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रविवार, 28 अक्तूबर 2018

मैं कौन हूं?-(प्रवचन-07)

सातवां प्रवचन--(शक्ति का तूफान)

मेरे प्रिय आत्मन्!
कल मैंने कहा कि ध्यान अक्रिया है। तो एक मित्र ने पूछा हैः वे समझ नहीं सके कि ध्यान अक्रिया कैसे है। क्योंकि जो हम करेंगे वह तो क्रिया ही होगी व अक्रिया कैसे होगी?
मनुष्य की भाषा के कारण बहुत भ्रम पैदा हो रहे हैं। हम बहुत सी अक्रियाओं को भी भाषा में क्रिया समझे हुए हैं। जैसे हम कहते, है फलां व्यक्ति ने जन्म लिया। सुनें तो ऐसा लगता है कि जैसे जन्म लेने में उसको भी कुछ करना पड़ा होगा। जन्म माने क्रिया। हम कहते है फलां व्यक्ति मर गया और ऐसा लगता है कि मरने में उसे कुछ करना पड़ा होगा। हम कहते हैं कोई सो गया तो ऐसा लगता है कि सोने में उसे कुछ करना पड़ा होगा। जन्म क्रिया नहीं है, मृत्यु क्रिया नहीं है लेकिन भाषा में वे क्रियाएं बन जाती हैं। आप भी कहते हैं कि मैं कल रात सोया लेकिन अगर कोई आप से पूछे कि कैसे सोए, सोने की क्रिया क्या है तो आप कठिनाई में पड़ जाएंगे। सोए आप बहुत, बाद में लेकिन सोने की क्रिया आप नहीं बता सकेगें कि सोए कैसे। हो सकता है कि कहीं पर तकिया लगाया, बिस्तर लगाया, कमरा अंधेरा किया लेकिन इन में से सोने की क्रिया कहीं भी नहीं है।

यह भी हो सकता है कि तकिया भी हो, बिस्तर भी हो, अंधेरा हो और नींद न आए। तकिया, बिस्तर और अंधेरा नींद नहीं। हां, उनकी उपस्थिति में नींद का आना सरल हो जाता है। लेकिन नींद का आना अलग ही बात है। और आप कभी-कभी नींद नहीं ला सकते, कहें की नींद आती है इसलिए नींद अक्रिया है। आप ला नहीं सकते, पकड़ नहीं सकते, कोशिश भर कर सकते हैं। फिर भी नींद आ सके इसके लिए तैयारी कर सकते हैं। प्रकाश में नींद आ सके इसके लिए तैयारी कर सकते हैं। प्रकाश में नींद आने में कठिनाई पड़ेगी अंधेरे में आसानी होेगी। नीचे कांटे बिछे हों तो नींद आने में कठिनाई होगी, ठीक बिस्तर हो तो आसानी होगी। लेकिन फिर भी नींद आप नहीं लाते हैं, नींद आती है। जब में कहता हूं ध्यान अक्रिया है तो मेरा मतलब यही है कि आप जो भी कर रहे हो, वह व्यायाम ध्यान की बाहरी व्यवस्था है फिर उस व्यवस्था में ध्यान आएगा आप ला नहीं सकते है। आप सिर्फ ऊपरी समझ लेना चाहिए, इंतजाम कर रहे हैं। ऊपरी इंतजाम का क्या मतलब है-यह भी समझ लेना चाहिए। इसलिए दुनिया में ध्यान की कोई विधि, कोई मेथड नहीं है। न नींद की कोई विधि है, न कोई मेथड है, रिचुअल है, क्रिया का और नींद का। एक छोटा बच्चा मुंह में अंगूठा डाल कर सो जाता है। अंगूठा बाहर खींचो और उसकी नींद पड़नी मुश्किल हो जाए। उसने भी इंतजाम कर रखा है, एसोसिएशन बना रखा है कि जब भी उसका अंगूठा मुंह में गया तो उसका मन नींद के लिए तैयार हो जाता है। अंगूठे का मुंह में जाना सिग्नल का काम करता है उसके लिए कि अब नींद आ जाएगी और कुछ भी नहीं। तकिया और बिस्तर भी सब सिग्नल का काम करते हैं और कुछ भी नहीं। इसलिए नए मकान में तकिए पर नए बिस्तर पर नींद मुश्किल हो जाती है। थोड़ा सा भेद हो गया है। छोटे कमरों में सोने वाला आदमी बड़े कमरों में सोने में थोड़ी अड़चन कर रहा है। मन कहता है कि यह वह जगह नहीं जहां रोज नींद आती थी। थोड़ी बाधा डालता है। तो ऊपरी इंतजाम का मतलब है कि मन बाधा न डाले ऐसी व्यवस्था कर लें। अब जैसे यहां जो भी हम करेंगे वह ध्यान नहीं है, व्यवस्था है अब ध्यान आएगा। हम सब इतना ही करेंगे कि हमारी तरफ से ध्यान में जो बाधाएं उपस्थित होती हैं वे हम अलग कर देंगे और फिर कुछ न करेंगे। सुबह सूरज निकला है। आप दरवाजा बंद कर के बैठे हैं। सूरज भीतर नहीं आ रहा है। आप मुझसे पूछते हैं कि हम सूरज को भीतर लाने के लिए क्या करें? टोकरियों में सूरज की रोशनी भर लाएं, गठरियों में बांध लें, मजदूर लगा लें, क्या करें? सूरज की रोशनी को भीतर लाना है। मैं आपसे कहता हूं कि आप न ला सकेंगे। सूरज की रोशनी भीतर आ सकती है लाई नहीं जा सकती। उसको क्रिया नहीं बना सकते हैं। आप कृपा करके इतना ही करें कि सूरज की रोशनी में जो बाधा पड़ गई दरवाजा बंद होने की उतना दरवाजा भर खोल दें। वह क्रिया है। दरवाजा खोलना क्रिया है कि सूरज आएगा। हालांकि आप मेरे से कह सकते हैं कि आज मैं दरवाजा खोल कर सूरज को भीतर ले आया, लेकिन आप गलत कह रहे हैं। आपने सिर्फ दरवाजा खोला व आने का काम सूरज ने किया आपने नहीं, लेकिन दरवाजा न खोलते तो सूरज को रोकने का काम आप करते।
इसका मतलब ध्यान को हम रोक सकते हैं, ला नहीं सकते, और हम सब मिलकर ध्यान को रोक रहे हैं। तो जब मैं कहता हूं कि यह व्यवस्था करना तो उसका मतलब है कि ध्यान को रोकने का आपका जो इंतजाम है, कृपा करके उसको हटा दें, ध्यान आ जाएगा दरवाजा खोल दें, सूरज आ जाएगा। और जिस दिन ध्यान आएगा उस दिन हम जाकर किसी से कह न सकेंगे कि मुझे ध्यान नहीं आया। उस दिन हम कहेंगे प्रभु की कृपा। जिसको मिलेगा वह यह नहीं कह सकेगा कि मैंने पा लिया, वह कहेगा, उसका प्रसाद, वह कहेगा, उसकी ग्रेस और अगर परमात्मा को नहीं मानता तो वह कहेगा कि मुझे कुछ पता नहीं कि कहां से आ गया। अनजान अज्ञात से आगमन हुआ, मेरा कोई हाथ नहीं। जिसको मिलेगा वह यह न कह सकेगा कि मैंने पा लिया क्योंकि उसे साफ दिखाई पड़ेगा कि मैंने तो पाने की बहुत कोशिश की, मैं न पा सका। इसलिए जिन्होंने पाया है वे उतना ही कहेंगे कि हम बाधा न बने बस। जिस दिन बुद्ध को ज्ञान मिला तो किसी ने पूछा कि आपने कैसे पाया। तो बुद्ध ने कहा जब तक पाने की कोशिश की तब तक तो नहीं पाया। जिस दिन भाग-दौड़ छोड़ दी और अपनी तरफ से जो हमने दीवारें उठाई थीं वह गिरा दीं। वह मिला ही हुआ था, वह द्वार पर ही खड़ा था लेकिन द्वार बंद थे।
तो आप द्वार बंद कर सकते हैं, खोल सकते हैं लेकिन प्रकाश को ला नहीं सकते, प्रकाश आएगा। तो जब मैंने कहा कि ध्यान अक्रिया है तो मेरा मतलब है आपकी क्रिया नहीं है। लेकिन आप इससे यह मत सोच लेना कि आपको कुछ भी नहीं करना दरवाजा तो खोलना ही है, बिस्तर तो लगाना ही है, तकिया तो लगाना ही है, अंधेरा तो करना ही है। नींद आएगी तो उसके लिए पूर्ण भूमिका भी बनानी जरूरी है। कभी-कभी बिना पूर्व भूमिका के भी आती है। अगर बहुत थक गए हों, बहुत दिन सोने को न मिला हो, तो पत्थर पर भी आती है, भरी दोपहर में भी आती है, तकिए की भी जरूरत नहीं पड़ती। रात की भी आवश्यकता नहीं रहती, शांति की भी जरूरत नहीं रहती, बाजार में भी आ सकती है, सड़क के रास्ते पर भी आ सकती है और कभी आ गई लेकिन इतना थका होना जरूरी है और इतना कोई थका हुआ है नहीं। परमात्मा की, सत्य की इतनी प्यास हो जाए, इतने थक गए हो, इतने दौड़े हों, इतना चाहा हो, इतना खोजा हो, तो ध्यान बिना किसी इंतजाम के भी आता है। इसलिए जब किन्हीं को बिना इंतजाम के आ जाता है तो दूसरों से कहते हैं कि इंतजाम की कोई जरूरत नहीं। लेकिन इतने इंतजाम की जरूरत है। फिर भी यह इंतजाम ध्यान का नहीं है यह फर्क समझ लेने का है, यह सिर्फ पूर्व भूमिका है जिसमें आ सके इसके लिए हम द्वार खोल देते हैं।
इस पूर्व भूमिका के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण जो सूत्र है वह मैं आपको कह दूं क्योंकि प्रयोग कहने से नहीं, प्रयोग करने से ही समझ में आ सकता है। कई बार जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण है ध्यान में प्रवेश के लिए वह श्वास है, श्वास है द्वार। जीवन की समस्त महत्वपूर्ण चीजों का द्वार श्वास है। श्वास के ही मार्ग से जन्म आता है, श्वास के ही मार्ग से मृत्यु आती है, श्वास के ही मार्ग से ध्यान आता है, श्वास के ही मार्ग से परमात्मा आता है। श्वास जो है वह मार्ग है। श्वास से ही संबंधित होकर जीवन प्रकट होता है और श्वास से ही विछिन्न होकर जीवन अप्रकट होता है। ये पौधे भी श्वास ले रहे हैं, यह सागर भी श्वास ले रहा है, और ये पक्षी भी श्वास ले रहे हैंे। सारा जीवन श्वास का खेल है। ऐसा समझ सकते हैं कि श्वास की अनंत लहरों का नाम जीवन है। जहां-जहां से श्वास विदा हो जाती है वहां-वहां जीवन क्षीण हो जाता है। श्वास के पथ से ही परमात्मा भी आएगा। श्वास के ही पथ से सब कुछ आया है और गया है। फिर श्वास ध्यान के लिए बड़ी महत्वपूर्ण बात है। लेकिन श्वास दो तरह से ली जा सकती है। एक अनजाने, बेहोशी में, मूच्र्छित, जैसा हम ले रहे हैं। श्वास चल रही है चैबीस घंटे लेकिन हमने कभी खयाल नहीं दिया श्वास पर। जो जीवन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्रिया है वह बिलकुल ही अनजान, चुपचाप चल रही है। हमने कभी उस पर ध्यान नहीं दिया। श्वास पर हम कभी जागे नहीं। यदि हम श्वास के प्रति जाग सके तो तत्काल श्वास के साथ ध्यान के आगमन का द्वार खुल जाता है। कुछ और करने की जरूरत नहीं। अगर कोई व्यक्ति चैबीस घंटे में, जब भी उसे खयाल आ जाए, श्वास के प्रति होश से भर जाए, माइंडफु ली हो जाए कि यह श्वास जा रही, यह श्वास आ रही, तो तत्काल एक दूसरा मार्ग भीतर खुलना शुरू हो जाता है। श्वास की अवेयरनेस, श्वास को होशपूर्वक देखने से तत्काल चेतना में नए दरवाजे खुलने शुरू हो जाते हैं। श्वास मूचर््िछत और श्वास अमूचर््िछत। अगर श्वास मूचर््िर्छत ले रहे हैं आप, तो आप ध्यान के रास्ते पर प्रवेश न कर सकेंगे। होशपूर्वक ले रहे हैं, जान कर ले रहे हैं, खयाल है कि यह श्वास जा रही है, आ रही है तो आपके भीतर दो चीजें हो गईं, एक श्वास और एक आप, ये दो अलग हो गए तत्काल। अभी श्वास और आप एक हैं। अभी आइडेंटिटी है। अभी ऐसा लगता है कि मैं श्वास हूं। अगर कोई आपकी नाक दबा दे तो आप चिल्ला कर कहेंगे मुझे मारो मत, मार डालोगे क्या? छोड़ो मुझे। कोई गर्दन दबाए श्वास रोके तो आप कहेंगे, मरा। अभी मैं और श्वास एक हैं। अज्ञानी और ज्ञानी में एक ही फर्क है। जिसकी मैं और श्वास एक हैं वह अज्ञानी है और जिसकी मैं और श्वास दो हो गए हों वह ज्ञानी है। जिसे यह साफ दिखाई पड़ रहा है कि मैं अलग और श्वास अलग। उसके बाद उसकी मृत्यु नहीं हो सकती। जब तक श्वास से समझा है उसने कि मैं श्वास हूं तब तक मृत्यु होगी क्योंकि कल श्वास टूटेगी। जिस दिन उसने जाना कि मैं श्वास के पीछे हूं अलग, उस दिन के बाद मृत्यु असंभव हो गई। श्वास टूटेगी फिर भी वह जानेगा कि मैं हूं। श्वास बंद हो जाएगी फिर भी वह जानेगा कि मैं हूं।
इसलिए श्वास पर पहला सूत्र है कि हम श्वास को देखते हुए कैसे ले सकें, होश से कैसे ले सकें, श्वास को कैसे देख सकें, जान सकें, पहचान सकें। और हमारे भीतर जो क्रिया हो रही है वह श्वास की ही क्रिया हो रही है। यह हमारा पूरा शरीर श्वास की क्रिया को करने के लिए इंतजाम है, सिचुएशन है। यह सारा इंतजाम, यह खून का दौड़ना, इन हड्डियों का होना, इस हृदय की धड़कन, यह सारा का सारा यंत्र एक काम के लिए है इसके केंद्र पर श्वास है। श्वास लेने के लिए सारी की सारी व्यवस्था है। यह पूरा शरीर श्वास लेने का यंत्र है। तो जैसे ही हम श्वास से अलग हुए हम शरीर से भी अलग हो गए। तत्काल पता चलेगा कि मैं शरीर नहीं हूं। और जिसे यह अनुभव होने लगा कि मैं शरीर नहीं हूं, उसे अनुभव होने लगेगा कि मैं कौन हूं?
एक मित्र ने पूछा है कि क्या श्वास गहरी और तीव्र दोनों एक साथ होनी चाहिए?
दोनों एक साथ हों तो ज्यादा परिणाम होगा। गहरी भी हो और तीव्रता से भी हो, गहरी भी हो और तेजी से भी हो। चाहता मैं यह हूं कि श्वास पर ही सारी शक्ति लग जाए ताकि मन को करने को और कोई काम शेष न रहे। थोड़ा भी मन बाकी न रह जाए सारा श्वास पर लग जाए। जो थोड़ा बहुत बाकी रह ही जाता है इसीलिए बाद में मैं कौन हूं, इस पर उसे भी लगा देना है। लेकिन मित्रों ने पूछा है कि जब ‘मैं कौन हूं’ तीव्रता से पूछते हैं तो श्वास की तीव्रता पहले जैसी नहीं रह जाती। नहीं रह जाएगी, क्योंकि शक्ति फिर ‘मैं कौन हूं’ के पूछने में थोड़ी चली जाती है। इसकी चिंता न करें, शक्ति पूरी लग जाए। चाहे वह श्वास पर लग जाए, चाहे ‘मैं कौन हूं’ पर लग जाए। ऐसा हो जाए कि आपके भीतर अब करने के लिए और कोई शक्ति पीछे शेष नहीं रह गई। रिमेनिंग कुछ भी न रह जाए पूरी शक्ति आप की तरफ से लग जाए और परिणाम आ जाएगा।
दो-तीन मित्रों ने पूछा हैः कुंडलिनी क्या है?
वह तो बड़ी बात है। अगली बार संभव हुआ तो दो-चार दिन उस पर ही बात करनी पड़े। बहुत संक्षिप्त में इतना समझें कि मनुष्य के शरीर के भीतर अदभुत शक्तियों का निवास है लेकिन सोई हुई हैं बहुत सी शक्तियां। कुंडलिनी उस शक्ति को कह रहे हैं जो मनुष्य के पहले केंद्र से उठ कर अंतिम केंद्र की तरफ यात्रा करती है। वह उसकी डिंब से होकर गुजरेगी मस्तिष्क के ऊपर तक जाएगी जैसे कोई विद्युत की धारा भीतर बहती हो ऊपर उठती हो या जैसे कोई सांप सोया हो और फन उठाता हो। बहुत तरह का अनुभव हो सकता है। जब ऐसा अनुभव हो रहा हो तब भयभीत होने की जरूरत नहीं है क्योंकि जहां भयभीत हो गए वहीं अनुभव रुक जाएगा। जब वैसा अनुभव हो रहा हो तो तब अत्यंत प्रफुल्लता से, अत्यंत रिसैप्टिविटी से, निमंत्रण से, इनवाइटिंग हो ताकि वह पूरा हो सके। बहुतों ने तो यह पूछा है कि पूरे शरीर में विद्युत की धाराएं दौड़ती हुई मालूम पड़ती हैं। मालूम पड़ेगी। उन विद्युत की दौड़ती हुई धाराओं को पूरी तरह से स्वीकार कर लें। और वे बड़ी तेजी से दौड़ें तो रोकने की कोशिश मत करें। यह विद्युत की धाराएं शरीर को सब तरफ से शुद्ध कर जाएंगी, मन को शुद्ध कर जाएंगी। लेकिन अगर उनको रोका तो नुकसान हो सकता है। इसलिए निरंतर मैं कहता हूं कि जरा भी रोकें न, सिर्फ छोड़ दें, एक ओपन रह जाएं। आप जो भी हो रहा है होने दें।
बहुत से मित्रों के मुख से जोर से चिल्लाहट निकल गई। निकल जाएगी और भी ज्यादा। कुछ तो रोक लेते हैं। तो किन्हींने पूछा है कि वे रोकें या न रोकें।
निरंतर मैं कह रहा हूं कि कुछ भी न रोकें। पूछा है कि क्यों आवाज मंुह से निकल जाती है, क्यों रोना निकल जाता है, क्यों हंसना आ जाता है इतनी तीव्रता से? ऐसा लगता है कि कहीं हम अपने होश के बाहर तो नहीं? हमने अपने मन के साथ बहुत दुव्र्यवहार किए हैं। कभी रोना चाहा है जोर से तो उसे भी रोक लिया, वह अटका रह गया है। कभी हंसना चाहा है जोर से तो उसे भी रोक लिया है, वह भी अटका रह गया है। कभी चिल्लाना चाहा है वह भी नहीं चिल्ला पाए हैं, वह भी अटका रह गया है। सभ्यता ने आदमी को अधूरा कर दिया है सब तरफ से। न पूरा हंसता है, न पूरा रोता है, न पूरा जीता है, न पूरा प्रेम करता है, न पूरा क्रोध करता है, न मित्रता करता है पूरी, न लड़ सकता है पूरी तरह। सब तरफ अधूरा-अधूरा है। वह सब अटका रह गया। ध्यान की गहराई तभी उपलब्ध होगी जब वह सब अटका हुआ बिखर कर बह जाएगा। उसे रोकेंगे तो ध्यान की गहराई में जाना असंभव है। इसलिए रोकें मत। चिल्लाने की स्थिति हो गई हो भीतर और फूट रहा है पूरा प्राण चिल्लाने को तो चिल्ला लेने दें। थोड़ी देर में वे आवाजें निकल जाएंगी और भीतर आप हलके हो जाएंगे। वर्षोें का भार निकल सकता है। नही तो वहीं अटक जाएंगे। और इसकी चिंता ही न करें कि कौन क्या सोचेगा? यह कौन क्या सोचेगा, यही हमारी मृत्यु बन गई। चैबीस घंटे सिर्फ डरे हुए जी रहें हैं कि कौन क्या सोचेगा। उनके सोचने की वजह से हम जी ही नहीं पाते। अकेले हैं आप, किसी से सोचने का कोई मूल्य ही नहीं। जीना है आपको, होना है आपको, तो बिलकुल छोड़ दें।
अब कुछ मित्रों ने पूछा है कि ऐसा लगता है कि किसी और की आवाज है, हमारी आवाज नहीं है। कल एक मित्र करीब-करीब ऐसी हालत में थे जैसे कि कोई दहाड़ने के पहले सिंह हो, लेकिन उन्होंने बहुत संभाल लिया, वे दहाड़ लेते तो बहुत सुख होता। क्या कारण है कि पशु की आवाज हमारे भीतर से?
इसके कारण तो लंबे हैं। लेकिन एक संक्षिप्त बात आपसे कह दूं कि हम सब किसी न किसी पशु योनियों से यात्रा करके मनुष्य तक आते हैं। किसी पशु की आवाज बहुत जोर से निकलने लगे तो वह बहुत सिंबालिक है। वह इस बात की खबर है कि आप किस योनि से यात्रा करके मनुष्य तक आ रहे हैं। वह आपकी पिछली योनि की खबर देती है। उसे निकल जाने दें उसकी कोई चिंता न लें। किसी के शरीर में इतने जोर से शक्ति का अविर्भाव होगा तो नाचने लगे, खड़ा हो जाए, चिल्लाने लगे, दूसरे की चिंता नहीं करनी है। आप अगर आंख खोल कर भी देखेंगे तो आप भटक जाते हैं। आप गए आपका काम बंद हो गया। किसको क्या हो रहा है वह उसे होने दें। आपको जो हो रहा है वह आप होने दें, रोकें न। अगर खड़े होने की शरीर की स्थिति है तो खड़े हो जाएं, क्योंकि खड़े होने की स्थिति का मतलब यह है कि भीतर कोई धारा उठना चाहती है जो बैठे में नहीं पूरी तरह उठ पाएगी, इसीलिए शरीर खड़ा हो रहा है। किसी के हाथ मुद्रा बना रहे हैं, किसी का सिर घूम रहा है, कोई चक्कर खा रहा है, कोई गिर पड़ा है कोई मछली की तरह तड़फ रहा है, किसी का एक पैर ही कंप रहा है, किसी का एक हाथ ही ऊंचा-नीचा उठ रहा है। वह जो भी हो रहा है आप छोड़ दें। शक्ति भीतर काम कर रही है उसे काम करने दें। वह शक्ति आपको पहले से नई अदभुत स्थितियों में छोड़ जाएगी।
कोई बीस-पच्चीस मित्र उस जगह आ गएं हैं जहां एक नया अनुभव भी हो सकता है। उसकी मैं आज बात करूंगा, संभव है वह आज हो सके। जब आप पूरी तीव्रता में, टोटल इनटेंसिटी में, जब आप समग्रता से समर्पण करते हैं, जब आप पूरी तरह अपने को छोड़ते हैं, और जब आपके भीतर जो भी होता है आप होने देते हैं, रोकने वाले नहीं बनते। जब यह ठीक चरम स्थिति में पहुंचे तो आपके भीतर कोई बड़ी शक्ति ऊपर से उतर गई हो जैसे कोई नदी किसी सागर में गिरे, जैसे कोई विद्युत की धारा ऊपर से आपके ऊपर आ जाए और आपमें प्रवेश कर जाए, वैसा अनुभव भी शुरू होगा। जब वैसा अनुभव होगा तो आप बिलकुल ही मुश्किल में पड़ जाएंगे क्योंकि उतनी बड़ी शक्ति का अवतरण कभी भी आपके लिए खयाल में नहीं है। जब वह आएगी तो बिलकुल ही आप मंत्रवत घूमने लगेंगे, गिरेंगे, लोटेंगे, चिल्ला सकते हैं, नाच सकते हैं, कुछ भी हो सकता है, कुछ भी कहा नहीं जा सकता। अपनी तरफ से आप चरम स्थिति में पहुंच जाए तो बड़ी शक्ति ऊपर से भी आपके साथ संबंधित हो सकती है लेकिन आप जब तक अपनी तरफ से पूरे न पहुंच जाएं तब तक यह नहीं होगा। यह कांटेक्ट, यह संपर्क आपकी चरम स्थिति में ही हो पाएगा। इसलिए आज हम पूरी कोशिश करें, पूरी ताकत की।
इन चार दिनों में काफी गति हुई है और ध्यान रहे एक भी आदमी दर्शक की भांति न बैठा रहे क्योंकि वह पूरे एटमास्फियर को नुकसान पहुंचाता है। वह आदमी जिस जगह बैठा है उस जगह सब तरफ जो विद्युत की धाराएं फैलने लगती हैं उस आदमी की वजह से निरंतर बाधा पड़ती है। वह नॉन-कंडक्टर की तरह बीच में बैठ जाता है। किसी को देखना भी हो तो वह बीच से एकदम हट जाए। वह कहीं भी किनारे दूर दिवालों पर बैठ जाए। बीच में यहां न बैठा हो। और देखने का कोई मूल्य भी नहीं है। देखने से कुछ होने वाला भी नहीं है। आज मैं आशा करता हूं कि हम पूरी शक्ति लगाएंगे। हमने कोशिश की है लेकिन फिर भी बहुत शक्ति बाकी रह जाती है।
कल मैंने कहा था कि मैं ध्यान के पहले कुछ लोगों को जाकर स्पर्श करूंगा वे ही दोपहर आ सकते हैं। लेकिन उसमें कम से कम घंटा भर लग जाएगा। इसलिए वह संभव नहीं है और मैं जिस वजह से स्पर्श करना चाहता था वह आपको ही कह देता हूं, आप खुद भी खयाल कर लेंगे। मैं उन लोगों को स्पर्श करना चाहता था जिनके भीतर बहुत तीव्रता से शक्ति जग रही है लेकिन जो कहीं छोटी-मोटी बाधा डाल रहे हैं। तो जिनको भी ऐसा लगता है कि कुछ हो रहा है लेकिन मैं बाधा डाल रहा हूं वे लोग दोपहर मिलने को आ जाएं और फिर जो मुझे करना था आपको स्पर्श करके वे नारगोल के शिविर में संभव हो सकेगा क्योंकि चार दिनों में हम साथ होंगे, ज्यादा समय होगा। और जिन मित्रों को भी खयाल हो और गहरे जाने को वे नारगोल जरूर ही आ जाएं। इस बार बहुत पूर्व लक्षण है कि वहां बहुत कुछ हो सकेगा।
अब हम ध्यान के लिए बैठें।
तो पहले तो हम देख लें कि कोई किसी को स्पर्श न करे और एक दूसरे से दूर हो जाएं। जिनको लेटना है या उन्हें पता है कि बीच में वे गिर जाएंगे, वे पहले से लेट जाएं ताकि उनके लिए जगह बन जाए। चुपचाप। एक संकल्प लेकर बैठें कि आज अपनी पूरी शक्ति लगा देंगे। दूसरी प्रार्थना लेकर बैठें कि अपनी पूरी शक्ति जब जग जाए तो परमात्मा की शक्ति भी उतर सके।
ढीला छोड़ दें, आंख बंद कर लें। बीच में भी लेटने का मन हो तो तत्काल लेट जाएं। इसके लिए फिकर मत करें कि किसी के पैर पर भी सर पड़ जाएगा। पड़ जाएगा तो चिंता नहीं है। गिरते हैं तो गिर जाएं, रोके भर नहीं। और आज पूरी ताकत लगानी है।
आंख बंद कर लें। श्वास गहरी लेना शुरू करें। जितनी गहरी ले सकते हों श्वास लें। उतनी ही गहरी छोड़ें, उतनी ही गहरी लें, गहरी श्वास लेना शुरू करें। गहरी श्वास लें, गहरी श्वास छोड़ें, गहरी श्वास लें, गहरी श्वास छोड़ें, गहरी श्वास छोड़ें। पूरी शक्ति से गहरी श्वास लेना शुरू करें। श्वास ही लेना है, पूरी शक्ति लगा दें। गहरी श्वास भीतर जाए, गहरी श्वास बाहर जाए; गहरी श्वास भीतर जाए, गहरी श्वास बाहर जाए। श्वास भीतर, श्वास बाहर। गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास...और देखते हुए, भीतर देखते रहें, श्वास भीतर गई, श्वास बाहर गई। इसके साक्षी बने रहें, इसके दृष्टा बने रहें। श्वास भीतर जा रही है हम देख रहे हैं, श्वास बाहर जा रही हम देख रहे हैं, श्वास बाहर जा रही हम देख रहे हैं, देखते रहें और गहरी श्वास लेते रहें, दो काम।
दस मिनट के लिए पूरी शक्ति से करें। गहरी श्वास लें, गहरी श्वास लें, पूरा शरीर कंप जाए, गहरी श्वास लें, सारे शरीर में विद्युत की तरंगें दौड़ने लगेंगी, गहरी श्वास लें, और गहरी श्वास छोड़े। गहरी श्वास लें, गहरी श्वास छोड़ें, और देखने वाले बने रहें भीतर, यह श्वास भीतर गई, यह श्वास बाहर गई, देखते रहें, देखते रहें, देखते रहें, गहरी श्वास, देखते रहें। दस आप गहरी श्वास लें और देखते रहें और पूरी शक्ति लगा दें, दांव पर सब लगा दें। गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास। यह पूरा वातावरण सिर्फ श्वास लेने लगे, श्वास छोड़ने लगे। गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास,गहरी श्वास और देखते रहें श्वास भीतर गई, श्वास बाहर गई, गहरी श्वास। यह पूरा वातावरण बस श्वास लेने और छोड़ने लगे। गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, शक्ति पूरी लगा दें। शरीर बिलकुल थक जाए। शक्ति पूरी लगा दें, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास और मन बिलकुल शांत होने लगेगा। गहरी श्वास, देखते रहें, देखते रहें, मन शांत होता चला जाएगा। गहरी श्वास लें, गहरी श्वास लें, गहरी श्वास लें, बस श्वास लेने का एक यंत्र रह जाए, सारा शरीर, और भीतर देखते रहें कि यह श्वास भीतर गई, यह श्वास बाहर गई। श्वास भीतर गई, श्वास बाहर गई, शक्ति पूरी लगा दें, शुरू से ही पूरी लगा दें ताकि अंत तक पहुंचते-पहुंचते वह चरम बिंदु आ जाए जिसे चाहता हूं कि आए, छोड़ें, पूरी ताकत लगाएं, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, देखते रहें, गहरी श्वास, गहरी श्वास, थका डालें और दूसरे की चिंता न करें और बीच में कोई भी आंख खोल-खोल कर न देखें। अपनी फिकर करें, गहरी श्वास, पूरी शक्ति लगा दें। पूरी शक्ति लगा दें, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी और गहरी, और गहरी, और गहरी, और गहरी, और गहरी। पूरी शक्ति दांव पर लगा दें और गहरी और गहरी... और गहरी श्वास, और गहरी श्वास, देखते रहें। बस श्वास लेने की एक धौंकनी हो जाएं, श्वास, श्वास, श्वास ही रह जाए और सब मिट जाए। श्वास ही रह जाए और सब मिट जाए। गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास। पूरी शक्ति लगाएं, पूरी शक्ति लगाएं। गहरी श्वास, और गहरी... और गहरी, और गहरी, दांव पर सब लगा दें।
और गहरी, और गहरी, पीछे कुछ बाकी न बचे। और गहरी, और गहरी, और गहरी, और गहरी, और गहरी, और गहरी। दूसरे सूत्र में प्रवेश के पहले पूरी शक्ति लगाएं। एक दो मिनट के लिए पूरी शक्ति लगाएं, ताकि दूसरे सत्र में प्रवेश हो सकें। पूरी शक्ति से दूसरे में प्रवेश करना है। और गहरी, और गहरी, और गहरी श्वास, देखते रहें और गहरी श्वास। श्वास भीतर गई, श्वास बाहर गई, श्वास भीतर गई, श्वास बाहर गई। लगाएं पूरी शक्ति और गहरी, और गहरी, और गहरी, और गहरी, और गहरी, और गहरी। और गहरी लगाएं, और गहरी शक्ति लगाएं। एक मिनट के लिए पूरी शक्ति लगाएं, दूसरे सूत्र में प्रवेश के पहले पूरी शक्ति लगाएं, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास। दूसरे सूत्र की सूचना मिलने की तैयारी करें, और गहरी श्वास, और गहरी श्वास, और गहरी श्वास, और गहरी श्वास, और गहरी श्वास, और गहरी श्वास, और गहरी श्वास, और गहरी और गहरी श्वास ही रह जाए, श्वास ही रह जाए, श्वास ही रह जाए, श्वास ही रह जाए। सिर्फ श्वास रह गई, देखने वाले रह गए हैं, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास।
अब दूसरे सत्र में प्रवेश कर जाएं। गहरी श्वास लेते रहें, गहरी श्वास लेते रहें और शरीर को बिलकुल छोड़ दें, शरीर को छोड़ दें। शरीर को बिलकुल छोड़ दें, शरीर को जो हो, सो हो। शरीर घूमे, चक्कर खाए, गिरे, चिल्लाए, रोए, चिंता छोड़ दें, शरीर को ढीला छोड़ दें, गहरी श्वास लें और शरीर को छोड़ दें। गहरी श्वास लें और शरीर को छोड़ दें। शरीर को जो होना हो होने दें। शरीर को बिलकुल छोड़ दें ताकि साफ दिखाई पड़े कि शरीर अलग है। शरीर अलग यंत्र की भांति घूमने लगे, गिरने लगे, रोने लगे, चिल्लाने लगे, उसे छोड़ दें। भीतर जो शक्ति उठे वह शरीर को जैसा चलाए कोआपरेट करें, हाथ हिलते हों, पैर हिलता हो, सिर घूमता हो, शरीर गिरता हो, आवाज निकलती हो, चिल्लाहट आती हो, रोना आता हो, मुद्रा बदलती हो, छोड़ दें बिलकुल। दूसरा सूत्र है शरीर को छोड़ दें। श्वास गहरी जारी रहे, शरीर को छोड़ दें। शरीर उतना थक जाए जितना थक सके। छोड़ दें बिलकुल। अब दस मिनट के लिए शरीर को होने दें जो होता है, श्वास गहरी जारी रखें, श्वास गहरी रहे, श्वास गहरी रहे, श्वास गहरी रहे, शरीर को छोड़ दें, बिलकुल छोड़ दें, जरा भी रोकें ना, संकोच न करें। छोड़ दें, शरीर को जैसा होना हो होने दें।
शरीर के भीतर शक्ति जो करती है उसे करने दें। जो भी होता है होने दें। न मालूम कितनी बीमारियां समाप्त हो जाएंगी। शरीर को बिलकुल छोड़ दें, न मालूम कितने दबे वेग सदा के लिए निकल जाएंगे। शरीर को बिलकुल छोड़ दें, श्वास गहरी जारी रहे और शरीर को छोड़ दें, शरीर को छोड़ दें, शरीर को बिलकुल छोड़ दें। जो भी होता है होने दें। श्वास गहरी जारी रहे और भीतर श्वास को देखते रहें और शरीर को छोड़ दें। जो भी होता है, जो भी होता है होने दें। शरीर को ढीला छोड़ दें। शरीर घूमता है, घूमता है घूमने दें। हाथ-पैर कंपते हैं, हिलते हैं, हिलने दें। सारा शरीर एक यंत्र की भांति चक्कर खाता है खाने दें, गिरता है गिरने दें, खड़ा हो जाए शरीर खड़ा हो जाने दें। आवाज निकले, निकल जाने दें। चिल्लाहट निकले, निकल जाने दें। रोना निकले, निकल जाने दें, छोड़ दें, छोड़ दें। बढ़ाते जाएं, श्वास बढ़ाते जाएं, शरीर को छोड़ते जाएं, बढ़ाते जाएं श्वास को गहरा लेते जाएं और शरीर को छोड़ दें। छोड़ दें, शरीर को बिलकुल छोड़ दें, श्वास गहरी, श्वास गहरी, श्वास गहरी, श्वास गहरी। रोकें न जरा भी, कुछ भी न रोकें जो होता है होने दें। श्वास गहरी, श्वास गहरी, श्वास गहरी, श्वास गहरी, श्वास गहरी, श्वास गहरी, श्वास गहरी, श्वास गहरी और बिलकुल छोड़ दें। पांच मिनट बचते हैं। इस पांच मिनट में पूरे शरीर को जो होता है होने दें, छोड़ दें। शरीर को जो होता है वह होने दें ताकि साफ दिखाई पड़े कि शरीर अलग, मैं अलग। शरीर को छोड़ दें। रोता है रोए, हंसता है हंसे, चिल्लाता है चिल्लाए, नाचता है नाचे, जो होता है होने दें। भीतर छोड़ दें बिलकुल छोड़ दें। भीतर कोई पकड़, कोई रेसिस्टेंस न रहे। जरा भी रोकें नहीं, गहरी श्वास जारी रहे। गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास। छोड़ दें, छोड़ दें, शरीर जो करे, करने दें आप न रोकें, संकोच न करें, नियंत्रण न करें, आप श्वास गहरी जारी रखें और शरीर को छोड़ दें शक्ति भीतर जो करे होने दें। छोड़ दें, शक्ति जो करवाए होने दें, चेहरे की मुद्रा बदले बदलने दें, आवाज निकले निकलने दें, कोई पशु भीतर से चिल्लाने लगे चिल्लाने दें, जो भी होता है होने दें, गहरी श्वास, गहरी श्वास पूरी शक्ति लगा दें, पूरी शक्ति लगा दें। गहरी श्वास, गहरी श्वास। थका ही डालना है सारे यंत्र को। कंजूसी न करें, बिलकुल थका डालें, छोड़ दें। गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास। श्वास गहरी लें पूरी ताकत लगाएं। दो ही मिनट हैं।
तीसरे सत्र में जाने के लिए पूरी ताकत लगाएं। गहरी श्वास लें और शरीर को बिलकुल छोड़ दें, गहरी श्वास लें, शरीर को बिलकुल, बिलकुल छोड़ दें, जो होता है होने दें। गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, छोड़ दें शरीर को बिलकुल। आखिरी मिनट है। तीसरे सत्र के पहले शरीर को जो करना है करने दें, रोना है, चिल्लाना है, गिरना है, हिलना है, डुलना है, छोड़ दें, पूरी ताकत से छोड़ें, गहरी श्वास, गहरी श्वास, शरीर को छोड़ दें। छोड़ दें, रोकें नहीं, छोड़ दें, छोड़ दें। पूरा वातावरण एक साथ रोने-चिल्लाने लगे, छोड़ दें, छोड़ दें। आखिरी मिनट है। तीसरे सत्र में जाने के पहले पूरी शक्ति लगाएं। गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास और गहरी और गहरी, और गहरी और शरीर को छोड़ें आखिरी बार, बिलकुल छोड दें, जो भी होता है होने दें।
पूरी ताकत लगाएं, पूरी ताकत लगाएं, पूरी ताकत लगाएं, तीसरे सत्र में जाने के पहले पूरी ताकत लगाएं, पूरी ताकत लगाएं। पूरी ताकत लगाएं। और तीव्रता, और तीव्रता, और तीव्रता, और तीव्रता, पूरी ताकत लगा दें। पूरी ताकत, पूरी ताकत जरा भी रोकें नहीं, पीछे कुछ बचे नहीं, बिलकुल छोड़ दें। पीछे कहने को न रहे कि मैने कुछ रोक लिया। छो..ड़ें, छोड़ दें। एक मिनट के लिए बिलकुल छोड़ दें। जो होता है होने दें। जो होता है होने दें। छोड़ें, छोड़ें, छो.ड़ें, तीसरे सत्र में जाने के लिए छोड़ दें। बिलकुल छोड़ दें, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास। और गहरी, और गहरी और गहरी, और गहरी और तीसरे सत्र में प्रवेश करें। श्वास गहरी रहेगी,शरीर को जो करना है करता रहेगा। आप भीतर ताकत से पूछना शुरू करें, मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? भीतर अपने मन में जोर से पूछें, मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? शरीर को हिलने दें, श्वास को गहरा चलने दें, मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हंू। पूरे प्राण से पूछने लगें, मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? शरीर का रोआं, रोआं पूछने लगे। हृदय की धड़कन धड़कन पूछने लगे, मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? पूरी ताकत भीतर लगाएं, मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? दस मिनट के लिए पूरी शक्ति लगा दें। मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? पूरी शक्ति लगाएं भीतर कि मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? एक तूफान उठ जाए। दस मिनट के बाद फिर विश्राम करेंगे। मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? सारे प्राण कंप जाएं, मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?मैं कौन हूं? दो मैं कौन हूं के बीच जगह न बचे।
मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?मैं कान हूं? पूरी शक्ति लगा दें। अपने को तूफान में डाल दें। तभी हम ध्यान में जा सकते हैं। जो जितनी तीव्रता से पूछेगा वह उतने ही गहरे ध्यान मे जा सकेगा। चैथे सत्र तक पूरी शक्ति लगाएं--मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?...पूरी शक्ति लगाएं...आखिरी विश्राम के पहले शक्ति पूरी लगा दें ताकि विश्राम गहरा हो सके।
मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?...शरीर घूमता रहे, शरीर को घूमने दें, शरीर में शक्ति को पूरा घूमने दें। मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? पूरी शक्ति से घूमने दें, मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? पांच मिनट बचे हैं पूरी शक्ति लगाएं, मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? इस पांच मिनट के लिए पूरी शक्ति लगा दें। मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? गहरी श्वास, थका डाले अपने को गहरी श्वास, गहरी श्वास, शरीर को जो होता है होने दें, शरीर को पूरा छोड़ दें, मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, शक्ति पूरी लगाएं ताकि ऊपर की शक्ति से संबंध हो सके, जैसे ही संबंध होगा शरीर एकदम नाचने लगे उसकी फिकर भी न करें, मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? शक्ति पूरी लगाएं सिर्फ तीन मिनट बचे हैं शक्ति पूरी लगा दें। पूरी शक्ति लगा दें। गहरी श्वास, गहरी श्वास और गहरी, और गहरी, और गहरी, और भीतर पूछें तूफान की तरह मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?
चैथे सत्र में जाने के पहले शक्ति पूरी लगा दें। मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? पूरी ताकत लगाएं, अपनी शक्ति को पूरा लगा दें। मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? शक्ति पूरी लगाएं और ऊपर से शक्ति आती मालूम पड़े, तो जो भी शरीर को होने दें, नाचने लगे फिकर न करें। मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? एक-दो मिनट और बचते हैं, पूरी शक्ति लगाएं, फिर विश्राम करना है। विश्राम उतना ही गहरा होगा जितनी शक्ति हम लगाएंगे। अपने को पागल कर दें, पूरी ताकत लगा दें। पूरी ताकत लगा दें और इस बीच ऊपर से किसी को शक्ति आती मालूम पड़े तो अपने को छोड़ दें जो भी हो सो हो।
मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? बिलकुल पागल हो जाएं, छोड़ दें अपने को। मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? चैथे सत्र में प्रवेश का क्षण करीब आता है। जोर लगाएं--मैं कौन हूं? छोड़ दें और शक्ति ऊपर से उतरे तो फिकर न करें, ऐसा लगे कि नाच आ जाए तो नाचे, घबड़ाएं नहीं।
मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? पूरी ताकत लगाये गहरी श्वास, अवसर को चूकें न, पूरी शक्ति लगाएं। एक ही मिनट की बात है। मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? तूफान पूरा उठा दें, मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? बढें तीव्रता से बढ़े, मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? थका दें, मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? किसी का भी शरीर खड़ा होना चाहे, रोकें नहीं, छोड़ दें, छोड़ दें। शरीर खड़ा होता है हो जाने दें छोड़ दें मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? रोकना नहीं किसी का भी शरीर खड़ा होता है, हो जाने दें, मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? छोड़ दें, शरीर खड़ा होता है, हो जाने दें। मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? शरीर खड़ा होता है, रोकें मत, छोड़ दें, खड़े हो जाएं, नाचता है नाचने दें। जिनका भी शरीर खड़ा होता है, छोड़ दें। जिनका भी शरीर खड़ा हो रहा है उठ जाने दें, छोड़ दें, खड़े हो जाएं। मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?
एक सेकेंड और छोड़ दें, बिलकुल शरीर खड़ा होता है हो जाने दें--मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? छोड़ दें...जिनके शरीर भी खड़ा होना चाहते हैं हो जाने दें...मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?मैं कौन हूं?मैं कौन हूं? रोकें नहीं, छोड़ दें। मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? पूरी ताकत लगा दें--मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?
अब छोड़ दें, सब छोड़ दें, श्वास की गहराई भी छोड़ दें, पूछना भी छोड़ दें...चैथे सूत्र में प्रवेश कर जाएं। मैं कौन हूं? यह भी छोड़ दें, श्वास का गहरा लेना भी छोड़ दें, जहां जो जैसा है, वैसा ही रह जाए। बैठना है, बैठ जाएं, लेटना हो,लेट जाएं, सब छोड़ दें। अब दस मिनट के लिए परम विश्राम में चले जाएं। द्वार खुला है, प्रभु को आना है आ जाए। अब दस मिनट कुछ भी न करें, रह जाएं, बस मात्र रह जाएं। पक्षी बोलेंगे, सुनते रहें; सागर की लहरें चिल्लाएंगी, सुनते रहें; रास्ते पर आवाज होगी, सुनते रहें; बस पड़े रह जाएं। प्रतीक्षा में, जस्ट अवेटिंग, खोल दिया मेहमान आना हो आ जाए। द्वार खोल दें, द्वार पर प्रतीक्षा में बैठ जाएं, कुछ करना नहीं है। दस मिनट बस पड़े रह जाना है। इस दस मिनट में ध्यान की झलक आएगी, इस दस मिनट में ही उसका पता चल सकता है जो है। अब मैं चुप हो जाता हूं। दस मिनट बस रह जाएं, कुछ करना नहीं...
अब धीरे-धीरे आंखें खोल लें। जिनकी आंख न खुले वे दोनों हाथ आंख पर रख लें। फिर आहिस्ता से आंख खोलें। जो लेट गए हैं और गिर गए हैं, वे धीरे-धीरे उठें उनसे न बने तो पहले दो-चार गहरी श्वास लें, फिर उठें। फिर भी उठने को न बने तो लेटे रहें और गहरी श्वास लेते रहें। लेकिन उठने में कोई जल्दी न करें, आहिस्ता उठें। जो खड़े हैं वे भी धीरे-धीरे आंख खोलें। थोड़ी गहरी श्वास लें, फिर आहिस्ता से बैठें, एकदम से न बैठे। धीरे-धीरे आंख खोल लें, गहरी श्वास लें, फिर आहिस्ता से बैठ जाएं।
इस प्रयोग को रोज रात्रि में करते रहें। प्रयोग करें और सो जाएं, ताकि रात्रि की पूरी नींद में प्रयोग का सारा परिणाम गूंजता रहे।
इन पांच दिनों में बहुत सा काम हुआ। कुछ मित्र बहुत ही निकट तक पहुंचे, कुछ का उस शक्ति से संपर्क भी हुआ। कुछ कदम दो कदम, सीढ़ी दर सीढी। तो कुछ दो कदम पर ही रुक गए। लेकिन सभी की गति हुई है। और मैं चाहूंगा कि नारगोल आ जाएं, ताकि उन चार दिनों में सच की ही छलांग लग जाए। नारगोल बहुत कुछ होने की संभावना है। इसलिए अवसर को मत चूकें। जो भी किसी भी भांति आ सके आ ही जाए।

हमारी आज की बैठक पूरी हुई।
जो लोग दोपहर, जिन्हें लगता हो कहीं शक्ति का उठाव रुक गया या ऊपर से किसी शक्ति का प्रवेश हुआ लेकिन कहीं रुक गया, जिन्हें कहीं भी कोई कठिनाई, अड़चन मालूम पड़ती हो, वे दोपहर तीन से चार मिलने आ जाएं। लेकिन बौद्धिक जिज्ञासाओं को लेकर नहीं। जिनकी व्यक्तिगत साधना से ही कोई सवाल उठा हो, केवल वे ही दोपहर आएं।

हमारी सुबह की बैठक पूरी हो गई।

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