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सोमवार, 19 नवंबर 2018

चेतना का सूर्य-(प्रवचन-01)

प्रवचन-पहला  (सरल सत्य)

एक मूर्तिकार को कोई पूछ रहा था कि तुमने यह मूर्ति बहुत सुन्दर बनायी है तो उसे मूर्तिकार ने कहा-मैंने बनायी नहीं है, मैं तो उस रास्ते से गुजरता था और इस पत्थर में छिपी मूर्ति ने मुझे पुकारा। मैनें जो व्यर्थ पत्थर इसमें जुडे थे, उन्हें अलग कर दिया और मूर्ति प्रगट हो गयी। मैंने कुछ जोड़ा नहीं, कुछ घटाया। बेकार पत्थर जो मूर्ति के चारों तरफ जुड़ें थे, उन्हें मैंने छांट दिया है ओर मूर्ति जो छिपी थी, वह प्रगट हो गयी।
                                                           ......इसी अध्याय से
विगत वर्ष दुनिया के बायोलॉजिरूटों की, जीवशास्त्रियों की एक कान्फ्रेंस में ब्रिटिश बायोलॉजिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष बादकुन ने एक वक्तव्य दिया था। उस वक्तव्य से ही मैं आज की थोड़ी-सी बात शुरू करना चाहता हूँ। उन्होंने उस वक्तव्य में बड़ी महत्त्वपूर्ण बात कहीं। उन्होंने कहा कि मनुष्य के जीवन का विकास किन्हीं नयी चीजों का संवर्धन नहीं है, नथिंग ऐड इट, वरन्‌ कुछ पुरानी बाधाओं का गिर जाना है। मनुष्य के विकास में कुछ जुड़ा नहीं, मनुद्वय के भीतर जो छिपा है, वह प्रगट होता हैं तो सिर्फ बीच की बाधाएं अलग होती हैं। पशुओं ओर मनुष्य में विचार करें तो मनुष्य के भीतर पशुओं से कुछ ज्यादा नहीं है।, बल्कि कुछ कम है। पशु के ऊपर जो बाधाएं हैं, वह मनुष्य से गिर गयी हैं और पशु के भीतर जो छिपा है, वह मनुष्य से प्रगट हो गया हैं।

एक बीज में और फूल में-फूल में बीज से ज्यादा नहीं है, कुछ कम हैं। यह बहुत उलटा मालूम होता है, लेकिन यही सच हैं बीज में जो बाधाएं थीं, वे गिर गयी हैं, फूल प्रगट हो गया है। पौधों में पशुओं से कुछ ज्यादा हैं, बाधाएं ज्यादा हैं, हिण्ड्रेंसेज ज्यादा हैं। वे गिर जाएं तो पौधे पशु हो जायें, पशुओ की बाधाएं गिर जायें तो पशु मनुष्य हो जायें।
मनुष्यों की बाधाएं गिर जायें, फिर जो शेष रह जाता है, उसका नाम परमात्मा है। अगर समस्त बाधाएं गिर जायें, जो छिपा है वह पूरी तरह से प्रगट हो जाये तो उस शक्ति को हम जो भी नाम देना चाहें-आत्मा, परमात्मा या कोई भी। नाम न हम देना चाहें तो भी चलता हैं मनुष्म में भी अभी बाधाएं मौजूद हैं, इसलिए मनुष्य के विकास की सभी सम्भावना है। बादकुन को आध्यात्म से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन उसका वक्तव्य ठीक वैसा ही है, जैसा पच्चीस सौ वर्ष पहले बुद्ध ने अपने ज्ञान की घटना के समय दिया है।
जिस दिन बुद्ध को पहली बार ज्ञान हुआ तो लोगों ने उनसे पूछा आपको क्या मिल गया है? तो बुद्ध ने कहा मुझे मिला कुछ भी नहीं, जो मेरे भीतर था, वह प्रगट हो गया है। मुुझे मिला कुछ भी नहीं , जो मेरे ही पास था, मुझे ज्ञात हो गया। मुझे मिला कुछ भी नहीं, जो मैं था ही और जिसके प्रति मैं सोया था, उसके प्रति मैं जाग गया हूँ। बल्कि बुद्ध ने यह भी कहा तुम्हें मैं यह भी कह दूँ, अज्ञान था, वह खो गया, नसमझी थी, वह खो गयी और जो मुझे मिला है, अब मैं कह सकता हूँ, वह मेरे पास था ही, लेकिन सिर्फ मैं अपरिचित था।
बादकुन और बुद्ध के वक्तव्यों में फर्क नहीं है। लेकिन बादकुन का वक्तव्य मनुष्य के पिछड़े हुए प्राणियों के सम्बन्ध में दिया गया हैं और बुद्ध का वक्तव्य मनुष्य से आगे गये व्यक्ति के सम्बन्ध में दिया गया है। ध्यान की प्रक्रिया आपको किसी नये जगत में नहीं ले जाती, सिर्फ उसी जगत्‌ में परिचित करा देती है,जहाँ आप जन्मों - जन्मों से थे। ध्यान की प्रक्रिया आपमें कुछ जोड़ती नहीं, गलत काट देती है गिरा देती है, समाप्त कर देती है।
एक मूर्तिकार से कोई पूछ रहा था कि तुमने यह मूर्ति बहुत सुन्दर बनायी है तो उस मूर्तिकार ने कहा मैंने बनायी नहीं है, मैं तो उस रास्ते से गुजरता था और इस पत्थर में छिपी मूर्ति ने मुझे पुकारा। मैेंने जो व्यर्थ पत्थर इसमें जुड़े थे, उन्हें अलग कर दिया और मूर्ति प्रगट हो गयी। मैंने कुछ जोड़ा नहीं, नहीं, कुछ घटाया है। बेकार पत्थर जो मूर्ति के चारों तरफ जुड़े थे, मैंने उन्हें छांट दिया है और मूर्ति जो छिपी थी, वह प्रगट हो गयी।
मनुष्य के भीतर जो छुपा है,जो कुछ गलत जुड़ा है, उसे काट देने से प्रगट हो जाता है। परमात्मा मनुष्य से भिन्न कुछ नहीं हैं, मनुष्य के भीतर छिपी ऊर्जा, एनर्जी का नाम है। लेकिन जैसे हम हैं, उसमें बहुत मिट्टी मिली है सोने में। थोड़ी मिट्टी छट सके तो सोना प्रगट हो सकता हैं
तो ध्यान के सम्बन्ध में पहली बात जो मैं आपसे कह दूँ वह यह कि आप अपने ध्यान के विकास में अन्तिम क्षणों में भी जो होंगे, वह आप अभी, इस क्षण में भी हैं। ध्यान आप में कुछ जोड़ नहीं जायेगा, सिर्फ घटा जायेगा। आपसे कुछ गलत को काट जायेगा, कुछ व्यर्थ को अलग कर जायेगा और जो सार्थक है वह पूरी तरह से प्रगट होने की सुविधा पा सकेगा। नथिंग समथिंग न्यू ऐड इट-नहीं कुछ नया जुड़ेगा, सिर्फ पुरानी बाधाएं गिर जायेंगी। इन बाधाओं को गिराने के लिए जो प्रयोग हम चार दिनों में करने वाले हैं। वे बहुत वाइटल, बहुत प्राणवान्‌ प्रयोग हैं। और जो लोग भी ईमानदारी से उसे करने को राजी होंगे, उनके लिए परिणाम होने सुनिश्चित हैं। ईमानदारी शब्द को थोड़ा समझ लेना उचित होगा।
ईमानदारी से मेरा अर्थ है कि जो सच में ही करेंगे, उनका परिणाम निश्चित है। सिर्फ उन्हीं के लिए परिणाम नहीं हो सकेगा, जो करेंगे नहीं। उनके परिणाम की अपेक्षा भी नहीं की जा सकती। और किसी पात्रता के लिए मैं आपसे नहीं कह रहा हूँ। और दूसरी किसी क्वालिफिकेशन की जरूरत नहीं है। सिर्फ एक पात्रता चाहिए कि जो में आपसे कहूंगा इन चार दिनों में, वह आप करेंगे। और जो मैं करने को कहने वाला हूँ, वह कठिन नहीं है, बहुत सरल है। छोटे-से-छोटा बच्चा भी कर सकता है। इसलिए आप यह भी न सोंचे। कि इतना कठिन हो कि हम कर न पायें नही, कठिनाई अगर होगी ता आपके अपने प्रति बेईमान होने में हो सकती है। मेथड में, विधि में हो सकती है। छोटे-से-छोटा बच्चा जो भाषा समझ सकता है, वह भी कर सकता है। सिर्फ आपके सहयोग की जरूरत है कि आप करें। तो मैं आपको प्रयोग समझा दूँ, सरल-सा प्रयोग है।
सभी महत्त्वपूर्ण चीजें सरल होती हैं, सिर्फ गैंर-मत्त्वपूर्ण चीजें जटिल और कठिन होती हैं। सभी सत्य सरल हाते हैं, सिर्फ असत्य जटिल और कॉपलेक्स होते हैं।
लेकिन हम अजीब लोग हैं! अगर कोई चीज हमें बहुत कठिन और जटिल मालूम पडे़ तो हम सोचते हैं कोई बहुत प्रोफाउण्ड टुथ होगा, कोई बहुत गम्भीर सत्य होना चाहिए। ऐसा नहीं हैं जीवन के सब सत्य दो ओैर दो चार जैसे सरल हैं, सिर्फ असत्य कठिन होते हैं। असत्य को कठिन होना पड़ता है, क्योंकि अगर सत्य सरल हो तो पकड़ में आ जायेगा कि असत्य है। असत्य को बहुत चालबाजियों में, गोल घरों में घूमना पड़ता है। वह जैसा है, वैसा ही परिणाम है। कोई मुँह छिपाने की, चेहरे बदलने की कोई जरूरत नहीं है। इसलिए दुनिया में जितनी कठिन बातें कही गयी हैं, आमतौर से असत्य हैं, दुनिया में जितनी भी सत्य बातें कहीं गयी हैं, वे आमतौर से सरल और सीधी हैं। चाहे उपनिषद् हों, चाहे गीता हो, चाहे कुरान हो, चाहे बाइबिल, चाहे बुद्ध और महावीर के वचन, वे बिल्कुल सीधी-दो और दो चार की भांति हैं।
यह जो प्रयोग में आपसे कहता हूँ, अत्यन्त सरल है परिणाम इसके बहुत हैरानी करने वाले हैं। इस प्रयोग में चार चरण हैं दस-दस मिनट के। पहले तीन चरण में आपको कुछ करना है और चौथे चरण में आपको कुछ भी नहीं करना है। परमात्मा की शक्ति कुछ करें, इसके लिए सिर्फ प्रतीक्षा करनी है। पहले चरण में पहले दस मिनट तीव्र श्वास का प्रयोग हैं दस मिनट इस भांति श्वास लेनी है, जैसे कि लोहार की धौंकनी चलती हो। जितनी फास्ट हो सके, जितने जोर से श्वास की चोट भीतर पहुंचाई जा सके। श्वास का उपयोग धौंकनी की तरह करना हैं एक तो जितने जोर से भीतर श्वास की चोट  जाती हैं, हमारे शरीर में छिपी हुई प्राण-ऊर्जा जगती है। शायद आपको पता न हो कि हम सबके शरीर में - हमारे ही शरीर में नहीं, जीवन के समस्त रूपों में जो ऊर्जा छिपी है, वह विद्युत्‌ का रूप है, इलेक्ट्रिसिटी का रूप है। हमारा शरीर भी चल रहा है। जिस शक्ति से, वह विद्युत का रूप है। वह ऑर्गेनिक इलेक्ट्रिसिटी जिसे हम कहें, वह जीवन विद्युत्‌ का रूप है। इस विद्युत्‌ को जितनी ज्यादा ऑक्सीजन मिले, उतनी ही तीव्रता से जगती हैं इसलिए बिना ऑक्सीजन के आदमी मर गया है। ओर बिल्कुल मरते हुए आदमी को भी अगर ऑक्सीजन दी जा सके तो हम उसे थोड़ी-बहुत देर जिन्दा रख सकते हैं।
इस दस मिनट में इतनी जोर से श्वास लेनी है कि आपके भीतर से सारी वायु बाहर चली जाये और बाहर की ताजी वायु भीतर चली आये। आपके शरीर के भीतर ऑक्सीजन का अनुपात बदल डालना है। वह अपने आप बदल जाता है। और चोट इतने जोर से कर देनी हे। कि शरीर में जो शक्ति सोयी हुई है, वह उठने लगे। पांच मिनट के प्रयोग में ही कोई साठ प्रतिशत लोगों के शरीरों के भीतर कम्पन शुरू हो जायेगा, वह आपको बहुत बहुत ही स्पष्ट मालूम पड़ने लगेगा। कि कोई चीज वाइब्र्रेट करती हुई उड़ने लगी है।योग ने उसे 'कुण्डलिनी' कहा है। अगर हम विज्ञान से पूछेंगे तो उसे 'बॉडी इलेक्ट्रिसिटी' कहेगा। वह कहेगा, वह शरीर की विद्युत है।
अभी अमेरीका में एक आदमी हैं, जिसके शरीर की विद्युत्‌ से बहुत अद्भुत प्रयोग हुए हैं। उसके शरीर की विद्युत्‌ सामान्यतया ज्यादा है, जितनी आमतौर से होती है। उसने एक विशेष प्रकार की श्वास का प्रयोग करने के बाद हाथ में पाँच केंडल का बल्ब लेकर उसे जला दिया है। स्वीडन में अभी एक स्त्री जिन्दा है, जिसे कोई भी छू नहीं सकता। उस स्त्री का विवाह नहीं हो सके, क्यों उसको छूने से शॉक वैसा ही लगेगा जैसा कि विद्युत्‌ को छूने से लगता है। ये थोड़े-से.... इनके शरीर में विशेष विद्युत्‌ है और कैमिकली थोड़े-से फर्क हैं। इसलिए ज्यादा परिणाम हैं। लेकिन विद्युत्‌ है सबके शरीर में और अभी पहले ही दिन कम-से-कम साठ प्रतिशत लोगों को-सौ प्रतिशत को हो सकता है, कोई कारण नहीं है। लेकिन चालीस प्रतिशता आमतौर से प्रयोग नहीं कर पाते, पीछे खड़े रह जाते हैं। ऐसा मेरा अनुभव हे, इसलिए साठ की बात कह रहा हूँ। लेकिन आपमें से प्रत्येक से कहूंगा कि साठ प्रतिशत में होना चालीस प्रतिशत में मत होना।
पाँच मिनट के बाद ही आपके शरीर के भीतर कोई चीज कांपती हुई, उठती हुई मालूम पड़ने लगेगी। शरीर एक नयी शक्ति से भरता हुआ मालूम पड़ने लगेगा। दस मिनट पूरा प्रयोग करने पर आप इलेक्ट्रीफाइड हालत में हो जायेंगे। सारा शरीर विद्युत्‌ का एक प्रवाह बन जायेगा। स्वभावतः इसके परिणाम होंगे। जब शरीर में जोर से वाइब्रेशन्ज होंगे तो शरीर कांपने लगेगा, डोलने लगेगा, नाचने लगेगा।
दूसरा जो प्रयोग है दस मिनट का, वह शरीर को डोलने, नाचने या शरीर को जो भी करना है, उसे करने की पूरी छूट दे देने का है। उसके परिणाम कैथेर्टिक हैं। हमने अपने शरीर में न-मालूम कितने तरह के दमन कर रखें हैं। मन में भी बहुत तरह के सप्रशेन्स कर रखे हैं। जो भी व्यक्ति ध्यान में जाना चाहता है, उसे पहले इन दमन से मुक्त हो जाना जरूरी है। क्रोध आया है, वे क्रोध को पी गये हैं। वासना आयी है ओर उन्होंने वासना को दबा लिया है। चिन्ता आयी है, चिन्ता को पीकर सो गये। हमने न-मालूम कितना मन में छिपा लिया है। जब रोना चाहा है, तब रोये नहीं, हंसना चाहे हैं तो हंसे नहीं, चिल्लाना चाहते है तो चिल्लाये नहीं, नाचना चाहे हैं तो नाचे नहीं। वह सब हमने दबाया हुआ है। मन और शरीर दोनों में हजार तरह के दमन इकट्ठे हो गये हैं। वे दमन न गिर जायें तो मन इतना हलका नहीं हो सकता कि ध्यान कर सकें। इसलिए दूसरे दस मिनट में शरीर के साथ पूरी - की -पूरी स्वतन्त्रता और सहयोग करना है। शरीर नाचना चाहे तो उसे पूरी तरह नाचने देना है, चिल्लाना चाहे तो चिल्लाने देना है, रोना चाहे तो रोने देना है। शरीर जो भी करना चाहे-सिर्फ अपने शरीर के साथ दूसरे शरीर के साथ नहीं-अपने के साथ जो भी करना चाहे, उसे पूरी स्वतन्त्रता और सहयोग दे देना है।
कोई साठ प्रतिशत लोग अचानक अपने भीतर बहुत-कुछ होता हुआ पायेंगे। जिन मित्रों को ऐसा लगे कि उनके भीतर तो कुछ भी नहीं हो रहा है। तो उनसे मैं कहूंगा कि वे आज कम-से-कम जिनको अपने-आप हो जायेगा, उनका प्रश्न नहीं है, अधिक लोगों के अपने-आप हो जायेगा-जिनको लगे कि उनको अपने-आप नहीं हुआ है तो उसका कारण कुल इतना ही है कि वहे सप्रेशन्स में अपने दमन में इतने मजबूत है कि बीच की पर्त उन्हें भीतर तक नहीं पहुँचने देगी। तो उनसे मैं कहूंगा कि वे उसकी फिक्र न करे। उनको न हो रहा तब भी उनसे बन सके, वे दस मिनट वह करें, अगर नाचना बन सके तो वे नाचते रहें। कोई विधि, व्यवस्था और गति की बात नहीं है। उनसे चिल्लाते बने ते चिल्लाते रहें। कल ही वे पायेंगे कि मेरी धारा टूट गयी और स्पॉटेनियस उसके भीतर से कडुवाहट निकलनी शुरू हो गयी है। इस दस मिनट के बहुत गहरे परिणाम है। इस दस मिनट के नाचने, चिल्लाने, डोलने, हंसने के बाद इतने हल्के हो जायेंगे, जितने शायद जीवन में आप कभी भी नहीं हुए।
पहले चरण में आपके शरीर में जो विद्युत्‌ जगेगी, वह आपको सहयोग देगी नाचने में, चिल्लाने में, रोने मे हंसने में। और आपको भी अपनी तरफ से कोआप्रेट करना और जो भी आपके भीतर हो उसको पूरी तरह होने देना है। अगर आपका हाथ इतना हिल रहा है तो आप उसे और पूरी तरह हिला दें कि हाथ के भीतर से भी वेग दमित हैं, वे निष्कासित हो जायें, उनकी निर्जरा हो जाये। इस प्रयोग से चार दिन में इतना हो सकेगा जो कि चार वर्ष में किसी साधारण प्रयोग से नहीं हो सकता।
दूसरे चरण के बाद आकार शरीर वेटलेस मालूम होगा, जैसे बिल्कुल हलका हो गया है, जैसे उड़ सकता है। दोहरी बातें मालूम होगी। पहले चरण के बाद शरीर शक्ति से भरा हुआ मालूम होगा। दूसरे चरण के बाद शक्ति पूरी मालूम होगी लेकिन शरीर एकदम वेटलेस और हलका हो गया होगा। दूसरे चरण के बाद आपको स्पष्ट ऐसा लगना शुरू हो जायेगा कि शरीर नहीं है।, बल्कि सिर्फ एनर्जी है , सिर्फ ऊर्जा है, सिर्फ शक्ति है।
इस दूसरे चरण में जिसका भी प्रयोग पूरा हो जायेगा, उसको एक हैरानी का अनुभव होगा और वह यह होगा कि उसे पहली दफा मालूम पड़ना शुरू होगा कि शरीर अलग है और मैं अलग हूँ। अगर आपने अपने शरीर को पूरा छोड़ दिया तो आपकी आइडेण्टिटी टूट जायेगी। यह आज भी हो जायेगा। सिर्फ सवाल इतना है कि आप उसको पूरा कोआप्रेट करें। आप अपनी तरफ से रोकें मत। आप यह न सोचे कि नाचूंगा तो कोई क्या कहेगा मैं चिल्लाऊंगा तो कोई क्या कहेगा। जो आपके भीतर हो रहा है, उसकी आप बिल्कुल फिक्र छोड़ दें, हो जाने दें। तो आप दस मिनट के अन्दर जो निरन्तर सुना है, पढ़ा है कि शरीर और मैं अलग हूँ, वह आपके अनुभव का हिस्सा बन जायेगा। नाचता हुआ शरीर आपको अलग दिखाई पड़ने लगेगा, आप साक्षी हो जायेंगे। कि शरीर नाच रहा है, आप साक्षी हो जायेंगे कि शरीर रो रहा है। आप बहुत साफ देख सकेंगे। कि कोई और हंस रहा है और मैं देख रहा हूँ। यह प्रतीति ध्यान की गहराई में ले जाने के लिए अनिवार्य द्वार है। इसके बिना कोई ध्यान में नहीं आ सकता है।
तीसरे चरण मे - जब दूसरे चरण मे यह घटना घट जायेगी कि शरीर अलग और मैं अलग तो एक स्वाभाविक प्रश्न मन में उठना शुरू होगा कि फिर मैं कौन हूँ? तो जब तक मैं अपने को शरीर मानता हूँ, श्वास मानता हूँ, अब शरीर और श्वास अलग दिखाई पड़ रहे हैं फिर मैं कौन हूँ? इस तीसरे चरण में दस मिनट तक हम अपने भीतर पूछेंगे कि मै कौन हूँ। पहले दस मिनट में तीव्र श्वास। दूसरे दस मिनट में शरीर के साथ तीव्र सहयोग। और तीसरे चरण में 'मैं कौन हूँ' की तीव्र वर्षा। भीतर इतने जोर से पूछना है कि पैर से लेकर सिर तक एक ही सवाल गूंजने लगे कि 'मैं कौन हूँ' और शरीर की विद्युत्‌ जगी होगी और आपके सवाल को विद्युत्‌ की तरंगे पकड़ लेगी और पूरे शरीर को कम्पन में प्रश्न गूंजने लगेगा कि मै कौन हूँ। इसे इतने जोर से पूछना है कि दो 'मैं कौन हूँ'? के बीच में जगह न बचे, न शक्ति बचे, न सुविध बचे। ताकि दस मिनट एक सवाल रह जाये। पाँच मिनट तेजी से भीतर पूछने के बाद बहुत-से मित्रों की आवाज बाहर निकलने लगेंगी तो उससे भयभीत नहीं होना है।
मैं कौन हँ, शुरू भीतर करना है। अगर चिल्लाकर बाहर आवाज निकालने लगे तो उसे बाहर भी निकलने देना है। उसकी कोई फिक्र नहीं करनी है। तीस मिनट में आपका शरीर थक जायेगा। आपकी प्राणशक्ति थक जायेगी, आपकी मनशक्ति थक जायेगी। ये तीन चरण, तीनों को थका डालते हैं और तीस मिनट में इतनी क्लाइमेक्स तक पहुँच जाना है आपको तनाव की, टेंशन की, इतने जोर से यह सब करना है तीस मिनट में कि आप चिल्लाना भी चाहें तो हीं चिल्ला पायेंगे, रुके रह जायेंगे। आप धीरे-धीरे, मैं कौन हूँ, मुर्दे की तरह भीतर पूछते रहें तो वह गति पैदा नहीं हो पायेगी जो जरूरी है। पानी को गरम करना हो तो सौ डिग्री तक गरम करना चाहिए, निन्यानवे डिग्री पर भी भाप नहीं बनता। आप परमात्मा से यह नहीं कह सकते कि सिर्फ एक डिग्री के लिए इतनी ज्यादती क्यों, कर रहे हैं। निन्यानवे डिग्री तक आ गये, एक डिग्री की इतनी कंजूसी क्यों कर रहे हैं। लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सौ डिग्री पर ही पानी भाप बनेगा। अगर निन्यानवे डिग्री तक भी जाकर आप रुक गये तो पानी गरम रहकर ही वापस ठण्डा हो जायेगा।
ठीक प्रत्येक के भीतर एक क्लाइमेक्स की स्थिति है जहाँ से जीवन में ऊर्ध्वगमन शुरू होता है-जहाँ से क्रान्ति शुरू होगी, जहाँ से म्युटेशन शुरू होता है। जहाँ से व्यक्ति मिटता है और परमात्मा शुरू होता है। अगर आप उस सौ डिग्री तक नहीं पहुँच पाते हैं तो आप वापस नीचे गिर जायेंगे और मेहनत बिल्कुल व्यर्थ हो जायेगी। उसका कोई अर्थ नहीं रह जायेगा। इसलिए मैं आप से कहूँगा कि ईमानदारी से जो मैं कहूं उसे पूरा करके देख लें। देख लें, इससे क्या हो सकता है? चार दिन करके देख लें। और जो लोग भी ईमानदारी से करेंगे, वे श्रद्धा को उपलब्ध हो जायेंगे श्रद्धा पहले से जरूरी नहीं है। आपको विश्वास करने की जरूरत नहीं है, जो मैं कह रहा हूँ, वह होगा ही। आप तो इतना ही मानकर चलिये कि यह व्यक्ति कुछ कह रहा है, करके देख लें। हो तो ठीक, न हो तो समझें कि गलत हैं और अगर आप ने किया तो होना वैसे ही निश्चित है, जैसे सौ डिग्री पर भाप बनेगा। मैं जिस ध्यान की बात कर रहा हूँ, वह बिल्कुल साइाण्टफिक बात है। आप नास्तिक हों, ईश्वर को न मानते हो, आत्मा को न मानते हों, धर्म को न मानते हों, कोई हर्ज नहीं, मानने की कोई जरूरत ही नहीं, आप प्रयोग करें और आप पायेंगे कि उस प्रयोग के अनुभव से आपके भीतर फर्क होना शुरू हो गया है। श्रद्धा, ध्यान का फल प्राथमिक शर्त नहीं है, वह आखिरी परिणाम हैं पहली शर्त हैं आपने समझ लिया?
दो-तीन बातें और आपसे कह दूँ, ताकि प्रयोग के लिए खड़े हों। जो लोग बीमार हों, और अशक्त हों, वे लोग बैठकर प्रयोग करेंगे, बाकी लोग खड़े होकर ही प्रयोग करेंगे, खड़े होकर जल्दी परिणाम होते हैं, बैठकर जल्दी परिणाम नहीं होते हैं। सारे लोग फासले पर खड़े होंगे। जगह काफी है, ताकि आप नाचने लगेंगे तो किसी को आपके द्वारा धक्का न लगे और किसी को धक्का लग जाये तो इसकी परेशानी नहीं लेनी हैं
दूसरी बात-जैसे ही प्रयाोग शुरू होगा, उसके पहले दो बातें हैं-मैं आपको आँख बंद करने के लिए कहूंगा और यह आखें चालीस मिनट तक बन्द करनी हैं। यह आपका पहला संकल्प होगा। उसे ही ईमानदारी से निभाना है। एक दफे भी आंखें खोलीं तो नुकसान होगा। आपके भीतर जो ऊर्जा इकट्ठी होगी, वह व्यर्थ खराब हो जायेगी।
हमारे भीतर की शक्ति का अधिक हिस्सा हमारी आंखों से बिखरता है। इसलिए चालीस मिनट आंखें बिल्कुल ही बन्द रखनी हैं। आपके आसपास चिल्लाना होगा, रोना होगा, नाचना होगा-आपके भीतर होगा आपको फिक्र छोड़ देनी हैं देखने की इच्छा होगी। हमारे भीतर का बच्चा जल्दी ही नहीं मर जाता है। जितनी जल्दी शरीर बदल जाता है, उतनी जल्दी ही नहीं मर जाता है। जितनी जल्दी शरीर बदल जाता हैं, उतनी जल्दी यह भीतर का बच्चा नहीं मर जाता। वह जानता होगा कि बगल वाला आदमी क्या करता है। तो उसके लिए मैंने फिल्म बुलवा दी है। अभी आज ही बनी है तो रात आपको फिल्म दिखा देंगे, जिसमें आप पूरा देख लें कि कौन क्या कर रहा है। तो आपकी जिज्ञासा तृप्त हो जायेगी। इसलिए आप फिक्र न करेंगे कि कौन क्या कर रहा है? उसे आप फिल्म में देख लेंगे।
यहाँ देखने वाला कोई भी न रुकेगा। अगर किसी को यहाँ सिर्फ देखना हो तो वह यहाँ कैम्पस से बाहर हो जाये-या तो वह दूर पीछे चला जायेगा, लेकिन यहाँ नहीं रहेगा। यहाँ एक भी आदमी जो ध्यान नहीं कर रहा हो, उसे अलग हो जाना है। उसकी मौजूगी हमारे सब मित्रों को बाधा बनेगी। उसे यहाँ से हट जाना है। आपके भीतर एंग्विश पैदा होती है, वरन्‌ उसमें पूरा एटमासफियर चार्ज हो सकता है। उसमें एक आदमी भी अगर व्यर्थ खड़ा हो तो वह नुकसान करता है ओैर वह चेन को तोड़ता है। उसकी यहाँ जरूरत नहीं है। इसलिए इस ख्याल से, जिनको भी नहीं करना हो, वे यहाँ खड़े नहीं होंगे, चुपचाप चले जायेंगे। ये कुर्सियां जो हैं, ये आप उठा लें। इन्हें हटा दें वहाँ से, क्योंक इन पर कोई गिर जायेगा। आप नीचे आ जाएं और कुर्सियां हटा दें।

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