ऐसे
न जाने कितने
किस्से मिल
जाएंगे कि कोई
ओशो के विरोध
में था और ओशो
की किताब पढ़ी
या प्रवचन
सुना और सारा
विरोध विदा हो
गया। एक बार इस्कान के
एक स्वामी दास
आश्रम आए।
प्रवचन शुरू
हो चुका था।
दास को मैंने
कहा,
'आप वृदांवन
देखना चाहते
हैं, कृष्य
से मिलना
चाहते हैं, तो कल साढे
सात बजे आ
जाना।’ वह
व्यक्ति
दूसरे दिन ठीक
साढे सात बजे
आ गए। वे
प्रवचन में
चले गए। उन
दिनों ओशो
गीता पर बोल
रहे थे। जब
स्वामी दास
लौट कर आए तो
वह दूसरे ही
व्यक्ति थे, बोले, 'तुम
सही थे, मैंने
वृंदावन की यात्रा
कर ली, मैंने
कृष्ण को
साक्षात देख
लिया।’
प्रिय
मित्र,
प्रेम।
जिसकी खोज
है, वह जरूर
ही मिलता है।
सरिता
सागर को खोज
लेती है।
प्यास
सरोवर को खोज
लेती है।
प्रार्थना
प्रभु को खोज
लेती है।
प्रभु तो
निकट ही है, बस,
हम ही
प्यासे नहीं
हैं।
प्यास को
जगा।
बस, प्यास
हो जा।
और फिर, उसके
मिलने में
क्षण भर की भी
देर नहीं होती
है।
ओशो, अंर्तवीणा
आज
इति।
🌺🙏🙏🙏🌺
जवाब देंहटाएं