। हम, हम आमतौर से पहचान भी नहीं पाएंगे, इसमें क्या हो गया?
बुद्ध जब वापस लौटे हैं अपने घर, तो सारा गांव लेने गया, पिता भी लेने गए। तो पिता जो बारह साल पहले जो पुत्र, घर से भाग गया था जो लड़का, वह उसी के खयाल में है। उनको दिखाई भी नहीं पड़ रहा है कि छलांग हो गई। यह मेरा बेटा नहीं है जो आया है अब। अब यह किसी का बेटा नहीं हैै, अब यह बेटा-बाप होने के बाहर चला गया है। लेकिन बाप को क्या पता? बाप तो पुराने गुस्से में बैठा है। सारा गांव तो स्वागत कर रहा है, बाप नाराज है। उसने आकर बुद्ध को, दरवाजे पर गांव के कहा कि मैं खुश नहीं हूं तुम घर छोड़ कर चले गए। एक ही बेटा, वह घर छोड़ कर चला गया। हमारे वंश को नष्ट करना चाहता है। वे डांट रहे हैं, और वह अपने गुस्से में बातें कहे जा रहे हैं। वह, बारह साल पहले जो आदमी गया था, उससे ही बातें कर रहा है।
वह आदमी रहा ही नहीं वहां। वह आदमी अब है नहीं। उसे कैसे पता चले कि छलांग हो गई? वह आदमी अब नहीं है। वह वही बात किए चले जा रहा है कि अभी भी मेरा दरवाजा खुला है और तुम्हें मैं माफ कर दूंगा, आखिर बाप का दिल है माफ कर देगा। तुम आ जाओ लौट कर वापस। अब उसे पता ही नहीं कि पाॅइंट आॅफ नो रिटर्न पर पहुंच गया है यह लड़का, वापस लौटने का उपाय नहीं। कुछ जगह है, जहां से वापस लौटा ही नहीं जा सकता है। जब जंप हो जाती है तो वापस नहीं लौटा जा सकता। लेकिन अगर कंटीन्यूटी हो तो वापस लौटा जा सकता है। पाॅइंट आॅफ नो रिटर्न भी है। वह जंप के बाद आता है जहां से आप वापस लौट ही नहीं सकते, जहां से कोई उपाय ही नहीं। क्योंकि पुराना सब रास्ता ही गया। पुरानी जगह ही खो गई, पुराना आदमी ही खो गया। वापस लौटा ही नहीं जाता।
तो बुद्ध हंस रहे हैं। क्योंकि उनको हंसी आ रही है कि पिता क्या कह रहे हैं यह उनके। पर वह गुस्से में हैं, वह कोई बात कहे चले जा रहे हैं कि मैं तुझे माफ कर दूंगा, मेरा दरवाजा जो है अभी भी खुला है। बह‏ुत तूने बहुत कष्ट दिया है इस बुढ़ापे में, बहुत दुख दिया है। लेकिन फिर भी क्षमा कर दूंगा। बाप का दिल, बाप का दिल ठहरा, क्षमा कर देता है। जब वह सारी बात कह रहे हैं तब उन्हें अचानक खयाल आया कि वह लड़का बोल नहीं रहा, वह चुपचाप खड़ा है। इतनी सारी बातें हो गईं। उसे कुछ जवाब देना चाहिए, उसे कुछ माफी मांगनी चाहिए, उसे कुछ तो कहना चाहिए। तब उन्होंने उसे गौर से देखा है तो बुद्ध हंसने लगे और उन्होंने कहा कि आप पहचान नहीं पा रहे हैं, जो गया था वही वापस नहीं लौटा है।
आप किससे बातें कर रहे हैं? आप किससे बातें कर रहे हैं? जो गया था, वही वापस नहीं लौटा। जब गया था तो आपका बेटा था, अब मैं किसी का बेटा नहीं हूं। और, और पिता ने कहा है इस गुस्से में कि सम्राट का बेटा और भीख मांगे सड़कों पर! हमारे लिये लाज की बात है। शर्म की बात है कि मेरा बेटा, और सड़कों पर भिक्षापात्र लेकर भीख मांगे! मेरे वंश में ऐसा कभी नहीं हुआ कि हमारे वंश में कभी किसी ने भीख मांगी हो। यह तू क्या कर रहा है? तो बुद्ध कहते हैं आपके वंश में न हुआ होगा लेकिन जहां तक मुझे याद आता है, मैंने सदा भीख मांगी है। आपके वंश में न हुआ होगा लेकिन मेरा आपके वंश से क्या लेना-देना।
अब यह बाप की समझ में बिलकुल नहीं आता क्योंकि यह बातचीत बिलकुल ही अलग भाषा में हो रही है। बाप को तो गुस्सा आता है कि यह तू क्या बातें कर रहा है? मैं तुझे नहीं पहचानता? अपने बेटे को नहीं पहचानूंगा? मेरा खून, मेरी हड्डी, मेरा मांस, तुझे नहीं पहचानूंगा? वह तो कहता है कि वह जो खून, हड्डी और मांस है, वह आपका होगा, लेकिन वह मैं कहां हूं।
मगर यह बात बिलकुल ही...कहीं इसमें तालमेल नहीं हो रहा है। क्योंकि यह बिलकुल दो धरातलों पर चल रही है। बुद्ध उस बेटे से बात कर रहे हैं जो छलांग के पहले था, और यह बेटा उस जगह से जवाब दे रहा है जहां से छलांग के बाहर है। इसमें कहीं मेल नहीं हो पा रहा है। इसमें बड़ी कठिनाई होती है।
ध्यान जो है वह एवोल्यूएशन नहीं है, रेवोल्यूशन है। वह विकास नहीं है क्रांति है, वह इंकलाब है। और क्रांति और विकास में यही फर्क है। क्रांति का मतलब है बीच में एक खंड आ गया है, एक गैप, जहां से पुराना समाप्त हो गया औैर नये की शुरुआत हुई। इसका पुराने से कुछ भी लेना-देना नहीं है। यह बात ही और है। इसको पुराने से जोड़ना ही मत।
एक, एक भिक्षु है जो कोई सत्तर साल का है। उससे बुद्ध पूछते हैं कि तेरी उम्र कितनी है? तो वह कहता है, चार साल। तो बाकी लोग हंसने लगते हैं कि वह मजाक कर रहा है। कोई सत्तर साल का बूढ़ा अपनी उम्र चार साल कहता है तो बाकी लोग हंसने लगे। और बुद्ध कहते हैं हंसो मत, वह ठीक कहता है। क्योंकि सत्तर साल इसकी उम्र नहीं है। वह एक पहले आदमी हुआ करता था। वह चार साल पहले मर गया। अब यह एक दूसरा आदमी है। इसकी उम्र चार ही साल है।
तो वह अपने भिक्षुओं से कहते हैं कि तुम भी अपनी उम्र अब ऐसे ही गिनना। यही उम्र गिनने का नियम मानना। तो सारे भिक्षु उस बूढ़े को घेर लेते हैं और कहते हैं कि तुमने यह कैसे कहा? तो उसने कहा कि चार साल पहले मैं तो था ही नहीं। और जो था उससे मैं कोई संबंध नहीं जोड़ पाता। जो था वह क्रोध करता था; जो था वह चिंतित होता था; जो था वह परेशान था; जो था वह दुखी था; जो था वह अंधेरे में खड़ा था; अंधा था; वह कुछ भी नहीं रह गया।
न मैं अब अंधा हूं; न मैं अंधेरे में खड़ा हूं; न मैं अशांत हूं; न मैं चिंतित हूं; न मैं दुखी हूं। जो इसके पहले था वह मौत से डरता था। और अब मैं जानता हूं कि मौत है ही नहीं, तो मैं वह कैसे हूं? यही चार साल मेरी उम्र है। यही चार साल पहले ही मैं पैदा हुआ हूं। मेरा यह जन्म दूसरा ही है।
इसीलिए हम इस मुल्क में एक बहुत कीमती शब्द उपयोग किए थे--द्विज। द्विज का मतलब होता है: ट्वाइस बार, जिसका दुबारा जन्म हुआ हो। लेकिन धीरे-धीरे ब्राह्मणों ने उस पर कब्जा कर लिया। और वह ब्राह्मण द्विज हो गया। लेकिन द्विज का मतलब यह होता हैः जिसका फिर से जन्म हो गया। वह आदमी गया और यह एक दूसरा आदमी पैदा हो गया। लेकिन ब्राह्मणों ने एक तरकीब निकाल ली, और वह यह, उसको जनेऊ पहना दिया तो वह द्विज हो गया।
द्विज का मतलब तो बहुत कीमती है। ऐसा शब्द दुनिया में कहीं भी नहीं है। बड़ा गहरा है वह शब्द। यानी एक आदमी को, जिसने दुबारा जन्म ले लिया है उसको द्विज कहते हैं। यह एक ब्राह्मण भी है असल में, जिसने ब्रह्म को जान लिया लेकिन ब्रह्म को जानने के लिए दुबारा जन्म लेना जरूरी है। और दुबारा जन्म लेने के लिए पहले आदमी का मरना जरूरी है। नहीं तो, नहीं तो दूसरा आदमी कैसे पैदा होगा?
इसलिए ध्यान मरने की प्रक्रिया है और नये जन्म की भी। उसमें पुराना तो चला ही जाएगा। ऐसा नहीं है कि आप ही ध्यान को उपलब्ध हो जाओगे। नहीं, ध्यान को उपलब्ध होते ही आप तो चले ही जाओगे। जो आएगा, वह इतना नया होगा कि पहचान भी लगानी मुश्किल हो जाएगी कि यह वही आदमी है। इसलिए बहुत कठिनाई होती है।
कठिनाई जो होती है सारी वह इसलिए होती है कि चेहरा वही रहेगा, आदमी वही रहेगा, और सब बदल गया। उसके भीतर का सब कंटेेंट बदल गया। सिर्फ डब्बा वही रह गया। डब्बा तो वही है, उसकी आत्मा तो पूरी बदल गई जो उसके भीतर थी। तो जब मैं जन्म का कह रहा हूं तो मेरा मतलब यह है कि ध्यान को आप एक कंटीन्यूइटी मत मान लेेना।
ध्यान एक डिस्कंटीन्यूटी है। पुराने की धारा टूट गई, और नये का जन्म हुआ। लेकिन चूंकि पुराने की धारा के करीब ही यह जन्म हुआ है इसलिए बाकी तो सब वही का वही रहेगा। और वह बाकी की वजह सेे हमारी कठिनाई जारी रहेगी। अब अगर, अगर एक, एक पति को ज्ञान उपलब्ध हो जाए तो पत्नी तो उसे पति माने चली जाएगी। वही अपेक्षाएं किए जाएगी जो कल उसने की थी। अगर एक पत्नी को ज्ञान उपलब्ध हो जाए तो पति उसे पत्नी माने चला जाएगा। वही अपेक्षाएं किए जाएगा जो उसने कल की थी। उसे पता ही नहीं कि सब कुछ बदल गया। और इतनी बड़ी मुश्किल और कठिनाई खड़ी हो जाती है।
जब कोई व्यक्ति ध्यान को उपलब्ध होता है तो वह एकदम से इस दुनिया में अजनबी, स्ट्रेंजर हो जाता है। क्योंकि यह दुनिया जिस ढंग को...उसको मान कर चलती थी अब वह आदमी ही नहीं रहा। वह उपाय नहीं रहा उसका कि वह उसी ढंग से बोले, चले, उठे, करे--उसके लिए उपाय नहीं रहा। एकदम स्ट्रेंजर हो जाता है वह आदमी। एकदम अजनबी हो जाता है। आउटसाइडर हो जाता है।
हमारी इस दुनिया से जहां हम सब इनसाइडर थे, वह एकदम आउटसाइडर हो जाता है। वह एकदम बाहर पड़ जाता है। उससे हमारा कोई ताल-मेल नहीं रह जाता। तो या तो वह एकिं्टग करता रहे, अभिनय करता रहे तो ताल-मेल बना रहता है, नहीं तो ताल-मेल नहीं रह जाता। यानी अब वह, अब वह, अब वह अगर पति है तो वह अब, अब फिर वही बातें कहता रहे, जो उसने कल भी कही थीं जब वह कुछ भी नहीं जानता था। हालांकि अब वह जानता है कि अब उसका कोई मतलब नहीं है, यह मैं क्या कह रहा हूं। लेकिन अब वह एक्टिंग करता रहे तो ठीक है। नहीं तो बहुत बेमौजी हो जाएगा। सब स्थिति गड़बड़ हो जाएगी।
तो ध्यानी को निरंतर रूप से अभिनेता हो जाना पड़ता है, नहीं तो बहुत मुश्किल हो जाए। वह खुद भी न जी सके और दूसरों के जीने में भी बाधा बनने लगे। उसे, उसे बिलकुल ही अभिनेता हो जाना पड़ता है। क्योंकि अब वह अभिनय ही करेगा। अब भी वह पत्नी से कहेगा कि तुझसे ज्यादा प्रेम मैं किसी को नहीं करता हूं। लेकिन अब यह बिलकुल एकिं्टग है। अब इसमें कोई मतलब नहीं रहा। क्योंकि अब असल में वह या तो शरीर को प्रेम करता है या किसी को नहीं करता। अब यह उपाय नहीं रहा कि किसको करता है और कम-ज्यादा, कंपेयर भी नहीं कर सकता, कोई तुलना भी नहीं। लेकिन कहे वह यही चला जाएगा, नहीं तो अभी झंझट खड़ी हो जाएगी। ऐसी कठिनाई खड़ी हो जाएगी, क्योंकि वह पत्नी यह सोच ही नहीं सकती कि यह क्या हो गया है?
महावीर की जिंदगी में बह‏ुत अदभुत घटना है। महावीर को यह क्रांति घट गई। उन्होंने अपनी मां को जाकर कहा कि मुझे आज्ञा दे दो, मैं संन्यासी हो जाऊं। अब यह अभिनय ही था। क्योंकि इस ध्यान के बाद कौन मां है? किससे आज्ञा लेनी? और संन्यास भी कहीं आज्ञा लेकर लिया जाता है? संन्यास के लिए भी कोई किसी से पूछना पड़ेगा कि मैं संन्यासी हो जाऊं? लेकिन महावीर ने कहा कि मुझे आज्ञा दे दो, मैं संन्यासी हो जाऊं। मां ने कहा कि मेरे सामने दुबारा ये शब्द मत निकालना। जब तक मैं जीवित हूं तब तक यह बात मत करना। यह मैं बरदाश्त ही नहीं कर सकती, उसी वक्त मर जाऊंगी। तो तुम्हें मेरे मरने तक रास्ता देखना पड़ेगा। तो महावीर ने कहा, ठीक है। कोई जल्दी भी न थी। क्योंकि बात तो हो गई थी, इसलिए कोई जल्दी भी न थी। मां की मृत्यु हो गई। मरघट से लौटते ही अपने बड़े भाई को कहा, कि अब मैं, अपने घर ही लौट रहे हैं रास्ते में--कि अब मैं संन्यासी हो जाऊं। तो बड़े भाई ने कहा, तुम पागल हो गए हो? हम पर इतना बड़ा आघात पड़ा है कि मां और पिता चल बसे। और तुम भी एक ही मेरे भाई। तुम्हीं मुझे छोड़ कर चले जाओगे? यह बात भी मत करना। तो महावीर ने कहा, जैसी मर्जी। फिर उन्होंने बात भी नहीं की। लेकिन वह घर के लोगों को धीरे-धीरे पता चलना शुरू हुआ कि महावीर तो चले गए। रहते हैं घर में, लेकिन हैं नहीं। और वे घर मेें रहते हैं वहीं। लेकिन धीरे-धीरे वह छाया की तरह, शैडो की तरह हो गए। न वे किसी को दखलअंदाजी देते हैं, न वे किसी को कहते हैं कि यह करो, और यह मत करो; न वे घर के किसी काम में भागीदार हैं; न घर की इज्जत को बढ़ाते हैं, न घटाते हैं; न घर में धन लाते हैं, न कमाते हैं। वे कुछ भी नहीं करते हैं, वे बिलकुल छाया की तरह रहने लगे हैं वे। जैसे धर्मशाला है वह घर, या कोई सराय है, या कोई सपना है। अब उसमें वे कोई उठते हैं, बैठते हैं, चले जाते हैं, खाने को कोई कहता है, खाना खा लेते हैं, सो जाते हैं। दो-चार वर्ष बीते, घर के लोग इकट्ठे हुए उन्होंने कहा कि, अब लोगों ने कहाः कोई मतलब ही नहीं, वह जा ही चुका है। कि अब, अब रोक कर भी क्या मतलब है? सिर्फ इस घर में मौजूद हैं शरीर की तरह से, उसने भी क्या कहा। तब वहां (17: 36 अस्पष्ट...) ने कहा कि अब आप रुके ही नहीं हैं, जा ही चुके हैं, तो हम बाधा न देंगे। तब महावीर उठ कर चल दिए।
मेरी समझ यह है कि यह आदमी पूरी जिंदगी भी रुक सकता था। अगर वे कहते कि रुक जाओ तो रुका रहता। लेकिन, वह जो घटना थी वह घट ही गई थी। लेकिन अब इसके लिए यह सब एक्टिंग का ही हिस्सा था। घर में होना या बाहर होना है। रहना कि न रहना। लेकिन हमारी तकलीफ सबकी जो है, वह यह है कि जब किसी व्यक्ति में ऐसी घटना घटे तो हमें, हमें तो पता नहीं चलता। जो बाहर से खड़े उसको देख रहे हैं, हमें तो पता लगता है कि वही आदमी है, आगे बढ़ा जा रहा है। लेकिन भीतर सब बदल गया है। और यह बदलाहट इतनी तीव्र है कि यह धीरे-धीरे नहीं हुई। क्योंकि धीरे-धीरे जब भी होगी तो विकास होगा। धीरे-धीरे क्रांति नहीं होती।
क्रांति तत्क्षण होती हैै। एक क्षण में सब हो जाता है। इधर से उधर हो जाते हैं आप। इसलिए मैंने कहा। जन्म से मेरा मतलब यह है कि छलांग कि जिसमें बीच में आप चलते ही नहीं, कदम नहीं रखते बीच में। एक जमीन के टुकड़े पर आप थे और फिर एक छलांग हो गई। और जमीन के दूसरे टुकड़े पर आप हैं। और बीच के टुकड़े पर आप चले ही नहीं। उसमें आपने कोई कदम नहीं रखे। इसलिए पुराना जमीन का टुकड़ा और नये जमीन के टुकड़े में कोई जोड़ नहीं है। आप छलांग लगा गए हैं। आप कूद गए हैं, इसलिए मैंने जंप की बात कही।

प्रश्नः 19: 15 ( पंजाबी भाषा में प्रश्न हैं। ध्वनि-मुद्रण अस्पष्ट)कारण दा छलांग का एक फीका फासला वो नहीं रइया, वो इनसान नहीं रइया, वो जीवन, वो आत्मा नहीं, मगर कारण बन गया कारण...मेरा मतलब है छलांग दा कारण हो, ये फीका छलांग से कुछ नहीं होने कीत्ता। बड़ा कुछ कीत्ता, 19: 51

यह भी समझने की बात है। यह भी समझने की बात है। यह बहुत समझने की बात है। और बहुत कठिन है समझना। एकदम कठिन बात है। कठिन इसलिए है कि हमें यह लगता है कि माना कि यह छलांग हो गई, लेकिन इसमें कुछ किया होगा, उससे कारण बना होगा, उस कारण से छलांग हुई। अगर कारण से छलांग हुई तो कंटीन्यूटी जारी है। अगर कारण से छलांग हुई तो फिर सातत्व जारी है। फिर छलांग नहीं हुई, फिर विकास ही हो रहा है।
और यह समझना इसलिए कठिन है कि हम बिना कारण के कोई चीज समझ ही नहीं सकते। इस जिंदगी में जहां हम जी रहे हैं, सब चीजों का कारण है। कारण है, उसके बिना कुछ भी नहीं हो सकता। इस जिंदगी में, जिसको हम जी रहे हैं, वहां हर चीज का कारण है। कारण है, फिर उसका कार्य है, काॅ.ज है, फिर उसका इफेक्ट है। हमने बीज बोया है इसीलिए वृक्ष हुआ है। बीज और वृक्ष में कोई छलांग नहीं है। क्योंकि बीज ही तो वृक्ष हुआ है। अगर बीज हम न बोते तो वृक्ष न होता। तो बीज और वृक्ष में कोई छलांग नहीं, विकास है। फिर वृक्ष में बीज लग जाएंगे वह भी छलांग नहीं, वह भी विकास है। इस जिंदगी मेें, जिसको हम जानते हैं, विज्ञान जिस जिंदगी को जानता है उसमें तो काॅ.ज और इफेक्ट है। और यही है रिलीजन और विज्ञान का फर्क है। यह बहुत गहरा फर्क है।
विज्ञान कहता है, बिना कारण के कुछ भी न होगा। और रिलीजन कहता है, सब अकारण है। यह जो बहुत गहरा फर्क है। विज्ञान कहता है कि बिना कारण के कुछ होता नहीं। कारण हो जाएगा तो घटना घट जाएगी। और धर्म यह कहता है कि सब अकारण है। अकारण क्यों कहता है? क्योंकि धर्म को अपनी तकलीफ है।
धर्म को तकलीफ यह है कि वह अल्टीमेट, आखिरी चीजों को खोज रहा है। अजीब-अजीब न जाने क्यूं...मैं इसलिए पैदा हुआ कि मेरे पिता कारण बने, मेरी मां कारण बनी। मेरे मां और पिता पैदा हुए, उनके पिता और मां कारण बने। इसको हम खोजते चले जाएं, खोजते चले जाएं। लेकिन यह पूरा जगत किस कारण से पैदा हुआ है? कठिनाई खड़ी हो जाएगी इस पूरे जगत का कारण खोजने में। अगर कोई कहे कि भगवान भी कारण से पैदा हुआ है तो भगवान के साथ कठिनाई खड़ी हो जाएगी, कि भगवान के पैदा होने का क्या कारण है?
तो भगवान को हम कहेंगे, अनकाॅ.ज्ड। उसका कोई कारण नहीं, वह बस हुआ। वह बस हुआ, उसका कोई कारण नहीं है। या जो भगवान को नहीं मानता, वह कहेगाः यह जगत हुआ है। इसका कोई कारण नहीं है। यह छलांग न होने से, होने में इसका कोई कारण नहीं है। इसका कोई कारण नहीं। क्योंकि अगर हम कारण खोजेंगे तो फिर तो अंत ही नहीं आता। इसका कोई अंत नहीं आता।
और जब एक, एक व्यक्ति को छलांग लग जाती है, जीवन बदल जाता है, नया जीवन हो जाता है तो जो पीछे खड़े हैं वे वहां भी कारण खोजेंगे। वे वहां भी कारण खोजेंगे, यह आदमी बदल क्यों गया? इसकी पत्नी मर गई। इसके चित्त में दुख हुआ, विराग आ गया। लेकिन अनेक लोगों की पत्नियां मर जाती हैं, और विराग नहीं आता। बल्कि दूसरी पत्नी की तलाश शुरू हो जाती है। कोई कहेगा, इसके घर में आग लग गई, धन नष्ट हो गया, इसको विराग आ गया। लेकिन कितनों के घरों में आग लगती है, कोई विराग नहीं हो जाता। यह कोई भी कारण नहीं है।
अगर यही कारण है तो यह आदमी बदला ही नहीं है। यह आदमी वही का वही है। मकान नहीं जला था तो मकान में रहता था, मकान जल गया तो संन्यासी हो गया। यह आदमी वही का वही है। पत्नी नहीं मरी थी तो पत्नी के साथ रहता था, पत्नी मर गई तो अब पत्नी के साथ नहीं रहता। आदमी वही का वही है। उसमें कोई फर्क नहीं हो गया। नहीं, हमारी जिंदगी में एक अनकाॅ.ज्ड जंप भी है। अनकाॅ.ज्ड, जिसके लिए हम कोई कारण न बता सकेंगे कि इस कारण ऐसा हुआ। अगर कारण बता सकेंगे तो फिर सिलसिला शुरू हो गया, वह फिर जंप नहीं रही।
माना कि हमारी और सारी जिंदगी जुड़ी हुई है। अगर हम प्रेम करते हैं तो कारण है; अगर घृणा करते हैं तो कारण है; अगर किसी से दोस्ती बनती है तो कारण है; दुश्मनी बनती है तो कारण है। हमारी जिंदगी मेें सब कारण हैं सिर्फ एक जगह जाकर--जहां कि आखिरी छलांग लगती है; जहां न किसी से दुश्मनी रह जाती है, न दोस्ती रह जाती है; और न किसी से प्रेम रह जाता है, और न घृणा रह जाती है; जहां न कोई अपना रह जाता है, न कोई पराया रह जाता है; वहां अनकाॅ.ज्ड, अकारण कुछ होगा। समझना हमें मुश्किल है, क्योंकि समझ कहेगी कि बिना कारण हो कैसे सकता है?
क्योंकि समझ कारण मांगेगी ही। वह कहेगी कि होगा कोई कारण जरूर छिपा हुआ। कारण का पता लगाना पड़ेगा। और इस कारण के पता लगाने से बहुत दिक्कतें पैदा हुई। दिक्कतें इसलिए पैदा हुई कि हम जब पता लगाने जाते हैं तो हमें कुछ न कुछ कारण मिल जाता है।
जैसे कि हमने पता लगाया कि पत्नी मर गई, यह कारण था एक आदमी को क्रांति हो जाने का। तो हम सोच सकते हैं हम अपनी पत्नी को मार डालें, तो क्रांति हो जाए। एक आदमी के घर में आग लग गई तो वह घर के बाहर निकल गया तो मैं घर में आग लगा दूं, तो मेरी जिंदगी में क्रांति हो जाए। हमें लगता है कि एक आदमी ने धन-दौलत को लात मार दिया तो लात मारने से उसके जीवन में बड़ी शांति आ गई, तो मैं भी लात मार दूं तो शांति आ जाए।
नहीं आएगी। सिर्फ धोखा हो जाएगा। वह जो कारण हमने खोजा है, वह हमने खोज लिया है। क्योंकि वह जो आखिरी, अल्टीमेट जंप है वह बिलकुल अकारण है। और इसलिए भी अकारण है कि अगर उसमें कारण हो तो कल कारण पीछे हट जाए तो जंप वापस लौट सकती है। अगर कोई भी कारण से मेरे मन में, कोई भी कारण से मैं परमात्मा में प्रवेश किया तो अगर कल वह कारण न रह जाए, तो मुझे वापस लौट आना पड़े। यानी कल मुझे पता चले जंगल में कि मेरी पत्नी मरी नहीं थी, बेहोश थी, वह होश में आ गई है, मरघट से लोग घर वापस ले आए हैं--तो मैं भाग कर घर आ जाऊं। मुझे पता चले कि वह जो मकान में आग लग गई है वह इंश्योर्ड था, मुझे पता नहीं था लड़के ने उसे इंश्योर किया हुआ था, मैं नाहक जंगल में आ गया हूं, सब पैसा मिल गया है मकान का, दूसरा मकान बन रहा है--मैं वापस लौट आऊं।
मेरा मतलब समझ रहे हैं न? मैं यह कह रहा हूं कि अगर कहीं कोई कारण है तो वापस लौटने की निरंतर संभावना है। लेकिन परमात्मा से कोई कभी वापस नहीं लौटता, क्योंकि वह अकारण घटना है। लेकिन हमारी समझ का नियम यह है कि बिना कारण के समझ राजी न होगी। समझ कहेगी कि कारण होना ही चाहिए। कारण होना ही चाहिए क्योंकि समझ, समझ का सूत्र यह है कि वह कहती है कि अनकाॅ.ज्ड हो ही नहीं सकता।
समझ, इसीलिए समझ के बाहर है परमात्मा; इसीलिए समझ के बाहर है धर्म, समझ के बाहर है ध्यान, वह बियोंड अंडरस्टैंडिंग है। उसका कारण ही यह है कि समझ के नियम हैं अपने, और वे नियम बहुत सख्त हैं। वे नियम कहते हैं कि नियम के विपरीत तो कुछ हो ही नहीं सकता। हर चीज का कारण होता है। आपको पता न हो लेकिन बीज बोया गया होगा तभी वृक्ष हुआ है, नहीं तो वृक्ष हो ही नहीं सकता। यह बिलकुल ठीक कहती है समझ। वह कहती है पानी गर्म किया गया है इसलिए भाप बना होगा। यह तो हो ही नहीं सकता कि गर्म न किया गया हो और भाप बन गया हो।
इसलिए समझ धीरे-धीरे वैज्ञानिक हो जाती है। और जितनी समझ दुनिया में बढ़ती है, धर्म कम हो जाता है। उसका कारण है। क्योंकि समझ जब सब जगह मांग करने लगती है तो वह एक चीज जो अनकाॅ.ज्ड है, वह उसके बाहर पड़ जाती है। और वह उसको इनकार कर देती है कि नहीं, यह हम न मान सकेंगे। यह हम न मान सकेंगे। क्योंकि यह बात...सारी चीजें तो नियम के भीतर हैं। यह एक ही बात नियम के बाहर क्यों होगी?
लेकिन अगर यह बात भी नियम के भीतर है तो धर्म खत्म हो जाएगा किसी दिन। क्योंकि विज्ञान इसको भी पकड़ लेगा। आज विज्ञान ने पकड़ लिया है कि आपके भीतर मलेरिया है तो कारण है उसका कि यह पाॅय.जन आपके भीतर चला गया है, यह कीटाणु आपके भीतर चला गया है। हम इसका उलटा कीटाणु भीतर डाल देते हैं, इसको हम खत्म किए देते हैं। मलेरिया वहां खत्म हो जाएगा। प्लेग खत्म हो जाएगी। क्योंकि सब चीज का कारण हम खोज लेंगे। अगर किसी दिन हमने यह कारण भी खोज लिया, खोज लिया कि महावीर या बुद्ध या कृष्ण में क्रांति कैसे हो गई? तो हमने इसका कारण खोज लिया तो उस कारण का इंजेक्शन हम किसी को भी दे देंगे, उस कारण का। क्रांति हो जाएगी।
धर्म तो यह कहता है कि ऐसा हो ही नहीं...धर्म तो यह कहता है कि यह हो ही नहीं सकता कभी कि आप बाहर से इसको मैनेज नहीं कर सकते। यह अनमैनेजिएबल है। लेकिन धर्म समझा नहीं पाता है। इसलिए धर्म बहुत लचर मालूम पड़ता है जब कोई वैज्ञानिक तर्क करने लगता है उसके साथ, तो वह बड़ी मुश्किल में पड़ जाता है। अब वह यह नहीं बता पाता है कि कैसे यह हुआ? वह इतना ही कह सकता है कि बस यह हुआ। न हमने कुछ किया था, न कोई कारण था। बस यह हुआ। और इसलिए फिर धार्मिक आदमी ने एक भाषा को विकसित कर लिया है। जिसने उसे और दिक्कत में डाल दिया। वह कहता हैः परमात्मा की कृपा से हुआ। उसका कुल मतलब इतना ही है कि अनकाॅ.ज्ड है।
वह जो धार्मिक आदमी है कहता है कि वह उसकी कृपा से हुआ, वह यही कह रहा है कि कोई कारण तो दिखाई पड़ता नहीं। अपने में कोई पात्रता नहीं दिखाई पड़ती। अपनी समझ के भीतर नहीं मालूम पड़ती। हुआ है जरूर। तो अब फिर एक ही रास्ता है कि उसकी कृपा से हुआ होगा।
मगर यह भी उसने कारण खोज लिया। उसने कारण खोज लिया तो फिर दूसरे लोग उसकी कृपा पाने चले गए। वे कह रहे हैं मंदिर में हम घुटने टेक कर सिर रखे रहेंगे तुम्हारे चरणों में। हम पर भी कृपा करो न? इस आदमी पर कृपा कर दी।
नहीं, लेकिन मैं कह रहा हूं कि कृपा से भी नहीं हुआ क्योंकि वह भी कारण ही खोजना है। नहीं, इस, इस तथ्य को अकारण ही स्वीकार कर लेना होगा। यह हो जाता है। और जब हो जाता है तब पता चलता है कि कोई भी तो कारण नहीं है। छलांग हो गई। लेकिन जब तक छलांग न हुई हो, तब तक हम कारण की दुनिया में जीते हैं। जो मन के सोचने का ढंग हैः वह काॅ.ज और इफेक्ट का है। वह बिना कारण के सोच ही नहीं सकता। कि जब तक मन की दुनिया में जीते हैं, हम कहेंगे कि नहीं। यह बात जंचती नहीं। यह मैं भी कहूंगा कि जंचती नहीं। यह मैं भी कहूंगा, यह मैं भी कहूंगा कि जंचती मुझको भी नहीं है यह बात। लेकिन अब इसमें कोई उपाय नहीं है, जंचे या न जंचे; होता ऐसा ही है कि अकारण है बिलकुल--तभी जंप है।
जंप का आप मतलब समझे?
अनकाॅज्ड होगा तो ही जंप होगा। अगर कारण होगा तो फिर विकास होगा। कारण न होगा तो क्रांति होगी। और जब कारण के बिना हो जाएगा तभी नये का जन्म होगा। कारण कभी भी पुराने से छुटकारा नहीं लेने देगा। कारण का मतलब ही है कि पुराना मौजूद रहा है। 31ः00...(अस्पष्ट)वह जो था, वह है मौजूद, बीज था, वह पुराना था, उसमें से वृक्ष निकल आया।
लेकिन यह वृक्ष है उसी बीज का। इसमें कुछ नया नहीं है। यह सब उस बीज में छिपा था वह मैनिफैस्ट हो गया, वह प्रकट हो गया। लेकिन है पुराना ही, नया कुछ भी नहीं है। इसलिए अगर विज्ञान की भाषा को हम समझें तो नया कुछ भी नहीं है, सब पुराना है। वह पुराने में छिपा था, प्रकट हो गया। आप कोट पहने थे, आपने कोट निकाल दिया। नया क्या है? आपका शरीर दिखाई पड़ने लगा। बीज ने कोई कोट पहन रखी थी, वह निकल गया है, वृक्ष दिखाई पड़ने लगा। बीज नंगा हो गया तो वृक्ष दिखाई पड़ने लगा। इसने एक कोट पहन रखी थी जो जमीन में गल गया, टूट गया, बिखर गया और भीतर जो छिपा था वह बाहर निकल आया।
एक मां के पेट में बच्चा है। वह अभी छिपा है, अभी दिखाई नहीं पड़ रहा। कल वह पैदा हो जाएगा। बाकी पुराना ही है वह, नया क्या है? असल में काॅ.ज जहां तक काम कर रहा है वहां तक नये की कोई संभावना नहीं है। काॅ.ज का मतलब यह हैः डिटरमिंड बाय द ओल्ड। काॅ.ज का मतलब यह होता है कि पुराने के द्वारा निर्धारित। लेकिन यह जो अनुभव है--मुक्ति का अनुभव कहें, सत्य का कहें, परमात्मा का कहें, निर्वाण का कहें--यह, यह पुराने के द्वारा निर्धारित नहीं है।
यह पुराने से एकदम ही बिछड़ जाना है। यह तकलीफ है, पुराने से टोटली अलग हो जाना हैै। उसमें इतना सा भी सूत्र नहीं बचता पुराने का, जिसको हम कह सकें कि यह कारण रहा। नहीं, यह पुराने से एकदम ही अलग हो जाता है। पुराने से जो एकदम अलग हो जाना है उससे हमारा कोई संबंध ही न रहा। यानी कहीं कोई जरा सा भी ब्रिज नहीं है जिस पर कि चल कर हम आ गए हों। अगर ब्रिज है तो कंटीन्यूटी हो गई। ब्रिज नहीं है। गैप है, एबिस है, खाई है। और एकदम हमने पाया है कि पुराना नहीं है, और नया हो गया। इसीलिए समझ के बाहर है मामला।

प्रश्नः ( 33ः 30) पंजाबी भाषा में, अस्पष्ट... )

क्यूं कह रहा हूं, क्यूं कह रहा हूं, क्योंकि हमारा मन जो है, उसके लिए तत्काल बात समझ के भीतर हो जाती है। जैसे कि हम कहें कि करते-करते, करते-करते ऐसा क्षण आ जाता है कि हो जाता है। लेकिन करते-करते के कारण ही आता है क्षण। तो फिर बात गड़बड़ हो गई।
नहीं, उसके कारण नहीं आता। यानी मैं यह कहता हूं कि न करते, करते, करते भी क्षण आ जाता है। मैं यह नहीं कहता हूं कि करते-करते ही आ जाता है, न करते-करते भी आ जाता है। एक आदमी प्रार्थना करते-करते भी छलांग ले लेता है, और एक आदमी बिना प्रार्थना किए भी छलांग पा जाता है; और एक आदमी गीता को पढ़ते-पढ़ते भी छलांग पाता है, और एक आदमी गीता को फेंक कर भी छलांग पा जाता है। कारण जैसी कोई चीज नहीं पता चलती।
और जब कोई आदमी उस छलांग में उतर जाता है तब वह एकदम मुश्किल हो जाता है। उससे हम पूछने जाएं, कैसे हुआ? हाउ डिड इट हैपन? यह, यह नहीं बता सकता। बता नहीं सकता, इसका यह मतलब नहीं है कि उसे पता है, बताया नहीं जा रहा। वह यह, यह भी अगर कहे कि मुझे पता नहीं, कि इसका यह मतलब नहीं कि उसको पता नहीं है। होगा जरूर कोई कारण। न, नहीं बता सकते का मतलब यह है कि कोई कारण ही नहीं, बस यह हो गया है।
इट है.ज हैपंड। इसके लिए कभी कहीं कोई सूत्र नहीं मिलता। इसका कोई, कहीं कोई रास्ता ही नहीं है। और अगर बुद्धि को यह खयाल मेें भी आ जाए कि यह संभव है तो अभी छलांग हो सकती है। लेकिन जब तक बुद्धि को, बुद्धि हमेशा बाधा डालेगी इसलिए छलांग में। वह कहेगी कि नहीं, कुछ न कुछ रास्ता होगा जो हमें पता नहीं। जो पहुंच गए हैं वह कहीं से पहुंचे होंगे। जरूर पहुंचे होंगे कहीं से। हो सकता है उनको भी पता न हो। लेकिन रास्ता तो होगा ही। हो सकता है वह धक्का-मुक्की खाकर ही रास्ते पर पड़ गए हों। हो सकता है आंखें बंद रही होंगी, चलते-चलते उस जगह पहुंच गए होंगेे। लेकिन कोई जगह होगी जहां से यह हुआ है। जहां से यह हो सकता है। हमको भी पता लगाना चाहिए कि वह जगह कहां है? वह रास्ता कहां है? वह, वह ब्रिज कहां है? उन्होंने कौन सा आधार रखा? किस जगह पर खड़े होकर, जंपिग बोर्ड क्या था उनका? जिस पर से खड़े होकर वे छलांग लगा गए। उस बोर्ड को हमें भी खोज लेना पड़ेगा। हमारी बु.िद्ध यह कह कर ही हमको दिक्कत में डाल देती है। फिर हम उसी काम में लग गए। नहीं, बुद्धि ठप्प हो जाएगी।
जिस दिन अकारण होती है घटना, इसका जरा सा भी खयाल पैदा हो जाएगा तो बुद्धि एकदम ठप्प हो जाएगी, जाम हो जाएगी। बुद्धि कहेगीः अपने बस के बाहर बात हो गई। अपने बस के भीतर थी जब तक कार्य-कारण का संबंध था, अपने बस के बाहर हो गई। और अगर बुद्धि इतना समझ ले कि अपने बस के बाहर हो गई तो बुद्धि हट जाती है मार्ग से, नहीं तो बुद्धि नहीं हटती।
और मजा यह है कि जो मैैं आपको समझा रहा हूं, मैं भी जानता हूं कि वह जंच नहीं सकता। यह, यह मामला नहीं है कि मैं जब आपको समझा रहा हूं तो मैं यह समझ रहा हूं कि आपको जंच जाएगा। यह मैं नहीं मानता हूं। मुझे भी कोई यह समझाता तो मैं भी नहीं मान सकता था। यह जो मुझे भी कोई समझाता तो मैं भी उससे लड़ जाता कि आप गलत कह रहे हो, मैं उसको सिद्ध कर देता कि गलत है यह बात। बिना कारण के कैसे होगा?
लेकिन जो हुआ है, वह बिना कारण हुआ है। इसलिए, और इसलिए उसमें कोई पात्र-अपात्र नहीं है। उसमें कोई दावेदार नहीं हो सकता कि मुझको हो जाएगा, तुमको नहीं हो सकता। तुम अपात्र हो। तुम बीड़ी पीते हो, तुमको नहीं हो सकता; कि तुम वेश्या के घर देखे गए हो, तुमको नहीं हो सकता; तुम रात में खाना खा लेते हो, तुमको नहीं हो सकता। कि तुमको क्या होगा? इसलिए, इसलिए मैं बहुत कठिनाई में रहता हूं। कठिनाई में यह रहता हूं कि मैं, यह...कहीं कोई कारण नहीं। कहीं कोई कारण नहीं होता।
लेकिन इस जगत में ऐसी घटना भी है जो अकारण है। और वही घटना स्प्रिचुअल है जो अकारण है; वही मिरेकल है जो अकारण है; वही चमत्कार है जो अकारण है। और जहां तक कारण है, वहां तक धर्म का कोई संबंध नहीं। वह तो लेबोरेटरी और विज्ञान की बात है। वह सब पता लगा लेंगे। वह सब पता लगा लेंगे, वह तो इसकी तो फिकर है ही नहीं।
वह तो पूरे वक्त यह कहते हैं कि बुद्ध जैसे आदमी में हार्मोन अलग तरह के हैं। वह तो उसका कारण पता लगाने में लगे ही हुए हैं पूरे वक्त। वे तो यह कहते हैं कि बुद्ध के व्यक्तित्व में हार्मोन का भेद है। केमिकली बुद्ध के शरीर में हार्मोन दूसरे ढंग के हैं। तो वे हार्मोन अगर किसी दिन बुद्ध का पूरा कंपोजिशन पता चल जाए कि पूरे शरीर में क्या-क्या हार्मोन किस-किस मात्रा में थे तो हम बुद्ध पैदा कर लेंगे? विज्ञान का तो मानना ही यह है। यह तो पकड़ ही यह है। यह सवाल ही नहीं है इसको पूछने का, क्योंकि कारण तो होने ही चाहिए। हां, अगर हम बुद्ध को पूरा डिसेक्ट कर सकें किसी दिन, और उसका सब खोज-बीन करके सब हमने पता लगा लिया, हमको पता चल गया कि इसमें इतनी मात्रा में यह चीज है, इतनी मात्रा में यह चीज, इतनी मात्रा में यह, उतनी मात्रा में किसी में भी कर देने से बुद्ध पैदा होगा।
लेकिन यह, यह सोचना भी बहुत कष्टपूर्ण है कि अगर किसी दिन ऐसा संभव हो जाए कि हम बुद्ध को लेबोरेटरी में पैदा करने लगें, उस दिन यह जगत और भी बेमानी हो जाएगा। क्योंकि उस दिन फिर बुद्ध का भी कोई मतलब न रह जाएगा। उस दिन किसी के ज्ञान को उपलब्ध करना भी व्यर्थ की बकवास हो गई। उसका कोई मतलब न रहा। मैं तो यह, मेरी...यह बिलकुल ही इररेशनल बात है, इसमें कोई भी, इसमें कोई तर्क और बुद्धि की बात नहीं है।
इस मामले में बिलकुल इररेशनल हूं। एकदम मूढ़ों से राजी हूं इस मामले में। यह जो मामला हैः यहां छलांग घटती है, जहां कोई कारण नहीं है। वह हम बिलकुल पता लगा लें बुद्ध का, सारे शरीर का, और सब शरीर निर्मित कर दें, फिर भी बुद्ध घटित नहीं होगा।

प्रश्नः (पंजाबी भाषा 39: 53)

इसलिए उसको अकारण ही... और अकारण के साथ बड़ी कठिनाई है। मेन कठिनाई यह कि बुद्धि कहेगी कैसे? बुद्धि का, बुद्धि का मेथड सदा कारण है। उसका ढंग सोचने का यह है कि कारण पता चलाओ। हुआ है तो कारण होगा। इसीलिए तो बुद्धि परमात्मा तक नहीं पहुंच पाती। क्योंकि परमात्मा अकारण है। अगर बुद्धि वहां तक पहुंच जाएगी, तो वह बुद्धि वाला पूछता है कि परमात्मा का होने का कारण क्या है? इसने दुनिया बनाई तो इसका कारण क्या है? आपमें किसी के साथ आपके जीवन में प्रेम हुआ तो कारण क्या है? कारण होना चाहिए। वह सारी चीजों के कारण खोज रहा है। आप हुए तो कोई कारण होना चाहिए।
तो बुद्धि ने कारण का बहुत जाल फैलाया है। हमारा पुनर्जन्म है, कर्मवाद है, वह सब कारण का फैलाव है। उसमें, उसमें सब साइंटिफिक बातें है वे। वह सब कारण का ही फैलाव है। हम यह कह रहे हैंैं कि पिछले जन्म में इस आदमी ने यह काम किया था, इसीलिए यह आदमी ऐसा हो गया है। कारण खोज रहे हैं। और इसलिए मैं कहता हूं कि पुनर्जन्म, कि कर्म का सिद्धांत, कोई भी आध्यात्मिक बातें नहीं हैं। आध्यात्मिक बात तो वहीं से शुरू होती है जहां से बुद्धि जवाब देना शुरू करती है। कहती हैः हमारा समय, अब इसकी जगह हमारी यात्रा न रही। यहां अगर जाना है तो हमको छोड़ कर जाना पड़ेगा।
अगर धर्म में प्रवेश करना है तो बुद्धि को एक जगह छोड़ कर जाना पड़ेगा। जैसे मंदिर के बाहर जूते उतार आते हैं, ऐसे ही प्रभु के मंदिर के बाहर बुद्धि को उतार कर रख आना पड़ेगा। और वह सबसे अड़चन तभी आती है जब यह कारण का सवाल उठता है। क्योंकि तभी बुद्धि कहती है कि क्या तुम गलती कर रहे हो? कहां पागल होने जा रहे हो? पागल हो जाओगे। मुझे साथ रहने दो, मैं जांच-पड़ताल करती रहूंगी कि बात ठीक है कि नहीं। हम जरा जांच-पड़ताल कर लेंगे कि भगवान सच्चा है कि नहीं? जो बैठा है झूठा तो नहीं है? क्योंकि मुझे छोड़ कर तुम पता कैसे लगाओगे?
तो बुद्धि कहती है कि मुझे साथ रखो। हर वक्त मुझे साथ रखो। उसका दावा है और वह हमको जंचता भी है। क्योंकि हम उसके अभ्यासी हैं। लेकिन एक और दावा भी है।

प्रश्नः ब्रेन बदले जा सकते हैं?

ब्रेन बदले जा सकते हैं। असल में क्योंकि ब्रेन जो है, ब्रेन कोई आध्यात्मिक चीज नहीं है, बिलकुल मैटीरियल है। बदला जा सकता है। बिलकुल बदला जा सकता है। लेकिन यह जो घटना है, यह ब्रेन की घटना नहीं है। यह जो घटना है, यह उसमें भी घट सकती है जिसमें बुद्धि नाम की चीज नहीं थी; स्कूल में फेल हो गया; परीक्षा में कभी आंकड़े नहीं मिले; कभी नंबर नहीं लगा, उसको भी घट सकती है। यह ब्रेन का मामला नहीं है। ब्रेन का मामला होता तो आइंस्टीन को घटनी चाहिए। तो कबीर को घटना मुश्किल हो जाए। क्योंकि कबीर के पास काहे का ब्रेन? मैट्रिक भी फेल हो जाएं बिठाओ उनको तो।
हां, यह मिरेकल है। यह ब्रेन का मामला नहीं है। बे्रन का मामला हो तो, अक्सर तो उलटा मामला है। जितना बुद्धिमान आदमी हो उतना मुश्किल होता है धार्मिक होना उसका। क्योंकि उसकी बुद्धि कहती हैः ये बातें कुछ अटपटी मालूम होती है, यह कुछ जमती नहीं है। यह सब उलटा मामला मालूम पड़ता है। यह कुछ बात ठीक नहीं मालूम पड़ती।
तो ब्रेन तो बदला जा सकेगा। बदला जा रहा है। ब्रेन तो बहुत छोटी-छोटी चीज से बदला जा रहा है। ब्रेन का तो कोई मामला नहीं, क्योंकि बे्रन तो बिलकुल ही फिजिकल, शारीरिक बात है। उसमें जो सब चीजें हैं, तत्व हैं, उन सबको बदला जा सकता है। मगर फिर भी आपके पास कितना ही अच्छा ब्रेन हो इससे क्रांति नहीं हो जाती। वह क्रांति, बात ही अलग है। वह कभी मूढ़ में भी हो जाती है, और कभी बुद्धिमान में भी नहीं होती; कभी बड़े से बड़ा बुद्धिमान सिर पटक-पटक कर मर जाता है, और कभी बिलकुल बुद्धिहीन गति कर जाता है।
ऐसा भी नहीं है कि बुद्धिहीन होने से गति हो जाएगी। अगर ऐसा होता तो भी...ऐसा भी नहीं है कि हम कोई बुद्धिहीन हो जाएंगे तो गति हो जाएगी। फिर कारण मिल जाएगा, फिर कारण मिल जाएगा। नहीं वैसा भी नहीं है। यह तो, वह भी मामला वही का वही है। तो बुद्धि थोड़ी कम की जा सकती है अगर, अगर बुद्धिहीन गति करते हों तो ब्रेन को थोड़.ा सा कम किया जा सकता है। उसको डैमेज किया जा सकता है। उसके कुछ हिस्से तोड़े जा सकते हैं, बिगाड़े जा सकते हैं। तुम बुद्धिहीन हो जाओगे। लेकिन बुद्धिहीन भी बैठा रह सकता है। उसको भी नहीं हो जाता है।
 इसलिए मैं कह रहा हूं कि कारण खोजना असंभव है। कारण है ही नहीं। अकारण है। और अगर यह खयाल आएगा, अगर यह खयाल भी आ जाए कि अकारण है तो इससे बड़ा रास्ता साफ हो जाएगा। क्योंकि तब सब भय मिट जाएं। सब सहारे छूट जाएं। जब गुरु को पकड़ने की जरूरत न रह जाए। यह मेथड का उपयोग करें, कि यह मेथड का करें; कि यह कर्मयोग करें; कि ध्यान करें; कि भक्ति करें--यह सब छूट जाएगा।
और अगर इस क्षण में एक क्षण भी हम रुक जाएं कि ठीक है भई, तो अकारण हो जाता है। इसमें मेरा कोई बस नहीं है। हेल्पलेस है, तो अहंकार के लिए गति न रही। मैं कुछ कर लूं, कारण हो तो अहंकार के लिए गति है। वह कहेगा कि इंतजाम किए देते हैं। कर लेंगे इंतजाम, आज नहीं कल कर लेंगे। फिर गति न रही, ठप्प हो गया। एक डेड एण्ड आ गया। और यह डेड एंड जितनी जोर से आ जाए, जंप हो जाए, लेकिन फिर भी कारण और कार्य का संबंध नहीं है।

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