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शनिवार, 19 दिसंबर 2015

दस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्‍याय--17)

(अध्‍याय—सत्रहवां)

 सुबह के प्रवचन में मैं उनके बहुत पास बैठी हुई अपने छोटे से टेप रिकार्डर पर उनका प्रवचन रिकार्ड कर रही हूं। मुझे एक्कटेंशन कॉर्ड्स की कोई जानकारी नहीं है। हमेशा की तरह उनके माइक पर ही मैंने अपने माइक्रोफोन की तार बांध दी है।

आज कुछ आश्चर्यजनक घट रहा है। जैसे ही वे बोलना शुरू करते हैं मुझे लगता है कि वे क्या कहने जा रहे —हैं वह मुझे शब्दशः पता है। बाद में जब उनको मैं इस अनुभव के बारे में बताती हूं तो वे कहते हैं।
इसे सदगुरू के साथ समस्वरता कहा जाता है। बोले जाने से पहले शब्द विचारों के रूप में चेतना में ऐसे उठते हैं जैसे लहरें उठ रही हों। यदि कोई शांत हो तो वह शब्द से पहले विचार को पकड़ सकता है। यह बहुत आसान बात हैं।फिर वे कहते है कि मैं विचारों पर ज्‍यादा ध्‍यान न देकर उस स्रोत की और देखूं जहां से ये उठते हैं। इतने सरल ढंग से वे समझाते हैं कि उन्हें सुनते समय झलक मिल जाती है।

 

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