पूरे
देश में ध्यान
शिविर लेते—लेते
मुझे यह तो
बहुत ही
स्पष्ट हो गया
कि शिविर के दौरान
तीन दिन
निश्चित ही
मित्र पूरी
त्वरा और लगन
से ध्यान करते
हैं लेकिन सभी
मित्रों के
लिए अपने—अपने
घर पर नियमित
ध्यान जारी
रखना मुश्किल
ही होता है।
मैंने देखा कि
अधिकांश
मित्रों को
कोई न कोई वजह
से ध्यान ना चाहकर भी
रोकना पड़ता
है। मुझे लगा
कि यदि देश की
चारों दिशाओं
में,
हर तरफ ऐसी
कोई जगह हो, जहां जाकर
मित्र ध्यान
कर सकें तो
बहुत ही शुभ
हो सकता है।
मेरे
मन में विचार
आया कि देश की
चारों दिशाओं
में एक—एक
विशाल ध्यान
केंद्र, कम्यून
या आश्रम का
निर्माण किया
जाए, जहां
सभी मित्र
अपने—अपने
निवास
स्थानों पर
आसानी से
पहुंच सकें और
ध्यान कर सकें,
ओशो संदेश
का स्वाद ले
सकें। ओशो ने
अपने काम की
शुरुआत से ही
सभी मित्रों
को हर शहर, नगर,
गांव में
ओशो ध्यान
केंद्रों के
लिए प्रोत्साहित
किया, केंद्रों
के नाम दिए और
उन्हें
संचालित करने के
लिए कुछ
निर्देश भी
दिए। एक समय
था जब पूरे
भारत में लगभग
साढ़े तीन
सौ ओशो ध्यान
केंद्र
स्थापित हुए
और ओशो संदेश
व ध्यान को नए—नए
मित्रों तक
पहुंचाने में
बहुत प्रेम व
ऊर्जा से
कार्य करते
रहे। और उसके
बहुत ही सफल
परिणाम भी
देखने में आते
रहे हैं।
मेरे
अपने अनुभव से
भी मुझे लगा
कि यदि कोई ऐसी
जगह हो जहां
पर मित्र
इकट्ठे हो
सकें, ओशो
साहित्य, ऑडिया—वीडियो
की सुविधा हो
और नियमित
ध्यान भी कर
सकें तो इसके
बहुत शुभ
परिणाम आ सकते
हैं।
अधिक
से अधिक मित्र
ध्यान नियमित
कर पाएं इसके
लिए अच्छे
स्थान की
आवश्यकता
होती ही है।
मैं गुजरात के
मेहसाणा
में लगातार
ध्यान
शिविरों का
संचालन करता
रहा हूं। यहां
बहुत ही सुंदर
जमीन थी, चारों
तरफ फैली हुई
प्रकृति थी, और मित्रों
का अच्छा समूह
भी था। वहां
वर्ष में तीन—चार
ध्यान शिविर
नियमित हो रहे
थे, और
मित्रों की
संख्या भरपूर
होती थी।
यहां
हम खुली जगह
में शामियाना
लगाकर ध्यान शिविरों
का आयोजन करते
थे। एक दिन
मैंने अपनी
मंशा मित्रों
को सुनाई कि क्यों
नहीं हम यहां
पर एक कम्यून
का निर्माण करें? सभी
मित्रों ने
सहमती दी और
अपने—अपने
स्तर पर सहयोग
करने का वचन
भी दिया।
मैंने
पुणे प्रवास
पर अपनी इस
बात को श्री
जयेश व अन्य
मित्रों को
बताई तो
उन्हें भी यह
विचार अच्छा
लगा। स्वयं
जयेश काफी
मित्रों के
साथ मेहसाणा
आए और अपनी आंखों
से जगह का
निरीक्षण
किया।
और
बस चल निकला
कम्यून
निर्माण का
सिलसिला। सभी
आवश्यक
संसाधन सहजता
से आते चले
गये। लगभग बीस
एकड़ जमीन में
तीन सौ
मित्रों के
आवास व भोजन
की सुविधा, लगभग
दो हजार मित्र
एक साथ ध्यान
कर सकें उतना
बड़ा ध्यान
कक्ष, स्वीमिंग पूल, जकूजी,
सोना बाथ, जिम, बुक
स्टील...... बाग—बगिचे, हरियाली,
पक्षियों
का बसेरा, मोर
तो इतने हैं
कि बस चारों
तरफ संन्यासी
मित्रों के
साथ नाचते
रहते हैं।
देखते
ही देखते इस
मनमोहक
प्राकृतिक
स्थल पर सभी
सुख—सुविधाओं
से सुसज्जित
कम्यून का
निर्माण हो गया
जिसका नाम रखा
गया ओशो मनन
कम्यून।
यहां
वर्ष में पांच
उत्सव मनाए
जाते, हर माह
ध्यान
शिविरों का
आयोजन होता है।
यह इतनी अच्छी
जगह स्थित है
कि राजस्थान,
मध्य
प्रदेश, पंजाब
और गुजरात से
मित्र बहुत ही
आसानी से यहां
पहुंच सकते
हैं।
मेरा
बहुत शुरू से
मन रहा है कि भारत
की चारों
दिशाओं में
ऐसे एक—एक
कम्यून होने
चाहिए ताकि
अपने—अपने
क्षेत्र के
मित्र वहां
जाकर कुछ दिन
ध्यान कर सकें, कार्य—
ध्यान का
अनुभव ले सकें
व ओशो के
कम्यून जीवन का
स्वाद अनुभव
कर सकें। मेहसाणा
कम्यून के बाद
इसी दिशा में बैंगलुरू
में मित्रों
से बात हो रही
थी और उस दिशा
में प्रयास भी
जारी हो चुके
थे लेकिन इस
बीच
स्वास्थ्य
बहुत बिगड़ गया।
कैंसर
ने शरीर को
ऐसा पकडा
है कि पूरी
कोशिश और
इच्छा होने के
बावजूद इस कार्य
को आगे बढाना
संभव नहीं हो
पा रहा है... आशा
है प्रेमी
मित्र इस दिशा
में प्रयास
जारी रखेंगे, भारत
की चारों
दिशाओं में
ओशो के
कम्यून.......।
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