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शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

स्‍वर्णिम क्षणों की सुमधुर यादें--(अध्‍याय--49)

तिहाड़ जेल, कैदी और करामात—(अध्‍याय—उन्‍नचासवां)

दिल्ली की तिहाड जेल, जहां हर तरह के खतरनाक से खतरनाक अपराधी बसते हैं। एक बार ऐसा हुआ कि वहां पर टाडा के अंतर्गत गिरफ्तार कैदियों को ध्यान करवाने का अवसर आ गया। उस समय वहां किरण बेदी जी जेलर थीं। मैं समय पर पहुंचा। पहुंचने पर अच्छा स्वागत हुआ।
एक बडे से कक्ष में सारे कैदियों को बैठाया गया था। लगभग 15०० कैदी रहे होंगे। मैं बोलूं इसके पूर्व उन्हें बताया गया कि आज स्वामी जी आए हैं और आप लोगों को ध्यान करवाएंगे।

जब मैं बोलने को खडा हुआ तो कोई सुनने को ही तैयार नहीं। कैदियों को बड़ा अजीब लग रहा था कि ये कौन सज्जन आ गए जो उन्हें ध्यान सिखाएंगे। मैं बोलूं तो वे मुंह बनाएं, भद्दे इशारे करें, चिल्लाएं... अब कैसे इनको ध्यान करवाओ?
मैंने बोलना जारी रखा, मैंने कहा, 'आपने कोई अपराध नहीं किया है, सिर्फ अपराध यह हुआ है कि आप अपराध करते पकड़े गये, वर्ना आपसे भी बडे अपराधी बाहर खुले घूम रहे हैं, बस बात इतनी सी है कि वे पकड़ में नहीं आते। आपने कोई अपराध नहीं किया, आप अपराधी नहीं हैं।यह सुनना था कि सब के सब चुप बैठ गये। उन्हें लगा कि कोई है जो उन्हें अपराधी नहीं मानता है। कोई उन्हें इंसान की तरह सम्मान दे रहा है। बात उन्हें जंच गई। वे सुनने को तैयार हो गये। मैंने उन्हें ओशो के बारे में बताया और ध्यान के बारे में भी। ओशो के प्रसिद्ध ध्यान सक्रिय ध्यान के बारे में विस्तार से बताने के बाद उन सभी से इस ध्यान में उतरने का निवेदन किया।
सुबह—सुबह जब पंद्रह सौ कैदी एक साथ ध्यान करने लगे, दूसरे चरण में जब रेचन करने लगे तो यूं लगा मानो तिहाड़ जेल में हंगामा हो गया। मैंने जोर देकर कहा कि ' जो भी मन में है उसे पूरी तरह से बाहर फेंक दें।हम सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि उन लोगों के मन में कितना कुछ ना भरा होगा। और निश्चित ही उन्हें कभी वह सब अभिव्यक्त करने का अवसर ही नहीं मिला। आज जब मौका मिला और वह भी ध्यान की तरह, तो बिना किसी लाग लपेट के वे तो बस पूरी तरह से इसमें डब गये। इतनी त्वरा से उन्होंने ध्यान किया कि मैं देख कर दंग रह गया। याद आया ओशो कहते रहे हैं कि तुम्हारे तथाकथित साधु—संन्यासियों से अधिक निर्दोष, अधिक भोले तो अपराधी होते हैं। उनमें एक तरह का भोलापन होता है। मुझे नहीं पता कि इनमें से किस व्यक्ति ने क्या अपराध किया और क्यों किया लेकिन मैं अपने अनुभव से देख पा रहा था कि ये लोग हैं भोले। जब तीन चरणों से गुजर कर चौथे चरण में मौन में पंद्रह मिनट तक वे
सभी स्थिर हो गये, और उत्सव के संगीत के साथ नाच उठे तो यूं लगा मानो गंगा स्नान हो गया। उन लोगों को पहली बार यह स्वाद लगा कि जीवन में यह भी संभव है, यह दिशा भी है जहां से आनंद इतनी सहजता से मिल जाता है।
बाद में उन कैदियों ने किरण बेदी जी को पत्र लिख कर निवेदन किया कि उन्हें फिर ध्यान करना है, उन्हें ओशो की पुस्तकें पढ़नी हैं। कारागृह में बंद अनेक लोग सहजता से आनंदित हो उठे।
ऐसा ही अनुभव जूनागढ़ व सूरत की जेलों में भी रहा। मेरे अपने अनुभव में आया कि कैदी या जिन्हें अपराधी कहते हैं उनमें एक तरह की त्वरा होती है। वे जितनी पूर्णता से किसी चीज में उतरते हैं सामान्यतया आम लोग नहीं उतर पाते हैं। शायद यही कारण रहता होगा कि किसी समय विशेष में, किसी अवसर पर उनसे अपराध हो जाता है। यह त्वरा ही उन्हें उस हद तक ले जाती है।
कुनकुने लोग विभिन्न परिस्थितियों में भी कुनकुने ही रह जाते हैं। किसी को मारने का मन होता है लेकिन बस सोच कर रह जाते और ये कर गुजरते.. .एक अर्थों में ये लोग मूल्यवान हैं। यदि इन मित्रों को ध्यान की शिक्षा दी जाए, यदि इन लोगों को ओशो का संदेश बताया जाए तो क्रांति हो सकती है। मैंने अपनी आंखों से यह होते देखा, मैं अपने अनुभव से कहता हूं कि यह हो सकता है। इस दिशा में मित्रों को अपने प्रयास जारी रखने चाहिए।
यहां याद आता है जब ओशो किसी जापानी झेन सद्गुरु की बात बताते हैं...
जापान में एक झेन सद्गुरु लगातार छोटी—छोटी चोरियों के लिए जेल भेज दिया जाता था। और वह महान सद्गुरु था—न्यायाधीश भी उसका सम्मान करते थे। वे उससे पूछते, ' आप यह क्यों करते हैं? आपके हजारों शिष्य हैं, राजा भी आपके चरण छूने को आते हैं— और आपने किसी के जूते चुरा लिए...!'
वह बस मुस्करा देता। और उसके सारे जीवन में यह होता रहा—तीन महीने जेल में, तब दो या तीन महीने बाहर। तब वह फिर कोई बहाना ढूंढ लेता... और अंततः सभी को यह समझ आ गया कि उसका इलाज नहीं है।
लेकिन निश्चित ही कोई तो रहस्य होगा......
जिस दिन वह मर रहा था, एक शिष्य ने उससे पूछा, 'हमें रहस्य बताने के पूर्व हमें मत छोड़िये। क्यों आप अपने पूरे जीवन में पूरी तरह से अनावश्यक चीजों की चोरी करते रहे? जो भी आप चाहते हम उसे देने को तैयार थे; आपने कभी किसी चीज की मांग नहीं की।
उस व्‍यक्‍ति ने, मरने के पहले अपनी आंखें खोली और वह बोला, जेल में सबसे अधिक नशे में चूर, नींद में सोये लोग हैं— हत्यारे, बलात्कारी, चोर, सब तरह के अपराधी। उन्हें जगाने के लिए मुझे उनके साथ होना था; कोई दूसरा रास्ता नहीं था।
वह व्यक्ति निश्चित ही अत्यंत करुणावान रहा होगा।

 लाइव झेन
आज इति।



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