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शनिवार, 27 अक्तूबर 2018

मिट्टी के दीये-(कथा-51)

बोधकथा-इक्यावनवी 

जीवन क्या है?
एक पवित्र यज्ञ। लेकिन उन्हीं के लिए जो सत्य के लिए स्वयं की आहुति देने को तैयार होते हैं।
जीवन क्या है?
एक अमूल्य अवसर। लेकिन उन्हीं के लिए जो साहस, संकल्प और श्रम करते हैं।
जीवन क्या है?
एक वरदान देती चुनौती। लेकिन उन्हीं के लिए जो उसे स्वीकारते हैं, और उसका सामना करते हैं।
जीवन क्या है?

एक महान सषंर्घ। लेकिन उन्हीं के लिए जो स्वयं की शक्ति को इकट्ठा कर विजय के लिए जूझते हैं।
जीवन क्या है?
एक भव्य जागरण। लेकिन उन्हीं के लिए जो स्वयं की निद्रा और मूच्र्छा से लडते हैं।
जीवन क्या है?

एक दिव्य गीत। लेकिन उन्हीं के लिए जिन्होंने स्वयं को परमात्मा का वाद्य बना लिया है।
अन्यथा, जीवन एक लंबी और धीमी मृत्यु के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।

जीवन वही हो जाता है, जो हम जीवन के साथ करते हैं।
जीवन मिलता नहीं, जीता जाता है।
जीवन स्वयं के द्वारा स्वयं का सतत सृजन है। वह नियति नहीं, निर्माण है।
एक विधिवेत्ता ने अपनी अति लंबी और उबानेवाली जिरह के मध्य में क्रोध से न्यायाधीश को कहाः ‘‘महानुभाव, जूरी सोए हुए हैं!’’ न्यायाधीश ने कहाः ‘‘मित्र, आपने ही उन्हें सुला दिया है। कृपा करके कुछ ऐसा कीजिए कि वे जाग सकें। मैं भी बीच में कई बार सोते-सोते बचा हूं।’’
जीवन सोया हुआ अनुभव हो तो जानना चाहिए कि हमने कुछ किया है, जिससे वह सो गया है। जीवन दुख प्रतीत हो तो जानना चाहिए कि हमने कुछ किया है, जिससे वह दुख हो गया है। जीवन तो हमारी ही प्रतिध्वनि है। वह तो हमारा ही प्रतिफलन है।

ओशो

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