ओशो
भर में
यात्राओं के
दौरान पता
नहीं कितने
संतों—महंतों
से मिलना हुआ
है। ऐसे कितने
ही साधुओं से
मिलना हुआ
जिनके पूरी
दुनिया में
नाम हैं।
लाखों उनके
शिष्य हैं।
लेकिन एक बात
सभी में देखने
में आई कि
अधिकांशत: ये
सभी कायर ही
हैं। कहते हैं
ना कि नाम बडे
और दर्शन खोटे।
एक बार ओशो के
साथ रह लेने
के बाद, अभय
की स्थिति को
इतने करीब से
महसूस कर लेने
के बाद, कायर
लोगों को
पहचानने में
देर नहीं लगती।
मैं
एक बार बंबई
से दिल्ली जा
रहा था और
एयरपोर्ट पर आसाराम
बापू से भेंट
हुई। वे
अहमदाबाद जा
रहे थे, बातचीत
हुई। मैंने
कहा, 'आसाराम जी आपके
बहुत से शिष्य
हैं, ओशो
के बहुत से
शिष्य हैं, और भी संतों
के बहुत सारे
शिष्य हैं,
यदि सभी संत मिलकर काम करें तो दुनिया में भाई चारे की बात बड़ी आसानी से फैलाई जा सकती है। यदि सभी संत एक हो जाएं तो यह संभव है।’ मेरी बात सुनकर बोले, 'आपकी बात सुंदर है, कभी साथ बैठ कर बात करेंगे।’ मैंने कहा, 'अभी तो मैं दिल्ली जा रहा हूं उसके बाद जब पुन: लौटू तो मिलेंगे।’ उसी रात अहमदाबाद जाकर आसाराम जी ओशो के खिलाफ बोले। ऐसा मामला है, इन तथाकथित लोगों का, मुंह पर कुछ, पीछे कुछ।
यदि सभी संत मिलकर काम करें तो दुनिया में भाई चारे की बात बड़ी आसानी से फैलाई जा सकती है। यदि सभी संत एक हो जाएं तो यह संभव है।’ मेरी बात सुनकर बोले, 'आपकी बात सुंदर है, कभी साथ बैठ कर बात करेंगे।’ मैंने कहा, 'अभी तो मैं दिल्ली जा रहा हूं उसके बाद जब पुन: लौटू तो मिलेंगे।’ उसी रात अहमदाबाद जाकर आसाराम जी ओशो के खिलाफ बोले। ऐसा मामला है, इन तथाकथित लोगों का, मुंह पर कुछ, पीछे कुछ।
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