कुल पेज दृश्य

बुधवार, 30 दिसंबर 2015

दस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्याय--30)

अध्‍याय—तीसवां

 माउंट आबू के एक शिविर के बाद, जहां ओशो ने पहली बार सक्रिय ध्‍यान विधि का प्रयोग करवाया, हम अहमदाबाद लौट आए हैं।
वे सक्रिय ध्यान के विषय में लोगों की राय जानने को उत्सुक हैं। मैं जब उन्हें यह बताती हूं कि कुछ मित्र कह रहे थे कि आप उनकें दिमाग के पेंच ढीले कर रहे हैं, तो वे हंसकर कहते हैं, 'नहीं, पेंच ढीले करने में मेरा कोई रस नहीं है, उन्हें तो वे लोग फिर कस लेंगे।
मैं तो उनके दिमाग से पेंच ही निकाल लेने की कोशिश कर रहा हूं क्योंकि उनकी वहां कोई जरूरत नहीं है।’ फिर वे बीस मिनट तक हमें समझाते हैं कि सक्रिय ध्‍यान की पूरी प्रक्रिया मनुष्य के संस्कारित मन को उसके संस्कारों से मुक्त करने की है। वे आगे बताते हैं : सक्रिय ध्यान जेट गति से काम करने वाली विधि है। तीन महीने तक रोज एक घंटा इसे करना पूरे कचरे को साफ कर देने के लिए पर्याप्त है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें