(अध्याय—बाईसवां)
दोपहर
का समय है।
ओशो बालकनी
में एक कुर्सी
पर बठॅ हैं।
वसंत का मौसम
है। पास ही एक
बड़ा सा आम का
वृक्ष है, और
एक कोयल
लगातार अक रही
है। उसका मधुर
गान मौन को और
भी गहरा रहा
है।
ओशो
मुझसे पूछते
हैं,
'क्या तुझे
पता है कि यह कोयल
नर है या मादा।’'
मुझे न तो
पता है और न इस
बारे में
मैंने कभी सोचा
ही है, लेकिन
मैं कहती हूं
यह नर है।’ ओशो
मुझसे पूछते
हैं कि मुझे
कैसे पता चला?
मैं कहती
हूं, सच
में तो मुझे
पता नहीं है
मैंने बस यूं
ही कह दिया।’
वे
कहते हैं, सच
में ही यह नर
पक्षी है।
हमेशा नर ही
बुलाता है तथा
स्त्री
प्रतीक्षा करती
है।’ फिर
हमें दूसरी
कोयल के
कुहकने की
आवाज आती है।
इसको
सुन',
ओशो कहते
हैं। यह मादा कोयल
पहली पुकार का
जवाब दे —रही
है। अगर तुम
ध्यान से सुनो
तो दोनों का
फर्क पता लग
जाएगा।’ मैं
कोयल की मीठी
पुकार के बारे
में भूल जाती हूं;
मैं तो अपने
सदगुरू की इस प्रज्ञा
से विस्मय विमुग्ध
हूं।
🙏😍🤣
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