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शनिवार, 19 दिसंबर 2015

दस हजार बुद्धों के लिए एक सौ गाथाएं—(अध्‍याय--15)

(अध्‍याय—पंद्रहवां)

दोपहर के भोजन का समय है, और हम सब ओशो के साथ मेज के चारों ओर बैठे हुए हैं। ऐसा लगता है कि जिन मित्रों ने इस शिविर का आयोजन किया है वे लोग बहुत निर्धन हैं। जो भोजन वे दे रहे हैं, वह बहुत निम्न स्तर का है। दाल बिलकुल पानी जैसी पतली है, और उसके साथ चूरी का चावल उबाला हुआ है जिसमें मैं काले कंकड़ देख पा रही हूं।

मैं ओशो के बगल वाली कुर्सी पर बैठी हूं और उन्होंने बड़े उत्साह से रवाना शुरू कर दिया है। वे इतने मजे से जा रहे हैं जैसे कोई बहुत स्वादिष्ट भोजन हो। एक वृद्ध व्यक्ति ओशो के पास लड्डूओं का डिब्बा लेकर खड़े हैं। वह एक लड्डू ओशो की थाली में रख देते हैं, जिसे ओशो मुस्कुराकर स्वीकार करते हैं। वह वृद्ध खुश होकर एक और लड्डू ओशो की थाली में रख देते हैं। ओशो उन्हें कुछ नहीं कहते, बस चुपचाप लड्डू लेकर मेरी थाली में रख देते हैं।
मैं एकदम से कहती हूं 'ओशो, मुझे नहीं चाहिए।
वे हंसकर कहते हैं, ना मत कहो, बस इसे अगले व्यक्ति की ओर बढ़ा दो।यह बात मुझे जमती है, और मैं वैसा ही करती हूं। जिन मित्र की थाली में मैंने लड्डू रखा, उन्होंने भी ओशो की बात सुन ली है, वह भी लड्डू को अपने से अगले व्यक्ति की ओर बढ़ा देते हैं।
लड्डू वृद्ध पहुंचता और, अंत में वापस उन व्यक्ति के डिब्बे में है। तो हम सभी का एक जोरदार हंसी का ठहाका फूट पड़ता है।
ओशो खाना खाते समय चुटकुले सुनाने का आनन्द लेते हैं। उनके साथ बैठकर भोजन करना दावत में बदल जाता है। यह बिल्कुल महत्त्व
नहीं रखता कि हम क्या खा रहे हैं। आज वे यह चुटकुला सुनाते हैं। एक बार अकबर ने बिना किसी कारण के बीरबल को थप्पड़ मारा तो बीरबल ने भी झटपट अपने पास खड़े एक व्यक्ति को थप्पड़ मार दी। वह व्यक्ति नाराज होकर बीरबल से पूछने लगा कि उसने क्यों उसे थप्पड़ मारा ३?
बीरबल बोला—पूछो मत—बस थप्पड़ को आगे बढ़ा दो।फिर तो यह खेल महल में दिनभर चलता रहा, और अन्त में रात को जब अकबर सोने लगा तो उसकी पत्नी ने उसे थप्पड़ मारा।
गंभीर मत बनो 'ओशो का मुरव्य संदेश है जिसका वे केवल उपदेश ही नहीं देते, वरन् क्षण—क्षण उसे जीते हैं।

 

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