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मंगलवार, 22 मार्च 2016

भावना के भोज पत्र--(पत्र--पाथय--46)

पत्र—पाथय—46

निवास:
115, योगेश भवन, नेपियर टाउन
                                                जबलपुर (म. प्र.)
आर्चाय रजनीश
दर्शन विभाग
महाकोशल महाविद्यालय
प्रिय मां,
एक कागज की नाव पानी में डूब गई है।
कल कुछ रेत के घरोंदे बच्चों ने बनाए थे वे भी मिट गये हैं।
रोज नावें डूबती हैं और रोज घरोंदे टूट जाते हैं।
एक महिला आईं थीं। सपने उनके पूरे नहीं हुए हैं। जीवन से मन उनका उचाट है। आत्म हत्या के विचार ने उन्हें पकड़ लिया है। आंखें गड्डों में चली गई हैं और सब व्यर्थ मालूम होता है।
मैंने कहा, ‘‘सपने किसके पूरे होते हैं। सब सपने अंतत: दुःख ही देते हैं; कारण, कागज की नावें कहीं भी तो कितनी दूर बह सकती हैं? इसमें भूल सपनों की नहीं है।
वे तो स्वभाव से दुष्‍पुर हैं। भूल हमारी है। जो सपना देखता है, वह सोया है जो सोया है उसकी कोई उपलब्धि वास्तविक नहीं है। जागते ही सब पाया, न पाया हो जाने को है। सपने नहीं, सत्य देखें। जो है उसे देखें। उसे देखने से मुक्ति आती है। वह नाव सच्ची है —वही जीवन की परिपूर्णता तक ले जाती है।
स्वप्नों में मृत्यु है। सत्य में जीवन है।
स्वप्न यानी निद्रा। सत्य यानी जाग्रति। जाने और अपने को पहचानें। जब तक स्वप्न में मन है तब तक जो स्वप्न को देख रहा है वह नहीं दीखता है। वही सत्य है। वही लव्य है। उसे पाते ही डूबी नावों और तैर गये घरोंदों पर केवल हंसी मात्र आती है।

 दोपहर 18 मार्च 1962
रजनीश के प्रणाम
 (पुनश्च :भारत जैन महामंडल का अधिवेशन 7—8 अप्रैल को जयपुर में होना निश्चित हुआ है। निमंत्रण मिला है। संभव है कि सूचना देशलहरा जी आपको भी पहुंच गई होगी। कल यहां से निकलूगा, किस ट्रेन में वो आपको बाद में लिखूंगा।)

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