लोगों
का मूल्यांकन
करना बडी आसान
बात है। कोई
भी बात को देख
कर उस व्यक्ति
के बारे में कोई
विचारधारा
बना लेना, धारणा
बना लेना बड़ा
आसान होता है।
ओशो ने कहा भी
है कि कभी
किसी का मूल्यांकन
मत करो।
पुट्टपर्ती
के श्री सत्य
साईं बाबा के
बारे में
अनेकानेक
बातें सुनने
में आती रहती
थीं।
एक
बार सत्यसाईं
बाबा का हमारे
आश्रम के ठीक
पीछे स्थित
जामनगर हाउस
में उनका
कार्यक्रम था।
मैं भी वहां
चला गया। मैं
भगवा कपड़ों और
माला पहने
वहां बैठा था।
सत्य साईं
बाबा वहां
बैठे हुए
लोगों में से
किसी को
व्यक्तिगत
मिलने के लिए
इशारे से
बुलाते थे।
उन्होंने
मुझे भी बुला
लिया और मैं
उनके कक्ष में
उनसे मिलने
चला गया। वहां
बैठे अन्य
लोगों से उनकी
बात चल रही थी।
जब मेरा नंबर
आया तो
उन्होंने
मुझे पूछा, 'आपको
कुछ पूछना है?'
तो मैंने
कहा, 'जी हां,
मैं यह
पूछना चाहता
हूं कि यह जो
आप जादू दिखाते
हैं, राख
निकाल देते
हैं, घडी
निकाल देते
हैं, इसका
अध्यात्म से
क्या अर्थ है?'
वे बोले, 'मैं जानता
हूं कि इसमें
कोई अध्यात्म
नहीं है। यह
मेरा लोगों को
नियंत्रण
देने का ढंग
है। लोग बड़े
मूढ़ हैं, उन्हें
बुलाने के लिए
कोई प्रलोभन
देना पड़ता है।
एक बार वे
मेरे पास आ
जाते हैं तो
उन्हें फिर मैं
भजन, स्मरण,
भक्ति
सिखाता हूं।
यह ऐसे ही है
जैसे कि आपके
गुरु सुंदर
प्रवचनों के
द्वारा लोगों
को आमंत्रित
करते हैं। यह
उनका ढंग है।’
मैं वहां से
सुनकर आया तो
मैंने ओशो को
सब सुनाया कि
मैं सत्यसाईं
बाबा से मिल
कर आया तो उस
समय तो
उन्होंने कुछ
नहीं कहा बाद
में प्रवचन
में बोले कि 'मैं इन सब के
विरोध में
इसलिए बोलता
हूं कि तुम्हें
निर्णय करना
है कि तुम्हें
किसके साथ जाना
है। दो नावों
की सवारी
तुम्हें कहीं नहीं
पहुंचाएगी, इसलिए मैं
तुम्हारे लिए
सब बोलता हूं।
अब तुम्हें
निर्णय करना
है कि किस नाव
में तुम्हें
बैठना है।’
🌺🙏🙏🙏🌺
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