(अध्याय—उन्नीसवां)
अहमदाबाद
में ओशो के
ठहरने की
व्यवस्था एक
खाली
अपार्टमेंट
में की गयी है, जो
अतिथियों के
लिए ही है। यह
पहली मंजिल पर
चपकभाई के
अपार्टमेंट
के सामने ही
है। इसमें दो
बैडरूम हैं।
जिनमें से एक
एयरकंडीशंड
है और उसमें
बड़ा आरामदायक
बिस्तर लगा है।
दूसरे बैडरूम
में फर्श पर
गद्दे लगे हुए
हैं। यह जगह
मुझे पसन्द
आती है। कमरों
के साथ बड़ी
खुली—खुली
बालकनी भी हैं।
ओशो को
एयरकंडीशंड
कमरा ज्यादा
आरामदेह लगता
है और वे
जल्दी सो जाते
हैं।
क्रांति,
जो उनकी
देखभाल कर रही
है, उनके
कमरे में ही
अपना बिस्तर
लगा लेती है।
कल सुबह वे
भगवद्गीता पर
अपने प्रवचन
शुरू करने
वाले हैं।
हमारे
साथ बंबई के
चार और मित्र
भी हैं, जो
उदयपुर से ही
साथ आए है। वे
.रातभर यही
रुककर कल सुबह
चले जाना
चाहते हैं।
ओशो इसके लिए
सहमत हो गए है
और मुझे भी
इसमें —कोई
समस्या नजर
नहीं आती।
थोड़ी गपशप के
बाद मैं कमरे
के रक कोने
में अपना
बिस्तर बिछा
लेती हूं और
ये चारों
मित्र, जो
कि पुरुष है
एक ओर अपने
बिस्तर लगाकर
सो जाते है।
दरवाजे
पुर दस्तक
सुनकर मैं
उठती हूं और
जाकर दरवाजा खोलती
हूं। हमारे
मेजबान यह
देखने के लिए
आए हैं कि हम
कैसे सो रहे
हैं। चार
पुरुषों के
साथ मुझे कमरे
में अकेला देख
वह पूछते हैं, दूसरी
स्त्री कहां
है?'
मैं
उन्हें बताती हूं
यह ओशो की बहन
है और उनके
कमरे में सो
रही है।’
मैं
देख सकती हूं
कि वे कितने
आगबबूला हो
रहे हैं। ऊंची
आवाज में वह
मुझसे कहते
हैं,
मेरे घर पर
वह सब नहीं
चलेगा। या तो
तुम जाकर ओशो
के कमरे में
सो जाओ, या
क्रांति को
अपने साथ सोने
के लिए बुला
लाओ।’
मैं
हैरान हूं और
कुछ समझ नहीं
पा रही कि इस
आदमी को कैसे
समझाऊं। मैं
उनसे कहती हूं
मैं ओशो को
परेशान करना
नहीं चाहती।
वे सो चुके
हैं।’
वह
चले जाते हैं, और
शायद अपनी
पत्नी से सलाह—मश्विरा
करने के बाद, वापस लौट कर
आते हैं। वह
बड़े परेशान
नजर आ रहे हैं
और मुझसे कहते
हैं कि मैं
चार पुरुषों
के साथ एक ही
कमरे में नहीं
सो सकती लेकिन
इसके बजाय
उनके बच्चों
के कमरे में
सो सकती हूं।
बेकार की बहस
से बचने के
लिए, मैं
इससे राजी हो
जाती हूं और
उनके बच्चों
के कमरे में
जाकर फर्श पर
गद्दा लगा कर
सो जाती हूं
बहा उनके दो
बच्चे अपने
बिस्तरों पर
पहले से ही
सोए हुए हैं।
नीचे बिस्तर
पर लेटने के
बाद मैं सोचती
हूं हम कितने
सड़े—गले समाज
में रह रहे
हैं।
ये
काम—दमित लोग
अपनी
मानसिकता ही
हम पर
प्रक्षेपित करके
सोचते हैं कि
वे बड़े नैतिक, सुसंगत
व सभ्य लोग
हैं और हमारा
व्यवहार
अनैतिक है।’ जब मैं ओशो
को इस घटना के
बारे में
बताती हूं तो
वह जयंतीभाई
से कहते हैं
कि उनके ठहरने
का प्रबन्ध
कभी ऐसे लोगों
के घर में
नहीं करना चाहिए
जिन्होंने
कभी भी न तो
उन्हें सुना
है और न ही
उन्हें जानते
हैं; बेचारे
बेकार ही
परेशान होते
हैं और फिर
दूसरों के लिए
भी परेशानी
खडी करते हैं।’
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