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गुरुवार, 15 नवंबर 2018

और फूलों की बरसात हुई-(प्रवचन-01)

और फूलों की बरसात हुई-पहला 

पुष्प वर्षा होने लगी


बुद्व के शिष्यों में से सुभूति एक था। वह शून्यता की सामर्थ्य को समझने में समर्थ था जिसकी दृष्टि में विषयी और विषय और उसके सापेक्ष संबंध में उनके सिवाय कुछ भी अस्तित्व में नही रहा।

एक दिन, जब सुभूति एक वृक्ष के नीचे सर्वोच्च शून्यता की भावदशा में बैठा हुआ था, कि उसके चारों ओर पुष्प बरसने प्रारम्भ हो गए। देवताओं ने बहुत धीमें स्वर में, जैसे लगभग पफुसपफुसाओं हुए उससे कहा :
‘‘हम शून्यता पर दिए गए आपके प्रवचन के लिए-
आपकी स्तुति कर रहे हैं।’’
सुभूति ने कहा : ‘‘ लेकिन मैंने तो शून्यता पर कुछ भी नहीं कहा है।’’
देवताओं ने प्रत्युत्तर में कहा : आपने शून्यता पर न कुछ कहा है।
और न हमने शून्यता पर कुछ भी सुना है यही वास्तविक शून्यता है।


और सुभूति पर वर्षा के समान पुष्प बरसने लगे।



हाँ, यह होता है। यह एक अलंकार नहीं है, यह एक तथ्य है इसलिए इस कहानी को अलंकारित रूप में मत लो। यह शाब्दिक रूप से भी सत्य है...
कोई एक वैयक्तिक आत्मा अंतिम रूप को उपलब्द्ध होती है।

 हम उस अखण्ड अस्तित्व के एक भाग हैं और वह अखण्ड तुमसे उदासीन नहीं है हो भी नहीं सकता। एक मां अपने स्वयं के बच्चे से कैसे उदासीन हो सकती है। यह असंभव है। जब बच्चा विकसित होता हैं माँ भी उसके साथ विकसित होती है। जब बच्चा प्रसन्न होता है मां भी उसके साथ प्रसन्न होती हैं जब बच्चा नाचता है तो मां के अंदर भी कुछ चीज नृत्य करती है। जब बच्चा बीमार होता है, तो मां भी बीमार हो जाती है जब बच्चा दुखी होता है वो मां भी दुःखी हो जाती है...  क्योंकि वे दो नहीं है वे एक है उनके हृदय एक सुरताल में धड़कते हैं।

अखण्ड अस्तित्व तुम्हारी मां है। वह अखण्ड तुमसे उदासीन नही है। तुम अपने हृदय में सत्य को जितनी अधिक गहराई तक संभव हो, प्रवेश करने दो, क्योंकि यह सचेतनता थी कि अखण्ड तुम्हारे साथ ही प्रसन्नता का अनुभव करता है, तुम्हें बदल देगी। तब तुम पृथक नहीं हो, तब तुम यहां एक परदेसी नहीं हो तब तुम एक गृहविहिन घुमक्कड़ नहीं हो, तब यह एक घर है, और अखण्ड अस्तित्व तुम्हारा पालन पोषण करता है, तुम्हारे बारे में फिक्र करता है ओर तुमसे प्रेम करता है। इसलिए यह स्वाभाविक है कि जब एक व्यक्ति बुद्धत्व को उपलब्ध होता है, जब कोई व्यक्ति सत्य के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचता है, तो पूरा अस्तित्व नृत्य करता है, पूरा अस्तित्व गीत गाता है और पूरा अस्तित्व उत्सव आनंद और समारोह मनाता है। यह शाब्दिक रूप से भी सत्य है। यह कोई अलंकार मात्र नहीं है, यह बात स्मरण रहे, अन्यथा तुम पुरी स्थिति से ही चूक जाओगे।
पुष्प बरसने लगते हैं और तब वे बरसते चले जाते है वे कभी भी नही रूकते।
बुद्वत्व को उपलब्ध होने के लिए जो पुष्प वर्षा हुई, वह अभी भी हो रही है। सुभूति के लिए जो पुष्प बरसे, वे अभी भी बरस रहे हैं तुम उन्हें नहीं देख सकते, इसलिए नहीं कि वे नही बरस रहे हैं बल्कि इसलिए क्योंकि तुम उन्हें देखने में समर्थ नहीं हो। अस्तित्व उन सभी बुद्वों के लिए जो अभी तक हुए है उन सभी के लिए जो बुद्वत्व उपलब्ध हो रहे हैं और उन सभी के लिए जो बुद्व होंगे। शाश्वत रूप से समारोह मनाए चली जाती है।- क्योंकि अस्तित्व के लिए, अतीत वर्तमान और भविष्य विद्यमान नहीं है। वह एक निरन्तरता है। वह एक शाश्वतता है केवल अभी ही अस्तित्व में है। अभी अनंत है।
 उनकी वर्षा अभी भी हो रही है लेकिन तुम उन्हें नहीं देख सकते। जब तक वे तुम्हारे लिए न बरसे, तुम उन्हें नही देख सकते। और एक बार तुम उन्हें अपने लिए बरसता देख लेते हो तो तुम देखोगे कि वे प्रत्येक बुद्व के लिए और प्रत्येक बुद्वत्व को उपलब्ध होने वाली आत्मा पर निरंतर बरस रहे है।
पहली बात यह कि तुम्हें जो भी घटित होता है, अस्तित्व उसकी देखभाल करता है। अस्तित्व निंरतर प्रार्थना कर रहा हैं कि अंतिम सत्य तुम्हें भी घटित होना चाहिए। वास्तव में तुम कुछ भी नहीं हो, बल्कि अखण्ड अस्तित्व के द्वारा अंतिम सत्य तक पहुंचने के लिए बढ़ाया गया एक हाथ हो। तुम कुछ भी नहीं हो, बल्कि अखण्ड अस्तित्व से चन्द्रमा को स्पर्श करने को आती हुई एक लहर हो। तुम कुछ भी नहीं हो, बल्कि एक पुष्प का खिलना हो, जिससे तुम्हारे द्वारा अखण्ड अस्तित्व सुंगध के साथ भर जाए।
यदि तुम स्वयं अपने ‘मैं’ को छोड़ सकते हो, तो व पुष्प इसी सुबह इसी क्षण तुम पर बरस सकते हैं। देवता हमेशा तैयार हैं, उनके हाथ सदा पुष्पों के साथ भरे रहते हैं। वे पूरी तरह से निरिक्षण करते है और प्रतीक्षा करते है जब कभी भी कोई व्यक्ति एक सुभूति की भांति शून्य होता है, जब कभी भी कोई व्यक्ति एक अनुपस्थिति की भांति होता है, अचानक पुष्प बरसना प्रारम्भ हो जाते हैं।
यह आधार भूत सत्यों में से एक है। बिना इसके वहां आस्था की कोई भी संभावना नहीं है और इसके बिना तुम्हारी भी कभी सत्य तक पहुंचने की कोई भी संभावना नहीं है। जब तक कि अखण्ड अस्तित्व सहायता नही करता, तुम्होरे लिए वहाँ तक पहुंचने की कोई भी संभावना नहीं है जब तक कि अखण्ड अस्तित्व सहायता नहीं करता तुम्हारे लिए वहां तक पहुंचने की कोई भी संभावना नहीं है तुम कैसे पहुंच सकते हो? और सामान्य रूप से हमारे मन ठीक इसके विपरित सोचते हैं। हम अखण्ड अस्तित्व को एक मित्र की भांति नहीं, एक शत्रु की भांति सोचते हैं और उसे कभी मां की भांति नही सोचते हैं। हम पूरे अस्तित्व के बारे में यों सोचते हैं जैसे मानो वह हमें नष्ट करने का प्रयास कर रहा है। हम अखण्ड अस्तित्व की ओर जन्म के द्वार के द्वारा नहीं, मृत्यु के द्वार के द्वारा देखते हैं। तुम्हें ऐसा प्रतीत होता है जैसे मानो पुरा अस्तित्व तुम्हारे विरूद्व तुमसे संघर्ष कर रहा हो और तुम्हें तुम्हारे लक्ष्यों और उद्देश्यों तक पहुंचने और उन्हें सफल बनाने के लिए तुम्हें अनुमति नहीं दे रहा हो। इसलिए तुम उसके साथ निरन्तर युद्व कर रहे हो। ओैर तुम जितना अधिक लड़ते हो, उतनी ही अधिक तुम्हारी गलत समझ उसका सत्य होना सिद्व करती है, क्योंकि यदि तुम लड़ते हो, तो तुम्हारी अपना लड़ना ही अखण्ड अस्तित्व के द्वारा प्रतिबिम्बित होता है।
स्मरण रहे, अपूर्ण अस्तित्व तुम्हें संभालता है। जब तुम उससे लड़ते हो, पूरा अस्तित्व तुम्हें सहारा देती है जब तुम लड़ते हुए गलत होते हो वह तब भी तुम्हें संभालता है यह दूसरा सत्य है जो भली- भांति समझ लेना है।
यदि तुम इसे नही समझते, तो तुम्हारे लिए आगे बढ़ना कठिन होगा। यदि तुम अखण्ड अस्तित्व के साथ लड़ते हो, वह तब भी तुम्हें संभालता है क्योंकि वह संभलने ओैर सहारा देने के सिवा अन्य कोई दूसरा कार्य कर ही नहीं सकता। यदि तुम गलत की ओर जाते हो, वह तब भी तुम्हारी देखभाल और फिक्र करता है। यदि बच्चा कुछ गलत कार्य करता है अथवा गलत दिशा में चला जाता है मां तब भी उसकी फिक्र करती है यदि बच्चा एक चोर बन जाता है अथवा बीमार होता है, मां तब भी उसकी फिक्र करेगी। वह बच्चे को विष नही दे सकती। यदि बच्चा पूरी तरह गलत दिशा में भटक जाता है, मां तब भी उसके लिए प्रार्थना करेगी। जीसस की दो भाइयों की कहानी का यही अर्थ है।
एक भाई घर से दुर चला गया, और चला ही नहीं गया बल्कि भटक गया। उसने अपने पिता से पाई विरासत का बड़ा भाग जुए और शराब पीने में व्यर्थ नष्ट कर दिया और एक भिखारी बन गया। दूसरा पिता के ही साथ बना रहा। उसके व्यापार में सहायता की, खेतों पर और बगीचों पर कार्य किया। उसने पिता की समर्पित भाव से सेवा करते हुए हर तरह की उनकी सहायता की और विरासत में मिली सम्पत्ति में वृद्वि की। तभी अचानक सूचना आई कि दूसरा भाई भिखारी बन गया है और सड़को पर भीख मांग रहा है पिता का पूरा हृदय उसके लिए पीड़ित रहने लगा और उसकी सभी प्रार्थनाएं उसी के लिए होती थी। वह अपने निकट रहने वाले बेटे को पूरी तरह भूल गया और केवल उसी को याद करता रहा जो उससे दूर था। रात में सपनो में वह दूसरा ही मौजूद रहता था और वह बेटा जो उसके निकट था, उसके लिए कार्य कर रहा था और जो प्रत्येक तरह से अच्छा था, वह जैसे मौजूद ही नहीं था।
और तब एक दिन भिखारी बना वह बेटा घर पर वापस लौटा, और पिता ने उसके लिए एक बड़ी दावत का आयोजन किया। वह भला बेटा जो खेतों से घर आ रहा था उससे किसी व्यक्ति ने कहा- ‘‘अपने पिता के अन्याय को तो देखो। तुम उससे प्रेम करते हो, उसकी देखभाल तथा सेवा करते हुए उसके साथ ही पूरी तरह से अच्छे और नैतिक बने रहते हो और तुमने उनकी इच्छा के विरूद्व कभी भी कोई कार्य नहीं किया, लेकिन उन्होनें तुम्हारे लिए कभी भी एक दावत का आयोजन नहीं किया। तुम्हारे भाई की दावत के लिए सबसे अधिक मोटा ओर तगड़ा दुम्बा जिन्हें किया गया है, जो घर से भटककर दूर भाग गया था। वह एक भिखारी की भांति आ रहा है और पूरा घर समारोह मना रहा है’’
उस भले बेटे को बहुत चोट लगी। यह दावत ही असंगत और मूर्खतापूर्ण थी। वह क्रोधित होता हुआ घर वापस आया और अपने पिता से कहा- ‘आप यह क्या कर रहे है? आपने कभी मेरे लिए तो दावत नहीं दी, जब कि मैं आपकी सेवा करता रहा हूं और इस दूसरे बेटे ने आपके लिए क्या किया है केवल उसने अपने भाग की संपत्ति को जुआ आदि अन्य प्रत्येक तरह के बुरे कार्यो में व्यर्थ नष्ट कर दिया और वह एक भिखारी बनकर घर लौटा है।’
पिता ने कहा- ‘हां, क्योंकि तुम मेरे इतने अधिक निकट हो और तुम बहुत भले और आनंदित हो, इसलिए मुझे तुम्होरे बारे में पिफक्र करने की जरूरत नहीं हैं। लेकिन वह बेटा जो भटक गया है-मेरी प्रार्थनाएं और मेरा प्रेम उसी का अनुसरण करता हे।’’
 और जीसस बार-बार अपने शिष्यों को यह कहानी सुनाया करते थे, क्योंकि जैसा कि उन्होनें कहा- ‘परमात्मा संतो को भूल सकता है, इस बारे में उनका स्मरण रखने की जरूरत ही नहीं है लेकिन परमात्मा कभी पापियों और अपराधियों को नही भूल सकता।’’ ं
यदि वह एक पिता है और मैं तुमसे कहता हूं कि वह पिता न होकर एक मां है। पिता एक ऐसी गहन चीज नही है जैसी की एक मां होती है इसी कारण हिंदू उसे मां कहते हैं परमात्मा एक मां है वह एक मां की तरह पालन-पोषण और रक्षा करती है।
और जीसस ने कहा कि जब कभी भी ऐसा होता है कि एक गड़़रिया घर वापस लौट रहा है और वह देखता है कि एक भेडं़े खो गई है वह सभी भेड़ो को जंगल में अंधेरी रात में छोड़ देता है और खोई हुई भेड़ की तलाश में निकल पड़ता है। जब वह खोई हुई घायल भेड़ को खोज लेता है तो वह खोई हुई भेड़ को अपने कंधो पर लेकर आनंद मनाता घर वापस लौटता है, क्योंकि वह जो खो गया था, वह फिर से मिल जाता है।
 जब कभी भी ऐसा होता है, जब कभी भी खोई हुई एक भेड़ फिर से मिल जाती है गड़रिया समारोह मनाता है। हम सभी खोई हुई भेड़े ही है। इस समारोह मनाने में ही पुष्प बरसना शुरू हो जाते हैं।
पूरब में देवता मानकर हम जिनकी पूजा करते हैं, वे व्यक्ति नहीं है, वे प्राकृतिक शक्तियां हैं। केवल एक हृदय और एक हृदय की धड़कन देने के लिए प्रत्येक शक्ति में चेतन धर्म का आरोपण कर एक प्राणधारी बना दिया गया है- केवल उसे अधिक ध्यान देने के लिए ही ऐसा किया गया है। हिंदुओं और बौद्धों ने इसीलिए सभी प्राकृतिक शक्तियों को देवताओं में बदल दिया है और वे ठीक हैं। जब सुभूति शून्यता को उपलब्ध हुआ, देवताओं ने पुष्प वर्षा करनी प्रारम्भ कर दी।
और आर्य बहुत सुंदर और आकार्षक हैं। हिंदुओं और बौद्धों के लिए सूर्य एक देवता है, आकाश एक देवता है और प्रत्येक वृक्ष के पास अपना देवता है, जिसकी पूजा की जाती है। वायु एक देवता है, पृथ्वी एक देवी है। प्रत्येक शक्ति के पास अपना एक हृदय है- यही इसका अर्थ है। प्रत्येक अनुभव करता है, यही इसका अर्थ है। कोई भी तुमसे उदासीन नहीं है- और जब तुम सत्य को उपलब्ध होते हो, तो प्रत्येक शक्ति समारोह मनाती है। तब सूर्य एक भिन्न ढंग से चमकता है। उसके गुण और लक्षण बदल जाते हैं।
वे लोग जो अज्ञानी हैं; उनके लिए प्रत्येक चीज़ वैसी ही समान बनी रहती है। सूरज पुराने ढंग से ही चमकता है, क्येंकि उसके गुण और लक्षणों का परिवर्तन बहुत सूक्ष्म होता है और केवल वह एक ही उसका अनुभव कर सकता है, जो शून्य हो गया हो। वह स्थल नहीं होता है और अहंकार उसका अनुभव नहीं कर सकता है, क्येंकि स्थूलता ही उसका क्षेत्र है। सूक्ष्म का केवल तभी अनुभव किया जा सकता है, जब वहां कोई भी अहंकार न हो, क्येंकि वह इतना अधिक सूक्ष्म है कि यदि तुम वहां एक उपस्थिति के रूप में हो, तो तुम उससे चूक जाओगे। तुम्हारी उपस्थिति का होना ही एक अठरोध है।
जब कोई एक पूर्ण रूप से शून्य हो जाता है, सूर्य के गुण तुरंत बदल जाते हैं। उसके पास इस बारे में एक स्वागत-गान होता है। उसकी उष्णता केवल मात्र उष्णता ही नहीं रह जाती, उसके पास एक ऊष्म प्रेम होता है- वह एक प्रेमपूर्ण ऊष्मा होती है। वायु भिन्न तरह से चलने लगती है वह तुम्हारे चारों ओर थोड़ी अधिक देर तक रुकती है, वह कहीं अधिक संवेदनशीलता से तुम्हारा स्पर्श करती है, जैसे मानो उसके पास हाथ हों। वह स्पर्श पूर्ण रूप से भिन्न होता है। अब उस स्पर्श के चारों ओर एक संवेदनशीलता होती है। वृक्ष में फूल खिलेंगे, लेकिन उसी ढंग से नहीं। अब पुष्प वृक्ष में ऐसे आ रहे हैं जैसे मानों वे हर्ष से उछल रहे हों।
यह कहा जाता है कि बुद्ध जब कभी एक वन से होकर गुज़रते थे तो वृक्ष पुष्पित होना शुरू हो जाते थे, जबकि उनके खिलने का मौसम भी नहीं होता था। ऐसा होना ही है। बुद्ध को पहिचानने में मनुष्य भूल कर सकते हैं, लेकिन वृक्ष भूल कैसे कर सकते हें? मनुष्य के पास मन होता है और मन उनसे चूक सकता है लेकिन वृक्ष उनसे कैसे चूक सकते हें? उनके पास कोई मन नहीं होते, और जब एक बुद्ध वन में चलता है, उनमें फूल खिलना प्रारम्भ हो जाते हैं। यह स्वाभाविक है, ऐसा होना ही चाहिए। यह एक चमत्कार नहीं है। लेकिन तुम उन पुष्पों को देखने में समर्थ नहीं हो सकते हो, क्येंकि वे पुष्प वास्तव में भौतिक रूप से नहीं हैं। वे पुष्प वृक्षों की अनुभूतियां हैं। जब बुद्ध उनके निकट से गुज़रते हैं तो वृक्ष एक भिन्न तरह कंपते हुए डोलने लगते हैं, वे एक भिन्न ढंग से धड़कने लगते हैं, और वे और अधिक वैसे ही नहीं बने रहते। यही इसका अर्थ है। पूरा अस्तित्व तुमहारे लिए फिक्र करता है। यह अखण्ड अस्तित्व ही तुम्हारी मां है।
अब इस बोध-कथा को समझने का प्रयास करो, जो श्रेष्ठतम बोध कथाओं में एक है।
सुभूति बुद्ध के शिष्यों में से एक था।
बुद्ध के पास हजारों शिष्य थे। सुभूति उनमें से एक था। उसके बारे में विशेष कुछ भी नही ंथा। वास्तव में सुभूति के बारे में कोई भी व्यक्ति अधिक नहीं जानता है और उसके बारे में केवल यही कहानी है। वहां ख्याति प्राप्त; प्रसिद्ध, महान विद्वान, राजकुमार और असाधारण शिष्य थे। उन राजकुमारों के पास एक बड़ा राज्य था, जिसका परित्याग कर उसे छोड़कर वे बुद्ध के शिष्य बन गए थे, और उन सभी के मध्य उनका एक नाम था। लेकिन उनमें से किसी पर पुष्पों की वर्षा नहीं हुई। पुष्पों ने इस सुभूति को चुना, जो केवल उन शिष्यों में से एक था और जिसके बारे में विशेष कुछ भी नहीं था।
पुष्प केवल तभी बरसते हैं, अन्यथा एक बुद्ध के चारों ओर एकत्रित शिष्यों में तुम भी एक विशेष बन सकते हो- और तुम चूक सकते हो। एक बुद्ध के निकट बने रहने से भी, तुम अहंकारी होने का अनुभव कर सकते हो, तुम एक धार्मिक शासन सृजित कर सकते हो और कह सकते हो- ‘मैं एक सामान्य शिष्य नहीं हूं, मैं कुछ विशिष्ट हूं। मैं ठीक बुद्ध के बाद हूं। दूसरे लोग केवल सामान्य हैं, एक समूह हैं, लेकिन मैं एक समूह नहीं हूं। मेरे पास अपना एक नाम है, एक अपनी पहिचान है। बुद्ध के पास आने से पूर्व भी मैं एक विशिष्ट व्यक्ति था-और वे विशिष्ट बने ही रहते हैं।
सारिपुत्र बुद्ध के पास आया। जब वह आया तो उसके अपने पांच सौ शिष्य उसके साथ थे। वह एक सद्गुरु था- निश्चित रूप से वह बोध को उपलब्ध सद्गुरु न था, वह कुछ भी नहीं जानता था और तब भी वह अनुभव करता था कि वह सभी कुछ जानता था, क्योंकि वह एक महान विद्वान था। वह सभी धर्मशास्त्रों को जानता था। वह एक ब्राह्मण के घर में जन्मा था और बहुत अधिक प्रतिभाशाली और कुशाग्र बुद्धि का था। प्रारम्भिक बचपन से ही वह अपनी असाधारण स्मृति के कारण जाना जाता था- और वह किसी भी चीज़ को याद रख सकता था। केवल एक धर्मग्रंथ को एक बार पढ़कर ही वह तुरन्त उसकी स्मृति बन जाता था। वह पूरे देश भर में विख्यात था। जब वह बुद्ध के पास आया तो वह ‘कोई एक’ व्यक्ति था। किसी रूप से कुछ होना ही उसके लिए एक अवरोध बन गया था।
यह देवता बहुत अधिक अतर्कपूर्ण और अपरिमेय प्रतीत होते हैं- उन्होंने सुभूति जैसे एक शिष्य को चुना, जो केवल शिष्यों के समूह में एक सामान्य शिष्य था और उसके बारे में विशिष्ट कुछ भी न था। ये देवता सनकी प्रतीत होते हैं। उन्हें सारिपुत्र को चुनना चाहिए था, जो चुने जाने योग्य एक उचित व्यक्ति था। लेकिन उन्होंने उसका चुनाव नहीं किया। उन्होंने आनंद को भी नहीं चुना जो बुद्ध का चचेरा भाई था और जो निरंतर चालीस वर्षों तक बुद्ध की एक छाया बनकर रहा और एक क्षण के लिए भी वह कभी बुद्ध से दूर नहीं रहा। वह बुद्ध के साथ एक ही कक्ष में सोता था और वह बुद्ध के साथ निरंतर उनके बगल में रहते हुए ही भ्रमण करता था। वह सबसे अधिक ख्याति प्राप्त व्यक्ति था। वे सभी बोध कथाएं जो बुद्ध ने कही, वे आनंद को बताते हुए प्रारम्भ होती है। वह कहते हैं- ‘आनंद। एक बार ऐसा हुआ। आनंद और आनंद और आनंद- वह उसका नाम दोहराए चले जाते हैं। लेकिन ये देवता पागल हैं, जो उन्होंने सुभूति को चुना- एक ‘कोई नहीं’ ‘कुछ नहीं’ को।
स्मरण रहे, केवल ‘कोई नहीं’ जैसे लोग ही चुने जाते हैं- क्योंकि यदि तुम इस संसार में कोई अथवा कुछ हो, तो तुम उस दूसरे संसार में कुछ भी नहीं हो। यदि यहां तुम एक ‘कोई नहीं’ हो, तो उस दूसरे संसार में तुम ‘कुछ’ हो जाते हो। मूल्यों में अंतर है। यहां स्थूल चीज़ें मूल्यवान हैं, वहां सूक्ष्म चीज़ों का मूल्य है। और सबसे अधिक सूक्ष्म से भी सूक्ष्मतम है- न हो जाना। सुभूति संघ में रहता था- कोई उसका नाम तक नहीं जानता था- और जब यह समाचार आया कि सुभूति पर पुष्प बरस रहे हैं तो प्रत्येक व्यक्ति को आश्चर्य हुआ। यह सुभूति कौन है? हमने उसके बारे में कभी नहीं सुना। क्या ऐसा किसी संयोगवश हो गया? क्या देवताओं ने गल्ती से उसका चुनाव किया?’- क्योंकि वहां ऐसे अनेक थे जो धार्मिक अनुशासन की दृष्टि से उससे कहीं अधिक उच्च थे। सुभूति को अनिवार्य रूप से उनमें अंतिम होना चाहिए था। सुभूति के बारे में केवल यही एक कहानी है।
इसे भली भांति समझने का प्रयास करो। तब तुम एक महान सद्गुरु के निकट एक ‘कोई नहीं’ बने रहते हो। देवता सनकी हैं, वे केवल तुम्हें तभी चुनेंगे जब तुम होते ही नहीं हो। और जब तुम होने का प्रयास करते हो और तुम जितने अधिक ‘कुछ’ होने में तुम सफल होते हो तुम उतना ही अधिक चूक जाओगे। यह वही चीज़ है जो हम इस संसार में कर रहे हैं और यही हम एक बुद्ध के चारों ओर भी करना प्रारम्भ कर देते हैं। तुम समृद्धियों को पाने की लालसा करते हो। क्यों?- क्योंकि समृद्धियों के साथ तुम कुछ अथवा ‘कोई एक’ बन जाते हो। तुम प्रतिष्ठा और शक्ति पाने की लालसा करते हो। क्यों?- क्योंकि प्रतिष्ठा और शक्ति के साथ तुम सामान्य नहीं हो। तुम सीखने, छात्रवृत्ति पाने और ज्ञान प्राप्त करने के लिए लालसा करते हो। क्यों?- क्योंकि ज्ञान के साथ तुम्हारे पास गर्व करने को कुछ चीज़ होती है।
लेकिन देवता इस तरह से तुम्हें नहीं चुनेंगे। उनके पास चुनाव करने के अपने अलग तरीके हैं। यदि तुम स्वयं अपना ही ढोल बहुत अधिक पीट रहे हो, तो इस बारे में देवताओं को तुम पर फूल बरसाने की कोई भी आवश्यकता नहीं है- तुम स्वयं अपने ही ऊपर फूलों को फेंक रहे हो, जिसकी वहां कोई ज़रूरत ही नहीं है। जब तुम किसी भी चीज़ के बारे में गर्व करना बंद कर देते हो, तो अचानक पूरे अस्तित्व को तुम पर गर्व होने लगता है। जीसस कहते हैं- ‘जो लोग इस संसार में प्रथम हैं, वे मेरे परमात्मा के राज्य में अंतिम हो जायेंगे ओर जो लोग यहां अंतिम हैं, वे वहां प्रथम हो जाएंगे।’
एक बार ऐसा हुआ कि एक ही शहर में एक ही दिन एक बहुत धनी व्यक्ति और एक भिखारी दोनों की ही मृत्यु हुई। भिखारी का नाम लाज़ास था। धनी व्यक्ति सीधा नर्क गया और लाज़ारुस सीधा स्वर्ग गया। धनी व्यक्ति ने ऊपर की ओर देखा और लाज़ारुस को परमात्मा के निकट बैठे हुआ पाया; और वह स्वर्ग की ओर देखकर चिल्लाते हुए बोला- ‘ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ चीज गलत हो गई है। मुझे वहां होना चाहिए था और इस भिखारी लाजारुस को यहां होना चाहिए था।’
परमात्मा हंसा और उसने कहा- ‘जो लोग अंतिम हैं, वे प्रथम हो जाएंगे ओर जो लोग प्रथम हैं वे अंतिम हो जाएंगे। तुमने पहले ही पर्याप्त मज़े कर लिए हैं अब इस लाज़ारुस को भी थोड़ा सा आनंद लेने दो।’
और धनी व्यक्ति क्रोध के साथ बहुत गर्मी का अनुभव कर रहा था- निश्चित रूप से नर्क में तुम्हारे लिए एयरकंडीशनिंग अभी तक नहीं हुई है। उसे बहुत तेज़ प्यास लग रही थी लेकिन वहां पानी नहीं था। इसलिए उसने चीखते हुए कहा- ‘परमात्मा! कम से कम थोड़े से पानी के साथ लाज़ारुस को यहां भेजिए। बहुत अधिक प्यासा हूं।’
और परमात्मा ने कहा- ‘लाजरुस अनेक बार प्यासा था, और वह द्वार पर लगभग मर रहा था और तुमने उसे कभी भी कुछ भी नहीं दिया। वह तुम्हारे द्वार पर भूखा मर रहा था और प्रत्येक दिन दावत होती थी और अनेक लोग आमंत्रित किए जाते थे, लेकिन उसे हमेशा तुम्हारे नौकरों के द्वारा द्वार से दूर हटा दिया जाता था क्येंकि मेहमान आ रहे होते थे जिनमें शक्तिशाली राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, और धनी व्यक्ति होते थे और एक भिखरी का वहां खड़ा होना तुम्हें अशोभनीय दिखाई देता था। तुम्हारे नौकर उसका पीछा करते हुए उसे दूर भाग देते थे और वह भूखा होता था, जब कि जो लोग आमंत्रित किए जाते थे वे भूखे नहीं होते थे। तुमने कभी लाज़ारुस की ओर नहीं देखा और अब यह असंभव है।’
और यह कहा जाता है कि इसे सुनकर लाज़ारुस हंसा।
अनेकानेक ईसाई रहस्यदर्शियों के लिए, यह गहन कथा विचार करने योग्य बन गई। वह ठीक एक ज़ेन कुआन को समान बन गई, और मठों में ईसाइ्र रहस्यदर्शी बार-बार यह पूछा करते थे कि लाजरुस क्यों हंसा।
वह सभी चीजों की मूर्खता और व्यर्थता पर हंसा। वह कभी नहीं जानता था कि लाजरुस के समान एक कोढ़ी और भिखारी जैसा कोई नहीं और कुछ नहीं जैसा व्यक्ति भी कभी स्वर्ग में प्रवेश करेगा। जो कुछ भी हुआ था, वह उस पर विश्वास ही न कर सका। और वह दूसरी चीज पर भी विश्वास न कर सका कि नगर के सबसे अधिक धनी व्यक्ति को नर्क में जाना चाहिए। वह हंसा।
और लाज़ारुस अभी भी हंसता है और वह तब भी हंसेगा जब तुम मर जाओगे। यदि तुम कोई कुछ हो, तो वह हंसेगा क्येंकि तुम स्वर्ग से बाहर फेंक दिए जाओगे। यदि तुम कोई भी नहीं हो और एक सामान्य व्यक्ति हो, वह तब भी हंसेगा, क्योंकि स्वर्ग में तुम्हारा स्वागत किया जायेगा।
इस संसार में क्योंकि अहंकार अस्तित्व में हैं, इसलिए सभी मूल्यांकन अहंकार से ही संबंधित है। दूसरे संसार में दूसरे आयाम हैं और मूल्यांकन का संबंध र्निहंकारिता से है। इसीलिए बुद्ध अनात्मा- अनन्ता पर बल देते हैं। उन्होंने कहा- ‘यह भी विश्वास मत करो कि मैं एक आत्मा हूं, क्योंकि वह भी एक सूक्ष्म अहंकार बन सकता है। यह मत कहो : ‘अहं ब्रह्मासि- मैं आत्मा हूं’ मैं ही अंतिम सारभूत हूं। यह भी मत कहो क्येंकि ‘मैं’ बहुत चतुर है। वह तुम्हें धोखा दे सकता है। यह अनेकानेक जन्मों से तुम्हें धोखा ही देता आया है। वह तुम्हें धोखा दिये चला जा सकता है। समान्य रूप से कहो- ‘मैं नहीं हूं’, और उस ‘न होने’ में बने रहो, उस शून्यता में बने रहो- और आत्मा से भी खाली हो जाओ।
उस एक को आत्मा से भी छुटकारा पा लेना है। एक बार आत्मा भी दूर पेंफक दी जाती है, तो कुछ भी चीज कम नहीं हुई है। तुम अतिरेक से एक बाढ़ की तरह प्रवाहित होने लगते हो और तुम पर पुष्प बरसने लगते हैं।
सुभूति बुद्ध के शिष्यों में से एक था।
स्मरण रहे- उनमें से एक।
वह शून्यता की सामर्थ्य को समझने में समर्थ था।
वह अनेक में से केवल एक था, इसी कारण वह शून्यता की सामर्थ्य को समझने योग्य था। कोई भी व्यक्ति उसके बारे में बात नहीं करता था और न कोई भी व्यक्ति उसके बारे में जानता था। वह बुद्ध की यात्राओं में उनका अनुसरण करते हुए अनेकानेक पदों पर उनके साथ चला था। कोई भी व्यक्ति नहीं जानता था कि वह भी वहां था, यदि वह मर भी जाता तो कोई भी व्यक्ति उसके प्रति सचेत न होता। यदि वह पलायन कर कहीं दूर चला जाता तो कोई भी व्यक्ति नहीं जानता, क्येंकि कोई भी व्यक्ति कभी यह जानता भी नहीं था कि सुभूति वहां था। उसने धीमे-धीमे ‘कोई नहीं’ और ‘कुछ नहीं’ बनकर शून्यता की सामर्थ्य को जाना।
इसका अर्थ क्या है? ------क्येंकि वह जितना अधिक एक अनुपस्थिति बनता गया, उसने उतना अधिक यह अनुभव किया कि बुद्ध उसके निकट आ रहे थे। कोई अन्य व्यक्ति इसके प्रति सचेत नहीं था, लेकिन बुद्ध सचेत थे। जब उस पुष्प वर्षा हुई तो प्रत्येक व्यक्ति आश्चर्य कर रहा था, लेकिन बुद्ध के लिए वह एक आश्चर्य न था। जब बुद्ध को इसकी सूचना दी गई कि कुछ चीज सुभूति को घटित हुई है तो बुद्ध ने कहा- ‘मैं प्रतीक्षा कर रहा था। किसी भी क्षण वह घटित होने जा रहा था, क्योंकि उसने स्वयं को इतना अधिक मिटा दिया था कि किसी भी दिन यह होने जा रहा था। इस बारे में मेरे लिए इसमें कोई भी आश्चर्य नहीं है।’
वह शून्यता की समार्थ्य को समझने में समर्थ था।
खाली होने के द्वारा, शून्य होने के द्वारा! तुम शून्यता की शक्ति को नहीं जानते। तुम अपने ही अंदर पूर्ण रूप से अनुपस्थित होने की शक्ति को नहीं जानते। तुम केवल अहंकार की निर्धनता को जानते है।
लेकिन समझने का प्रयास करो। अहंकार के साथ क्या तुमने वास्तव में कभी शक्तिशाली होने का अनुभव किया है? अहंकार के साथ तुमने हमेशा शक्तिहीन होने का अनुभव किया है। इसी वजह से अहंकार कहता है : ‘अपने साम्राज्य को थोड़ा और अधिक बड़ा बनाओ, जिससे तुम अनुभव कर सको कि तुम शक्तिशाली हो। नहीं, इस घर से कुछ भी नहीं होगा, एक और अधिक बड़े घर की आवश्यकता है। नहीं, इतने अधिक बैंक बैलेंस से कुछ नहीं होगा, एक बड़ा बैंक बेलेंस ज़रूरी है। नहीं, इतनी अधिक प्रसिद्धि से कुछ नहीं होगा, थोड़ी सी और अधिक होना चाहिए।’ अहंकार हमेशा और अधिक की मांग करता है कि क्यों? यदि वह शक्तिशाली है, फिर अधिक के लिए क्यों मांगते चले जाना? और अधिक के लिए-यही लालसा कहती है, इससे प्रदर्शित होता है कि अहंकार शक्तिहीन होने का अनुभव करता है। तुम्हारे पास दस लाख रुपये हैं ओर तुम शक्तिहीन हो। अहंकार कहता है : ‘दस लाख से काम नहीं चलेगा। एक करोड़ होना चाहिए।’ और मैं तुमसे कहता हूं कि एक करोड़ रुपयें से तुम दस गुने अधिक शक्तिहीन बन जाओगे। और तब अहंकार कहेगा- ‘नहीं, इससे भी काम नहीं चलेगा।’
अहंकार के साथ, तुम कुछ भी नहीं करोगे। प्रत्येक चीज़ केवल यह सिद्ध करती है कि तुम दुर्बल और शक्तिहीन हो। तुम जितनी अधिक शक्ति पाते हो उसके विरोध में तुम उतने ही अधिक शक्तिहीन होने का अनुभव करते हो। तुम जितने अधिक धनी और समृद्ध बनते हो तुम अधिक निर्धन होने का अनुभव करते हो। तुम जितने अधिक स्वस्थ होते हो तुम मृत्यु से उतने से अधिक भयभीत रहते हो। तुम जितने युवा हो, तुम उतना अधिक यह अनुभव करते हो कि वृद्धावस्था निकट आ रही है। विरोधी अथवा विपरीत ठीक कोने में कहीं आसपास होता है। और यदि तुम्हारे पास थोड़ी सी भी समझ है तो विपरीत तुम्हारी गर्दन के चारों ओर बस पहुंच ही रहा है। तुम जितने अधिक सुंदर होते हो तुम अपने अंदर की कुरूपता का उतना ही अधिक अनुभव करते हो।
अहंकार ने कभी भी शक्तिशाली होने का अनुभव नहीं किया है। वह शक्ति का केवल सपना देखता है, वह शक्ति के बारे में चिंतन मनन करते हुए सोचता है- लेकिन वे सामान्य रूप से सपनों के सिवा अन्य कुछ भी नहीं हैं। और सपने वहां केवल तुम्हारे अंदर की दुर्बलता को छिपाने के लिए हैं। लेकिन सपने वास्तविकता को नहीं छिपा सकते। तुम यहां से अथवा वहां से, अथवा किसी भागने के गुप्त मार्ग से जो कुछ भी करते हो, वास्तविकता फिर अंदर आ जाती है और तुम्हारे सभी सपनों को तोड़ देती है।
संसार में अहंकार सबसे अधिक दुर्बल चीज़ है। लेकिन कोई भी उसका अनुभव नहीं करता है, क्योंकि वह और अधिक के लिए मांगता चला जाता है और वह कभी तुम्हें स्थिति की ओर देखने का अंतराल नहीं देता है। इससे पहले तुम सचेत हो सको वह तुम्हे कहीं और आगे, और आगे धकेलता है। लक्ष्य हमेशा कहीं न कहीं क्षितिज के निकट होता है। तुम सोचते हो कि वह इतना अधिक निकट है कि मैं वहां शाम तक पहुंच जाऊंगा।
वह शाम कभी नहीं आती, और क्षितिज हमेशा समान दूरी पर बना रहता है। क्षितिज एक भ्रांति है और अहंकार के सभी लक्ष्य केवल भ्रांति होते हैं। लेकिन वे आशा देते हैं और तुम यह अनुभव किए चले जाते हो- किसी दिन अथवा दूसरे दिन मैं शक्तिशाली बनूंगा। ठीक अभी तुम शक्तिहीन दुर्बल और हीन बने रहते हो, लेकिन सपने में, आशा में और भविष्य में तुम शक्तिशाली बन जाते हो। तुम्हें सचेत होना चाहिए कि कई बार केवल अपनी कुर्सी पर बैठे हुए ही तुम दिन में ही सपने देखना शुरू कर देते हो कि तुम पूरे संसार के सम्राट अथवा अमेरिका के प्रेसीडेंट बन गए हो, और तुरन्त ही तुम इसमें मज़ा लेना प्रारम्भ कर देते हो कि प्रत्येक व्यक्ति तुम्हारी ओर देख रहा है और तुम प्रत्येक व्यक्ति के ध्यान का केन्द्र बिंदु बन गए हो। वह सपना ही तुम्हें प्रमुदित कर एक नशा देता है। यदि तुम इस तरह के सपने देखते हो तो तुम भिन्न ढंग से चलने लगोगे।
ऐसा ही प्रत्येक व्यक्ति के साथ हो रहा है : तुम्हारी समार्थ्य सपनों में ही बनी रहती है अन्यथा तुम दुर्बल और लाचार बने रहते हो। सत्य ठीक इसके विपरीत है, जब तुम नहीं खोजते, तो वह आता है। जब तुम नही ंमांगते, वह तुम्हें दिया जाता है, जब तुम लालसा नहीं करते, तो वह वहां होता है, जब तुम क्षितिज की ओर नहीं जाते तो अचानक तुम्हें अनुभव होता है कि वह हमेशा से ही तुम्हारे पास रहा है और तुमने उसे कभी नहीं जिया। वह वहां तुम्हारे अंदर है और तुम बाहर खोज रहे हो। वह वहां तुम्हारे ही अंदर है और तुम बाहर जाते हो। तुम उसे अपने साथ लिए हुए चल रहे हो और वह सर्वोत्तम शक्ति अथवा स्वयं दिव्यता तुम्हारे ही अंदर है, और तुम एक भिखारी की भांति उसे यहां और वहां देख रहे हो।
वह शून्यता की समार्थ्य को समझने योग्य था।
केवल शून्य होकर ही तुम उसे समझोगे- और इस बारे में उसे समझने का अन्य कोई भी उपाय नहीं है। तुम जो कुछ भी समझना चाहते हो, वही बन जाओ, क्योंकि केवल उसे समझने का यही एक उपाय है। एक समान्य सा व्यक्ति, कोई नहीं बनने का प्रयास करो, जिसके साथ न कोई नाम और पहिचान हो, जिसके पास दावे करने जैसा कुछ भी न हो, जिसके साथ दूसरों को बाध्य बनाने वाली कोई शक्ति न हो, दूसरों पर प्रभुत्व जमाने अथवा उन्हें अपने अधिकार में लेने की कोई भी कामना न हो और ठीक ऐसे बनो जिसकी कोई सत्ता ही न हो। इसका प्रयास करो- और देखो कि तुम कितने अधिक शक्तिशाली बन जाते हो, तुम अतिरेक से छलकती हुई कितनी अधिक ऊर्जा से भर जाते हो, तुम इतने अधिक शक्तिशाली हो जाते हो कि तुम अपनी शक्ति को बांट सकते हो, और तुम इतने अधिक आनंदित हो जाते हो कि तुम उस आनंद को लाखों लोगों को दे सकते हो। और तुम जितना अधिक देते हो, तुम उतने ही अधिक समृद्ध बन जाते हो। तुम जितना अधिक बांटते हो वह उतना अधिक बढ़ता है। तुम एक बाट बन जाते हो।
वह शून्यता की समार्थ्य को समझने में समर्थ था केवल कोई नहीं : ‘कुछ नहीं’ बनने के द्वारा ही उसकी दृष्टि में विषयी और विषय और उसके सापेक्ष संबंध में उनके सिवा अस्तित्व में कुछ भी नहीं रहा।
यह बुद्ध के खोजे गए सबसे अधिक गहनतम ध्यानों में से एक है। वह कहते हैं कि प्रत्येक वस्तु अस्तित्व में एक दूसरे से संबंधित है, यह एक सापेक्षता है। यह परस्पर आश्रित होने के सिद्धांत पर आधारित है। वह एक परिपूर्ण नहीं है, और यही वास्तविक चीज़ है।
उदाहरण के लिए तुम निर्धन हो और मैं धनी हूं। क्या यह एक वास्तविक चीज है अथवा केवल एक सापेक्षता है। मैं किसी अन्य व्यक्ति की अपेक्षा निर्धन हो सकता हूं और तुम किसी अन्य व्यक्ति की अपेक्षा धनी हो सकते हो। एक भिखारी भी किसी अन्य भिखारी की अपेक्षा धनी हो सकता है। इस स्थान में धनी भिखारी हैं और निर्धन भिखारी भी हैं। एक धनी व्यक्ति भी एक कहीं अधिक बड़े धनी व्यकित की तुलना में एक निर्धन हो सकता है। तुम निर्धन हो- क्या तुम्हारी निर्धनता अस्तित्वगत है अथवा केवल एक सापेक्षता है। यह एक सापेक्ष चीज़ है। यदि वहां तुलना करने को कोई भी व्यक्ति न हो, तो तुम कौन होगे- एक निर्धन व्यक्ति अथवा एक धनी व्यक्ति?
ज़रा सोचो...  अचानक पूरी मनुष्यता मिट जाती है, और पृथ्वी पर तुम अकेले बच जाते हो, तो तुम क्या होगे, निर्धन अथवा धनी? तुम सामान्य रूप से तुम ही रहोगे, न धनी होगे और न निर्धन क्योंकि तुम तुलना कैसे करोगे? तुलना करने को वहां कोई रोकफेलर नहीं है और न तुलना करने को कोई भिभारी है। जब तुम एकार्की हो, तो तुम सुंदर होगे अथवा कुरूप? तुम कोई भी नहीं होगे, तुम सामन्य रूप से तुम होगे। किसी के साथ तुलना करने को जब कोई भी नही ंहोगा, तो तुम कुरूप अथवा सुंदर कैसे हो सकते हो? जैसा कुरूपता और सुंदरता, समृद्धता और निर्धनता के साथ है, कैसा ही सभी चीज़ों के साथ है। तुम बुद्धिमान होगे अथवा एक मूर्ख? मूर्ख अथवा बुद्धिमान में से तुम कुछ भी कोई भी नहीं होगे।
इसलिए बुद्ध कहते हैं कि ये सभी चीजें अस्तित्व में सापेक्ष संबंधों में रहती हैं। वे अस्तिवगत नहीं हैं, और वे केवल धारणाएं हैं। और इन चीजों के बारे में, जो हैं नहीं, हम इतने अधिक चिंतित और परेशान हो जाते हैं। यदि तुम कुरूप हो तो बहुत अधिक परेशान हो जाते हो। यदि तुम सुंदर हो, तुम तब भी चिंतित हो। चिंता अथवा परेशानी किसी ऐसी चीज़ के द्वारा उत्पन्न हो रही है, जो नहीं है।
एक सापेक्ष कोई चीज नहीं होती। यह केवल एक सापेक्ष संबंध है, जैसे मानो तुमने आकाश में एक डिजायन खींची हो अथवा हवा में एक फूल बनाया हो। इन सापेक्ष चीजों की अपेक्षा पानी का एक बुलबुला कहीं अधिक सारपूर्ण होता है। यदि तुम अकेले हो, तो तुम कौन हो? कोई भी नहीं हो। कोई कुछ होना, किसी व्यक्ति के सापेक्ष संबंध में आता है।
इसका अर्थ है कि केवल ‘कोई नहीं’ होना भी स्वभाव में ही बने रहना है केवल ‘कोई नहीं’ होना, अस्तित्व में ही बने रहना है।
और स्मरण रहे, तुम अकेले हो। केवल तुम्हारे बाहर ही समाज अस्तित्व में है। अपने अंदर गहराई में तुम अकेले हो। अपनी आंखें बंद करो और अंदर देखो कि तुम सुंदर हो अथवा कुरूप हो। दोनों ही धारणाएं विलुप्त हो जाती हैं। वहां अंदर न तो सुंदरता है और न कुरूपता है। अपनी आंखें बंद करो और यह चिंतन तथा मनन करो कि तुम कौन हो? आदरणीय हो अथवा सम्मान योग्य नहीं हो। नैतिक हो या अनैतिक हो? युवा हो अथवा वृद्ध हो? काले हो अथवा गोरे हो? एक स्वामी हो अथवा एक गुलाम हो? तुम कौन हो? अपनी आंखें बंद करो और तुम्हारे अकेलेपन में प्रत्येक धारणा गिर जाती है। तुम कोई भी चीज़ नहीं हो सकते। तब शून्यता उत्पन्न होती है। सभी धारणाएं मिट जाती हैं, केवल तुम्हारा अस्तित्व बना रहता है।
बुद्ध द्वारा खोजे गए यह सबसे अधिक गहनतम ध्यानों में से एक है ‘कोई नहीं’ बन जाना। और ऐसा बलपूर्वक नहीं करना है। तुम्हें यह नहीं सोचना है कि तुम कोई नहीं, कुछ नहीं हो, तुम्हें इसका अनुभव करना है, अन्यथा तुम्हारा कोई नहीं होना बहुत अधिक बोझिल बन जायेगा। तुम्हें यह नहीं सोचना है कि तुम ‘कोई नहीं’ हो, तुम्हें सामान्य रूप से यह अनुभव करना है कि वे सभी चीजें, जिनके बारे में तुम सोच रहे हो, वे तुमसे सापेक्ष रूप से संबंधित हैं।
और सत्य परिपूर्ण होता है, वह सापेक्ष रूप, से संबंधित नहीं होता है। सत्य सापेक्ष नहीं है, वह किसी चीज पर आश्रित नहीं होता है। वह सामान्य रूप से वहां होता है। इसलिए अपने अंदर ही सत्य को खोजो और सापेक्ष संबंधों के बारे में फिक्र मत करो। वे भिन्न हैं, उनकी व्याख्याएं भिन्न हैं। और यदि व्याख्याएं बदलती हैं, तो तुम बदलते हो।
कोई भी चीज़ फैशन में है- यदि तुम उसका प्रयोग करते हो तो तुम आधुनिक हो, तुम्हारी प्रशंसा की जाती है। कुछ चीज फैशन से बाहर हो चुकी है- यदि तुम उसका प्रयोग करते हो तो तुम समय से पीछे हो और तुम्हारा सम्मान नहीं किया जाता है। पचास वर्ष पूर्व वह फैशन में था और तुम आधुनिक कहे जाते रहे। पचास वर्षों बाद वह फिर फैशन में आ सकता है और तब तुम फिर आधुनिक कहे जाओगे। ठीक अभी तुम समय से पीछे हो। लेकिन तुम कौन हो- क्या तुम बदलते हुए फैशन हो, क्या तुम बदलती हुई धारणाएं और सापेक्ष-संबंध हो?
मेरे एक मित्र साम्यवादी थे, लेकिन वह बहुत अधिक धनी व्यक्ति थे- और उन्होंने इस विरोधाभास का कभी भी अनुभव नहीं किया था। वह एक बुर्जुआ थे, भली-भांति सम्पन्नता में पोषित हुए थे और उन्होंने अपने हाथों से भी कोई भी कार्य नहीं किया था। उनके पास अनेक सेवक थे और उनका संबंध एक पुराने राजसी परिवार से था। और तब सन 1940 में वह रूस गए। जब वह वहां से वापस लौटे तो उन्होंने मुझे बताया- ‘मैं रूस में जहां कहीं भी गया मै। ने वहां अपराधी होने का अनुभव किया- क्योंकि जब भी मैं किसी भी व्यक्ति से हाथ मिलाता था तो मैं तुरंत ही यह अनुभव कर सकता था कि दूसरे व्यक्ति ने यह अनुभव किया कि मेरे हाथ श्रम करने का कोई भी संकेत अपने साथ लिए हुए नहीं थे। वे हाथ प्रोलेटेरियन (सर्वहारा वर्ग) के न होकर बुर्जुआ (सामंतवादी) के कोमल ओर स्त्रैण हाथ थे। और तुरंत ही दूसरे व्यक्ति के चेहरे के भाव बदल जाते थे और वह मेरे हाथों को तुरंत छोड़ देता था, जैसे मानो मैं एक अछूत था।’ उन्होंने मुझे बताया- ‘भारत में, जब भी मैं किसी भी व्यक्ति से हाथ मिलता था, मेरे हाथों की प्रशंसा की जाती थी। वे सुंदर, स्त्रैण, कोमल और कलात्मक थे। लेकिन रूस में अपने हाथों के बारे में मैंने इतना अधिक अपराधी होने का अनुभव किया कि मैंने यह सोचना शुरू कर दिया कि कैसे उनकी कोमलता को नष्ट कर दिया जाए, जिससे कोई भी व्यक्ति मुझे एक राजा, एक बुर्जुआ, एक शोषक अथवा एक धनी व्यक्ति व्यक्ति की भांति न देख----’ क्योंकि वहां श्रम करना एक मूल्य बन गया है। यदि रूस में तुम सर्वहारा वर्ग के हो, तो तुम कुछ हो, यदि तुम एक धनी व्यक्ति हो तो तुम एक अपराधी हो। कोई भी चीज केवल एक सापेक्ष धारणा है।
भारत में हमने भिक्षुओं, स्वामियों ओर संन्यासियों का सम्मान किया है, और माओ से पूर्व ऐसा ही चीन में भी किया जाता रहा है। एक व्यक्ति जिसने संसार का परित्याग कर दिया है, वह संसार के लिए सबसे अधिक सम्मानित व्यक्ति था और समाज उसके बारे उसकी देखभाल करता था। वह मनुष्यता के सर्वोच्च शिखर पर था तब चीन में साम्यवाद आया और हजारों मठ पूरी तरह नष्ट कर दिए गए और सभी अतीत के सम्मानित और भिक्षु लोग अपराधी कहे जाने लगे। उन्हें अब कार्य करना होता है। तुम केवल भ्ल्लाजन तभी पा सकते हो जब तुम कोई कार्य करते हो और भिक्षा मांगना कानून द्वारा निषिद्ध का दिया गया और अब कोई भी व्यक्ति भीख नही ंमांग सकता।
यदि बुद्ध चीन में जन्म लेते तो अब उनके लिए बहुत अधिक कठिनाई खड़ी हो जाती। उनहें भिक्षा मांगने की अनुमति नहीं होती और उन्हें एक शोषक समझा जाता। यदि मार्क्स का जन्म भी चीन अथवा रूस में हुआ होता तो वह कठिनाई में पड़ जाते, क्योंकि अपने जीवन भर, ब्रिटिश म्यूज़्यिम में पुस्तकें पढ़ने के अतिरिक्त उन्होंने अन्य कोई दूसरा कार्य नहीं किया। वह सर्वहारा वर्ग के अथवा एक श्रमिक नहीं थे- और उनका मित्र तथा उनके कार्यों में सहयोग करने वाला, फ्रीड्रिक एंजिल्स एक धनी व्यक्ति था। वे वहां देवताओं के समान पूजे जाते हैं। लेकिन यदि फ्रीड्रि एंजिल्स रूस भ्रमण करने को आता, तो वह कठिनाई में पड़ जाता। उसने कभी भी कार्य नहीं किया था, वह दूसरों के श्रम पर जीवित रहा और उसने मार्क्स की आर्थिक सहायता की। और बिना उसकी सहायता के मार्क्स ‘दास केपीटल’ और ‘कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ जैसी क्रांतिकारी पुस्तकें नहीं लिख सकता था।
लेकिन अब भिन्न स्थिति है, अब रूस में मार्क्स कठिनाइ्र में पड़ गया होता, क्योंकि अब वहां फैशन बदल गया है। यह स्मरण रहे कि वह जो बदलता है, वह सापेक्ष है और वह जो अपरिवर्तनीय बना रहता है, वही स्वयं और परिपूर्ण है- और तुम्हारी आत्मा स्वयं है, और वह सापेक्षता का एक भाग नहीं है।
उसकी दृष्टि में विषयी और विषय की सापेक्षता में उनके सिवाय अस्तित्व में कुछ भी न रहा।
यदि तुम इस दृष्टिकोण को भली-भांति समझ सकते हो, तो इस पर चिंतन, मनन और ध्यान करो, और अचानक तुम अपने अंदर बोध के प्रकाश से भर जाते हो ओर तुम देखते हो कि प्रत्येक वस्तु शून्य है।
एक दिन, जब सुभूति, एक वृक्ष के नीचे सर्वोच्च शून्यता की भावदशा में बैठा हुआ था...
‘सर्वोच्च शून्यता’ के शब्दों का स्मरण बना रहे, क्योंकि जब कभी तुम भी शून्य होने का अनुभव करते हो- लेकिन वह सर्वोच्च नहीं होती है। जब कभी तुम भी शून्य होने का अनुभव करते हो, लेकिन सर्वोच्च शिखर आनंद की शून्यता नहीं- एक निराशा का नकारात्मक खालीपन होता है वह, एक विधायक और स्पष्ट शून्यता नहीं होती जहां इस अंतर का स्मरण बनाए रखना है।
एक नकारात्मक शून्यता का अर्थ है कि तुम एक समझ का नहीं एक विफलता का अनुभव कर रहे हो। तुमने संसार में कुछ चीज़ प्राप्त करने का प्रयास किया है ओर तुम उसे प्राप्त नहीं कर पाए हो। तुम खाली होने का अनुभव करते हो, क्योंकि जो चीज तुमने चाही थी उसे तुम न पा सके; जिस स्त्री को तुमने चाहा था और उसे न पा सके, तो तुम खाली होने का अनुभव करते हो। जिस पुरुष के तुम पीछे पड़ी थीं वह भाग गया ओर तुम खाली होने का अनुभव करती हो। जो सफलता तुमने अपने सपनों में देखी थी और वह घटित न हो सकी- और तुम खाली होने का अनुभव करते हो। यह खालीपन अथवा शून्यता नकारात्मक है। यह एक उदासी है, यह एक अवसाद है और यह मन की एक निराश स्थिति है। यदि तुम इस तरह की शून्यता का अनुभव कर रहे हो, तो स्मरण रहे कि तुम्हारे ऊपर फूल नहीं बरसेंगे। तुम्हारी शून्यता वास्तविक और विधायक नहीं है। तुम अभी भी चीजों के पीछे भाग रहे हो, और इसी कारण तुम खालीपन का अनुभव कर रहे हो। तुम अभी भी अहंकार के पीछे-पीछे भाग रहे हो, तुम कोई कुछ होना चाहते थे और न हो सके। यह एक समझ न होकर एक विफलता है।
इसलिए स्मरण रहे, यदि तुम एक विफलता के कारण संसार का परित्याग करते हो, तो यह एक परित्याग करना नहीं है। यह एक संन्यास नहीं है, यह प्रामाणिक नहीं है। यदि तुम एक समझ के द्वारा संसार का परित्याग करते हो तो वह पूर्ण रूप से एक अलग चीज है। तुम एक उदासी की भांति नहीं, तुम अपने अंदर की निराशा के साथ नहीं और अपने चारों ओर की विफलता के कारण परित्याग नहीं करते हो। स्मरण रहे, तुम उसे एक आत्मघात की भांति नहीं करते हो। यदि तुम्हारा संन्यास एक आत्मघात जैसा है, तब फूल तुम्हारे ऊपर नहीं बरसेंगे- तब तुम अवकाश ले रहे हो----
तुमने ईसप की इस कहानी के बारे में ज़रूर सुना होगा----
एक लोमड़ी एक बगीचे होकर गुजर रही थी लेकिन वहां अंगूर लटक रहे थे, लेकिन उसकी लता एक वृक्ष की ऊंचाई पर टिकी थी। उसने छलांग लगाने के कई प्रयास किए, लेकिन वे उसकी पहुंच के बाहर थे। इसलिए वह यह कहती हुई आगे बढ़ गई- ‘वे अभी खाने योग्य हैं ही नहीं, वे अभी पके नहीं हैं और मीठे नहीं हैं। वे खट्टे हैं।’ वह उन तक पहुंच ही न सकी।
लेकिन अहंकार के लिए यह अनुभव करना बहुत कठिन है कि मैं विफल हो गया हूं। वस्तुतः उसे पहिचानने की अपेक्षा कि वे मेरी पहुंच के बाहर थे- अहंकार कहेगा- ‘वे किसी भी योग्य न थे।’
तुम्हारे अनेक तथाकथित संन्यासी और संत ईसप की कथा की इस लोमड़ी की ही भांति हैं। उन्होंने संसार का परित्याग इसलिए नहीं किया क्योंकि उन्होंने उसकी व्यर्थता को समझा, बल्कि इसलिए किया क्योंकि वे असफल हुए और वहां के सुख उनकी पहुंच के बाहर थे और वे अभी भी असंतोष और शिकायत से भरे हुए हैं। तुम उनके पास जाओ ओर वे तब भी संसार के विरुद्ध कह रहे होंगे- ‘धन तो धूल के समान है और एक सुंदर स्त्री क्या होती है?- वह और कुछ भी न होकर रक्त और हड्डियों का एक ढांचा है।’ वे किसको आश्वस्त करने का प्रयास कर रहे हैं? वे स्वयं को ही आश्वस्त करने का प्रयास कर रहे हैं कि अंगूर खट्टे हैं।
जब तुमने संसार का परित्याग ही कर दिया तोस्त्री के बारे में बात क्यों करते हो? जब तुम्हारा धन के साथ कोई संबंध ही नहीं है, फिर धन के बारे में बात क्यों करते हो? एक गहरा संबंध अभी भी बना हुआ है, यद्यपि तुम अपनी असफलता को स्वीकार नहीं कर सकते और समझ अभी भी उत्पन्न नहीं हुई है।
जब कभी तुम किसी भी चीज के विरुद्ध होते हो तो स्मरण रहे, समझ अभी उत्पन्न नहीं हुई है, क्योंकि समझ में पक्ष और विपक्ष दोनों विलुप्त हो जाते हैं। समझ में तुम संसार के प्रति शत्रुतापूर्ण नहीं होते हो। समझ में तुम संसार की और वहां के लोगों की निंदा नहीं करते। यदि तुम निंदा अथवा तिरस्कार किए चले जाते हो, तो इससे यह प्रदर्शित होता है कि कहीं न कहीं’ तुम्हारे अंदर एक घाव है और तुम ईर्ष्या का अनुभव कर रहे हो- क्योंकि बिना ईर्ष्या के वहां कोई भी तिरस्कार नहीं हो सकता है। तुम लोगों की निंदा करते हो, क्येंकि किसी न किसी तरह कहीं अचेतन में तुम यह अनुभव करते हो कि वे लोग तो मजे ले रहे हें और तुम विफल हो गए। तुम कहे चले जाते हो कि यह संसार एक सपना है लेकिन यदि वास्तव में वह एक सपना है तब इस बात पर बल क्यों देते हो कि वह एक सपना है? कोई भी व्यक्ति सपनों के बारे में आग्रह नहीं करता है। सुबह जब तुम जागते हो, तुम जानते हो कि तुम्हारा सपना एक सपना था- बात समाप्त हो गई। तुम लोगों को जाकर यह नहीं बताते कि वे जो कुछ भी हैं- वह एक सपना है।
मन की एक चालबाजी का स्मरण बना रहे : तुम केवल स्वयं अपने को कायल करने के लिए ही, किसी चीज के बारे में लोगों को कायल करने का प्रयास करते हो, क्योंकि जब दूसरे लोग आश्वस्त होने का अनुभव करते हैं, तुम्हें ठीक लगता है। यदि तुम लोगों को जाकर यह बताते हो कि सेक्स करना एक पाप अथवा अपराध है और वे लोग कायल हो जाते हैं और वे तुम्हारे तर्कों को गलत सिद्ध नहीं कर सकते, तो तुम प्रसन्न होते हो। तुम स्वयं आश्वस्त हो गए हो। दूसरे लोगों की आंखों में देखकर तुम अपनी विफलता कोढकने का प्रयास कर रहे हो।
नकारात्मक शून्यता व्यर्थ है। वह पूरी तरह से किसी चीज़ की अनुपस्थिति है। विधायक शून्यता, किसी चीज की अनुपस्थिति न होकर उपस्थिति है; और इसी कारण विधायक शून्यता एक शक्ति बन जाती है। नकारात्मक शून्यता, मन की एक उदास ओर निराश स्थिति बन जाती है और तुम स्वयं अपने को अंदर पूरी तरह से गुफा में बंद कर लेते हो। एक असफलता और निराशा का अनुभव करते हुए प्रत्येक स्थान में एक दीवार के खड़े होने का अनुभव करते हो जिसके तुम पार नही ंजा सकते हो, तुम लाचार दोषी और तिरस्कृत होने का अनुभव करते हो।
लेकिन यह एक विकास नहीं है, यह पीछे की ओर लौटना है। और अपने अंदर गहराई में तुम पुष्पित नहीं हो सकते, क्योंकि निराशा नहीं, केवल समझ ही पुष्पित होकर खिलती है और यदि तुम खिल नहीं सकते तो अस्तित्व तुम पर पुष्प बरसाने नहीं जा रहा है। अस्तित्व तुम्हें पूरी तरह से प्रत्युत्तर देता है; तुम जो कुछ भी हो, अस्तित्व तुम्हें इसके कहीं अधिक देता है। यदि तुम्हारे अस्तित्व के अंदर अनेक पुष्प खिले हुए हैं तो तुम्हारे ऊपर लाखों गुने पुष्प और बरसेंगे। यदि तुम गहरे अवसाद और निराशा में हो तो अस्तित्व भी इसमें सहायता करती है तो लाख गुनी अधिक निराशा आकर तुम्हें डुबो देगी। तुम्हारे अंदर जो कुछ भी है, वह तुम्हारे द्वार पर दस्तक देगा। तुम्हारे पास जो कुछ भी है, तुम्हें उससे अधिक-से-अधिक और दिया जायेगा।
इसलिए सजग और सावधान रहो और स्मरण रहे कि सर्वोच्च शून्यता एक विधायक घटना है। वह एक असफलता नहीं है। वह सामान्य रूप से उस चीज़ की ओर देखता है और समझता है कि स्वप्न सफल और परिपूर्ण नहीं हो सकते। और तब वह एक कामी भी उदास होने का अनुभव न कर प्रसन्न होता है कि वह इस समझ तक पहुंच गया है कि सपने कभी भी पूरे नहीं हो सकते। वह एक कभी भी अवसाद ग्रस्त और निराश नहीं होता है। वह पूरी तरह से प्रसन्न और आनंदित होने का अनुभव करता है क्योंकि अब यह उसकी समझ में आ गया है कि अब मैं असंभव और व्यर्थ की चीज़ के लिए प्रयास नहीं करूंगा। और वह एक यह कमी भी नहीं कहता है कि कामना की वस्तु अथवा विषय गलत है, जब तुम विधायक सवोच्च शून्यता की स्थिति में होते हो तो तुम कहते हो कि कामना ही गलत है, न कि कामना की विषय अथवा वस्तु गलत है- और यही सबसे बड़ा अंतर है। नकारात्मक शून्यता में तुम कहते हो कि कामना करने का विषय और वस्तु गलत हो, इसलिए विषय और वस्तु को बदल दो। यदि वह समृद्धि, धन और शक्ति व सत्ता है; तो उसे छोड़ दो- परमात्मा, मुक्ति और स्वर्ग को विषय बना लो। विषय को बदल दो।
यदि शून्यता, परिपूर्ण, सर्वोच्च और विधायक है, तो तुम विषय और वस्तु को गलत होने की भांति नहीं देखते हो तुम पूरी तरह से देखते हो कि विषय और वस्तु तो ठीक हैं पर कामना ही गलत और व्यर्थ है। तब तुम कामना को एक विषय से दूसरे विषय पर नहीं बदलते, तुम स्वयं कामना को ही पूरी तरह से छोड़ देते हो।
कामनायुक्त होकर तुम्हारी खिलावट होती है। कामना करने से, तुम अधिक से अधिक लकवाग्रस्त और मृत हो जाते हो।
एक दिन, जब सुभूति, एक वृक्ष के नीचे सर्वोच्च शून्यता की भाव दशा में बैठा हुआ था----
शून्य लेकिन प्रसन्न, अंदर से पूरी तरह खाली, लेकिन फिर भी भरा हुआ, शून्य, लेकिन कहीं किसी चीज की कमी नहीं थी, शून्य, लेकिन अतिरेक आनंद की बाढ़ से उमड़ता हुआ। शून्य लेकिन विश्रामपूर्ण होकर अपने शाश्वत घर में स्थित।
--...  कि उसके चारों ओर पुष्प बरसने प्रारम्भ हो गए।
उसे आश्चर्य हुआ, क्योंकि वह ‘कोई नहीं, कुछ नहीं’ था। उसने कभी भी इसकी आशा नहीं की थी। यदि तुम आशा अथवा अपेक्षा करते हो, तो वे कभी नहीं बरसते, और यदि तुम अपेक्षा नहीं करते हो, तो वे बरसते हैं- लेकिन तब तुम्हें आश्चर्य होता है। क्यों? सुभूति ने अनिवार्य रूप से यह सोचा होगा कि कहीं कोई चीज़ गलत हो गई है। एक कोई नहीं, कुछ नहीं जैसे व्यक्ति पर पुष्प बरसना और वह भी तब, जब वह पूर्ण रूप से खाली और शून्य था जब वह न परमात्मा के बारे में सोच रहा था, न मुक्ति के बारे में सोच रहा था, यहां तक कि वह ध्यान भी नहीं कर रहा था- क्योंकि जब तुम ध्यान कर रहे होते हो, तुम खाली नहीं होते, तुम कुछ चीज कर रहे हो और तुम प्रयास के साथ भरे हुए हो, तुम कोई भी कार्य नहीं कर रहे हो। सुभूति को अनिवार्य रूप से सजग होना ही था कि कुछ चीज गलत हो गई है। देवता पगला गए हैं। यह पुष्प वर्षा आखिर क्यों और यह पुष्पों के खिलने का मौसम भी नहीं है? उसने अनिवार्य रूप से वृक्षों की ओर देखा होगा और तब फिर उसने निश्चित रूप से स्वयं अपनी ओर देखा होगा। मुझ पर पुष्प वर्षा हो रही है। वह इस पर विश्वास ही न कर सका।
स्मरण रहे, जब कभी तुम्हें अंतिम सत्य घटित होता है, तुम आश्चर्यचकित हो जाओगे- क्योंकि तुमने कभी भी उसकी अपेक्षा नहीं की थी, तुम उसके लिए प्रतीक्षा भी नहीं कर रहे थे और न तुम उसकी आशा कर रहे थे। और वे लोग, जो अपेक्षा, प्रतीक्षा और आशा कर रहे हैं तथा उसकी कामना करते हुए प्रार्थनाएं कर रहे हें- उनके साथ यह कभी भी घटित नहीं होता है, क्येंकि वे बहुत तनावग्रस्त हैं। वे कभी भी खाली और शून्य नहीं होते और न कभी भी विश्राममय होते हें।
पूरा अस्तित्व और विश्व तुम तक तभी आता है, जब तुम परम विश्राम में होते हो, क्योंकि तब तुम खुले हुए और आसानी से आघात सहन करने में समर्थ होते हो- तुम्हारे सभी द्वार खुले हुए होते हैं। कहीं से भी परमात्मा स्वागत करता है। लेकिन तुम प्रार्थना नहीं कर रहे हो, तुम उससे आने के लिए याचना नहीं कर रहे हो, तुम कोई भी कार्य नहीं कर रहे हो। जब तुम कोई भी कार्य नहीं कर रहे हो, तब तुम केवल सर्वोच्च शून्यता की चित्तवृत्ति में डूबे हो, तुम एक मंदिर बन जाते हो और वह आता है।
सर्वोच्च शून्यता की भावदशा में पुष्प उसके चारों ओर बरसने प्रांरम्भ हो गए।
उसने चारों ओर देखा- आखिर यह क्या हो रहा है?
देवताओं ने बहुत धीमे स्वर में जैसे लगभग फुसफुसाते हुए उससे कहा : हम शून्यता पर आपके द्वारा दिए गए प्रवचन के लिए आपकी स्तुति कर रहे हैं।
वह विश्वास ही न कर सका। वह इसकी कभी अपेक्षा नहीं कर रहा था। वह विश्वास ही न कर सका कि वह इस योग्य था अथवा वह इसके लिए समर्थ था, अथवा वह इतना विकसित हो गया था।
देवताओं ने बहुत धीमे स्वर में जैसे लगभग फुसफुसाते हुए उससे कहा : हम लोग शून्यता पर आपके द्वारा दिए गए प्रवचन के लिए आपकी स्तुति कर रहे हैं।
उन्हें फुसफुसाते हुए धीमे स्वर में कहना पड़ा। उन लोगों ने निश्चित रूप से इस सुभूति की आश्चर्यचकित आंखों की ओर देखा होगा, जो इतने अधिक आश्चर्य से भरी हुई थीं। उन्होंने कहा : हम आपकी प्रशंसा कर रहे हैं। इतना अधिक आश्चर्य मत कीजिए और न इतने अधिक चकित होइये। विश्रामपूर्ण ही बने रहिए। हम लोग शून्यता पर आपके द्वारा दिये गये प्रवचन की प्रशंसा कर रहे हैं।
सुभूति ने कहा : लेकिन मैंने तो शून्यता पर कुछ भी नहीं कहा है देवताओं ने प्रत्युत्तर में कहा : ‘आपने शून्यता पर न कुछ भी कहा है और न हमने शून्यता पर कुछ भी सुना है। यही वास्तविक शून्यता है। और सुभूति पर वर्षा की भांति पुष्प बरसने लगे।
इसे समझने का प्रयास करो। उन्होंने कहा : ‘हम लोग शून्यता पर आपके द्वारा दिए गए प्रवचन की प्रशंसा कर रहे हैं’ और वह किसी भी व्यक्ति से कुछ भी बातचीत नहीं कर रहा था, जहां कोई भी व्यक्ति न था। वह स्वयं से भी बातचीत नहीं कर रहा था, क्येंकि वह खाली और शून्य था, वह विभाजित न था वह किसी भी प्रकार की कोई बात कर ही नहीं रहा था, वह सामान्य रूप से वहां था। उसके भाग पर कुछ भी नहीं किया जा रहा था, न विचारों के ही बादल उसके मन से होकर गुजर रहे थे और न उसके हृदय में कोई अनुभूति ही उत्पन्न हो रही थी। वह सामान्य रूप से वहां यों था जैसे मानो वह वहां थ ही नहीं। वह पूरी तरह शून्य था।
और देवताओं ने कहा : ‘हम लोग शून्यता पर आपके द्वारा दिए गए प्रवचन की प्रशंसा कर रहे हैं।’
इसलिए उसे और भी अधिक आश्चर्य हुआ और उसने कहा : ‘आप क्या कह रहे हें? मैंने तो शून्यता पर कुछ भी नहीं कहा है। मैंने कोई भी बात कही ही नहीं है।’
उन लोगों ने कहा : ‘आपने कुछ भी नहीं कहा है और न हम लोगों ने कुछ भी सुना है। यही वास्तविक शून्यता है।’
तुम्हारे लिए शून्यता पर कोई भी प्रवचन नहीं हो सकता, तुम केवल शून्य हो सकते हो, केवल वह ही प्रवचन है। प्रत्येक अन्य चीज के बारे में बातचीत हो सकती है, प्रत्येक अन्य चीज एक उपदेश बन सकती है, उपदेश का एक विषय बन सकती है, प्रत्येक अन्य चीज की व्याख्या हो सकती है। उस पर तर्क-वितर्क हो सकता है- लेकिन शून्यता पर नहीं, क्योंकि उसके बारे में कोई भी बात कहने का ठीक प्रयास करना ही, उसे नष्ट कर देता है। जिस क्षण तुम उसे कहते हो, वह वहां नहीं होता है। एक अकेला शब्द कहना ही पर्याप्त होता है और शून्यता खो जाती है। एक अकेला शब्द ही तुम्हें भर सकता है ओर शून्यता विलुप्त हो जाती है।
नहीं, उसके बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। किसी भी व्यक्ति ने उसके बारे में अभी तक कुछ भी नहीं कहा है। तुम केवल खाली ओर शून्य हो सकते हो, और यही प्रवचन है। ‘होना ही’ प्रवचन है।
शून्यता कभी भी विचार का एक विषय नहीं बन सकती, निर्विचार होना ही उसके स्वभाव है। इसीलिए देवताओं ने कहा- ‘आपने कुछ भी नहीं कहा और हमने कुछ भी नहीं सुना। यही इसका सौंदर्य है। इसी कारण हम लोग आपकी स्तुति कर रहे हैं। ऐसा होना दुर्लभ है कि कोई भी व्यक्ति पूरी तरह से शून्य हो जाए। यही सच्ची शून्यता है।’ और वह इस बारे में सचेत न था कि वह शून्यता थी क्योंकि यदि तुम सचेत होते हो, तो तुम्हारे अंदर बाहर की कोई चीज़ प्रविष्ट हो गई है ओर तुम विभाजित हो गए हो। जब कोई एक वास्तव में शून्य होता है तो वहां शून्यता की अपेक्षा अन्य कुछ भी नहीं होता है, यहां तक कि शून्यता की सचेतनता भी नहीं होती है। वहां साक्षी भी नही ंहोता है। कोई एक पूर्ण रूप से सजग होता है, वह सोचा हुआ नहीं होता है- लेकिन साक्षी वहां नहीं होता है। वह साक्षी होने के भी पार चला जाता है, क्योंकि जब कभी तुम किसी चीज के साक्षी होते हो तोअंदर वहां एक बहुत थोड़ा सा तनाव और एक सूक्ष्म प्रयास होता है और तब शून्यता कुछ अन्य चीज होती है और तुम कुछ अन्य चीज़ होते हो। तुम खाली और शून्य नहीं होते हो, तुम उसके साक्षी होते हो तब शून्यता पुनः मन में केवल एक विचार होती है।
लोग मेरे पास आते हैं और कहते हैं- ‘मैंने शून्यता के एक क्षण का अनुभव कर लिया है।’ और मैं उनसे कहता हूं : ‘यदि तुमने उसका अनुभव कर लिया है तो उसके बारे में भूल जाओ, क्येंकि उसका अनुभव कौन करेगा, अनुभवकर्ता का होना ही पर्याप्त है, उसका होना ही पर्याप्त बाधा है। उसका अनुभव करेगा कौन? शून्यता का अनुभव नहीं हो सकता, वह एक अनुभव नहीं है क्योंकि अनुभव करने वाला वहां नहीं है : अनुभव और अनुभवकर्ता एक हो गए हैं। यह एक म्गचमतपमदबपदह अर्थात अभी तुम उसका अनुभव कर रहे हो।
मुझे इस मगचमतपमदबपदह शब्द को आविष्कार की व्याख्या करने की अनुमति दो : यह एक प्रक्रिया है जो अविभाजित है- जिसके दोनों ध्रुव ओर दोनों किनारे विलुप्त हो गए हैं और केवल नदी ही अस्तित्व में है। तुम यह नहीं कह सकते कि : मैंने अनुभव कर लिया’, क्योंकि तुम वहां नहीं थे- तुम कैसे इसका अनुभव कर सकते हो? और एक बार तुम इसमें प्रविष्ट होते हो, तो तुम उसे अतीत का एक अनुभव नहीं बना सकते, तुम यह नहीं कह सकते- ‘मैंने अनुभव किया’, तब वह अतीत की एक स्मृति बन जाता है।
नहीं, शून्यता कभी भी एक स्मृति नहीं बन सकती, क्येंकि शून्यता कभी भी अपना एक निशान अथवा चिन्ह तक नहीं छोड़ जाती। वह कोई भी पदचिन्ह नहीं छोड़ सकती। फिर शून्यता अतीत की एक स्मृति कैसे बन सकती है? तुम यह कैसे कह सकते हो?- ‘मैंने अनुभव कर लिया?’ वह हमेशा उसी में होती है, उसका अनुभव हो रहा होता है। वह न तो अतीत है और न भविष्य है, वह हमेशा निरंतर जारी रहने वाली एक प्रक्रिया है। एक बार तुमने उसमें प्रवेश कर लिया तो तुम प्रविष्ट हो गए। तुम यह भी नहीं कह सकते- ‘मैंने अनुभव कर लिया?’- इसी कारण सुभूति इसके प्रति सचेत नहीं था कि क्या हो रहा था। वह वहां था ही नहीं। उसके और पूरे विश्व के मध्य वहां कोई भी अंतर नहीं था। सभी भेद और सीमाएं विलुप्त हो गए थे। पूरा विश्व उसके अंदर पिघलना शुरू हो गया था, वह विश्व में पिघल कर उसके एकत्व में लीन हो गया था और देवताओं ने कहा- ‘यही सच्ची शून्यता है।’
और सुभूति के ऊपर वर्षा के समान पुष्प बरसने लगे।
अंतिम पंक्ति को बहुत बहुत सावधानी से समझ लेना है, क्योंकि जब कोई व्यक्ति कहता है कि तुम शून्य हो गए हो, तो तुरंत अहंकार वापस लौटकर आ सकता है- क्योंकि तुम सचेत हो जाओगे और तुम अनुभव करोगे कि कुछ चीज प्राप्त हो गई है। अचानक देवता तुम्हें सचेत बनायेंगे कि तुम शून्य हो।
लेकिन सुभूति एक दुर्लभ व्यक्ति है, वह असाधारण रूप से दुर्लभ है। यद्यपि देवताओं ने उसके चारों ओर जयघोष किया, उसके कानों में फुसफुसा कर कहा और वर्षा के समान उस पर पुष्प भी बरसने लगे, पर उसने चिता नहीं की। वह सामान्य रूप से मौन बना रहा। देवताओं ने उससे कहा- ‘आपने शून्यता पर एक अच्छा प्रवचन दिया। उसने बिना वापस लौटे उसे सुना। उन्होंने कहा :‘आपने कुछ भी नहीं कहा और हमने कुछ भी नही ंसुना। यही वास्तविक शून्यता है।’ वहां कोई भी अहंकार नहीं था जो यह कह सकता- ‘मुझे सच्ची प्रसन्नता और आनंद घटित हुआ और अब मै। बद्धत्व को उपलब्ध हो गया हूं’, अन्यथा वह अंतिम स्थिति से चूक गया होता, और यदि वह वापस लौट आता तो तुरंत फूल बरसना बंद हो जाते। नहीं, उसने निश्चित रूप से अपनी आंखें बंद कर ली होंगी और सोचा होगा- ये देवता पागल हो गए है। और ये फूल अपने जैसे हैं- फिक्र मत करो।’
शून्यता इतनी अधिक सुंदर थी कि अब उससे अधिक सुंदर और आकर्षक कुछ भी नहीं हो सकता। वह पूरी तरह से अपनी सर्वोच्च शून्यता में ही बना रहा- और इसी कारण सुभूति पर पुष्प वर्षा के समान बरसते रहे।
सुभूति के बारे में केवल यही एक कहानी है। उसके बारे में अन्य कुछ भी नहीं कहा गया है। कहीं भी उसका पुनः उल्लेख नहीं किया गया है। लेकिन मैं तुम से कहता हूं कि पुष्प अभी भी बरस रहे हैं। सुभूति अब ओर अधिक किसी वृक्ष के नीचे नहीं बैठा है- क्योंकि कोई एक जब वास्तव में पूर्ण रूप से शून्य हो जाता है, वह अस्तित्व में घुल कर मिट जाता है। लेकिन पूरा अस्तित्व अभी भी उसका समारोह मना रहा है। पुष्प बरसते चले जा रहे हैं।
लेकिन तुम उन्हें जानने में केवल तभी समर्थ होगे, जब वे तुम्हारे लिए बरसेंगे। जब परमात्मा तुम्हारा द्वार खटखटाता है, केवल तभी तुम जानते हो कि परमात्मा है, उससे पूर्व तुम उसे नहीं जानते। सभी तर्क-वितर्क व्यर्थ हैं सभी प्रवचनों का कोई भी प्रयोजन नहीं है। यदि परमात्मा तुम्हारे द्वार पर दस्तक नहीं देता है। यदि तुम्हें वह घटित नहीं होता है तो कुछ भी दृढ़ विश्वास नहीं बन सकता।
मैंने सुभूति के बारे में बातचीत की, क्योंकि ऐसा मुझे भी घटित हुआ है ओर यह केवल अलंकारिक नहीं है, यह शाब्दिक रूप से भी सत्य है। पहले मैंने सुभूति के बारे में पढ़ा था, लेकिन मैंने सोचा- ‘यह एक अलंकारिक और एक सुंदर काव्यात्मक वर्णन है। मेरी कभी थोड़ी-सी-भी यह धारणा नहीं थी कि ऐसा वास्तव में होता है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि वह एक वास्तवकि घटना थी, एक सत्य चीज थी, जो घटित भी होती है।
लेकिन अब मैं तुमसे कहता हूं कि ऐसा होता है। यह मुझे घटित हुआ, यह तुम्हें भी घटित हो सकता है ---- लेकिन एक सर्वोच्च विधायक शून्यता की जरूरत है।
और कभी भी भ्रमित मत होना। कभी यह मत सोचना कि तुम्हारी नकारात्मक शून्यता कभी भी सर्वोच्च बन सकती है। तुम्हारी नकारात्मक शून्यता एक अंधकार के समान है और विधायक शून्यता एक प्रकाश के समान है, यह एक उदित होते हुए सूर्य के समान है। नकारात्मक शून्यता एक मृत्यु के समान है और सर्वोच्च शून्यता एक शाश्वत जीव न है। यह एक आनंदमग्नता है।
उस भाव-दशा को अपने अंदर गहरे से गहरे प्रवष्टि होने की अनुमति दो। जाओ, और वृक्षों के नीचे जाकर बैठो। कोई भी कार्य न करते हुए बस बैठे रहो। प्रत्येक चीज रुक जाती है। जब तुम रुकते हो तो प्रत्येक चीज रुक जाती है। समय भी गतिशील नहीं होगा, जैसे मानो अचानक संसार उस शिखर तक आ गया है कि वहां कोई भी गतिशीलता नहीं है। लेकिन इस विचार को अंदर मत लाना कि अब मैं शून्य हो गया हूं, अन्यथा तुम चूक जाओगे। और यदि देवता तुम्हारे ऊपर पुष्प बरसाना प्रारम्भ करते हैं, तो उस ओर अधिक ध्यान मत देना।
और अब तुम इस कहानी को जानते हो, यह पूछना ही मत कि क्यों? सुभूति को पूछना पड़ा था, पर तुम्हें इसकी ज़रूरत नही ंहै। और यदि वे आपस में ही फुसफुसाते हुए यह कहें- ‘हमने वास्तविक शून्यता को और उस पर दिए गए प्रवचन को सुना है’, तो फिक्र करना ही मत और पुष्प तुम पर भी वर्षा के समान बरसेंगे।

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