आज
कितने ही साधु—संत
झेन की बात
करते हैं, मनोविज्ञान
की बात करते
हैं, चेतन—अचेतन
मन की बात
करते हैं, सामान्यतया
ये सब बातें
वे ओशो की
पुस्तकों से
ही लेते हैं।
लेकिन यह भी
सच है कि इन
लोगों में से
कितने ही हिम्मत
दिखाते हैं, साहस का
परिचय देते
हैं और ओशो के
कारवां में शामिल
हो जाते हैं।
ऐसा
ही हुआ एक जैन
साधु के बारे
में वे ओशो की
पुस्तकें
पढ़ते थे।
उन्हें ओशो से
मिलना था। मन
में प्यास उठ
गई ओशो के
दर्शन की।
अब उनकी समस्या यह कि कैसे वे ओशो के प्रवचन सुनने आएं? उनकी साधु की वेशभूषा बड़ी समस्या थी। कोई भी देख सकता था, पहचान सकता था, तो समाज में बड़ी बदनामी हो जाती। समाज को जवाब देना मुश्किल हो जाता। लेकिन ओशो के दर्शन की प्यास इतनी थी कि उसे भी रोका जाना संभव नहीं था। जब उनका मेरे से मिलना हुआ तो मैंने उन्हें सलाह दी कि चुपचाप दूसरे कपड़े पहनकर आ जाएं। और उन्होंने वैसा ही किया। अब कोई ओशो के दर्शन करे, उनके मधुर कंठ से झरते वचनों का आनंद ले, और भीगने से बचा रह जाए, क्या यह संभव है? इतने पत्थर दिल तो वे जैन साधु नहीं थे, और परिचय दिया भी था कि प्रवचन में कपड़े बदल कर आ गए थे। तो तैयारी तो थी.. .वे तो ओशो के प्रेम में ऐसे पड़े कि उसी दिन ओशो से संन्यास भी ले लिया। लेकिन लौटकर फिर अपने पुराने चोले में आ गए।
अब उनकी समस्या यह कि कैसे वे ओशो के प्रवचन सुनने आएं? उनकी साधु की वेशभूषा बड़ी समस्या थी। कोई भी देख सकता था, पहचान सकता था, तो समाज में बड़ी बदनामी हो जाती। समाज को जवाब देना मुश्किल हो जाता। लेकिन ओशो के दर्शन की प्यास इतनी थी कि उसे भी रोका जाना संभव नहीं था। जब उनका मेरे से मिलना हुआ तो मैंने उन्हें सलाह दी कि चुपचाप दूसरे कपड़े पहनकर आ जाएं। और उन्होंने वैसा ही किया। अब कोई ओशो के दर्शन करे, उनके मधुर कंठ से झरते वचनों का आनंद ले, और भीगने से बचा रह जाए, क्या यह संभव है? इतने पत्थर दिल तो वे जैन साधु नहीं थे, और परिचय दिया भी था कि प्रवचन में कपड़े बदल कर आ गए थे। तो तैयारी तो थी.. .वे तो ओशो के प्रेम में ऐसे पड़े कि उसी दिन ओशो से संन्यास भी ले लिया। लेकिन लौटकर फिर अपने पुराने चोले में आ गए।
इस
तरह की भी
बहुत सी
घटनाएं हैं।
मैं सोचता हूं
कि हमारे देश
के करीब
निन्यानवे
प्रतिशत
तथाकथित साधु
ओशो को पढ़ते
हैं। इस बात
पर ओशो ने एक
प्रवचन में
कहा कि ' ये
तथाकथित
संन्यासी
मुझे इसलिये
नहीं पढ़ते हैं,
या सुनते
हैं कि उन्हें
रुपांतरण
करना है। उन्हें
तो स्वयं
प्रवचन देना
होता है तो
मेरी पुस्तकें
पढ़ कर प्रवचन
देते हैं।’ और यह बात
पूरी सच है।
आज जितने भी
तथाकथित गुरु
प्रसिद्ध हो
रहे हैं, उन्हें
सुनें तो
स्पष्ट पता
चलता है कि
उन्होंने ओशो
को पढ़ा है।
बातें सब ओशो
की ले आते हैं
लेकिन किसी
में भी ओशो का
नाम तक लेने
की हिम्मत
नहीं है। ठीक
इससे उल्टा जब
भी बात चलती
है तो ओशो की
निंदा करने से
नहीं चूकते
हैं। इसके लिए
भी ओशो ने
कारण बताया है
कि 'जब वे
मेरे वचनों की
चोरी करते हैं
तो उन्हें मेरी
निंदा भी करनी
होती है ताकि
किसी को शक ना
हो कि
उन्होंने
चोरी की है।’ आज धर्म के
नाम पर बहुत
बड़ा गोरख धंधा
चल निकला है।
लेकिन कुछ भी
हो यह भी सच है
कि हर बहाने
ओशो का संदेश
लोगों तक
पहुंच रहा है,
कम से कम
इतना तो फायदा
हो ही रहा है।
आज
इति।
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