जुलाहे की बेटी द्वारा बुद्ध के दर्शन—(एस धम्मो सनंतनो)
एक जुलाहे की बेटी गौतम बुद्ध के दर्शन को आयी। अत्यंत आनंद और अहोभाव से उसने बुद्ध के चरणों में सिर रखा। बुद्ध ने उससे पूछा बेटी कहां से आती हो? भंते नहीं जानती हूं वह बोली उसकी अभी ज्यादा उम्र भी न थी। अठारह वर्ष की केवल। बुद्ध ने कहा कहां जाओगी बेटी? भंते, उसने कहा, नहीं जानती हूं। क्या नहीं जानती हो बुद्ध ने पूछा वह बोली भंते जानती हूं। जानती हो बुद्ध ने कहा? वह बोली कहां भगवान जरा भी नहीं जानती हूं।
ऐसी
बातचीत सुनकर
अन्य उपस्थित
लोग बहुत नाराज
हुए। गांव के
लोग जुलाहे की
बेटी को
भलीभांति
जानते हैं कि
यह क्या बकवास
कर रही है! और
यह कोई ढंग है
भगवान से बात
करने का? यह
कोई
शिष्टाचार है?
गांव के
लोगों ने कहा
कि सुन पागल
यह तू किस तरह
की बात कर रही
है होश में है?
किससे बात
कर रही है? डांटा—
डपटा भी
लेकिन
भगवान ने कहा
पहले उसकी
सुनो भी तो
गुनो भी तो वह
क्या कहती है।
बुद्ध हंसे
उन्होंने कहा
बेटी इन सबको
समझा कि तूने
क्या कहा।
तो उस
युवती ने कहा
जुलाहे के घर
से आ रही हूं,
भगवान यह तो
आप जानते ही
हैं। और ये
गांव के लोग
भी जानते हैं।
लेकिन कहां से
आ रही हूं यह
जन्म कहां से
हुआ मुझे पता
नहीं। वापस
जुलाहे के घर
जाऊंगी यह मैं
भी जानती हूं
आप भी जानते
हैं ये गांव
के लोग भी
जानते हैं यह
कोई बात है!
लेकिन इस जन्म
के बाद जब
मृत्यु होगी
तो कहाँ
जाऊंगी मुझे
कुछ पता नहीं
है। इसलिए
आपसे कभी मैने
कहा जानती
हूं— जब मैने
सोचा कि आप
पूछ रहे हैं कहां
से आ रही है
जुलाहे के घर
से? तो
मैने कहा
जानती हूं। जब
आपने कहा कहां
जा रही है? मैने
सोचा कि पूछते
हैं कहां वापस
जाएगी जुलाहे
के घर? तो
मैने कहा
जानती हूं।
लेकिन फिर जब
मैने आपकी
आंखों में
देखा तो मैने
कहा नहीं—
नहीं बुद्ध और
ऐसा प्रश्न
क्या खाक
पूछेंगे। वह
पूछ रहे हैं
कहां से आती है
किस लोक से? कहां तेरा
जीवन— स्रोत
है? तो
मैने कहा नहीं
भगवान नहीं
जानती हूं फिर
मैने सोचा कि
जब आप पूछते
हैं कहां जाती
है तो मैने
सोचा मरने के
बाद कहां
जाऊंगी— बुद्ध
तो ऐसे ही
प्रश्न
पूछेंगे न— तो
मैने कहा नहीं
जानती हूं।
इसलिए।
तब बुद्ध ने
यह गाथा कही—
'यह सारा लोक
अंधा है। यहां
देखने वाला
विरला ही है।
जाल से मुक्त
हुए पक्षी की
भांति विरला ही
स्वर्ग को
जाता है।'
उस
लड़की को
उन्होंने कहा, तेरे
पास आंख है।
तू देख पाती
है। ये गांव
के लोग अंधे
हैं। आंख वाला
जब बोले तो
अंधों की समझ
में नहीं आता,
क्योंकि
आंख वाला ऐसी
बातें करेगा
जो अंधे मान
ही नहीं सकते
कि हो सकती
हैं। आंख वाला
कहेगा, प्रकाश,
आंख वाला
कहेगा, रंग,
आंख वाला
कहेगा, कैसा
प्यारा
इंद्रधनुष; और अंधा
कैसे समझेगा?
बुद्ध, कृष्ण,
महावीर आंख
वाले हैं, अंधे
नहीं समझ पाते
हैं। अंधे कुछ
का कुछ समझ लेते
हैं।
'हंस सूर्यपथ
से जाते हैं।
ऋद्धि से योगी
भी आकाश में
गमन करते हैं।
धीरपुरुष
सेनासहित मार को
पराजित कर लोक
से निर्वाण
चले जाते हैं।'
हंसादिच्चपथे
यंति आकासे
यंति इद्धिया।
नीयंति
धीरा लोकम्हा
जेत्वा मारं
सवाहिनिं।।
जैसे
हंस आकाश में
उड़ते हैं, ऐसा
एक और आकाश
है—अंतर का
प्राकाश—जहा
परमहंस उड़ते
हैं। जैसे हंस
आकाश में उड़ते
हैं और दूर की
यात्रा करते
हैं, ऐसे परमहंस
अंतर के आकाश में
उड़ते हैं और निर्वाण
में लीन हो जाते
है, निर्वाण
में चले जाते
हैं।
ओशो
एस
धम्मो
सनंतनो
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