(अध्याय—चौबीसवां)
ओशो
बाथरूम में
हैं। घर का
रसोइया किसी
हरे जूस से
आधा भरा हुआ
एक कप लेकर
आता है। वह
कहता है, यह
नीम का जूस है
और ओशो सुबह
उठते ही यह
पीते हैं।’ वह कप को मेज
पर रखकर चला
जाता है।
जब
ओशो बाथरूम से
बाहर आते हैं
तो मैं उन्हें
कप में रखे
नीम के पत्तों
के रस के बारे
में बताती हूं।
वे कहते हैं, यह
मैं पहले पिया
करता था लेकिन
अब इसे पीना
मैंने बंद कर
दिया है। इससे
खून साफ होता
है। यह तुम पी
लो।’ मैं
अपनी हथेली पर
एक बूंद लेकर
उसको चखती हूं।
यह काफी कड़वा
है। मैं ओशो
से कहती हूं
यह तो बहुत
कडुवा है। वे
कहते है एक
क्षण को अपनी
सांस रोक ले
और एक ही घूँट में
सारा पी जा।’ मै
आज्ञाकारी
बच्चे की भांति
ऐसा ही करती
हूं और वे
तीनों दिन मुझे
नीम का जूस पिलाते
है और घर पर
जाकर भी उसे
चलू रखने को
कहते है।
इन
दिनों मैं
सक्रिय ध्यान
नियमित रूप से
कर रही हूं और
मेरे नाभि केन्द्र
में मुझे कुछ
जलन की अनुभूति
होती है व
पूरे दिन
प्यास लगी
रहती है इसके
बारे में
मैंने कभी ओशो
से बात नहीं
की लेकिन नीम
का जूस मेरी
तकलीफ के लिए
औषधि का काम
करता है।
मैं
नीम का जूस
पीना दो महीने
तक जारी रखती
हूं जब कि एक
दिन एक वृद्ध
स्त्री मुझे
बताती है कि
नीम का जूस एक
हफ्ते से अधिक
नहीं लेना चाहिए।
वह यह सुनकर
हैरान होती है
कि मैं दो
महीने इसे पी
रही हूं। वह
कहती हैं, तेरे
गुरू ने ही
तुझे
से
लगातार बचाया
है। वरना तो
यह बहुत
नुकसान
पहुंचा सकता
है।’
मुझे लगता
है कि उस
वृद्ध स्त्री
के माध्यम से
ओशो ने ही
मुझे संदेश
भिजवाया कि
मुझे नीम का
जूस पीना बे द
कर देना चाहिए।
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