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रविवार, 18 नवंबर 2018

आनन्द गंगा-(ओशो) भुमिका

आनन्द गंगा-(ओशो) 

भूमिका

मेरे बांसुरी वादन में वे उपस्थित हैं
आज अधिकांश, संवेदनशील लोग विशेषकर कलाकार, सर्जक ओशो से जुड़ गये है। इसलिए मैं निस्संकोच कह सकता हूँ कि आने वाला समय निश्चित ही ओशो का होगा। चारों ओर ओशो के ही जीवन-दर्शन का बोलबाला होगा। मैं अक्सर महसूस करता हूँ कि मेरी बांसुरी वादन में वे उपस्थित हैं, मेरे प्राणों में उनका ही नाद है, उनकी ही अनुगूंज है, उनका ही माधुर्य है।
ओशो जो बोलते हैं, उसमें और संगीत में कोई फर्क नहीं होता। जैसे तानपूरे का सुर बजने लगता है और हम उस सुर के ध्यान में मग्न हो जाते हें एक बार मग्न हो गए तो फिर अन्तर्ध्यान में प्रविष्ट हो जाते हैं उसके बाद जो होता है, उसे केवल हृदय में महसूस किया जा सके। वही तो हमारी देह के रोंए-रोएं में, हमारे आचरण में उतरती है। इसलिए मैंने कहा कि मेरे बांसुरी वादन में वे उपस्थित है।
पंडित हरिप्रसाद चौरसिया



ओशो-परिचय


जिस दिन हृदय इतने प्रेम से भर जाता है कि चारों ओर परमात्मा के दर्शन होने लगते हैं, उसी दिन भय का अन्धकार विलीन हो जाता है। और जहां भय नहीं है वहां जीवन का सत्य है। जहां भय नहीं है। वहां जीवन का आनन्द है। जहां भय नहीं है। वहां जीवन का सौन्दर्य है। और जहां भय नहीं है। वहां जीवन का संगीत है। लेकिन अभी तो हम सब विसंगीत में है, दुःख मे है, चिन्ता में है भय में है, क्योंकि प्रेम का मन्दिर हम नही बना पाये। आज तक की पूरी मनुष्यता ही गलत रही है। ठीक और स्वस्थ मनुष्यता का जन्म हो सकता है। उसके लिए मनुष्य के प्राणों से भय को हटाकर प्रेम को स्थापित करना होगा।

भगवान श्री रजीनश अब केवल "ओशो" नाम से जाने जाते है। ओशो के अनुसार उनका नाम विलियम जेम्स के शब्द "ओशनिक" से लिया गया है, जिसका अभिप्राय है सागर में विलीन हो जाना। "ओशनिक" से अनुभूति की व्याख्या तो होती है, लेकिन वे कहते हैं कि अनुभोक्ता के सम्बन्ध में क्या? उसके लिए हम "ओशो" शब्द का प्रयोग करते हैं। बाद में उन्हें पता चला कि ऐतिहासिक रूप से सुदूर पूर्व में भी "ओशो" शब्द प्रयुक्त होता रहा है, जिसका अभिप्राय है भगवत्ता को उपलब्ध व्यक्ति, जिस पर आकाश फूलों की वर्षा करता है।

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