ओशो
की दुनिया
अजीब दुनिया
है। ओशो कहते
भी हैं कि सभी
तरह के मस्त—मौला
लोग तुम मेरे
पास पाओगे।
ओशो के साथ
आने वाले लोग
एक तरह से सम
में हट कर जीने
वाले होते हैं।
हिसाबी—किताबी, सफलता,
महत्वाकांक्षी,
अहंकार के
पीछे दौड़ने
वालों को ओशो
की बातें कम
ही समझ आती
हैं। भूले—
भटके इस तरह
का कोई
व्यक्ति ओशो
के पास आ भी जाता
है तो उसे
वापस जाने में
देर नहीं लगती।
ओशो के साथ तो
सिर्फ
जुआरियों की
बात बनती है, पियक्कड़ों
का मेल ओशो से
खूब बैठता है।
सारे संसार के
सभी समाजों
में जो मिस
फिट होते हैं
वे ओशो के साथ
पूरी तरह से
फिट बैठ जाते
हैं। ओशो की
दुनिया तो
दीवानों की
दुनिया है, परवानों का
संसार है। अब
सालों तक ऐसे
दीवानों—परवानों
के साथ रहना
कोई आसान काम
नहीं है।
ओशो
ने कभी किसी
व्यक्ति का
मूल्यांकन
नहीं किया, सब
तरह के लोगों
को जैसे वे
हैं वैसा ही
स्वीकार कर
लिया। कहते
हैं न कि 'कहीं
की ईंट कहीं
का रोड़ा, भानुमती
ने कुनबा जोड़ा।’
ओशो का
कुनबा कुछ ऐसा
ही है। देश भर
में घूमते
शिविरों में
मित्रों को
ओशो के
संन्यास में
दीक्षित करते
कितने ही
सुंदर—सुंदर
अनुभव हुए।
एक
बार पटना में
शिविर था। जिन
मित्रों को
संन्यास लेना
होता है वे एक
छोटा— सा
फार्म भरते
हैं। जब मैं
संन्यास लेने
वाले मित्रों
के फार्म देख
रहा था तो एक फार्म
देखते चौंक
गया। उस मित्र
ने व्यवसाय के
कॉलम में भरा
था— 'सुपारी किलर,' मुझे लगा कि
किसी ने मजाक
की है।
पर
जब मैं उस
मित्र से मिला
तो पूछ ही
लिया कि 'भाई, ये पेशे के
साथ क्या लिखा
है? सुपारी
किलर?' उसने
थोडा शर्मा कर
अपना मुंह
नीचे कर लिया
और बोला, 'मैं
सचमुच सुपारी
किलर हूं मैं
पैसे लेकर हत्याएं
करता हूं।’ मेरे लिए
ऐसा अनुभव
पहली बार हो
रहा था। तरह—तरह
के लोग देखे
थे लेकिन यह
तो अजीब ही
निकला। मैं
सोचने लगा कि
क्या करूं।
फिर खयाल आया
ओशो बुद्ध के
जीवन की कहानी
सुनाते हैं कि
कैसे
अंगुलीमाल को
बुद्ध ने
रुपांतरित
किया। उसे
संन्यास दिया।
ओशो कई बार
कहते रहते हैं
कि जब
अस्तित्व ने तुम्हें
स्वीकार किया
है तो मैं कौन
होता हूं अस्वीकार
करने वाला? सोचा कि चलो
संन्यास देना
ही चाहिए।
उसी
मित्र से कुछ
सालों बाद
पुन: मिलना
हुआ तो वह
पूरी तरह से
बदल चुका था।
नियमित ध्यान
और ओशो को
सुनते—सुनते
वह बहुत ही
सहज,
सरल, निर्मल,
निर्दोष हो
गया। उसने
बताया कि ' उसके
सीने पर बहुत
बड़ा भार था।
उसे हमेशा ही
लगता था कि जो
वह कर रहा है, ठीक नहीं है।
संन्यास लेने
से मेरी आत्मा
पर पड़ा बोझ थोड़ा
हल्का हो गया,
ओशो की
ध्यान
विधियों से
गुरजते मन की
सारी
ग्रंथियां बह
गई और फिर ओशो
के
करुणापूर्ण
वचन तो बस
आत्मा तक उतर
जाते हैं।
मुझे ऐसा लगता
है कि वह
व्यक्ति कोई
और ही था जो वह
काम करता था।
अब मैंने अपनी
पान की दुकान
खोल ली है, और
अपने परिवार
के साथ शांति
से जी रहा हूं।’
ऐसा
ही अनूठा वाकया
हुआ मुंबई में।
किसी मित्र ने
अपना व्यवसाय
लिखा जेबकतरा।
मैं उस मित्र
से मिला। ऊपर
से नीचे तक
सफेद कपड़ों
में बहुत ही
आकर्षक
व्यक्तित्व
वाला प्रेमी
व्यक्ति।
मैंने पूछा 'भाई
क्या काम करते
हो?' 'लोगों
की जेब काटता
हूं।’ मैंने
कहा, 'अजीब
काम है? एक
बात बताओ कभी
आपको यह खयाल
नहीं आता कि
जिन की जेब आप
काट लेते हो, हो सकता है
कि उसे उन
रुपयों की
बहुत जरूरत हो?
कभी उनका
खयाल नहीं आता
कि बिना
रुपयों के वे बेचारे
क्या करेंगे?'
तब वह बोला,
'मैं ठीक से
देख—परख कर ही
जेब काटता हूं
जब मुझे लग
जाता है कि कोई
पैसे वाला है
तो ही हाथ साफ
करता हूं फिर
मैं थोड़े में
संतुष्ट हो
जाता हूं।
थोड़े रुपये
मिल जाएं फिर
मैं जेब नहीं
काटता।’ इस
मित्र को भी
कुछ वर्ष बाद
मिला तो वह भी
पूरी तरह से
बदल चुका था।
उसने भी अपना
वह काम छोड़
दिया था।
ओशो
कहते रहे हैं
कि 'इससे कोई
फर्क नहीं पड़ता
कि तुम क्या
करते हो, शराब
पीते हो, जूआ
खेलते हो या
कुछ और, बस
ध्यान में
उतरो, ध्यान
जो कुछ भी गलत
है उससे मुक्त
करता चला जाएगा।’
मैंने अनेक
लोगों को ओशो
के ध्यान से
बदलते देखा है,
उनके जीवन
में आमूल चूल
परिवर्तन
होते देखा है।
ध्यान का कैसा
असर होता है यह
मैं हर शिविर
में तीन दिन
के भीतर लोगों
में देखता रहा
हूं। शिविर की
शुरुआत बड़े
बुझे—बुझे से,
अस्त—व्यस्त,
तनावग्रस्त
लोग दिखते हैं
और तीन दिन
ध्यान प्रक्रियाओं
से गुजकर वे
सब ऐसे हो
जाते जैसे कि
आसमान में उड़
रहे हों, उनकी
मस्ती देखते
ही बनती।
अपने
स्वयं के
अनुभव और
लाखों
मित्रों पर
होते असर को
देखने के बाद
मैं बहुत
भरोसे से कह
सकता हूं कि
यदि अधिक से
अधिक लोग
ध्यान में उतर
पाएं तो सारे संसार
का रुपांतरण
सहज ही संभव
है।
आज
इति।
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जवाब देंहटाएं1 प्रेम मंत्र
2 पूर्व वापस जीतें
3 गर्भ का फल
4 वर्तनी संवर्धन
5 वर्तनी सुरक्षा
6 व्यापार वर्तनी
7 गुड जॉब स्पेल
8 लॉटरी स्पेल और कोर्ट केस स्पेल