(अध्याय—बीसवां)
इस
अपार्टमेंट
में एक ही
साझा बाथरूम
है,
और उसमें भी
गर्म पानी
नहीं आता। मैं
सुबह जल्दी
उठकर पानी
गर्म करती हूं
और ओशो के लिए
दो बाल्टियां
भरकर बाथरूम
में रख देती हूं।
वे
अपने कमरे से
बाहर आते हैं, अपना
मुंह धोकर
नेपकिन से
सुखाने लगते
हैं। मैं उनका
दांतों का
ब्रश निकालकर
उस पर पेस्ट
लगाती हूं और
उन्हें दे
देती हूं। वे
मुस्कुराकर
मेरी ओर देखते
हैं व मेरे इस
छोटे से काम
के लिए मुझे
धन्यवाद देते
हैं। ब्रश को
वे इतनी
कोमलता और
प्रेम से
पकड़ते हैं, जैसे कि वह
प्राणवान हो,
और फिर धीरे—धीरे
अपने दांतों
पर ब्रश करने
लगते हैं।
आज
कल वे सिग्नल' टूथपेस्ट
इस्तेमाल कर
रहे हैं जो कि
बाजार में नया—नया
आया है। यह
ट्यूब लगभग
समाप्ति पर है;
फिर भी मैं
उसे सिंक के
पास बने छोटे
से शेल्फ में
रख देती हूं।
अपना मुह धोने
के बाद वे
बाथरूम में
चले जाते हैं।
मुझे अचंभा
होता है कि
उन्होंने
ट्यूब उठाकर सिंक
के पास रखे
कूड़ेदान में
फ्लें दी है।
मैं सोचती हूं
जब तक मुझे नई
ट्यूब न मिल
जापा तब तक
इसे कैसे फ्लो
जा सकता है? मैं उसे
कूड़ेदान में
से निकालकर
वापस शेल्फ पर
रख देती हूं।
बाद में मैं
एक मित्र को
सिग्नल
टूथपेस्ट 'की
नई ट्यूब
खरीदकर लाने
को कहती हूं
परन्तु किसी
कारणवश वह
मुझे मिल नहीं
पाती, और
जब अगले दिन
उसी ट्यूब में
से टूथपेस्ट
निकालकर मैं
ब्रश पर लगाने
लगती हूं तो
उसे देखकर ओशो
हंसते हैं और
कहते हैं तो
तुमने टयूब बचा
ली।’
मुझे
लगता है कि
उन्हें ट्यूब
को ज्यादा जोर
से दबाना
पसन्द नहीं है, लेकिन
मैं क्या कर
सकती हूं? जब
तक नई ट्यूब
नहीं आ जाती
तब तक मुझे यह
रखनी ही पड़ेगी।
किसी तरह तीन
दिन तक मैं
इसी ट्यूब से
काम चलाती हूं,
जब तक कि हम
अहमदाबाद से
चल नहीं देते।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें