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बुधवार, 16 दिसंबर 2015

स्‍वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें--(अध्‍याय--44)

असली प्रश्‍नों को तो छूते भी नहीं—(अध्‍याय—चव्‍वालीस)

शो से पूरी दुनिया से आने वाले सब तरह के लोगों ने हर तरह के प्रश्न पूछे और ओशो ने हर प्रश्न का जवाब दिया। अनेक बार जब हम प्रश्न सुनते हैं तो लगता है कि अब ओशो क्या जवाब देंगे? लेकिन हर प्रश्न का सटीक, तार्किक व गहन दृष्टि से युक्त जवाब होता।
ओशो के अलावा मैंने अपने जीवन में एक भी साधु—संन्यासी या गुरु ऐसा नहीं देखा जो हर प्रश्न का जवाब दे सके। अधिकांशतया तो यही होता कि ये लोग क्रोधित हो जाते हैं। ऐसा ही एक वाकया हुआ चिन्मयानंद मिशन के स्वामी चिन्मयानंद जी के साथ।
स्वामी चिन्मयानंद जी का पुणे में नेहरु मेमोरियल में मैंने कार्यक्रम सुना। मेरे बड़े भाई साहब ने उन्हें बुलाया था। उनके साथ उनके करीब बीस—पच्चीस शिष्य भी आए थे। मैं भी वहां पहुंचा।
उन्होंने एक भजन लगाया हुआ था, 'चिदानंद रुपा शिवोहम् शिवोहम् शिवोहम् 'मैं चिन्मयानद जी के पास ही बैठा था, मैंने उनसे पूछा, 'इस भजन में परमात्मा के एश्वर्यरूप की तो चर्चा है लेकिन उनके अन्य रूप जैसे कि रौद्र रूप इत्यादि का तो वर्णन ही नहीं है।उन्होंने मेरी तरफ देख कर कहा, 'तुम रजनीशी हो?' मैंने कहा, 'हां, देखिये यह माला, भगवा कपड़े......।वे तो बस मौन ही हो गए। मेरे से बात ही ना करे।
अब मैंने ऐसा क्या प्रश्न पूछ लिया था कि मेरे प्रश्न का जवाब देने की जगह ओशो के नाम का ताना मारकर मुझे चुप करा दिया? मुझे कई बार इस बात पर आश्चर्य होता कि ये नामी—गिरामी नाम, ये विश्व प्रसिद्ध गुरु, मन से इतने छोटे कैसे हैं? सोया मन, सोया ही होता है, जागृत बुद्ध की बात ही अलग होती है।

आज इति।

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