कुल पेज दृश्य

रविवार, 28 अक्तूबर 2018

मैं कौन हूं?-(प्रवचन-06)

छठवां प्रवचन

श्वास का महत्व

मेरे प्रिय आत्मन्!
ध्यान अस्तित्व के साथ एक हो जाने का नाम है। हमारी सीमाएं हैं--उन्हें तोड़ कर असीम के साथ एक हो जाने का नाम। हम जैसे एक छोटी सी बूंद हैं और बूंद जैसे सागर में गिर जाए और एक हो जाए। ध्यान कोई क्रिया नहीं है बल्कि कहें अक्रिया है, क्योंकि क्रिया कोई भी हो उससे हम बच जाएंगे पर अक्रिया में ही मिट सकते हैं। ध्यान एक अर्थ में अपने ही हाथ से मर जाने की कला है। और आश्चर्य यही है कि जो मर जाने की कला सीख जाते हैं वही केवल जीवन के परम अर्थ को उपलब्ध हो पाते हैं।
आज की सुबह इस एक घंटे में हम अपने को खोकर वह जो हमारे चारों ओर विस्तार है उसके साथ एक होने का प्रयास करेंगे। भाषा में तो यह प्रयास ही मालूम पड़ेगा। लेकिन बहुत गहरे में भीतर प्रयास नहीं हो सकता। अपने को सम्भालेेंगे नहीं, छोड़ देंगे। इसके पहले कि मैं ध्यान की प्रक्रिया के लिए आपसे कहंू, केवल दो छोटी सी बातें खयाल कर लें। थोड़ेे से लोग हों उसमें बहुत सुखद है, और इसलिए मैनें कहीं सूचना भी नहीं की, ताकि थोड़े से ही लोग आ सकें।

एक तो सब इतने फासले पर बैठ जाएं कि कोई अगर बीच में गिर जाए तो किसी दूसरे के ऊपर न गिर जाए। जब पूरी तरह अपने को छोड़ेंगे, तो बहुत बार ऐसा लगेगा, शरीर गिर रहा है अगर उसे रोका तो बाधा हो जाएगी। वह गिरता हो तो गिर जाने दें या फिर कहीं टिक कर बैठ जाएं। और जो लोग ऊपर बैठे हैं वे नीचे आएं, क्योंकि वहां उनको पूरे वक्त यही खयाल बना रहेगा कि अपने को सम्हाले रखें। फासले पर बैठें , बहुत पास-पास न बैठें। कोई किसी को छूता हुआ तो हो ही नहीं और फिर भी फासला रखें क्योंकि अगर कोई लेटना चाहे बीच में तो लेट सके। क्योंकि जो प्रयोग मैं आपको करावाने को हूं उसमें बहुतों को बीच में लगेगा कि लेट जाएं, तो उन्हें लेट जाना है उन्हें बैठे नहीं रहना है। जैसा लगे वैसा हो जाने देना है। दूसरे की कोई चिंता नहीं करनी है कि कोई दूसरा मौजूद है। और कोई भी मौजूद हो आप अकेले ही हैं, वह दूसरा भी अकेला है।
ध्यान में श्वास का सर्वाधिक महत्व है। जीवन में भी है। श्वास चल रही है तो आदमी जीवित है और श्वास खो गई तो आदमी खो गया।
अभी-अभी मैं एक घर में गया। एक स्त्री नौ महीने से बेहोश है, और वह कोमा में पड़ी है, और डाक्टर कहते हैं कि वह कभी होश में आएगी भी नहीं। उसके होश के तंतु ही टूट गए हैं। लेकिन वह कम से कम तीन साल जिंदा रह सकेगी। वह बेहाश ही पड़ी रहेगी। उसको इंजेक्शन से दवाई पहुंचाते हैं और सारा इंतजाम करते हैं। वह करीब-करीब मृत है। मैं उनके घर देखने गया। उस स्त्री की मां से मैंने पूछा कि यह तो मर गई। उन्होंने कहाः नहीं, अभी कहां मर गई। जब तक श्वास है तब तक आशा है। अभी उसकी श्वास चल रही है। और सब तरह से मर गई परंतु श्वास चल रही है। तो जीवन से एक संबंध तो है। उस बूढ़ी औरत ने कहा कि डाक्टरों का क्या भरोसा है। जिसको वे कहते हैं कि वह जीएगा तो वह मर जाता है और जिसको वे कहते हैं कि मीन साल में मर ही जाएगा, कुछ पक्का नहीं, बच सकता है।
जीवन में श्वास हमारा संबंध है। और शायद इस बात पर कभी खयाल न किया होगा कि मन का जरा सा परिवर्तन भी श्वास पर शीघ्रता से प्रतिफलित होता है। आप क्रोध में हों तो श्वास और तरह से चलती है, आप शांत हैं तो और तरह से चलती है, आप बेचैन हैं तो और तरह से चलती है, आप कामवासना से भरे हैं तो श्वास और तरह से चलती है। श्वास पूरे समय मन की खबरें देती रहती है। जो श्वास की पूरी प्रक्रिया को समझते हैं वे आपकी श्वास को देख कर कह सकते हैं कि आप भीतर कहां होंगे, क्या कर रहे होंगे। अगर आदमी की श्वास समझी जा सके तो आदमी के भीतर का सब कुछ समझा जा सकता है।
ध्यान में तो श्वास बहुत कीमती है, सर्वाधिक कीमती। क्योंकि ज्यों-ज्यों आप लीन होंगे विराट में वैसे-वैसे श्वास रूपांतरित होगी। इससे उलटा भी होगा, अगर श्वास रूपांतरित हो तो आप विराट में लीन होना शुरू हो जाएंगे। जैसे अगर कोई आप से कहे कि श्वास शांत रखो और क्रोध करो, तो आप बहुत मुश्किल में पड़ जाएंगे। श्वास शांत रख कर क्रोध करना असंभव है। एकदम असंभव है। श्वास में रूपांतरण अनिवार्य है।
इसलिए आप छोटे सा प्रयोग करके कभी देख लें। जब भी क्रोध आए तो क्रोध की फिकर मत करना और श्वास को धीमा करना और तब आप अचानक पाएंगे कि क्रोध असंभव हो गया। श्वास धीमी हो तो क्रोध असंभव हो जाएगा। क्रोध असंभव हो रहा हो तो श्वास धीमी होती चली जाएगी।
अगर बुद्ध और महावीर की मूर्तियां देखें, तो क्या ऐसा नहीं लगता कि ये लोग श्वास ले रहे हों। श्वास ठहरी हुई मालूम पड़ती है। वह रुक गई। मूर्तियों की वजह से ऐसा नहीं है। मन पूरी तरह शांत होगा भीतर सारे उपद्रव मन के लीन हो जाएंगे और व्यक्ति विराट के साथ एक होगा। तो श्वास आमूल रूपांतरित होती है।
हम श्वास से ही शुरू करेंगे। दो-तीन छोटी सी बातें समझ लें फिर बीच-बीच में मैं सुझाव दूंगा। और आप समझते रहेंगे। पहली बात यह कि ध्यान में आंख बंद करके बैठेेंगे लेकिन आंख ऐसे बंद नहीं करनी है कि आंख पर दबाव पड़े। आंख को ढीला छोड़ देना है और आंख अपने से बंद हो जाए। इसलिए आंख बंद न करेंगे सिर्फ छोड़ देंगे ताकि आंख बंद हो जाए। आंख पर दबाव जरा भी न हो क्योंकि आंख हमारे मस्तिष्क का सर्वाधिक संवेदनशील हिस्सा है। अगर आंख पर जरा भी दबाव है तो भीतर के मस्तिष्क के शांत होने में बड़ी कठिनाई होगी। तो सबसे पहले तो आंख की पलकों को धीरे से छोड़ दें और ऐसा खयाल करें कि आंख बंद हो रही है, आप कर नहीं रहे हैं और आंख की पलक को छोड़ें। पलक को धीरे से छोड़ दें और आंख को बंद हो जाने दें, आंख को बंद हो जाने दें, बंद न करें। बस आंख की पलक को ढीला छोड़ दें और आंख को बंद हो जाने दें। छोड़ दें, आंख को बंद हो जाने दें। जैसे ही आंख बंद हो जाए और ध्यान रहे कि यहां एक व्यक्ति भी खुली आंख से नहीं बैठेगा।
 यहां इसलिए आए हैं कि इस प्रयोग को करना है अन्यथा नहीं आना चाहिए। सो कोई भी व्यक्ति खुली आंख से नहीं बैठेगा। आंख चुपचाप बंद कर दें। ढीला छोड दें आंख खुद-ब-खुद बंद हो जाने दें और फिर बीच-बीच में भी आपको आंख खोल कर देखने की जरूरत नहीं है क्योंकि देखने हम भीतर जा रहे हैं और भीतर आंख के खुले होने की कोई जरूरत नहीं। आंख को बंद कर लें ढीला छोड़ दे और शरीर को भी शिथिल कर लें ताकि शरीर से आपको कोई बाधा न रहे, कोई स्ट्रेन न रहे। किसी को लेटना हो तो पहले ही लेट सकता है। शरीर को भी ढीला छोड़ दें। आंख बंद कर ली है, शरीर ढीला छोड़ दिया है। जिसने लेटना हो वह चुपचाप लेट जाएं। अब ध्यान श्वास पर ले जाए। भीतर देखें श्वास जा रही है आ रही है। श्वास को देखें। जैसे ही श्वास को देखना शुरू करेंगे वैसे ही उस जगह खड़े हो जाएंगे उस द्वार पर जहां से घर खुलता है।
 श्वास को देखना शुरू करें। यह श्वास भीतर गई। बहुत बारीक सी है, गौर से देखेंगे भीतर तो दिखाई पड़ने लगेगी। दिखाई पड़ने लगेगी मतलब अनुभव होने लगेगा कि श्वास भीतर जा रही है, श्वास बाहर जा रही है। अगर किसी को अनुभव न हो रहा हो, फीलिंग न हो रही हो तो थोड़ी सी गहरी श्वास लें ताकि उन्हें फीलिंग साफ मालूम पड़ने लगे। थोड़ी सी धीमी व गहरी श्वास लेकर देख लें ताकि पता चल जाए यह रही श्वास। यह श्वास भीतर आ रही है, श्वास बाहर जा रही है, श्वास भीतर आ रही है, श्वास बाहर जा रही है। देखें भीतर अनुभव करें श्वास भीतर जा रही है, श्वास बाहर जा रही है। थोड़ा सा श्वास गहरा लें ताकि साफ-साफ खयाल में आ जाए। थोड़ी गहरी श्वास लें। दस मिनट तक गहरी श्वास लेते रहें और देखते रहें, श्वास भीतर आ रही है, श्वास बाहर जा रही है। बस एक ही काम खयाल में रह जाए कि मैं श्वास को देख रहा हूं। श्वास को बिना देखे भीतर न जाने दूंगा, बिना देखे बाहर न जाने दूंगा। मैं श्वास को जानता रहूंगा, पहचानता रहूंगा, देखता रहूंगा। श्वास को देखते-देखते ही मन शांत होना शुरू हो जाएगा। एक दस मिनट श्वास को देखते रहें। मैं चुप हो जाता हूं...
गहरी श्वास लें। श्वास भीतर जाएगी तो अनुभव करें कि भीतर जा रही है व श्वास बाहर जाएगी तो अनुभव करें बाहर जा रही है। बस श्वास रह जाए--आप रह जाएं एक दृष्टा की भांति जो देख रहा है श्वास के आने को व जाने को। देख रहा है। श्वास भीतर आ रही है, श्वास बाहर जा रही है; श्वास भीतर आ रही है, श्वास बाहर जा रही है--सिर्फ देखते रहें, देखते रहें, देखते रहें और मन शांत होता जाएगा, शांत होता जाएगा, शांत होता जाएगा...दस मिनट श्वास को देखते रहें। किसी को भी इस बीच लगे कि लेट जाना है तो चुपचाप लेट जाए। शरीर कंपने लगे तो रोकें नहीं कंपने दें। आंख से आंसू बहने लगें तो रोकें नहीं बहने दें। जो भी हो रहा हो उसे होने दें और आप एक ही काम करें कि श्वास को देखते रहें। फिर दस मिनट बाद मैं दूसरी सूचना आप को दूंगा। दस मिनट तक आप श्वास को देखने में लीन हो जाएं। यह श्वास आ रही है, यह श्वास जा रही है और मैं सिर्फ दृष्टा की भांति श्वास को देख रहा हूं।
गहरी श्वास लेते रहें, गहरी श्वास लें और देखते रहें। आंख बंद रखें, गहरी श्वास लें और देखते रहें कि श्वास भीतर आ रही है, श्वास बाहर जा रही है। श्वास को देखते रहें। देखते-देखते ही मन बिलकुल शांत हो जाएगा। गहरी श्वास लें, आंख बंद रखें और देखें भीतर, श्वास बाहर जा रही है, श्वास भीतर आ रही है श्वास भीतर आ रही है, श्वास बाहर जा रही है। श्वास देखते रहें, श्वास देखते-देखते ही मन शांत हो जाता है। मैं सिर्फ श्वास को देखने वाला हूं और मैं सिर्फ श्वास को देख रहा हूं। अब मैं कुछ सुझाव देता हूं मेरे साथ अनुभव करें, वैसा ही होता चला जाएगा और धीरे-धीरे भीतर गहराई में उतर जाएंगे। जो लोग नये आए हैैं वे भी आंख बंद कर लें, गहरी श्वास लें और श्वास को देखते रहें श्वास बाहर जा रही है व श्वास भीतर आ रही है।
अब मैं सुझाव देता हूं ठीक मेरे साथ अनुभव करें। बहुत शीघ्र वह जो विराट हमारे चारों ओर उपस्थित है उसमें हम लीन हो जाएंगे। सबसे पहले शरीर को ढीला छोड़ दें। श्वास जारी रहेगी और श्वास को देखते रहें साथ में शरीर को ढीला छोड़ें। मेरे साथ अनुभव करें कि शरीर शिथिल हो रहा है, शरीर शिथिल हो रहा है, बिलकुल ढीला छोड़ दें जैसे मिट्टी हो। अपने आप शरीर गिर जाए तो रोकें नहीं, गिर जाने दें। शरीर शिथिल हो रहा है। शरीर शिथिल हो रहा है, शरीर शिथिल हो रहा है, शरीर शिथिल हो रहा है। भीतर श्वास को गहरा लेते रहें और देखते रहें श्वास आ रही है, श्वास जा रही है और साथ ही अनुभव करे कि शरीर शिथिल हो रहा है, शरीर शिथिल हो रहा है, शरीर शिथिल हो रहा है। बिलकुल छोड़ दें, गिरे तो गिर जाए, आगे झुके तो झुक जाए, जो होना है वह हो जाए पर शरीर को ढीला छोड़ दें। शरीर शिथिल हो रहा है, शरीर शिथिल हो रहा है, शरीर शिथिल हो रहा है। बिलकुल शिथिल होता जा रहा है। श्वास भीतर आ रही है, बाहर जा रही है। श्वास पर ध्यान रहे और शरीर को ढीला छोड़ दे। एक-एक शरीर का अंग इस तरह से ढीला छोड़ दे कि शरीर जैसे है ही है। जो मन में हो रहा है उसकी चिंता न लें। मैं देख रहा हूं कि कोई रोक रहा है, कोई सम्हाल रहा है, उसे सम्हलने न दें। चाहे वह झुकता हो झुक जाने दें, गिरता हो गिर जाने दें, शरीर को बिलकुल ढीला छोड़ दें। दस मिनट के लिए फिर श्वास को देखते रहें और शरीर को ढीला छोड़ दें। शरीर शिथिल हो रहा है, शरीर शिथिल हो रहा है, शरीर शिथिल हो रहा है। शरीर बिलकुल शिथिल होता जा रहा है जैसे कोई प्राण ही न हो। शरीर शिथिल हो रहा है छोड दें। हिले, कंपन आए, शरीर गिर जाए कोई रुकावट न डाले अपनी तरफ से। शरीर शिथिल हो रहा है, शरीर शिथिल हो रहा है जैसे बिलकुल प्राण ही न हो। आप चुपचाप श्वास को देखते रहे। जिसका भी लेटने को मन हो चुपचाप लेट जाए, बैठे न रहे लेट जाए। शरीर को बिलकुल ढीला छोड दे कोई बाधा न डाले। हमें खो देना है अपने को तो शरीर को रोकना नही। श्वास को देखते रहें और शरीर को ढीला छोड़ दे। शरीर बिलकुल निष्प्राण हो गया जैसे है ही नहीं और शरीर की तरफ से पकड़ छोड़ते ही मन बहुत गहराई मे चला जाएगा। शरीर की पकड़ छूटी की मन गहरा गया। शरीर को बिलकुल डीला छोड़ दे ताकि गहरे उतर सके। शरीर छूटा मन से कि गहराई आई। छोड़ दें, कोई रोके नहीं। शरीर को जरा भी न रोकें। शरीर शिथिल हो रहा है, शरीर शिथिल हो रहा है, शरीर शिथिल हो रहा है। शरीर बिलकुल शिथिल हो गया। श्वास पर ध्यान रखे और शरीर को निष्प्राण छोड़ दें। श्वास भीतर आ रही है, श्वास भीतर आ रही है, श्वास बाहर जा रही है, बस श्वास ही रह गई हे शरीर से पकड़ छोड़ दें। श्वास पर ध्यान रहे शरीर शिथिल हो गया है। श्वास को देखते रहे, देखते रहे, देखते रहे और शरीर को ढीला छोड़ दें। शरीर शिथिल हो गया। उसे छोड़ दें ताकि मैं तीसरा प्रयोग आपसे कहूं।
शरीर को बिलकुल ढीला छोड़ दें, क्योंकि तीसरे प्रयोग में वे ही जा सकेंगे जो शरीर से पकड़ छोड़ देंगे। शरीर छूट गया है। शरीर बिलकुल ढीला छूट गया है। जो वह झुकता हो झुक जाए, गिरता हो गिर जाए, आप अपनी तरफ से शरीर को न सम्हाले। शरीर शिथिल हो गया है। एक-दो मिनट में बिलकुल ढीला छोड़ दें ताकि तीसरे प्रयोग में प्रवेश कर सकें। शरीर शिथिल हो गया है और श्वास भीतर व बाहर दिखाई पड़ रही है, अनुभव हो रही है। अब में तीसरा प्रयोग कहता हूं। आंख बंद रखें, श्वास देखते रहें। यह ध्यान का गहरा प्रयोग है। तीसरे प्रयोग को भीतर में शुरू करें। श्वास दिखाई पड़ रही है कि भीतर आ रही है जा रही है, शरीर शिथिल छोड़ दिया है। ओंठ बिलकुल बंद रहे व जीभ तालु से लग जाए। भीतर वहन कर लें कि होठ बंद हो गए है व जीभ तालु से लग गई है, शरीर शिथिल है, श्वास देखी जा रही है। अब प्रयोग श्वास को देखते हुए ही साथ में मन में पूछने लगे कि मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? श्वास को देखते रहे, श्वास का देखना जारी रहे और भीतर तीव्रता से पूछे मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? भीतर मन में ही तीव्रता से पूछे मैं कौन हूं? इतनी तेजी से पूछे की दो पूछने के बीच जगह न रह जाए मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? अपने भीतर पूरी शक्ति लगा दें और पूछे मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? श्वास दिखाई पड़ती रहें और पूछे भी तो मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? एक तूफान भीतर उठ जाए मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? इतने जोर से जैसे किसी बंद दरवाजे पर आई ठोकरें कि मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? इतने जोर से कि प्राण की पूरी शक्ति भीतर लग जाए पूछने में कि मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?
एक दस मिनट के लिए तीव्रता से भीतर पूछे कि मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? सारा शरीर कंप जाएगा, प्राण कंप जाएगा, श्वास कंप जाएगी जब भीतर पूछेगें मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? सारी शक्ति लगा दें यह पूछने में कि मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? श्वास का देखना जारी रहे। श्वास दिखाई पड़ रही है, अंदर आ रही है, बाहर जा रही है औैर साथ ही प्रत्येक श्वास के पूछते रहें--मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? दूसरें में कोई रुचि न लें केवल अपनी फिकर करें। आंख बंद रखें और कहें--मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? एक दस मिनट इतनी तेजी से कि पसीना-पसीना हो जाए। सारी ताकत लगा दें। इसके बाद अदभुत शांति में प्रवेश हो जाएगा। दस मिनट आप पूछे मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? पूरी, शक्ति से पूछना है मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? जोर से पूछे। पूरी तरह से अपने को थका डाले। जितना पूछ सकते है उतना पूछ लें ताकि पीछे सब शांत हो जाए। मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? एक पांच मिनट पूरी शक्ति से भीतर पूछेें--मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? इतनी शक्ति से जिससे तूफान उठ जाए। फिर सब छोड़ देंगे और फिर शांत रह जाएंगे। जितने तूफान में जितनी आंधी में मन जाएगा उतनी ही गहरी शांति भी उपलब्ध होगी। मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? श्वास को देखते रहे। मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? आखिरी ताकत लगा दें।
मैं कौन हूं? यह प्राणी के पोर-पोर में गूंजने लगे। यह रोम-रोम में गूंजने लगे कि मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? आखिरी दो मिनट मैं कौन हूं? में पूरी शक्ति लगा दें। फिर दस मिनट के लिए हम बिना कुछ किए पड़े रह जाएंगे। फिर श्वास देखेंगे, न फिर पूछेगे बस फिर रह जाएंगे। जो है उसके साथ फिर पड़े रह जाएंगे। तो आखिर में जितनी तेजी से पूछेगे उतनी ही गहरी शुन्य से उतर जाएंगे। मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? आखिरी दो मिनटों में अपनी पूरी शक्ति भीतर लगा दें। पूरी चर्म ताकत से पूछे मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? और जब मैं कहूंगा की छोड़ कर शांत हो जाए तो फिर सब छोड़ देंगे श्वास भी, पूछना भी, देखना भी, फिर सिर्फ रह जाएंगे, जस्ट ब्लेंक अंतिम एक मिनट जोर से पूछे मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?
छोड़ दें...देखना भी व सुनना भी, सब छोड़ दें...दस मिनट के लिए कुछ भी न करें, बस रह जाएं। पक्षियों की आवाज सुनाई पड़ेंगी, सागर की लहरों की आवाज सुनाई पड़ेेंगी, हवाएं पत्तों को हिलाएंगी। चारों तरफ जो हो रहा है उसमें डूब कर रह जाएं, उसके साथ एक हो जाए। यह पक्षियों की आवाज अलग न रहे, यह सागर की गर्जन अलग न रहे, सूरज की धूप अलग न रहे, अब दस मिनट के लिए कुछ भी न करें, बस इस विस्तार में डूब कर रह जाएं और मन परम गहराइयों को छुएगा, बहुत शांति में उतर जाएगा। अब दस मिनट बिलकुल डूब जाएं, कुछ न करें और जो है उसके साथ एक रह जाएं।
अब धीरे-धीरे आंख खोल लें...आंख न खुले तो दोनों हाथ आंख पर रख लें और फिर धीरे-धीरे आंख खोलें। जो लोग गिर गए हैं या लेट गए हैं वे धीरे-धीरे उठें। अगर उठना न बने तो उठने से पहले दो-चार गहरी श्वास लें फिर आहिस्ता-आहिस्ता उठें। झटके से कोई भी न उठे। लेकिन अगर बिलकुल उठते न बनें तो पड़े रहें, गहरी श्वास लें और फिर धीरे-धीरे उठें। जिससे उठते न बनें वे पहले गहरी श्वास लें और फिर आहिस्ता से उठें।
कल दो-तीन बात आने के पहले खयाल कर लें। एक तो स्नान करके आएं। और आठ बजने में पांच मिनट पहले सब लोग पहुंच जाएं। और पीछे कोई भी न आए। आठ बजे दरवाजा बंद कर दिया जाएगा। तो आठ के पीछे जो लोग आते हैं उनको समझ में नहीं आता कि क्या हो रहा है। फिर वे बैठे रहते हैं, इधर-उधर देखते हैं कि कोई बात करेगा। आठ बजने में पांच मिनट पहले सारे लोग आ जाएं। जो पहले आ जाएं वे चुपचाप आंख बंद करके प्रयोग जारी कर दें। ठीक आठ बजे आकर मैं प्रयोग जारी करवाऊंगा। घर से ही चुप होकर चलें ताकि यहां आते-आते तक मन शांत हो जाए। पर यहां आकर तो बात बिलकुल न करें और किसी भी को कोई भीतरी अनुभव हो, भीतरी प्रश्न उठे तो वह दोपहर तीन से चार आकर मिलें, परंतु बौद्धिक चर्चा के लिए नहीं। ध्यान में जिसको भीतर कुछ भी प्रतीत हो, कुछ नया अनुभव हो, कुछ समझ में न पड़े वह तीन से चार के बीच आकर मेरें पास बात कर ले, अकेला चुपचाप। अगर किसी को भी कोई अनुभव हो तो कृपया करके दूसरे से बात न करें अन्यथा अनुभव को नुकसान पहुंचता है। अगर आपको कुछ भी पता चला, कुछ भी एहसास हो, भीतर कोई शक्ति सक्रिय हो, कोई चक्र चलता मालूम पड़े, कोई प्रतिती हो तो दूसरे से बात न करे। सीधा मुझसे तीन-चार के बीच में आकर बात कर लें। रात सोते समय बिस्तर पर प्रयोग को करें और करते-करते ही सो जाए ताकि जब सुबह कल आप यहां आए तो मन पूरी तरह से तैयार हो। इन चार-पांच दिनों में गहरी यात्रा की जा सकती है और ध्यान रखें कि यहां कोई दर्शक की हैसियत से न आए। दो-चार मित्र ऐसे आते हुए मालूम होते है जो इस फिकर में है कि किसको क्या हो रहा है। यहां तो सिर्फ वही लोग आएं जो इस फिकर में हों कि उनको क्या हो सकता है। दूसरे से जिनका कोई लेना-देना नहीं। दर्शक की हैसियत से यहां कोई भी न आएं। क्योंकि ध्यान के संबंध में बाहर से देख कर कुछ भी नहीं जाना जा सकता।
अगर कोई एक व्यक्ति रोने लगे, तो आप उसको देख कर कुछ भी नहीं जान सकते कि उसके भीतर क्या हो रहा है। और अगर उसको देख कर आप कुछ भी सोचें तो गलत होगा। उसके भीतर जो कुछ हो रहा है वह वही जान सकता है आप नहीं जान सकते हैं। और आप को पता भी नही कि एक व्यक्ति रो ले, तो उसके भीतर के कितने भार कट सकते हैं, इसका आपको पता नहीं। कोई व्यक्ति गिर पड़ा है, आप नहीं जान सकते कि उसके भीतर क्या हो रहा है। कोई व्यक्ति चक्कर खा रहा है उसके शरीर, उसके भीतर क्या हो रहा है आप नहीं जान सकते हैं। इसलिए आप दूसरे के संबंध में विचार ही न करें और दूसरे से आपनी बात भी मत कहें क्योंकि जो नहीं जानते है वे आपको पागल ही कहेंगे कि यह सब हो रहा है यह पागलपन है। जो भी कुछ आप को प्रतीत हो तीन-चार के बीच मेरे पास आ जाए और मुझसे बात कर ले। और अच्छा तो यह हो कि चार दिन प्रयोग कर लें जो कुछ भी हो वक्त में आप ही रूपांतरित हो जाएगा, हल हो जाएगा।
फिर भी कोई प्रश्न हो तो वे लिख कर दे देंगे, तो मैं कल सुबह बात कर लूंगा।

हमारी सुबह की बैठक पूरी हुई।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें