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सोमवार, 22 अक्तूबर 2018

मिट्टी के दीये-(कथा-10)

बोधकथा-दसवी 

प्रेम शक्ति है, और जो प्रेम से जीतता है, वही वस्तुतः जीतता है।
प्रेम जहां है, वहां परमात्मा है, क्योंकि प्रेम परमात्मा की उपस्थिति का प्रकाश है।
स्मरण रहे कि जब भी तुम्हारा मन क्रोध से भरता है, घृणा से भरता है, तभी तुम अशक्त हो जाते हो और परमात्मा से तुम्हारे संबंध क्षीण हो जाते हैं।
इसीलिए ही तो क्रोध में, घृणा में, द्वेष में दुख और संताप पैदा होते हैं, संताप की मनोदशा सर्व की सत्ता से स्वयं की जडों के पृथक होने से पैदा होती है।
प्रेम आनंद से भर देता है, शांति संगीत से और करुणा ऐसी सुगंधियों से जो इस पृथ्वी की नहीं हैं।
क्यों?

क्योंकि, उनमें होकर तुम सर्वात्मा के निकट हो जाते हो, क्योंकि उनमें होकर तुम परमात्मा के हृदय में स्थान पा जाते हो, क्योंकि उनमें होकर तुम तुम नहीं रहते, वरन परमात्मा ही तुमसे प्रकट होने लगता है।


इसीलिए मैं कहता हूं कि जीवन में जो अखंड और अटूट प्रेम को पा लेता है, वह सब पा लेता है।
एक घटना मुझे स्मरण आती है। मोहम्मद अपने शिष्य अली के साथ किसी मार्ग से गुजर रहे थे। अली के एक शत्रु ने आकर उसे रोक लिया और उसका अपमान करने लगा। अली ने शांति से उसके दुर्वचन सुने। उसकी आंखों में प्रेम और प्रार्थना मालूम होती थी। वह शत्रु की विषाक्त बातों को ऐसे सुनता रहा जैसे वह उसकी प्रशंसा करता हो। उसका धैर्य अदभुत था, लेकिन अंततः उसने भी धैर्य खो दिया और वह शत्रु के तल पर नीचे उतर आया और ईंट का जवाब पत्थर से देने लगा। धीरे-धीरे उसकी आंखें क्रोध से भर गईं और उसके हृदय में घृणा और प्रतिशोध के बादल गरजने लगे। उसका हाथ तलवार पर जा चुका था। मोहम्मद अब तक शांति से बैठे सब देख रहे थे। अचानक वे उठे और अली तथा उसके शत्रु को वहीं छोड कर एक ओर चले गए। इससे अली को बहुत आश्चर्य हुआ और मोहम्मद के प्रति मन में शिकायत भी आई। बाद में जब मोहम्मद मिले तो उसने उनसे कहाः ‘‘आपका यह कैसा व्यवहार? शत्रु मुझे रोके हुए था और आप मुझे बीच में छोड कर चले आए! क्या यह मृत्यु के मुंह में ही छोड आने जैसा नहीं है? ’’ मोहम्मद ने कहाः ‘‘प्यारे! वह मनुष्य निश्चित ही बहुत हिंसक और क्रूर था और उसके भी बहुत क्रोध से भरे हुए थे, लेकिन मैं तुझे शांत और प्रेम से भरा देख कर बहुत आनंदित था। उस समय मैंने देखा कि परमात्मा के दस दूत तेरी रक्षा कर रहे थे और उनके शुभाशीषों की तेरे ऊपर वर्षा हो रही थी। प्रेम और क्षमा के कारण तू सुरक्षित था। लेकिन, जैसे ही तेरा हृदय करुणा को छोड कर कठोर हुआ और तेरी आंखें प्रतिशोध की लपटें प्रकट करने लगीं, वैसे ही मैंने देखा कि वे देवदूत तुझे छोड कर चले गए हैं। उस समय उचित ही था कि मैं भी वहां से हट जाऊं। परमात्मा ने ही तेरा साथ छोड दिया था।’’

ओशो

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