दिनांक
12 जूलाई 1976;
श्री
ओशो आश्रम
पूना।
बाउल
गाते हैं—
वासना
की सरिता में
कभी
डुबकी लगाना
ही मत
अन्यथा
तुम किनारे तक
पहुंचोगे ही
नहीं,
यह
उग्र तूफानों
से भरी हुई वह
नदी है—
जिसके
किनारे हैं ही
नहीं।
क्या
तुम उस मानुष
को
अपने
ही अंदर देखना
चाहते हो?
यदि
हां, तो अपने
ही घर के अंदर
जाओ
जो
अत्यंत सुंदर
और रूपमान
है।
उस
तक जाने के
सभी मार्ग
जहां
जीवन और
मृत्यु दोनों
एक साथ रहते
हैं
जिसे
बोध और समझ से
ही जाना जा
सकता है
वह
आकाश मंडल के
भी पार है।
अपनी
आंखें मूंद कर
उसे
पकड़ने का
प्रयास करो
देखो, वह
फिसलता हुआ
निकला जा रहा
है।
ज्यां
पॉल सार्त्र
कहता है कि यह
मनुष्य एक
अनुपयोगी
व्यग्रता है, अर्थहीन
और व्यर्थ है।
वह ठीक ही
कहता है, यदि
वहां मनुष्य
के पार और कुछ
भी नहीं है, यदि वहां
ऐसा कुछ भी
नहीं है, जो
मनुष्य का
अतिक्रमण कर
जाए। वह ठीक
कहता है, क्योंकि
अर्थ हमेशा
किसी उच्चतम
स्रोत से ही आता
है। किसी भी
वस्तु या
व्यक्ति में
स्वयं कभी कोई
अर्थ नहीं
होता, वह
हमेशा कहीं
पार से या अज्ञात
से आता है।
उदाहरण
के लिए तुम एक
बीज का
निरीक्षण कर
सकते हो : अपने
आप में वह
अर्थहीन है, जब
तक कि वह
अंकुरित नहीं
होता। एक बार
जब वह अंकुरित
होता है, वह
अर्थपूर्ण हो
जाता है। बीज
के लिए वृक्ष
होना ही उसका
अर्थ है। अब
बीज का
अस्तित्व एक
निश्चित कारण
से होता है।
उसका
अस्तित्व
मात्र एक
संयोग नहीं है।
वह अर्थपूर्ण
है। उसे जन्म
देना है। उसे
कोई चीज सृजित
करनी है : कुछ
ऐसी चीज़ जो
उसके पार है, कुछ ऐसी चीज
जो उसकी
अपेक्षा कहीं
अधिक बड़ी है, कुछ ऐसी चीज
जो कहीं अधिक
उच्चतम सोपान
की है।
लेकिन
तब,
वृक्ष का
अपने आप में
क्या अर्थ है?
फिर उसका
अर्थ खो जाता
है, जब तक
कि वृक्ष
पुष्पित न हो
सके। वृक्ष का
अर्थ ही उसके
फलने फूलने
में है। जब वह
पुष्पित
पल्लवित होता
है, तभी
उसका कुछ अर्थ
होता है :
वृक्ष अब मां
बन गया है, वृक्ष
ने अब कुछ नया
जन्म दिया है,
अब वृक्ष
महत्त्वपूर्ण
बन गया है। वह
वहां बिना
किसी
उद्देश्य के
नहीं था, क्योंकि
फूल उसका
प्रमाण है।
उसका वहां
होना
अर्थपूर्ण था,
वह वहां
प्रतीक्षा कर
रहा था—फूलों
के आने की।
लेकिन
अपने आप में
फूल का क्या
महत्त्व है, जब
तक कि उसकी
सुवास, हवाओं
द्वारा दूर—दूर
तक न फैले? एक
बार वह सुगंध
बिखरा दे, तो
फूल
अर्थपूर्ण हो
जाता है, और
इसी तरह यह
क्रम आगे चलता
रहता है।
अर्थ
होता है हमेशा, उच्चतर
स्थिति में
पहुंचने का।
हमेशा अर्थ
होता है— उसके
पार जाने में,
अर्थ हमेशा
अतिक्रमण
करने में होता
है। यदि
मनुष्य के पार
कुछ भी नहीं
है वहां, तो
स्पर्श बिछल
ठीक कहता है :
तब मनुष्य एक
व्यर्थ
व्यग्रता भर
है, इधर—उधर
भागते रहने की,
लेकिन
असफलता और
उसका नष्ट
होना निश्चित
है। वह कभी
पहुंच ही नहीं
सकता वहां, क्योंकि
वहां ऐसा कोई
भी स्थान है
ही नहीं, जहां
पहुंचना हो।
वह कुछ बन ही
नहीं सकता
क्योंकि उस
बनने के पार
कुछ भी नहीं
है। उसका
फैलाव और
विकास नहीं हो
सकता, वह खिलकर फूल
नहीं बन सकता,
जिससे उसकी
सुवास चारों
ओर फैल सके।
यदि मनुष्य का
अंत स्वयं
अपने आप में
सीमित होकर रह
जाता है, तब
निश्चित रूप
से उसका जीवन
व्यर्थ है।
लेकिन मनुष्य
स्वयं अपने आप
में समाप्त नहीं
होता, वह
एक विकास है।
मनुष्य है एक
होना, कुछ
बनना, विकसित
होना, निरंतर
उस पार जाना। फ्रीड्रिक
नीत्यो
ने कहा है, '' वह
दिन सबसे अधिक
दुर्भाग्यशाली
दिन होगा, जब
मनुष्य में
उच्चतम बनने
की आकांक्षा
नहीं होगी, जब मनुष्य
में स्वयं के
पार जाने की
आकांक्षा नहीं
होगी। वह दिन
सबसे अधिक
दुर्भाग्यशाली
होगा, जब
मनुष्य की
आकांक्षा का
तीर मनुष्य की
अपेक्षा उससे
भी उच्चतम
लक्ष्य की ओर
गतिशील न होगा,
जब मनुष्य
अपने आप में
सीमित होकर
अपने में सिमट
कर रह जायेगा
और उसके
पहुंचने को
कोई लक्ष्य ही
न होगा।’’
ऐसा
प्रतीत होता
है कि आधुनिक
मनुष्य उस
दुर्भाग्यशाली
दिन के अधिक
से अधिक निकट
आता जा रहा है।
वह मृत्यु का
क्षण प्रतिपल
निकट से निकट
आता जा रहा है
और सार्त्र का
कथन सत्य होने
जा रहा है, यदि
तुम उसे सत्य
होने की
स्वीकृति दो।
यदि तुम
मनुष्य को एक
बीज ही बने
रहने दो और उसे
अंकुरित होने
की अनुमति न
दो, यदि
तुम उसे एक
ऐसा वृक्ष ही
बने रहने तक
सीमित कर दो
जो पुष्पित न
हो सके, यदि
तुम फूलों को
अनुमति न दो
कि वे अपनी
सुवास चारों
ओर फैला सकें,
तब वास्तव
में जीवन केवल
एक नर्क है वह
जीने योग्य न
होकर निरर्थक
है। तब जन्म
लेना दुःखों
में ही जन्म
लेने जैसा है।
तब मृत्यु एक
आशीर्वाद और
जीवन एक
अभिशाप है।
लेकिन
ऐसा है नहीं, यह
तुम पर ही
निर्भर है कि
तुम्हारा
जीवन अर्थपूर्ण
होगा अथवा
अर्थहीन। यह
सब कुछ
तुम्हीं पर
निर्भर है।
धर्म की पूरी
दिशा ही यही
है कि जीवन को
पहले ही से
कोई अर्थ नहीं
दिया गया है, जिसे
निर्मित करना
है। वह अर्थ
तुम्हें पहले
से
हस्तांतरित
नहीं किया गया
है, केवल
वहां
सम्भावना और
अवसर है, वह
सम्भावित
शक्ति है
मनुष्य के पास।
तुम फूल बनकर
एक अर्थपूर्ण
अस्तित्व बन
सकते हो अथवा
तुम शुल्क और
व्यर्थ हो
सकते हो। तुम
पर ही महान
उत्तरदायित्व
है, यदि
तुम उसे पूरा
नहीं करते हो
तो तुम्हारे
लिए कोई दूसरा
उसे पूरा नहीं
कर सकता। तुम
सेवकों पर
निर्भर नहीं
हो सकते। जीवन
इतना अधिक
मूल्यवान है
कि तुम किसी
दूसरे पर
विश्वास नहीं
कर सकते।
तुम्हें ही
पूरी स्थिति
नियंत्रित
करनी होगी और
तुम्हें ही
अपने कंधों पर
जिम्मेदारी
लेनी होगी।
तुम
वास्तव में
मनुष्य उसी
दिन बनोगे
जिस दिन तुम
अपने विकास के
लिए
जिम्मेदार बन जाओगे।
जिस दिन
वास्तव में एक
मनुष्य बन
जाओगे तुम उसी
दिन निर्णय
लोगे कि
तुम्हें अपने
जीवन का अर्थ
सृजित करना है।
तुम्हें एक
कोरा कागज
दिया गया है : तुम्हें
उस पर अपने
हस्ताक्षर
करने होंगे, और
तुम्हें उस पर
अपने गीत
लिखने होंगे।
वहां गीत पहले
से नहीं हैं।
तुम ही वहां
हो, उसकी
सम्भावना है
वहां—लेकिन
गीत तो
तुम्हें ही
गाना और
गुनगुनाना है,
नृत्य तो
तुम्हें ही
करना है।
नर्तक है वहां,
लेकिन उस
नर्तक के होने
का क्या अर्थ
है, यदि
उसने अभी तक
नृत्य किया ही
नहीं? उसे
नर्तक
पुकारना भी
अर्थहीन है
क्योंकि जब तक
वह नाचता नहीं,
तुम उसे
नर्तक कैसे कह
सकते हो? जब
तक एक बीज
वृक्ष नहीं बन
जाता, वह
केवल एक नाम
है, वह बीज
है ही नहीं।
और जब तक एक
वृक्ष फलता
फूलता नहीं, वह केवल नाम
भर का वृक्ष
है, वह
वृक्ष कहने
योग्य है ही
नहीं। और जब
तक एक फूल
सुवास नहीं
बिखेरता, वह
केवल नाम भर
के लिए फूल है,
वह अभी फूल
बना ही नहीं।
तुम
अपना
अस्तित्व
निरंतर सृजित
कर रहे हो। और
यदि तुम सृजित
नहीं करते हो
तो तुम दुर्योग
से धाराओं में
बहने वाले
लकड़ी के तने
जैसे बन जाओगे, जो
बिना दिशा के
यहां—वहां
बहता रहता है।
बाउल
पहले कदम से
शुरुआत करते
हैं। उनके पास
मनुष्य की सभी
सम्भावनाओं
और सीडी की
सभी पायदानों
पर चढ़ने
के लिए पूरी
समझ और एक
अखण्ड
दृष्टिकोण
होता है। सीढ़ी
का पहला
पायदान या
डंडा है—वासना, सेक्स
के प्रति भावोद्वेग
और सेक्स
ऊर्जा। और
सेक्स ऊर्जा
ने निरंतर
मनुष्य को
भ्रमित किया
है। यदि वह
केवल सेक्स
मात्र ही बनी
रहती है, तो
वह अर्थहीन बन
जाएगी। तब तुम
केवल एक ही
लीक पर चलते
रहोगे।
सेक्स
तभी
अर्थपूर्ण है, जब
वासना से
प्रेम
उत्पन्न हो।
केवल प्रेम भी
तभी
अर्थपूर्ण है,
जब उससे
प्रार्थना का
जन्म हो। यदि
तुम्हारा
सेक्स केवल एक
कामुकता
मात्र है, एक
दोहराने वाला
चक्र और एक
यांत्रिक
प्रक्रिया है
जो तुम बस किए
चले जा रहे हो,
तब तुम
अर्थहीन होकर
रह जाओगे।
क्योंकि
सेक्स
तुम्हारी ही
ऊर्जा है और
उसे रूपांतरित
किए जाना है।
वह बहुत
अपरिपक्व और
कच्ची
सामग्री की
भांति है। उस
पर बहुत कुछ
काम किये जाना
है। वह खान से
निकला हीरा है,
और तुम्हें
उसे तराश कर
उस पर पालिश
करनी है, तुम्हें
उसे एक सुंदर
रूप और आकृति
देनी है।
तुम्हें उसे
एक नूतन
सौंदर्य देना
है। यह तुम पर
निर्भर करता
है। यदि तुम
खदान से निकले
कच्चे हीरे के
पत्थर को साथ
लिए घूमोगे
तो वह
मूल्यहीन
होगा और केवल
इतना ही नहीं,
वह
तुम्हारे लिए
एक भार होगा।
उसे ढोये चले
जाने से बेहतर
है उसे फेंक
दो। उसे
व्यर्थ में
क्यों ढोये
चले जा रहे हो,
कुछ चीज
उससे भी
उच्चतम
विकसित हो
सकती है।
इसे
सदा स्मरण
रखना, बाउल, वासना या
सेक्स के
विरुद्ध नहीं
है, लेकिन
उनका कहना है
कि यदि तुम
केवल वासना तक
ही सीमित होकर
रह गये तो तुम
नष्ट हो जाओगे।
उसी में खोकर
रह जाओगे।
वासना की
सरिता में
कभी डुबकी
लगाना ही मत
अन्यथा
तुम कभी
किनारे तक
पहुंचोगे ही
नहीं
यह उग्र तूफानों
से भरी हुई वह
नदी है—
जिसके
किनारे हैं ही
नहीं।
इससे
उनका क्या
अर्थ है ?—वासना
की नदी में तट
या किनारे
होते ही नहीं
और यदि तुमने
उसमें डुबकी
लगाई तो तुम
उसी में खो
जाओगे। एक
व्यक्ति को
उससे ऊपर उठना
है। ऐसा नहीं
कि उसमें कुछ
चीज गलत है, यह आवश्यक
बात याद रखने
की है। यह
निष्कर्ष मत निकालो कि
बाउल यह कह
रहे हैं कि
सेक्स के साथ
कुछ चीज गलत
है। वे केवल
यह कह रहे हैं
कि गलत तब
होता है, जब
तुम उसी में
सीमित होकर रह
जाते हो। यदि
तुम उसका
उपयोग कर सकते
हो, यदि
तुम उसे ऊपर
चढने वाली
सीढ़ी का पत्थर
बना सकते हो, यदि तुम
उससे उच्चतम
तल की ओर गति
कर सकते हो, तब वह बहुत
सुंदर है। वह
एक बड़ी सहायता
बन जाती है।
बिना उसके
उससे ऊपर उठना
असम्भव होता।
वासना
अपने आप में
एक बीज की
भांति है —
उसमें पूरी
सम्भावना है, वह
ठीक मिट्टी, उचित मौसम
और योग्य माली
की प्रतीक्षा
कर रही है, उसे
उस कुशल
मनुष्य की
प्रतीक्षा है
जो अंकुरित
होने में उसकी
सहायता करे।
एक बीज वास्तव
में और कुछ भी
नहीं, यह
केवल एक
सम्भावना है।
उसके लिए
वृक्ष बनने की
कोई
अनिवार्यता
नहीं है। यह
हो सकता है कि
वह कभी कुछ बन
ही न सके और
पूरी तरह नष्ट
ही हो जाए।
यदि तुम उस
बीज को पत्थर
में दबा दो तो
वह बीज ही बना
रहेगा।
सदियां गुजर
सकती हैं और
बीज अंकुरित
नहीं होगा।
बहुत
से लोग ऐसे ही
बीज की भांति
है। उन लोगों
ने अभी अपनी
भूमि ही नहीं
खोजी—उन लोगों
को सही मौसम
ही नहीं मिला
अभी तक। ये
सभी सांसारिक
लोग हैं।
एक
धार्मिक
मनुष्य वह
होता है, जिसका
बीज ठीक भूमि
तक पहुंच जाता
है और उसमें
विलुप्त हो
जाता है। जब
बीज मिटता है,
तभी वृक्ष
का जन्म होता
है। जब ' तुम
' विसर्जित
हो जाते हो, तभी आत्मा
का जन्म होता
है। जब आत्मा
विलुप्त होती
है तो
परमात्मा का
जन्म होता है।
तुम्हारा
अस्तित्व बीज
के सख्त आवरण
या छिलके जैसा
है..... .यही
मनुष्य का
अहंकार है।
सांसारिक
मनुष्य
अहंकारी
मनुष्य ही
होता है, जो
सांसारिक
मनुष्य नहीं
होता, वही
विनम्र होता
है। विनम्र
होने का
साधारण सा यही
अर्थ है — वह
बीज की भांति
भूमि में
विलुप्त हो
गया है, वह
पृथ्वी के
अंदर जाकर मर
जाने को तैयार
है। अंग्रेजी
का Humble
(विनम्र) शब्द Humus
से निकला है।
Humous का
अर्थ होता है—'
पृथ्वी '।
विनम्र
मनुष्य वह है
जो पृथ्वी के
अंदर जाकर मिटने
को पहले ही से
तैयार है।
विनम्र
व्यक्ति वह है,
जो अपने आप
को खो देने को
तैयार है।
जीसस बार—बार
कहते हैं, यदि
तुम अपने को
मिटाते नहीं,
खोते नहीं,
तो तुम ' उसे
' प्राप्त
न कर सकोगे, यदि तुम
अपने को खोते
नहीं तो कभी
भी ' होने ' की अनुभूति
न कर सकोगे —
धन्य हैं वे
लोग, जो
खोने और मिटने
को तैयार हैं ''। आखिर उनके
कहने का अर्थ
क्या है?
उनके कहने का
अर्थ है— धन्यभागी
है वह बीज, जो
अपने सख्त
छिलके के खोल
को मिटाने के
लिए आघात सहने
को तैयार हो
जाता है, मिट्टी
के लिए अपने
कोमल हृदय का
द्वार खोल देता
है, जिससे
मिट्टी उस पर
अपना कार्य कर
सके और उसे अज्ञात
की ओर ले जाए
जो ज्ञात के
साथ बंधन तोड़
देता है, जो
ज्ञात के साथ
अपनी
प्रतिबद्धता
समाप्त कर अज्ञात
के प्रति प्रतिबद्ध
हो जाता है।
खतरे हैं वहां—वहां
तूफान भी
होंगे, बादलों
की गरज और
बिजली की कौंध
होगी वहां।
एक
छोटे से पौधे
के लिए पूरा
संसार एक खतरे
का समय है, उसके
लिए एक हजार
एक जोखिम हैं।
लेकिन बीज के
लिए वहां कोई
खतरा नहीं
होता। बीज बंद
होता है, बिना
किसी खिड़की
दरवाजे के
पूरी तरह
सुरक्षित, वह
एक सुरक्षित
कैद होती है।
लेकिन
एक नन्हा सा
पौधा बहुत
नाजुक है इसका
निरीक्षण
करें : एक बीज
है बहुत कठोर
और सुरक्षित, और
पौधा है—बहुत
कोमल और नाजुक,
जो आसानी से
नष्ट हो सकता
है। और एक फूल
और भी अधिक
नाजुक है—एक
सपने जैसा
नाजुक एक
कविता की तरह
नाजुक। और
उसकी सुवास और
अधिक सूक्ष्म
तथा नाजुक होती
है—वह लगभग
अदृश्य होती
है, वह
अव्याख्य बन
जाती है। यह
सारा विकास
अज्ञात की ओर उन्मुख
है, कोमल, नाजुक और
अव्याख्य की
ओर उन्मुख है।
सारा
विकास अदृश्य
की ओर उन्मुख
है। केवल
स्थूल ही
दिखाई देता है।
परमात्मा
अदृश्य है।
केवल पदार्थ
ही दृश्यमान
है,
मन अदृश्य
है। केवल
स्थूल का ही
स्पर्श किया
जा सकता है, केवल वही
स्पष्ट और
निश्चित होता
है, लेकिन
सूक्ष्म का
स्पर्श नहीं
किया जा सकता,
वह अस्पष्ट
और अनिश्चित
होता है। यही
कारण है कि
परमात्मा को
देखा नहीं जा
सकता—क्योंकि
परमात्मा
फूलों की
सुवास है, अति
सूक्ष्म, बहुत—बहुत
सूक्ष्म।
स्मरण
रहे,
स्थूल के
साथ सुरक्षा
होती है।
प्रेम की
अपेक्षा
वासना अधिक
सुरक्षित है,
प्रार्थना
की अपेक्षा
प्रेम कहीं
अधिक सुरक्षित
है। और यदि
तुम सुरक्षा
की ओर देख रहे
हो, तो तुम
वासना तक ही
सीमित रह
जाओगे।
बहुत
से लोग सेक्स
में ही जन्मते
हैं। इसमें
कुछ भी गलत
नहीं है :
प्रत्येक को
सेक्स में ही
जन्म लेना
होता है।
समस्या तब
होती है जब
बहुत से लोग
केवल सेक्स
में ही जीते
हैं और सेक्स में
ही मर जाते
हैं। इसका
अर्थ है कि
उनका कोई
फैलाव और
विकास हुआ ही
नहीं। सेक्स
में जन्म लेना
पूरी तरह
स्वाभाविक है, लेकिन
उसमें मरना? तब क्या है
इसका दिशा
संकेत? तब
क्या अर्थ है
उत्पन्न होने
का? तब यदि
तुम विकसित
नहीं हुए तो
कुछ भी तो
नहीं घटा
तुम्हारे साथ?
मैं एक
वृद्ध
व्यक्ति के
बारे में पढ़ रहा
था,
एक ऐसे
वृद्ध के
सम्बंध में जो
लगभग पचासी
वर्ष का था? वह अपने
डॉक्टर के पास
गया और उससे
कहा— '' डॉक्टर!
मैं नपुंसक हो
गया हूं।’’
डॉक्टर
ने उसकी ओर
देखा और पूछा—’‘ लेकिन
आपने इस बात
को पहली बार
कब नोट किया?''
उस
वृद्ध
व्यक्ति ने
उत्तर दिया—’‘पिछली
रात और आज फिर
इस सुबह।’’ लोग
जिए चले जा
रहे हैं..... .तुम
वासना में
जितनी लम्बी
अवधि तक जीते
रहोगे, तुम्हारा
अस्तित्व
उतना ही अधिक
कुरूप होता जायेगा।
और यदि
तुम्हें उसी
में मरना भी
पड़े तब तो पूरा
जीवन ही
व्यर्थ बरबाद
हो गया। तुम
जन्म से आगे
कभी एक कदम भी
न गए। वास्तव
में जन्म तो
स्वाभाविक
रूप से सेक्स
में होगा ही
लेकिन उसी में
मृत्यु नहीं
होनी चाहिए।
मैंने
सुना है :
अपनी
मम्मी के
प्रसूति
क्लिनिक में
प्रतीक्षा
करता हुआ
नन्हा मुन्ना
सामी अपना ' होमवर्क ' करने
में व्यस्त था।
जब वह मम्मी
से मिला तो
उसने पूछा— '' मम्मी! मेरा
जन्म कैसे और
कहां से हुआ?''
उसने
उत्तर दिया—’‘ आह
डार्लिंग,
सफेद परों
वाला स्ट्रोक
पक्षी
तुम्हें इस दुनिया
में लाया।’’
''
और आप कहां
से जन्मीं
मम्मी?''
''
ओह! स्ट्रोक
पक्षी मुझे भी
इस दुनिया में
लाया।’’
''
और दादी
कहां से आईं?''
''
क्यों, तेरी
दादी तो स्ट्राबेरी
की झाड़ी के
नीचे पाई गई।’’
इसलिए
होमवर्क
करते हुए उसने
अपने निबंध
में लिखा—’‘ ऐसा
लगता है जैसे
तीन पीढ़ियों
से मेरे
परिवार में
किसी का भी
स्वाभाविक
रूप से जन्म
हुआ ही नहीं।''
सेक्स
में जन्म लेना
स्वाभाविक है, किसी
को इस बारे
में
रक्षात्मक
होने की कोई
आवश्यकता ही
नहीं है।
लेकिन सेक्स
में ही मृत्यु
होना अस्वाभिक
है। सेक्स से
एक एक कर
उच्चतम की ओर
कदम उठना ही
चाहिए। बीज से
प्रारम्भ कर
सुवास तक की
यात्रा ही
विकास है।
लेकिन
बहुत अधिक लोग, सेक्स
के दोहराने
वाले चक्र में
ही जीते हैं: वे
एक ही
दिनचर्या के
साथ परिभ्रमण
करते रहते हैं।
वे बिना सजग
हुए वही चीजें,
जिनके बारे
में उन्हें
स्वयं यह होश
नहीं कि वे एक
ही चीज को
जाने कितनी
अधिक बार कर
चुके हैं, और
बिना सजग हुए
कि उनसे कुछ
भी नहीं मिला,
वे उन्हें
किए चले जा
रहे हैं।
लेकिन वे, बिना
यह जाने हुए
कि उन्हें
उसके अलावा और
क्या करना
चाहिए बस
उन्हीं चीजों
को किए चले जा
रहे हैं। वे
लोग एक ही
चक्राकार
मार्ग पर
घूमते हुए व्यस्त
बने रहते हैं।
यही कारण है
कि हम पूरब
में इसे 'संसार'
या चक्र कहते
हैं। यह संसार
एक चक्र के
नाम से ही
पुकारा जाता
है। ठीक वैसे
ही जैसे एक
पहिया घूमे
चला जाता है तो
उसकी वही
तानें घूमती
हुई ऊपर नीचे
आती—जाती हैं,
यदि
तुम्हारा
जीवन भी एक
पहिए जैसा ही
है तो वही
चीजें बार बार
घूम कर आती
जाती हैं, इस
तरह तुम्हारे
जीवन का कोई
अर्थ होगा ही
नहीं— क्योंकि
अर्थ तो केवल
तभी होता है, जब तुम
स्वयं अपने ही
पार कोई कदम
उठाते हो। और
यह भी स्मरण
रखना यदि तुम
पार के लिए
कोई कदम उठाते
हो तब तुम
वहां भी जाकर
जड़ हो जाते हो,
और अर्थ फिर
खो जाता है।
इसलिए
अर्थ तो
नूतनता में है।
यदि तुम
निरंतर
अर्थपूर्ण
बने रहना
चाहते हो, शाश्वत
रूप से
अर्थपूर्ण, तब तुम्हें
विकसित, विकसित
और विकसित ही
होते चले जाना
है। यदि तुम
कहीं भी रुककर
जड़ हो गये, तो अर्थ
तुरंत मिट
जाता है।
रुककर जड़ होना
अर्थपूर्ण
होना नहीं है,
अर्थ है
प्रवाह में, अर्थ है
विकसित होने
में, इसे
निरंतर स्मरण
रखना है। तुम
प्रेम में भी
रुककर जड़ बन
सकते हो और
अर्थ फिर खो
जायेगा, तब
तुम फिर बासी
और पुराने हो
जाओगे, तब
नदी फिर
प्रवाहित
नहीं हो रही
है। प्रवाह
रुक जाने से
तुम फिर गंदे
हो जाओगे। और
जब नदी बह रही
होती है वह
साफ और ताजी
होती है, जब
नदी का प्रवाह
रुक जाता है, वह स्थिर और
प्रवाहहीन हो
जाती है।
ऐसा
ही सत्य जीवन
के बारे में
भी है। यदि
तुम प्रेम में
रुक कर स्थिर
हो गये, प्रवाह
फिर से खो गया।
तुम फिर से
उसी लीक पर चल
पड़े।
प्रार्थना
जरूरी है...... और
यहां
प्रार्थना से
भी कहीं अधिक
ऊंची चीजें
हैं।
प्रार्थना ही
अंतिम है
जिसके बारे
में कुछ कहा
जा सकता है, जिसे
कुछ परिभाषित
किया जा सकता
है, पर वह
भी संतोषजनक
रूप से नहीं, बल्कि आधा
अधूरा ही।
लेकिन
प्रार्थना ही
अंत है—वह
जैसे क्षितिज
है। ऐसा नहीं
है, कि
क्षितिज पर
जाकर पृथ्वी
समाप्त हो
जाती है और
ऐसा भी नहीं
है कि क्षितिज
पर जाकर आकाश
समाप्त हो
जाता है।
क्षितिज केवल
हमें अपनी
सीमा का
दिग्दर्शन कराता
है : हमारी
दृष्टि उससे
और आगे नहीं
जाती, उतना
ही सब कुछ
होता है।
प्रार्थना, सेक्स ऊर्जा
का क्षितिज है,
लेकिन वह
अंत नहीं है।
प्रार्थना से
कुछ चीजें और
उच्चतम तल पर
हैं, लेकिन
उन चीजों को
अभिव्यक्त
करने के लिए
शब्द हैं ही
नहीं। जब तुम
प्रार्थना तक
पहुंचते हो, तुम तभी
जानोगे कि
वहां
प्रार्थना से
भी उच्चतम तल
पर कुछ और
चीजें हैं
क्योंकि
विकास शाश्वत
है।
लोग
लगभग मृत हैं
क्योंकि वे
रुक कर और जड़
होकर रह गये
हैं। वे एक ही
चीज की बार—बार
खोज में लगे
हैं। जरा इसका
निरीक्षण
करें।
एक
व्यक्ति को
तलाश होना
चाहिए नये की।
यह खोज ही
जैसे तुम्हें
नया और ताज़ा
बना देती है, तुम्हें
फिर से युवा
बना देती है।
यदि आज
तुम्हें कोई
सुंदर अनुभव
हुआ है, तो
कल उसे फिर
मांगो ही मत, क्योंकि अब
तुमने चूंकि
उसे जान लिया,
वह अर्थहीन
हो गया, जैसे
समाप्त हो गया।
कोई और चीज
मांगो, किसी
और नई चीज की
खोज करो, किसी
अज्ञात और
अपरिचित को टटोलो।
उसके घर जाओ।
वह सुंदर था, लेकिन उसकी
पुनरुक्ति मत
करो, क्योंकि
पुनरुक्ति
सुंदरता की
हत्या कर देती
है।
पुनरुक्ति
प्रत्येक
वस्तु से ऊब
उत्पन्न करती
है। और एक बार
तुम ऊबने के
अभ्यस्त हो
जाते हो, तो
तुम मृत हो
जाते हो। तब
तुम उसी घेरे
में चक्कर
लगाते रहते हो।
मैंने
सुना है......
एक
आमोद—प्रमोद
भरी पार्टी हो
रही थी। शराब, व्हिस्की
के साथ हंसी
मजाक
स्वतंत्रता
से जैसे
प्रवाहित हो
रहा था। एक
आज्ञाकारी
वेटर ने ट्रे
में रखी शराब
एक सख्त मिजाज
और गम्भीर
व्यक्ति को
पेश की, वह
व्यक्ति
निश्चित रूप
से एक पादरी
था। पादरी ने
उसकी ओर कठोर
दृष्टि से
देखते हुए कहा—’‘
नहीं
धन्यवाद। मैं
शराब नहीं
पीता।’’
वेटर
उन्हें छोड्कर
आगे बढ
गया। लेकिन
शीघ्र ही ड्रिंक्स
की दूसरी ट्रे
लेकर दूसरा
वेटर प्रकट
हुआ।
परमात्मा के
योग्य मनुष्य
ने उसे शुष्क
दृष्टि से
देखते हुए कहा—’‘ क्या
तुम नहीं
जानते कि मैं
शराब बिल्कुल
भी पीता ही
नहीं।’’ और
उसने अपने कथन
में बाद में
सोचा गया
विचार जोड़ते
हुए कहा— '' मैं
शराब पीने की
अपेक्षा किसी
स्त्री से अवैध
सम्बंध जोड़ना
बेहतर समझता
हूं।’’
मुल्ला नसरुद्दीन
अपने पडोसी के
साथ आराम से
बैठा हुआ स्कॉच
व्हिस्की के
घूंट—घूंट का
आनंद ले रहा
था। अचानक
प्रसन्नता से
चीखते हुए
अपना गिलास नीचे
रखकर वह बोला—’‘ सुंदर
है स्वर्ग।
मुझे कभी यह
खयाल भी नहीं
आया कि वहां
का चुनाव इतना
सुंदर था।’’
लोगों
के मन में
सेक्स का ही
विचार घूमता
रहता है। और
यहां सेक्स के
साथ आवेशित हो
जाने के दो तरीके
हैं : पहला
रास्ता है
सामान्य
मनुष्यों का—प्ले
बॉय की
तरह ऐश करने
का और दूसरा
रास्ता है—तथाकथित
धार्मिक
लोगों का।
लेकिन दोनों
के मनों पर
वासना का ही
अधिकार है—एक
उसके पक्ष में
और दूसरा उसके
विपक्ष में।
उनके खयालों
में सेक्स ही
जड़ जमाये बैठा
है,
वे कभी भी
उसके पार नहीं
जा पाते।
बाउल
इनमें से किसी
भी श्रेणी में
नहीं आते। वे
सांसारिक
मनुष्यों
जैसे नहीं हैं, क्योंकि
वे सेक्स के
पार जाते हैं।
वे साधु
संन्यासियों
जैसे भी नहीं
हैं, क्योंकि
वे सेक्स के
विरुद्ध नहीं
हैं। वे लोग
तथाकथित
धार्मिक
साधुओं और फकीरों
जैसे भी नहीं
हैं, क्योंकि
वे कहते हैं—’‘ सेक्स
तुम्हारी
ऊर्जा है, जिसका
प्रयोग करना
है। निश्चित
रूप से उसे
शुद्ध करना है,
लेकिन उसे
निंदित नहीं
करना है।’’ तुम
एक खान से
निकले पत्थर
को हीरा कैसे
बनाओगे, यदि
तुम उसके बारे
में निंदा के
भाव से भरे हुए
हो, और सोच
रहे हो कि तुम
उसे फेंक ही
दो। और यदि
तुम उससे दूर
भागना शुरू कर
दोगे तो तुम
उसे कैसे तराश
सकते हो, तुम
उस पर कैसे
पालिश कर सकते
हो, तुम
उसे कैसे
मूल्यवान बना
सकते हो? संसार
में दो तरह की जड़ताएं
हैं : एक ओर वे
लोग हैं—जो
सोचते हैं कि
सेक्स ही जीवन
है और दूसरे
वे लोग, जिनकी
सोच है कि
सेक्स से लड़ना
ही जीवन है और
दोनों ही लोग
गलत हैं।
सेक्स का
सृजनात्मक
प्रयोग करना
ही बाउलों
का लक्ष्य है।
अपने
शाश्वत
आशावाद के
कारण अपने मित्रों
को निरंतर
उत्तेजित
करता रहता था।
कितनी भी खराब
स्थिति क्यों
न हो,
वह हमेशा कहता
था—’‘ इससे
भी खराब
स्थिति हो
सकती थी।’’ उसकी
इस चिढाने
वाली आदत को
ठीक करने के
लिए उसके
मित्रों ने एक
ऐसी स्थिति को
निर्मित करने
का निर्णय किया
जो पूरी तरह
से इतनी मृत
और घोर
अंधकारमय हो कि
नसरुद्दीन
उसमें आशा की
एक किरण भी न
पा सके।
एक
दिन कब्र के मैखाने
में पहुंचकर
उनमें से एक
ने कहा—’‘ मुल्ला!
क्या तुमने
सुना कि जार्ज
के साथ क्या
घटना घटी? कल
रात जब वह घर
गया तो उसने
बिस्तरे पर
अपनी पत्नी को
दूसरे मर्द के
साथ पाया और
दोनों को गोली
से मार दिया, और तब बंदूक
की नली अपनी
ओर घुमाकर
खुद भी गोली
खाकर मर गया।’’‘'
भयानक
हादसा हो गया।’’
मुल्ला ने
कहा—’‘ लेकिन
यह इससे भी
कहीं अधिक
भयानक हो सकता
था।’’
स्तब्ध
होकर उसके
मित्र ने कहा—’‘ इससे
बुरा तो नर्क
में भी नहीं
हो सकता था।
इससे अधिक
बुरा और क्या
होना सम्भव था।’’
नसरुद्दीन ने
कहा—’‘
यदि यह
हादसा एक दिन
और पहले हुआ
होता, तब
आज मैं मुर्दा
ही होता।’’
लोग
एक ही लीक पर
चले जा रहे
हैं,
फिर फिर
वही दोहराये
चले जा रहे
हैं। ऐसा
प्रतीत होता
है कि उनकी आंखें
पूरी तरह बंद
हैं। ऐसा लगता
है कि कुछ और
होना भी सम्भव
है, उसकी
उनके पास कोई
योजना या
विचार ही नहीं
है। ऐसा
प्रतीत होता
है कि किसी ने
उन्हें कभी भी
उस पार की कोई
झलक भी नहीं
दी है। ऐसा
प्रतीत होता
है जैसे
उन्होंने कभी
भी ऊंचाइयों
की ओर देखा ही
नहीं।
उन्होंने। कभी
आकाश की ओर भी
नहीं देखा, वे लोग कीचड़
में ही रेंगते
जा रहे हैं।
सारभूत रूप से
यदि तुम उसमें
खड़े हो सकी
उसके अंदर अपनी
जड़ें जमा सको
और आंखें
ऊंचाइयों की
ओर उन्मुख हो
सकें। तब कीचड़
के गुणों का
भी रूपांतरण
हो जायेगी।
वासना
की सरिता में
कभी डुबकी
लगाना ही मत
तुम
किनारे तक न
पहुंच सकोगे।
यह नदी
बिना तटों
वाली है
जहां
तूफान उमड़ रहे
हैं।
और
तुम सभी ने यह
जरूर महसूस
किया होगा कि
जिसे तुम
प्रेम कहते हो
वह तुम्हारे
लिए पीड़ाओं
के सिवा और
कुछ भी नहीं
लाता। तुम
जिसे भी प्रेम
कहकर पुकारते
हो,
वह तुम्हें
नर्क के सिवा
और कुछ भी
नहीं देता।
लेकिन फिर भी
तुम किसी तरह
उसमें बने
रहने की व्यवस्था
कर लेते हो, पर तुम उसके
पार देखने की
व्यवस्था
नहीं कर पाते।
एक बार
ऐसा हुआ:
एक
बहुत ही
बुद्धिमान
वृद्ध
व्यक्ति के
पास उसके
पुत्र ने जाकर
कहा— ''
पिताजी! मैं
विवाह करना
चाहता हूं।’’
वृद्ध
ने कहा—’‘ नहीं
मेरे बच्चे।
तुम अभी काफी
बुद्धिमान
नहीं हो।’’
लड़के
ने पूछा—’‘ मैं
काफी बुद्धिमान
कब बनूंगा?''
वृद्ध
व्यक्ति ने
उत्तर दिया—’‘ जब
तुम इस विचार
से पीछा छुड़ा
लोगे कि तुम
विवाह करना
चाहते हो, तभी
तुम यथेष्ट
बुद्धिमान बनोगे, और
तब तुम विवाह
कर सकते हो।’’
यह
परस्पर
विरोधी
प्रतीत होता
है,
लेकिन यही
सत्य है : जब
तुम्हारा
ध्यान और समय अब
सेक्स के साथ
नहीं रहता, जब तुम्हारी
चाह आवेश और
मानसिक
रुग्णता नहीं
रह जाती, तुम
उसमें प्रवेश
करने के लिए
पर्याप्त
प्रज्ञावान
बन जाते हो—
क्योंकि तब
तुम उसकी सभी
सम्भावनाओं
का प्रयोग
करते हुए उसके
द्वारा उसे
प्राप्त करने
योग्य बनते हो।
तब वह केवल एक
खेल नहीं रह
जाता, तब
वह केवल समय गुजारने
का साधन नहीं
होता और तब वह
केवल अपने को
भुलाने का
उपाय नहीं रह
जाता। तब वह
तुम्हारे लिए
एक सृजनात्मक
कृत्य बन जाता
है। तब तुम
उसकी अत्यधिक
ऊर्जा से कुछ
नई चीज का
सृजन करते हो।
वह परमात्मा
का उपहार होता
है। यदि तुम
उसी में सीमित
होकर रह जाते
हो तो बाउल
उसी को वासना
कहते हैं। यदि
तुम उसके पार
जा सकते हो तो
वह अपना रूप
बदलना शुरू कर
देता है, उसके
गुण बदलना
शुरू हो जाते
हैं।
बाउल
गीत है :
अरे हलवाहे!
क्या तुझे
इतनी भी समझ
नहीं है
कि तू अपने
ही खेत की जरा भी
देखभाल नहीं
करता?
छ:
पक्षियों का
झुण्ड तेरी ही
देह के खेत
में उगी
धान की
सुनहरी फसल का
चावल चुग रहे
हैं
इस मानुष
देह की अमूल्य
भूमि
पर
परमात्मा की
अनुकम्पा से
जो फसल उगी है
उसे कामना, क्रोध,
लोभ, मोह,
ईर्ष्या और
अहंकार
की छ: गौरेया
हो जा रही हैं।
चेतना की
मेड
जहां से
टूट कर नीचे
धसक गई है
उन खुले
स्थानों से
तेरी फसल
की दावत उड़ाने
पशुओं का
लंड चढता
चला आ रहा है।
ओ मेरे
बेशर्म हृदय!
क्या तुझे लजा नहीं
आती?
अब मैं
तुझसे कहूं तो
क्या कहूं?
तूने
स्वर्ण का
मूल्य चुकाकर
कांच के
टुकड़े खरीद
लिए हैं।
दो—दो आंखों
के होने के
बावजूद भी
तूमूल्यवान
हीरों से चूककर
नकली कांच
के पत्थर उठा
लाया है।
तू आंखें
बंद कर भटक
गया
और देख न
सका
कि तेरा ही
घर
चुने हुए
हीरों और मणिकों
से भरा पड़ा है।
अपनी कमर
के बंधे फेंटे
में हंसिया खोंसे
तू एक खेत
से दूसरे खेत
में
आखिर क्या
खोज रहा है?
जिसे खोज
रहा है—उसका
क्या है उपयोग?
ओ मेरे
हृदय!
क्या तू
एक बार
उस परम
सुंदर घर की
खोज नहीं
करेगा.....?
कामुकता
की यांत्रिक
राहों में तुम
जो कुछ भी खोजे
चले जा रहे हो, वह
सौंदर्य की
खोज नहीं है।
वह प्रेम की
भी खोज नहीं
है और न वह
परमात्मा की
ही खोज है।
अधिक से अधिक
वह एक
प्राकृतिक और
जैविक विधि भर
है, जिससे
तुम अपने आप
को उसमें
डुबाकर भुला
सको। वह
तुम्हारे
शरीर में एक
प्राकृतिक
व्यवस्था है,
तुम अपने आप
को उसमें डुबा
सकते हो। वह
तुम्हारे लिए
एक शराब एक
ड्रग बन सकता
है। वह
तुम्हारा
तीखा तेज
स्वाद भी बन
सकता है।
सेक्स
एक रसायन है, वह
तुम्हारे
शरीर में
विशिष्ट हारमोन्स
छोड़ता है। वह
तुम्हें एक
विशिष्ट
भ्रमपूर्ण
अच्छा लगने का
भाव देता है।
वह तुम्हें
कुछ ऐसे क्षण
देता है
जिनमें तुम संसार
का शिखर अनुभव
कर सकते हो।
लेकिन तब फिर
तुम घाटी में
वापस लौटते हो
और घाटी पहले
से भी कहीं
अधिक अंधेरी
और कुरूप लगती
है, जैसे
मानो तुम्हें
चालाकी से ठग
लिया गया है।
सेक्स
तुम्हें एक
ऐसा भ्रम देता
है जैसे मानो
कोई चीज घट
रही हो। यदि
तुम सेक्स में
ही सीमित होकर
रह जाते हो, तब तुम अपनी
ऊर्जा का
मात्र अपव्यय
करते हो। धीमे—
धीमे ऊर्जा
तुममें से
निकलती चली
जायेगी और तुम
केवल एक मृत
खोल भर रह
जाओगे।
बाउल
कहते हैं:
इस व्यर्थ
संसार तट पर
खड़ी
तेरी
कुटिया का
कैसा है रंग
रूप?
तेरी
कुटिया का
ढांचा
हड्डियों से
बना है
और तेरी
खाल से मढ़ी
छत पर बालों
की घास फूस है
लेकिन उन
पर बैठे मोर
के जोड़े को
इस बात की
खबर ही नहीं
कि एक दिन
उनका भी अंत
आने वाला है।
जैसे बचपन
खेल—खेल में
ही गुजर गया
यौवन काम, क्रोध,
लोभ, मोह
और दम्भ में
बीत गया
और अब बुढ़ापा
भी बीता जा
रहा है
अपने
स्वामी को
बुलाते और
पुकारते हुए
अब
तुम्हारे
दांत भी गिरते
जा रहे हैं
और बाल अब
भूरे और सफेद
होते जा रहे
हैं।
अब पौरुष
और साहस की
आयु बीत चुकी
ज्वार के
बाद अब भाटे
का समय है
तेरे घर का
रंग रोगन और
प्लास्टर
अब धीमे—
धीमे चटकता जा
रहा है।
ऊर्जा
धीमे— धीमे
रिसती जा रही
है। संसार में
बहुत थोड़े से
लोग ऐसे हैं
जो इस महान
अवसर का उपयोग
अपने विकास के
लिए कर पाते
हैं। अपने
उठाये गये
कदमों का
निरीक्षण करो।
तुम्हें
विकसित होने
के लिए एक
विशिष्ट अवसर दिया
गया है। यदि
तुम विकसित
नहीं होते हो, तो
तुम जीवन को
व्यर्थ बरबाद
कर एक थकाने
वाला नीरस
जीवन जीते हो।
तुम अपने को
जीवंत नहीं कह
सकते, यदि
तुम सजग नहीं
हो। यदि
तुम्हारी
बहती तरल
चेतना एकीकृत
होकर ठोस
स्फटिक जैसी
नहीं बनती तो
तुम गहरी नींद
में ही सोये
हुए हो, एक
मूर्च्छा में
हो, तुम
जैसे सोये हुए
ही चलते फिरते
और काम करते हो।
और सेक्स सबसे
बड़ी नींद लाने
वाली औषधि है।
बहुत से लोग
ठीक इसका नींद
की गोली की
तरह ही उपयोग
करते हैं : वे
प्रेम करते
हैं और तब वे
सो जाते हैं।
तब वे अधिक
अच्छी तरह से
सो पाते हैं।
ऊर्जा
निष्कासित
होने के बाद
वे खाली होकर
गहरी बेहोशी
में डूब जाते
हैं। वह नींद
असली नींद
नहीं है—वह
केवल थकावट की
मूर्च्छा है,
वह ठीक एक
रिक्तता है।
यह ऊर्जा से
भरी नींद नहीं
है। यह नींद
जीवन जैसी न
होकर मृत्यु
के समान है।
बलखाती
नदी के घुमाव
और मोड़
तुम्हारी
पकड़ से फिसल—फिसल
जाते हैं।
सावधान हो
जाओ मेरे
बंधु!
उफनती तेज
धारा में कदम
मत रखो।
काले
बादलों से
घिरी पहाड़ियों
को चीरती
नदी की
जलधार प्रचण्ड
गति से बढ़ती
ही आ रही है।
तब नदी
सूखी थी
जब बाढ़ का
पानी प्रचण्ड
जलधारा बनकर
नीचे आ रहा है
अब तुम इस
नदी को कैसे
पार कर सकते
हो?
जब
भी तुम सेक्स
के साथ पहले
ही से व्यस्त
नहीं हो, और
शांत भी हो, फिर भी इस
नदी को पार
करना कठिन है।
जब नदी में
बाढ़ भी नहीं
आई हुई है, और
जब नदी गर्मी
में बहुत उथली
है, उसकी
धारा बहुत
छोटी और पतली
है, तब भी
उससे गुजरते
हुए उसके पार
जाना कठिन है।
और जब वर्षा
ऋतु आ जाती है
और नदी में
बाढ़ आ जाती है
और जब तुम
वासना से पूरी
तरह भरे होते
हो, तब तो
इस नदी को पार
कर पाना
असम्भव है।
तब नदी
शुष्क थी
जब बाढ़ का
पानी, प्रचण्ड जलधारा
बनकर नीचे आया
अब तुम इस
नदी को कैसे
पार कर सकते
हो?
ओ नाविक!
सावधान होकर
अपनी रक्षा
स्वयं करो
पतवार को
मजबूती से थामे
रहो
और यदि नाव
उलटने लगे
तो
सद्गुरु का
स्मरण करो।
बाउल
कहते हैं कि
इस मूर्च्छा
से बाहर आने
का केवल एक ही
मार्ग है और
वह है—परमात्मा
को याद करना :
नाम स्मरण।
उसके नाम को
सदा याद रखना।
प्रेम के पथ
पर यह हमेशा
ही एक
बुनियादी
विधि रही है—' उसे
' स्मरण
करना। और जब
एक भक्त गहरी
श्रद्धा से
परमात्मा के नाम
का स्मरण करता
है, उसका
पूरा
अस्तित्व
पुलकित और
रोमांचित हो उठता
है, और
उसकी ऊर्जा
तेजी से
ऊर्ध्वगामी
होने लगती है।
सामान्य रूप
से ऊर्जा नीचे
की ओर
प्रवाहित होती
है, वही
सेक्स ऊर्जा
के निष्कासन
का मार्ग है।
यदि तुम
वास्तव में अश्रुपूरित
नेत्रों से
परमात्मा का नाम
लेते हो चाहे
वह कोई भी नाम
हो—राम अल्लाह
अथवा कोई भी
नाम हो
क्योंकि सभी
नाम उसके ही
नाम है—तो उसी
पुकार और उसी
स्मरण की
सातवें चक्र
सहस्रार में
सिर के आसपास
कहीं चोट होती
है। यदि उसका
स्मरण मात्र
औपचारिक
संस्कार नहीं है,
यदि गहरे
प्रेम, श्रद्धा
और भक्ति के
साथ तुमने
उसका नाम
पुकारा है तो
अकस्मात्
तुम्हारे
शरीर की ऊर्जा
में एक
परिवर्तन होता
है। वह ऊर्जा
जो सेक्स की
ओर गतिशील थी,
उसका ऊपर
उठना
प्रारम्भ हो
जाता है।
बाउल
कहते हैं:
परमात्मा
ने खेल के सभी
कार्यकलापों
को—
उल्टा कर
दिया है।
अब पृथ्वी
विरोधाभासी असंगत
भाषा में बतियाने
लगी है।
अब फूल, फलों
के शीर्ष पर
उग रहे हैं
और सौम्य
अगर की बेल गर्जती
हुई वृक्ष का
गला पकड़ रही
है
चंद्रमा
दिन में उगने
लगा है
और रात में
उदय होकर
चमकता है।
और रक्त
सफेद बन गया
है
और इस रक्त
की झील में
हंसों का जोड़ा
तैरता है।
वासना और
प्रेम के
अरण्य में
निरंतर
गोते लगाता
वह संभोग
में रत रहता
है।
सभी
महान रहस्यदर्शियों
ने इस स्थिति
का वर्णन किया
है : जब काम की
यह ऊर्जा वेग
से ऊपर की ओर
उठना शुरू
होती है, जब
तुम्हारी इस
ऊर्जा पर
गुरुत्वाकर्षण
शक्ति का कोई
प्रभाव नहीं
पड़ता, जब
तुम्हारी
ऊर्जा एक
दूसरे नियम के
अधीन कार्य
करती है, यह
नियम है—
अनुग्रह का, जब तुम ऊपर
की ओर खींच
लिए जाते हो, जब तुम ऊपर
की ओर जाने
लगते हो, जब
तुम ऊपर की ओर
तेजी से आगे
बढते हो, जैसे
मानो आकाश ही
तुम्हें ऊपर
खींच रहा है, तब व्यक्ति
पूरी तरह से
भिन्न एक
दूसरे संसार
को जानता है।
प्रत्येक चीज
ऊपर से नीचे
आती है— अथवा
वह वास्तव में
ठीक ऊपर की ओर
ही हो सकती है,
लेकिन हर
चीज बदलती है।
कबीर ने कहा
है कि उन्हें
जब ऐसा घटा तो
उन्होंने
देखा कि सागर
जल रहा है और
वह अग्नि बहुत
शीतल है।
उन्होंने
देखा मछलियां
सूखी जमीन पर
दौड रही हैं
और उन्होंने
ऐसे वृक्ष देखे,
जिनकी जड़ें
आकाश में थीं
और जिनकी
शाखाएं पृथ्वी
की ओर आ रही
थीं। ये सभी
केवल प्रतीक
के रूप में की
गई अभिव्यक्तियां
हैं।
जब
काम ऊर्जा
तेजी से नीचे
की ओर प्रवहित
होती है तो
उसके प्रभाव
के सम्बंध में
हम प्रत्येक
चीज भली भांति
जानते हैं। जब
कामऊर्जा
ऊर्ध्वगामी
होकर ऊपर की
ओर उठती है तो
पूरी तरह से
एक नये संसार
का भरोसा
खुलता है। तब
तुम इस संसार
को नहीं देखते, क्योंकि
तुम्हारे
नेत्र धुर
विरोधी एक नये
आयाम में होते
हैं।
लेकिन
सामान्यतया
हमारे पूरे
जीवन की धारणा
और विचार
सेक्स
केंद्रित हैं।
हम जो कुछ भी
करते हैं : हम
धन कमाते हैं, तो
हम धन भी
सेक्स के लिए
ही अर्जित
करते हैं, हम
प्रसिद्धि
पाने का
प्रयास करते
हैं, लेकिन
हम प्रसिद्धि
भी सेक्स के
लिए ही अर्जित
करते हैं। कभी—कभी
बहुत निर्दोष
क्रियाकलाप
भी जिन्हें तुम
सेक्स के साथ
नहीं जोड़ सकते,
लेकिन यदि
वह व्यक्ति
अभी भी
असाधारण
वासना से
उद्दीप्त हो,
वे भी सेक्स
से ही
सम्बंधित
होते हैं। यह
समझना थोड़ा सा
कठिन है कि एक
व्यक्ति जो प्रसिद्धि
के पीछे भाग
रहा है, वह
सेक्स के पीछे
कैसे दौड़ रहा
मनोवैज्ञानिकों
से पूछो। वे
कहते हैं कि
स्त्रियां
किसी अन्य चीज
की अपेक्षा
प्रसिद्धि से
अधिक आकर्षित
होती हैं। वे
सुंदर चेहरे
की ओर उतनी
अधिक आकर्षित
नहीं होतीं, जितनी,
जितनी वे
उपलब्धि से
आकर्षित होती
हैं। एक
प्राप्तकर्ता,
एक व्यक्ति
जिसके पास
अधिक धन हो, शक्ति हो, प्रतिष्ठा
हो, किसी
अन्य व्यक्ति
की अपेक्षा
स्त्री को अधिक
आकर्षित करता
है, क्योंकि
एक स्त्री
निरंतर किसी
ऐसे ही व्यक्ति
की खोज में
रहती है जिसके
आगे वह झुक
सके। तुम
सुंदर हो सकते
हो, लेकिन
यदि तुम्हारे
पास कोई शक्ति
नहीं है, तो
तुम स्त्री को
सुरक्षा की
कोई गारंटी
नहीं दे सकते।
यदि तुम शक्ति
सम्पन्न हो, भले ही तुम
सुंदर न हो
बुद्धिमान भी
न हो, लेकिन
इससे कोई भी
फर्क नहीं
पड़ता। लेकिन
यदि तुम
शक्तिशाली हो,
विश्वसनीय
हो, तो
स्त्री
तुम्हारे
कंधों पर झुक
सकती है।
तुममें वहां
उसके लिए एक
निश्चित
गारंटी है।
पुरुष
स्त्री की ओर
आकर्षित होते
हैं उसके
शारीरिक सौंदर्य
और शरीर के
अंगों के
संतुलन से, जबकि
स्त्री अधिक
आकर्षित होती
है—प्रसिद्धि,
प्रतिष्ठा,
शक्ति और
पुरुष की
उपलब्धियों
से। इसलिए यदि
पुरुष शक्ति
और सत्ता के
पीछे पागल हैं,
तो गणित
बहुत सरल है।
यदि मृत्यु भी
सामने खड़ी हो
अथवा खतरा
सामने खड़ा हो,
फिर भी लोग
सेक्स में ही
लगे रहते हैं।
जीवन ने
मुझे एक बहुत
सुंदर जोक
भेजा है।
ईसाडोर गिन्सबर्ग
को उसके
डॉक्टर ने कुछ
अवकाश लेने का
परामर्श दिया, क्योंकि
अपने व्यवसाय
को खड़ा करने
में उसने वर्षों
तक कठिन
परिश्रम किया
था। अपने
अवकाश के
दौरान उसकी
भेंट एक सुंदर
युवती से हुई
जिसके साथ
उसने काफी समय
आमोद—प्रमोद
में व्यतीत
किया।’’
अपने
कार्यालय
लौटने पर उसने
अनुभव किया कि
जैसे वह एक
नये व्यक्ति
लगने लगा है :
क्योंकि उसके
जीवन में
प्रेम
प्रविष्ट हो
चुका था।
कुछ
सप्ताह
गुजरने के बाद
एक जाने—माने
भद्र पुरुष, मि. ईसाडोर
गिन्सबर्ग
से मिलने आए
और उनसे अकेले
में बात करने
की इच्छा
व्यक्त की।
मुस्कराते
हुए गर्मजोशी
से उसने वह
कार्ड पढ़ा, जो उसे दिया
गया था। वह
कार्ड एक
प्रसिद्ध
कानूनी
विशेषज्ञता
वाली फर्म के
एडवोकेट का था।
उसने
कहा—’‘मैं मिस मैमी
लोटरगी
का प्रतिनिधि
हूं। आपको
उनका स्मरण
होगा, जिनसे
आप होटल कार्लटन
में मिले थे।’’
''हां, हां।’’
ईसाडोर ने
उत्तेजित और
लालायित भाव
से कहा।
''फिर ठीक है
मित्र गिन्सबर्ग,
आपका इनके
बारे में क्या
ख्याल है?'' यह
कहते हुए उसने
सामने रखी
डेस्क पर ईसाडोर
और मैमी
के कई
फोटोग्राफ रख
दिए जिनका
विवाद
निश्चित रूप
से बातचीत
द्वारा ही
सुलझ सकता था।
फोटो
देखकर ईसाडोर
पर पूरी तरह
से नशा जैसा
छा गया।
आश्चर्य से आंखें
फैलाकर वह उन
फोटो को उलट—पुलट
कर मुग्ध भाव
से देखता रहा।
कई मिनटों तक
खामोशी छाई रही, जैसे
हवा का बहना
रुक गया हो।
अंत में वह
एडवोकेट की ओर
मुड़कर
दृढ़ आदेश देने
वाले स्वर से
बोला—ठीक है।
मैं इस फोटो
की दो
प्रतियां इस
फोटो की तीन
इसकी और चार
प्रतियां तथा
अन्य दूसरे
फोटोग्राफ
लेना चाहूंगा।’’
वासना
की पकड़ ऐसी
होती है कि
तुम आसन्न खतरे
को भी नहीं
देख सकते।
वासना की पकड़
ऐसी होती है, कि
तुम सामने खड़ी
मृत्यु को भी
नहीं देख सकते।
वास्तव में
बहुत अजीब
घटना घटती है।
एक व्यक्ति
मृत्यु के
जितने अधिक
निकट आता है
वह उतना ही
अधिक वासनामय
हो जाता है।
क्योंकि
सेक्स जीवन का
अनुभव देता है
इसीलिए कोई भी
व्यक्ति
कामुकता से
अधिक बंध जाता
है। वृद्ध लोग
सेक्स में
गतिशील होने
में भले ही समर्थ
न हों, लेकिन
वे तब भी अपनी
कल्पनाओं में
सेक्स का ही
चिंतन शुरू कर
गतिशील हो
जाते हैं। ऐसा
लगभग सदैव
होता ही है।
मैंने
बहुत से लोगों
को मरते हुए
देखा है। ऐसा
बहुत कम होता
है कि यह
व्यक्ति अपने
मन में
परमात्मा का
चिंतन करते
हुए मरे। लगभग
हमेशा ही दस
में से नौ लोग
जब मरते हैं
तब उनके मनों
में सेक्स ही
होता है और
यही दूसरे जन्म
का प्रारम्भ
बन जाता है।
मन पर छाया
सेक्स ही
दूसरे जन्म
में दूसरे सेक्स
जीवन की
शुरुआत बन
जाता है।
लेकिन
ऐसा होना ही
है,
यदि तुम
सेक्स के पार
जाने के लिए
उसकी पकड़ के पार
होने के लिए
कठिन श्रम
नहीं कर रहे
हो। यदि तुम
उसके पंजों से
अपने को मुक्त
करने के लिए
कठिन संघर्ष
नहीं कर रहे
हो, तब ऐसा
होना ही है—क्योंकि
मृत्यु के
क्षण तुम
सेक्स के
सम्बंध में ही
अधिक सोचना
शुरू कर दोगे,
क्योंकि
सेक्स ठीक
मृत्यु के
विपरीत
प्रतीत होता
है। सेक्स से
ही जन्म होता
है, इसीलिए
मन सेक्स की
ही कल्पना
करता है। और
जब अंतिम क्षण
आ ही गया है, जब शरीर
विसर्जित
होने जा रहा
है, यह
ऊर्जा का
अंतिम शक्ति
परीक्षण है, यह ध्यान
ऊर्जा एक
प्रवाह की
भांति
तुम्हारे सिर
की ओर जाती
तुम्हें अपने
नियंत्रण में
लेती है। यदि
तुम मन में
सेक्स के
चिंतन के साथ
मरे, तो
तुम जीवन चक्र
में घूमते हुए
फिर आओगे—इसी
आने—जाने, जाने—
आने के
दोहराने वाले
चक्र को हिंदू
आवागमन कहते
हैं।
यदि
तुम मनुष्य के
अंदर देखना
चाहते हो
तो
तुम्हें रूप
और सौंदर्य के
घर में जाना
चाहिए। बाउल
कहते हैं—यदि
तुम मनुष्य का
अन्तर्तम
देखना चाहते
हो तो तुम्हें
रूप
और
सौंदर्य के
शाश्वत घर में
प्रवेश करना
होगा। प्रेम
में अधिक
सौंदर्य बोध
है,
वासना में
लगभग सौंदर्य—बोध
है ही नहीं।
वासना कुरूप
है, और तुम
इसका
निरीक्षण कर
सकते हो। जब
कोई तुम्हारी
ओ वासना की
दृष्टि से
देखता है, तो
क्या तुमने
उसका चेहरा
देखा है? वह
कुरूप हो जाता
है। जब वहां आंखों
में वासना
होती है तो एक
सुंदर चेहरा
भी कुरूप बन
जाता है। और
इसके ठीक
विपरीत भी घटता
है : एक कुरूप
चेहरा भी जब आंखों
में प्रेम
होता है, सुंदर
बन जाता है। आंखों
में प्रेम के
होने से चेहरे
को पूरी तरह
से भिन्न एक
नया रंग मिल
जाता है, एक
भिन्न प्रभा
मण्डल
उत्पन्न हो
जाता है।
वासना का आभा
मण्डल काला और
कुत्सित होता
है। किसी की
ओर वासना से
देखना ही
कुरूपता है।
यह सौंदर्य की
खोज नहीं है।
भारत
के महानतम कवि
रवीन्द्रनाथ
टैगोर ने कहा
है—’‘सौंदर्य ही
सत्य है '' और
उन्होंने ठीक
ही कहा है। और
वह बाउलों
से बहुत अधिक
प्रभावित थे।
वास्तव में वह
ही प्रथम
व्यक्ति थे, जिन्होंने बाउलों को
पश्चिम से
परिचित कराया,
वह ही प्रथम
व्यक्ति थे
जिन्होंने बाउलों के
कुछ गीतों का
अंग्रेजी में
अनुवाद किया।
वह स्वयं ही
एक तरह के
बाउल थे। वह
कहते हैं—सौंदर्य
ही सत्य है।’’ यदि तुम
सुंदरता की
खोज करोगे तुम
सत्य को उपलब्ध
हो जाओगे। तम्हारे
अंदर जितना
अधिक सौंदर्यबोध
होगा, तुम
सुंदरता के
प्रति जितने
अधिक
संवेदनशील
होगे, तुम
उतने ही अधिक
संतुलित और
लयबद्ध होते
जाओगे
क्योंकि
अंततोगत्वा
सुंदरता
परमात्मा की
ही सम्पत्ति
है।
एक
उदाहरण से
तुम्हारे लिए
यह और स्पष्ट
हो जायेगा।
तुम
एक स्त्री
देखते हो, यदि
तुम उसे वासना
की दृष्टि से
देखते हो, तो
तुम केवल शरीर
देखते हो, पदार्थ
अथवा उसका कोई
भाग देखते हो,
यदि तुम उसे
प्रेम से
देखते हो, तो
तुम कुछ चीज
उसमें ऐसी
देखते हो, जो
पदार्थ नहीं
है, जो
आत्मिक है, और यदि तुम
एक स्त्री को
प्रार्थना के
भाव से देखते
हो, तो तुम
पूरी तरह से
किसी दिव्य
रूप को या देवी
को ही देख रहे
हो। यह
तुम्हारी
दृष्टि पर
निर्भर करता
है। वासनापूर्ण
दृष्टि से तुम
स्त्री के
शरीर के कुछ
भाग देखते हो,
प्रेमपूर्ण
दृष्टि से तुम
स्त्री की
आत्मा को
देखते हो, और
प्रार्थनापूर्ण
नेत्रों से वह
दिव्य दिखाई
देती है, स्वयं
परमात्मा के
ही रूप में
दिखाई देती है।
सौंदर्य के
प्रति जहां
कहीं भी
तुम्हारी संवेदनशीलता
परिपूर्ण हो
जाती है, दिव्यता
प्रकट हो जाती
है।
यदि तुम
मनुष्य का
अंतर्तम
देखना चाहते
हो
तो
तुम्हें रूप
और सौंदर्य के
शाश्वत घर में
प्रवेश करना
होगा।
उसके सभी
मार्ग
ब्रह्माण्ड
में एक दूसरे को
काटते हुए
जहां जीवन, मृत्यु
के साथ रहता
है
और होश, पागलपन
के साथ, सभी
के पार चले
जाते हैं।
उसके
सभी रास्ते
सभी सीमाओं का
अतिक्रमण करते
हैं,
जहां जीवन
और मृत्यु साथ—साथ
रहते हैं, और
होश, पागलपन
के साथ।
परमात्मा में
मृत्यु और
जीवन दो चीजें
नहीं हैं।
परमात्मा के
लिए अंधकार और
प्रकाश दो
चीजें नहीं
हैं।
परमात्मा के
लिए प्रारम्भ
और अंत भी दो
चीजें नहीं
हैं।
परमात्मा का
अर्थ है
समग्रता :
परमात्मा सभी की
चिंता करता है।
इसलिए जब तुम
परमात्मा के
निकट जाते हो,
तुम खोओगे
कुछ भी नहीं, और सब कुछ पा
लोगे। शुरू
में ऐसा लग
सकता है कि
तुम कुछ चीज
खो रहे हो, लेकिन
परमात्मा में
सभी कुछ
समाहित है।
परमात्मा में
वासना भी रहती
है लेकिन पूरी
तरह से
रूपांतरित
स्थिति में।
परमात्मा में
पदार्थ भी
रहता है लेकिन
वह शुद्ध और
पवित्र बन
जाता है। कोई
भी एक रहता तो
संसार में है,
लेकिन उसका
होकर नहीं
रहता।
परमात्मा
स्वयं है इस
संसार में, पर सांसारिक
नहीं है।
संसार उसी के
अधिकार और
नियंत्रण में
रहता है लेकिन
वह संसार के
नियंत्रण में
नहीं रहता।
यह
विपरीत
ध्रुवों की
स्थिति भी समझ
लेने जैसी है।
बाउल
का परमात्मा, ईसाइयों,
यहूदियों और
मुसलमानों के
परमात्मा की
तुलना में
कहीं अधिक
महान है, क्योंकि
उनके
परमात्मा तो धर्मशास्त्रों
में वर्णित
परमात्मा
जैसे हैं। बाउलों
का परमात्मा
कहीं अधिक
काव्यात्मक
है, जबकि
अन्य धर्मों
के परमात्मा
तर्कपूर्ण हैं।
बाउलों
का परमात्मा तर्कविहीन
होने से अधिक
सच्चा और
प्रामाणिक है।
ईसाई कहते हैं—परमात्मा
' गुड ' है,
सुंदर और
भला है। यह
शब्द गॉड (God),
गुड (Good) से
ही निकला है। '
गुड ' शब्द
ही उसका मूल
है। परमात्मा '
गुड ', भला
या सुंदर है, तब बुरे का
क्या होगा, बुरा आखिर
जायेगा कहां?
तब बुरे का
अस्तित्व है
कहां? वे
स्पष्ट करते
हैं कि इस
बुरे के कारण
ही उन्हें
शैतान बनाना
पड़ा। लेकिन
ऐसी
सैद्धान्तिक
चालबाजी पर
बाउल हंसते
हैं। वे कहते
हैं— यदि
परमात्मा ही
शैतान का सृजन
करता है और शैतान
का सृजनहार
बनकर रहता है,
और यदि तुम
कहते हो कि
शैतान, परमात्मा
के विरुद्ध
चला गया, तब
वहां दो ही
सम्भावनाएं
हैं। पहली यह
कि परमात्मा
सर्वशक्तिमान
नहीं है और
शैतान उसके
विरुद्ध जा
सकता है— और
दूसरी
सम्भावना यह
है कि
परमात्मा उसे
अपने विरुद्ध
स्वयं उकसाता
है—तभी वह
सर्वशक्तिमान
है, लेकिन
तब शैतान के
होने का वही
कारण है।
बाउल
कहते हैं कि
परमात्मा
दोनों एक साथ
हैं,
और जब वे
कहते हैं कि
परमात्मा
दोनों है, तो
उनके कहने का
अर्थ है कि
परमात्मा समझ
के पार है। वह परस्पर
विरोधी है।
परमात्मा में
सभी कुछ
समाहित है।
प्रत्येक चीज
उसमें रूप और आकृति
बदल रही है, सभी विपरीतताए
उसमें लयबद्ध
हो रही हैं।
परमात्मा एक आरकेस्ट्रा
है, उसमें
सभी स्वर—वाद्य
लयबद्ध होकर
एक साथ बज रहे
हैं। वह अनेक
में एक है। वह
सभी का एकीकृत
रूप है।
उसके
रास्ते
ब्रह्माण्ड
में
एक दूसरे
को काटते हुए
पार चले जाते
हैं
जहां जीवन, मृत्यु
के साथ
और समझ तथा
पागलपन साथ—साथ
रहते हैं।
बाउल
कहते हैं—'वह'
ही
श्रेष्ठतम
कारण, और
श्रेष्ठतम
अकारण एक साथ
है। वे कहते
हैं कि
परमात्मा ही
सभी का कारण
है और परमात्मा
पागलपन भी है।
एक तर्कनिष्ठ
मन के लिए यह
समझना कठिन हो
जाता है।
लेकिन बाउल कहते
हैं कि जीवन
कोई तर्क नहीं
है। वे कहते
हैं—’‘ हम तो
जो भी कुछ हैं,
उसका केवल
वर्णन कर रहे
हैं। यही वह
तरीका है, जिससे
हमने उस
परमात्मा को
जाना है।’’ वह
बहुत
तर्कपूर्ण और
बहुत अतर्कपूर्ण,
दोनों ही एक
साथ है। वह
अनंत करुणावान
और अनंत
न्यायकर्ता
दोनों एक साथ
है। उसके अंदर
सभी विपरीत
ध्रुव मिलकर
एक हो गये हैं।
उसे समझने के
लिए किसी को
उस एक में
समग्रता के
समाहित होने
की बात समझनी
होगी। तुम इस
दावे और
वक्तव्य को
अपनी बुद्धि
द्वारा नहीं
समझ सकते। तब
यह निरर्थक
प्रतीत होता
है। लेकिन जरा
जीवन का
निरीक्षण
करें : वह सभी
कुछ जो जीवंत
है, किसी न
किसी तरह उसका
ही होना चाहिए
और वह सभी कुछ
जो मरता है, किसी न किसी
तरह उसमें ही
मर रहा है।
हां! वह बहुत
न्यायसंगत
होकर रहता है,
लेकिन तब
पागल
व्यक्तियों
में कौन रहता
है? पागल
व्यक्ति में
भी ' वह ' ही
रहता है, और
सभी सम्भव तरीकों
से वही प्रेम
करता है।
इसलिए
बाउल कहते हैं—’‘ भयभीत
मत हो, तुम
केवल अपने आप
में होना भर
रह जाओ और तुम
उसे खोज लोगे।
उसे खोजने के
लिए तुम्हें
कुछ और बनने
की कोई आवश्यकता
नहीं है, तुम
केवल स्वयं
में ही बने
रहो। यदि तुम
पागल हो, तो
केवल पागल
बनकर ही रहो, तब वही उसे
खोजने का
तुम्हारा
मार्ग होगा।
यदि तुम एक
गायक हो, तो
गीत ही गाये
जाओ। वह सब
कुछ एक साथ है,
और सभी कुछ
उसी में
समाहित है।
तुम्हारा गीत
गाना एक
प्रार्थना बन
जायेगा, एक
मार्ग बन
जायेगा, यदि
तुम गीत नहीं
गा सकते तो भी
फिक्र मत करना,
फिक्र करने
की कोई भी
जरूरत नहीं।
यदि तुम अनुभव
करते हो कि
केवल शांत
बैठे हुए ही
तुम अपने मौन
अस्तित्व में
पूरी तरह
आनंदित हो, तब वही
तुम्हारा
मार्ग है। सभी
मार्ग उसी के हैं।
बाउल कहते हैं—’‘
तुम जहां
कहीं भी हो, तुम कहीं से
भी यात्रा करो,
तुम उसी की
ओर यात्रा
करते हो। बस
कहीं भी चूको
मत, यात्रा
पथ पर बढ़ते ही
जाओ। गतिशील
बने ही रहो
गतिशीलता
रुकने न पाए
क्योंकि गति
का रुकना ही
मृत्यु है। जब
कभी तुममें जड़ता
आ जाती है, तुम
रुक जाते हो, तभी दूरी
सामने आती है।
बस चलते ही
रहो और चलना
ही बन जाओ। वे
तुम्हें कोई
नीति या
नैतिकता नहीं
देते, वे
तुम्हें कोई विशिष्ट
आदर्श नहीं
देते, वे
तुम्हें कोई
नियम नहीं
देते कि
तुम्हें क्या
करना चाहिए और
क्या नहीं
करना चाहिए। न
वे कर्त्तव्य
निभाने की
फिक्र करते
हैं। वे कहते
हैं— अच्छा तो
यह है कि वह
प्रकरण—’‘ वे
सभी को, जैसे
वे हैं, उससे
प्रेम करते
हैं।’’ बस
तुम्हें चलते
ही चले जाना
है, कहीं
रुककर जड़ होकर
बैठना नहीं है।
अपने
नेत्र मूंद कर
उसे पकड़ने
का प्रयास करो
वह फिसल—फिसल
जाता है।
बहुत
सुंदर '' अपने
नेत्र मूंद लो
और उसे पकड़ने
का प्रयास करो,
वह फिसल—फिसल
जाता है।’’
यदि
तुम कहीं भी
जड़ हो जाते हो, तो
तुम उससे चूक
जाओगे। तुम्हें
गतिशील बने
रहना है, क्योंकि
वह भी
परिभ्रमण कर
रहा है। वह
हमेशा फिसल
जाता है। वह
सदा नूतन और
अज्ञात में
परिभ्रमण कर
रहा है। यदि
तुम किसी
ज्ञात के साथ
बंधे तो ' उसे
' चूक
जाओगे। अपनी आंखें
मूंद लो और
अपने ही अंदर
निरीक्षण करो
कि वह कितनी
तेजी से घूमता
हुआ निरंतर
नाच रहा है।
वह पुराने
स्थान से
निरंतर
फिसलते हुए
सरक रहा है।
वह निरंतर
नवीन है। वह
सर्प की भांति
है जो पुरानी
केंचुल छोड़ते हुए
सरक कर बाहर आ
जाता है।
परमात्मा
निरंतर
इतिहास से
सरकता हुआ
बाहर आ रहा है,
क्योंकि वह
शाश्वत है, परमात्मा
निरंतर सरकते
हुए बाहर आ
रहा है, और
यह घटना पहले
ही घट चुकी है,
क्योंकि वह
कभी अपने को
दोहराता नहीं।
और यदि तुम
इतिहास के
पन्नों से ही
चिपके रहे तो
तुम उससे चूक
जाओगे, क्योंकि
तब तुम भूतकाल
में ही देखते
रहोगे, और
वह हमेशा
भविष्य में
परिभ्रमण कर
रहा है।
परमात्मा
भविष्य है और
मन है अतीत, तभी अंतर
उत्पन्न होता
है।
एक
असली धार्मिक
व्यक्ति वह
होता है जिसका
कोई अतीत नहीं
होता, जिसकी
कोई आत्मकथा
नहीं होती, जो निरंतर
नया होता है, उसका
प्रत्येक
क्षण
परमात्मा के
साथ फिसलते हुए
चलता है। वह
फिक्र करता ही
नहीं, जो
घटना घट चुकी
वह घट चुकी, मामला खत्म
हुआ। अब वहां
पूर्ण विराम
लगा दो, पीछे
मुड़कर
देखो ही मत।
बढ़ते चलो..... .वह
हमेशा
तुम्हें
तुमसे आगे खड़ा
होकर पुकार रहा
है। वह हमेशा
तुम्हें अपने
अस्तित्व के
नवीन क्षेत्रों
की ओर, वासना
से प्रेम की ओर,
और प्रेम से
प्रार्थना की
ओर गतिशील
होने के लिए
तुम्हें
प्रेरित कर
तुम्हें
विश्वस्त कर रहा
है, और
वहां
प्रार्थना से
भी उच्चतम
क्षेत्र है, और वह
निरंतर
गतिशील है।
यदि तुम उसका
अनुसरण करोगे,
तो इसके लिए
केवल एक ही
रास्ता है कि
तुम्हें भी
निरंतर
गतिशील रहना
होगा।
एक
नदी बन जाओ।
नदी की भांति
प्रवाहित
होते रहो।
हां! वे ठीक
कहते
अपने
नेत्र मूंदो
और उसे पकड़ने
का प्रयास करो
वह हाथों
से फिसला जा
रहा है।
अपनी
आंखें बंद
क्यों करो ?—क्योंकि
प्रारम्भ में
तो उसे बिना आंखों
के देख पाना
बहुत कठिन
होगा। वहां
इतने अधिक रूप
और आकृतियां
हैं कि तुम
उसे खो सकते
हो। तुम्हारे
चारों ओर सब
इतना अधिक है
और यह संसार
इतना अधिक
जटिल है कि
तुम उसमें भटक
सकते हो।
इसलिए सरलतम
से प्रारम्भ
करो—तुम स्वयं
अपने ही से
शुरुआत करो।
अपनी आंखें
बंद कर लो, तब
वहां केवल एक
तुम ही रह
जाते हो। इस
रास्ते से
परिचित होने
में यह सरल
होगा। अपनी आंखें
बंद करो और
उसे देखो, वह
निरंतर
फिसलता जा रहा
है। वह
तुम्हारी ही
अपनी चेतना है,
वही सारभूत
मनुष्य है, बाउल जिसे ' आधार मानुष '
कहते हैं।
वह तुम्हारे
ही अंदर है, वही
तुम्हारा
अन्तर्निहित
स्वभाव अथवा
अस्तित्व है,
लेकिन ' वह
' निरंतर
आगे की ओर
फिसलता जा रहा
है। इसी तरह
से वह अपने को
विकसित और
प्रकट करता है।
परमात्मा
एक विकास भी
है और एक
विद्रोह भी, क्योंकि
कभी ' वह ' बहुत धीमी
गति से और कभी
वह तेजी से
गतिशील होता
है। एक
व्यक्ति को
सजग होकर उससे
कदम से कदम
मिलाकर चलना
होता है। यदि
तुम अपनी
सजगता खो देते
हो तो वह आगे
निकल जाता है।
तब कोई कभी
नहीं जानता कि
वह फिर से
लौटकर कब आयेगा।
यदि मूर्च्छा
में एक भी
क्षण नष्ट हो
गया तो वह
संसार के सबसे
दूर वाले सिरे
पर होगा।
प्रत्येक को
निरंतर सजग और
सचेत रहना
होता है।
लेकिन
पहले अपने ही
अंदर उसका
निरीक्षण करो।
ऐसा नहीं कि
वह बाहर नहीं
है,
वह वहां भी
है—क्योंकि
अंदर और बाहर
सभी कुछ उसका
ही है। लेकिन
पहले तुम्हें
स्वयं अपने ही
अंदर उसे समझना
आसान होगा। एक
बार तुमने
वहां उसे जान
लिया और देख
लिया, फिर
तुम उसे हर
जगह देखने में
समर्थ हो सकोगे।
वहां एक बार
तुमने उसे समझ
लिया, फिर
अपनी आंखें खोलो, वह
तुम्हारे ही
चारों ओर खड़ा
है : वह
वृक्षों में
भी है, पक्षियों
में भी है, मनुष्यों
में भी है, स्त्री
में भी है, चट्टानों
में भी है, नदियों
पहाड़ों और
बादलों में भी
है। लेकिन
पहले परिचय
प्राप्त कर लो
उसका। और सबसे
बड़ा परिचय, जो सबसे
सरलतम है—वह
है अपने नेत्र
मूंदकर, अपने
ही अंदर देखना
और निरीक्षण
करना। तुम
पाओगे कि
तुम्हारी
चेतना की
सर्पिणी निरंतर
गति करती हुई
अपनी पुरानी
केंचुल उतार
रही है। यह
चेतना का अथवा
जीवन ऊर्जा का
प्रवाह ही है।
बाउलों का
परमात्मा को
मृत नहीं है।
उनके विचार
में वह स्थिर
और प्रवाहहीन
नहीं है। वह
कोई ऐसा
परमात्मा
नहीं है जो
सातवें स्वर्ग
में कहीं सोने
के सिंहासन पर
बैठा हुआ हो। बाउलों का
परमात्मा
बहुत जीवंत
परमात्मा है, वह
तुम्हारे
अंदर ही
तुम्हें ठोकर
मारता है, तुम्हें
अपने प्रवाह
में बहाये लिए
जाता है। बाउलों
का परमात्मा
और कुछ भी
नहीं—वह जीवन
के समानार्थक
है। जीवन को
बड़े और उभरे
अक्षरों में
लिखो—जीवन, और बस इतना
ही कहा जा
सकता है बाउलों
के परमात्मा
के बारे में।
बाउल
कहते हैं:
मेरा हृदय
पूरी तरह
संतृप्त और
भरपूर है
लेकिन मैं
जिसे चाहता
हूं जिसे
मैंने जाना है
लेकिन
किसके साथ और
कैसे
आनंद के
साथ अथवा
मृत्यु के साथ
बहुत
अजीब हैरान
करने वाला वह
अनुभव होता है, जब
तुम परमात्मा
से परिचित
होते हो, तुम
यह नहीं बता
सकते, कि
वह क्या है, तुम उसका
वर्णन नहीं कर
सकते। वह इतना
अधिक
विरोधाभासी
और एक दूसरे
के विपरीत है।
मेरा हृदय
पूरी तरह
संतृप्त और
भरपूर है।
लेकिन मैं
चाहता हूं
जिसे मैंने
जाना है
लेकिन
किसके साथ और
कैसे
आनंद के
साथ अथवा
मृत्यु के साथ
वह
मृत्यु और
पुनर्जीवन
दोनों एक साथ
हैं। वह सभी
के पार
पुनर्जन्म भी
है। एक परम
आश्चर्य के
भाव ने
मेरा पीछा
करते हुए मुझे
सभी ओर से—
ऐसा पकड़
लिया है
कि मैं कुछ
समझ नहीं पाता
कहां है वह
सागर?
और कहां
गईं वे सारी सरिताए?
और इसके
बावजूद भी
वहां
तुम्हारे
देखने के लिए
लहरें उफन
रही हैं।
लेकिन ऐसा
अद्भुत
आश्चर्य
तुम सभी
देख सकोगे—
केवल यदि
तुम अपने
नेत्रों को
अपने हृदय
के साथ एक कर
लो।
'तुम अपने
नेत्र मूंद लो'
इसका यही
अर्थ है—जिससे
तुम अपनी आंखों
और हृदय को एक
दूसरे के
समानांतर
लाकर एक कर सको।
केवल यदि
तुम्हारी
दृष्टि
तुम्हारे
हृदय के साथ जुड़कर एक
हो जाती है, तभी अचानक
तुम परमात्मा
को सभी
विरोधाभासों
के साथ देखोगे।
सभी कारणों का
तुम्हें
स्रोत और
पागलपन दिखाई
देगा, जीवन
और मृत्यु के
सभी स्रोत एक
साथ दिखाई देंगे।
बाउल
कहते हैं:
मेरे
कम्पित हृदय
के केंद्र में
आंसुओ का
सिंधु है
मेरी आंखें
रोती हुई मौन
अश्रुपात कर
रही हैं
और मेरे
रोम—रोम से
प्रेमपूर्ण
पुकार
निरंतर
ध्वनित हो रही
है—
आओ प्रीतम
प्यारे! आओ पधारो,
आ भी जाओ, कृपया
पधारो।
बाउलों का
मार्ग साधुओं
संन्यासियों
और फकीरों
का मार्ग नहीं
है। उनका
मार्ग है—नर्तक
और गायक का, उस
मनुष्य का
जिसके अंदर
सौंदर्य बोध
है। उनकी
प्रार्थना
सुंदरता से
भरपूर है और
परमात्मा
उनके लिए कोई
दार्शनिक
विचार या
धारणा न होकर,
उनका
प्रीतम
प्यारा है।
मुक्त
संवेग
निषेधात्मक
शक्तियों के
साथ रहते हैं
और
स्त्रैण—ऊर्जा, मनुष्य
की आत्मा के
साथ
आलिंगनबद्ध
होकर
पूर्ण रूप
से अदृश्य
होते हुए भी
उस वीणा की
तरह होती है
जिसके तार
लयबद्ध हो गए
हों।
हृदय ही वह
मंदिर या घर
है
जिसमें
मिलन का संगीत
गूंजता ही
रहता है।
जब
तुम स्वयं
अपनी ही गहराई
में पहुंचते
हो,
जब तुम अपने
हृदय के
केंद्र का
स्पर्श करते
हो, तो तुम
उस भूमि के
क्षेत्र पर आ
जाते हो, जहां
से फिर जुदाई
होती ही नहीं।
वहां, तुम
न केवल
परमात्मा के
साथ हो, तुम
उसके साथ
मिलकर एक ही
हो जाते हो—क्योंकि
तुम उसके ही
एक खण्ड हो।
यह ' वह ' ही
है जिसने
तुम्हारे
समान बनकर
अपने को अभिव्यक्त
किया है। धन्यभागी
और भाग्यशाली
होने का अनुभव
करो, ' उसने '
भी तुम्हें अपने
अनेक रूपों
में से एक रूप
में चुन
लिया है।
अपनी आंखें
बंद करो
और उसे पकड़ने
का प्रयास करो
वह हाथों
से फिसला जा
रहा है।
आज इतना ही।
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