(अध्याय—नौवां)
मैं
वीटी स्टेशन
के
प्लेटफार्म
पर खड़ी ओशो का
इंतजार कर रही
हूं वे जबलपुर
से आने वाले
हैं। मैं
हैरान हूं कि
अन्य कोई
मित्र नजर
नहीं आ रहे हैं
और सोचने लगती
.हूं कि कहीं
शे उक्तके आने
की कोई गलत
सूचना तो नहीं
मिल गई। फिर
भी मैं यही तय
करती हूं कि
गाड़ी आने तक
तो इंतजार
करुंगी ही।
मेरी आंखें
किसी परिचित
चेहरे को खोज
रही हैं, लेकिन
कोई दिखाई
नहीं पड़ता।
बहुत गर्मी है,
मुझे पसीना
आने लगता है।
गाड़ी जल्दी ही
पहुंचने वाली
है, लेकिन
उन्हें लेने
अभी तक कोई
नहीं पहुंचा
है।
मुझे
संदेह होता है
कि क्या सभी
मित्रों ने एक
साथ ओशो को
छोड़ने का
फैसला कर
.लिया है
क्योंकि उनके
इर्द—गिर्द
सदा ही विवाद
चलते रहते हैं,
वे सत्य को
नग्न रूप से
कह रहे हैं, जिसे
अधिकांश लोग
सहजता से निगल
नहीं पाते। वे
बिना किसी दया
के भारत की
सभी जड़
परम्मराओ पर
कठोर प्रहार
कर उन्हें
उखाड़ रहे हैं।
मैं
अपने विचारों
में खोई हुई हूं
कि
प्लेटफार्म
पर गाड़ी के
पहुंचने के
शोर से चौंक
जाती हूं।
मेरा हृदय तेजी
से धड़कने लगता
है और नजरे
एयरकंडीशंड
कैपार्टमेंट
की ओर टिक
जाती हैं।
यात्री एक—एक
कर नीचे उतरने
लगते हैं।
थोड़े से ये
मिनट अनंतकाल
जैसे लगते हैं।
अंतत:, वे भी
गाड़ी से उतर
रहे हैं। मैं
उनकी ओर दौड़ती
हूं और वे
गाड़ी से उतर
आते हैं। मैं
उनके चरण छूती
हूं और अपना
हाथ मेरे सिर
पर रखकर वे
मुझे
आशीर्वाद
देते हैं। मैं
उनकी मौजूदगी
में अत्यन्त
आनन्दित हूं और
लगता है जो
अदृश्य
सुगन्ध
उन्हें घेरे
रहती है उसने
मुझे भी अपने
में समेट लिया
है।
वे
पूछते है, दूसरे
मित्र कहां
हैं?'
मैं
उन्हें बताती
हूं मुझे
मालूम नहीं कि
बाकी और मित्र
क्यों नहीं आए
हैं,
पर यह मुझे
पता है कि
आपको कल ठहरना
है।’मैं
उनसे पूछती
हूं क्या वे
टैक्सी से
चलना चाहेंगे।
वें
कहते हैं, हम
इंतजार करते
हैं। मित्र
जल्दी ही आते
होंगे।’मैं
उनके चेहरे की
ओर देखती हूं।
वहां किसी तरह
की बेचैनी या
जल्दबाजी
नहीं है। हम
दोनों को
छोड्कर बाकी
लगभग सभी लोग
प्लेटफॉर्म
से जा चुके
हैं। यह देखकर
मैं थोड़ी
चिंतित हो
जाती हूं। और
वे कुछ
चुटकुले सुना—सुनाकर
मुझे हंसाने
लगते हैं।
मेरे अन्तरतम
का एक हिस्सा
तो उनके साथ
अकेले होने के
कारण बहुत
आनंदित है, लेकिन दूसरा
हिस्सा उनके बारे
में :चिंतित
है—वे चौबीस
घंटे गाड़ी में
बिताकर आए हैं
और अब यहां
गर्मी में खड़े
हुए हैं। मैं
बहुत असहाय
महसूस करती
हूं।
अंतत:, कोई
आधे घंटे बाद,
ईश्वरभाई,……
लहरुभाई व
अन्य कुछ
मित्र उन्हें
लेने भागे चले
आ रहे हैं।
पूरा दृश्य
देखकर वे लोग
भी हक्के—बक्के
रह जाते हैं
क्योंकि
रेलवे पूछताछ
वालों ने
उन्हें बताया
था कि गाड़ी
आधा घंटा लेट
है।
ओशो
की यह बड़ी कला
है कि वे कभी
किसी को
अपराधभाव
नहीं करने
देते वे इतने
प्रेम से:
सबसे मिलते
हैं कि जो
अनुभव।
कुछ हुआ उसके प्रति
कोई भी गंभीर
नहीं रह जाता।
हंसते हुए और
मित्रों से
बात करते हुए
वे चल पड़ते
हैं और मैं
ठगी सी उनके
पीछे हो लेती
हूं और मेरा
हृदय कहता है, वे
इस संसार के
नहीं हैं।’
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