जो
व्यक्ति
पृथ्वी ग्रह
के हर मनुष्य
को सभी आयामों
से,
हर जंजीर से
मुक्त करने का
भरसक प्रयास
कर रहा हो।
जिसने दुनिया
भर में फैले
सभी तरह के
धार्मिक, राजनैतिक,
आर्थिक, सामाजिक
स्थापित
संस्थानों पर
चोट की ताकि उनकी
पकड़ से मानव
को मुक्त
कराया जा सके।
उसी व्यक्ति
को अमरीकी
सरकार ने बिना
किसी गिरफ्तारी
वारंट के, गैर—कानूनी
ढंग से
गिरफ्तार भी
कर लिया और
उन्हें किसी
से मिलने भी
नहीं दिया जा
रहा है, यह
सुनकर उस दिन
जितना मन रोया
है, शायद
जीवन काल में
कभी भी नहीं
रोया।
दुनिया
के सबसे
प्रगतिशील, आधुनिक
कहलाने वाले
देश की यह
हालत? जहां
व्यक्ति की
अभिव्यक्ति
को संविधान से
पूरी
स्वतंत्रता
मिली है, वहां
किसी की
अभिव्यक्ति
की
स्वतंत्रता
को इस बेरहमी
से कुचला जा
रहा है। जो
देश दुनिया
में सबसे अधिक
जागरूक देश
होने का दावा
करता है, वहां
पर इस तरह के
वहशीपन के लिए
कोई बोल क्यों
नहीं रहा है।
ओशो
को अमरीका में
गिरफ्तार कर
लिया गया, इस
खबर से पूरी
दुनिया में
फैले ओशो
प्रेमी बुरी
तरह से हिल
चुके थे, सभी
परेशान थे कि
क्यों और कैसे
ओशो को जेल में
डाल दिया गया?
मेरे लिए भी
यह बात बहुत
पीड़ा जनक थी, मेरे लिए
बर्दाश्त
करना मुश्किल
हो रहा था।
अमरीकी
राजनेता, ईसाई
धर्मांध
लोगों ने बहुत
बुरा किया।
सवा
सौ वर्गमील
जमीन पर फैले
कम्यून को भी
तहस—नहस करने
की शुरुआत हो
गई। पूरी
दुनिया से
हजारों
सृजनशील, प्रेमी
मित्रों के
अथक प्रयासों
से बने इतने सुंदर
संसार को
बेरहमी से
उजाड देने का
काम शुरू कर
दिया। ओशो को
तरह—तरह की
यातनाएं दी गई,
एक जेल से
दूसरी जेल में
लगातार डालते
हुए, उन्हें
जितनी भी
तकलीफ दी जा
सके दी गई और
अंततः उन्हें
जहर दे दिया
गया। यह खबर
आग की तरह फैल
गई। पूरा
संसार ओशो के
नाम पर चर्चा
करने लगा।
पूरा यूरोप, अमरीका और
बाकी संसार टी
वी, अखबार
और रेडियो से
बराबर ओशो की
खबरों से जुड़ा
हुआ था।
इधर
भारत में हम
सभी मित्र
अपना विरोध
जाहिर कर रहे
थे। दिल्ली, बैंगलौर,
कलकत्ता, मद्रास, अहमदाबाद
में रैलियां
की गई। भारत
सरकार को हर
आयाम से
चेताया गया कि
ओशो के साथ
बहुत अमानवीय
व्यवहार हो
रहा है। एक
निहत्थे
व्यक्ति को
बेड़ियों, हथकड़ियों
और जंजीरों
में जकड़ कर दर—दर
घुमाना, सड्कों
पर चलाना, यातनाएं
देना कतई उचित
नहीं है। हम
सभी मित्र
अपने—अपने
स्तर पर बराबर
इस बारे में
विरोध कर रहे थे।
भारत
सरकार के
तात्कालीन
प्रधानमंत्री
श्री राजीव
गांधी के निवास
के सामने मौन
प्रदर्शन
किया। उस मौन
प्रदर्शन की
खबरें भारत के
सभी अखबारों
ने बहुत
प्राथमिकता
से प्रकाशित
कीं।
प्रधानमंत्री
के निवास के
सामने हजारों
ओशो प्रेमी
मौन में बैठे।
उस समय का एक
फोटो बहुत ही
भाव—विह्वल कर
देने वाला था, उसका
यहां जिक्र
करूं। हम बहुत
सारे मित्र
कतारों में
शांत, मौन,
हाथ जोड़े
बैठे थे। अनेक
मित्रों ने
अपने—अपने
हाथों में
तख्तियां ली
हुई थीं।
उसमें
प्रधानमंत्री
से प्रार्थना
की गई थी कि
ओशो के जीवन
की रक्षा की
जाए। एक
पंक्ति में
सबसे आगे एक
छोटी—सी बच्ची
हाथ जोड़े बैठी
है, आंखें
बंद हैं, उसने
एक तख्ती पकड़ी
है जिस पर
लिखा है : 'भगवान
फूल से भी
कोमल हैं उनके
साथ मानवीय
व्यवहार करो।’
जिसने भी वह
चित्र देखा, आंसू बह चले।
हमारे
प्यारे ओशो
जेल में थे और
उनके लाखों प्रेमी
असहाय से अपने—अपने
तल पर प्रयास
जारी रखे थे
कि ओशो जेल से
बाहर आ सकें।
हमारे सभी
विरोध
शांतिपूर्ण
और
प्रेमपूर्ण
हुआ करते थे।
ओशो की देशना
ही यह थी कि
दुनिया हमें
गाली दे सकती
है,
मार सकती है,
यातनाएं दे
सकती है लेकिन
हमें उन्हें
प्रेम ही देना
है।
जब
ओशो पर छुरा
फेंका गया था
तो दूसरे दिन
ओशो प्रवचन
में बोलते हैं
कि '
उस व्यक्ति
ने जो किया वह
तो
मूर्खतापूर्ण
बात थी। लेकिन
मैं यह देख कर
आनंदित हुआ कि
तुम में से किसी
ने भी उसे चोट
नहीं पहुंचाई,
एक थप्पड़ भी
किसी ने नहीं
मारा। प्रेम
से उसे बाहर
ले जाकर छोड़
दिया। मेरी
यही शिक्षा है,
कल को कोई
ऐसा प्रयास
फिर करे और
मेरी जान भी ले
ले, लेकिन
तुम उन्हें
प्रेम ही देना।’
ओशो जेल में
थे उसकी ओशो
प्रेमियों को
कितनी पीडा थी,
यह तो वही
जान सकते हैं
जो उस अनुभव
से गुजर रहे
थे। लेकिन
पूरी दुनिया
में कहीं भी
कोई एक छोटी—सी
भी हरकत ओशो
प्रेमियों ने
ऐसी नहीं की
जिससे किसी का
नुक्सान हुआ
हो। मौन
प्रदर्शन
जारी रहे, अमरीका
के सभी ओशो
प्रेमी और
वहां का
मीडिया पूरी
तरह से सतत
प्रयास करता
रहा। अंततः
ओशो को जेल से
मुक्ति मिली।
जब यह खबर आई
कि ओशो जेल से
बाहर आ गये
हैं तो सभी ने
राहत की सांस
ली।
ओशो
पर कानूनी
दबाव डाल कर
उन्हें
अमरीका से बाहर
जाने को कहा
गया। उनका
कम्यून उनकी
अनुपस्थिति
में उजड़ना
शुरू हो गया।
इसी बीच ओशो
भारत आ गए। वे
दिल्ली आकर
मनाली चले गए।
कुछ मित्रों
के साथ मनाली
में ओशो रह
रहे थे। वहां
पत्रकारों से
मिलना और
प्रवचन देना
भी प्रारंभ हो
गया। कुछ ही
समय में यहां
भी मित्र
पहुचने लगे।
मनाली में चहल—पहल
बढ़ी,
खबरें बनने
लगीं......मैं जब
यह देखता तो
हंस देता।
आज
इति।
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