सेक्स, सेक्स,
सेक्स.. .इस
शब्द में कैसा
जादू है कि
पढ़ते, सुनते
कहीं न कहीं
चोट जरूर पड़ती
है। क्या कोई
ऐसा व्यक्ति
होता है जो इस
शब्द को सिर्फ
शब्द की तरह
सुन ले या पढ़
ले? पश्चिम
ने इस विषय पर
फ्रायड के बाद
विचार शुरू
किया। और पूरब
में भारत ने
चेतना की इतनी
ऊंचाइयां छुई
हैं कि जीवन
के हर आयाम को
पूर्ण
स्वीकार किया
है। यहां पर
चार्वाक भी
महर्षि कहलाए।
वात्सायन और
कोक भी ऋषि
तुल्य माने
गये। शायद इस
पृथ्वी पर
सेक्स के बारे
में विस्तार
से चर्चा सबसे
पहले भारत में
ही हुई है..
.हजारों वर्ष
पूर्व।
आज
इस आधुनिक युग
में भी कोई
सोच भी नहीं
सकता कि मंदिर
की दीवारों पर
काम रत
मूर्तियां
बनी हों। पूरे
भारत में
कितने ही
मंदिरों में
ऐसी मूर्तियां
देखी जा सकती
हैं,
खजुराहो, कोणार्क, अजंता एलोरा
तो विश्व
प्रसिद्ध
स्थल हैं। ऐसी
सुंदर मूर्तियां
कि जो देखे
देखता रह जाए।
आप पूरे भारत
में घूम जाइये,
हर गली, हर
मौहल्ले, हर
चौराहे पर
गांव—गांव, नगर—नगर, शहर—शहर
आपको शिवलिंग
दिखाई देंगे।
इतना
होने पर भी सच
यह है कि इस
विषय पर बहुत
खुल कर न तो
चर्चा होती है
और न ही इस
विषय के बारे में
कोई बोलना
पसंद करता है, कम
से कम धार्मिक
लोग तो कतई
नहीं। कहते
हैं न कि
हथेलियों से
सूरज को ढंका
नहीं जा सकता।
कितना ही
छिपाओ सेक्स
को छिपाया
नहीं जा सकता।
आखिर जीवन का
आधार जो है, प्रत्येक
प्राणी का
रेशा—रेशा
सेक्स से ही
बना है, इतनी
मूल ऊर्जा को
कब तक और कैसे
कोई छिपा सकता
है। सेक्स पर
कितनी ही
पाबंदियों और
निषेधों के बावजूद
सेक्स चारों
तरफ अपना असर
दिखाता ही है।
कितने
आश्चर्य की बात
है कि इतनी
मूल जीवन
ऊर्जा के बारे
में कोई बोलता
ही नहीं है।
आज भी भारत
में सेक्स
एजेकुशन
स्कूलों में
दिया जाए या
नहीं इस पर
बहस होती है, आज
भी इसे
स्वीकारना
कठिन मालूम
होता है, भले
ही उचित
शिक्षा और समझ
के अभाव में
अनगिनत जीवन
बर्बाद हो रहे
हैं। न जाने कितने
लोग जानकारी
के अभाव में
जीवन भर तरह—तरह
की शारीरिक व
मानसिक
बीमारियों को
भोगते हैं।
यूं लगता है
कि मनुष्य की
सारी ऊर्जा
यहीं अटक गई
है, इससे
आगे बढ़े तो
कैसे बढ़े?
कितने
ही सोचने—विचारने
और सजग लोगों
को लगता भी है
कि इस बारे
में निश्चित
ही कुछ किया
जाना चाहिए
लेकिन बदनामी
कौन ले? इस
सुलगते सवाल
को कैसे
संभाले?
महाकरुणावान
ओशो ने इस विषय
पर साठ के दशक
में
सार्वजनिक
रूप से बोलने
की चुनौती को
स्वीकारा।
आखिर वे कैसे
इस अंधी दौड़
में मरती
मानवता को यूं
ही छोड़ देते
कि लोग उन्हें
भला—बुरा
कहेंगे।
ओशो
ने एक प्रवचन
श्रृंखला दी
जिसका नाम रखा
गया,
'संभोग से
समाधि की ओर।’
बस पूरे देश
में आग लग गई।
विरोध की ऐसी
आधी चली कि आज
तक भी उसका
असर दिखाई
देता है।
हालांकि इस
पुस्तक में
सिर्फ ओशो यह
समझाते हैं कि
कैसे सेक्स की
ऊर्जा का
ऊध्वर्गमन कर
समाधि तक
पहुंचा जाए।
लेकिन सेक्स
में उलझा मन
समाधि शब्द को
कैसे सुने? जिसे देखो
वह इस विषय पर
बोलता है मानो
ओशो सेक्स
करना सिखा रहे
हों, कोई
इसको इस तरह
से समझ ही
नहीं पाता कि
वे समाधि तक
जाने का
रास्ता दिखा
रहे हैं।
लेकिन
समझदार, सचेत,
बुद्धिमान,
प्रतिभावान,
विवेकवान
संवेदनशील
लोगों को ओशो
की बात समझ
में आई। वे
ओशो के साथ हो
लिए। लेकिन
सेक्स का
ठप्पा ओशो पर
ऐसा लगा कि वह
कभी हट ही
नहीं पाया।
अपनी 65०
पुस्तकों में
ओशो ने पुरातन
से पुरातन
शास्त्रों से
लेकर आधुनिक
से आधुनिक हर
विषय पर अपनी
दिव्य दृष्टि
दी है। मानव
इतिहास में
जितने भी
बुद्धत्व को
उपलब्ध ऋषि—महर्षि
हुए हैं उनके
वचनों पर
अभिव्यक्ति
दी है लेकिन
फिर भी ओशो के
साथ सेक्स...
असल में हम यह
कह कर सिर्फ
अपने बारे में
कहते हैं न कि
ओशो के बारे
में। ओशो ने
तो समाधि की
बात, ध्यान
की बात की, प्रेम
की बात की, सृजन
की बात की, सत्यम,
शिवम, सुंदरम
की बात की
लेकिन हमारी
रुचि उनमें हो
तो? हमारा
मन तो सेक्स
में अटका है, जबरदस्त
अटका है......हमारी
सारी
इंद्रियां
सेक्स से ऐसी
लबालब भर गई
हैं कि कुछ और
देखें तो
देखें कैसे?
कामातुर
आंखें चारों
तरफ सेक्स
ढूंढ लेती है।
जहां सेक्स को
देखना संभव भी
न हो वहां भी
सेक्स देख
लेना कामातुर
लोगों के लिए आसान
है। एक बार
किसी पत्रकार
वार्ता में एक
वृद्ध से दिखाई
देने वाले
सज्जन ने कहा
कि 'मैं पुणे
आश्रम गया हूं
और मैंने वहां
चारों तरफ
लोगों को
सेक्स करते
देखा है।’ मैं
सुन कर सत्र
रह गया। जिस
जगह पर मैं
स्वयं रहता हूं
जिस जगह का
शायद ही कोई
कक्ष ऐसा है
जो मैंने नहीं
देखा हो, वहां
पर खुले आम नर—नारी
सेक्स करते
हैं? क्या
गजब की बात थी।
मैंने कहा, 'श्रीमान
क्या आप अपनी
बात को अधिक
स्पष्ट करेंगे
कि सच में
आपने वहां
खुले में
लोगों को सेक्स
करते देखा?' अब वे थोड़े
सकुचाये।
मैंने कहा, 'हमारे देश
में जब दो लोग
मिलते हैं तो
अभिवादन में
हाथ जोड़कर
नमस्ते करते
हैं, पश्चिम
के देश में जब
दो लोग मिलते
हैं तो आलिंगन
करते हैं......क्या
आलिंगन को आप
सेक्स कहेंगे?'
वे वृद्ध
चुप हो गये।
यहां
मैं इतना ही
कहना चाहता
हूं कि यदि
ओशो की देशना
में कहीं भी, कैसे
भी सेक्स ढूंढ
लेते हैं तो
यह हमारी नजर का
कसूर है, हमें
अपने को जागकर
देखना चाहिए,
अधिक सजगता
से समझने की
कोशिश करनी
चाहिए। ओशो
सेक्स से पार
जाना सीखा रहे
हैं.. .जैसा वह कह
रहे हैं वैसा
हम समझ पाते
हैं, वैसा
हम कर पाते
हैं तो
निश्चित ही सेक्स
से ऊर्जा
मुक्त हो सकती
है और उच्च
तलों पर जा
सकती है। ऐसा
अनेक मित्रों
के जीवन में
घटा है, मैं
साक्षी हूं।
ओशो
ने कहीं कहा
है कि ' मैं
सेक्स का सबसे
बड़ा दुश्मन
हूं। यदि मेरी
बात सुनी गई, समझी गई तो
पृथ्वी से
सेक्स विदा हो
जाएगा।’ मैं
अपने अनुभव से
ओशो की इस बात
से सहमति
जताता हूं।
आज
इति।
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