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सोमवार, 19 नवंबर 2018

चेतना का सूर्य-(भूमिका)-ओशो

चेतना का सूर्य-ओशो 

छः प्रवचन

भूमिका

यह जो जगत है, एक परिवार है। यहाँ सब जुड़ा है, यहाँ टूटा कुछ भी नहीं है। यहाँ पत्थर से आदमी जुड़ा है? जमीन से चाँद-तारे जुड़े हैं, चाँद-तारों से हमारे हृदय की धड़कनें जुड़ी हैं, हमारे विचार सागर की लहरों से जुड़े हैं पहाड़ों के ऊपर चमकने वाली बर्फ हमारे मन के भीतर चलने वाले सपनों से जुड़ी है। यहाँ टूटा हुआ कुछ भी नहीं है, यहाँ सब संयुक्त है, यहाँ सब इकट्ठा है। यहाँ अलग-अलग होने का उपाय नहीं हैं, क्योंकि यहाँ बीच में गैप नहीं है जहाँ से चीजे टूट जायें। टूटा होना सिर्फ हमारा भ्रम है।


भगवान श्री रजनीश अब केवल ‘ओशो’ नाम से जाने जाते है। ओशो के अनुसार उनका नाम विलियम जेम्स के शब्द ‘ओशानिक’ से लिया गया है, जिसका अभिप्राय है सागर में विलीन हो जाना। ‘ओशनिक’ से अनुभूति की व्याख्या तो हाती है, लेकिन वे कहते हैं कि अनुभोक्ता के सम्ब्न्ध में क्या उसके लिए हम ‘ओशो शब्द का प्रयोग करते है। बाद में उन्हें पता चला कि ऐतिहासिक रूप से सुदूर पूर्व में भी ‘ओशो’ शब्द प्रयुक्त होता रहा है, जिसका अभिप्राय है भगवत्ता को उपलब्ध व्यक्ति, जिस पर आकाश फूलों की वर्षा करता है।



ओशो एक मित्र है


ओशो को जब मैंने पहली बार देखा तो मुझे वही महसूस हुआ जो सबको होता हैः मैं ही बोल रहा हूँ। सभी को कभी न कभी ऐसा लगा होगा कि ओशो बोल रहे हैं तो हम ही बोल रहे है। वे वही कह रहे है जो हम कहना चाहते हैं, उन्हीं के शब्दों में, जिनमें हम कहना चाहते हैं लोग हंस-हंसकर बेहाल हुए जा रहे थे लेकिन मैं गम्भीर था क्योंकि मैं ही तो बोल रहा था!
और वे जानते हैं कि लोग कुछ कहना चाहते हैं, जो वे कह नहीं पाते, इसलिए उन्हें खुद जाकर यह काम करना है। उन्होंने सदियों-सदियों से मनुष्य की मूक पड़ी जुबान को वाणी दी। ओशो ने हम पर कोई दर्शन या सिद्धान्त थोपा नहीं है, बल्कि हमें अपने पांवों पर खड़ा होना सिखाया है। ओशो एक मित्र है।

ओशो एक परिचय

ओशो एक नया प्रारम्भ हैं, वे अतीत की किसी भी धार्मिक परम्परा या श्रृंखला की कड़ी नहीं हैं। ओशो ने एक नये मनुष्य का, एक नये जगत का, एक नये युग का सूत्रपात किया है, जिसकी आधारशिला अतीत के किसी धर्म में नहीं है, किसी दार्शनिक विचार-पद्धति में नही है।
ओशो एक नवोन्मेष हैं नये मनुष्य के, नयी मनुष्यता के। यह नया मनुष्य ‘जोरबा दि बुद्धा’ एक ऐसा मनुष्य है जो ज़ोरबा की भांति भौतिक जीवन का पूरा आनन्द मनाना जानता है और जो गौतम बुद्ध की भांति मौन होकर ध्यान में उतरने में भी सक्षम है- ऐसा मनुष्य जो भौतिक और आध्यात्मिक, दोनों तरह से समृद्ध हैं। ‘ज़ोरबा दि बुद्धा; एक समग्र वह अविभाजित मनुष्य है। ओशो का यह नया मनुष्य भविष्य की एकमात्र आशा है, इसके बिना पृथ्वी का कोई भविष्य नहीं है।
अपने प्रवचनों के द्वारा ओशो ने मानव-चेतना के विकास के हर पहलू को उजागर किया। बुद्ध, महावीर, कृष्ण, शिव, शाण्डल्य, नारद, जीसस के साथ ही साथ भारतीय आध्यात्म-आकाश के अनेक नक्षत्रों-आदिशंकराचार्य, गोरख, कबीर नानक, मलूकदास, रैदास, दरियादस, मीरा आदि पर उनके हजारों प्रवचन उपलब्ध हैं। जीवन का ऐसा कोई भी आयाम नहीं है जो उनके प्रवचनों से अस्पर्शित रहा हो। योग, तंत्र, ताओ, झेन, हसीद, सूफी जैसी विभिन्न साधना-परम्पराओं के गूढ़ रहस्यों पर उन्होंने सविस्तार प्रकाश डाला है। साथ ही राजनीति, कला, विज्ञान, मनोविज्ञान, दर्शन, शिक्षा, परिवार, समाज, गरीबी जनसंख्या-विस्फोट, पर्यावरण तथा सम्भावित परमाणु युद्ध के व उससे भी बढ़कर एड्स महामारी के विश्व-संकट जैसे अनेक विषयों पर भी उनकी क्रान्तिकारी जीवन-दृष्टि उपलब्ध है।
शिष्यों और साधकों के बीच दिये गये उनके ये प्रवचन छह सौ पचास से भी अधिक पुस्तकों के रूप में प्रकाशित हो चुके हैं और तीस से अधिक भाषाओं में अनुवादित हो चुके हैं। वे कहते हैं, ‘मेरे सन्देश कोई सिद्धान्त, कोई चिन्तन नहीं है। मेरा सन्देश तो रूपान्तरण की एक कीमिया, एक विज्ञान है।’’
ओशो कम्यून एक निमंत्रण
ओशो के प्रवचनो को पढ़ना, उन्हें सुनना अपने आप में एक आन्नद है। इनके द्वारा आप अपने जीवन में एक अपूर्व क्रान्ति की पदचाप सुन सकते हैं। लेकिन यह केवल प्रारम्भ है, शुभ आरम्भ है। इन प्रवचनों को पढ़ते हुए आपने महसूस किया होगा कि ओशो का मूल सन्देश हैः ध्यान। ध्यान की भूमि पर ही प्रेम के, आनन्द के, उत्सव के फूल खिलते हैं। ध्यान आमूल क्रान्ति है।
निश्चित ही आप भी चाहेंगे कि आपके जीवन में ऐसी आमूल क्रान्ति हो, आप भी एक ऐसी आबोहवा को उपलब्ध करें जहाँ आप अपने आप से परिचित हो सकें, आत्म-अनुभूमि की दिशा में कुछ कदम उठा सकें, कोई ऐसा स्थान जहाँ और भी कुछ लोग इस दिशा में गतिमान हों।
ओशों ने एक ऐसी ही ध्यानमय, उत्सवमय आबोहवा वाला ऊर्जा-क्षेत्र निर्मित किया है पूना मेः ओशो कम्यून इन्टर्नेशनल। यहाँ हजारों लोगों ने ओशो ध्यान विधियों का प्रयोग कर ध्यान की गहराइयों को छुआ है। यह स्थान एक ऐसा सघन ऊर्जा-क्षेत्र बन गया है कि व्यक्ति ध्यान के द्वारा यहाँ त्वरित रूपान्तरित हो सकता है।
विश्व के लगभग सौ देशों से लोग यहाँ आकर इस अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण में ध्यान का रसास्वादन करते हैं। दुनिया में जितने भी प्रकार के लोग हैं, ओशो ने उन सबके लिए विशेष प्रकार की वैज्ञानिक ध्यान-विधियों को ईजाद किया है। ये विधियाँ आधुनिक जीवन के तनावों को दूर कर एक निश्चित, आन्नदपूर्ण जीवन जीने की कला सिखाती हैं। आज विश्व की समस्त साधना-पद्धतियों की विधियाँ यहाँ एक ही छत के नीचे मौजूद हैं। ओशो कम्यून इन्टरनेशनल विश्व भर में एकमात्र ऐसा केन्द्र है जहाँ पर सभी राष्ट्रों और धर्मों के लोग अपने अनुकूल ध्यान प्रयोगों के द्वारा एक साथ रूपान्तरित हो सकते हैं।
इसमें आपका भी स्वागत है।
अतिरिक्त जानकारी के लिए सम्पर्क सूत्रः
ओशो क्म्यून इन्टरनेशनल
17, कोरेगाँव पार्क, पुणे- 411001, महाराष्ट्र

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