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गुरुवार, 15 नवंबर 2018

और फूलों की बरसात हुई-ओशो

और फूलों की बरसात हुई-ओशो

भूमिका

बोधि धर्म प्रथम जेन सद्गुरू हैं, जो ध्यान के बीज को भारत से चीन ले गए। चीन में बौद्ध धर्म और ताओ वाद की मिट्टी में, बुद्ध और लाओत्से की देशनाओं की जलवायु में वह बीज अंकुरित हो कर विकसित हुआ और ध्यान से ‘चान’ कहा जाने लगा। पर वह वृक्ष जापान में जाकर पुष्पित हुआ क्योंकि वहां की जलवायु में सौंदर्य बोध, सृजनात्मकता, कलात्मकता और एक सुरूचि सम्पन्नता थी। पर जापान में द्वितीय विश्व युद्व के संहार और उसके बाद तेजी से विकसित और प्रसारित होने वाली पाश्चात्य संस्कृति के प्रभावसेजेन-मठ उजड़ने, जेन-मठों के कठोर संयति और अनुशासित जीवन के प्रति, श्रद्वा धैर्य और समर्पण के प्रभावमेंसत्य के खोजियों की संख्या निरंतर कम होती गई। चीन में भी माओ वाद ने जेन-मठो को ध्वस्त कर दिया।
ताओवाद और जेन के गहन गूढ रहस्यों को ओशो ने अपनी अनुभव-जन्य वाणी के द्वारा अनावृत कर उन्हें एक नूतनता और ताज़गी दी। उन्होने अनुभव किया कि आज के मनुष्य के पास न तो इतना समय हैऔर न इतना अधिक धैर्य है कि वह सात आठ वर्ष जेन-मठों के कठोरअनुशासन पूर्ण वातावरण में गुजार सके और जेन सद्गुरू के डंडे के अचानक कठोर प्रहार को बर्दाशत कर सके।
इसलिए उन्होंने जेन को पुन र्जीवित कर उसे नवजेन के नाम से पुकारा। डंडे के प्रहार के स्थान पर उनके वचन ही हृदय के मर्मस्थल पर चोट करते हैं और लात की चोट से बात की चोट कहीं अधिक प्रभावी होती है। वह कहते हैं कि बुद्वत्व अभी और यहीं इसी क्षण घटित हो सकता है, बशर्ते कि तुम्हारा समर्पण हो और मैं मिट जाऊँ तो तुम ही एक मात्र बाधा हो।

इन बोध कथाओं के वचन भी मर्मस्थल पर चोट करते हैं जिससे ओढ़े गए मुखौटे हटकर असली और प्रमाणिक चेहरा प्रकट हो जाता है। जेन सद्गुरूओं द्वारा निर्मित की गई स्थितियाँ तुम्हारी मूर्च्छा को तोड़ कर तुम्हें अपने केन्द्र पर जाने को प्रेरित करती हैं और तुम्हारी हृदय की समझ अथवा बोध को विकसित करती है। और बोध ही बुद्वत्व है।
सद्गुरू डोक्यूंन जो कुछ कर रहा है, वह इस या कूदा को उधार जान कारी से उसे उसके केंद्र तक लाने को कर रहा हैं और वह उस पर डंडे से कठोर चोट पहुँचाने के द्वारा कर कर रहा है। एक स्थिति निर्मित होने की जरूरत है क्योंकि इस स्थिति में अचानक तुम वास्तविक रूप से वही बन जाते हो, जो तुम हो। यदि डोक्यूंन बात चीत करते हुए उससे कुछ कहता है कि यह गलत है ओर यह ठीक हैं तो वह उस के मन की निरंतरता में सहायता करता है तब वहाँ एक संवाद होगा लेकिन उसका कोई उपयोग और प्रभाव नहीं होगा। वह उस पर अचानक डंडे से चोट करता है। अचानक सभी विचार विलुप्त विलुप्त हो जाते है। या यूका-या यूका है, वह एक बुद्व नहीं है, और एक बुद्व के समान बात कर रहा है, और केवल एक चोट से उसका बुद्व का मुखौटा गिर जाता है और अंदर क्रोधित या यूका बाहर आ जाता है। सद्गुरू उससे कहता है : बुद्व के बारे में और सत्य के बारे में बात मत कर, वास्तविकता के बारे में बात कर, अपने क्रोध के बारे में बात कर कि यह कहाँ से आता है यदि तू वहाँ तक पहुँच गया, जहां से कि क्रोधआ रहा है, तो तू शून्यता तक पहुँच जाएगा।’’
इस पुस्तक की प्रत्येक बोध कथा एक सिखावन और बोध है। वह तुम्हें तुम्हारे ओढ़े गए नकली मुखौटे के प्रति सचेत बनाती है, तुम्हारे ‘मैं’ पर चोट कर वह तुम्हें तुम्हारी मूर्च्छा से जगाकर बोध के प्रकाश तक ले जाती है।
अंतिम बोध कथा में ‘समझ’ को स्पष्ट करते हुए ओशो कहते है : ‘समझ एक तीक्ष्ण बुद्वि का प्रश्न नहीं हैं। समझ एक प्रश्न है गहन सम्पर्क और संवादका। समझ एक विचार- शक्ति का बुद्वि और तर्क का प्रश्न नहीं है। समझ एक प्रश्न है गहन-सहानूभूति का, अथवा दूसरे व्यक्ति की योग्यता और अनुभवों को जानकर उन स्थितियों से होकर गुजरने का इसलिए मुख्य महत्व हो। आस्था और श्रद्वा का। समझ, आस्था के द्वारा घटित होती है, क्योंकि आस्था ही में तुम भरोसा करने लगते हो, भरोसा करने से तुम सहानूभूति पूर्ण हो जाते हो और भरोसे में ही संपर्क करना संभव होता है क्योंकि तब तुम सुरक्षात्मक नहीं होते हो, इसलिए तुम अपने द्वार खुले छोड़ देते हो।
तुम द्वार बंद किए सुरक्षात्मक हो कर बैठे हो। अपने सुरक्षात्मक खोल से बाहर निकालक रहृदय के द्वार खोलने की कला ही है ध्यान। ध्यान है स्वीकार भाव से यहीं और अभी में जीना। एक शिष्य बनकर ही श्रद्वा का जन्म होता हैं सिखावन से श्रद्वा का जन्म होता है सिखावन एक शिष्य बनकर सद्गुरू के प्रति समर्पित होकर श्रद्वा से मिलती है।
ये सभी बोधकथाएँ एक सिखावन हैं एक शिक्ष्य कैसे बना जाये, श्रद्वा कैसे घटित हो, यहींऔर अभी में कैसे क्षण-क्षण जीआजाए और कैसे अपने केन्द्र पर पहुंचा जाए। यदि हृदय के द्वार खुले हैं तो इन वचनों की चोट ही तुम्हें रूपांतरित कर सकती हैं।
इनका अनुवाद करते हुए मुझे अपनी मूढ़ता और अल्प ज्ञता का शिद्दत से बोध हुआ और में विकसित हुआ। इन्हें पढ़कर आप भी विकसित आंनदित और रूपांतरित हों।
                         

                        इन शुभकामनाओं के साथ

                              अकिंचन

                                    ज्ञानमेद

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