(अध्याय—बारहवां)
ओशो
पूना में सोहन
के घर ठहरे
हैं और संघवी
टिफिन फैक्ट्री
के ग्राउंड
में उनके
प्रवचन चल रहे
हैं। संघवी
टिफिन
फैक्ट्री
सोहन के घर से
काफी दूर है।
आज शाम प्रवचन
के लिए जाने
का .समय हो
चुका है लेकिन
ड्राइवर अभी
तक नहीं आया
है। हम करीब
पाच मिनट तक
इंतजार करते
हैं और तब ओशो
अपनी घडी की
ओर देखते
ह्रुए कहते
हैं र देर हो
रही है, चलो
चलते हैं।’ इससे पहले
कि कोई कुछ
कहे, .वे
कार का आगे का दरवाजा
खोलकर
ड्राइवर की
सीट पर बैठ
जाते हैं और
कार स्टार्ट
कर देते हैं।
सोहन और मैं
हैरानी से एक—दूसरे
की ओर देखती हैं।
मैं आगे का
दरवाजा खोलकर
सोहन को उनके
साथ बैठने को
कहती हूं तथा
मैं पीछे की
सीट पर बैठ
जाती हूं। वे
बहुत तेज कार
चला रहे हैं, और हम दोनों
अपनी सांसे
थामें बैठी
हुई हैं। इस
रास्ते में
इतने मोड़ हैं,
कि मैं
सोचने लगती
हूं उन्हें
रास्ता मालूम
भी है या नहीं।
मुझे
अचंभा होता है
कि कुछ ही
मिनटों में हम
अपनी मंजिल पर
पहुंच जाते
हैं। जो मित्र
उनके स्वागत
के लिए
प्रतीक्षा
में खड़े हैं
वे लोग आकर
पीछे का
दरवाजा खोलते
हैं।’ मैं
बाहर निकलती
हूं तो वे
मुझसे पूछते हैं,
'ओशो कहां
हैं?'
इस
बीच,
ओशो आगे का
दरवाजा स्वयं
खोलकर बाहर
निकल आए हैं
और पोडियम की
ओर चल पड़ते
हैं। मैं
सिर्फ अंगुली
से ही उनकी ओर
इशारा करती हूं
तथा अपनी घड़ी
की ओर देखती
हूं। हम समय
से दो मिनट
पहले ही पहुंच
गए हैं। ओशो
कभी भी प्रवचन
के लिए देर से
पहुंचना पसंद
नहीं करते।
क्या विलक्षण सदगुरू
हैं। समयातीत
में जीते हैं
और सर्वदा ही
समय के पाबंद।
ओशो आपकी
करुणा अपार है।
अपने
सहयात्रियों
के लिए आपके
प्रेम और आपकी
करुणा को
शब्दों में
व्यक्त नहीं
किया जा सकता।
जिन्होंने
उसका स्वाद
लिया है, वे
ही इसे समझ
पाएंगे।
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