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सोमवार, 22 अक्तूबर 2018

मिट्टी के दीये-(कथा-15)

बोधकथा--पंद्रहवी 

एक बुढ़िया बहुत बीमार थी। घर में वह अकेली थी इसलिए बहुत कठिनाई में पडी थी। एक दिन सुबह-सुबह ही दो अत्यंत भद्र और धार्मिक दिखने वाली महिलाएं उसके पास आईं। उनके माथों पर चंदन था और हाथों में रुद्राक्ष की मालाएं। उन्होंने आकर उस बुढ़िया की सेवा शुरू कर दी और कहाः ‘‘परमात्मा की प्रार्थना से सब ठीक हो जाएगा। विश्वास शक्ति है और विश्वास कभी निष्फल नहीं जाता है।’’ उस सीधी बुढ़िया ने उनकी बातों पर विश्वास कर लिया। वह अकेली थी और अकेला व्यक्ति किसी पर विश्वास करना चाहता है। वह पीडा में थी और पीडा में मनुष्य का मन सहज ही विश्वासी हो जाता है। उन अपरिचित महिलाओं ने दिन भर उसकी सेवा की। सेवा और दिन भर की धार्मिक बातों के कारण बुढ़िया का विश्वास और भी बढ गया।

फिर रात्रि में उन महिलाओं के निर्देशानुसार वह एक चादर ओ.ढ कर भूमि पर लेटी, ताकि उसके स्वास्थ्य के लिए परमात्मा से प्रार्थना की जा सके। धूप जलाई गई। सुगंध छिडकी गई। एक महिला उसके सिर पर हाथ रख कर अबूझ मंत्रों का उच्चार करने लगी, और फिर मंत्रों की एक सुरीली ध्वनि दे बुढ़िया को थोडी ही देर में सुला दिया। आधी रात को उसकी नींद खुली।
घर में अंधकार था। उसने दीया जलाया तो पाया कि वे अपरिचित महिलाएं न मालूम कब की चली गई हैं। घर के द्वार खुले पडे हैं और उसकी तिजोरी भी टूटी पडी है। विश्वास अवश्य ही फलदायी हुआ था। बुढ़िया को तो नहीं, लेकिन उन धूर्त महिलाओं को। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि विश्वास सदा ही धूर्तों को फलदायी हुआ है।
धर्म विश्वास नहीं, विवेक है। वह अंधापन नहीं, आंखों का उपचार है।
किंतु शोषण के लिए विवेक बाधा है और इसीलिए विश्वास का विष पिलाया जाता है।
विचार विद्रोह है और चूंकि विद्रोही का शोषण असंभव है, इसीलिए विश्वास की शिक्षा दी जाती है।
विचार व्यक्ति को मुक्त करता है, उसे व्यक्ति बनाता है। लेकिन शोषण के लिए तो भेडें चाहिए, भीड का अनुगमन करनेवाले दुर्बल चित्त व्यक्ति चाहिए। इसीलिए विचार की हत्या की जाती है और विश्वास पाला-पोसा जाता है।
मनुष्य असहाय है, इसीलिए असहायावस्था में, अकेलेपन में, विश्वास के लिए तैयार हो जाता है।
जीवन दुख है, इसीलिए दुख से पलायन करने के लिए किसी भी विश्वास और आस्था के प्रति शरणागत हो जाता है।
यह स्थिति शोषकों के लिए, स्वार्थियों के लिए निश्चय ही स्वर्ण-अवसर बन जाती है। धर्म धूर्तों के हाथों में है, इसीलिए ही तो जगत में अधर्म है। धर्म की जब तक विश्वास से मुक्ति नहीं होगी, तब तक वास्तविक धर्म का जन्म नहीं हो सकता है।
धर्म जब विवेक की अग्नि से संयुक्त होता है, तब उससे स्वतंत्रता, सत्य और शक्ति का उदभव होता है। धर्म शक्ति है, क्योंकि विचार शक्ति है। धर्म प्रकाश है, क्योंकि प्रज्ञा प्रकाश है। धर्म मुक्ति है, क्योंकि विवेक मुक्ति है।

ओशो 

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